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Fantasy अंतरा काकी (लघु कथा)
#2
अंतरा काकी
 
“अरे कहाँ जा रहा है --- ये तो पीता जा!”
 
पीछे से मम्मी की आवाज़ आई; बहुत ज़ोर से बोली थी --- बोले भी क्यों न --- मैं तो अब तक घर के मेन दरवाज़े से बाहर निकल चुका था...
 
“बाद में पी लूँगा.. अभी जा रहा हूँ --- लेट हो जाएगा.”
 
मैं भी ऊँची आवाज़ में बोल कर तेज़ क़दमों से चलते हुए बाहर सड़क तक आ पहुँचा. 
 
अभी कुछ ही दूर गया था कि रास्ते में अंतरा काकी मिल गई.
 
देखा, माथे और गले में पसीना लिए इधर उधर बेसब्री से देख रही है. उनके पैरों के पास ही एक बड़ा थैला है जिसे देख कर ही साफ समझा जा सकता है की इसमें काफ़ी सामान भरा हुआ है. समझते देर नहीं लगी की थैला निश्चित ही काकी से उठाए नहीं उठ रहा है और इसलिए इसे रास्ते के किनारे रख कर किसी रिक्शा या ऑटो का इंतज़ार कर रही है.
 
पर इस तपती गर्मी में तुरंत कोई सवारी गाड़ी मिलेगी; ऐसी कोई सम्भावना तो नहीं दिखी मुझे.
 
अपने मंजिल पर आगे निकल जाने वाला था कि अचानक से मन में एक विचार जागा. गलत का पता नहीं लेकिन मुझे बहुत सही लगा. काकी की ओर देखा... हैरान परेशान सी वो इधर उधर सड़क के दोनों छोर को देखे जा रही है.
 
मन ही मन सोचा,
 
‘हम्म.. मदद तो चाहिए इन्हें.. साथ में अपना भी अगर कुछ हो जाए. हाहाहा’
 
तुरंत ही एक छोटा सा प्लान बनाया और पहुँच गया काकी के पास.
 
अंतरा काकी की आयु मुश्किल से 45-46 वर्ष होगी... या शायद उससे एक दो साल कम... पहले मैं उन्हें आंटी कह कर बुलाया करता था लेकिन जब से उनके बेटे सूरज की शादी हुई.. शादी हुई भी बहुत जल्दी थी... तब से मैं और मेरे ही दोस्त; जोकि मेरे ही मोहल्ले के निठल्ले लड़के हैं; सब मिल कर अंतरा आंटी को काकी कह कर बुलाने लगे थे.... क्योंकि हम लड़कों का मानना था की अगर इतनी जल्दी इस लौंडे की शादी इसलिए हो रही है तो इसका मतलब यही हुआ कि अब आंटी बूढी हो रही है. उम्र हो रही है... घर का काम काज नहीं सम्भाल पा रही; इसलिए बहु ला रही है.  दूसरे लड़कों ने तो फिर भी कुछ समय बाद काकी कहना छोड़ कर आंटी कहना शुरू कर दिया पर मैं नहीं बदला. मेरी और सूरज की अच्छी जमती थी उसकी शादी से पहले तक. शादी हो जाने के बाद उसे काम काज में व्यस्त हो जाना पड़ा और हमारी दोस्ती भी पहले वाली नहीं रही.. लेकिन हमारे घरों में इसका कोई फर्क नहीं पड़ा. अंतरा आंटी के साथ मेरा बहुत पहले से एक ख़ास रिश्ता रहा है. आंटी के पास मैं आज भी कोई भी ज़रूरत होने पर पहुँच जाता हूँ.. और अगर कोई ज़रूरत न भी हो तो भी.. ऐसा क्यों.. ये आप सबको आगे पता चलेगा.
 
“क्या हुआ, काकी?”
 
काकी एकदम से अपनी बायीं ओर पलटी, मुझे देखी और देखते ही हँस दी,
 
“ओह तू है..! बदमाश... क्या कर रहा है इतनी धूप में यहाँ?”
 
“कुछ खास नहीं काकी, कुछ प्रिंटआउट्स निकलवाने हैं इसलिए कैफ़े जा रहा था. आप यहाँ? क्या हुआ?”
 
