09-04-2019, 08:15 AM
भाग २): रणधीर सिन्हा.. एंड फर्स्ट एनकाउंटर विद हिम
‘सिन्हा’... ‘मि० रणधीर सिन्हा...’ शहर के किसी कोने के एक बड़े से हिस्से में एक जाना माना नाम .. कई क्षेत्रों में कई तरह के बिज़नेस है इनका | बहुत कम समय में बहुत बहुत पैसा कमा लिया | ईश्वरीय कृपा ऐसी थी कि जिस काम या व्यापार में हाथ आजमाते , सौ प्रतिशत सफ़ल होते | धर्मपत्नी को गुज़रे कई साल हो गए .. दो बेटे और एक बेटी है और तीनों ही विदेशों में बस गए हैं ... घर में अकेले रहने की आदत सी पड़ गई है रणधीर को .. घर से काम और काम से घर.. यही रोज़ की दिनचर्या रही है रणधीर बाबू की अब तक.. पर पिछले कुछ महीनों से काफ़ी टाइम घर पर बिताना हो रहा है रणधीर बाबू का ... |
ज़ाहिर है की बेशुमार दौलत जिसके पास हो और घर में बीवी ना हो तो ऐसे लोग खुले सांड की तरह हो जाते हैं |
ऐसा ही कुछ हाल था रणधीर बाबू का भी... पिछले कुछ महीनों से उनके घर में महिलाओं और लड़कियों का आना जाना शुरू हो गया है.. और सिर्फ़ शुरू ही नहीं हुआ; बल्कि बेतहाशा बढ़ भी गया है | ये औरतें और लडकियाँ अधिकांश वो होती हैं जो रणधीर बाबू के किसी न किसी बिज़नेस या फर्म में काम करती | रणधीर बाबू ने इतने फर्म्स खोल रखे हैं की शहर में किसी को भी अगर नौकरी की ज़रूरत होती तो वह सबसे पहले सीधे रणधीर बाबू के ही किसी एक ऑफिस में जा कर आवेदन कर आता | रणधीर बाबू अच्छी सैलरी देने के साथ ही अपने एम्प्लाइज को और निखारने के लिए समय समय पर उनका ग्रूमिंग भी करते ... वो भी खुद अपने निरीक्षण में | इससे उसके अंडर में काम करने वालों को डबल फ़ायदा होता .. एक तो अच्छी सैलरी मिलना और दूसरा, भविष्य के लिए खुद को और अधिक योग्य बनाना |
और इसलिए एम्प्लाइज भी हमेशा रणधीर बाबू के कुछ गलत आदतों और बातों को नज़रअंदाज़ कर दिया करते हैं .. मसलन, रणधीर बाबू का अक्सर नशे में होना, शार्ट टेम्पर होना, लेडी स्टाफ को ग़लत नज़र से देखना और उनके साथ मनमाफिक छेड़खानी करना इत्यादि.. | ख़ासकर शराब और शबाब का चस्का या कहिए नशा होने के बारे में हर कोई जानता है .. और महिलाओं के प्रति उनकी कमज़ोरी तो जगजाहीर थी सबके सामने |
आशा को अपनी ही एक सहेली से रणधीर बाबू के ऑफिस का नंबर मिला था .. नौकरी के लिए आवेदन करने हेतु.. | ऑफिस में किसी लेडी स्टाफ़ से फ़ोन पर बात हुई थी आशा की, वैकेंसी के बारे में जानकारी लेने के सिलसिले में | दो तीन जगह खाली होने के बारे में बताया गया था और इसी दरम्यान आशा से उसके बारे में भी जानकारी ली गई थी | बाद में उसी दिन शाम को ऑफिस से फ़ोन आया था कि रणधीर बाबू ने ऑफिस से पहले एकबार उसे अपने घर बुलाया है बायोडाटा और दूसरे एकेडमिक सर्टिफिकेट्स के साथ .. ऑफिस में मिलने से पहले रणधीर बाबू हर क्लाइंट से घर में मिलते हैं.. शायद कोई अंधविश्वास या कोई और कारण होता होगा | चूँकि शुरू से ही रणधीर बाबू की यही आदत रही है इसलिए लड़का हो या ख़ास कर महिलाएँ और लडकियाँ; बेहिचक चली जाती है रणधीर बाबू के यहाँ .. |
