11-06-2021, 02:17 PM
तीसरा लेवल
………………
अब मेरी साँस काफी हद तक मेरे काबू में आ चुकी थी और हमारे गुरुजी को समझ में आ चूका था की उनका रास्ता काफी लम्बा और मुश्किल है। उन्हें आज घनघोर तपस्या करनी होगी।
उसने कहा- अब तुम थोड़े प्यासे से लगते हो, तुम्हारा तीसरा लेवल मेरे चेहरे से शुरू होता है |
तुम्हे मेरे चेहरे पे अपनी पहली दो उँगलियाँ को इस तरह फिराना है जैसे लगे की तुम किसी वीणा को हलके हलके सुर में बजा रहे हो ,तुम्हारी उँगलियाँ मेरे माथे से शुरू होकर मेरे कपोलो से होती हुयी सिर्फ मेरी गर्दन तक आनी चाहिए ! एक बार गर्दन तक पहुचने के बाद तुम मुझे गर्दन पे , मेरी आँखों की पलकों पे , मेरे कपोलो (गालो) और कान को चुमते हुए माथे तक आओगे ..इस तरह तुम एक बार उँगलियाँ से मुझे हलके से सहलाओगे और दूसरी बार अपने होठों से चुमते हुए वापस उसी जगह जाओगे! इसे बार बार करोगे, जब तक मैं मुस्कुराने न लगूँ और याद रहे इस क्रिया के दौरान मेरे होठों को चूमने की गलती नहीं करना, उन्हें तुम सिर्फ छु भर सकते हो ....
मेरी क़िस्मत, यह कैसा आनंद है जिसमे तडप ही तड़प थी आज से पहले जब जी चाहा जहां जी चाहा औरत को चूम लेता था पर उस अप्सरा की यह अजीबोगरीब शर्त मेरे धैर्य का बहुत बड़ा इम्तिहान ले रही थी .....
मैंने धीरे धीरे उसके माथे पे अपनी उँगलियाँ नचानी शुरू कर दी ..अपनी पहली ऊँगली से उसके माथे पे एक लकीर सी खींचता हुआ उसके गालो पे आकर रुक गया पहले उन्हें चूमा और फिर उन्हें धीरे धीरे अपने हाथो से सहलाने लगा ,फिर उसके कान को मैंने अपने दांतों की बीच बंद करके उन्हें धीरे अपनी जिव्हा से सहलाने लगा .. मेरी इस हरकत से उसका शरीर एक मीठी प्यास से तडपने लगा और वो अपने पैरो को झटका दे कर उपर नीचे करने लगी .....
उसकी यह तडप देख मुझे अब उसकी कमजोरी समझ आने लगी।
मैंने अपनी जिव्हा उसके कान के अन्दर डाल अपनी गर्म गर्म सांस उसके अन्दर छोड़ने लगा, फिर उसकी पलकों को अपने होठों से चूम उन्हें भी अपनी सांस की गर्मी से जलाने लगा उसकी तड़प बहुत बढ़ चुकी थी .. फिर अपने अंगूठे को उसके माथे पे टिका उसकी गर्दन पे अपने होंठ रख कर उन्हें चुसने लगा ..मेरी इन हरकतों से वो पूरी तरह बिन पानी की मछली की तरह बिस्तर पे तडपने लगी और जोर जोर से उसकी सांसो के साथ उसके मुंह से मीठी मीठी सीत्कार की आवाज कमरे में गूंजने लगी............
जब उससे मेरे होंठ अपनी गर्दन पे नाकाबिले बर्दास्त हो गए तो उसने मुझे अपनी तरफ खिंच लिया और अपनी जिव्हा बाहर निकाल कर मेरे होठों पे फेरने लगी। उस वक़्त वो मंद मंद मुस्कुरा रही थी! उसकी यह हालत देख अब मुझे उसे तड़पाने में मजा आने लगा और मैं अगले लेवल के शुरू होने का इंतजार करने लगा... लगता था अब खेल का पासा पलट चूका था और उसके पास अपनी प्यास को बुझाने के सिवाय कोई और चारा ना था।
मैं बचैनी की आग में तडप तडप कर सोने की तरह निखर चूका था..उसका सौंदर्य मेरे ऊपर अब वो जादू नहीं कर पा रहा था....
पर लगता था कि वो भी पक्की खिलाडी थी उसने मैदान इतनी आसानी से नहीं छोड़ना था…..उसके तरकस में अभी वो तीर बाकि थे जिनका जवाब तो शायद ब्रह्मा के पास भी नहीं था…..
