06-06-2021, 06:07 PM
(This post was last modified: 06-06-2021, 06:07 PM by usaiha2. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
UPDATE 04
तुमने नींद में मुझे छुआ और इसे पकड़ कर इतना खींचा की इसका जूस निकल गया"
"झूठ मत बोलो, मैंने सिर्फ तुम्हारे मुंह में चोकलेट डाली थी और कुछ नहीं किया" कोमल बोली,
"सच बताओ, तुमने मुझे पप्पी नहीं ली ? " मैंने अँधेरे में तीर मारा जो निशाने पर लगा, कोमल को काटो तो खून नहीं, " बस एक बार गाल पर" आँखें झुकाकर और चेहरा घुमा कर कोमल ने जवाब दिया, मैंने कोमल के गोरे गालों पर छोटी सी पप्पी जड़ थी, वो शर्म से बोल नहीं पा रही थी, मैंने उसे खींचा और सीने से लगा कर होठों को चूस लिया, उसने भी अब जवाब दिया और मेरे सर को पकड़ जोरों से मेरे होठ अपने मुहं में लेकर चूसने लगी, हम तन्मय थे, शरीर मैं चीटियाँ चल रही थी, जलन सी होने लगी, मैंने स्तनों को दबाया और कुर्ती के बचे हुए बटन खोल कुर्ती नीचे सरका दिया, वो पूरे समय आँखें झुकाए खड़ी रही मुझे थामे हुए, और मेरे लिंग को सहलाते हुए जो कोमल के सहलाने से फिर से गर्म हो कठोर होने लगा था,..................
.......बाँहों में मस्त जवान कली, गुदाज़ उरोजो का खुला निमंत्रण, हसीं चेहरा, गुलाबी होंठ जो वासना से थरथरा रहे थे, एक खूबसूरत उफनता हुआ स्त्री शरीर जो किसी को भी दीवाना बना दे, हम एक दुसरे के बाँहों में थे, कोमल के गोरे और चिकने स्तन उठान पर अपनी पूरी शान से जैसे किसी जवान होती लड़की........बाँहों में मस्त जवान कली, गुदाज़ उरोजो का खुला निमंत्रण, हसीं चेहरा, गुलाबी होंठ जो वासना से थरथरा रहे थे,
एक खूबसूरत उफनता हुआ स्त्री शरीर जो किसी को भी दीवाना बना दे, हम एक दुसरे के बाँहों में थे, कोमल के गोरे और चिकने स्तन उठान पर अपनी पूरी शान से जैसे किसी जवान होती लड़की के होते हैं, गुलाबी एरोला, मुहं में लेकर चूसने लगा, वो हल्की सिस्कारी भर रही थी, मेरे लिंग को दोनों हाथों से पकड़ सहला रही थी और अपनी योनी की और खींच रही थी, पूरा माहौल वासना की आग से भरा था, मुझे कुछ
होश था लेकिन कोमल पूरी तरह मदहोश, मैंने उसे चूम कर दूर हटाया, वो बहुत गर्म थी और मेरे हाथों को बुरी तरह खरोंच लिया दूर होते हुए, अपनी नाराजगी जाहिर की इस तरह, पर माँ-पिताजी आने वाले थे, मन में डर था.