रणधीर बाबू के यहाँ बुलाए जाने की बात सुनकर ही आशा ख़ुशी से नाच उठी | उसे पूरा भरोसा था कि रणधीर बाबू ने अगर बुलाया है तो फिर जॉब पक्की है | आशा को अपने क्वालिफिकेशन के साथ साथ अपनी ख़ूबसूरती पर भी अडिग विश्वास था ... क्वालिफिकेशन देख कर ना करना भी चाहे कोई अगर तो शायद आशा की सुंदरता के कारण अपने फैसले बदलने को मज़बूर हो जाए | आशा को एक औरत के दो कारगर हथियारों के बारे में बहुत अच्छे से पता है हमेशा से और वो हैं;
१) ख़ूबसूरत देहयष्टि और
२) आँसू
किसी भी औरत के ये दो ऐसे तेज़ हथियार हैं जो दिलों को ही क्या –-- बड़े बड़े सत्ता तक को हिला और मिट्टी में मिला सकते हैं | दिग्गज ज्ञानी और विद्वान भी इन दो हथियारों के अचूक निशाने से खुद को बचा पाने में पूरी तरह विफ़ल पाते हैं | फ़िर रणधीर बाबू जैसे लोगों की बिसात ही क्या |
अगले दिन ही आशा बहुत अच्छे से तैयार हो कर रणधीर बाबू के यहाँ चली गई –-- गोल्डन बॉर्डर की बीटरेड साड़ी, साड़ी पर ही लाल और सुनहरे धागे से छोटे छोटे फूल और दूसरी कलाकृतियाँ बनी हैं---मैचिंग ब्लाउज --- शार्ट स्लीव--- ब्लाउज भी थोड़ा टाइट--- चूचियों को उनके पूरी गोलाईयों के साथ ऊपर की ओर स्थिर उठाए हुए --- सामने से डीप ‘वी’ कट और पीछे काफ़ी खुला हुआ--- डीप ‘यू’ कट--- ब्लाउज के निचले बॉर्डर और कमर पर बंधी साड़ी के बीच काफ़ी गैप है--- और चलने फिरने से उस गैप से आशा का गोरा चिकना पेट साफ़ साफ़ दिख रहा है | बाहर की ओर निकली हुई गोलाकार पिछवाड़ा टाइट बाँधी हुई साड़ी में एकदम स्पष्ट रूप से समझ में आ रही है और हर पड़ते कदम के साथ ऊपर नीचे करती हुई नाच रही है |
नीर को अपने साथ लिए आशा ऑटो से रणधीर बाबू के यहाँ पहुँची | इससे पहले रास्ते भर ऑटोवाला रियरव्यू मिरर से आशा की कसी बदन को ताड़ता रहा | रास्ते भर ऑटो के तेज़ चलने से आने वाली हवा के झोंकों से कभी आशा के दायीं तो कभी बाएँ तरफ़ का साड़ी का पल्ला उड़ जाता .. अगर दायीं तरफ़ का उड़ता तो तंग ब्लाउज कप में कसी आशा की भरी गदराई चूची के ऊपरी गोलाई के दर्शन हो जाते और यदि बाएँ साइड से पल्ला उड़ता तो ब्लाउज कप में कैद आशा का बायाँ वक्ष अपनी पूरी गोलाई के आकार के साथ दिखता---और तो और ब्लाउज के निचले बॉर्डर से शुरू होकर कमर तक करीब ५-६ इंच के गैप में आँखों को बाँध देने वाली गोरी नर्म पेट के दर्शन होते |
