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बरसात की वह रात
#2
रात गहराती जा रही थी. मेरा मन घबरा रहा था. भैया-भाभी आज सुबह मुंह अंधेरे ही उज्जैन के लिए निकल गए थे. बुआ ने उज्जैन से फ़ोन किया था,‘आज श्रावणी सोमवार है. आज के दिन महाकालेश्वर के दर्शन का बड़ा माहात्म्य है. हो सके तो आ जाओ.’
दर्शन तो एक बहाना था. बुआ जी की नज़र में मेरे लिए कोई लड़का था. उसी सिलसिले में भैया ने अचानक जाने का प्रोग्राम बना लिया था. बोलकर तो यही गए थे कि शाम तक ज़रूर आ जाएंगे. पर अभी तक आए नहीं. आसमान में सावन की कजरारी घटाएं उमड़-घुमड़ रही थीं. रह-रहकर बिजली कड़क रही थी. लग रहा था जमकर बारिश होगी.
मैं बेसब्री से भैया के आने की राह देख रही थी. तभी फ़ोन की घंटी बजी. भैया का ही फ़ोन था. कहने लगे,‘रानू आज श्रावणी सोमवार के कारण महाकाल मंदिर में बड़ी भीड़ थी. कई घंटे लाइन में लगे रहने के बाद नंबर आया. आज बुआ यहीं उनके घर पर रुकने के लिए ज़ोर दे रही हैं. हम सुबह जल्दी आ जाएंगे. आज सुखिया को तुम वहीं रोक लेना. एक रात की ही तो बात है.’
‘ठीक है भैया, जल्दी आना.’ इससे अधिक क्या कहती? मां-बाबूजी के देहांत के बाद भैया ने ही मुझे पाल-पोसकर बड़ा किया. पढ़ाया-लिखाया. मेरे ही कारण उन्हें अपनी शादी भी जल्दी करनी पड़ी थी, ताकि घर के कामकाज में लगे रहने के कारण मेरी पढ़ाई का नुक़सान न हो. भाभी भी मेरी सहेली जैसी ही थी. ज़िंदगी बड़े मज़े से गुज़र रही थी.
इधर कुछ दिनों से भैया को मेरी शादी की चिंता खाए जा रही थी. कहते,‘समय रहते तेरे हाथ पीले कर दूं तो मुझे चैन मिले. नहीं तो लोग कहेंगे कि जवान बहन घर में बैठी है और इन्हें कोई चिंता नहीं. आज मां-बाबूजी होते तो...’ बस यहां आकर भैया भावुक हो जाते.
मैं लाख कहती,‘भैया मैं यह घर छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी.’ पर मेरी सुनता ही कौन? झट कह देते,‘रहने दे, सभी लड़कियां शुरू में ऐसा ही कहती हैं और फिर शादी करके ख़ुशी-ख़ुशी ससुराल के लिए विदा हो जाती हैं.’
मैं नहीं चाहती थी कि भैया पर बोझ बनूं इसलिए पढ़ाई पूरी करते ही मैंने अपने लिए नौकरी की खोज भी शुरू कर दी थी. इंटरव्यू कॉल भी आने लगे थे.
मैं इसी सोच में डूबी हुई थी कि तेज़ी-से बौछारें पड़ने लगीं. तभी घंटी बजी. इतनी बारिश में कौन हो सकता है? सोचती हुई मैं उठी और सेफ़्टी चेन लगाकर दरवाज़े की दरार से झांका. बाहर अटैची लिए एक युवक खड़ा था. उम्र यही कोई २८-२९ साल. मुझे देखकर उसने नमस्कार करते हुए पूछा,‘माला दीदी हैं?’
‘भाभी तो आज भैया के साथ उज्जैन गई हैं,’ मैंने दरवाज़े के पीछे से ही कह दिया.