उसने याचना भरी आँखों से देखा जैसे कह रही हो क्यों छोड़ दिया, गालों को चूमते हुए कोमल के कानों में कहा " माँ-पिताजी आने वाले हैं, दोपहर में मिलेंगे" .... उसकी बेचैनी साफ़ दिख रही थी, मैंने सोचा भी नहीं था की एक नादान सी दिखने वाली लड़की का काम वासना से ये हाल होगा, मैं अपने कमरे में आया और आँखें बंद कर अपने भगवान को धन्यवाद् दिया जिसने ऐसा सुनेहरा मौका मुझे दिया था एक जवान मस्त लडकी को सम्भोग के लिए मेरे पास भेजा, कोमल का मस्ती भरा शरीर जैसे आँखों और दिमाग से हटने का नाम नहीं ले रहा था.... भगवान ने बहुत धैर्य और आराम से उसे बनाया था, रह रह कर उसकी बाहें , उसकी नशीली आँखें, उसके उरोजों को दबाने का आनंद, अत्यंत मस्त नितम्ब और हल्की मुस्कराहट , अभी तो उसे पूरा देखा भी नहीं था, मैं कल्पना कर रहा था उसकी जवानी को मादरजात नंगी देखने का...,
अपने लिंग से काफी देर खेलता रहा, किसी तरह उसे समझाया की शांत रह, तुझे अभी वो चीज़ दूंगा की तू भी याद रक्खेगा ज़िंदगी भर...... और वही हुआ पाठकों, आज भी उस दिन को याद करता हूँ तो शरीर में एक तनाव भर आता है, कुछ ही देर में माँ-पिताजी आ गए.. किसी तरह मन पर लगाम लगते हुए मैं नहा कर तैयार हुआ और जब नाश्ते की टेबल पर आया तो देख कर दंग रह गया, कोमल पहले से बैठी थी, खूबसूरत मूर्ती सी, उसने सलवार कुर्ती की बजाय स्कर्ट और कमीज़ पहनी हुई थी, इन कपड़ो में उसकी जवानी फूट फूट कर बाहर आ रही थी, पूर्ण विकसित स्तन गज़ब समां बना रहे थे, स्कर्ट से नीचे घुटने और पैरों की आकर्षक पिंडलियाँ दिख रहीं थी,
उसने मेरी और चिढ़ाने वाली नज़रों से देखा.. एक व्यंग भरी मुस्कान के साथ जैसे कह रही हो .... अब बताओ क्या करोगे.... अब तो तुम्हे मेरे पास आना ही होगा... कमसिन लड़कियां कामाग्नी में जिस प्रकार पागल हो जाती हैं वैसा किसी उम्र में नहीं होतीं यह मैंने बाद में जाना, वो अपने आप को पूर्ण समर्पित करती हैं और आपसे भी वही चाहती हैं ...उनके लिए वासना एक तूफ़ान की तरह होती है, जबरदस्त आवेश, कभी कभी इस आवेश से डर लगने लगे, ऐसा उन्माद की आप सोचें वासना में पागल इस लड़की को कैसे शांत करूँ ... ऐसा ही कोमल और मेरे साथ हुआ, अब बात कुछ दूसरी ही थी, कोमल मुझे लुभाने में लग गयी, यहाँ तक की अपने स्वाभाविक शर्म को भी छोड़ दिया, उसे दोपहर का इंतजार भी नहीं था, ये एक उन्माद था,
कमसिन लड़कियां जिस प्रकार पागल हो जाती हैं वैसा किसी उम्र में नहीं होतीं यह मैंने बाद में जाना, वो अपने आप को पूर्ण समर्पित करती हैं और आपसे भी वही चाहती हैं ..उनके लिए वासना एक तूफ़ान की तरह होती है, जबरदस्त आवेश, कभी कभी इस आवेश से डर लगने लगे, ऐसा उन्माद की आप सोचे की वासना में पागल इस लड़की को कैसे शांत करूँ ... ऐसा ही कोमल और मेरे साथ हुआ, अब बात कुछ दूसरी ही थी, कोमल मुझे लुभाने में लग गयी, यहाँ तक की अपने स्वाभाविक शर्म को भी छोड़ दिया, उसे दोपहर का इंतजार भी नहीं था, ये एक उन्माद था, उसने आँखों से इशारा कर अपने बगल में बैठने को कहा, जैसे ही मैं बैठा उसने मेरे जांघों पर हाथ रख दबाया और मुस्कुरा दी, मैं अचंभित था,
