18-05-2021, 01:17 PM
मेरी बीबी की आँखों से अश्रुधार बहने लगी, जिसे देख कर तरुण स्तब्ध सा हो गया। उसका हाथ जो दीपा की चूँचियों को सेहला रहा था और मेरी बीबी की निप्पलोँ को अपनी उँगलियों में पिचका रहा था, दीपा की ब्रा में ही स्थिर हो गया। उसे पता नहीं था की उसकी हरकतों से दीपा इतनी ज्यादा परेशान हो जायेगी। जब कुछ समय तक ऐसे ही अपने हाथ दीपा की ब्रा में ही रखे दीपा के बॉल को अपनी उँगलियों में जकड़े हुए तरुण खड़ा रहा तब मेरी बीबी ने सोचा की उसे तरुण को कुछ रियायत देनी पड़ेगी जिससे वह उसे जाने दे।
उस समय मेरी प्यारी पत्नी ने एक ऐसी गलती की जो उसे उस एक तरफी रास्ते पर ले गयी, जहां से शायद वापस आना उसके लिए बहुत मुश्किल था। दीपा ने कहा, "तरुण आखिर तुम्हें मुझसे क्या चाहिए? देखो, मैं अभी बहुत परेशान हूँ। अभी मुझे प्लीज जाने दो। बाद में तुम जो कहोगे मैं करुँगी, पर अभी मुझे और परेशान मत करो प्लीज!"
तरुण दीपा की बात सुनकर एकदम गंभीर हो गया। उसने दीपा के ब्लाउज में से अपने हाथ निकाल दिए। और दीपा की और देख कर बोला, "भाभी, क्या आप इतनी नासमझ हैं की आप नहीं जानती की मैं क्या चाहता हूँ? क्या मैं जो मागूंगा वह आप मुझे दोगी? आपने मुझे वचन दे दिया है भाभी। अब मुकरना मत।"
दीपा तरुण की और देखती ही रही। उसे समझ में नहीं आया की कैसे उसके मुंह से वह शब्द निकल गए और कैसे उसने तरुण को वचन दे दिया की बाद में वह जो तरुण चाहेगा वो करेगी? ऐसा करने से तो वह तरुण के चालाकी से बुनी हुई जाल में फँस गयी। अब वह क्या करे? दीपा परेशानी भरी नज़रों से तरुण को बिना कुछ बोले देखती ही रही। उसकी आँखों में एक असहायता का भाव था।
तरुण ने फिर एक और चाल चली और दीपा को रिलैक्स करने के लिए कहा, "अरे मेरी भोली भाभी! आप चिता मत करिये। अभी तो मैं आपसे सिर्फ दिल्लगी कर रहा था। मुझे अभी कुछ नहीं चाहिए। आप जब मेरे पास होती है ना, तो पता नहीं मुझे क्या हो जाता है। मेरा आपको दुःख पहुंचाने का कोई इरादा नहीं है। आप हाथ मत जोड़िये। चाहो मुझे एक थप्पड़ मार लो पर रोओ मत। आप चाहो तो अभी जा सकती हो। मैं आपको और परेशान नहीं करूंगा। पर भाभी, जब कभी मौक़ा मिला और मैंने आपसे माँगा तो फिर आप अपने वचन से मुकर तो नहीं जाओगे ना?"
दीपा ने जब तरुण से यह सूना की तरुण अब दीपा को परेशान नहीं करेगा, तो दीपा की जान में जान आयी। दीपा ने अपना सर उठा कर कहा, "मैं कभी अपने वचन से मुकरती नहीं हूँ।"
तरुण ने कहा, "तो बस भाभी, आप जा सकती हो। मैं आपको और परेशान नहीं करूंगा। पर जाते जाते बस मेरी इस वक्त एक छोटी सी रिक्वेस्ट है।"
मेरी बीबी का दिमाग फिर घूमने लगा। दीपा ने पूछा, "तुम्हें वचन तो दे दिया अब और क्या रिक्वेस्ट है भाई?"
