12-04-2019, 01:16 AM
सुनकर रामसेवक मलिन पड़ गए. मैडम को गाड़ी चाहिए तो उनसे कहें! वे किसी व्यापारी की गाड़ी भेज देंगें.
नारंगजी थोड़ा हंसे,‘‘कुलश्रेष्ठजी, आप मैडम के नियर-डियर बनते जा रहे हैं. मालूम होता है, बाज़ी आपके हाथ लगेगी.’’
‘‘आप भ्रम में न रहें, नारंगजी. मुझे लगता है, मैडम हमें महत्व कम देती हैं, इस्तेमाल अधिक कर रही हैं.’’ रामसेवकजी का तात्पर्य ‘हमें’ के स्थान पर ‘आप दोनों’ से है.
*****
प्रसंगवश बता दें, विभाग में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो मैडम को स्त्री नहीं पदाधिकारी मानते हैं. इनका मानना है, जो लोग मैडम को इस तरह चर्चित-प्रचारित कर रहे हैं वे मानसिक विलासिता, चारित्रिक भटकाव, प्रमाद, कुंठा अथवा हीनता से संक्रमित हैं.
कुल मिलाकर कार्यालय में चुहल-चुटकियों का दौर चल रहा है. मैडम की गतिविधि पर नज़र रखी जा रही है,‘‘आज काजल लगाकर आई हैं.’’
‘‘काजल की बात करते हो. अभी एक पार्टी में लाली लगाए हुए थीं.’’
‘‘सुना है वह तिकड़ी मैडम की जिगरी बनी हुई है.’’
‘‘बकवास है. तीनों ख़ुद को बेवजह उछाल रहे हैं.’’
‘‘कुलश्रेष्ठ, मैडम के लिए काम के आदमी हैं. मैडम भली प्रकार काम जानती नहीं हैं और...’’
‘‘काम कैसे जानें? क़ानून की किताबें देखने की फ़ुर्सत ही कहां मिलती होगी? गृहस्थी, बच्चियां, शहडोल प्रवास.’’
‘‘सुना है, रात की पार्टियों में नहीं जातीं.’’
‘‘औरतों को बहुत सोचना पड़ता है.’’
‘‘क्लोज़िंग के समय ऑफ़िस में देर तक काम चलता है. मैडम पांच बजते ही घर जाने को फड़फड़ाने लगती हैं कि बच्चियां अकेली हैं. सुनते हैं, बड़े साहब (आयकर सहायक आयुक्त) का आदेश भी नहीं मानतीं. अरे, पद संभाला है, ज़िम्मेदारी भी संभालो.’’
मैडम बड़े साहब को समुचित आदर देती हैं पर देर तक रुकने को सहमत नहीं होतीं. साहब इसे अवमानना समझते हैं. कुलश्रेष्ठ चूंकि इस कार्यालय के सर्वाधिक ज़रूरी तत्व हैं, इसलिए साहब के लिए भी नितान्त आवश्यक और अपेक्षणीय हैं. अपने भव्य चेम्बर में विराजे साहब, कुलश्रेष्ठ से बोले,‘‘कुलश्रेष्ठजी, मैडम आपको कुछ विचित्र नहीं लगतीं? उनके चेम्बर में आपका काफ़ी वक़्त गुज़रता है. आपका क्या ख़्याल है?’’ साहब बेचैन थे.
कुलश्रेष्ठ बोले,‘‘भली हैं. काम में अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करतीं.’’
‘‘हस्तक्षेप तब करेंगी ना यदि क़ानूनी प्रक्रिया को ठीक-ठीक समझेंगी.’’
‘‘...’’
‘‘विज़िट पर चलने को कहो तो क्षमा चाहती हैं कि उन्हें बाहर आने-जाने में असुविधा होती है. यह क्या बात है? पद पर हैं तो दौरे करने ही होंगे.’’
‘‘महिलाओं को कुछ दिक़्क़तें होती हैं,’’ कुलश्रेष्ठ, साहब के समक्ष गुरु-गम्भीर बने रहते हैं.
‘‘हां, जैसे... गाड़ी में चार व्यक्ति हैं तो मैडम किसके पास बैठें? मर्द तो गाड़ी रुकवाकर कहीं भी फारिंग हो ले, मैडम जहां-तहां नहीं बैठ सकतीं. दौरे पर नहीं जाना चाहतीं. हम अपना व्यक्तिगत काम तो कराते नहीं. कार्यालयीन काम है, जिसका आप वेतन लेती हैं. ...क्या है न, मैडम साथ में रहें तो तबीयत हलकी लगती है!’’
ऊंचे व्यक्तित्व भी भीतर से बौने साबित होते हैं.
‘‘राइट सर.’’