माँ हमें नाश्ता करा रहीं थी, मुझे डरथा की कहीं उन्होंने देख लिया तो, लेकिन कोमल को डर नहीं था, वो बार बार मुझे छेड़ रही थी, छूने और छेड़ने से लिंग पैंट में फटक रहा था, उसने मेरे जिप पर हाथ रक्खा और लिंग को पकड़ जोरों से दबा दिया, मुझे आर्डर देती हुई सी बोली नाश्ता कर जल्दी ऊपर आओ, तुमसे काम है. उसकी आवाज में रोबाब था, मेरे पर हुक्म चलाने जैसा, जबसे आई थी मैंने देखा था उसमे एक शान थी शायद अपने हुस्न और जवानी की ताकत का अंदाज़ा था उसे, और अब जब वो मेरे पीछे दिवानी थी तब भी वही अंदाज़, कोमल उठके ऊपर चली गयी, हमारे घर में छत पर दो कमरे हैं, नीचे मेरा और मेहमानों का कमरा है आँगन बैठक और रसोई है और ऊपर माँ-पिताजी का कमरा और एक कमरा है जो ख़ाली रहता है और बहुत बड़ी छत है, घर के चारों और खुली जगह और सामने गेराज और फुलवारी है , ऊपर छत पर कोई नहीं होता, माँ-पिताजी ज्यादा समय नीचे ही होते हैं बैठक में या फिर सामने बगीचे में. मैं कुछ कुछ कोमल के ऊपर छत पर बुलाने का मतलब समझ रहा था फिर भी विश्वास नहीं हो रहा था, मैं ऊपर छत पर आया तो देखा कोई नहीं, पानी टंकी के पीछे कोमल खड़ी थी, मुझे नजदीक बुलाया,
" सुबह क्या किया तुमने ?" कोमल बोली
"मैंने क्या किया, तुमने ही मेरे मुह में चोकलेट डाल दी नींद में "
"तो तुम भी मुहं में लगाते , वहां क्यों लगाया" कहकर कोमल ने
अपना हाथ स्कर्ट पर योनी की जगह रख इशारा किया,
"जैसे तुम्हारी वैसे मेरी मर्जी, कहीं लगाऊं, पर मैंने कुछ किया नहीं ? " अनजान बनता हुआ मैं बोला,
"बनो म़त, तुमने क्या किया दिखाऊँ ? " कहते हुए कोमल ने अपनी स्कर्ट ऊपर कर दी
ये क्या, मैं देखता रह गया, उसने पैंटी नहीं पहनी रक्खी थी, गोरी, चमकती सुनहरे
बालों के बीच की योनी मेरे सामने एकदम नंगी थी, दो जांघो के बीच की छोटीसी गद्देदार जगह, बीच में एक गुलाबी फांक, मैं सुन्न था, समझ में नहीं आया क्या बोलूँ, मैं देख रहा था और कोमल निःसंकोच मुझे अपनी नंगी योनी दिखा रही थी, उसकी आँखें में एक चंचल मुस्कराहट थी,
" देखो कैसी लाल कर दी तुमने" उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी योनी पर लगाया, मेरी हालत ख़राब थी, मैं उसकी योनी सहला रहा था और वो आँखें बंद कर जमीन पर बैठ गयी, योनी छिद्र पर हाथ लगा तो पाया बुरी तरह से पानी निकल रहा था, योनी चिकनी होकर गीली हो गयी थी, उसने हाथ बढ़ा कर मेरे जिप को खोल मेरा मोटा लिंग बाहर निकाल लिया और हसरत भरी नजरों से देखने लगी,
कोमल होशियार हो गयी थी, पुरी चमड़ी पीछे कर सुपाड़े को बाहर निकाला और अपने गालों और होठों से उसे छु कर प्यार करने लगी, लिंग भी गीला हो पानी छोड रहा था, उसने उसे चूस लिया और फिर अचानक ही पूरा सुपाडा मुहं में डाल चूसने लगी, यह मैंने सोचा भी नहीं था की कोमल ऐसा करेगी और बिना मेरे बोले हुए अपनी मर्जी से इतने मज़े में मेरा सुपाडा चूस रही थी, मैंने उसका सर पकड़ लिया लिंग को अन्दर बहार करने लगा, वो सुबह लंड को देख व्याकुल हो चकी थी और अब उसको अपने ऊपर कण्ट्रोल नहीं था,
मेरा रस कोमल के मुहं में ही निकलने ही वाला था की मैंने उसे दूर किया, लेकिन लिंग का रस जोरों से फूट ही पड़ा और कोमल के गले और आँखों पर पिचकारी सा मारता हुआ बहने लगा, कोमल ने आँखें खोली, उसका चेहरा लाल था, पसीने की बूँदें चहरे पर और मासूमियत और ख़ूबसूरती बढ़ा रही थी, वो फिर भी लिंग के आकर्षण में बंधी उसे छोड़ने को तैयार नहीं औए कुछ कुछ स्तब्ध आश्चर्यचकित नज़रों से उसे देखे जा रही थी, ऐसा लग रहा था की इसके पहले उसने किसी युवक का लिंग इस प्रकार पूर्ण नंगा और रस निकालते हुए देखा नहीं था और सोचा भी नहीं होगा की पुरुष लिंग क्या ऐसा होता है, मैंने उसे उठाया, और सीने से लगा कर चूम लिया,
