14-06-2021, 05:06 PM
(This post was last modified: 14-06-2021, 11:01 PM by babasandy. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
अगले दिन भी ठीक उसी प्रकार से हुआ.. ठाकुर साहब मेरी रुपाली दीदी का इंतजार करते रहे.. मेरी रूपाली दीदी ने उनको अनदेखा कर दिया.. ठाकुर रणवीर सिंह ने बातचीत करने की कोशिश की मेरी बहन से... मेरी दीदी ने बड़ी शालीनता के साथ में जवाब दिया और वहां से निकल गई... ठाकुर साहब मेरी बहन को पाने के लिए बेचैन हुए जा रहे थे.. अगले दिन उन्होंने मेरी दीदी की चूड़ी और कंगन से भरे हुए हाथ को छूने का भी प्रयास किया... दीदी ने किसी तरह खुद को बचाया.. मेरी रूपाली दीदी अच्छी तरह समझ रही थी कि ठाकुर साहब के अंदर वासना की आग जल रही है उनके लिए .. ठाकुर रणवीर सिंह मेरी बहन की लेने के लिए बेचैन हुए जा रहे थे.. अगले 2 दिन तक ऐसा ही होता रहा... मेरी दीदी बेहद घबराई हुई थी उन दिनों.. उन्होंने मुझसे इस बात का जिक्र तो नहीं किया पर मुझे ठीक-ठाक अंदाजा था इस बात का कि ठाकुर साहब की नियत खराब हो चुकी है मेरी बहन के लिए..
एक दिन जब मेरी रूपाली दीदी ने ठाकुर साहब को अनदेखा करने की कोशिश की तो उन्होंने मेरी बहन का हाथ पकड़ लिया अपनी मर्दाना ताकत दिखाने के लिए.. दीदी ने जब अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो सफल नहीं हो पाई.. ठाकुर रणवीर सिंह ठहाका लगाकर हंसने लगे फिर मेरी दीदी को जाने दिया..
इतना सब कुछ होने के बावजूद भी मेरी रूपाली दीदी जीजू को कुछ भी नहीं बताती थी.. मुझे भी नहीं.. जीजू तो हमेशा बिस्तर पर ही पड़े हो गए रहते थे.. वह खुद से कोई भी काम नहीं कर पाते थे.. मैं अपनी 12वीं की परीक्षा की तैयारी में लगा हुआ था.. मेरी रूपाली दीदी की आर्थिक स्थिति बेहद नाजुक होती जा रही थी... उन्होंने नौकरी ढूंढने की भी कोशिश की पर कहीं सफलता नहीं मिली... थक हार कर मेरी रुपाली दीदी निराश होने लगी.. कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा था उनकी जिंदगी में..
अब मेरी रूपाली दीदी बेहद मजबूर और कमजोर महसूस कर रही थी.. मेरे और सोनिया की कॉलेज के अगले महीने की फीस देने के लिए भी उनके पास पैसे नहीं थे.. मेरी रूपाली दीदी इन्हीं सोचो में डूबी हुई परेशान हो रही थी तभी अचानक हमारे घर की बेल बजी...
जब मेरी रूपाली दीदी ने दरवाजा खोला दोसा में ठाकुर रणवीर सिंह खड़े थे.. लंबे चौड़े ..हमारे घर का पूरा दरवाजा ही उनके शरीर से ढक गया था...
ठाकुर साहब: रुपाली जी.. अंदर आ सकता हूं क्या.. आपके पति विनोद से मिलना था..
मेरे रूपाली दीदी: जी ठाकुर साहब.. अंदर आइए.. मेरे पति अभी सो रहे हैं..
ठाकुर साहब: कोई बात नहीं रुपाली जी , मैं इंतजार कर लूंगा..
मेरी दीदी ठाकुर साहब का इरादा पूरी तरह से समझ रही थी .. कुछ ही देर में उन्होंने इंतजाम कर दीया मेरे जीजा जी को ठाकुर साहब से मिलवाने का.. जीजू के कमरे में घुसने के बाद ठाकुर साहब थोड़े हैरान हुए.. हमारे घर की गरीबी देख..