जैसे - जैसे जगह मिलते ही ऑटो की स्पीड बढ़ती; वैसे - वैसे चलने वाली हवा भी तेज़ हो जाती---और इन्हीं तेज़ हवा के झोंकों से, रह रह कर आशा का पल्लू उसके सीने पर से हट जाता और उस लाल तंग ब्लाउज के कप में कैद दायीं चूची पूरी और बायीं चूची का थोड़ा सा हिस्सा नज़र आ जाता ... और इसके साथ ही एक लंबी सी घाटी, अर्थात क्लीवेज भी दृष्टिगोचर हो जाती | एक तंग ब्लाउज में कैद पुष्टता से परिपूर्ण एक दूसरे से सट कर लगे दो चूचियों के कारण बनने वाली एक क्लीवेज का आकार क्या और कैसा हो सकता है इसका तो हर कोई सहज ही अंदाज़ा लगा सकता है--- और जब बात बिल्कुल अपने सामने देखने की हो तो ऐसा अलौकिक सा दृश्य भला कौन मूर्ख छोड़ना चाहेगा?! बाएँ कंधे पर साड़ी को अगर सेफ्टी पिन से न लगाया होता आशा ने तो शायद अब तक पूरा का पूरा पल्लू ही हट गया होता | वो गोरी गोरी चूचियाँ जो रोड के हरेक गड्ढे और उतार चढ़ाव के आने पर ऐसे उछलती जैसे की कोई रबर बॉल या बैलून --- या – या फ़िर मानो पानी वाले गुब्बारे हों, जिन्हें भर कर ज़रा सा हिलाने पर जैसा हिलते हैं ठीक वैसे ही ऊपर नीचे हो कर हिल रही थी | चूचियाँ तो कयामत ढा ही रही थीं पर आशा का दुधिया क्लीवेज भी --- जो पत्थर तक को पिघला कर पानी कर दे ---- मदहोश किए जा रही थी |
ऐसा नहीं की आशा को पता नहीं चला था की ऑटोवाले का ध्यान कहाँ है... पर शायद कहीं न कहीं वो कम उम्र के लड़कों या फ़िर किसी भी मर्द को टीज़ करने में बड़ा सुख पाती है --- मर्दों का बेचैन हो जाना, थोड़ा और – थोड़ा और कर के लालायित रहना ---- यहाँ तक की ज़रा सा देह दर्शन करा देने से आजीवन चरणों का दास बने रहने की मर्दों की मौन सौगंध और स्वीकृति उसे अंदर तक गुदगुदा देती | कॉलेज जीवन में फेरी वालों से २-५ रुपये का कुछ बिल्कुल मुफ्त में लेना हो या फिर चाटवाले से कॉम्प्लीमेंट के तौर पर २ एक्स्ट्रा बिना पानी वाला पानीपूरी खा लेना --- ये सब वह कर लेती थी----सिर्फ़ २ इंच का दूधिया क्लीवेज दिखा कर |
बीते दिनों की यादों ने आशा के चेहरे पर एक कमीनी सी कातिल मुस्कान ला दी | तिरछी आँखों से वह कुछेक बार ऑटोवाले लड़के की ओर देख चुकी है अब तक और हर बार औटोवाला लड़का एक हाथ से हैंडल पकड़े, दूसरे हाथ को नीचे सामने की ओर रखा हुआ मिला--- आँखों को सामने रोड पर टिकाए रखने की असफ़ल कोशिश करता हुआ | ‘फ़िक’ से बहुत धीमी आवाज़ में आशा की हँसी निकल गई | वह समझ गई की लड़का अपने दूसरे हाथ से अपने हथियार को फड़क कर खड़ा होने से रोकना चाह रहा है पर नाकाम हो रहा है | बेचारे लड़के की ऐसी दुर्दशा का ज़िम्मेवार ख़ुद को मानते हुए आशा गर्व से ऐसी फूली समाई कि उसकी दोनों चूचियाँ और अधिक फूल कर सामने की ओर तनने लगीं |