वो पूर्ण रूप से समर्पित, अपने रूमाल से उसके चेहरे पर फैले वीर्य को साफ़ किया और उसके होठों और स्तनों को चूमते हुए उसे दोपहर में मिलने को कहा, वो चुपचाप थी, शर्म से नजर नहीं मिला रही थी, लेकिन मुझे छोड़ नीचे जाने को भी तैयार नहीं, किसी तरह उसे मना कर भेजा और तीन बजे उसे उसी जगह बुलाया, उस समय सभी सो जाते थे, मेरा लिंग अब शांत हो गया था, मैं भी थोड़ी देर बाद नीचे आया, कोमल बाथरूम में थी, मैं बाज़ार की और चला गया, कोमल और मेरे माँ-पिताजी शाम को किसी मित्र परिवार से मिलने जाने वाले थे और रात का खाना भी वहीं था,
मेरा मन सातवें आसमान पर था, समझ में नहीं आ रहा था की क्या ये सचमुच मेरे साथ हो रहा था, मन कहीं नहीं लगा और मैं वापस एक बजे तक घर आगया, गर्मी का मौसम था, सभी दोपहर को सो रहे थे, मेरा खाना डाइनिंग टेबल पर लगा था, भाई भी बाहर था, आज सुबह से 2 बार वीर्य स्खलन हो गया था, कामुक मन शांत था, लेकिन दिल कहीं कोमल के पास था, देखा माँ और कोमल किचेन में थे, मुझे देखते ही कोमल बाहर आयी और मुझसे मुस्कुराते हुए खाना खाने को कह कर माँ से बोली " मैं रजत को खाना खिला देती हूँ ", उस समय कोमल ने खाना खिलाया,
माँ रसोई में बना रही थी, खिलाते पूरे समय कोमल मेरे साथ बदमाशी करती रही, कभी मेरे पैर को अपने पैर से दबा देती, कभी मेरे गाल खींच लेती, एक बार तो मेरा कान ही जोरों से काट लिया, माँ खाना खिला कर ऊपर अपने कमरे में चली गयी, कोमल से कहा वो भी अपने माँ के कमरे में जा कर सो जाये शाम को बाहर जायेंगे , कोमल ने बड़ी सहजता से कहा "ठीक है आंटी" और मुझे आँखें दबा कर कुछ इशारा किया, नीचे मैं और कोमल अकेले रह गए थे, उसके माँ बाबूजी महमानों के कमरे में सो रहे थे, हम कुछ देर इधर उधर की बातें करते रहे, फिर कोमल ने कहा मैं आती हूँ और अपनी माँ के कमरे में देख कर आयी, कहा माँ-बाबूजी दोनों गहरी नींद में हैं, चलो हमलोग तुम्हारे कमरे में चलते हैं,
मैंने कहा कोई जग जायेगा लेकिन कोमल बोली "कुछ नहीं होगा तुम डरपोक हो, एक दो घंटे कोई जगने वाला नहीं, मैं तो लड़की होकर भी नहीं डरती " और मेरा हाथ खींच कर मेरे कमरे में ले गयी और अन्दर से दरवाजा बंद कर लिया, मुझे बेड पर धकेल मेरे ऊपर गिर पड़ी और मुझे दबा कर जोरों से होठों को चूमने लगी. अपने युवा स्तनों के दबाव से मुझे काबू में कर लिया, आज याद करता हूँ तो लगता है कोमल पागल हो गयी थी, मतवाली हथिनी की तरह, बेफिक्र और उन्माद में मस्त, उसे सिर्फ अब चाहिए था की मैं उसकी जवानी से खेलूँ और उसे आनंद दूं,
उसने सारी शर्म और लज्जा किनारे कर दी थी, सुबह के अनुभवों ने उसे वासना के लिए लाचार कर दिया, सच पूछें दोस्तों तो मुझे अपनी जीत और उसकी लाचारी पर एक विजय भावना और अपनी ताकत का एहसास हो रहा था, वो पुरी तरह समर्पित थी, लेकिन साथ ही एक प्यार भी आ रहा था और उसकी गज़ब जवानी को रौंद देने का विचार भी...... पलट कर उसे अपने नीचे किया और उसके स्तनों को आजाद किया, दोस्तों इस कमसिन उम्र में लड़की के स्तनों का आनंद जैसा रसभरा होता है है वैसा सिर्फ एक बार और थोड़े समय के लिए जब वो नवजात बच्चे की माँ होती है तब होता है
...