ठाकुर साहब: नमस्ते विनोद जी.. कैसे हैं आप.. मेरा नाम ठाकुर रणवीर सिंह.. मैं इसी मोहल्ले में रहता हूं.. आप का हाल-चाल जानने के लिए आया हूं..
मेरे जीजू: (घबराते हुए मुस्कुराते हुए) नमस्ते ठाकुर साहब...
ठाकुर साहब: आपकी पत्नी रुपाली जी बहुत अच्छी हैं.. आपकी बड़ी सेवा करती हैं.. मुझे देख कर बड़ा अच्छा लगा..
जीजू: जी धन्यवाद.
ठाकुर साहब: अच्छा विनोद जी.. मैं अब आपसे विदा लेता हूं.. कभी भी किसी भी चीज की जरूरत हो तो बेझिझक मुझसे कह सकते है आप..
ठाकुर रणवीर सिंह खड़े हो गए और बाहर की ओर जाने लगे.. मेरी दीदी भी उनके पीछे-पीछे दरवाजे तक आई.. दरवाजा बंद करने के लिए.. उसके पहले ही ठाकुर साहब ने मेरी रूपाली दीदी से पूछ लिया..
ठाकुर साहब: आपकी छोटी बेटी कहां है?
मेरी रुपाली दीदी: अभी वह सो रही है..
ठाकुर साहब: 2 महीने की है ना..
मेरे रूपाली दीदी: हां ठाकुर साहब..
ठाकुर साहब: रुपाली जी बुरा ना मानो तो आपसे एक बात पूछूं? आपके घर का खर्चा कैसे चलता है..
मेरी रूपाली दीदी: जी वह कुछ सेविंग है.. कोई तकलीफ नहीं है..
ठाकुर साहब: अच्छा रुपाली जी.. किसी भी चीज की जरूरत हो तो बताइएगा..
मेरी दीदी: जी ठाकुर साहब धन्यवाद..
जाने से पहले ठाकुर ने मेरी रूपाली दीदी के भरपूर जोबन को अपनी निगाहों से घूर घूर के देख अपनी लार टपका दी.. मेरी दीदी ने अपने बदन को अच्छी तरह से ढक के रखा हुआ था.. उन्होंने कोई मौका नहीं दिया ठाकुर साहब को... यहां तक कि मेरी बहन ने अपने पेट के हिस्से को भी ढक के रखा था... मेरी बहन को देखकर ठाकुर साहब मुस्कुराए.. मेरी दीदी ने दरवाजा बंद कर लिया... ठाकुर साहब चले गय..
अगले दिन फिर से ठाकुर साहब हमारे घर पर उपस्थित थे... मेरे जीजू से मिलने के बहाने.. उनका ज्यादातर समय मेरे रूपाली दीदी से ही बातचीत करने में गुजरा.. ठाकुर साहब तो चले गए थे... पर पिछले कुछ दिनों में हमारे घर की आर्थिक स्थिति बेहद खराब होने लगी थी...
मेरी रूपाली दीदी खुद को बेहद असहाय महसूस करने लगी थी.. उन्होंने जिस से भी मदद मांगी सब इंकार कर देते थे.. ठाकुर साहब प्रतिदिन मेरी बहन से बातचीत करते थे... मेरी रूपाली दीदी के मन में ठाकुर साहब के प्रति जो डर था वह कम होने लगा था.. इसके बावजूद भी मेरी दीदी हमेशा उनसे बच के रहना चाहती थी...
कुछ दिनों के बाद ठाकुर साहब हमारे घर पर आए... और मेरे जीजू से मुलाकात की.. जब वह जाने के लिए दरवाजे पर खड़े थे.. तब मेरी रूपाली दीदी ने उनको रोक लिया..
मेरी रूपाली दीदी: ठाकुर साहब मुझे आपसे कुछ बात करनी है.. अगर आप बुरा ना मानो तो..
ठाकुर तो बहुत खुश ..... हां बोलो रुपाली जी..
मेरी रूपाली दीदी: मुझे कुछ पैसों की जरूरत है.. प्लीज मेरी मदद कीजिए..
ठाकुर साहब: पैसे? देखिए रुपाली जी.. बुरा मत मानिए मगर यहां कोई किसी की मदद पैसों से बेवजह नहीं करता...