खैर,
रणधीर बाबू के घर के सामने पहुँच कर ऑटो रुका.. घर तो नहीं एक बड़ा बंगला हो जैसे—आशा अपने बेटे को ले कर जल्दी से उतर कर बैग से पैसे निकालने लगी--- पल्लू अब भी यथास्थान न होने के कारण ऑटोवाला लड़का दूध और दूधिया क्लीवेज का नयनसुख ले रहा है---आशा उसकी नज़र को भांपते हुए चोर नज़र से अपने शरीर को देखी और देखते ही एक झटका सा लगा उसे—पल्लू का स्थान गड़बड़ाने से उसका दायाँ चूची और क्लीवेज तो दिख ही रहा था पर साथ ही साथ --- पल्लू बाएँ साइड से भी उठा हुआ होने के कारण बाएँ चूची का गोल आकार और निप्पल का इम्प्रैशन साफ़ साफ़ समझ में आ रहा था ब्लाउज के ऊपर से ही... !! इतना ही नहीं ---- आशा का दूधिया पेट और गोल गहरी नाभि भी सामने दृश्यमान थी ! --- वह लड़का कभी गहरी नाभि को देखता तो कभी रसीली दूध को ...| आशा ख़ुद को संभालते हुए जल्दी से पल्लू ठीक कर उसकी ओर पैनी नज़रों से देखी—लड़का डर कर नज़रें फेर लिया--- पैसे दे कर आशा पलट कर जाने ही वाली थी कि लड़का पूछ बैठा,
‘मैडम..... मैं रहूँ या चलूँ?’
आशा ज़रा सा पीछे सर घूमा कर बोली,
‘तुम जाओ.. मेरा काम हो गया |’
इतना कहकर नीर का हाथ पकड़ कर गेट की ओर बढ़ी --- और इधर वह लड़का आशा के रूखे शब्द सुन और अपेक्षित उत्तर न पाकर थोड़ा निराश तो हुआ पर पीछे से आशा की गोल उभरे गांड को देखकर उसकी वह निराशा पल भर में उत्तेजना में परिवर्तित हुआ और मदमस्त गजगामिनी की भांति आशा के चलने से गोल उभरे गांड में होती थिरकन को देख, एक वासनायुक्त ‘आह’ कर के रह गया |
रणधीर बाबू का गेट से लेकर मेन डोर तक सब कुछ साफ़ सुथरा और चमक सा रहा था | डोरबेल बजने पर एक आदमी आ कर दरवाज़ा खोल गया --- नौकर ही होगा शायद— रणधीर बाबू के बारे में पूछने पर बताया कि, ‘साहब अभी नाश्ता कर रहे हैं--- आप बैठिए ..’
सामने सोफ़े की ओर इंगित कर चला गया वह--- आशा बैठ गई--- नीर बीच बीच में जल्दी घर जाने की ज़िद कर रहा था --- इसी बीच नौकर पानी दे गया—प्यास लगी थी आशा को, इसलिए पानी गटकने में देर नहीं की --- नीर के लिए कुछ बिस्कुट लाया था वह नौकर---जहां तक हो सके—जितना हो सके ---- वह नज़रें घूमा घूमा कर उस आलिशान रूम को देखने लगी ---- टाइल्स, मार्बल्स, दीवार घड़ी, टेबल, चेयर्स,सोफ़ा सेट... इत्यादि.. सब कुछ इम्पोर्टेड रखा है वहाँ | क्या फर्नीचर और क्या खिड़की दरवाज़े--- यहाँ तक की खिड़कियों पर लगे पर्दे भी अपनी ख़ूबसूरती से खुद के इम्पोर्टेड होने के सबूत देना चाह रहे हैं |