“अरे देख न बेटा, मार्किट गई थी.. सोची थी सामान कम होगा, लेकिन इतना भारी हो गया की अब मेरे से उठाए नहीं उठ रहा है... और कोई सवारी गाड़ी भी नहीं मिल रही है. कैसे जाऊँगी?”
 
चेहरे से स्पष्ट था कि काकी वाकई परेशान हो रही है. इस तपती धूप में उनसे खड़ा रह पाना सम्भव नहीं हो रहा. काकी से क्या, इस गर्मी में किसी से भी सम्भव नहीं है ऐसे बाहर खड़ा रहना.
अधिक कुछ न सोचते हुए मैंने झट से थैला पकड़ा और उठा कर देखा.. भारी तो है पर हो जाएगा मेरे से. तो फिर क्यों न मैं ही इसे इनके घर तक पहुँचा आऊँ? थोड़ी देर बैठ भी लूँगा और....... हाहा!
 
मैंने थैले को उठा व घूमा कर अपने पीठ पर ले लिया और हँसते हुए बोला,
 
“अरे काकी... टेंशन नॉट. मैं हूँ न! चलो घर चलें.”
 
मुझे थैला उठा कर पीठ पर लेते हुए देख कर काकी हैरान होते हुए मुझे रोकने लगी..
 
“अरेरेरे... बेटा... ये क्या कर रहे हो... रखो इसे.”
 
“ओहो काकी... चलो न.. कुछ नहीं होगा.”
 
“नहीं राजू.. ऐसे नहीं करो.. तुम चोट लग जाएगा. ऑटो मिल जाएगी..”
 
“ऑटो अगर एक घंटे तक मिली तो क्या आप यहीं रुकी रहोगी.. एक घंटे तक?!”
 
मैं आँखों को हैरानी से बड़ा बड़ा करते हुए बोला... दरअसल ये दिखावे के अलावा कुछ नहीं था.
 
“एक घंटा नहीं लगे........”
 
काकी आगे क्या बोलने वाली है ये सुने बगैर ही मैं चलने लगा.. मुझे क्या पड़ी है कुछ सुनने की; मन में जो ठान लिया उसे तो अब मैं करूँगा ही. बहुत दिनों बाद काकी के साथ कुछ समय बिताने का अवसर जो प्राप्त हुआ उसे ऐसे ही कैसे जाने दिया जाए.
 
अपनी बात कहते कहते काकी मुझे दस कदम आगे बढ़ जाते देख तुरंत ही मेरे पीछे हो ली.
 
मैं तो तरोताजा था... कुछ मिनट पहले ही घर से निकला हूँ.. नहा धोकर, नाश्ता वगैरह कर के.. इसलिए तेज़ क़दमों से मुझे चलने में कोई परेशानी नहीं हुई पर काकी जोकि न जाने कितने बजे मार्केट गई थी और अभी मेरे सामने ही उनको सड़क किनारे खड़े खड़े करीब बीस मिनट से ऊपर हो गए थे; बेचारी मेरे क़दमों से अपने कदम न मिला पाने के कारण पीछे ही रह गई.
 
अगले दस मिनट में हम दोनों ही काकी के ताला लगे दरवाज़े के सामने खड़े थे.
 
“अरे काकी, घर में कोई नहीं है क्या?”
 
हांफते हुए अंतरा काकी बोली,
 
“नहीं बेटा.... सब तो...”
 
“कहाँ गए सब?”
 
“सूरज तो काम पर गया है, उसके पापा गाँव चले गए पिछले हफ्ते ही और बहु को कोई काम है इसलिए मार्किट के पास ही कहीं गई है.. आने में देर होगी उसे.”
 
‘आने में देर होगी उसे’ इस वाक्य को बोलते समय इस पर काकी ने कुछ विशेष जोर दिया.. पहले तो मैं समझा नहीं पर जैसे चंद सेकंड्स बाद समझ में आया मेरी तो बांछे ही खिल गयीं.
 