मेरी दीदी: प्लीज ठाकुर साहब मैं बहुत मजबूर हूं..
ठाकुर साहब: क्या जरूरत आ गई है आपको..
मेरी रूपाली दीदी: मेरा छोटा भाई और मेरी बड़ी बेटी के कॉलेज की फीस देनी है...
ठाकुर साहब: कितने पैसों की जरूरत है आपको रुपाली जी.
मेरी रूपाली दीदी: 2000 ... प्लीज ठाकुर साहब..
ठाकुर साहब: 2,000 तो कुछ ज्यादा है रुपाली जी.. मैं आपको पैसे तो दे दूंगा पर मेरी एक शर्त है..
मेरी रूपाली दीदी: क्या ठाकुर साहब?
ठाकुर साहब: क्या हम छत के ऊपर चल सकते हैं.. वहां पर कोई भी नहीं होगा.. मैं वही बताऊंगा..
मेरी रूपाली दीदी: प्लीज ठाकुर साहब यहीं पर बता दीजिए ना..
ठाकुर साहब: ठीक है रुपाली जी जैसी आपकी मर्जी... मुझे आपकी चोली खोल के 30 मिनट तक आपका दूध पीना है.. बदले में मैं आपको ₹2000 दे दूंगा...
मेरी रूपाली दीदी: क्या?
मेरी रूपाली दीदी ने बड़ी शालीनता के साथ ठाकुर साहब को दरवाजे से बाहर जाने का रास्ता दिखा दिया... मेरी दीदी ने बड़े संयम के साथ काम लिया था उस वक्त... ठाकुर साहब नाराज तो हुए थे उस वक्त पर वह चले गए... मेरी दीदी दरवाजा बंद करने के बाद रोने लगी..
ठाकुर साहब की बातें सुनकर मेरी रूपाली दीदी शर्मिंदा हो गई थी.. उनका चेहरा लाल हो गया था... आज तक किसी मर्द ने मेरी बहन के साथ इतनी गंदी बात नहीं की थी..
जाते जाते ठाकुर साहब ने कहा था: एक बार फिर से सोच लो रुपाली जी.. दोबारा क्या पता मैं आऊं ही नहीं.. मेरी दीदी ने ठाकुर के मुंह पर ही दरवाजा बंद कर दिया था... ठाकुर साहब समझ चुके थे की घरेलू पतिव्रता नारी को अपने जाल में फंसा ना इतना आसान नहीं है.. वह आगे कुछ बोले बिना वहां से निकल गय... उनके जाने के बाद मेरी रूपाली दीदी अपने ख्यालों में खोई सोच रही थी... कितना घटिया आदमी है .. एक औरत की मजबूरी का फायदा उठाना चाहता है.. कुछ देर में ही मेरी दीदी अपने घर के कामों में ही व्यस्त हो गई...
अगले दिन भी जब मेरी रूपाली दीदी अपनी बेटी को कॉलेज छोड़ने के लिए जा रही थी उस वक्त भी ठाकुर साहब रास्ते में खड़े थे.. मुस्कुराते हुए सिगरेट पीते हुए मेरी बहन को घूर रहे थे... मेरी दीदी ने उनको अनदेखा करने की कोशिश की... अब तो दिनचर्या बन चुकी थी ठाकुर साहब की.. मेरी बहन को दूर से देख कर ही परेशान करना.. वह कभी भी मेरी बहन के पास नहीं आते थे... दूर से ही देखते थे... मेरी रूपाली दीदी के लिए यह सब कुछ बेहद अजीब था... मेरी रूपाली दीदी ठाकुर साहब से नफरत करने लगी थी.. और ठाकुर रणवीर सिंह उनकी वासना तो और भी ज्यादा बढ़ती जा रही थी मेरी बहन के लिए... किसी भी कीमत पर वह मेरी दीदी को अपने बिस्तर पर ले जाना चाहते थे... मेरी बहन की अनदेखी की वजह से उनके अंदर का जानवर जाग जाता था.... वह और भी ज्यादा उत्तेजित हो जाते थे मेरी दीदी को पटक के उनकी लेने के लिए..