कुछ मिनटों बाद ही अंदर के कमरे से रणधीर बाबू आए | कुरता पजामा में रणधीर बाबू काफ़ी जंच रहे हैं—आशा की ओर देख कर एक स्वागत वाली मुस्कान दे कर ठीक सामने वाली सोफ़ा चेयर पर बैठ गए | रणधीर बाबू को नमस्ते करके आशा भी बैठ गई | बैठते समय आशा को आगे की ओर थोड़ा झुकना पड़ा --- और यही झुकना ही शायद उसकी बहुत बड़ी गलती हो गई उस दिन --- आशा के मुखरे की खूबसूरती देख प्रभावित हुआ रणधीर बाबू अब भी उसी की ओर ही देख रहा था कि आशा नमस्ते करके बैठते हुए झुक गई --- और इससे उसका दायाँ स्तन टाइट ब्लाउज-ब्रा कप के कारण और ज़्यादा ऊपर की ओर निकल आया --- यूँ समझिए की लगभग पूरा ही निकल आया था---सुनहरी गोल फ्रेम के चश्मे से आशा की ओर देख रहे रणधीर बाबू वो नज़ारा देख कर बदहवास सा हो गए --- मुँह से पान की पीक निकलते निकलते रह गई ---- यहाँ तक की वह निगलना तक भूल गए--- होंठों के एक किनारे से थोड़ी पीक निकल भी आई --- आँख गोल हो कर बड़े बड़े से हो गए --- हद तो तब हो गई जब २ सेकंड बाद ही आशा नीर के द्वारा एक बिस्कुट गिरा दिए जाने पर झुक कर कारपेट पर से बिस्कुट उठाने लगी----और उसके ऐसा करने से रणधीर बाबू ने शायद अपने जीवन में अब तक का सबसे सुन्दर नज़ारा देखा होगा ---- चूची के वजन से दाएँ साइड से साड़ी का पल्ला हट गया और तंग ब्लाउज में से उतनी बड़ी चूची एक तो वैसे ही नहीं समा रही है और तो और पूरा ही बाहर निकल आने को बस रत्ती भर की देर थी ---- साथ ही करीब करीब सात इंच का एक लंबा गहरा दूधिया क्लीवेज सामने प्रकट हो गया था |
चाहे कितना भी नंगा देख लो पर अधनंगी चूचियों को देखने में एक अलग ही मज़ा है ---- खास कर यदि चूचियों में पुष्टता हो और क्लीवेज की भी एक अच्छी लंबाई हो--- और रणधीर बाबू तो इन्ही दो चीज़ों पर जान छिड़कते थे |
कुछ ही क्षणों में आशा सीधी हो कर बैठ गई — पर पल्लू को ठीक नहीं किया— शायद ध्यान नहीं गया होगा उसका--- इससे दायीं ब्लाउज कप में कैद दायीं चूची ऊपर को निकली हुई अपनी गोलाई के साथ पल्लू से बाहर झाँकती रही और रणधीर बाबू को एक अनुपम नयनसुख का एहसास कराती रही |
रणधीर बाबू तो जैसे अंदर ही अंदर स्वर्गलाभ करने लगे हैं--- और साथ ही यह दृढ़ निश्चय भी करने लगे हैं कि अगर इसी तरह प्रत्येक दिन दूध वाले सौन्दर्य दर्शन करना है तो उन्हें न सिर्फ़ अभी के अभी इसे नौकरी के लिए हाँ करना है बल्कि बिल्कुल भी इंकार न कर सके ऐसा कोई ज़बरदस्त ऑफर भी करना होगा |
गला खंखारते हुए रणधीर बाबू ने पूछा,
“यहाँ आते हुए कोई दिक्कत तो नहीं हुआ न आशा जी?”