काकी अपने हैण्डबैग से चाबी निकाल कर ताले में जैसे ही डाली; मैंने थैले को बायीं कंधे पर रखते हुए एक साँस ली और अब फ्री हो चुके दाएँ हाथ को काकी के पिछवाड़े के बायीं ढोलकी पर रख दिया.. काकी की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली..  ये देख कर मैं आनंदित होता हुआ उनके पिछवाड़े के उस बाएं हिस्से को प्यार से दबा दबा कर सहलाने लगा.
 
काकी धीरे से बोली,
 
“बदमाश.. ये क्या कर रहा है? कोई देख लेगा तो?”
 
“कोई नहीं देखेगा काकी.”
 
“इस तरह बाहर खुले में.......”
 
“तो जल्दी दरवाज़ा खोलो न काकी.”
 
जल्दी से ताला खोल कर काकी दरवाज़ा खोलते हुए अंदर घुसी... मैं भी तुरंत घुस गया.
 
अंदर एक छोटा गली जैसा है.. अँधेरा.. पाँच कदम आगे एक कमरा है जिसकी खिड़की से आती थोड़ी बहुत रौशनी उस गलियारी को भी रोशन कर रही है.
 
उसी कमरे में जा कर काकी ने बत्ती जलाई, पंखा ऑन किया और धप्प से दो में एक सोफा चेयर में बैठ गई. ठंडी हवा लगते ही उनकी आँखें बंद हो आईं. हांफना कुछ कम हुआ उनका.
 
मैं थोड़ी देर तक हाथों में थैले को लिए काकी के बदन के ढाँचे को देखता रहा.. क्या मस्त भरी पूरी महिला है.. मोटी नहीं.. फिट है. सही स्थानों में सही मात्रा में चर्बी भरी हुई है. एक जगह हाथ लगाओ, तो दूसरा हाथ अपने आप दूसरी जगह पहुँच जाएगा.
 
पसीने की बूँदें काकी के कान के बगल से होते हुए गले के रास्ते से होते हुए ब्लाउज के अंदर चली जा रही हैं. ये सीन इतना मस्त लगा मुझे मन तो किया अभी के अभी इनकी चूचियाँ को दबोच कर मसलते हुए अपना लौदा इनके मुँह में दे दूँ..
 
पर मन  ने तुरंत ही किसी तरह की जल्दबाज़ी करने से मना किया. अंदर से सलाह मिली, पहले धीरे धीरे कुछ मज़े तो कर ले बेटा.. फिर जो जी में आए करना..
 
थैले को कंधे पर लटकाए ही आगे बढ़ा और उनके आंचल को अंगूठे और तर्जनी अँगुली से पकड़ कर आहिस्ते से थोड़ा साइड किया. ऐसा करते ही ब्लाउज कप में गज़ब का उभार लिए उनका दायाँ स्तन दिख गया, साथ ही उनका मनमोहक क्लीवेज भी जो उनके मंगलसूत्र के २०% हिस्से को अपने अंदर समाया हुआ है.
 
काकी की क्लीवेज तो बहुत ही मस्त है और हमेशा ही बहुत मस्त बनती है; इसमें कोई दो राय नहीं है...पर अभी जिस तरह से उनका मंगलसूत्र उनके क्लीवेज में घुसा हुआ है; इससे ब्लाउज में कैद पूरा हिस्सा ही काफ़ी मादक और अतिलोभनीय बन रहा है.
 
अब देखा... कि पसीने की बूँदें एक धार में बहती हुई मंगलसूत्र के एक हिस्से से होते हुए सीधे उस रसीले क्लीवेज की गहराईयों में समा रही है.
 
तुरंत ही अपने जेब से मोबाईल निकाला और ५-६ अलग अलग कोनो से बड़े अच्छे से पिक्स लिया और आहिस्ते से दोबारा अपने जेब के हवाले कर दिया.
 
अपने रिस्ट वाच पर ध्यान दिया; जहाँ जाने के लिए निकला था वहाँ जाने मुझे देर हो रही है; आलरेडी १५ मिनट लेट हो गया हूँ.. इसलिए जो करने का सोच कर इस भारी थैले को उठा कर काकी के घर तक आया हूँ; वो काम मुझे अब जल्द से जल्द करना होगा.
 
इसलिए गला खँखार तनिक ज़ोर से बोला,
 
“काकी, थैला कहाँ रखूँ?”
 