दूसरी तरफ मेरी रूपाली दीदी भी हमेशा डरी हुई रहती थी कि ठाकुर साहब ने अगर उनके साथ कोई जोर जबरदस्ती करने की कोशिश की तो वह क्या कर पाएगी... अपनी जान देने के अलावा मेरी रूपाली दीदी के पास और कोई चारा नहीं था.. मेरी दीदी आत्महत्या करने के बारे में सोच रही थी अगर ठाकुर साहब ने उनको जबरदस्ती कुछ किया तो..
किसी तरह दिन गुजरते रहे.. 2 महीने हो चुके थे मेरे जीजा जी के एक्सीडेंट के.. हमारे घर की माली हालत बिल्कुल खत्म हो चुकी थी.. घर में एक पैसा नहीं बचा हुआ था... मेरी बहन परेशान थी... मेरे जीजू बोल तो पाते थे पर कुछ कर नहीं पाते थे.. घर में राशन की भी तकलीफ होने लगी थी.. बनिया उधार देने से मना करने लगा था... मेरी रूपाली दीदी मुस्कुराते हुए सारा दर्द झेल रही थी... सारा का सारा पैसा तो मेरे जीजू की दवा दारू में ही खर्च हो रहा था.. और उनकी स्थिति भी संभल नहीं रही थी ..
एक दिन मेरे रुपाली दीदी बनिया की दुकान से राशन लेकर लौट रही थी तो रास्ते में एक बाइक आके रुक उनके सामने खड़ी हो गई... ठाकुर साहब ने मेरी बहन को रोक लिया था... पहले तो मेरी दीदी ठाकुर साहब को देखकर घबरा गई फिर उन्होंने खुद को संभाला...
ठाकुर साहब: रुपाली जी. आओ बैठ जाओ.. मेरी बाइक पर.. मैं आपको घर तक पहुंचा देता हूं..
मेरी रूपाली दीदी उनको अनदेखा करते हुए आगे की तरफ बढ़ने लगी.
ठाकुर साहब मेरी दीदी का पीछा करने लगे.. साड़ी के अंदर छुपी हुई मेरी बहन की गांड बुरी तरह हिल रही थी... ठाकुर साहब का लोड़ा खड़ा हो गया था मेरी बहन की हिलती गांड देखकर...
ठाकुर साहब ने आगे बढ़ते हुए मेरे रूपाली दीदी का हाथ पकड़ लिया.. उन्होंने इतनी जोर से मेरी दीदी का हाथ थामा कि मेरी बहन के हाथ की एक चूड़ी टूट गई.. मेरी दीदी कसमसआने लगी.. ठाकुर साहब को छोड़ने की गुहार करने लगी... बीच सड़क पर..
ठाकुर रणवीर सिंह: मेरे साथ बैठ जा मेरी बाइक पर.. क्यों इतना तमाशा कर रही हो.. ज्यादा तो नहीं कह रहा तुमसे.. आओ बैठो ना रूपाली..
मेरी रूपाली दीदी: क्यों आप मुझे परेशान कर रहे हैं? मुझे जाने दीजिए ठाकुर साहब.. मेरे बच्चे मेरे घर पर इंतजार कर रहे होंगे..
ठाकुर साहब: क्यों? क्या करोगी घर पर जाकर... अपने बच्चों को अपना दूध पिलाओगी...
मेरी रूपाली दीदी : आप जाइए यहां से वरना वरना मैं शोर मचा के लोगों को बुला लूंगी..
ठाकुर साहब: शोर मचाने से क्या होगा रूपाली..तुमको क्या लगता है कोई तुमको बचाने आएगा.. मैं चाहूं तो अभी तुम्हें यही सड़क पर ही पटक तुम्हारी... खैर छोड़ो जाने दो..
ठाकुर साहब वहां से बिना देरी किए हुए चले गए.. मेरी दीदी ने देखते हुए राहत की सांस ली.. और तेज कदमों से अपने अपार्टमेंट में घुस गई..
मेरी रूपाली दीदी बेहद अपमानित महसूस कर रही थी.. वह सोच रही थी अगर उनका पति अपाहिज नहीं होता तो ठाकुर साहब की हिम्मत नहीं होती उनसे इतनी गंदी भाषा में बात करने के लिए...
