22-05-2021, 09:35 PM
काकी के विस्मित मुखमंडल पर आते जाते अनेकों एक्सप्रेशन मुझे मेरे चरम तक उत्तेजित करने के लिए पर्याप्त थे --- और देर करना मुझे सही नहीं लगा --- अतः आगे बढ़ कर लंड के अग्रभाग से काकी के होंठों को छुआ.. छूते ही काकी सिहर उठी --- आँखें बंद कर लीं --- वासना और लाज के मिश्रित भाव रेखाएँ उनके गोरे गोल मुखमंडल पर उदित होने लगे --- उनकी इस अवस्था का आनंद लेते हुए होंठों पर लंड को सहलाते हुए एक झटके में उनके मुँह में उस सख्त अंग का प्रवेश कर दिया ...
‘आह..अह्हह्म्मप्प्फ्ह..’
इतनी ही आवाज़ निकली काकी की --- कुछ सेकंड लंड को वैसे ही रहने दिया मुँह में; थोड़ा सा निकाला, फ़िर एक और तगड़ा झटका देते हुए लंड को आधे से ज़्यादा उतार दिया काकी के गले में --- मारे दर्द से काकी तड़प उठी --- साँस लेना तो दूर ; उतने मोटे लंड को मुँह में रखने के लिए होंठों को ज़्यादा फ़ैला भी नहीं पा रही बेचारी --- और इधर अपने लंड पर काकी के मुँह की नरमी व साँसों की गर्मी पा कर हवस में अँधा होकर मैं तेज़ और ताकतवर झटके देने लगा था --- आज काकी की चूत के साथ साथ उनकी हल्के गुलाबी गोरे मुखरे को चोद लेना चाहता था.
‘आह्ह्ह्ह.... ऊम्म्म्हह आप्फ्ह्हह्हह्म्म्म..... गूंss गूंsss गूंsss गूंsss ह्ह्ह्हsss.’ काकी बस इतना ही कह पा रही थी.. कुछ ही क्षणों में उनकी मुँह के किनारों से लार टपकने लगा थे --- टपकने क्या, समझिए बहने लगा थे.
इस बीच, सुख की अतिरेकता में विभोर हो कर मैंने काकी के सिर पर हाथ रखा और उसके बालों को सहलाने लगा --- और सहलाते हुए उनके सिर को अच्छे से पकड़ लिया --- इससे बेचारी काकी के पास अपना मुँह थोड़ी देर के लिए हटा कर साँस लेने तक लिए भी अवसर नहीं बचा.
इसी तरह उनके मुँह को करीब पंद्रह मिनट तक चोदते चोदते आख़िरकार मैं अपने क्लाइमेक्स पर पहुँच गया...
‘फ़फ़’ से ढेर सारा वीर्य उगल दिया मेरे लंड बाबा ने --- काकी का पूरा मुँह भर गया --- रत्ती भर की भी जगह न बची --- इतना वीर्य निकला की निगल लेने के सिवा कोई चारा न था --- और बाकी तो अंतरा काकी के मुँह से बाहर निकल कर गले से होता हुआ उनकी भरी गोल चूचियों पर गिरने लगे --- उनका मुँह वीर्य के नमकीन स्वाद से भर गया था!
चेहरा देखने लायक था..
काकी तुरंत उठ कर अंदर वाशरूम की ओर भागी --- उनकी हालत देख कर मुझे हँसी आ गई --- बड़ा मज़ा आता है जब काकी सरीखी उम्र वाली औरत ऐसे व्यवहार करे तो!
करीब दस मिनट बाद काकी आई...
कपड़ों को व्यवस्थित कर चुकी थी --- बिखरे बाल भी ठीक कर ली थी...
चेहरे पर शर्म और होंठों पर मुस्कान लिए सोफ़े पर ठीक मेरे बगल में आ कर बैठ गई --- आँखें मिलाने से बच रही थी --- मिलाए भी तो कैसे --- पूरा माल जो चख लिया मेरा अभी थोड़ी देर पहले.
“क्या हुआ?” मैंने पूछा.
“कुछ नहीं.” धीरे से कहा उन्होंने.
अगले कुछ पलों तक हम दोनों ने कुछ नहीं कहा... मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी --- काकी को थोड़ा और छूने का मन कर रहा था --- थोड़ा और प्यार करने का मन कर रहा था --- लेकिन काकी तो अब ज्यादा कुछ बोल ही नहीं रही थी..
अंत में मैंने ही चुप्पी तोड़ी..
“अच्छा लगा काकी?”
“ह्म्म्म.”
