12-04-2019, 01:15 AM
तीसरे हैं इस कार्यालय के सर्वाधिक सक्रिय वक़ील निश्छल कुलश्रेष्ठ. ये विभाग के सबसे ज़रूरी और सर्वोदई टाइप के व्यक्ति हैं. मैडम की मेज पर इनके केस बहुतायत में हैं. इनका काफ़ी समय मैडम के कक्ष में प्रकरण निपटाते हुए व्यतीत होता है. निश्छल कुलश्रेष्ठ की अनुभवी दृष्टि ने भांप लिया है मैडम कार्यदक्ष नहीं हैं. घूस-रिश्वत भी खुलकर नहीं मांग पाती हैं. जो दे दो, यथेष्ट मान लेती हैं.
यदि सर्वेक्षण कराया जाए तीनों में किसका आधार मज़बूत है तो सुई निश्चल कुलश्रेष्ठ की ओर घूमती है. रामसेवक मैडम के मातहत हैं. नील नारंग मैडम को विश्वसनीय जान नहीं पड़ते. कुलश्रेष्ठ की सर्वोदई छवि की जानकारी मैडम को हो चुकी है, अतः प्रकरण संबंधी क़ानूनी अड़चनें, सावधानियां, बारीकियां, धाराएं, बोर्ड और हाईकोर्ट के फ़ैसले, किसी विशेष प्रकरण में विशेष परिस्थिति में मिलनेवाली कर की छूट, हानि-लाभ इत्यादि कुलश्रेष्ठ से पूछती रहती हैं. जानकारी प्राप्त करना सीधे उजागर न हो, इस हेतु बतौर सावधानी वार्ता में आत्मीयता को स्वल्प स्पर्श देते हुए बाज़ार भाव, धर्म, राजनीति, चुनाव, विभाग के यम-नियम, लोगों की कार्य पद्धति, विचार इत्यादि औपचारिक संदर्भों पर कुछ कहती-सुनती हैं.
कुलश्रेष्ठ प्रचारित करते हैं,‘‘मैडम मेरे साथ बड़ी जल्दी बेतकल्लुफ़ हो गईं.’’
रामसेवक कहते,‘‘मेरे साथ भी.’’
नील नारंग कहते,‘‘मेरे साथ भी.’’
ये तीनों इन दिनों प्रतिद्वंद्विता और आपसी समीपता एक साथ महसूस कर रहे हैं. मैडम के संदर्भ में तीनों कुछ बातें छिपा लेते हैं, कुछ उद्घाटित करते हैं. तीनों की कोशिश रहती है तथ्यों को इस ढंग से रखें जिससे अनुमान निकले-मैडम एक उन्हीं से प्रभावित हैं.
रामसेवक बताने लगते,‘‘मैडम मुझे घर बहुत बुलाती हैं.’’
नारंग कटाक्ष करते हैं,‘‘गैस सिलेंडर भरवाते होंगे, बच्चियों की कॉलेज फ़ीस जमा करवाते होंगे, मैडम के शहडोल जाने का रिज़र्वेशन करवाते होंगे.’’
रामसेवक ज़ोर देकर कहते,‘‘काम तो बहाना है. काम छोटा होता है. बैठक लंबी जमती है.’’
कुलश्रेष्ठ अपने पत्ते जल्दी नहीं खोलते. प्रहसन का-सा आनंद लेते हुए अपनी चतुर-चालाक मुस्कान को प्रस्फुटित करते हैं,‘‘काश, हम भी किसी बहाने मैडम के घर गए होते.’’
रामसेवक के मुख पर गौरव,‘‘अपनी-अपनी तक़दीर है, कुलश्रेष्ठ जी! मैडम के पति यहां रहते नहीं तो बहुत से काम हमें ही संभालने पड़ते हैं.’’
यहां रामसेवक यह तथ्य छिपा लेते हैं जब वे एक ही कॉलोनी में रहने का लाभ लेते हुए शाम को मैडम के घर जाते हैं और पूछते हैं,‘टहलने निकला तो सोचा, पूछता चलूं मेरे लायक कोई काम हो.’
तब मैडम शासनपूर्ण सख़्ती से कह देती हैं,‘रामसेवकजी, जब बुलाया जाए तब आएं.’