काकी चौंक कर आँखें खोलते हुए बोली,
 
“अरे राजू ये क्या.. तुम अभी तक थैला उठाए हुए हो? इधर रख दो.”
 
मैं मुस्कराता हुआ एक तरफ कोने में थैला रख दिया; साथ ही चेहरे पे ऐसा भाव रखा की जैसे पूरे बदन में थकान सी आ गई हो... फ़िर तुरंत ही मैंने काकी के सामने ही अपनी कलाई घड़ी पर नज़र दौड़ाई.
 
काकी को चिंता हुई.. उन्हें बुरा भी लगा की एक तो मैं उनका ये भारी सामान उठा कर इतनी दूर से घर तक ले आया; कितनी ही देर तक पकड़े खड़ा रहा और अब शायद जाने की सोच रहा हूँ --- और उन्होंने एक ग्लास पानी तक न पूछा.
 
तुरंत कुर्सी से उठते हुए बोली,
 
“रुको जरा..”
 
मेरे कुछ कह पाने के पहले ही वो कमरे से निकल गई. उनके जाने के बाद मैं सोचने लगा की आज कुछ फ़ायदा उठाया जाए या नहीं? काकी के साथ छेड़छाड़ तो बहुत पहले से करता आया हूँ, इधर उधर छूना, दाबना, चूमना इत्यादि तो कई बार और बहुत बार किया हूँ.. इसलिए आज कुछ अलग करने का मन कर रहा है. सोचते सोचते मैंने अंदर के कमरे में ध्यान दिया --- अंदर से कुछ धोने की आवाज़ सुनाई दी. मेरे पारखी कानों ने सुनाई दे रहे आवाज़ से ही धोये जा रहे बर्तनों को पहचान लिया ... एक ग्लास है, दूसरा है प्लेट.

'हम्म... तो काकी मेरे लिए कुछ ला रही है --- मिष्ठान्न होगा अवश्य ही --- पर काकी को इतना करने की क्या आवश्यकता है?! --- विशेष मिष्ठान्न तो हमेशा अपने साथ लिए ही घूमती है --- अपने तन की यौन तृष्णा की!'

मैं काकी के गदराए भरे बदन के हरेक कटाव के बारे में सोचता हुआ जोश में भरा जा रहा था कि अचानक से काकी उपस्थित हुई. उस समय मेरे चेहरे की रौनक देख कर थोड़ा हैरान तो हुई; परन्तु उनके मन ने तुरंत ताड़ लिया कि मेरा हरामी मन क्या सोच रहा है. उन्होंने नज़रअंदाज़ किया ज़रूर पर अपने होंठों के एक कोने में एक कुटिल मुस्कान को आने से रोक नहीं पाई.


सेंटर टेबल पर उन्होंने प्लेट और ग्लास रख कर सामने सोफे पर बैठ गई. जब प्लेट और ग्लास रख रही थी तब झुकने के कारण आँचल के नीचे से ब्लाउज कप में एकदम फिट नज़र आ रहे उनके टाइट स्तन और पीछे से साड़ी में कैद उनका पिछवाड़े की उभार और गोलाई देख कर मेरा मन ऐसा भटका की ये ध्यान ही नहीं रहा कि कब वो सामने सोफे पर बैठ कर मुझे गौर से देख रही है.

“क्या हुआ? किस सोच में डूबे हो? आओ, खा लो.”

बड़े प्यार से बोली अंतरा काकी. गहराई थी इस में. अपने सोच से निकल कर उन्हें देखा तो पाया की मंद मंद मुस्करा रही है. अंतिम के शब्द ‘आओ, खा लो.’ में एक अजीब कशिश थी... ऐसा लगा मानो वो प्लेट पर रखे मिष्ठान्न के बहाने अपने तन के बारे में बोल रही है कि ‘आओ और उसे ही खा जाओ.’