उसके चेहरे पर निराशा का भाव था. फिर मेरी सवालिया नज़रों को देख उसने सकपकाते हुए कहा,‘मैं राहुल हूं. माला दीदी मेरी मौसेरी बहन हैं. दीदी की शादी में मैं अपनी परीक्षा के कारण नहीं आ पाया था इसलिए मुझे आप नहीं पहचान पा रही हैं.’
वह बाहर बारिश की तेज़ बौछारों से भीगा कांप रहा था. बड़े संकोच से उसने पूछा,‘माला दीदी नहीं हैं तो क्या आप मुझे अंदर आने के लिए भी नहीं कहेंगी?’
मैंने दरवाज़ा खोलकर किनारे खिसकते हुए कहा,‘क्यों नहीं? आइए.’
अंदर आकर भी वह दरवाज़े पर ही ठिठक गया, क्योंकि उसके तर-ब-तर कपड़ों से लगातार पानी से सारा फ़र्श गीला हो गया था. उसने वहीं से कैफ़ियत देते हुए कहा,‘मैं एक मीटिंग में इंदौर आया था. माला दीदी से बहुत सालों से मिलना नहीं हुआ था, सोचा आज मिलता चलूं.’
उसकी घबराहट देख मुझे शरारत सूझी. मैंने पूछा,‘अगर आपको मालूम हो जाता कि भाभी आज यहां नहीं हैं तो क्या आप नहीं आते?’
अब तक वह भी कुछ कुछ सहज होने लगा था. उसने भी शरारत से ही जवाब दिया,‘हां, वैसे तो नहीं आता... पर हां, अगर यह मालूम हो जाता कि दीदी की एक सुंदर-सी, नटखट-सी ननद भी है तो ज़रूर आता.’
सुनकर अच्छा लगा, पर अपने मनोभाव छुपाते हुए मैं मुड़ गई और अंदर भैया की अलमारी से तौलिया और कुर्ता-पायजामा निकालकर उसे थमाते हुए बोली,‘प्लीज़, बाथरूम में जाकर चेंज कर लीजिए, तब तक मैं चाय बनाती हूं.’
मैंने रसोई में जाकर उसके लिए अदरक की चाय बनाई, साथ ही सुखिया को मैंने खाना बनाने के लिए कह दिया.
तब तक वह कपड़े बदलकर आ गया. हम दोनों चुपचाप चाय पीने लगे. चुप्पी तोड़ते हुए इस बार भी उसी ने बात आगे बढ़ाई,‘आपने तो अभी तक अपना नाम भी नहीं बताया है.’
‘रानू’ मैंने कहा. पर मन ही मन मैं सोच रही थी कि मेरी शादी के लिए लड़के तलाशते हुए भाभी को कभी राहुल का ख़्याल क्यों नहीं आया? आने दो कल भाभी को. मैं ख़ुद ही लाज-शरम छोड़कर भाभी को कह दूंगी कि मुझे तो आपका भाई राहुल पसंद आ गया है. राहुल भी शायद इस रिश्ते के लिए ‘ना’ नहीं कहेगा. मन ही मन यह निर्णय लेते ही मुझे ऐसा लगने लगा जैसे मैं राहुल की वाग्दत्ता हो गई हूं. मन के किसी कोने में शहनाइयां-सी बजने लगीं.
तभी सुखिया ने आकर कहा,‘दीदी डाइनिंग टेबल पर खाना लगा दिया है. आ जाइए.’
इसके बाद दिनभर की थकी हुई सुखिया कमरे के बाहर गलियारे में बिस्तर बिछाकर सो गई.
दूर कहीं एक कड़क के साथ बिजली गिरी और अचानक लाइट चली गई. मैंने जल्दी से मोमबत्ती जलाकर टेबल पर लगाई और चुटकी लेते हुए कहा,‘आइए जनाब कैंडल लाइट डिनर पर आपका स्वागत है.’
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: बरसात की वह रात - by neerathemall - 12-04-2019, 01:04 AM



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