06-06-2021, 05:43 PM
(This post was last modified: 06-06-2021, 05:46 PM by usaiha2. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
UPDATE 1
कोमल को मेरे बारे में याद तो था, पहले बिलकुल एक छोटी बच्ची सी थी जब देखा था, हमलोग मकान के पीछे के बाड़े में खेले हुए थे और उसे याद था की साथ ही आइसक्रीम खाने और पिक्चर देखने गए थे जब वो एक दो बार आयी थी, अब जब वो आयी तो मैंने देखा की वो बड़ी लगने लगी थी, शरीर भर गया था, ऊँचाई भी पूरी हो गयी थी, अब वो सलवार पेहेनने लगी थी, मेरा भी देखने का अंदाज बदल गया था, पहले इस तरह से देखा नहीं था, अब वो शर्माती थी, और ज्यादा कर अपनी माँ के साथ ही रहती, थोड़ी बहुत बातें हुई लेकिन झिझकते हुए, मुझे वो बहुत अच्छी लगी, सुन्दर तो थी ही लेकिन जवानी आने से और भी मदमस्त लगने लगी थी,
मैं उससे दोस्ती बढ़ाने और किसी भी तरह उसे आगोश में लेने के लिए व्याकुल हो गया, अब छुट्टियों के बावजूद में दोस्तों के पास नहीं जा रहा था और घर में ही रहता, छोटे भाई के जरिये कोमल के साथ कैरम, लूडो खेलने की योजना बनाता और उसके सामने रहने की कोशिश करता, वो लोग तीन चार दिन के लिए ही आये थे, बातों बातों में अकेले में मैंने एक दो बार उसकी ख़ूबसूरती की तारीफ़ की तो वो शर्मा गयी, लगा जैसे की उसे यह सुनने में अच्छा लगा.
दूसरी रात को मैं, कोमल और भाई जमीन पर बैठे लूडो खेल रहे थे, माँ पिताजी वगैरह दुसरे कमरे में थे, मैं मौका पाकर कोमल के हाथों को और बाँहों को छु देता था, एक दो बार मैंने पासा फेंकते हुए अपना हाथ उसके जांघों पर भी रख कर हलके से दबा दिया था पर उसने कोई विरोध नहीं किया, शायद उसे लगा हो की अनायास ही ऐसा हुआ हो, उसकी भरी भरी गुदाज जांघों के स्पर्श से बिजली सी शरीर में कौंध गयी, मेरा शरीर अब आवेश से गरम हो रहा था, रात को मैं हाफ पैंट पेहेन कर सोता था,
मैंने कोशिस की और कोमल के और नजदीक खिसककर हो गया, मैंने धीरे से अपने एक पैर के पंजों को कोमल की जांघों के नीचे घुसाना शुरू किया, उसने मेरी ओर देखा पर कहा कुछ नहीं और दूर हटने की कोशिश भी नहीं की, मेरी हिम्मत बढ़ी और मैं पैर की उंगुलियों से उसके जांघों के नीचे हिस्से को सहलाने लगा, मुझे लगा की मेरे पैरों पर किसी ने गरम कोमल स्पंज रख दिया है, थोड़ी देर बाद मैंने महसूस किया की कोमल ने अपनी जांघों को कुछ ऊपर किया जैसे की मुझे और अन्दर तक पैर डालने के लिए कह रही हो, मैंने हिम्मत कर अपने पंजो को और अन्दर किया, अब मेरे पंजे बिलकुल उसके योनी के नजदीक थे, मैं धीरे धीरे अपने पैर के अंगूठे से उसके योनी के पास उसे छेड़ रहा था,
मेरा लंड बेकाबू हो गया था, मैं उसे अपना फुफकारता हुआ लंड दिखाना चाहता था, अब मन खेल में नहीं था, कोमल भी बेमन से खेल रही थी, उसकी आवाज़ उखड़ रही थी, लग रहा था उसका गला सूख गया है, मेरे पैर की उंगलिया अब उसके योनी के ऊपर तक पहुँच गयी थी, मैं अंगूठे से उसकी बूर दबा रहा था, मुझे लगा जैसे की उसकी बूर से कुछ पानी जैसा निकला हो, उसकी सलवार गीली लग रही थी, मेरे लिय बैठना मुश्किल था, मैंने कोमल से कहा मेरी गोटियाँ ऐसे ही रहने दो और तुम दोनों खेलो और मैं सुसु से आता हूँ फिर तुम्हे हराऊँगा,