*****
कुलश्रेष्ठ नस पहचानकर सही नस ही पकड़ते हैं. एक की बात दूसरे से नहीं कहते. सभी के प्रिय तथा राज़दार बने रहते हैं. यही कारण है, मैडम अन्य के साथ संकोच से परिचित हुईं, कुलश्रेष्ठ के साथ आरंभिक हिचक के बाद कुछ खुलने लगीं. इतने बड़े कार्यालय में खपना है तो किसी पर भरोसा करना पड़ेगा.
कुलश्रेष्ठ मैडम के कक्ष में केस कराने पहुंचे. वे फ़ाइल खोले हुए थीं.
‘‘आज इस केस का निपटारा हो जाए.’’
‘‘आप तो मैडम आदेश करें,’’ कुलश्रेष्ठ ने फ़ाइल पर नज़र डाली.
‘‘मैं पहले छोटी जगह में थी. वहां इतना काम नहीं था. यह बड़ी जगह है. पूरे संभाग का काम यहां होता है. वर्कलोड बहुत है.’’
‘‘आप जिस ज़िम्मेदारी से काम करती हैं, वह अद्भुत है.’’
‘‘बावजूद इसके साहब फ़रमान जारी करते हैं कि मुझे दफ़्तर में देर तक रुककर काम करना चाहिए!’’
‘‘उन्हें कौन मार्गदर्शन दे सकता है? मेरा तो मानना है, जब से आप आई हैं, काम ने अच्छी गति पकड़ी है. आप न अनावश्यक रूप से हस्तक्षेप करती हैं, न काम को रोककर रखना चाहती हैं. यहां ऐसे-ऐसे विचित्र अधिकारी आए हैं कि क्या कहें. एक साहब बहुत ईमानदार थे; पर उनका व्यवहार ऐसा जैसे घूस न लेकर हम पर एहसान कर रहे हैं. हरदम बौखलाए रहते थे. चाहते थे-वे ईमानदार हैं, इसलिए उन्हें अतिरिक्त सम्मान दिया जाए. कई बार वे ऐसे बिंदु पर अड़ जाते थे, जो निरर्थक साबित होते थे.’’
‘‘आप लोग काम कैसे कर पाते थे?’’
‘‘कर पाते थे. हम लोगों को अधिकारियों के उपद्रव सहने की आदत है.’’
‘‘उपद्रव! ओ गॉड! क्या आप मेरा भी कोई उपद्रव बताएंगे?’’
‘‘आप काम में अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करती हैं.’’
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नारंगजी थोड़ा हंसे,‘‘कुलश्रेष्ठजी, आप मैडम के नियर-डियर बनते जा रहे हैं. मालूम होता है, बाज़ी आपके हाथ लगेगी.’’
‘‘आप भ्रम में न रहें, नारंगजी. मुझे लगता है, मैडम हमें महत्व कम देती हैं, इस्तेमाल अधिक कर रही हैं.’’ रामसेवकजी का तात्पर्य ‘हमें’ के स्थान पर ‘आप दोनों’ से है.
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प्रसंगवश बता दें, विभाग में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो मैडम को स्त्री नहीं पदाधिकारी मानते हैं. इनका मानना है, जो लोग मैडम को इस तरह चर्चित-प्रचारित कर रहे हैं वे मानसिक विलासिता, चारित्रिक भटकाव, प्रमाद, कुंठा अथवा हीनता से संक्रमित हैं.
कुल मिलाकर कार्यालय में चुहल-चुटकियों का दौर चल रहा है. मैडम की गतिविधि पर नज़र रखी जा रही है,‘‘आज काजल लगाकर आई हैं.’’
‘‘काजल की बात करते हो. अभी एक पार्टी में लाली लगाए हुए थीं.’’
‘‘सुना है वह तिकड़ी मैडम की जिगरी बनी हुई है.’’
‘‘बकवास है. तीनों ख़ुद को बेवजह उछाल रहे हैं.’’
‘‘कुलश्रेष्ठ, मैडम के लिए काम के आदमी हैं. मैडम भली प्रकार काम जानती नहीं हैं और...’’
‘‘काम कैसे जानें? क़ानून की किताबें देखने की फ़ुर्सत ही कहां मिलती होगी? गृहस्थी, बच्चियां, शहडोल प्रवास.’’
‘‘सुना है, रात की पार्टियों में नहीं जातीं.’’
‘‘औरतों को बहुत सोचना पड़ता है.’’
‘‘क्लोज़िंग के समय ऑफ़िस में देर तक काम चलता है. मैडम पांच बजते ही घर जाने को फड़फड़ाने लगती हैं कि बच्चियां अकेली हैं. सुनते हैं, बड़े साहब (आयकर सहायक आयुक्त) का आदेश भी नहीं मानतीं. अरे, पद संभाला है, ज़िम्मेदारी भी संभालो.’’