“क्या ह्म्म्म... बोलो न काकी... प्लीज़..”
“अच्छा क्यों नहीं लगेगा?” काकी अब मेरी ओर देख कर मुस्कराते हुए बोली.
“सच में?”
“बिल्कुल सच.. मुझे तो पता ही नहीं था कि तू इतना बड़ा खिलाड़ी है.”
बड़ी ही कातिलाना मुस्कान मुस्कराती हुई काकी बोली.
मैं ख़ुशी से फूला न समाया... मेरी ड्रीम लेडी मेरी ऐसी तारीफ़ कर रही थी और इस तारीफ़ से मेरे अंडरवियर में फिर से हलचल होने लगी थी.
मैं दोबारा पूछा,
“आप सच कह रही हो काकी?”
“क्यों पूछ रहे हो? शक हो रहा है?”
इस बार काकी ने आँखों को ऐसी अंदाज़ में तिरछी कर के कहा कि मेरे सब्र का बाँध टूट गया --- लगभग उछलते हुए काकी के पास पहुँचा और बाहों में ले कर उन्हें चूमने लगा.
“अरररे ... क्या कर रहे हो?!”
“थोड़ा और करने दो काकी.”
“ओह्ह... राजू...बेटा, किया तो तुमने... अब.. और....ह्म्म्पफ्ह!”
काकी कुछ और बोले उससे पहले ही मैंने उनके होंठों को अपने होंठों में भर लिया. साला कौन ऐसी हसीन – तरीन माल छोड़ता है!
जी भर कर उनके होंठों को चूसा, गालों और गले को चूमा. पिन नहीं लगाई थी इस बार काकी --- इसलिए बड़ी सहजता से पल्लू को नीचे कर के दोबारा सभी हुक खोल कर ब्रा के ऊपर से उनके स्तनों को दबाने लगा. अभी इन नर्म गोलों का मज़ा ले ही रहा था कि
तभी वो हुआ जिसका मुझे डर था --- डोरबेल बज उठा.! ये बिल्कुल ऐसा था जैसे मानो किसी ने मेरे और अंतरा काकी के प्रखर प्रज्वलित कामाग्नि के ऊपर पानी गिरा दिया हो.
हालाँकि मैंने या काकी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी --- काकी अब भी आँखें बंद किए थी और मैं उनकी चूचियों को मसलता हुआ उनके बीच अपने चेहरे को रगड़ रहा था... उन मुलायम गोलाईयों में बस खोया हुआ था.
दूसरी बार घंटी बजी,
काकी अब थोड़ा हिली; हिली क्या बस ज़रा सा ‘उंह’ की. उनके ऐसा करते ही मुझे भी थोड़ा सा होश आया... अब तक इतना समझ में आ गया कि दरवाज़े पर कोई है.. मैं ऐसे बीच में ही; इतने में ही उठ जाने के मूड में बिल्कुल नहीं था. जल्दी से ब्रा को सामने से पकड़ कर थोड़ा और नीचे करके अपने मुँह को उनकी गहरी स्तनरेखा के और अंदर भरने की कोशिश करने लगा. अब तक उनकी जाँघों को सहलाने में लगे हाथ भी उनकी फूली हुई चूचियों पर जम गए थे और कभी बहुत धीमे तो कभी तनिक ज़ोर से दबा रहे थे.
एक बहुत ही अद्भुत सी फीलिंग आ रही थी...
मैं इस फीलिंग में और ज़्यादा खो जाना चाह रहा था.. पर....
पर, कमबख्त बाहर जो भी है इस समय वो साला जाने का नाम ही नहीं ले रहा... दो बार घंटी बजा लेने के कुछ देर बाद अचानक से उसने ज्यादा प्रेशर देकर घंटी बजाई और वो भी चार बार लगातार!
और साथ ही आवाज़ आई,
“माँ जी.”
किसी लड़की की आवाज़ सुनकर मैं यह सोच कर निश्चिन्त होने लगा था कि शायद आस पड़ोस की कोई लड़की होगी; जब कोई प्रत्युत्तर नहीं मिलेगा तो वापस चली जाएगी... लेकिन ये क्या?! काकी मेरे सिर को अपने स्तनों पर से उठाने लगी... घबराई और आतंकित स्वर में बोली,
“अररेरे...य..ये अभी कैसे.... बेटा, जल्दी... उठो.. उठो...”