तुमने नींद में मुझे छुआ और इसे पकड़ कर इतना खींचा की इसका जूस निकल गया"
"झूठ मत बोलो, मैंने सिर्फ तुम्हारे मुंह में चोकलेट डाली थी और कुछ नहीं किया" कोमल बोली,
"सच बताओ, तुमने मुझे पप्पी नहीं ली ? " मैंने अँधेरे में तीर मारा जो निशाने पर लगा, कोमल को काटो तो खून नहीं, " बस एक बार गाल पर" आँखें झुकाकर और चेहरा घुमा कर कोमल ने जवाब दिया, मैंने कोमल के गोरे गालों पर छोटी सी पप्पी जड़ थी, वो शर्म से बोल नहीं पा रही थी, मैंने उसे खींचा और सीने से लगा कर होठों को चूस लिया, उसने भी अब जवाब दिया और मेरे सर को पकड़ जोरों से मेरे होठ अपने मुहं में लेकर चूसने लगी, हम तन्मय थे, शरीर मैं चीटियाँ चल रही थी, जलन सी होने लगी, मैंने स्तनों को दबाया और कुर्ती के बचे हुए बटन खोल कुर्ती नीचे सरका दिया, वो पूरे समय आँखें झुकाए खड़ी रही मुझे थामे हुए, और मेरे लिंग को सहलाते हुए जो कोमल के सहलाने से फिर से गर्म हो कठोर होने लगा था,..................
.......बाँहों में मस्त जवान कली, गुदाज़ उरोजो का खुला निमंत्रण, हसीं चेहरा, गुलाबी होंठ जो वासना से थरथरा रहे थे, एक खूबसूरत उफनता हुआ स्त्री शरीर जो किसी को भी दीवाना बना दे, हम एक दुसरे के बाँहों में थे, कोमल के गोरे और चिकने स्तन उठान पर अपनी पूरी शान से जैसे किसी जवान होती लड़की........बाँहों में मस्त जवान कली, गुदाज़ उरोजो का खुला निमंत्रण, हसीं चेहरा, गुलाबी होंठ जो वासना से थरथरा रहे थे,
एक खूबसूरत उफनता हुआ स्त्री शरीर जो किसी को भी दीवाना बना दे, हम एक दुसरे के बाँहों में थे, कोमल के गोरे और चिकने स्तन उठान पर अपनी पूरी शान से जैसे किसी जवान होती लड़की के होते हैं, गुलाबी एरोला, मुहं में लेकर चूसने लगा, वो हल्की सिस्कारी भर रही थी, मेरे लिंग को दोनों हाथों से पकड़ सहला रही थी और अपनी योनी की और खींच रही थी, पूरा माहौल वासना की आग से भरा था, मुझे कुछ
होश था लेकिन कोमल पूरी तरह मदहोश, मैंने उसे चूम कर दूर हटाया, वो बहुत गर्म थी और मेरे हाथों को बुरी तरह खरोंच लिया दूर होते हुए, अपनी नाराजगी जाहिर की इस तरह, पर माँ-पिताजी आने वाले थे, मन में डर था.
