12-04-2019, 01:21 AM
कुछ दिनों पश्चात रक्षाबंधन का त्यौहार आया. एक ही शहर में होने की वजह से नयना सपरिवार त्यौहार मनाने सौरेश के घर पहुंची. अपूर्वा ने सारी तैयारी पहले से ही की हुई थी. सौरेश और अपूर्वा की बेटी गुड़िया ने नयना और शाश्वत के बेटे आरोह को मिठाई खिलाई और राखी बांधी. आरोह ने अपनी बहन को तोहफ़ा दिया. फिर नयना ने सौरेश को राखी बांधी. सौरेश अपनी जेब से रुपए निकाल नयना को देने लगा. अपूर्वा और मिठाई लाने रसोई में गई तो मौक़ा पा नयना ने अपने दिल की बात सौरेश से कह डाली,“सौरेश भैया, मुझे आपके पैसे नहीं चाहिए. मुझे आपसे अपनी रक्षा का वचन भी नहीं चाहिए. वो मैं स्वयं कर लूंगी. मुझे आपसे बस ये वचन चाहिए कि आप हमारे रिश्ते की मान-मर्यादा बनाए रखेंगे.”
कुछ ऐसा था नयना की दृष्टि में जिसने सौरेश की नज़र झुका दी. बिना कहे ही सब कुछ कह गई थी वो. एक रिश्ता टूटने से बच गया था और बिगड़ने से भी.
कुछ ऐसा था नयना की दृष्टि में जिसने सौरेश की नज़र झुका दी. बिना कहे ही सब कुछ कह गई थी वो. एक रिश्ता टूटने से बच गया था और बिगड़ने से भी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.