मैं तो अपने होश ही नहीं सम्भाल पाया था अब तक.. तो शरीर कहाँ से सम्भालता? पर काकी के पास इतना समय नहीं था शायद; --- तभी तो, मुझे धक्का दे कर जल्दी से खड़ी हो गई और अपने कपड़ों को जल्दी जल्दी ठीक करने लगी. मैं अवाक हो कर उन्हें देखने लगा.. वो असहाय सा मुँह बना कर धीरे से ‘सॉरी’ बोली और अब तक अपने ब्लाउज के हुक लगा लेने के बाद अब अपने स्तनों के ऊपर साड़ी अच्छे से ले कर सब कुछ ढक रही थी --- सच कहूँ तो ये सीन देखने में मुझे बहुत मज़ा आया. चूचियों को ढक तो रही ही थी; इस बात का भी ध्यान रख रही थी कि क्लीवेज तक भी न दिखे. पता नहीं ऐसी क्या हो गया कि मुझे उनका इस तरह घबरा कर खुद सम्भालते देख कर भी एक अजीब सी उत्तेजना की लहर दौड़ गई शरीर में और लंड भी उमठने लगा. इससे पहले की काकी आगे बढ़े दरवाज़ा खोलने के लिए, मैं एक अंतिम किस के लिए अंतरा काकी की ओर बढ़ा पर काकी ने एकदम से मना कर दिया --- मैं इसपर थोड़ा झुँझला गया और उनसे पूछा,
“ओफ्फो... आखिर ऐसा क्या हो गया?”
काकी उसी घबराई अंदाज़ में धीमे स्वर में बोली,
“बहु है!”
मेरा तो जैसे दिमाग ही घूम गया.... “व्हाट?!”
काकी सिर ‘हाँ’ में हिला कर दरवाज़ा खोलने चली गई... इधर इससे पहले की मेरा दिमाग इस बात को अच्छे से समझ कर दिमाग में बैठाए... मुझे इस बात की चिंता होने लगी कि मैं अभी क्या करूँ --- तभी मेरा ध्यान प्लेट में रखे मिष्ठान्न पर गया...
उधर,
उस ओर कमरे में होती बातचीत मुझे सुनाई दे रही थी;
“क्या हुआ माँ जी... सो रही थीं आप?”
“अरे नहीं... वो राजू आया है न... उसी के लिए कुछ नाश्ता पानी देख रही थी.”
“ओह्ह! राजू भैया आए हैं? कब? अंदर हैं अभी?”
“हाँ.. अंदर है --- अभी थोड़ी ही देर पहले आया है.” काकी की आवाज़ सुन कर ही लगा की वो जबरदस्ती हँस – मुस्करा कर कहने की कोशिश कर रही है. मुझे उनकी घबराहट का आभास अभी भी हो रहा है.
पैरों की आवाज़ इसी कमरे की ओर आती सुनाई दी.
“नमस्ते भैया --- तो आखिर आपको हमारे गरीबखाने में आने की फुर्सत मिल ही गई.”
कमरे में घुसते ही प्रिया बोली.
उस समय मैं काजू वाली बर्फी प्रेम से मुँह में भर रहा था --- दोनों सास – बहु अंदर आएँगे ये तो पता ही था पर इतनी जल्दी --- मतलब कि कुछेक सेकंड्स में ही आ जाएँगे --- इस बात का बिल्कुल भी कोई अंदाज़ा नहीं था.
“हाँ.. वो बस....”
मेरी बात पूरी होने से पहले ही बहु प्रिया के पीछे से आती अंतरा काकी बोल पड़ी,
“अरे मत पूछ बेटा --- आज मार्किट गयी थी न --- बैग इतना भारी हो जाएगा ये नहीं सोची थी --- मेन मार्केट से तो किसी तरह निकल गई पर घर आने के रास्ते में बहुत दिक्कत हो गई --- भारी बैग और उठाया नहीं जा रहा था --- रुक कर ऑटो – रिक्शा वगैरह का इंतजार कर रही थी; तो ये पता नहीं कहाँ से आ गया --- न आव देखा न ताव; जानने भर की देरी थी की मेरे से बैग नहीं उठाया जा रहा है और घर जाना है --- झटपट बैग उठाया और यहाँ तक आ गया. अब जब हमारे घर आया ही इतने दिनों बाद तो फिर बिना कुछ खाए – खिलाए ऐसे ही थोड़ी जाने देती.”
‘बिना कुछ खाए – खिलाए ऐसे ही थोड़ी जाने देती’ इस लाइन को काकी इस अंदाज़ में मेरी ओर देखते हुए लाज से बोली कि कसम से दिल बाग़ बाग़ और लंड फुल टाइट हो गया.