मेरी रूपाली दीदी जीजाजी के बेडरूम में गई ... उन्होंने मेरे जीजू का हाथ पकड़ा... मेरे जीजू सोए हुए नहीं थे... वह मेरी बहन की तरफ ही देख रहे थे..
मेरी रूपाली दीदी: विनोद मुझे चुम्म लो ना.. मुझे प्यार करो ना...
जीजू ने मेरी बहन को अपनी बाहों में भर लिया उनके होठों को अपने होठों में दबोच को चूसने लगे... मेरी दीदी उनको चूसने लगी... पर मेरे जीजू निढाल हो कर लेट गय.. उनके अंदर शक्ति नहीं बची थी...
एक दिन जब मेरी रूपाली दीदी ने ठाकुर साहब को अनदेखा करने की कोशिश की तो उन्होंने मेरी बहन का हाथ पकड़ लिया अपनी मर्दाना ताकत दिखाने के लिए.. दीदी ने जब अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो सफल नहीं हो पाई.. ठाकुर रणवीर सिंह ठहाका लगाकर हंसने लगे फिर मेरी दीदी को जाने दिया..
इतना सब कुछ होने के बावजूद भी मेरी रूपाली दीदी जीजू को कुछ भी नहीं बताती थी.. मुझे भी नहीं.. जीजू तो हमेशा बिस्तर पर ही पड़े हो गए रहते थे.. वह खुद से कोई भी काम नहीं कर पाते थे.. मैं अपनी 12वीं की परीक्षा की तैयारी में लगा हुआ था.. मेरी रूपाली दीदी की आर्थिक स्थिति बेहद नाजुक होती जा रही थी... उन्होंने नौकरी ढूंढने की भी कोशिश की पर कहीं सफलता नहीं मिली... थक हार कर मेरी रुपाली दीदी निराश होने लगी.. कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा था उनकी जिंदगी में..
अब मेरी रूपाली दीदी बेहद मजबूर और कमजोर महसूस कर रही थी.. मेरे और सोनिया की कॉलेज के अगले महीने की फीस देने के लिए भी उनके पास पैसे नहीं थे.. मेरी रूपाली दीदी इन्हीं सोचो में डूबी हुई परेशान हो रही थी तभी अचानक हमारे घर की बेल बजी...
जब मेरी रूपाली दीदी ने दरवाजा खोला दोसा में ठाकुर रणवीर सिंह खड़े थे.. लंबे चौड़े ..हमारे घर का पूरा दरवाजा ही उनके शरीर से ढक गया था...
ठाकुर साहब: रुपाली जी.. अंदर आ सकता हूं क्या.. आपके पति विनोद से मिलना था..
मेरे रूपाली दीदी: जी ठाकुर साहब.. अंदर आइए.. मेरे पति अभी सो रहे हैं..
ठाकुर साहब: कोई बात नहीं रुपाली जी , मैं इंतजार कर लूंगा..
मेरी दीदी ठाकुर साहब का इरादा पूरी तरह से समझ रही थी .. कुछ ही देर में उन्होंने इंतजाम कर दीया मेरे जीजा जी को ठाकुर साहब से मिलवाने का.. जीजू के कमरे में घुसने के बाद ठाकुर साहब थोड़े हैरान हुए.. हमारे घर की गरीबी देख..
ठाकुर साहब: नमस्ते विनोद जी.. कैसे हैं आप.. मेरा नाम ठाकुर रणवीर सिंह.. मैं इसी मोहल्ले में रहता हूं.. आप का हाल-चाल जानने के लिए आया हूं..
मेरे जीजू: (घबराते हुए मुस्कुराते हुए) नमस्ते ठाकुर साहब...
ठाकुर साहब: आपकी पत्नी रुपाली जी बहुत अच्छी हैं.. आपकी बड़ी सेवा करती हैं.. मुझे देख कर बड़ा अच्छा लगा..
जीजू: जी धन्यवाद.
ठाकुर साहब: अच्छा विनोद जी.. मैं अब आपसे विदा लेता हूं.. कभी भी किसी भी चीज की जरूरत हो तो बेझिझक मुझसे कह सकते है आप..