उसने याचना भरी आँखों से देखा जैसे कह रही हो क्यों छोड़ दिया, गालों को चूमते हुए कोमल के कानों में कहा " माँ-पिताजी आने वाले हैं, दोपहर में मिलेंगे" .... उसकी बेचैनी साफ़ दिख रही थी, मैंने सोचा भी नहीं था की एक नादान सी दिखने वाली लड़की का काम वासना से ये हाल होगा, मैं अपने कमरे में आया और आँखें बंद कर अपने भगवान को धन्यवाद् दिया जिसने ऐसा सुनेहरा मौका मुझे दिया था एक जवान मस्त लडकी को सम्भोग के लिए मेरे पास भेजा, कोमल का मस्ती भरा शरीर जैसे आँखों और दिमाग से हटने का नाम नहीं ले रहा था.... भगवान ने बहुत धैर्य और आराम से उसे बनाया था, रह रह कर उसकी बाहें , उसकी नशीली आँखें, उसके उरोजों को दबाने का आनंद, अत्यंत मस्त नितम्ब और हल्की मुस्कराहट , अभी तो उसे पूरा देखा भी नहीं था, मैं कल्पना कर रहा था उसकी जवानी को मादरजात नंगी देखने का...,
अपने लिंग से काफी देर खेलता रहा, किसी तरह उसे समझाया की शांत रह, तुझे अभी वो चीज़ दूंगा की तू भी याद रक्खेगा ज़िंदगी भर...... और वही हुआ पाठकों, आज भी उस दिन को याद करता हूँ तो शरीर में एक तनाव भर आता है, कुछ ही देर में माँ-पिताजी आ गए.. किसी तरह मन पर लगाम लगते हुए मैं नहा कर तैयार हुआ और जब नाश्ते की टेबल पर आया तो देख कर दंग रह गया, कोमल पहले से बैठी थी, खूबसूरत मूर्ती सी, उसने सलवार कुर्ती की बजाय स्कर्ट और कमीज़ पहनी हुई थी, इन कपड़ो में उसकी जवानी फूट फूट कर बाहर आ रही थी, पूर्ण विकसित स्तन गज़ब समां बना रहे थे, स्कर्ट से नीचे घुटने और पैरों की आकर्षक पिंडलियाँ दिख रहीं थी,
उसने मेरी और चिढ़ाने वाली नज़रों से देखा.. एक व्यंग भरी मुस्कान के साथ जैसे कह रही हो .... अब बताओ क्या करोगे.... अब तो तुम्हे मेरे पास आना ही होगा... कमसिन लड़कियां कामाग्नी में जिस प्रकार पागल हो जाती हैं वैसा किसी उम्र में नहीं होतीं यह मैंने बाद में जाना, वो अपने आप को पूर्ण समर्पित करती हैं और आपसे भी वही चाहती हैं ...उनके लिए वासना एक तूफ़ान की तरह होती है, जबरदस्त आवेश, कभी कभी इस आवेश से डर लगने लगे, ऐसा उन्माद की आप सोचें वासना में पागल इस लड़की को कैसे शांत करूँ ... ऐसा ही कोमल और मेरे साथ हुआ, अब बात कुछ दूसरी ही थी, कोमल मुझे लुभाने में लग गयी, यहाँ तक की अपने स्वाभाविक शर्म को भी छोड़ दिया, उसे दोपहर का इंतजार भी नहीं था, ये एक उन्माद था,
कमसिन लड़कियां जिस प्रकार पागल हो जाती हैं वैसा किसी उम्र में नहीं होतीं यह मैंने बाद में जाना, वो अपने आप को पूर्ण समर्पित करती हैं और आपसे भी वही चाहती हैं ..उनके लिए वासना एक तूफ़ान की तरह होती है, जबरदस्त आवेश, कभी कभी इस आवेश से डर लगने लगे, ऐसा उन्माद की आप सोचे की वासना में पागल इस लड़की को कैसे शांत करूँ ... ऐसा ही कोमल और मेरे साथ हुआ, अब बात कुछ दूसरी ही थी, कोमल मुझे लुभाने में लग गयी, यहाँ तक की अपने स्वाभाविक शर्म को भी छोड़ दिया, उसे दोपहर का इंतजार भी नहीं था, ये एक उन्माद था, उसने आँखों से इशारा कर अपने बगल में बैठने को कहा, जैसे ही मैं बैठा उसने मेरे जांघों पर हाथ रख दबाया और मुस्कुरा दी, मैं अचंभित था,
