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Fantasy अंतरा काकी (लघु कथा)
#10
मेरा दायाँ हाथ जो अब तक अंतरा काकी के बाएँ हाथ को मोड़ कर पकड़े हुए था; उसे छोड़ दिया और अब अपने उस हाथ को काकी के सिर के पीछे से लाकर उनके गाल को सहलाने लगा और दूसरे से उनकी स्तनों को हल्के दबाव से दबाने लगा... मैं दबाने भी ऐसे लगा जिससे की हरेक दबाव से उनकी स्तनरेखा और अधिक लंबी और गहरी हो जाए. मुझे ऐसी हरकत करने और इससे होने वाले परिणाम को देखने में हमेशा से ही एक परम आनंद मिलता रहा है.

 
मैं अब काकी के पैरों को सहलाते हुए हाथ को हल्के दबाव से ऊपर उठाने लगा .... इससे उनकी साड़ी भी साथ में ऊपर उठने लगी... उठते-उठते जांघ तक आ गई... मैं अब भी उनके गालों और होंठों को चूम और काट रहा था.. मन तो बहुत कर रहा था कि अब ब्लाउज कप्स से ऊपर निकले उनके भरे स्तनों के ऊपरी अंशों को सहलाऊँ, चूमूँ  और काटूँ... उनके स्तनरेखा में अपना मुँह डाल कर उसकी नरमाहट का सुखद अहसास लूँ.. पर रह रह कर एक संदेह बार बार उठ रहा था कि कहीं उनके चेहरे को छोड़ कर जैसे ही मैं उनके शरीर के दूसरे अंगों पर ध्यान देने जाऊं; वैसे ही उनकी उत्तेजना समाप्त हो जाए.. और मुझे आगे बढ़ने ही न दे.
 
 
संवेदनशील अंगों के साथ छेड़छाड़ बढ़ते ही काकी मस्त हो उठी और मेरे सिर को बालों सहित कस कर पकड़ कर अपने उभारों पर दबाने लगी... नरमी, गर्मी और महक; तीनों से मेरा मन - प्राण सराबोर हो गया. हाथ अब भी उनकी नर्म मांसल जाँघों पर फ़िसल रहा था.
 
काकी की बदन की नरमाहट ने मुझे मदहोशी की गहराईयों में डाल दिया था --- इतना की मैं अब स्तनरेखा तक सीमित नहीं रहना चाहा --- मन ने स्वयं ही ये दृढ़ संकल्प कर लिया कि आज राजू को; यानि मुझे काकी के इस भरे बदन का रस भोगना ही भोगना है. काकी की ओर देखा. उनकी आँखें बंद और चेहरे से वासना टपक रही है. होंठों की कंपकंपाहट साफ़ बता रही है कि अभी जो कुछ भी हो रहा है --- उन्हें इससे भी अधिक चाहिए. जो अल्प प्रतिरोध शुरू में देखा गया था; उसकी जगह अब उनका रोम रोम हर्ष और आनंद से पुलकित हो रहा है. मैंने उनकी इस स्थिति का पूरा लाभ उठाने का सोच लिया --- ऐसी परिस्थिति रोज़ रोज़ नहीं आती; और अभी जो हो रहा है उसका साफ़ मतलब ये है कि “लोहा गरम है... हथौड़ा मार दो”.
 
दिमाग में ये विचार आते ही तुरंत सम्भल कर बैठा और बड़े आहिस्ते से ब्लाउज के हुक खोलने लगा. जैसे जैसे मैं एक एक कर के हुक खोलता गया; वैसे वैसे काकी की डीप क्लीवेज धीरे धीरे मेरी उत्सुक आँखों और लालची मन के आगे दृश्यमान होता गया. कुछ देर तक जी भर कर देखने के बाद अब ब्रा में कैद काकी के उन नर्म, मुलायम, गुदाज़ गोलाईयों पर झपट पड़ा --- पागलों की तरह चूमना और दबाना शुरू कर दिया. ज्यादा समय नहीं लगा मुझे काकी के सुंदर अनमोल रत्नों को उस लाल झीनी अन्तः वस्त्र के कैद से उन्मुक्त करने में.
 

दोनों के बाहर आते ही उन्हें अपने हाथों में लपकने में देर नहीं किया --- आखिर कब सिर्फ़ ऊपर से ही थोड़ा थोड़ा कर के मज़े लेता...
 
