12-04-2019, 01:09 AM
शादी के पहले से उसका अपने जीजाजी से अफ़ेयर थे. उसकी शादी ही इसी सोच के तहत की गई थी कि उसकी बहन का घर उजड़ने से बच जाए. लेकिन वह शादी के बाद भी छुप-छुप कर उनसे मिलने उनके शहर जाती रही थी. मैंने भी उसे बहुत समझाया था, लेकिन सब बेकार. इधर मैंने तलाक़ की अर्जी दी थी और उधर उसकी दीदी ने ख़ुदकुशी की थी. दो परिवार एक ही दिन उजड़े थे.
-ओह, मुझे बिलकुल पता नहीं था कि तुम इतने भीषण हादसे से गुज़रे हो. कहां है वो आजकल.
-शुरू-शुरू में तो सरेआम जीजा के घर जा बैठी थी. बाद में पता चला था, पागल-वागल हो गई थी. क्या तुम्हें सचमुच नहीं पता था?
-सच कह रही हूं. सिर्फ़ तुम्हारी शादी की ही ख़बर मिली थी. मुझे अच्छा लगा था कि तुम्हें मेरे बाद बहुत दिन तक अकेला नहीं रहना पड़ा था. लेकिन मुझे यह अहसास तक नहीं था कि तुम्हारे साथ यह हादसा भी हो चुका है. फिर घर नहीं बसाया? बच्चे वगैरह?
-मेरे हिस्से में दो ही हादसे लिखे थे. न प्रेम सफल होगा न विवाह. तीसरे हादसे की तो लकीरें ही नहीं हैं मेरे हाथ में.
-ओह, मुझे बिलकुल पता नहीं था कि तुम इतने भीषण हादसे से गुज़रे हो. कहां है वो आजकल.
-शुरू-शुरू में तो सरेआम जीजा के घर जा बैठी थी. बाद में पता चला था, पागल-वागल हो गई थी. क्या तुम्हें सचमुच नहीं पता था?
-सच कह रही हूं. सिर्फ़ तुम्हारी शादी की ही ख़बर मिली थी. मुझे अच्छा लगा था कि तुम्हें मेरे बाद बहुत दिन तक अकेला नहीं रहना पड़ा था. लेकिन मुझे यह अहसास तक नहीं था कि तुम्हारे साथ यह हादसा भी हो चुका है. फिर घर नहीं बसाया? बच्चे वगैरह?
-मेरे हिस्से में दो ही हादसे लिखे थे. न प्रेम सफल होगा न विवाह. तीसरे हादसे की तो लकीरें ही नहीं हैं मेरे हाथ में.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.