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बरसात की वह रात
#19
‘‘ऐसा होना चाहिए.’’
‘‘आपका यह शहर अजीब है, कुलश्रेष्ठजी. आपके लोग अजीब हैं. रामसेवकजी की बात कर रही हूं. कभी किसी आवश्यक काम के लिए रामसेवकजी को घर बुला लेती हूं तो वे टहलते हुए चाहे जब आने लगे. मजबूरन मुझे कहना पड़ा,‘जब बुलाया जाए तब आएं.’’
मैडम प्रसंग बदलकर स्वयं को सामान्य दर्शाने की चेष्टा करती जान पड़ीं.
कुलश्रेष्ठजी उत्फुल्ल हो उठे और मन ही मन सोचने लगे,‘रामसेवकजी, आपकी कोशिशें निरुद्देश्य नहीं, पर निष्फल हैं.’ फिर उन्होंने मैडम से कहा,‘‘पद की गरिमा को समझना चाहिए. पदाधिकारी स्त्री हो तब तो पूरी सावधानी के साथ व्यवहार करना चाहिए.’’
‘‘मैं सावधानी की बात नहीं कर रही. दरअस्ल लोग पद और पदाधिकारी के संदर्भ में स्त्री-पुरुष का विभेद ले आते हैं. यह ग़लत है,’’ मैडम ने अपना मत दोहराया.
कुलश्रेष्ठ कह देना चाहते थे,‘मैडम, आपको लगता है, व्यापारी घूर रहा है, रामसेवक अनावश्यक घुसपैठ करते हैं, विज़िट पर जाना नहीं चाहतीं, दफ़्तर में देर तक रुक नहीं सकतीं लेकिन कहती हैं, पद के बीच में स्त्री-पुरुष का विभेद न लाया जाए.’ किंतु प्रकट में बोले,‘‘मैडम, मैंने कुछ ग़लत कह दिया हो तो क्षमा करें.’’
मैडम की चिंता और तनाव कुछ कम हुआ,‘‘आप व्यापक दृष्टि रखते हैं. इसीलिए आपसे कुछ बातें कह लेती हूं.’’
*****
तीन वर्ष पूरे होते न होते मैडम का स्थानांतरण हो गया. कुलश्रेष्ठ, रामसेवक, नारंग ने मैडम को अपने घर मध्यान्ह भोज पर आमंत्रित किया. मैडम तीनों के परिवार से प्रसन्नतापूर्वक मिलीं. तीनों को अच्छे सहयोग तथा सामंजस्य के लिए धन्यवाद दिया. मैडम कुलश्रेष्ठ की पत्नी स्तुति से पहली बार मिल रही थीं, फिर भी आत्मीय हो गईं. स्तुति के पीछे-पीछे रसोई में पहुंच गईं. वे स्तुति की ओर केंद्रित रहीं. घरेलू क़िस्म की बातें करती रहीं. कुलश्रेष्ठ ने ध्यान दिया, मैडम इस समय तनाव, झिझक, दबाव में कतई नहीं हैं. प्रसन्न और स्वाभाविक दिख रही हैं. चलते समय स्तुति से बोलीं,‘‘आपके परिवार के साथ समय बिताकर अच्छा महसूस कर रही हूं. कुलश्रेष्ठजी बहुत सहयोगी वृत्ति के सुलझे हुए व्यक्ति हैं. आप बहुत स्नेही और शांत हैं. शायद इसीलिए आपके घर का वातावरण सौहार्दपूर्ण है.’’
तत्पश्चात् मैडम कुलश्रेष्ठ से संबोधित हुई,‘‘कुलश्रेष्ठजी, यहां का स्टाफ़ अच्छा है. आप सभी ने मुझे अच्छा सहयोग दिया. मेरा काम सहज व आसान हो सका. ख़ासकर आपने बहुत सहयोग किया. मैं हमेशा आपको याद रखूंगी.’’
‘‘मैं चाहता हूं, आप एसी बनकर यहां आएं,’’ कुलश्रेष्ठ ने सदिच्छा दर्शाई.
मैडम के जाने के बाद स्तुति कहने लगी,‘‘बड़ी भद्र और शालीन महिला हैं. इतने बड़े पद पर होते हुए भी दर्प-दम्भ नहीं है. मैं डरी हुई थी, पर मैडम तो बहुत सहज-सरल बल्कि घरेलू लगीं.’’
पता नहीं क्या था स्तुति के कथन में. पता नहीं क्या था विदा होती हुई मैडम की मुद्रा में. कुलश्रेष्ठ को लगा, वे तेज़ी से बदल रहे हैं. पता नहीं क्यों, पर पहली बार-हां, पहली बार कुलश्रेष्ठ को पछतावा हुआ. ‘क्यों इस स्त्री को अनावश्यक रूप से चर्चित कर दिया गया? ये तो तमाम अधिकारियों की तरह ही कभी सहज कभी असहज, प्रसन्न-अप्रसन्न, रुष्ट-तुष्ट, सरल-जटिल, सहयोगी-असहयोगी, विज्ञ-अविज्ञ रहीं. स्त्री होने के बोध से इस कदर दबी रहीं कि न कभी अपने अधिकारों का खुलकर
प्रयोग कर पाईं, न किसी बिंदु पर ज़िद्दी होकर अड़ी रहीं. उन्होंने ऐसा कोई व्यवहार नहीं किया, जो पदाधिकारी की सीमा से बाहर हो. हम लोगों की क्षुद्रता ये कि हमारे लिए इनका स्त्री होना इतना महत्वपूर्ण हो गया कि हमने इन्हें पदाधिकारी की तरह देखना ज़रूरी नहीं समझा. इन्हें मनोरंजन का केन्द्र बनाकर हम तीनों ने शायद अपनी लंपटता, टुच्चापन ही उजागर किया है. शायद एक लफंगापन, घटिया विचार, कुंठा प्रत्येक पुरुष के भीतर हर वक़्त, हर उम्र में कुलबुलाती रहती है. स्त्रियों के संबंध में निराधार चर्चा कर हम लोग रति सुख पाते हैं. मैडम मेरे प्रति कृतज्ञ हैं. मैं उनके प्रति जो शुभ चिंतना रखता रहा वह जान पाएं तो उनका स्वाभिमान किस तरह चूर हो जाएगा? ओह! इनका पद, शक्ति, क्षमता वैसी है जैसे किसी भी पुरुष अधिकारी की होती है; फिर भी कार्यालय में रहना आसान हो सके, सब कुछ ठीक-ठाक चले, इसलिए इन्हें किसी को सहयोगी बनाना पड़ता है. सजग-सतर्क रहना पड़ता है. किसी को क्या हक था ठेठ अफ़वाहें फैलाकर मैडम को चर्चित करने का? हम पुरुष ऐसे क्यों हैं? क्यों? क्यों?’
*****
मैडम के स्थान पर नेमीचंद धगट आ गए हैं. जब कभी मौज में आकर नारंग और रामसेवक, मैडम की चर्चा करते हैं, कुलश्रेष्ठ उदास हो जाते हैं. नारंग व रामसेवक उनकी उदासी का कारण तलाशने लगते हैं.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: बरसात की वह रात - by neerathemall - 12-04-2019, 01:17 AM



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