11-04-2019, 05:29 PM
विनया
विनया पकौड़े लेकर आ गई एकदम गरमा-गरम, बस मैंने सीधे प्लेट से एक पकौड़ा उठाया, अपने गुलाबी रसीले होंठों के बीच पकड़ा, और जीजू को आफर कर दिया-
“क्यों जीजू लेना है…” और कस के आँख मार दी।
बस जीजू के लालची होंठ सीधे मेरे होंठों पे, लेकिन मैं काम शरारती थोड़े थी।
पकौड़ा मेरे मुँह ने गप्प कर लिया।
लेकिन जीजू कौन से कम थे, उनकी जीभ मेरे मुँह के अंदर, और अब जैसे वो मेरे गुलाबी होंठ चूस रहे थे, मैं उनकी जीभ चूस रही थी।
जमकर जीभ लड़ाई के बाद, मेरे मुँह से, मेरे मुखरस से सने, थूक से लिथड़े, आधा खाया, कुचला पकौड़ा सीधे जीजू के मुँह में।
वैसे भी जीजू के दोनों हाथ अब बिजी हो गए थे, उनकी ‘फेवरिट’ चीजों में।
एक हाथ टाप उठाकर, सीधे मेरे चूजों पे (ब्रा का कवच तो भाभी ने चलने के पहले ही उतरवा लिया था।)
और दूसरा हाथ स्कर्ट के अंदर पतली सी लेसी पैंटी के ऊपर से मेरी चुनुमिया का रस ले रहा था।
विनया- “अब लग रहा है पक्का जीजू-साली का रिश्ता…” खिलखिलाती विनया बोली।
मैं- “अरे तुझ साल्ली की क्यों सुलग रही है, तू भी आज मैदान में…”
जवाब देने में मैं क्यों चूकती।
विनया- “
अरे साल्ली, इस साल्ली ने तो जीजू के आने के पहले ही सुलगने वाली चीज एकदम साफ सपाट कर दी है…”
विनया बोली और मैदान में आ गई, सीधे बोतल से ग्लास में ढालने के काम में लग गई वो। एक ही ग्लास से हम तीनों।
और पकौड़े मेरे मुँह से जीजू के मुँह में और कभी-कभी उनके मुँह से विनया के मुँह में।
उस समय मुझे क्या मालुम था की पकौड़े, भांग के पकौड़े हैं।
जीजू के दोनों हाथ अब एकदम खुल के, ऊपर मेरे जोबन और नीचे मेरी गुलाबी सहेली का रस ले रहे थे।
वैसे भी दो-दो सालियों के होते जीजू को हाथ का इश्तेमाल करना पड़े तो… कुछ देर में बोतल भी खाली हो गई और पकौड़े की प्लेट भी।
पहली बार मैंने पी थी और फिर भांग के पकौड़े भी साथ में, साथ में सबसे बढ़ के जिस तरह से जीजू के हाथ मेरी चूची और चूत रगड़ मसल रहे थे, मैं नशे में मतवाली हो रही थी।
खड़ी होकर अपने गदराते जोबना को उभार के, जीजू को देखते दिखाते मैंने एक मस्त अंगड़ाई ली और सामने रखी गुलाल से भरी प्लेट को देखते पूछा-
“क्यों जीजू हो जाए होली?”