दो सख्त हथेलियों के अपने सुकोमल वक्षों पर पड़ते दबाव से निःसंदेह कसमसा गई थी अंतरा काकी. इतनी देर में काकी ये तो निश्चित ही समझ गई कि उनके  व उनके स्तनों के साथ यूँ खिलवाड़ करने वाला ये लड़का आयु से भले छोटा हो उनसे पर अनारी बिल्कुल नहीं है --- क्योंकि जिस अनुपम कलात्मक ढंग से मेरे  हाथ और ऊँगलियाँ पूरे स्तनों के क्षेत्रफल पर गोल गोल घूमते हुए उनके निप्पल को छेड़ रहे हैं --- वो कोई मंझा हुआ खिलाड़ी ही हो सकता है.

विरोध-प्रतिरोध तो इस काम क्रीड़ा के शुरू होते ही धीरे धीरे कम पड़ने लगे थे काकी के पर अब उनके बेचैनी से बदलते करवटों से ऐसा प्रतीत होने लगा की रहा सहा बाँध भी टूट कर; उसके जगह एक सुकोमल, निर्दोष सा समर्पण का भाव जन्म लेने लगा है.
 
ब्रा कप्स को नीचे कर चूचियों को निकाल लेने से वो और भी अधिक सेक्सी लगने लगी है.   चूचियों को सख्ती से पकड़ कर मसलते हुए नीचे झुका और काकी की नाभि में किस किया. आह! कितना मुलायम है काकी का पेट... बिल्कुल मक्खन!! एक तो साफ़, श्वेतवर्ण पेट और दूजे कमर के आस पास जमी हल्की चर्बी के कारण पेट और भी अधिक मुलायम हो गया है. खुद को रोक नहीं पाया उनकी मखमली सी पेट को बारम्बार चूमने से --- साथ ही अपने चेहरे को पूरे पेट में रगड़ने लगा.

एक ही समय पर हो रहे दो हरकतों से काकी तड़प उठी --- ऐसे उछल पड़ी मानो पूरे शरीर में गुदगुदी सी दौड़ गई हो --- बहुत कुछ होने लगा था उनके तन बदन में.

काम पीड़ा से तो पहले से ही पीड़ित हो रही थी बेचारी --- और अब यह पूरा उपक्रम!

उनकी नाभि को चूमते हुए मेरे वो दोनों हाथ कभी उनकी चूचियों को नीचे से ऊपर की ओर उठा कर अच्छे से मसलते, तो कभी मसलते हुए नीचे आकर  कमर तक पहुँचते और थोड़ी देर वहां गोल गोल घूमने के बाद थोड़ा तिरछा हो कर थोड़ा और नीचे बढ़ते --- साड़ी के ऊपर से ही चूत के ठीक ऊपर तक पहुँचते और दो ऊँगलियों से हल्का प्रेशर दे कर एक ऊँगली को दबाए ; दूसरी ऊँगली को उसी तरह दबाए रख कर धीरे धीरे उस हिस्से को गोल गोल घूमाते हुए चूत के आसपास के हिस्से पर दबाव बढ़ाता...

मैंने नाभि को चूमना - चाटना रोक कर अपना सिर उठा कर काकी की ओर देखा; उनका चेहरा पसीने भीगने लगा था जोकि संभवतः उनकी स्त्रीसुलभ उत्तेजना वाली गर्मी के कारण हो सकता है.
 
काकी के लाल हो चुके सुडोल स्तन मेरे चेहरे के ऊपर लटकते हुए उन्हें चूसने को आमंत्रित कर रहे थे --- मुझसे रहा नहीं गया और एक झटके में एक निप्पल को मुँह में भरकर ज़ोर से चूसने लगा --- इससे काकी और अधिक उत्तेजित हो उठी.
 
कामाग्नि अब नस नस में सुलगने लगी थी.
 
दीवार घड़ी की ओर नज़र गई मेरी --- बहुत समय बीत गया था अब तक --- काकी के अनुसार, उनकी बहु भी मार्किट की ओर ही गई हुई है --- कभी भी लौट सकती है --- अगर मैंने और देर किया तो शायद आज काकी को भोग नहीं पाऊंगा --- ये विचार दिमाग में आते ही मैं तुरंत फाइनल एक्शन की ओर ध्यान दिया.
 
बेल्ट खोला...
 
पैंट और अंडरवियर उतार कर सोफे के एक ओर रख दिया..
 
काकी अधखुली आँखों से मुझे ये सब करती हुई देख रही थी --- होंठों में वासनायुक्त मुस्कान लिए.
 