मुझे मालूम था भाई जीत जायेगा , वो बहुत लूडो खेलता था, वही हुआ, थोड़ी देर में वो जीत गया और खेल से बाहर हो गया, अब मैं और कोमल थे, भाई अपने बेड पर जा कर किताब पढ़ने लगा, मैं आकर अपनी जगह बैठ गया, कोमल से कहा आगे खेलो, और पहले की तरह अपने पंजों को कोमल के जांघों के नीचे सरकाने लगा, कोमल ने बिना कुछ कहे जांघे ऊपर की और मैं उसकी बूर को कुरेदने लगा, अब हम खेल का बहाना कर रहे थे, थोड़ी देर बाद देखा तो भाई सो रहा था, अब वो बार बार मेरी तरफ देख रही थी, मैंने एक प्लान किया था, बाथरूम से वापस आते समय अपने पैंट के सामने के दो बटन खोले लिए थे, अब बैठते समय वहां बने सुराख़ से लंड थोड़ा थोड़ा झांक रहा था, कोमल की नजर उसपर पड़ रही थी, मैं ऐसा बना हुआ था की मुझे मालूम ही नहीं हो ही मेरे बटन खुले हैं, मैं कनखियों से देख रहा था,
कोमल की नजर बार बार उस और जा रही थी, मेरा निशाना ठीक था, कोमल और मै दोनों व्याकुल थे, हम खेल रहे थे लेकिन कोई दूसरा ही खेल चल रहा था, दोनों चुप थे, लंड अन्दर बने रहने को तैयार नहीं था, आवेश में फटकर बाहर आना चाहता था, मैं कोमल को बार बार अब छु रहा था , कभी जांघों पर, कभी उसकी कमर पर, कभी उसके हाथों को पकड़ रहा था, उसका जिस्म बहुत ही भरा भरा था, अचानक मैंने देखा कोमल की आँखे मेरे पैंट नीचले हिस्से पर जम गयी हैं, लंड बेकाबू होकर सामने के दरवाज़े से बाहर फिसल पड़ा, अपनी उत्तेजित अवस्था में तना खड़ा था पुरी लम्बाई के साथ, लाल सुपाड़ा, वासना की तरलता से चिकना और चमकता हुआ, ६.५ इंच लम्बा, मोटा और कुछ कुछ हल्का कलास लिए हुए, तनाव से फडफडा रहा था,
कोमल स्तब्ध सी फटी फटी आँखों से देख रही थी, मैं फिर भी अंजान सा बना उससे पासा फेकने को कहता रहा, कोमल भी उत्तेजित थी, उसकी बूर का पानी मेरे अंगूठे को गीला कर रहा था, उससे रहा नहीं गया और वो उठ कर भागी, कहा "मुझे अब नहीं खेलना है" , समझ में नहीं आया की कहीं नाराज तो नहीं हो गयी.
कोमल को मेरे बारे में याद तो था, पहले बिलकुल एक छोटी बच्ची सी थी जब देखा था, हमलोग मकान के पीछे के बाड़े में खेले हुए थे और उसे याद था की साथ ही आइसक्रीम खाने और पिक्चर देखने गए थे जब वो एक दो बार आयी थी, अब जब वो आयी तो मैंने देखा की वो बड़ी लगने लगी थी, शरीर भर गया था, ऊँचाई भी पूरी हो गयी थी, अब वो सलवार पेहेनने लगी थी, मेरा भी देखने का अंदाज बदल गया था, पहले इस तरह से देखा नहीं था, अब वो शर्माती थी, और ज्यादा कर अपनी माँ के साथ ही रहती, थोड़ी बहुत बातें हुई लेकिन झिझकते हुए, मुझे वो बहुत अच्छी लगी, सुन्दर तो थी ही लेकिन जवानी आने से और भी मदमस्त लगने लगी थी,
मैं उससे दोस्ती बढ़ाने और किसी भी तरह उसे आगोश में लेने के लिए व्याकुल हो गया, अब छुट्टियों के बावजूद में दोस्तों के पास नहीं जा रहा था और घर में ही रहता, छोटे भाई के जरिये कोमल के साथ कैरम, लूडो खेलने की योजना बनाता और उसके सामने रहने की कोशिश करता, वो लोग तीन चार दिन के लिए ही आये थे, बातों बातों में अकेले में मैंने एक दो बार उसकी ख़ूबसूरती की तारीफ़ की तो वो शर्मा गयी, लगा जैसे की उसे यह सुनने में अच्छा लगा.