“नहीं सर, कोई प्रोब्लम नहीं हुई ... पर आप मुझे ‘जी’ कह कर संबोधित मत कीजिए---- मैं बहुत छोटी हूँ आपसे—तकरीबन आपकी बेटी की उम्र की हूँ --”
आशा के ऐसा कहते ही एक उत्तेजना वाली लहर दौड़ गई रणधीर बाबू के सारे शरीर में--- उसने अब ध्यान दिया--- आशा की उम्र लगभग उसकी अपनी बेटी के उम्र के आस पास होगी--- अपने से इतनी कम उम्र की किसी लड़की के साथ सम्बन्ध बनाने की कल्पना मात्र से ही रणधीर बाबू का रोम रोम एक अद्भुत रोमांच से भर गया |
गौर से देखा उसने आशा को; कम से कम २०-२२ साल का अंतर तो होगा ही दोनों में---रणधीर ने खुद अनुमान लगाया की जब वह खुद 65 का है तो आशा तो कम से कम 35-40 की होगी ही | उम्र का ये अंतर भी काफ़ी था रणधीर के पजामे में हरकत करवाने में |
थोड़ी देर तक पूछ्ताछ के बाद,
‘अच्छा आशा, तुम्हारे जवाबों से मुझे संतुष्टि तो हुई है .... मम्ममम..... (नज़र आशा के बेटे पर गई.....) ... प्यारा बच्चा है... क्या नाम है इसका ...??’
आशा ने खुद जवाब न देकर नीर से कहा,
‘बाबू.. चलो... अंकल को अपना नाम बताओ...’
‘न..नीर.. नीरज... नीरज मुखर्जी...|’
तनिक तोतलाते हुए नीर ने जवाब दिया...
रणधीर उसकी बात सुन हँस पड़ा ... हँसते हुए पूछा,
‘एंड व्हाट्स योर फादर्स नेम?’
‘अ..अभ...अभय मुखर्जी.. |’
जवाब देते हुए नीर एकबार अपनी माँ की तरफ़ देखा और फ़िर रणधीर की ओर...
जब नीर ने आशा की ओर देखा, तब रणधीर ने भी नीर की दृष्टि को फ़ॉलो करते हुए आशा की ओर देखा; और पाया कि नीर से उसके पापा का नाम पूछते ही आशा थोड़ी असहज सी हो गई ... चेहरे की मुस्कान विलीन हो गई .. नीर भी जैसे पापा का नाम बताते हुए अपनी मम्मी से इसकी अनुमति माँग रहा है.... |
रणधीर जैसे मंझे खिलाड़ी को ये समझते देर नहीं लगी कि दाल में कुछ काला है---- इतना ही नहीं, आशा के बॉडी लैंग्वेज से उसे ये डाउट भी हुआ की हो न हो शायद पूरी दाल ही काली है..|
आशा के मन को थोड़ा टटोलते हुए पूछा,
‘पापा से बहुत प्यार करता है न यह?’
आशा ने चेहरे पर एक फीकी मुस्कान लाते हुए धीरे से कहा,
‘जी सर |’
रणधीर हर क्षण आशा के चेहरे के भावों को पढ़ने लगा--- इतने सालों से वो देश-दुनिया को देख रहा है--- इतना बड़ा और तरह तरह के व्यापार सँभालने वाला कोई भी व्यक्ति इतना तो परिपक्व हो ही जाता है की वो सामने वाले के चेहरे पर आते जाते विचारों के बादल को पढ़-पकड़ सके |
‘ह्म्म्म.. देखो आशा ----- मुझे जो भी जानना था----सो जान लिया---तुम्हारा क्वालिफिकेशन लगभग ठीक ही है---दो तीन जगह खाली हैं मेरे आर्गेनाइजेशन में---- देखता हूँ --- क्या किया जाए तुम्हारे केस में ---- .....’
अभी अपनी बात पूरी कर भी नहीं पाया था रणधीर बाबू के अचानक से आशा सेंटर टेबल पर थोड़ा और झुकते हुए, हाथों को आपस में जोड़ते हुए से मुद्रा लिए बोली,
‘प्लीज़ सर, प्लीज़ कंसीडर कीजिएगा---- मेरा एक जॉब पाना बहुत ज़रूरी है--- आई नीड इट--- प्लीज़ सर--- आई प्रॉमिस की आपको मेरी तरफ़ से कोई शिकायत नहीं होगी--- पूरी ईमानदारी और मेहनत से काम करुँगी--- आपकी कभी कोई बात नहीं टालूंगी ---- .............’