नील नारंग बताते हैं,‘‘मैडम मेरी सहायता के बिना प्रिपरेशन नहीं कर सकतीं. उनमें विवेक-बुद्धि नहीं है. मदद कर मोहतरमा को कृतार्थ कर रहा हूं. दरस-परस होता है, चाय-कॉफ़ी का दौर भी.’’
रामसेवक, नारंग को तिर्यक होकर देखते हैं,‘‘अच्छा, तो आपकी अब तक निलंबित रही बुद्धि बहाल हो गई, जो मैडम की मेज का काम आप ही संभाल रहे हैं?’’
रामसेवक ने नारंग का हौसला तोड़ना ज़रूरी समझा,‘‘आप मैडम की चतुराई समझें, नारंगजी. वे आप पर काम थोप रही हैं.’’
कुलश्रेष्ठ ठीक मौक़े पर कूद पड़ते हैं,‘‘आप तो नारंगजी, लगे रहें. मैं नाचीज़ आपके कुछ काम आ सकूं तो ख़ुद पर गर्व महसूस करूंगा.’’
नारंग उपलब्धि भरी हंसी हंसते हैं. नारंग नहीं बताते जब उत्साहित होकर किसी प्रकरण में लीगल पॉइंट्स बताने की बुद्धिमानी दिखाते हैं, मैडम डोज़ दे देती हैं,‘जब आपसे पूछूं, कृपया तभी बताएं.’
‘सॉरी मैडम.’ नारंग अचकचा जाते हैं. इन्हें मैडम की यह उपेक्षा भरी फटकार पुरुषोचित अहं पर हमला जान पड़ती है.
तीसरे उम्मीदवार निश्छल कुलश्रेष्ठ ग़ज़ब के व्यक्तित्व हैं. इनकी बौद्धिक ऊर्जा, तर्क, आग्रह ग़ज़ब के हैं. इनकी पहली प्राथमिकता तमाम दंद-फंद कर अपने मुवक़्क़िल पर लगे कर को घटाना अथवा समाप्त कराना होता है. ये कौन-सी बात ज़ाहिर करते हैं, कौन-सी नहीं, इनके अतिरिक्त कोई नहीं जानता. बताने लगे,‘‘आयकर आयुक्त आ रहे थे. उन्हें रिसीव करने मैडम को भी रेलवे स्टेशन जाना था. स्टेशन आठ किलोमीटर दूर. परेशान थीं. बोलीं, ‘मैं विभागीय लोगों के साथ नहीं जाना चाहती.’ परेशानी होती है. मैंने स्थिति को समझा. ड्यूटी करनी है और महिला होने की ढेर परेशानियां. मैंने ड्राइवर के साथ अपनी कार भेज दी.’’
यदि सर्वेक्षण कराया जाए तीनों में किसका आधार मज़बूत है तो सुई निश्चल कुलश्रेष्ठ की ओर घूमती है. रामसेवक मैडम के मातहत हैं. नील नारंग मैडम को विश्वसनीय जान नहीं पड़ते. कुलश्रेष्ठ की सर्वोदई छवि की जानकारी मैडम को हो चुकी है, अतः प्रकरण संबंधी क़ानूनी अड़चनें, सावधानियां, बारीकियां, धाराएं, बोर्ड और हाईकोर्ट के फ़ैसले, किसी विशेष प्रकरण में विशेष परिस्थिति में मिलनेवाली कर की छूट, हानि-लाभ इत्यादि कुलश्रेष्ठ से पूछती रहती हैं. जानकारी प्राप्त करना सीधे उजागर न हो, इस हेतु बतौर सावधानी वार्ता में आत्मीयता को स्वल्प स्पर्श देते हुए बाज़ार भाव, धर्म, राजनीति, चुनाव, विभाग के यम-नियम, लोगों की कार्य पद्धति, विचार इत्यादि औपचारिक संदर्भों पर कुछ कहती-सुनती हैं.
कुलश्रेष्ठ प्रचारित करते हैं,‘‘मैडम मेरे साथ बड़ी जल्दी बेतकल्लुफ़ हो गईं.’’
रामसेवक कहते,‘‘मेरे साथ भी.’’
नील नारंग कहते,‘‘मेरे साथ भी.’’
ये तीनों इन दिनों प्रतिद्वंद्विता और आपसी समीपता एक साथ महसूस कर रहे हैं. मैडम के संदर्भ में तीनों कुछ बातें छिपा लेते हैं, कुछ उद्घाटित करते हैं. तीनों की कोशिश रहती है तथ्यों को इस ढंग से रखें जिससे अनुमान निकले-मैडम एक उन्हीं से प्रभावित हैं.