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अब मेरी साँस काफी हद तक मेरे काबू में आ चुकी थी और हमारे गुरुजी को समझ में आ चूका था की उनका रास्ता काफी लम्बा और मुश्किल है। उन्हें आज घनघोर तपस्या करनी होगी।
उसने कहा- अब तुम थोड़े प्यासे से लगते हो, तुम्हारा तीसरा लेवल मेरे चेहरे से शुरू होता है |
तुम्हे मेरे चेहरे पे अपनी पहली दो उँगलियाँ को इस तरह फिराना है जैसे लगे की तुम किसी वीणा को हलके हलके सुर में बजा रहे हो ,तुम्हारी उँगलियाँ मेरे माथे से शुरू होकर मेरे कपोलो से होती हुयी सिर्फ मेरी गर्दन तक आनी चाहिए ! एक बार गर्दन तक पहुचने के बाद तुम मुझे गर्दन पे , मेरी आँखों की पलकों पे , मेरे कपोलो (गालो) और कान को चुमते हुए माथे तक आओगे ..इस तरह तुम एक बार उँगलियाँ से मुझे हलके से सहलाओगे और दूसरी बार अपने होठों से चुमते हुए वापस उसी जगह जाओगे! इसे बार बार करोगे, जब तक मैं मुस्कुराने न लगूँ और याद रहे इस क्रिया के दौरान मेरे होठों को चूमने की गलती नहीं करना, उन्हें तुम सिर्फ छु भर सकते हो ....
मेरी क़िस्मत, यह कैसा आनंद है जिसमे तडप ही तड़प थी आज से पहले जब जी चाहा जहां जी चाहा औरत को चूम लेता था पर उस अप्सरा की यह अजीबोगरीब शर्त मेरे धैर्य का बहुत बड़ा इम्तिहान ले रही थी .....
मैंने धीरे धीरे उसके माथे पे अपनी उँगलियाँ नचानी शुरू कर दी ..अपनी पहली ऊँगली से उसके माथे पे एक लकीर सी खींचता हुआ उसके गालो पे आकर रुक गया पहले उन्हें चूमा और फिर उन्हें धीरे धीरे अपने हाथो से सहलाने लगा ,फिर उसके कान को मैंने अपने दांतों की बीच बंद करके उन्हें धीरे अपनी जिव्हा से सहलाने लगा .. मेरी इस हरकत से उसका शरीर एक मीठी प्यास से तडपने लगा और वो अपने पैरो को झटका दे कर उपर नीचे करने लगी .....
उसकी यह तडप देख मुझे अब उसकी कमजोरी समझ आने लगी।
मैंने अपनी जिव्हा उसके कान के अन्दर डाल अपनी गर्म गर्म सांस उसके अन्दर छोड़ने लगा, फिर उसकी पलकों को अपने होठों से चूम उन्हें भी अपनी सांस की गर्मी से जलाने लगा उसकी तड़प बहुत बढ़ चुकी थी .. फिर अपने अंगूठे को उसके माथे पे टिका उसकी गर्दन पे अपने होंठ रख कर उन्हें चुसने लगा ..मेरी इन हरकतों से वो पूरी तरह बिन पानी की मछली की तरह बिस्तर पे तडपने लगी और जोर जोर से उसकी सांसो के साथ उसके मुंह से मीठी मीठी सीत्कार की आवाज कमरे में गूंजने लगी............
जब उससे मेरे होंठ अपनी गर्दन पे नाकाबिले बर्दास्त हो गए तो उसने मुझे अपनी तरफ खिंच लिया और अपनी जिव्हा बाहर निकाल कर मेरे होठों पे फेरने लगी। उस वक़्त वो मंद मंद मुस्कुरा रही थी! उसकी यह हालत देख अब मुझे उसे तड़पाने में मजा आने लगा और मैं अगले लेवल के शुरू होने का इंतजार करने लगा... लगता था अब खेल का पासा पलट चूका था और उसके पास अपनी प्यास को बुझाने के सिवाय कोई और चारा ना था।
मैं बचैनी की आग में तडप तडप कर सोने की तरह निखर चूका था..उसका सौंदर्य मेरे ऊपर अब वो जादू नहीं कर पा रहा था....
पर लगता था कि वो भी पक्की खिलाडी थी उसने मैदान इतनी आसानी से नहीं छोड़ना था…..उसके तरकस में अभी वो तीर बाकि थे जिनका जवाब तो शायद ब्रह्मा के पास भी नहीं था…..