मुझे जहाँ जिस काम के लिए जाना था वहाँ तो अब जाने का कोई मतलब नहीं रह गया क्योंकि पूरे एक घंटे की देर हो गई थी --- इसलिए जल्दबाजी का भी कोई फ़ायदा नहीं था अभी --- यही सब सोच कर मैंने प्रेम से मिठाई और नमकीन खाने में अपना ध्यान दिया और थोड़ी देर तक सास – बहु से जम कर बातें किया.
अंदर दूसरे कमरे में जाने से पहले बहु प्रिया ने धीरे से कहा,
“माँ जी के साथ तो मिल लिए आप; कभी हमसे भी मिलने आइए..”
यह कह कर हँसते हुए अंदर चली गई. काकी उस समय कुछ कदम दूर पानी पी रही थी --- बहु को हँस कर अंदर जाते और मुझे अवाक देख कर मुस्कराती हुई पास आकर बैठी --- पूछी,
“क्या बात है राजू; प्रिया क्या बोली?”
काकी के चेहरे को देख कर मैं भांप गया कि प्रिया का यूँ हँस कर मुझसे बात कर चले जाना काकी को ईर्ष्यालु बना रहा है --- ज़रूर काकी अपनी गदराई जवानी को बहु की छरहरी काया के सामने कमतर समझती है --- इसलिए ईर्ष्या – जलन उनके मन में घर कर रही है. मेरे साथ काकी का चक्कर तो बहुत समय पहले से है --- सिर्फ़ सेक्स नहीं हुआ है --- नयी नवेली छरहरी काया और शोख अदाओं वाली बहु के सामने कहीं मैं दिल न हार जाऊं और उन्हें छोड़ कर बहु के पीछे न पड़ जाऊं इसी बात की चिंता और डर काकी के मन – मस्तिष्क में है.
मेरे शैतानी दिमाग ने तुरंत इस बात को संदेहास्पद बना कर इससे फ़ायदा लेने का सोचा;
एक मीठी मुस्कान लिए बोला,
“अरे कुछ नहीं; वो मैं ये बर्फी खा रहा था --- बात करते समय थोड़ा सा शर्ट पर गिर गया तो वो बोली की क्या बच्चों जैसा खा रहे हैं. इसी बात पर वो हँस कर चली गई.”
जैसा की मैं चाह रहा था; वही हुआ --- काकी मेरे जवाब से संतुष्ट नहीं हुई --- बोली,
“बस? यही बात थी?”
“हाँ.”
“इसी बात पर वो हँस कर गई?”
“शायद उसे यह बात बड़ा मज़ेदार लगा होगा.”
मैं थोड़ा नादान बनते हुए बोला और प्लेट पर ज़रा सा नमकीन छोड़ कर उठ कर सीधे अंदर एक ओर स्थित वाशबेसिन में जा कर हाथ मुँह धोया और वापस आ कर बोला,
“अच्छा काकी अब चलता हूँ --- फ़िर आऊँगा.”
मेरे उत्तर से पनपा असंतुष्टि का भाव तो उनके मन में था ही; खुद को नार्मल दिखाते हुए पास आ कर बोली,
“अभी चले जाओगे?”
“हाँ काकी; कुछ और काम भी हैं.”
“क्या काम है?”
इस सवाल में ठीक वही बात थी जैसे कोई अपना बहुत करीबी किसी से पूरे अधिकार से सवाल करे....
सीधे न कह कर अंतरा काकी अपने हाव – भाव और बातों से ये साफ़ जताना चाह रही थी कि चाहे कुछ भी हो; वो मुझ पर किसी से भी अधिक अधिकार रखती है --- बहु प्रिया से तो कहीं अधिक.
“काम तो बहुत ज़रूरी है; बहुत पहले ही चला जाता --- लेकिन जा नहीं पाया.”
“क्यों?”
“कारण तो सिर्फ़ आप हो.”
कहते हुए मैंने अपने हाथ बढ़ा कर काकी को उनके कमर से पकड़ कर अपने पास खींच लिया --- ऐसे किसी हरकत के लिए काकी बिल्कुल तैयार नहीं थी --- तुरंत छटपटाने लगी और खुद को छुड़ाने की कोशिश करती हुई बोली,
“अरे क्या कर रहे हो राजू... बहु अंदर है... आ गई तो प्रॉब्लम हो जाएगी बहुत.”
उनका ये संघर्ष और घबराया चेहरा देख कर मुझे बहुत मज़ा आया --- ऐसे हालात में मुझे काकी बहुत प्यारी लगती है.
