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Adultery भयानक हवस का षडयंत्र
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भयानक हवस का षडयंत्र 






Update - 1






हैलो दोस्तों मेरा नाम अब्दुल अहमद है. मै खोलीपूरा नाम के पिछड़े हुए गांव से हु. मेरी उम्र कुछ 44 साल होगी. दिखने में तो मैं किसी चलते फिरते सांड के जैसा दिखता हू. मेरा निकाह भी अभी अभी ही हुआ है चार साल पहले ही. मेरा निकाह एक रजिया नाम की दो बार की तलाक शुदा औरत से हुआ है. मेरी गरीबी और अनपढ़ होने की वज़ह से निकाह हो ही नहीं पा रहा था और सबसे खास बात मेरी सांड जैसी कसरती बॉडी थी. यहां आप कसरती का मतलब यह मत समझना की बड़े मसल या सिक्स पैक वाली बॉडी होगी. नहीं मेरा तो पेट निकल आया था आगे की और बड़ा सा. देसी मुफ्त की दारू पीने से. मैं भले ही दिखता काले सांड जैसा था पर मे सबसे प्रेम और सम्मान से ही बात करता था. शायद गरीबी और अनपढ़ता करवाती थी. 





मैं अपने गांव में निकाह से पहले देसी ठेके पर काम करता था. पर मेरा निकाह ही यही शर्त पर हुआ था कि मुझको निकाह के बाद अपनी बेगम को लेकर शहर जाना होगा और उधर कुछ नोकरी करनी होगी. मै मेरी बीवी को लेकर इंदौर आ गया. और इंदौर आकर मेरी बीवी के नखरे शुरू हो गये उसको झुग्गी झोपड़ी में नहीं रहना था उसको तो किसी बड़े वीआईपी घरों में रहना था या वीआईपी सोसाइटी में. पर मेरी तो इतनी औकात थी नहीं की रह पाउ फिर जैसे तैसे करके एक कमरा खोजा जो किसी वीआईपी नालंदा नाम की सोसाइटी के सामने था. पर वो कमरा सोसाइटी में नही आता था. उसका भाड़ा भी में मुश्किल से दे पा रहा था. फिर मैंने खुद के लिये मुश्किल से एक कॉटन मिल में एक चौकीदार की नोकरी ढूंढी. और वो चौकीदार की नोकरी मिल भी गयी. कॉटन मिल में कुछ वर्कर थोड़ा बहुत कच्चा कॉटन और कपड़ा चुरा कर ले जाते थे उनकी छुट्टी होने के बाद और बाहर सौ या दौसौ में बेच देते थे. मैं भी इनको गेट पर नहीं रोकता था और इनसे दस बीस रुपये की रिश्वत ले लेता था. पर कुछ कहो मैं मेरे गाँव से तो ज्यादा ही रुपया कमा रहा था. भले ही यह कमाई से दो वक़्त का खाना और किराया ही निकल पाता था. 





पर कुछ भी कहो मेरे सामने वालीं नालंदा सोसाइटी की औरते काफी सुन्दर और सेक्सी थी. मैंने शहर में आने से पहले कभी ऐसी खूबसूरत औरतों को नहीं देखा था. मादरजात यहां शहरो की और यह वीआईपी नालंदा सोसायटी की औरते कितनी खूबसूरत साड़ी और छोटे ब्लाउज पहनती है और कुछ तो छोटे कपड़े भी पहनती थी. इन छोटे ब्लाउज में इनकी गोरी कमर , खुली सफेद पीठ और बड़े बड़े निप्पल दिखते थे. यहां की औरते हमारे गाँव में लगने वाले सिनेमा की हीरोइन की तरह दिखती थी. कुछ औरतों और ल़डकियों को तो मैं छुप छुप कर देखता भी था. 





यही सब में अब तीन महीने निकल गये थे.....................







मेरी चौकीदार की नोकरी भी ऐसी थी कि कभी दिन में जाना होता तो कभी शाम में तो कभी जाना ही नहीं पड़ता. बढ़िया और सुकून की नोकरी थी. मेरी नौकरी ऐसी थी कि रोज़ मुझे सैलरी के अलावा सौ - दौसों की रिश्वत मिल जाती थी। रजिया यानी मेरी बेगम मुझे ठीक से सेक्स नहीं करने देती थी क्योंकि उसे मोटी भेसी को मेरी कम कमाई और खराब शकल से काफी परेशानी थी। हमारी नौकरानी का नाम सबीना था, उसकी उम्र 41 साल के करीब होगी, वह हमारे यहाँ 3 महीने से काम कर रही थी मैंने मेरी बीवी को खुश करने के लिये यह काम वाली को रख रखा था वो भी मेरे रिश्वत के रुपयों से. 






सबीना की चूचियाँ तनी हुई और थोड़ी बड़ी-बड़ी संतरे जैसी थीं। अक्सर मैं अपनी बीवी से नज़र बचाकर, जब वो मेरे कमरे में पौंछा लगाती थी तो उसके ब्लाउज से झांकती हुई चूचियों का मज़ा लेता था। एक दो बार उसने मुझे मुस्कुरा कर देखा भी था और हल्की सी मुस्कुराहट भी दी थी। एक दिन मेरी बीवी रजिया नीचे बाज़ार से कुछ सामान लेने गई तभी सबीना मेरे कमरे में पौंछा लगाने आई और अंगड़ाई लेकर बोली- बाबूजी, आज गर्मी बहुत हो रही है ! और उसने अपने ब्लाउज के तीन बटन खोल लिए। नीचे ब्रा वो नहीं पहने थी पूरी चूचियाँ एकदम से बाहर आ गईं। चुचूक आधे से ज्यादा बाहर थे। पौंछा लगाते लगाते वो मुस्कुरा रही थी। मैं भी अन्दर ही अन्दर खुश होने लगा. 







सबीना मुस्कुरा कर बोली- बाबू, आप मुझे 200 रुपए दे दो ! मेरा लौड़ा पूरा टनटना रहा था, मैं बोला- ठीक है, लो ! और मैं उसे रुपए देने लगा तो उसने जानबूझ कर अपना पल्लू नीचे गिरा दिया। पूरी नंगी होती चूचियाँ मेरी आँखों के सामने थी। सबीना कामुक मुस्कान दे रही थी, मेरे से रहा नहीं गया, मैंने उसकी चूचियाँ दोनों हाथों से दबा दीं। इतने से उसका आखिरी बटन भी खुल गया। अब पूरी नंगी चूचियां मेरे सामने थी। मैंने कस कर दो तीन बार उन्हें मसल दिया। सबीना मुझे हटाती हुई बोली- बीबी जी आने वाली हैं, जब मायके जाएँ तब पूरे मज़े ले लेना ! आप मुझे बहुत अच्छे लगते हो। इतना कह कर उसने हल्के से मेरा लण्ड सहला दिया और मेरे होंटों पर एक पप्पी दे दी।







 दो हफ़्ते बाद ही मेरी बेगम को दस दिन के लिए अपने घर जाना पड़ा। अब मैं घर में इतने दिन अकेला था। मेरे मन में सबीना को चोदने का ख्याल पलने लगा।







To Be Continued.........
Written By Mohik
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भयानक हवस का षडयंत्र - by Mohik - 28-05-2021, 11:04 PM



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