‘अच्छा अच्छा ---- रुको----’ रणधीर बाबू ने हाथ उठा कर आशा को चुप करने का इशारा किया
इस बार रणधीर ने बीच में टोका---
आशा की तरफ़ गौर से कुछ पल निहारा ---- आशा के सामने झुके होने की वजह से एकबार फ़िर उसकी दायीं चूची का ऊपरी गोलाई वाला हिस्सा बाहर आने को मचलने लगा है---- रणधीर बाबू की नज़रें वहीँ अटक गईं ----और इसबार आशा ने भी इस बात को नोटिस किया पर --- पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी--- शायद इस भरोसे में की अगर ये बुड्ढा थोड़ा नयनसुख लेकर उसे एक अच्छी नौकरी दे देता है तो इसमें हर्ज़ ही क्या है?!
‘पर आशा, एक बात मैं तुम्हें अभी से ही बिल्कुल क्लियर कर देना चाहूँगा कि अगर मैंने तुम्हें नौकरी पर रखा तो मैं हमेशा ही इस बात का अपेक्षा रखूँगा की तुम कभी मेरा कोई कहना नहीं टालोगी--- ज़रा सी भी ना-नुकुर नहीं--- और यही तुम्हारा फर्स्ट ड्यूटी --- परम कर्तव्य भी होगा--- ठीक है??’
अंतिम के शब्दों को कहते हुए रणधीर बाबू ने चश्में को नाक पर थोड़ा नीचे करते हुए बड़ी बड़ी आँखों से सीधे आशा की आँखों में झाँका --- रणधीर के इस तरह देखने से आशा थोड़ी सहम ज़रूर गई पर बात को ज़्यादा गंभीरता से नहीं लेते हुए चेहरे पर एक फीकी स्माइल लिए सिर हिलाते हुए ‘बिल्कुल सर..’ बोली |
‘आई प्रॉमिस की मैं आपकी हर आदेश का --- हर बात का पालन करुँगी ---- किसी भी बात में कभी कोई बाधा न दूँगी न बनूँगी--- आपकी हर बात सर आँखों पर--- |’
आशा को बिना इक पल की भी देरी किए; ज़रूरत से ज़्यादा हरेक बात को मानते देख रणधीर मन ही मन बहुत खुश हुआ---चिड़िया खुद ही बिछाए गए जाल को अपने ऊपर ले ले रही है—ये समझते देर नहीं लगी |
‘वैरी गुड आशा... तुम्हारे रेस्पोंस से मैं काफ़ी प्रभावित हुआ .. वाकई तुममें ‘काम’ करने की एक ललक है (काम शब्द पर थोड़ा ज़ोर दिया रणधीर बाबू ने) --- समझो की तुम लगभग एक जॉब पा गई---- बस, एक बात के लिए तुम्हें हाँ करना है---- एक शर्त समझो इसे--- या--- म्मम्मम--- इट्स लाइक एन एग्जाम--- अ टेस्ट--- टू गेट सिलेक्टेड फॉर द जॉब---’
‘यस सर... एनीथिंग----|’ – आशा जोश में आ कर बोली |
‘हम्म्म्म-----’ ---रणधीर बाबू के होंठों पर एक कुटिल मुस्कान खेल गई |
और फ़िर रणधीर बाबू ने वह शर्त बताया--- उस टेस्ट के बारे में जिसे पास करते ही आशा को एक शानदार जॉब मिलेगा----
जैसे जैसे रणधीर बाबू शर्त और उसकी बारीकियाँ समझाते गए---
वैसे वैसे;
आशा की आँखें घोर आश्चर्य और अविश्वास से बड़ी और चौड़ी होती चली गई ---- ह्रदय स्पंदन कई गुना बढ़ गया--- अपने ही कानों पर यकीं नहीं हो रहा था आशा को ----- रणधीर बाबू के शर्त के एक एक शब्द, आशा के काँच सी अस्तित्व पर पत्थर की सी चोट कर; उसके अस्तित्व को समाप्त करते जा रहे थे ----- बुत सी बैठी रह गई सोफ़े पर---- |
क्रमशः
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