ठाकुर रणवीर सिंह खड़े हो गए और बाहर की ओर जाने लगे.. मेरी दीदी भी उनके पीछे-पीछे दरवाजे तक आई.. दरवाजा बंद करने के लिए.. उसके पहले ही ठाकुर साहब ने मेरी रूपाली दीदी से पूछ लिया..
ठाकुर साहब: आपकी छोटी बेटी कहां है?
मेरी रुपाली दीदी: अभी वह सो रही है..
ठाकुर साहब: 2 महीने की है ना..
मेरे रूपाली दीदी: हां ठाकुर साहब..
ठाकुर साहब: रुपाली जी बुरा ना मानो तो आपसे एक बात पूछूं? आपके घर का खर्चा कैसे चलता है..
मेरी रूपाली दीदी: जी वह कुछ सेविंग है.. कोई तकलीफ नहीं है..
ठाकुर साहब: अच्छा रुपाली जी.. किसी भी चीज की जरूरत हो तो बताइएगा..
मेरी दीदी: जी ठाकुर साहब धन्यवाद..
जाने से पहले ठाकुर ने मेरी रूपाली दीदी के भरपूर जोबन को अपनी निगाहों से घूर घूर के देख अपनी लार टपका दी.. मेरी दीदी ने अपने बदन को अच्छी तरह से ढक के रखा हुआ था.. उन्होंने कोई मौका नहीं दिया ठाकुर साहब को... यहां तक कि मेरी बहन ने अपने पेट के हिस्से को भी ढक के रखा था... मेरी बहन को देखकर ठाकुर साहब मुस्कुराए.. मेरी दीदी ने दरवाजा बंद कर लिया... ठाकुर साहब चले गय..
अगले दिन फिर से ठाकुर साहब हमारे घर पर उपस्थित थे... मेरे जीजू से मिलने के बहाने.. उनका ज्यादातर समय मेरे रूपाली दीदी से ही बातचीत करने में गुजरा.. ठाकुर साहब तो चले गए थे... पर पिछले कुछ दिनों में हमारे घर की आर्थिक स्थिति बेहद खराब होने लगी थी...
मेरी रूपाली दीदी खुद को बेहद असहाय महसूस करने लगी थी.. उन्होंने जिस से भी मदद मांगी सब इंकार कर देते थे.. ठाकुर साहब प्रतिदिन मेरी बहन से बातचीत करते थे... मेरी रूपाली दीदी के मन में ठाकुर साहब के प्रति जो डर था वह कम होने लगा था.. इसके बावजूद भी मेरी दीदी हमेशा उनसे बच के रहना चाहती थी...
कुछ दिनों के बाद ठाकुर साहब हमारे घर पर आए... और मेरे जीजू से मुलाकात की.. जब वह जाने के लिए दरवाजे पर खड़े थे.. तब मेरी रूपाली दीदी ने उनको रोक लिया..
मेरी रूपाली दीदी: ठाकुर साहब मुझे आपसे कुछ बात करनी है.. अगर आप बुरा ना मानो तो..
ठाकुर तो बहुत खुश ..... हां बोलो रुपाली जी..
मेरी रूपाली दीदी: मुझे कुछ पैसों की जरूरत है.. प्लीज मेरी मदद कीजिए..
ठाकुर साहब: पैसे? देखिए रुपाली जी.. बुरा मत मानिए मगर यहां कोई किसी की मदद पैसों से बेवजह नहीं करता...
मेरी दीदी: प्लीज ठाकुर साहब मैं बहुत मजबूर हूं..
ठाकुर साहब: क्या जरूरत आ गई है आपको..
मेरी रूपाली दीदी: मेरा छोटा भाई और मेरी बड़ी बेटी के कॉलेज की फीस देनी है...
ठाकुर साहब: कितने पैसों की जरूरत है आपको रुपाली जी.
मेरी रूपाली दीदी: 2000 ... प्लीज ठाकुर साहब..
ठाकुर साहब: 2,000 तो कुछ ज्यादा है रुपाली जी.. मैं आपको पैसे तो दे दूंगा पर मेरी एक शर्त है..
