12-04-2019, 01:17 AM
फिर कुलश्रेष्ठ ने इन बातों को नारंग और रामसेवक के समक्ष कुछ इस तरह रखा,‘‘मैडम मुझे अपना सबसे बड़ा शुभचिंतक मानने लगी हैं. हमारी निगहबानी में रहें तो उनके योग-क्षेम की गारंटी हमारी.’’
बात रामसेवक को सहज ग्राह्म नहीं हुई,‘‘अच्छा कुलश्रेष्ठजी, आपको ऐसा नहीं लगता, मैडम हम तीनों से कुछ ज़्यादा ही काम लेती हैं?’’
‘‘इश्क़ करना है तो मशक़्क़त करनी पड़ेगी. रामसेवकजी, मैं मैडम के कार्यकाल में जितनी आसानी से केस निपटा रहा हूं, वह पहले कभी नहीं हुआ.’’
कुलश्रेष्ठ शक्तिभर मोरचे पर डटे रहना चाहते हैं.
‘‘हां, काम आसान हो गया है.’’ नारंग ने अनुमोदन किया.
‘‘आप दोनों भ्रम में न रहें. मैडम अपने काम के आदमियों को चुनकर अपना काम आसान कर रही हैं,’’ रामसेवक, कुलश्रेष्ठ के हौसले पस्त करना चाहते हैं. इन्हें आभास है, कुलश्रेष्ठ बढ़त बनाते जा रहे हैं.
कुलश्रेष्ठ को झटका लगा,‘‘रामसेवकजी, मर्द स्त्री का इस्तेमाल करे या स्त्री मर्द का, मूल रूप से स्त्री ही इस्तेमाल होती है. स्त्री स्वतंत्रता के नाम पर इनका इस्तेमाल और भी आसान हो गया है. विश्व सुंदरी, ब्रह्मांड सुंदरी बाज़ार के लिए इस्तेमाल हो रही है. ये ख़ुद को स्वतंत्र, स्वावलंबी, स्वशासी मानती हैं तो मानें.’’
‘‘ठीक फ़रमाते हैं. यदि हमारा इस्तेमाल हो रहा है तो यही सही. हमें मैडम की मौजूदगी की, उन्हें देखने की, सुनने की, संवाद करने की आदत पड़ गई है,’’ नारंग स्वयं को उम्मीदवारी से खारिज करने को तैयार नहीं हैं.
मैडम को कभी किसी सूत्र से ज्ञात हो, ये जो उनके सहयोगी बने हुए हैं उन्हें पदाधिकारी के स्थान पर निखालिस स्त्री समझते हैं, तब वे कितनी परेशान होंगी, कहा नहीं जा सकता. ओहदे को उपेक्षित कर उसमें आरूढ़ स्त्री को लक्षित किया जाए, यह किसी भी स्त्री के लिए अपमानजनक होगा. मैडम के लिए भी है.
*****
केस की फ़ाइल कुलश्रेष्ठ ही देख रहे थे. उनके साथ वह व्यापारी भी था जिसका केस था. व्यापारी मैडम को निरंतर देखे जा रहा था. उन्हें असुविधा हो रही थी.
‘‘मिस्टर! इस तरह घूर रहे हैं? आप आदमी हैं या...’’
‘‘ज... ज... जी... मतलब?’’
‘‘मैं डिस्टर्ब हो रही हूं.’’
‘‘मैडम! आप मुझे टॉर्चर कर रही हैं. मेरे केस की फ़ाइल है और मैं आपकी ओर देखूंगा नहीं? मेरी नज़र ऐसी ही है. इसके लिए मुझे आज तक किसी अधिकारी ने नहीं टोका.’’
‘‘न टोका होगा. स्त्रियों के समक्ष कैसे प्रस्तुत हुआ जाए, आपको इसकी तमीज़ नहीं है,’’ मैडम हांफते हुए बोलीं.
‘‘आप तो ऑफ़िसर हैं.’’