रामसेवक बताने लगते,‘‘मैडम मुझे घर बहुत बुलाती हैं.’’
नारंग कटाक्ष करते हैं,‘‘गैस सिलेंडर भरवाते होंगे, बच्चियों की कॉलेज फ़ीस जमा करवाते होंगे, मैडम के शहडोल जाने का रिज़र्वेशन करवाते होंगे.’’
रामसेवक ज़ोर देकर कहते,‘‘काम तो बहाना है. काम छोटा होता है. बैठक लंबी जमती है.’’
कुलश्रेष्ठ अपने पत्ते जल्दी नहीं खोलते. प्रहसन का-सा आनंद लेते हुए अपनी चतुर-चालाक मुस्कान को प्रस्फुटित करते हैं,‘‘काश, हम भी किसी बहाने मैडम के घर गए होते.’’
रामसेवक के मुख पर गौरव,‘‘अपनी-अपनी तक़दीर है, कुलश्रेष्ठ जी! मैडम के पति यहां रहते नहीं तो बहुत से काम हमें ही संभालने पड़ते हैं.’’
यहां रामसेवक यह तथ्य छिपा लेते हैं जब वे एक ही कॉलोनी में रहने का लाभ लेते हुए शाम को मैडम के घर जाते हैं और पूछते हैं,‘टहलने निकला तो सोचा, पूछता चलूं मेरे लायक कोई काम हो.’
तब मैडम शासनपूर्ण सख़्ती से कह देती हैं,‘रामसेवकजी, जब बुलाया जाए तब आएं.’
नील नारंग बताते हैं,‘‘मैडम मेरी सहायता के बिना प्रिपरेशन नहीं कर सकतीं. उनमें विवेक-बुद्धि नहीं है. मदद कर मोहतरमा को कृतार्थ कर रहा हूं. दरस-परस होता है, चाय-कॉफ़ी का दौर भी.’’
रामसेवक, नारंग को तिर्यक होकर देखते हैं,‘‘अच्छा, तो आपकी अब तक निलंबित रही बुद्धि बहाल हो गई, जो मैडम की मेज का काम आप ही संभाल रहे हैं?’’
रामसेवक ने नारंग का हौसला तोड़ना ज़रूरी समझा,‘‘आप मैडम की चतुराई समझें, नारंगजी. वे आप पर काम थोप रही हैं.’’
कुलश्रेष्ठ ठीक मौक़े पर कूद पड़ते हैं,‘‘आप तो नारंगजी, लगे रहें. मैं नाचीज़ आपके कुछ काम आ सकूं तो ख़ुद पर गर्व महसूस करूंगा.’’
नारंग उपलब्धि भरी हंसी हंसते हैं. नारंग नहीं बताते जब उत्साहित होकर किसी प्रकरण में लीगल पॉइंट्स बताने की बुद्धिमानी दिखाते हैं, मैडम डोज़ दे देती हैं,‘जब आपसे पूछूं, कृपया तभी बताएं.’
‘सॉरी मैडम.’ नारंग अचकचा जाते हैं. इन्हें मैडम की यह उपेक्षा भरी फटकार पुरुषोचित अहं पर हमला जान पड़ती है.
तीसरे उम्मीदवार निश्छल कुलश्रेष्ठ ग़ज़ब के व्यक्तित्व हैं. इनकी बौद्धिक ऊर्जा, तर्क, आग्रह ग़ज़ब के हैं. इनकी पहली प्राथमिकता तमाम दंद-फंद कर अपने मुवक़्क़िल पर लगे कर को घटाना अथवा समाप्त कराना होता है. ये कौन-सी बात ज़ाहिर करते हैं, कौन-सी नहीं, इनके अतिरिक्त कोई नहीं जानता. बताने लगे,‘‘आयकर आयुक्त आ रहे थे. उन्हें रिसीव करने मैडम को भी रेलवे स्टेशन जाना था. स्टेशन आठ किलोमीटर दूर. परेशान थीं. बोलीं, ‘मैं विभागीय लोगों के साथ नहीं जाना चाहती.’ परेशानी होती है. मैंने स्थिति को समझा. ड्यूटी करनी है और महिला होने की ढेर परेशानियां. मैंने ड्राइवर के साथ अपनी कार भेज दी.’’
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.


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