मेरी रूपाली दीदी: क्या ठाकुर साहब?
ठाकुर साहब: क्या हम छत के ऊपर चल सकते हैं.. वहां पर कोई भी नहीं होगा.. मैं वही बताऊंगा..
मेरी रूपाली दीदी: प्लीज ठाकुर साहब यहीं पर बता दीजिए ना..
ठाकुर साहब: ठीक है रुपाली जी जैसी आपकी मर्जी... मुझे आपकी चोली खोल के 30 मिनट तक आपका दूध पीना है.. बदले में मैं आपको ₹2000 दे दूंगा...
मेरी रूपाली दीदी: क्या?
मेरी रूपाली दीदी ने बड़ी शालीनता के साथ ठाकुर साहब को दरवाजे से बाहर जाने का रास्ता दिखा दिया... मेरी दीदी ने बड़े संयम के साथ काम लिया था उस वक्त... ठाकुर साहब नाराज तो हुए थे उस वक्त पर वह चले गए... मेरी दीदी दरवाजा बंद करने के बाद रोने लगी..
ठाकुर साहब की बातें सुनकर मेरी रूपाली दीदी शर्मिंदा हो गई थी.. उनका चेहरा लाल हो गया था... आज तक किसी मर्द ने मेरी बहन के साथ इतनी गंदी बात नहीं की थी..
जाते जाते ठाकुर साहब ने कहा था: एक बार फिर से सोच लो रुपाली जी.. दोबारा क्या पता मैं आऊं ही नहीं.. मेरी दीदी ने ठाकुर के मुंह पर ही दरवाजा बंद कर दिया था... ठाकुर साहब समझ चुके थे की घरेलू पतिव्रता नारी को अपने जाल में फंसा ना इतना आसान नहीं है.. वह आगे कुछ बोले बिना वहां से निकल गय... उनके जाने के बाद मेरी रूपाली दीदी अपने ख्यालों में खोई सोच रही थी... कितना घटिया आदमी है .. एक औरत की मजबूरी का फायदा उठाना चाहता है.. कुछ देर में ही मेरी दीदी अपने घर के कामों में ही व्यस्त हो गई...
अगले दिन भी जब मेरी रूपाली दीदी अपनी बेटी को कॉलेज छोड़ने के लिए जा रही थी उस वक्त भी ठाकुर साहब रास्ते में खड़े थे.. मुस्कुराते हुए सिगरेट पीते हुए मेरी बहन को घूर रहे थे... मेरी दीदी ने उनको अनदेखा करने की कोशिश की... अब तो दिनचर्या बन चुकी थी ठाकुर साहब की.. मेरी बहन को दूर से देख कर ही परेशान करना.. वह कभी भी मेरी बहन के पास नहीं आते थे... दूर से ही देखते थे... मेरी रूपाली दीदी के लिए यह सब कुछ बेहद अजीब था... मेरी रूपाली दीदी ठाकुर साहब से नफरत करने लगी थी.. और ठाकुर रणवीर सिंह उनकी वासना तो और भी ज्यादा बढ़ती जा रही थी मेरी बहन के लिए... किसी भी कीमत पर वह मेरी दीदी को अपने बिस्तर पर ले जाना चाहते थे... मेरी बहन की अनदेखी की वजह से उनके अंदर का जानवर जाग जाता था.... वह और भी ज्यादा उत्तेजित हो जाते थे मेरी दीदी को पटक के उनकी लेने के लिए..
दूसरी तरफ मेरी रूपाली दीदी भी हमेशा डरी हुई रहती थी कि ठाकुर साहब ने अगर उनके साथ कोई जोर जबरदस्ती करने की कोशिश की तो वह क्या कर पाएगी... अपनी जान देने के अलावा मेरी रूपाली दीदी के पास और कोई चारा नहीं था.. मेरी दीदी आत्महत्या करने के बारे में सोच रही थी अगर ठाकुर साहब ने उनको जबरदस्ती कुछ किया तो..