जीजू भी उसी अंदाज में बोले-
“एकदम, लेकिन मुझे होली साली से खेलनी है उसके कपड़ों से नहीं…”
और जब तक मैं सम्हलती, समझती, उन्होंने मेरा टाप उतारकर फेंक दिया, और गुलाल की प्लेट लेकर दूसरे कमरे में।
मैं और विनया उनके पीछे-पीछे दूसरे कमरे में।
जीजू लम्बे भी बहुत थे और तगड़े भी बहुत। हम लोगों का गुलाल और रंग का सारा स्टॉक उन्होंने कब्जे में कर लिया।
यहां तक की मैं घर से जो पेंट की ट्यूब्स लाई थी और भाभी ने बरतनों की कालिख और काजल मिला के जो पक्का स्याही वाला रंग बनाया था, एक छोटी सी बोतल में वो भी लाई थी मैं, वो भी उन्होंने जब्त कर लिया था।
एक अबीर-गुलाल का पैकेट सीधे उन्होंने मेरे चेहरे और टापमुक्त उभारों पर खोल के, चेहरा और मेरे गदराए जोबन लाल गुलाबी हो गए। दुष्ट भी बहुत थे वो और मौका परस्त भी।
जरा सा अबीर मेरी कजरारी आँखों में भी गिर गया। मैं आँख से अबीर निकालने लगी और बदमाश जीजू ने ये भी नहीं की इन्तजार करें, आँख से अबीर निकलने का… बस मौका पाया और पीछे से दबोच लिया, ढेर सारा सूखा रंग अपनी मुट्ठी में भर के, मेरे दोनों उभारों को।
रंग तो बहाना था।
पूरी मस्ती से जिस तरह से वो मेरी चूचियां रगड़ मसल रहे थे और साथ में उनका मोटा बित्ते भर का खूंटा, शार्ट को फाड़ता सीधे मेरे कुंवारे किशोर पिछवाड़े के बंद दरवाजे के अंदर घुसने की कोशिश कर रहा था।
सच तो ये है की भले मैं छोड़ो-छोड़ो कर रही थी, जीजू को भला बुरा कह रही थी, लेकिन मैं अच्छी तरह पनिया गई थी।
जिस तरह जीजू हथेली से मेरी चूची रगड़ रहे थे और साथ में अंगूठे और तरजनी के बीच कस कस के मेरी कंचे की तरह गोल-गोल कड़े खड़े निपल पिंच कर रहे थे थे, मेरी सिसकियां निकल जा रही थी।
जीजू के दोनों हाथ मेरा जोबन लूटने में लगे थे और मौके का फायदा उठाया विनया ने। जीजू ने मुझे टापलेश किया था, तो विनया ने जीजू की टी-शर्ट झटके में उतार के उन्हें भी टापलेश कर दिया।
लेकिन बिचारी विनया, उसने तो सिर्फ स्ट्रिंग चोली पहन रखी थी और जीजू ने दाएं हाथ से मेरे उभार को मसलना रगड़ना जारी रखा, और बाएं हाथ से विनया की चोली खोल दी, सरक कर वो फर्श पर गिर गई।
अब तो जीजू के दोनों हाथों में लड्डू। एक हाथ से मेरी चूची मसल रहे थे और दूसरे से विनया की। और बात यही तक नहीं रुकी, बहुत ताकत थी हाथों में। एक साथ बाएं हाथ से उन्होंने मेरी और विनया की पतली-पतली कलाइयां दबोच लीं थी और छुड़ाना तो दूर हम दोनों टस से मस नहीं हो सकते थे। और दाएं हाथ से दोनों सालियों की रंगाई पुताई।
विनया पकौड़े लेकर आ गई एकदम गरमा-गरम, बस मैंने सीधे प्लेट से एक पकौड़ा उठाया, अपने गुलाबी रसीले होंठों के बीच पकड़ा, और जीजू को आफर कर दिया-
“क्यों जीजू लेना है…” और कस के आँख मार दी।
बस जीजू के लालची होंठ सीधे मेरे होंठों पे, लेकिन मैं काम शरारती थोड़े थी।
पकौड़ा मेरे मुँह ने गप्प कर लिया।
लेकिन जीजू कौन से कम थे, उनकी जीभ मेरे मुँह के अंदर, और अब जैसे वो मेरे गुलाबी होंठ चूस रहे थे, मैं उनकी जीभ चूस रही थी।
जमकर जीभ लड़ाई के बाद, मेरे मुँह से, मेरे मुखरस से सने, थूक से लिथड़े, आधा खाया, कुचला पकौड़ा सीधे जीजू के मुँह में।
वैसे भी जीजू के दोनों हाथ अब बिजी हो गए थे, उनकी ‘फेवरिट’ चीजों में।
एक हाथ टाप उठाकर, सीधे मेरे चूजों पे (ब्रा का कवच तो भाभी ने चलने के पहले ही उतरवा लिया था।)
और दूसरा हाथ स्कर्ट के अंदर पतली सी लेसी पैंटी के ऊपर से मेरी चुनुमिया का रस ले रहा था।
विनया- “अब लग रहा है पक्का जीजू-साली का रिश्ता…” खिलखिलाती विनया बोली।
मैं- “अरे तुझ साल्ली की क्यों सुलग रही है, तू भी आज मैदान में…”
जवाब देने में मैं क्यों चूकती।
विनया- “
अरे साल्ली, इस साल्ली ने तो जीजू के आने के पहले ही सुलगने वाली चीज एकदम साफ सपाट कर दी है…”
विनया बोली और मैदान में आ गई, सीधे बोतल से ग्लास में ढालने के काम में लग गई वो। एक ही ग्लास से हम तीनों।
और पकौड़े मेरे मुँह से जीजू के मुँह में और कभी-कभी उनके मुँह से विनया के मुँह में।
उस समय मुझे क्या मालुम था की पकौड़े, भांग के पकौड़े हैं।
जीजू के दोनों हाथ अब एकदम खुल के, ऊपर मेरे जोबन और नीचे मेरी गुलाबी सहेली का रस ले रहे थे।
वैसे भी दो-दो सालियों के होते जीजू को हाथ का इश्तेमाल करना पड़े तो… कुछ देर में बोतल भी खाली हो गई और पकौड़े की प्लेट भी।
पहली बार मैंने पी थी और फिर भांग के पकौड़े भी साथ में, साथ में सबसे बढ़ के जिस तरह से जीजू के हाथ मेरी चूची और चूत रगड़ मसल रहे थे, मैं नशे में मतवाली हो रही थी।
खड़ी होकर अपने गदराते जोबना को उभार के, जीजू को देखते दिखाते मैंने एक मस्त अंगड़ाई ली और सामने रखी गुलाल से भरी प्लेट को देखते पूछा-
“क्यों जीजू हो जाए होली?”