मैंने छोड़ा तो नहीं; उल्टे और कस कर पकड़ लिया --- उन्हें अपने और पास खींचा --- दोनों हाथों से काकी के कमर को दोनों साइड से पकड़ कर अच्छे से मसला थोड़ी देर --- फिर झुक कर उनके गर्दन के बायीं साइड पे बहुत प्रेम से चूमा; फिर साड़ी हटा कर उनकी क्लीवेज पर एक लम्बा चुम्बन लिया और धीरे से ‘आई लव यू’ कह कर वहाँ से चला गया.
*समाप्त*
‘आह..अह्हह्म्मप्प्फ्ह..’
इतनी ही आवाज़ निकली काकी की --- कुछ सेकंड लंड को वैसे ही रहने दिया मुँह में; थोड़ा सा निकाला, फ़िर एक और तगड़ा झटका देते हुए लंड को आधे से ज़्यादा उतार दिया काकी के गले में --- मारे दर्द से काकी तड़प उठी --- साँस लेना तो दूर ; उतने मोटे लंड को मुँह में रखने के लिए होंठों को ज़्यादा फ़ैला भी नहीं पा रही बेचारी --- और इधर अपने लंड पर काकी के मुँह की नरमी व साँसों की गर्मी पा कर हवस में अँधा होकर मैं तेज़ और ताकतवर झटके देने लगा था --- आज काकी की चूत के साथ साथ उनकी हल्के गुलाबी गोरे मुखरे को चोद लेना चाहता था.
‘आह्ह्ह्ह.... ऊम्म्म्हह आप्फ्ह्हह्हह्म्म्म..... गूंss गूंsss गूंsss गूंsss ह्ह्ह्हsss.’ काकी बस इतना ही कह पा रही थी.. कुछ ही क्षणों में उनकी मुँह के किनारों से लार टपकने लगा थे --- टपकने क्या, समझिए बहने लगा थे.
इस बीच, सुख की अतिरेकता में विभोर हो कर मैंने काकी के सिर पर हाथ रखा और उसके बालों को सहलाने लगा --- और सहलाते हुए उनके सिर को अच्छे से पकड़ लिया --- इससे बेचारी काकी के पास अपना मुँह थोड़ी देर के लिए हटा कर साँस लेने तक लिए भी अवसर नहीं बचा.
इसी तरह उनके मुँह को करीब पंद्रह मिनट तक चोदते चोदते आख़िरकार मैं अपने क्लाइमेक्स पर पहुँच गया...
‘फ़फ़’ से ढेर सारा वीर्य उगल दिया मेरे लंड बाबा ने --- काकी का पूरा मुँह भर गया --- रत्ती भर की भी जगह न बची --- इतना वीर्य निकला की निगल लेने के सिवा कोई चारा न था --- और बाकी तो अंतरा काकी के मुँह से बाहर निकल कर गले से होता हुआ उनकी भरी गोल चूचियों पर गिरने लगे --- उनका मुँह वीर्य के नमकीन स्वाद से भर गया था!
चेहरा देखने लायक था..
काकी तुरंत उठ कर अंदर वाशरूम की ओर भागी --- उनकी हालत देख कर मुझे हँसी आ गई --- बड़ा मज़ा आता है जब काकी सरीखी उम्र वाली औरत ऐसे व्यवहार करे तो!
करीब दस मिनट बाद काकी आई...
कपड़ों को व्यवस्थित कर चुकी थी --- बिखरे बाल भी ठीक कर ली थी...
चेहरे पर शर्म और होंठों पर मुस्कान लिए सोफ़े पर ठीक मेरे बगल में आ कर बैठ गई --- आँखें मिलाने से बच रही थी --- मिलाए भी तो कैसे --- पूरा माल जो चख लिया मेरा अभी थोड़ी देर पहले.
“क्या हुआ?” मैंने पूछा.
“कुछ नहीं.” धीरे से कहा उन्होंने.
अगले कुछ पलों तक हम दोनों ने कुछ नहीं कहा... मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी --- काकी को थोड़ा और छूने का मन कर रहा था --- थोड़ा और प्यार करने का मन कर रहा था --- लेकिन काकी तो अब ज्यादा कुछ बोल ही नहीं रही थी..
अंत में मैंने ही चुप्पी तोड़ी..
“अच्छा लगा काकी?”
“ह्म्म्म.”
“क्या ह्म्म्म... बोलो न काकी... प्लीज़..”
“अच्छा क्यों नहीं लगेगा?” काकी अब मेरी ओर देख कर मुस्कराते हुए बोली.
“सच में?”
“बिल्कुल सच.. मुझे तो पता ही नहीं था कि तू इतना बड़ा खिलाड़ी है.”
बड़ी ही कातिलाना मुस्कान मुस्कराती हुई काकी बोली.