‘‘गेट आउट... गेट आउट!’’ मैडम के कंठ से घुटी हुई ध्वनि निकली.
‘‘निरंकारीजी, आप बाहर जाइए,’’ कुलश्रेष्ठ को जैसे चेत आया. उन्होंने व्यापारी को कक्ष से बाहर भेज दिया.
निरंकारी के जाने के बाद कुलश्रेष्ठ ने मैडम को ताका.
‘‘मैडम, ये यहां के पुराने और घुटे हुए लोग हैं. किसी की नहीं सुनते.’’
मैडम गहरी निराशा में. जैसे दिए गए अधिकारों को छीन लिया गया है अथवा अधिकारों का प्रयोग करने की स्वतंत्रता नहीं है.
‘‘अभद्रता अनदेखी की जानी चाहिए?’’ मुद्रा कुछ ऐसी करुण मानो लाख दृढ़ता दिखाएं, पर स्वयं ही अपने स्त्री होने के दुर्बल बोध से छूट नहीं पा रही हैं.
‘‘क्या कीजिएगा? यहां तमाम तरह की घटनाएं होती रहती हैं. एक बार इसी दफ़्तर के एक चपरासी ने एसी के बंगले पर जाकर ख़ूब गाली-गलौज की. एक छोटा व्यापारी, जिसे लाखों टैक्स लगा था, एसी के चेम्बर में ही उन्हें मुफ़्तखोर, घूसखोर कहता रहा; फिर बहुत रोया कि सिर के बाल बेचकर टैक्स भरूं? हमें जीने देंगे?... ऐसा हो जाता है. फिर भी मैं मानता हूं, महिला अधिकारी के सामने सौहार्द बनाए रखना चाहिए.’’ कुलश्रेष्ठ मैडम को कंसोल करना चाह रहे थे कि एक उन्हीं के साथ यह नहीं हुआ है.
‘‘महिला अधिकारी! मतलब? अधिकारी, अधिकारी होता है, पुरुष या स्त्री नहीं. उसे पदाधिकारी की तरह ही मान्यता दी जानी चाहिए,’’ मैडम ज़ोरदार ढंग से खंडन करना चाहती थीं; किंन्तु स्त्री बोध दुर्बल बना रहा था.
बात रामसेवक को सहज ग्राह्म नहीं हुई,‘‘अच्छा कुलश्रेष्ठजी, आपको ऐसा नहीं लगता, मैडम हम तीनों से कुछ ज़्यादा ही काम लेती हैं?’’
‘‘इश्क़ करना है तो मशक़्क़त करनी पड़ेगी. रामसेवकजी, मैं मैडम के कार्यकाल में जितनी आसानी से केस निपटा रहा हूं, वह पहले कभी नहीं हुआ.’’
कुलश्रेष्ठ शक्तिभर मोरचे पर डटे रहना चाहते हैं.
‘‘हां, काम आसान हो गया है.’’ नारंग ने अनुमोदन किया.
‘‘आप दोनों भ्रम में न रहें. मैडम अपने काम के आदमियों को चुनकर अपना काम आसान कर रही हैं,’’ रामसेवक, कुलश्रेष्ठ के हौसले पस्त करना चाहते हैं. इन्हें आभास है, कुलश्रेष्ठ बढ़त बनाते जा रहे हैं.
कुलश्रेष्ठ को झटका लगा,‘‘रामसेवकजी, मर्द स्त्री का इस्तेमाल करे या स्त्री मर्द का, मूल रूप से स्त्री ही इस्तेमाल होती है. स्त्री स्वतंत्रता के नाम पर इनका इस्तेमाल और भी आसान हो गया है. विश्व सुंदरी, ब्रह्मांड सुंदरी बाज़ार के लिए इस्तेमाल हो रही है. ये ख़ुद को स्वतंत्र, स्वावलंबी, स्वशासी मानती हैं तो मानें.’’