किसी तरह दिन गुजरते रहे.. 2 महीने हो चुके थे मेरे जीजा जी के एक्सीडेंट के.. हमारे घर की माली हालत बिल्कुल खत्म हो चुकी थी.. घर में एक पैसा नहीं बचा हुआ था... मेरी बहन परेशान थी... मेरे जीजू बोल तो पाते थे पर कुछ कर नहीं पाते थे.. घर में राशन की भी तकलीफ होने लगी थी.. बनिया उधार देने से मना करने लगा था... मेरी रूपाली दीदी मुस्कुराते हुए सारा दर्द झेल रही थी... सारा का सारा पैसा तो मेरे जीजू की दवा दारू में ही खर्च हो रहा था.. और उनकी स्थिति भी संभल नहीं रही थी ..
एक दिन मेरे रुपाली दीदी बनिया की दुकान से राशन लेकर लौट रही थी तो रास्ते में एक बाइक आके रुक उनके सामने खड़ी हो गई... ठाकुर साहब ने मेरी बहन को रोक लिया था... पहले तो मेरी दीदी ठाकुर साहब को देखकर घबरा गई फिर उन्होंने खुद को संभाला...
ठाकुर साहब: रुपाली जी. आओ बैठ जाओ.. मेरी बाइक पर.. मैं आपको घर तक पहुंचा देता हूं..
मेरी रूपाली दीदी उनको अनदेखा करते हुए आगे की तरफ बढ़ने लगी.
ठाकुर साहब मेरी दीदी का पीछा करने लगे.. साड़ी के अंदर छुपी हुई मेरी बहन की गांड बुरी तरह हिल रही थी... ठाकुर साहब का लोड़ा खड़ा हो गया था मेरी बहन की हिलती गांड देखकर...
ठाकुर साहब ने आगे बढ़ते हुए मेरे रूपाली दीदी का हाथ पकड़ लिया.. उन्होंने इतनी जोर से मेरी दीदी का हाथ थामा कि मेरी बहन के हाथ की एक चूड़ी टूट गई.. मेरी दीदी कसमसआने लगी.. ठाकुर साहब को छोड़ने की गुहार करने लगी... बीच सड़क पर..
ठाकुर रणवीर सिंह: मेरे साथ बैठ जा मेरी बाइक पर.. क्यों इतना तमाशा कर रही हो.. ज्यादा तो नहीं कह रहा तुमसे.. आओ बैठो ना रूपाली..
मेरी रूपाली दीदी: क्यों आप मुझे परेशान कर रहे हैं? मुझे जाने दीजिए ठाकुर साहब.. मेरे बच्चे मेरे घर पर इंतजार कर रहे होंगे..
ठाकुर साहब: क्यों? क्या करोगी घर पर जाकर... अपने बच्चों को अपना दूध पिलाओगी...
मेरी रूपाली दीदी : आप जाइए यहां से वरना वरना मैं शोर मचा के लोगों को बुला लूंगी..
ठाकुर साहब: शोर मचाने से क्या होगा रूपाली..तुमको क्या लगता है कोई तुमको बचाने आएगा.. मैं चाहूं तो अभी तुम्हें यही सड़क पर ही पटक तुम्हारी... खैर छोड़ो जाने दो..
ठाकुर साहब वहां से बिना देरी किए हुए चले गए.. मेरी दीदी ने देखते हुए राहत की सांस ली.. और तेज कदमों से अपने अपार्टमेंट में घुस गई..
मेरी रूपाली दीदी बेहद अपमानित महसूस कर रही थी.. वह सोच रही थी अगर उनका पति अपाहिज नहीं होता तो ठाकुर साहब की हिम्मत नहीं होती उनसे इतनी गंदी भाषा में बात करने के लिए...
मेरी रूपाली दीदी जीजाजी के बेडरूम में गई ... उन्होंने मेरे जीजू का हाथ पकड़ा... मेरे जीजू सोए हुए नहीं थे... वह मेरी बहन की तरफ ही देख रहे थे..
मेरी रूपाली दीदी: विनोद मुझे चुम्म लो ना.. मुझे प्यार करो ना...
जीजू ने मेरी बहन को अपनी बाहों में भर लिया उनके होठों को अपने होठों में दबोच को चूसने लगे... मेरी दीदी उनको चूसने लगी... पर मेरे जीजू निढाल हो कर लेट गय.. उनके अंदर शक्ति नहीं बची थी...