मैं ख़ुशी से फूला न समाया... मेरी ड्रीम लेडी मेरी ऐसी तारीफ़ कर रही थी और इस तारीफ़ से मेरे अंडरवियर में फिर से हलचल होने लगी थी.
मैं दोबारा पूछा,
“आप सच कह रही हो काकी?”
“क्यों पूछ रहे हो? शक हो रहा है?”
इस बार काकी ने आँखों को ऐसी अंदाज़ में तिरछी कर के कहा कि मेरे सब्र का बाँध टूट गया --- लगभग उछलते हुए काकी के पास पहुँचा और बाहों में ले कर उन्हें चूमने लगा.
“अरररे ... क्या कर रहे हो?!”
“थोड़ा और करने दो काकी.”
“ओह्ह... राजू...बेटा, किया तो तुमने... अब.. और....ह्म्म्पफ्ह!”
काकी कुछ और बोले उससे पहले ही मैंने उनके होंठों को अपने होंठों में भर लिया. साला कौन ऐसी हसीन – तरीन माल छोड़ता है!
जी भर कर उनके होंठों को चूसा, गालों और गले को चूमा. पिन नहीं लगाई थी इस बार काकी --- इसलिए बड़ी सहजता से पल्लू को नीचे कर के दोबारा सभी हुक खोल कर ब्रा के ऊपर से उनके स्तनों को दबाने लगा. अभी इन नर्म गोलों का मज़ा ले ही रहा था कि
तभी वो हुआ जिसका मुझे डर था --- डोरबेल बज उठा.! ये बिल्कुल ऐसा था जैसे मानो किसी ने मेरे और अंतरा काकी के प्रखर प्रज्वलित कामाग्नि के ऊपर पानी गिरा दिया हो.
हालाँकि मैंने या काकी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी --- काकी अब भी आँखें बंद किए थी और मैं उनकी चूचियों को मसलता हुआ उनके बीच अपने चेहरे को रगड़ रहा था... उन मुलायम गोलाईयों में बस खोया हुआ था.
दूसरी बार घंटी बजी,
काकी अब थोड़ा हिली; हिली क्या बस ज़रा सा ‘उंह’ की. उनके ऐसा करते ही मुझे भी थोड़ा सा होश आया... अब तक इतना समझ में आ गया कि दरवाज़े पर कोई है.. मैं ऐसे बीच में ही; इतने में ही उठ जाने के मूड में बिल्कुल नहीं था. जल्दी से ब्रा को सामने से पकड़ कर थोड़ा और नीचे करके अपने मुँह को उनकी गहरी स्तनरेखा के और अंदर भरने की कोशिश करने लगा. अब तक उनकी जाँघों को सहलाने में लगे हाथ भी उनकी फूली हुई चूचियों पर जम गए थे और कभी बहुत धीमे तो कभी तनिक ज़ोर से दबा रहे थे.
एक बहुत ही अद्भुत सी फीलिंग आ रही थी...
मैं इस फीलिंग में और ज़्यादा खो जाना चाह रहा था.. पर....
पर, कमबख्त बाहर जो भी है इस समय वो साला जाने का नाम ही नहीं ले रहा... दो बार घंटी बजा लेने के कुछ देर बाद अचानक से उसने ज्यादा प्रेशर देकर घंटी बजाई और वो भी चार बार लगातार!
और साथ ही आवाज़ आई,
“माँ जी.”
किसी लड़की की आवाज़ सुनकर मैं यह सोच कर निश्चिन्त होने लगा था कि शायद आस पड़ोस की कोई लड़की होगी; जब कोई प्रत्युत्तर नहीं मिलेगा तो वापस चली जाएगी... लेकिन ये क्या?! काकी मेरे सिर को अपने स्तनों पर से उठाने लगी... घबराई और आतंकित स्वर में बोली,
“अररेरे...य..ये अभी कैसे.... बेटा, जल्दी... उठो.. उठो...”