मैं अपने सख्त हो चुके लंड को सहलाता हुआ काकी के समीप आया और दोनों टाँगें उठाते हुए साड़ी को पेटीकोट सहित उनके कमर तक चढ़ा दिया --- उनकी काली पैंटी नज़र आई --- गोरे जाँघों में काली पैंटी क्या गज़ब ढा रही थी --- कोई और समय तो शायद मैं इस मनोरम दृश्य का नयनसुख भी लेता और वर्णन भी करता --- परन्तु समय की कमी थी --- कमी क्या थी; सच कहा जाए तो समय का ही पता नहीं था फ़िलहाल तो --- इसलिए पैंटी-दर्शन का प्रोग्राम किसी और दिन करने का सोच कर मैंने एक झटके में उनकी पैंटी उतार कर एक ओर फेंक दिया --- हाँ, फेंकने से पहले एकबार पैंटी में योनि वाले जगह को बहुत अच्छे से सूंघा --- सूंघते हुए देखा, काकी शर्म से लाल हो रही है.
 
अब तक काकी की नज़र मेरे हिलते छोटे भाई पर चली गई थी --- और उसे देखते ही वासना के भंवर में खोने लगी थी.
 
मैं अब ज़मीन पर घुटनों के बल झुका और चेहरे को ले गया सीधे काकी की जाँघों की गहराईयों में....
 
वाह! वो रहा --- वो रहा उनकी गुलाबी चूत --- अद्वितीय! अप्रतिम गुलाबी दृश्य!! 

बेसुध सा उस प्राकृतिक लुभावनी चीज़ को कुछ देर देखने के बाद स्वतः ही एक वहशी मुस्कान मेरे अधरों पर खेल गया --- चूत पर झुकता चला गया मैं --- अपने नाक को बहुत पास ले जाकर चूत को सूंघा ---- पसीने और यौनरस मिश्रित एक अजीब सी गंध आ रही थी उस गुलाबी कचौड़ी जैसी जगह से --- पर मेरे चेहरे पर ऐसे भाव रेखाएं बनने लगे मानो मैंने कोकेन से भी ज़्यादा नशे वाली किसी चीज़ का स्वाद ले लिया है --- एकबार फ़िर झुका चूत पर और इस बार अपनी जीभ निकाल कर उसके अग्रभाग से चूत के एक सिरे पर रखते हुए चूत की रेखा के किनारों तक दौड़ाया...

“आआऊऊऊ!”   काकी सीत्कार उठी.

कुछ देर ऐसे ही जीभ को चूत के किनारों के चारों ओर घूमा घूमा कर स्वाद लेने के बाद अपनी जीभ को चूत के अंदर गहराई तक धकेला..

ऐसा करते ही,

अंतरा काकी के हाथ नीचे हो कर मेरे सिर के बालों को कस कर पकड़ लिए और चूत की ओर और दबाने लगे.

इधर मैं भी उसके माँसल, मोटे जांघ वाले पैरों को थोड़ा और फैला कर अपना मुँह और अधिक अंदर कर लिया और उनकी चूत को बेतहाशा चाटने लगा --- उनकी चूत के हर कोने को चाटते हुए उनको यौनतृप्ति की एक अलग ही संसार में ले जा रहा था.

मेरे ऐसे हरेक हरकत पर अंतरा काकी ज़ोरों से कराहें भर रही थीं--- इस बात से बिल्कुल बेपरवाह --- कि उनकी ये आहें --- ये कराहें बाहर भी सुनाई दे सकती हैं...
 
आगे बढ़ने की बारी आ गई थी...
 
मैं उठ कर लंड को उनकी चूत के मुहाने पर सेट किया और कुछेक बार अंदर बाहर करने के बाद धीरे धीरे अंदर घुसाने लगा...
 
“आह्ह!!”   इस बार काकी दर्द से कराह उठी...
 
कुछ सेकंड तक लंड को वैसे ही रखने के बाद मैंने धीरे धीरे कमर हिलाने लगा...
 
चुदाई की गति बढ़ते ही गीली चूत के बावजूद भी काकी को थोड़ा दर्द का अहसास होने लगा --- पर --- मीठा..!

ख़ुद पे नियंत्रण न रख पाने के कारण काकी धीमे स्वर में कराहने लगी,
 
“आआआह्हह्ह्ह्हsssssss
 
काकी की स्वागत करती योनि में अपने लंड को और बलपूर्वक धक्के मारते हुए, चूत की गहराईयों में दबाया और फ़िर उनके बालों को सहलाते हुए पूछा,

“क्या हुआ काकी, दर्द हो रहा है ??”

काकी कुछ बोली नहीं; होंठ खोले बिना धीरे से ‘अम्म्म’ की आवाज़ की.

उनको चूमते हुए बोला,

“आज थोड़ा सा सह लो --- मेरे लिए.”   कह कर फिर उनकी ओर प्यार से देखा और उनकी उत्तर की प्रतीक्षा करने लगा....