मुझे लगातार देखे जा रही थी काकी. मैं एक क्षण को ठिठका; फिर मुस्कराते हुए सोफ़े पर उनके बगल में जा कर बैठ गया..हालाँकि थोड़ी दूरी अब है हम दोनों के बीच. देखा, प्लेट में एक रसगुल्ला, एक गुलाब जामुन, दो काजू के बर्फी और थोड़े नमकीन रखा है. मैंने पहले ग्लास उठाया और आराम से गला भिगाया. अभी प्लेट की ओर हाथ बढ़ाया ही कि दिमाग में एक मस्त शैतानी आईडिया आया. काकी की ओर देख कर बोला,

“काकी, मैं इतना नहीं ले पाऊंगा.”
 
“क्यों बेटा, ज्यादा कहाँ है.. जरा सा ही है.”
 
मैं नहीं माना,
 
“नहीं काकी.. नहीं हो पायेगा.”
 
“बेटा, तुमने इतनी मेहनत की; मेरी सहायता की.. अगर तुम उस समय नहीं पहुँचते तो पता नहीं मैं कब तक घर पहुँच पाती. अब ऐसी हेल्प के लिए तो मुझे चाहिए कि मैं और भी कुछ दूँ; पर फ़िलहाल इतना ही कर सकती हूँ. प्लीज़ बेटा, अपनी काकी का मन रख लो. खा लो.”
 
इस बार उनके स्वर में अनुनय का पुट था... इसलिए मुझसे फ़िर से ‘ना’ नहीं कहा जा सका. पर इतना तो है कि अपना लक्ष्य पा कर ही रहूँगा. अतः मैंने दूसरा वाक्य बाण चलाया,
 
“ठीक है.. मैं अपनी इस प्यारी काकी की बात मान लूँगा पर मेरी एक छोटी सी शर्त है; वो ये कि आपको भी कम से कम एक मीठा तो खाना ही पड़ेगा..”  ये कहते ही मैंने काकी की ओर से किसी उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही तुरंत चम्मच उठा कर रसगुल्ला को बीच से काटा और उससे बहते रस समेत ही ले कर काकी की ओर सरक गया.  मेरे इस त्वरित हरकत से काकी को कुछ भी कहने का समय नहीं मिल पाया और इसलिए होंठों पर एक हल्की मुस्कान और चेहरे पर संकोच का भाव लिए मुँह खोल दी.
 
मुँह खोलते ही मैंने रस से भरे रसगुल्ले के उस टुकड़े को ऐसे डाला जिससे की टुकड़ा तो अंदर जाए पर सारा रस होंठों से होते हुए नीचे गिरे; और ऐसा हुआ भी.. सारा रस उनकी ठोड़ी से होता हुआ सीने पर गिरा. चूँकि मैंने चम्मच तुरंत नहीं निकाला उनके मुँह से इसलिए वो मुँह पूरी तरह से बंद नहीं कर पाई जिससे कि उस टुकड़े पर ज़रा सा दबाव पड़ते ही और ज़्यादा रस निकल कर होंठों से होते हुए नीचे गिरने लगा. कुछ साड़ी पर गिरे तो कुछ उनकी चेन को भिगोते हुए उनके भरे स्तनों की सुंदर घाटी की गहराईयों में प्रवेश कर गए.
 
काकी ‘हुम्म’ कर के जल्दी से अपने चेहरे को ऊपर की ओर उठा ली ताकि रस को और गिरने से रोक पाए --- मैं इसी प्रतीक्षा में था --- लपक कर काकी से सट गया और अब उनके ठोड़ी से होकर गले से नीचे आते रस पे मुँह लगा दिया और हौले से चूमते हुए पूरे गर्दन को अपनी जीभ के अग्रभाग से हल्के से छू कर चाटने लगा. मेरे इस अप्रत्याशित हरकत से काकी हड़बड़ा गई और अपने बाएँ हाथ से मुझे रोकने की एक मीठी कोशिश करने लगी. काकी के बायीं ओर बैठने के कारण मुझे पूरी तरह उनपे झुकने में दिक्कत तो हो रहा था पर अपनी इन्हीं कोशिशों में अभी तक करीब 80% सफ़ल तो हो ही चुका था. मैंने उनके बाएँ हाथ को पकड़ कर उनके पीठ के पीछे कर दिया और दाएँ हाथ को मजबूती से अपनी गिरफ़्त में लिए रहा. काकी अब बुरी तरह फँस चुकी थी. मैं उनकी गर्दन को चाटते हुए अपने दूसरे हाथ से सीने पर उनकी साड़ी को हटाना चाहा --- हटी तो सही पर पूरी तरह नहीं क्योंकि काकी सेफ्टी पिन से साड़ी को अटका रखी थी. लेकिन मेरे लिए कोई दिक्कत खड़ी नहीं हुई क्योंकि सीने पर से साड़ी इतनी तो हट ही चुकी थी कि ब्लाउज में कैद उनकी दोनों चूचियाँ मेरे सामने प्रकट हो जाए! 
 