‘‘ठीक फ़रमाते हैं. यदि हमारा इस्तेमाल हो रहा है तो यही सही. हमें मैडम की मौजूदगी की, उन्हें देखने की, सुनने की, संवाद करने की आदत पड़ गई है,’’ नारंग स्वयं को उम्मीदवारी से खारिज करने को तैयार नहीं हैं.
मैडम को कभी किसी सूत्र से ज्ञात हो, ये जो उनके सहयोगी बने हुए हैं उन्हें पदाधिकारी के स्थान पर निखालिस स्त्री समझते हैं, तब वे कितनी परेशान होंगी, कहा नहीं जा सकता. ओहदे को उपेक्षित कर उसमें आरूढ़ स्त्री को लक्षित किया जाए, यह किसी भी स्त्री के लिए अपमानजनक होगा. मैडम के लिए भी है.
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केस की फ़ाइल कुलश्रेष्ठ ही देख रहे थे. उनके साथ वह व्यापारी भी था जिसका केस था. व्यापारी मैडम को निरंतर देखे जा रहा था. उन्हें असुविधा हो रही थी.
‘‘मिस्टर! इस तरह घूर रहे हैं? आप आदमी हैं या...’’
‘‘ज... ज... जी... मतलब?’’
‘‘मैं डिस्टर्ब हो रही हूं.’’
‘‘मैडम! आप मुझे टॉर्चर कर रही हैं. मेरे केस की फ़ाइल है और मैं आपकी ओर देखूंगा नहीं? मेरी नज़र ऐसी ही है. इसके लिए मुझे आज तक किसी अधिकारी ने नहीं टोका.’’
‘‘न टोका होगा. स्त्रियों के समक्ष कैसे प्रस्तुत हुआ जाए, आपको इसकी तमीज़ नहीं है,’’ मैडम हांफते हुए बोलीं.
‘‘आप तो ऑफ़िसर हैं.’’
‘‘गेट आउट... गेट आउट!’’ मैडम के कंठ से घुटी हुई ध्वनि निकली.
‘‘निरंकारीजी, आप बाहर जाइए,’’ कुलश्रेष्ठ को जैसे चेत आया. उन्होंने व्यापारी को कक्ष से बाहर भेज दिया.
निरंकारी के जाने के बाद कुलश्रेष्ठ ने मैडम को ताका.
‘‘मैडम, ये यहां के पुराने और घुटे हुए लोग हैं. किसी की नहीं सुनते.’’
मैडम गहरी निराशा में. जैसे दिए गए अधिकारों को छीन लिया गया है अथवा अधिकारों का प्रयोग करने की स्वतंत्रता नहीं है.
‘‘अभद्रता अनदेखी की जानी चाहिए?’’ मुद्रा कुछ ऐसी करुण मानो लाख दृढ़ता दिखाएं, पर स्वयं ही अपने स्त्री होने के दुर्बल बोध से छूट नहीं पा रही हैं.
‘‘क्या कीजिएगा? यहां तमाम तरह की घटनाएं होती रहती हैं. एक बार इसी दफ़्तर के एक चपरासी ने एसी के बंगले पर जाकर ख़ूब गाली-गलौज की. एक छोटा व्यापारी, जिसे लाखों टैक्स लगा था, एसी के चेम्बर में ही उन्हें मुफ़्तखोर, घूसखोर कहता रहा; फिर बहुत रोया कि सिर के बाल बेचकर टैक्स भरूं? हमें जीने देंगे?... ऐसा हो जाता है. फिर भी मैं मानता हूं, महिला अधिकारी के सामने सौहार्द बनाए रखना चाहिए.’’ कुलश्रेष्ठ मैडम को कंसोल करना चाह रहे थे कि एक उन्हीं के साथ यह नहीं हुआ है.
‘‘महिला अधिकारी! मतलब? अधिकारी, अधिकारी होता है, पुरुष या स्त्री नहीं. उसे पदाधिकारी की तरह ही मान्यता दी जानी चाहिए,’’ मैडम ज़ोरदार ढंग से खंडन करना चाहती थीं; किंन्तु स्त्री बोध दुर्बल बना रहा था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.