15-06-2021, 02:41 PM
लंड चूसते समय अनायास ही मेरा हाथ मेरी पैंटी में घुस कर अत्यंत घने बालों वाली योनि की फाँकों को सहलाने लगा था | करीब 10 मिनट तक चूसने के बाद उस लंड ने मेरे मुँह में एक गर्म सी मलाई छोड़ दी, वैसे तो यह मेरा प्रथम अनुभव था परन्तु वो कहते हैं ना कि 'शादी नहीं हुई तो क्या, बारातें तो बहुत देखी हैं!' मैंने बहुत सी ब्ल्यू फ़िल्में देख रखी थी, और कहानियाँ तो हर रात मेरी हमबिस्तर होती थी, गर्म-गर्म मलाई का स्वाद मुझे कुछ अजीब सा लगा, मितली होने को भी हुई पर उसे मैं यौनामृत समझ कर पी गई |
अगले दिन सुबह जब मैं रवि अंकल से मिली तो उन्होंने मुझसे इस तरह से बात की कि जैसे बीती रात कुछ भी नहीं हुआ था | सुबह ही मेरे मम्मी-पापा मुजफ्फरपुर चले गए क्योंकि आज वहाँ मेरे दादाजी के हर्निया का ऑपरेशन होने वाला था, घर में केवल मैं और निशा भाभी थी, भैया अपने ऑफिस के काम से दिल्ली गए हुए थे | दिन भर मैं रात होने का इंतज़ार करने लगी, मेरे ध्यान में रवि अंकल का मोटा लंड आते ही मेरी मासूम योनि में कम्पन शुरू हो जाती और योनिरस निकलने लगता, दिन में तीन बार मैं अपनी पैंटी बदल चुकी थी |
रात करीब 10 बजे जब मैं अपने कमरे में आई तो मेरी नजर सबसे पहले उसी छेद पर गई, वहाँ पर सामान्यतः दिखने वाली रोशनी नहीं थी, मुझे लगा कि उस पार कोई है छेद के पास! इसका मतलब यह था कि छेद से अंकल मुझे देख रहे थे | परन्तु मैंने अपनी सामान्य गतिविधी जारी रखी, मैंने अपने सोने वाले वस्त्र पहनने थे तो मैं एक एक करके अपने कपड़े उतारने लगी |
मैं जानबूझ कर छेद के सामने चली गई और अंकलजी को अच्छे से अपने नंगे जिस्म को दिखाने लगी, इतने में अंकलजी ने उस छेद से अपने सख्त लंड को बाहर निकाल दिया, जिसे देखकर मेरे शरीर में जैसे एकदम से करंट दौड़ गया हो | मैं छेद के पास जाकर अंकल का लंड पकड़ कर उसे बेतहाशा चूमने लगी फिर उसका सुपारा को खोल कर उसपर अपने होठों की एक गर्मा-गर्म छाप दी, उसे अपनी मुट्ठी में भींच कर आगे-पीछे करने लगी |
फिर मैं अंकल के लंड को अपने जीभ से चाटने लगी | लंड को चाटने से रह-रह कर मेरी चूत के दोनों कोमल ओंठ एकदम फड़कने लगे | मैं अंकल का लंड अपने मुंह में लेकर पागलों की तरह चूसने लगी | दीवार के दूसरी ओर से भी अंकल की सिसकारियाँ स्पष्ट सुनाई दे रही थी |
अब मैं इससे आगे कुछ करना चाह रही थी, मैंने अपने बिस्तर को उस लकड़ी की दीवार से सटा दिया और मैं दीवार के सामने अपनी टांगों को फैला कर इस तरह बैठ गई कि अब अंकल का लंड और मेरी योनि एकदम आमने-सामने थी | मैंने अपनी योनि की दोनों होंठों को चीर के उसे अंकलजी के लंड पर ऊपर-नीचे रगड़ने लगी तो मेरी योनि से योनिरस निकलने लगा |