मैडम बड़े साहब को समुचित आदर देती हैं पर देर तक रुकने को सहमत नहीं होतीं. साहब इसे अवमानना समझते हैं. कुलश्रेष्ठ चूंकि इस कार्यालय के सर्वाधिक ज़रूरी तत्व हैं, इसलिए साहब के लिए भी नितान्त आवश्यक और अपेक्षणीय हैं. अपने भव्य चेम्बर में विराजे साहब, कुलश्रेष्ठ से बोले,‘‘कुलश्रेष्ठजी, मैडम आपको कुछ विचित्र नहीं लगतीं? उनके चेम्बर में आपका काफ़ी वक़्त गुज़रता है. आपका क्या ख़्याल है?’’ साहब बेचैन थे.
कुलश्रेष्ठ बोले,‘‘भली हैं. काम में अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करतीं.’’
‘‘हस्तक्षेप तब करेंगी ना यदि क़ानूनी प्रक्रिया को ठीक-ठीक समझेंगी.’’
‘‘...’’
‘‘विज़िट पर चलने को कहो तो क्षमा चाहती हैं कि उन्हें बाहर आने-जाने में असुविधा होती है. यह क्या बात है? पद पर हैं तो दौरे करने ही होंगे.’’
‘‘महिलाओं को कुछ दिक़्क़तें होती हैं,’’ कुलश्रेष्ठ, साहब के समक्ष गुरु-गम्भीर बने रहते हैं.
‘‘हां, जैसे... गाड़ी में चार व्यक्ति हैं तो मैडम किसके पास बैठें? मर्द तो गाड़ी रुकवाकर कहीं भी फारिंग हो ले, मैडम जहां-तहां नहीं बैठ सकतीं. दौरे पर नहीं जाना चाहतीं. हम अपना व्यक्तिगत काम तो कराते नहीं. कार्यालयीन काम है, जिसका आप वेतन लेती हैं. ...क्या है न, मैडम साथ में रहें तो तबीयत हलकी लगती है!’’
ऊंचे व्यक्तित्व भी भीतर से बौने साबित होते हैं.
‘‘राइट सर.’’
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कुलश्रेष्ठ नस पहचानकर सही नस ही पकड़ते हैं. एक की बात दूसरे से नहीं कहते. सभी के प्रिय तथा राज़दार बने रहते हैं. यही कारण है, मैडम अन्य के साथ संकोच से परिचित हुईं, कुलश्रेष्ठ के साथ आरंभिक हिचक के बाद कुछ खुलने लगीं. इतने बड़े कार्यालय में खपना है तो किसी पर भरोसा करना पड़ेगा.
कुलश्रेष्ठ मैडम के कक्ष में केस कराने पहुंचे. वे फ़ाइल खोले हुए थीं.
‘‘आज इस केस का निपटारा हो जाए.’’
‘‘आप तो मैडम आदेश करें,’’ कुलश्रेष्ठ ने फ़ाइल पर नज़र डाली.
‘‘मैं पहले छोटी जगह में थी. वहां इतना काम नहीं था. यह बड़ी जगह है. पूरे संभाग का काम यहां होता है. वर्कलोड बहुत है.’’
‘‘आप जिस ज़िम्मेदारी से काम करती हैं, वह अद्भुत है.’’
‘‘बावजूद इसके साहब फ़रमान जारी करते हैं कि मुझे दफ़्तर में देर तक रुककर काम करना चाहिए!’’
‘‘उन्हें कौन मार्गदर्शन दे सकता है? मेरा तो मानना है, जब से आप आई हैं, काम ने अच्छी गति पकड़ी है. आप न अनावश्यक रूप से हस्तक्षेप करती हैं, न काम को रोककर रखना चाहती हैं. यहां ऐसे-ऐसे विचित्र अधिकारी आए हैं कि क्या कहें. एक साहब बहुत ईमानदार थे; पर उनका व्यवहार ऐसा जैसे घूस न लेकर हम पर एहसान कर रहे हैं. हरदम बौखलाए रहते थे. चाहते थे-वे ईमानदार हैं, इसलिए उन्हें अतिरिक्त सम्मान दिया जाए. कई बार वे ऐसे बिंदु पर अड़ जाते थे, जो निरर्थक साबित होते थे.’’
‘‘आप लोग काम कैसे कर पाते थे?’’
‘‘कर पाते थे. हम लोगों को अधिकारियों के उपद्रव सहने की आदत है.’’
‘‘उपद्रव! ओ गॉड! क्या आप मेरा भी कोई उपद्रव बताएंगे?’’
‘‘आप काम में अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करती हैं.’’
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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