जीजू भी उसी अंदाज में बोले-
“एकदम, लेकिन मुझे होली साली से खेलनी है उसके कपड़ों से नहीं…”
और जब तक मैं सम्हलती, समझती, उन्होंने मेरा टाप उतारकर फेंक दिया, और गुलाल की प्लेट लेकर दूसरे कमरे में।
मैं और विनया उनके पीछे-पीछे दूसरे कमरे में।
जीजू लम्बे भी बहुत थे और तगड़े भी बहुत। हम लोगों का गुलाल और रंग का सारा स्टॉक उन्होंने कब्जे में कर लिया।
यहां तक की मैं घर से जो पेंट की ट्यूब्स लाई थी और भाभी ने बरतनों की कालिख और काजल मिला के जो पक्का स्याही वाला रंग बनाया था, एक छोटी सी बोतल में वो भी लाई थी मैं, वो भी उन्होंने जब्त कर लिया था।
एक अबीर-गुलाल का पैकेट सीधे उन्होंने मेरे चेहरे और टापमुक्त उभारों पर खोल के, चेहरा और मेरे गदराए जोबन लाल गुलाबी हो गए। दुष्ट भी बहुत थे वो और मौका परस्त भी।
जरा सा अबीर मेरी कजरारी आँखों में भी गिर गया। मैं आँख से अबीर निकालने लगी और बदमाश जीजू ने ये भी नहीं की इन्तजार करें, आँख से अबीर निकलने का… बस मौका पाया और पीछे से दबोच लिया, ढेर सारा सूखा रंग अपनी मुट्ठी में भर के, मेरे दोनों उभारों को।
रंग तो बहाना था।
पूरी मस्ती से जिस तरह से वो मेरी चूचियां रगड़ मसल रहे थे और साथ में उनका मोटा बित्ते भर का खूंटा, शार्ट को फाड़ता सीधे मेरे कुंवारे किशोर पिछवाड़े के बंद दरवाजे के अंदर घुसने की कोशिश कर रहा था।
सच तो ये है की भले मैं छोड़ो-छोड़ो कर रही थी, जीजू को भला बुरा कह रही थी, लेकिन मैं अच्छी तरह पनिया गई थी।
जिस तरह जीजू हथेली से मेरी चूची रगड़ रहे थे और साथ में अंगूठे और तरजनी के बीच कस कस के मेरी कंचे की तरह गोल-गोल कड़े खड़े निपल पिंच कर रहे थे थे, मेरी सिसकियां निकल जा रही थी।
जीजू के दोनों हाथ मेरा जोबन लूटने में लगे थे और मौके का फायदा उठाया विनया ने। जीजू ने मुझे टापलेश किया था, तो विनया ने जीजू की टी-शर्ट झटके में उतार के उन्हें भी टापलेश कर दिया।
लेकिन बिचारी विनया, उसने तो सिर्फ स्ट्रिंग चोली पहन रखी थी और जीजू ने दाएं हाथ से मेरे उभार को मसलना रगड़ना जारी रखा, और बाएं हाथ से विनया की चोली खोल दी, सरक कर वो फर्श पर गिर गई।
अब तो जीजू के दोनों हाथों में लड्डू। एक हाथ से मेरी चूची मसल रहे थे और दूसरे से विनया की। और बात यही तक नहीं रुकी, बहुत ताकत थी हाथों में। एक साथ बाएं हाथ से उन्होंने मेरी और विनया की पतली-पतली कलाइयां दबोच लीं थी और छुड़ाना तो दूर हम दोनों टस से मस नहीं हो सकते थे। और दाएं हाथ से दोनों सालियों की रंगाई पुताई।