पर काकी को होश कहाँ --- वह तो बेचारी यौन तृप्ति की अनंत सागर में गोते लगा रही थी --- सिवाय मुझे एक चुम्बन देने और मेरे पीठ को सख्ती से पकड़ कर अपने बदन से कस कर लगाने के अलावा कुछ करने की सुध नहीं रही उन्हें.

उनका कुछ न कहना मुझे एक संकेत लगा कि शायद ऐसी अवस्था में बातों में समय गँवाने से अच्छा है सिर्फ़ काम और आनंद का उपभोग किया जाए.. इसलिए अगले कुछ पल बेरहमी से धक्के पर धक्के लगाता रहा और उन धक्कों के चोट को बर्दाश्त न कर पाने की वजह से काकी चिहुंक कर, मदमस्त अंदाज़ में और भी अधिक मादक स्वर में कराहने लगी,

आआआआsssssss.... आआहह”
 
काकी की प्रत्येक कराह मेरे लिए पॉवर बूस्टर का काम कर रही थी --- वो जितना कराहती मैं उतना ही तेज़ी से धक्के लगाता... पूरा कमरा ‘आह आह’ और ‘ठप ठप’ की आवाज़ से गूँजने लगा था.
 
कुछ देर लगातार ऐसे ही चुदाई चलते रहने के कारण काकी की चूत पनियाने लगी थी; मैं भी क्लाइमेक्स की ओर पहुँचने लगा था.. लेकिन इन होंठों की गहराईयों में झड़ने का मेरा कोई इरादा न था --- मैं तो ऊपर के होंठों में झड़ने का कई दिनों से तमन्नाई था ---- वो भी इसी अंतरा काकी के.
 
जब मेरा अंग और भी अधिक सख्त हो गया और ये समझ में आ गया कि मैं अब किसी भी पल झड़ सकता हूँ; तो मैं चुदाई रोकते हुए झट से लंड निकाल कर खड़ा हो गया.. इस अप्रत्याशित हरकत के लिए काकी रत्ती भर भी प्रस्तुत नहीं थी -- इसलिए मेरे ऐसा करते ही आँखें बड़ी बड़ी कर के हतप्रभ सा मुझे देखने लगी..
 
कुछ कहने के लिए मुँह खोली ही थी कि मैंने उनका हाथ पकड़ कर पहले तो सीधा कर के बैठाया फिर लगभग खींचते हुए; हल्का बल प्रयोग कर के उन्हें ज़मीन पर घुटनों के बल बिठा दिया.
 
काकी पूरा सहयोग की --- न कुछ पूछी --- न ही झुँझलाई --- बस, जैसा जैसा मैं करता गया वो करती गई..
 
टेबल फैन के तेज़ चलने के बाद भी काकी को पसीना आ रहा था; खास कर माथे और स्तनों के ऊपरी हिस्सों पर --- उन्हें पसीना आ रहा था और उनकी सांसें तेज़ी से चल रही थीं, जिससे उनके भारी स्तन हर सांस के साथ ऊपर-नीचे हो रहे थे..
 
उनके चेहरे से कुछ इंच की दूरी बना कर, मैं बड़े प्रेम और बेशर्मी से अपने लंड को सहला रहा था --- मैंने उनके पूरी तरह गोल और भरपूर स्तनों, उनकी गहरी नाभि और लगातार चुदाई और चर्बी के कारण पेट और कमर के आसपास पसीने से गीला हुआ साड़ी देखकर अपने होंठों पर जीभ फेरा... अब तक अपने चूत में मेरे अंग को लेने वाली काकी ने जब ठीक अपने सामने इसे अच्छे से देखा तो मेरे इस मोटे, मर्दाना छड़ को देखते ही उनका मुंह सहज स्वाभाविक रूप से खुल गया!  मेरा लंड पूरे शान और गर्व से तना हुआ था और नसें बाहर निकली हुई थीं, जो इसके स्वास्थ्य की सीमा को दर्शा रही थी.. काकी विस्मय से एकटक लंड को घूरने लगी थी.
 
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RE: अंतरा काकी - by The_Writer - 21-05-2021, 02:51 PM
RE: अंतरा काकी - by Yondu - 21-05-2021, 03:38 PM
RE: अंतरा काकी - by The_Writer - 21-05-2021, 08:53 PM
RE: अंतरा काकी - by The_Writer - 21-05-2021, 08:54 PM
RE: अंतरा काकी - by Auntychod - 21-05-2021, 03:42 PM
RE: अंतरा काकी - by The_Writer - 21-05-2021, 08:54 PM
RE: अंतरा काकी - by Himanshuty - 22-05-2021, 06:07 PM
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RE: अंतरा काकी - by Himanshuty - 22-05-2021, 09:38 PM
RE: अंतरा काकी - by The_Writer - 22-05-2021, 09:49 PM



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