माँ हमें नाश्ता करा रहीं थी, मुझे डरथा की कहीं उन्होंने देख लिया तो, लेकिन कोमल को डर नहीं था, वो बार बार मुझे छेड़ रही थी, छूने और छेड़ने से लिंग पैंट में फटक रहा था, उसने मेरे जिप पर हाथ रक्खा और लिंग को पकड़ जोरों से दबा दिया, मुझे आर्डर देती हुई सी बोली नाश्ता कर जल्दी ऊपर आओ, तुमसे काम है. उसकी आवाज में रोबाब था, मेरे पर हुक्म चलाने जैसा, जबसे आई थी मैंने देखा था उसमे एक शान थी शायद अपने हुस्न और जवानी की ताकत का अंदाज़ा था उसे, और अब जब वो मेरे पीछे दिवानी थी तब भी वही अंदाज़, कोमल उठके ऊपर चली गयी, हमारे घर में छत पर दो कमरे हैं, नीचे मेरा और मेहमानों का कमरा है आँगन बैठक और रसोई है और ऊपर माँ-पिताजी का कमरा और एक कमरा है जो ख़ाली रहता है और बहुत बड़ी छत है, घर के चारों और खुली जगह और सामने गेराज और फुलवारी है , ऊपर छत पर कोई नहीं होता, माँ-पिताजी ज्यादा समय नीचे ही होते हैं बैठक में या फिर सामने बगीचे में. मैं कुछ कुछ कोमल के ऊपर छत पर बुलाने का मतलब समझ रहा था फिर भी विश्वास नहीं हो रहा था, मैं ऊपर छत पर आया तो देखा कोई नहीं, पानी टंकी के पीछे कोमल खड़ी थी, मुझे नजदीक बुलाया,
" सुबह क्या किया तुमने ?" कोमल बोली
"मैंने क्या किया, तुमने ही मेरे मुह में चोकलेट डाल दी नींद में "
"तो तुम भी मुहं में लगाते , वहां क्यों लगाया" कहकर कोमल ने
अपना हाथ स्कर्ट पर योनी की जगह रख इशारा किया,
"जैसे तुम्हारी वैसे मेरी मर्जी, कहीं लगाऊं, पर मैंने कुछ किया नहीं ? " अनजान बनता हुआ मैं बोला,
"बनो म़त, तुमने क्या किया दिखाऊँ ? " कहते हुए कोमल ने अपनी स्कर्ट ऊपर कर दी
ये क्या, मैं देखता रह गया, उसने पैंटी नहीं पहनी रक्खी थी, गोरी, चमकती सुनहरे
बालों के बीच की योनी मेरे सामने एकदम नंगी थी, दो जांघो के बीच की छोटीसी गद्देदार जगह, बीच में एक गुलाबी फांक, मैं सुन्न था, समझ में नहीं आया क्या बोलूँ, मैं देख रहा था और कोमल निःसंकोच मुझे अपनी नंगी योनी दिखा रही थी, उसकी आँखें में एक चंचल मुस्कराहट थी,
" देखो कैसी लाल कर दी तुमने" उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी योनी पर लगाया, मेरी हालत ख़राब थी, मैं उसकी योनी सहला रहा था और वो आँखें बंद कर जमीन पर बैठ गयी, योनी छिद्र पर हाथ लगा तो पाया बुरी तरह से पानी निकल रहा था, योनी चिकनी होकर गीली हो गयी थी, उसने हाथ बढ़ा कर मेरे जिप को खोल मेरा मोटा लिंग बाहर निकाल लिया और हसरत भरी नजरों से देखने लगी,
कोमल होशियार हो गयी थी, पुरी चमड़ी पीछे कर सुपाड़े को बाहर निकाला और अपने गालों और होठों से उसे छु कर प्यार करने लगी, लिंग भी गीला हो पानी छोड रहा था, उसने उसे चूस लिया और फिर अचानक ही पूरा सुपाडा मुहं में डाल चूसने लगी, यह मैंने सोचा भी नहीं था की कोमल ऐसा करेगी और बिना मेरे बोले हुए अपनी मर्जी से इतने मज़े में मेरा सुपाडा चूस रही थी, मैंने उसका सर पकड़ लिया लिंग को अन्दर बहार करने लगा, वो सुबह लंड को देख व्याकुल हो चकी थी और अब उसको अपने ऊपर कण्ट्रोल नहीं था,
मेरा रस कोमल के मुहं में ही निकलने ही वाला था की मैंने उसे दूर किया, लेकिन लिंग का रस जोरों से फूट ही पड़ा और कोमल के गले और आँखों पर पिचकारी सा मारता हुआ बहने लगा, कोमल ने आँखें खोली, उसका चेहरा लाल था, पसीने की बूँदें चहरे पर और मासूमियत और ख़ूबसूरती बढ़ा रही थी, वो फिर भी लिंग के आकर्षण में बंधी उसे छोड़ने को तैयार नहीं औए कुछ कुछ स्तब्ध आश्चर्यचकित नज़रों से उसे देखे जा रही थी, ऐसा लग रहा था की इसके पहले उसने किसी युवक का लिंग इस प्रकार पूर्ण नंगा और रस निकालते हुए देखा नहीं था और सोचा भी नहीं होगा की पुरुष लिंग क्या ऐसा होता है, मैंने उसे उठाया, और सीने से लगा कर चूम लिया,