मैं तो अपने होश ही नहीं सम्भाल पाया था अब तक.. तो शरीर कहाँ से सम्भालता? पर काकी के पास इतना समय नहीं था शायद; --- तभी तो, मुझे धक्का दे कर जल्दी से खड़ी हो गई और अपने कपड़ों को जल्दी जल्दी ठीक करने लगी. मैं अवाक हो कर उन्हें देखने लगा.. वो असहाय सा मुँह बना कर धीरे से ‘सॉरी’ बोली और अब तक अपने ब्लाउज के हुक लगा लेने के बाद अब अपने स्तनों के ऊपर साड़ी अच्छे से ले कर सब कुछ ढक रही थी --- सच कहूँ तो ये सीन देखने में मुझे बहुत मज़ा आया. चूचियों को ढक तो रही ही थी; इस बात का भी ध्यान रख रही थी कि क्लीवेज तक भी न दिखे. पता नहीं ऐसी क्या हो गया कि मुझे उनका इस तरह घबरा कर खुद सम्भालते देख कर भी एक अजीब सी उत्तेजना की लहर दौड़ गई शरीर में और लंड भी उमठने लगा. इससे पहले की काकी आगे बढ़े दरवाज़ा खोलने के लिए, मैं एक अंतिम किस के लिए अंतरा काकी की ओर बढ़ा पर काकी ने एकदम से मना कर दिया --- मैं इसपर थोड़ा झुँझला गया और उनसे पूछा,
“ओफ्फो... आखिर ऐसा क्या हो गया?”
काकी उसी घबराई अंदाज़ में धीमे स्वर में बोली,
“बहु है!”
मेरा तो जैसे दिमाग ही घूम गया.... “व्हाट?!”
काकी सिर ‘हाँ’ में हिला कर दरवाज़ा खोलने चली गई... इधर इससे पहले की मेरा दिमाग इस बात को अच्छे से समझ कर दिमाग में बैठाए... मुझे इस बात की चिंता होने लगी कि मैं अभी क्या करूँ --- तभी मेरा ध्यान प्लेट में रखे मिष्ठान्न पर गया...
उधर,
उस ओर कमरे में होती बातचीत मुझे सुनाई दे रही थी;
“क्या हुआ माँ जी... सो रही थीं आप?”
“अरे नहीं... वो राजू आया है न... उसी के लिए कुछ नाश्ता पानी देख रही थी.”
“ओह्ह! राजू भैया आए हैं? कब? अंदर हैं अभी?”
“हाँ.. अंदर है --- अभी थोड़ी ही देर पहले आया है.” काकी की आवाज़ सुन कर ही लगा की वो जबरदस्ती हँस – मुस्करा कर कहने की कोशिश कर रही है. मुझे उनकी घबराहट का आभास अभी भी हो रहा है.
पैरों की आवाज़ इसी कमरे की ओर आती सुनाई दी.
“नमस्ते भैया --- तो आखिर आपको हमारे गरीबखाने में आने की फुर्सत मिल ही गई.”
कमरे में घुसते ही प्रिया बोली.
उस समय मैं काजू वाली बर्फी प्रेम से मुँह में भर रहा था --- दोनों सास – बहु अंदर आएँगे ये तो पता ही था पर इतनी जल्दी --- मतलब कि कुछेक सेकंड्स में ही आ जाएँगे --- इस बात का बिल्कुल भी कोई अंदाज़ा नहीं था.
“हाँ.. वो बस....”
मेरी बात पूरी होने से पहले ही बहु प्रिया के पीछे से आती अंतरा काकी बोल पड़ी,
“अरे मत पूछ बेटा --- आज मार्किट गयी थी न --- बैग इतना भारी हो जाएगा ये नहीं सोची थी --- मेन मार्केट से तो किसी तरह निकल गई पर घर आने के रास्ते में बहुत दिक्कत हो गई --- भारी बैग और उठाया नहीं जा रहा था --- रुक कर ऑटो – रिक्शा वगैरह का इंतजार कर रही थी; तो ये पता नहीं कहाँ से आ गया --- न आव देखा न ताव; जानने भर की देरी थी की मेरे से बैग नहीं उठाया जा रहा है और घर जाना है --- झटपट बैग उठाया और यहाँ तक आ गया. अब जब हमारे घर आया ही इतने दिनों बाद तो फिर बिना कुछ खाए – खिलाए ऐसे ही थोड़ी जाने देती.”
‘बिना कुछ खाए – खिलाए ऐसे ही थोड़ी जाने देती’ इस लाइन को काकी इस अंदाज़ में मेरी ओर देखते हुए लाज से बोली कि कसम से दिल बाग़ बाग़ और लंड फुल टाइट हो गया.
मुझे जहाँ जिस काम के लिए जाना था वहाँ तो अब जाने का कोई मतलब नहीं रह गया क्योंकि पूरे एक घंटे की देर हो गई थी --- इसलिए जल्दबाजी का भी कोई फ़ायदा नहीं था अभी --- यही सब सोच कर मैंने प्रेम से मिठाई और नमकीन खाने में अपना ध्यान दिया और थोड़ी देर तक सास – बहु से जम कर बातें किया.
