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बरसात की वह रात
#24
कमरे की बत्ती बुझा जब नयना बिस्तर पर लेटी तो उसके मन-मस्तिष्क में जो कीड़े कुलबुला रहे थे वो और तेज़ी से हरक़त में आने लगे. सौरेश भैया हमेशा ही नयना के इर्द-गिर्द रहा करते थे. उसे याद आने लगी मम्मी की चिड़चिड़ाहट,‘‘ये सौरेश तेरा हाथ क्यों पकड़े रहता है?” किशोरावस्था में उसे मम्मी की ये सोच कितनी ओछी लगती थी. सौरेश का सदा उसकी प्रशंसा करना, उसकी अदाओं की तारीफ़ों के पुल बांधना, उसे अपनी गर्ल-फ्रेंड्स के क़िस्से सुनाना, नयना को कितनी भाती थी इतनी तवज्जो. एक फ़िल्मी रील की तरह पुरानी बातें उसकी आंखों के सामने प्रतिबिंबित होने लगीं... जब दीदी की शादी में सौरेश भैया आए थे तब मिलते ही उन्होंने हाथ आगे बढ़ाया था. “ओए होए, हैंड शेक!,’’ हंसते हुए नयना के हाथ मिलाने पर उन्होंने अपनी एक अंगुली नयना की हथेली में धंसा दी थी. अटपटा-सा लगा था तब भी उसे. फिर कई बार उन्होंने ऐसा ही किया था. ऐसे ही जब नयना उनकी शादी में शामिल होने गई थी तब हल्दी की रस्म के दौरान, जब नयना उन्हें हल्दी लगाने आई थी तब सौरेश ने अपने हल्दी-लगे गालों को नयना के गालों पर रगड़ दिया था. तब उसकी किशोरी बुद्धि इन हरक़तों को खेल समझती रही. किन्तु आज शादी के इतने समयोपरांत ऐसे कार्यकलाप उसे जंच नहीं रहे थे.
अगले पक्ष में नयना को सपरिवार सौरेश व उसकी पत्नी अपूर्वा ने अपने घर आमंत्रित किया. आरोह, शाश्वत तथा नयना उनके घर पहुंचे. सौरेश एक उच्च पदाधिकारी था सो उसका घर भी उसकी वस्तु-स्थिति का अच्छा झरोखा था. कोरमंगला में स्थित शोभा बिल्डर द्वारा निर्मित ऊंची इमारतों में से एक, अपूर्वा भाभी ने घर बहुत ही टेस्टफ़ुली सजाया था. उनके घर की साज-सज्जा, उनका फ़र्नीचर, दीवारों पर टंगी सिग्नेचर-चित्रकारियां सबने नयना का मन मोह लिया.

Vachan Sootra

‘‘वाह भाभी, कितना सुंदर रखा है आपने घर,’’ घर में प्रवेश करने पर नयना और अपूर्वा ने एक-दूसरे को आलिंगनबद्ध किया. नयना फिर सौरेश की ओर अग्रसर हुई. वो देखना चाहती थी कि सौरेश का उसे गले लगाने का ढंग आज परिवार की मौजूदगी में भी वैसा ही था या कुछ अलग. लेकिन आज तो सौरेश ने उसे गले लगाया ही नहीं. केवल उसके कंधे पर हल्के से थपथपाया और आगे बढ़ गया. आज सौरेश उसकी तरफ़ देख भी नहीं रहा था. अपितु आज वो सबके समक्ष अपनी पत्नी को देख-देख मुस्कुरा रहा था. कभी अपूर्वा के कान में हौले से कुछ खुसफुसा कर हंस देता तो कभी उसका हाथ थाम अपने कंधे को उसके कंधे से टकराता.
घर लौट कर शाश्वत कहने लगे,“तुम्हारे भैया-भाभी में बड़ा प्यार है. देख कर लगता ही नहीं कि शादी को इतने बरस बीत चुके, लगता है जैसे आज भी हनीमून चल रहा हो. बीवी को ख़ुश रखने का मंत्र आता है उन्हें.”
नयना का मन सौरेश की तरफ़ से कसैला हो चुका था. अकेले में कुछ और व्यवहार और पत्नी व परिवार के समक्ष कुछ और. इसका अर्थ तो शीशे की भांति पारदर्शी है-सौरेश भाई-बहन के रिश्ते को ताक पर रखकर मौक़े का फ़ायदा उठाता रहा और नादान नयना उसकी मंशा समझ नहीं पाई. मां ने इशारा दिया तब भी नहीं. उसके परिवार में ऐसी बातें खुल कर नहीं की जाती थीं तो मां ने भी कुछ खुल कर नहीं कहा. आज वो और सौरेश एक ही शहर में हैं तो मिलना-जुलना होता रहेगा. ऐसे में कसैले मन से वो कैसे मिलती रहे उससे? किन्तु दुविधा ये थी कि साफ़तौर पर कुछ हुआ तो नहीं है इसलिए कुछ खुलकर कहा भी नहीं जा सकता है. ये सब उसकी अंतर-भावना के स्वर थे. “केवल गट-फ़ीलिंग के आधार पर इतनी बड़ी बात कही नहीं जा सकती है,’’ नयना सोच-सोच निढाल हो रही थी. सौरेश का वर्गीकरण गंदा या अच्छा व्यक्ति की श्रेणी में करने से पूर्व नयना को कभी किसी पत्रिका में पढ़ी एक मनोवैज्ञानिक बात याद हो आई,‘तार्किक बुद्धि कहती है कि चीज़ें श्वेत या श्याम नहीं होतीं, वे इन दोनों के बीच धूसर वर्ण वाली होती हैं.’ यही तो जादू है किताबों का, जब जिस ज्ञान की आवश्यकता होती है, तब पुरानी पढ़ी हुई बात स्वतः ही मानसपटल पर उभर आती है. नयना सोच में पड़ गई कि कुछ आपत्तिजनक घटना नहीं घटी है, और एक रिश्ता है तो जीवन में मिलना पड़ेगा. लेकिन अब वो किसी संकोच, किसी ग़लतफ़हमी का शिकार नहीं बनेगी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: बरसात की वह रात - by neerathemall - 12-04-2019, 01:20 AM



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