दूसरी रात को मैं, कोमल और भाई जमीन पर बैठे लूडो खेल रहे थे, माँ पिताजी वगैरह दुसरे कमरे में थे, मैं मौका पाकर कोमल के हाथों को और बाँहों को छु देता था, एक दो बार मैंने पासा फेंकते हुए अपना हाथ उसके जांघों पर भी रख कर हलके से दबा दिया था पर उसने कोई विरोध नहीं किया, शायद उसे लगा हो की अनायास ही ऐसा हुआ हो, उसकी भरी भरी गुदाज जांघों के स्पर्श से बिजली सी शरीर में कौंध गयी, मेरा शरीर अब आवेश से गरम हो रहा था, रात को मैं हाफ पैंट पेहेन कर सोता था,
मैंने कोशिस की और कोमल के और नजदीक खिसककर हो गया, मैंने धीरे से अपने एक पैर के पंजों को कोमल की जांघों के नीचे घुसाना शुरू किया, उसने मेरी ओर देखा पर कहा कुछ नहीं और दूर हटने की कोशिश भी नहीं की, मेरी हिम्मत बढ़ी और मैं पैर की उंगुलियों से उसके जांघों के नीचे हिस्से को सहलाने लगा, मुझे लगा की मेरे पैरों पर किसी ने गरम कोमल स्पंज रख दिया है, थोड़ी देर बाद मैंने महसूस किया की कोमल ने अपनी जांघों को कुछ ऊपर किया जैसे की मुझे और अन्दर तक पैर डालने के लिए कह रही हो, मैंने हिम्मत कर अपने पंजो को और अन्दर किया, अब मेरे पंजे बिलकुल उसके योनी के नजदीक थे, मैं धीरे धीरे अपने पैर के अंगूठे से उसके योनी के पास उसे छेड़ रहा था,
मेरा लंड बेकाबू हो गया था, मैं उसे अपना फुफकारता हुआ लंड दिखाना चाहता था, अब मन खेल में नहीं था, कोमल भी बेमन से खेल रही थी, उसकी आवाज़ उखड़ रही थी, लग रहा था उसका गला सूख गया है, मेरे पैर की उंगलिया अब उसके योनी के ऊपर तक पहुँच गयी थी, मैं अंगूठे से उसकी बूर दबा रहा था, मुझे लगा जैसे की उसकी बूर से कुछ पानी जैसा निकला हो, उसकी सलवार गीली लग रही थी, मेरे लिय बैठना मुश्किल था, मैंने कोमल से कहा मेरी गोटियाँ ऐसे ही रहने दो और तुम दोनों खेलो और मैं सुसु से आता हूँ फिर तुम्हे हराऊँगा,
मुझे मालूम था भाई जीत जायेगा , वो बहुत लूडो खेलता था, वही हुआ, थोड़ी देर में वो जीत गया और खेल से बाहर हो गया, अब मैं और कोमल थे, भाई अपने बेड पर जा कर किताब पढ़ने लगा, मैं आकर अपनी जगह बैठ गया, कोमल से कहा आगे खेलो, और पहले की तरह अपने पंजों को कोमल के जांघों के नीचे सरकाने लगा, कोमल ने बिना कुछ कहे जांघे ऊपर की और मैं उसकी बूर को कुरेदने लगा, अब हम खेल का बहाना कर रहे थे, थोड़ी देर बाद देखा तो भाई सो रहा था, अब वो बार बार मेरी तरफ देख रही थी, मैंने एक प्लान किया था, बाथरूम से वापस आते समय अपने पैंट के सामने के दो बटन खोले लिए थे, अब बैठते समय वहां बने सुराख़ से लंड थोड़ा थोड़ा झांक रहा था, कोमल की नजर उसपर पड़ रही थी, मैं ऐसा बना हुआ था की मुझे मालूम ही नहीं हो ही मेरे बटन खुले हैं, मैं कनखियों से देख रहा था,
कोमल की नजर बार बार उस और जा रही थी, मेरा निशाना ठीक था, कोमल और मै दोनों व्याकुल थे, हम खेल रहे थे लेकिन कोई दूसरा ही खेल चल रहा था, दोनों चुप थे, लंड अन्दर बने रहने को तैयार नहीं था, आवेश में फटकर बाहर आना चाहता था, मैं कोमल को बार बार अब छु रहा था , कभी जांघों पर, कभी उसकी कमर पर, कभी उसके हाथों को पकड़ रहा था, उसका जिस्म बहुत ही भरा भरा था, अचानक मैंने देखा कोमल की आँखे मेरे पैंट नीचले हिस्से पर जम गयी हैं, लंड बेकाबू होकर सामने के दरवाज़े से बाहर फिसल पड़ा, अपनी उत्तेजित अवस्था में तना खड़ा था पुरी लम्बाई के साथ, लाल सुपाड़ा, वासना की तरलता से चिकना और चमकता हुआ, ६.५ इंच लम्बा, मोटा और कुछ कुछ हल्का कलास लिए हुए, तनाव से फडफडा रहा था,
कोमल स्तब्ध सी फटी फटी आँखों से देख रही थी, मैं फिर भी अंजान सा बना उससे पासा फेकने को कहता रहा, कोमल भी उत्तेजित थी, उसकी बूर का पानी मेरे अंगूठे को गीला कर रहा था, उससे रहा नहीं गया और वो उठ कर भागी, कहा "मुझे अब नहीं खेलना है" , समझ में नहीं आया की कहीं नाराज तो नहीं हो गयी.