अंदर दूसरे कमरे में जाने से पहले बहु प्रिया ने धीरे से कहा,
“माँ जी के साथ तो मिल लिए आप; कभी हमसे भी मिलने आइए..”
यह कह कर हँसते हुए अंदर चली गई. काकी उस समय कुछ कदम दूर पानी पी रही थी --- बहु को हँस कर अंदर जाते और मुझे अवाक देख कर मुस्कराती हुई पास आकर बैठी --- पूछी,
“क्या बात है राजू; प्रिया क्या बोली?”
काकी के चेहरे को देख कर मैं भांप गया कि प्रिया का यूँ हँस कर मुझसे बात कर चले जाना काकी को ईर्ष्यालु बना रहा है --- ज़रूर काकी अपनी गदराई जवानी को बहु की छरहरी काया के सामने कमतर समझती है --- इसलिए ईर्ष्या – जलन उनके मन में घर कर रही है. मेरे साथ काकी का चक्कर तो बहुत समय पहले से है --- सिर्फ़ सेक्स नहीं हुआ है --- नयी नवेली छरहरी काया और शोख अदाओं वाली बहु के सामने कहीं मैं दिल न हार जाऊं और उन्हें छोड़ कर बहु के पीछे न पड़ जाऊं इसी बात की चिंता और डर काकी के मन – मस्तिष्क में है.
मेरे शैतानी दिमाग ने तुरंत इस बात को संदेहास्पद बना कर इससे फ़ायदा लेने का सोचा;
एक मीठी मुस्कान लिए बोला,
“अरे कुछ नहीं; वो मैं ये बर्फी खा रहा था --- बात करते समय थोड़ा सा शर्ट पर गिर गया तो वो बोली की क्या बच्चों जैसा खा रहे हैं. इसी बात पर वो हँस कर चली गई.”
जैसा की मैं चाह रहा था; वही हुआ --- काकी मेरे जवाब से संतुष्ट नहीं हुई --- बोली,
“बस? यही बात थी?”
“हाँ.”
“इसी बात पर वो हँस कर गई?”
“शायद उसे यह बात बड़ा मज़ेदार लगा होगा.”
मैं थोड़ा नादान बनते हुए बोला और प्लेट पर ज़रा सा नमकीन छोड़ कर उठ कर सीधे अंदर एक ओर स्थित वाशबेसिन में जा कर हाथ मुँह धोया और वापस आ कर बोला,
“अच्छा काकी अब चलता हूँ --- फ़िर आऊँगा.”
मेरे उत्तर से पनपा असंतुष्टि का भाव तो उनके मन में था ही; खुद को नार्मल दिखाते हुए पास आ कर बोली,
“अभी चले जाओगे?”
“हाँ काकी; कुछ और काम भी हैं.”
“क्या काम है?”
इस सवाल में ठीक वही बात थी जैसे कोई अपना बहुत करीबी किसी से पूरे अधिकार से सवाल करे....
सीधे न कह कर अंतरा काकी अपने हाव – भाव और बातों से ये साफ़ जताना चाह रही थी कि चाहे कुछ भी हो; वो मुझ पर किसी से भी अधिक अधिकार रखती है --- बहु प्रिया से तो कहीं अधिक.
“काम तो बहुत ज़रूरी है; बहुत पहले ही चला जाता --- लेकिन जा नहीं पाया.”
“क्यों?”
“कारण तो सिर्फ़ आप हो.”
कहते हुए मैंने अपने हाथ बढ़ा कर काकी को उनके कमर से पकड़ कर अपने पास खींच लिया --- ऐसे किसी हरकत के लिए काकी बिल्कुल तैयार नहीं थी --- तुरंत छटपटाने लगी और खुद को छुड़ाने की कोशिश करती हुई बोली,
“अरे क्या कर रहे हो राजू... बहु अंदर है... आ गई तो प्रॉब्लम हो जाएगी बहुत.”
उनका ये संघर्ष और घबराया चेहरा देख कर मुझे बहुत मज़ा आया --- ऐसे हालात में मुझे काकी बहुत प्यारी लगती है.
मैंने छोड़ा तो नहीं; उल्टे और कस कर पकड़ लिया --- उन्हें अपने और पास खींचा --- दोनों हाथों से काकी के कमर को दोनों साइड से पकड़ कर अच्छे से मसला थोड़ी देर --- फिर झुक कर उनके गर्दन के बायीं साइड पे बहुत प्रेम से चूमा; फिर साड़ी हटा कर उनकी क्लीवेज पर एक लम्बा चुम्बन लिया और धीरे से ‘आई लव यू’ कह कर वहाँ से चला गया.
*समाप्त*