वो पूर्ण रूप से समर्पित, अपने रूमाल से उसके चेहरे पर फैले वीर्य को साफ़ किया और उसके होठों और स्तनों को चूमते हुए उसे दोपहर में मिलने को कहा, वो चुपचाप थी, शर्म से नजर नहीं मिला रही थी, लेकिन मुझे छोड़ नीचे जाने को भी तैयार नहीं, किसी तरह उसे मना कर भेजा और तीन बजे उसे उसी जगह बुलाया, उस समय सभी सो जाते थे, मेरा लिंग अब शांत हो गया था, मैं भी थोड़ी देर बाद नीचे आया, कोमल बाथरूम में थी, मैं बाज़ार की और चला गया, कोमल और मेरे माँ-पिताजी शाम को किसी मित्र परिवार से मिलने जाने वाले थे और रात का खाना भी वहीं था,
मेरा मन सातवें आसमान पर था, समझ में नहीं आ रहा था की क्या ये सचमुच मेरे साथ हो रहा था, मन कहीं नहीं लगा और मैं वापस एक बजे तक घर आगया, गर्मी का मौसम था, सभी दोपहर को सो रहे थे, मेरा खाना डाइनिंग टेबल पर लगा था, भाई भी बाहर था, आज सुबह से 2 बार वीर्य स्खलन हो गया था, कामुक मन शांत था, लेकिन दिल कहीं कोमल के पास था, देखा माँ और कोमल किचेन में थे, मुझे देखते ही कोमल बाहर आयी और मुझसे मुस्कुराते हुए खाना खाने को कह कर माँ से बोली " मैं रजत को खाना खिला देती हूँ ", उस समय कोमल ने खाना खिलाया,
माँ रसोई में बना रही थी, खिलाते पूरे समय कोमल मेरे साथ बदमाशी करती रही, कभी मेरे पैर को अपने पैर से दबा देती, कभी मेरे गाल खींच लेती, एक बार तो मेरा कान ही जोरों से काट लिया, माँ खाना खिला कर ऊपर अपने कमरे में चली गयी, कोमल से कहा वो भी अपने माँ के कमरे में जा कर सो जाये शाम को बाहर जायेंगे , कोमल ने बड़ी सहजता से कहा "ठीक है आंटी" और मुझे आँखें दबा कर कुछ इशारा किया, नीचे मैं और कोमल अकेले रह गए थे, उसके माँ बाबूजी महमानों के कमरे में सो रहे थे, हम कुछ देर इधर उधर की बातें करते रहे, फिर कोमल ने कहा मैं आती हूँ और अपनी माँ के कमरे में देख कर आयी, कहा माँ-बाबूजी दोनों गहरी नींद में हैं, चलो हमलोग तुम्हारे कमरे में चलते हैं,
मैंने कहा कोई जग जायेगा लेकिन कोमल बोली "कुछ नहीं होगा तुम डरपोक हो, एक दो घंटे कोई जगने वाला नहीं, मैं तो लड़की होकर भी नहीं डरती " और मेरा हाथ खींच कर मेरे कमरे में ले गयी और अन्दर से दरवाजा बंद कर लिया, मुझे बेड पर धकेल मेरे ऊपर गिर पड़ी और मुझे दबा कर जोरों से होठों को चूमने लगी. अपने युवा स्तनों के दबाव से मुझे काबू में कर लिया, आज याद करता हूँ तो लगता है कोमल पागल हो गयी थी, मतवाली हथिनी की तरह, बेफिक्र और उन्माद में मस्त, उसे सिर्फ अब चाहिए था की मैं उसकी जवानी से खेलूँ और उसे आनंद दूं,
उसने सारी शर्म और लज्जा किनारे कर दी थी, सुबह के अनुभवों ने उसे वासना के लिए लाचार कर दिया, सच पूछें दोस्तों तो मुझे अपनी जीत और उसकी लाचारी पर एक विजय भावना और अपनी ताकत का एहसास हो रहा था, वो पुरी तरह समर्पित थी, लेकिन साथ ही एक प्यार भी आ रहा था और उसकी गज़ब जवानी को रौंद देने का विचार भी...... पलट कर उसे अपने नीचे किया और उसके स्तनों को आजाद किया, दोस्तों इस कमसिन उम्र में लड़की के स्तनों का आनंद जैसा रसभरा होता है है वैसा सिर्फ एक बार और थोड़े समय के लिए जब वो नवजात बच्चे की माँ होती है तब होता है
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