गोरे चूचियों के मध्य एक हल्की काली रेखा ब्लाउज कप्स के ऊपर होती हुई गले के लगभग निचले हिस्से तक पहुँच रही थी. सोने का वो पतला चेन (शायद नकली) उस स्तन रेखा में कुछ इस तरह प्रविष्ट हुआ था कि न सिर्फ़ अपनी बल्कि ब्लाउज कप्स से निकले हुए स्तनों के हिस्सों का भी शोभा बढ़ा रही थी.
 
गर्दन को चूमते-चाटते हुए काकी के कान में अपने होंठों को लगाते हुए धीरे से कहा, “पैरों को टेबल पर रखो.”  काकी ने ऐसा ही किया... बिना किसी प्रतिरोध के उन्होंने अपने दोनों पैर सेंटर टेबल के ऊपर रख दिया! मैं उनकी ओर देखा; काकी ने आँखें बंद की हुई हैं और उनका सिर सोफ़े के बैकरेस्ट रखा है.. खुद को एकदम निढाल, ढीला छोड़ दी है --- मेरे भरोसे! चेहरे के भाव और ऊपर नीचे होता उनके सीने की गति ने स्पष्ट कर दिया कि वो भी उत्तेजित हो रही है जोकि मेरे लिए प्लस पॉइंट ही है.  अचानक से गौर किया कि सोफ़े से लग कर रखे एक छोटे टेबल पर एक टेबल फैन रखा हुआ है जो अच्छी ही स्पीड से चल रहा है --- सीलिंग फैन तो है ही फुल स्पीड में. इसका एक फ़ायदा तो ये हो रहा है कि काकी की साड़ी को फैन से आती तेज़ हवा भी उनके वक्ष पर टिकने नहीं दे रही है --- पर एक नुकसान भी है! तेज़ हवा से रस सूख सकता है --- रस कहीं सूख न जाए पूरी तरह से इसलिए अब बिना देर किए काकी पर लपक पड़ा और अब सिर्फ़ गर्दन ही बल्कि होंठों पर भी चुम्बन लेते हुए रस पीने लगा. आह! कितना मीठा..कितना स्वादिष्ट है ये! होंठों पर होंठ लगा कर जैसे ही मैंने उसे चूमते हुए चूसा तो पहली ही चुसाई में मुझे एक अद्भुत मीठास लगा. ऐसा मीठा स्वाद आज से पहले मुझे कभी नहीं मिला था. संभवतः ये स्वाद केवल रसगुल्ले के रस की ही नहीं; काकी के होंठों के रस का भी है! 
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The Naughty "Office" Thing!




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RE: अंतरा काकी - by The_Writer - 21-05-2021, 02:51 PM
RE: अंतरा काकी - by Yondu - 21-05-2021, 03:38 PM
RE: अंतरा काकी - by The_Writer - 21-05-2021, 08:53 PM
RE: अंतरा काकी - by The_Writer - 21-05-2021, 08:54 PM
RE: अंतरा काकी - by Auntychod - 21-05-2021, 03:42 PM
RE: अंतरा काकी - by The_Writer - 21-05-2021, 08:54 PM
RE: अंतरा काकी - by Himanshuty - 22-05-2021, 06:07 PM
RE: अंतरा काकी - by The_Writer - 22-05-2021, 09:31 PM
RE: अंतरा काकी - by The_Writer - 22-05-2021, 09:35 PM
RE: अंतरा काकी - by Himanshuty - 22-05-2021, 09:38 PM
RE: अंतरा काकी - by The_Writer - 22-05-2021, 09:49 PM



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