अब मैंने अपनी योनि को एकदम से चीर के अपनी चूत की छेद को अंकल के भीमकाय मोटे सुपारे पर एकदम से सटा कर उसे रगड़ने लगी, फिर मैंने थोड़ा ताकत लगा के उसे अपनी योनि में समाने का प्रयास किया परन्तु सुपारे का आकार बड़ा होने कारण अन्दर नहीं घुस पाया, मैंने 3-4 बार थोड़ा और ताकत लगा के प्रयास किया लेकिन हर प्रयास असफल ही गया |
अगले दिन सुबह जब मैं रवि अंकल से मिली तो उन्होंने मुझसे इस तरह से बात की कि जैसे बीती रात कुछ भी नहीं हुआ था | सुबह ही मेरे मम्मी-पापा मुजफ्फरपुर चले गए क्योंकि आज वहाँ मेरे दादाजी के हर्निया का ऑपरेशन होने वाला था, घर में केवल मैं और निशा भाभी थी, भैया अपने ऑफिस के काम से दिल्ली गए हुए थे | दिन भर मैं रात होने का इंतज़ार करने लगी, मेरे ध्यान में रवि अंकल का मोटा लंड आते ही मेरी मासूम योनि में कम्पन शुरू हो जाती और योनिरस निकलने लगता, दिन में तीन बार मैं अपनी पैंटी बदल चुकी थी |
रात करीब 10 बजे जब मैं अपने कमरे में आई तो मेरी नजर सबसे पहले उसी छेद पर गई, वहाँ पर सामान्यतः दिखने वाली रोशनी नहीं थी, मुझे लगा कि उस पार कोई है छेद के पास! इसका मतलब यह था कि छेद से अंकल मुझे देख रहे थे | परन्तु मैंने अपनी सामान्य गतिविधी जारी रखी, मैंने अपने सोने वाले वस्त्र पहनने थे तो मैं एक एक करके अपने कपड़े उतारने लगी |
मैं जानबूझ कर छेद के सामने चली गई और अंकलजी को अच्छे से अपने नंगे जिस्म को दिखाने लगी, इतने में अंकलजी ने उस छेद से अपने सख्त लंड को बाहर निकाल दिया, जिसे देखकर मेरे शरीर में जैसे एकदम से करंट दौड़ गया हो | मैं छेद के पास जाकर अंकल का लंड पकड़ कर उसे बेतहाशा चूमने लगी फिर उसका सुपारा को खोल कर उसपर अपने होठों की एक गर्मा-गर्म छाप दी, उसे अपनी मुट्ठी में भींच कर आगे-पीछे करने लगी |
फिर मैं अंकल के लंड को अपने जीभ से चाटने लगी | लंड को चाटने से रह-रह कर मेरी चूत के दोनों कोमल ओंठ एकदम फड़कने लगे | मैं अंकल का लंड अपने मुंह में लेकर पागलों की तरह चूसने लगी | दीवार के दूसरी ओर से भी अंकल की सिसकारियाँ स्पष्ट सुनाई दे रही थी |
अब मैं इससे आगे कुछ करना चाह रही थी, मैंने अपने बिस्तर को उस लकड़ी की दीवार से सटा दिया और मैं दीवार के सामने अपनी टांगों को फैला कर इस तरह बैठ गई कि अब अंकल का लंड और मेरी योनि एकदम आमने-सामने थी | मैंने अपनी योनि की दोनों होंठों को चीर के उसे अंकलजी के लंड पर ऊपर-नीचे रगड़ने लगी तो मेरी योनि से योनिरस निकलने लगा |
अब मैंने अपनी योनि को एकदम से चीर के अपनी चूत की छेद को अंकल के भीमकाय मोटे सुपारे पर एकदम से सटा कर उसे रगड़ने लगी, फिर मैंने थोड़ा ताकत लगा के उसे अपनी योनि में समाने का प्रयास किया परन्तु सुपारे का आकार बड़ा होने कारण अन्दर नहीं घुस पाया, मैंने 3-4 बार थोड़ा और ताकत लगा के प्रयास किया लेकिन हर प्रयास असफल ही गया |
// सुनील पंडित //
मैं तो सिर्फ तेरी दिल की धड़कन महसूस करना चाहता था
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!