तरुण ने कहा, "भाभी मेरी एक छोटी सी इच्छा है। ऐसी कोई बड़ी या घबराने वाली बात नहीं है, बस एक छोटी सी इच्छा है। क्या आप पूरी करोगी?"
दीपा अकुलाते हुए सावधानी से बोली, "क्या बात है? और क्या चाहिए तुम्हें?"
तरुण ने कहा, "भाभी जी, गभराइये मत। मुझे और कुछ ज्यादा नहीं चाहिए। पर जब भी मैं आपके रसीले होँठ देखता हूँ तो पता नहीं मुझे क्या हो जाता है? मैंने कई बार आपके सर को और आपके गालों को चूमा है। पर कभी आपके रसीले होंठो को नहीं चूमा। क्या मैं एक सेकंड के लिए ही बस एक ही बार आपके होँठों को चुम सकता हूँ? बस एक सेकंड के लिए ही? प्लीज? मैं फिर कभी दुबारा आपसे ऐसी मांग नहीं करूंगा। आई प्रॉमिस।" यह कह कर तरुण अपने दोनों कान अपने दोनों हाथों की उँगलियों से पकड़ कर बड़ी ही भोली सूरत बना कर खड़ा हो गया।
तरुण का ड्रामा देख कर दीपा बरबस ही हँस पड़ी। कहते हैं ना की हँसी तो फँसी। दीपा ने एक गहरी राहत भरी साँस ली। क्यूंकि दीपा ने तरुण को प्रॉमिस किया था की वह जो तरुण चाहेगा वह करेगी तो मेरी प्यारी दीपा को डर था की कहीं तरुण उसे यह ना कह दे की वह दीपा को चोदना चाहता है। तो चलो एक चुम्मा ही तो देना है, और वह भी कुछ सेकंड के लिए।
तरुण की बात सुनकर दीपा ने कहा, "तरुण बहुत हो गया। मुझे डर है की कहीं दीपक आ गये और हमें देख लिया तो तुम्हें तो कुछ नहीं कहेंगे, पर मेरी फजीहत हो जायेगी। अच्छा, ठीक है। सिर्फ एक सेकंड के लिए ही। ओ के? कोई जबरदस्ती नहीं। चलो जो करना है जल्दी करो और मेरा पीछा छोडो प्लीज!"
तरुण मुस्कराया। मैं वहा खड़ा सब सुन रहा था। बात सुनकर मेरा लण्ड पूर्व रस से रिसने लगा। मैं समझ गया की अगर उसने दीपा को होँठों पर चुम लिया तो समझो उसने बाजी मार ली। दीपा होँठों पर क़िस की मास्टर थी। किस मात्र से वह एकदम उत्तेजित हो जाती थी।
उस समय मेरी प्यारी पत्नी ने एक ऐसी गलती की जो उसे उस एक तरफी रास्ते पर ले गयी, जहां से शायद वापस आना उसके लिए बहुत मुश्किल था। दीपा ने कहा, "तरुण आखिर तुम्हें मुझसे क्या चाहिए? देखो, मैं अभी बहुत परेशान हूँ। अभी मुझे प्लीज जाने दो। बाद में तुम जो कहोगे मैं करुँगी, पर अभी मुझे और परेशान मत करो प्लीज!"
तरुण दीपा की बात सुनकर एकदम गंभीर हो गया। उसने दीपा के ब्लाउज में से अपने हाथ निकाल दिए। और दीपा की और देख कर बोला, "भाभी, क्या आप इतनी नासमझ हैं की आप नहीं जानती की मैं क्या चाहता हूँ? क्या मैं जो मागूंगा वह आप मुझे दोगी? आपने मुझे वचन दे दिया है भाभी। अब मुकरना मत।"
दीपा तरुण की और देखती ही रही। उसे समझ में नहीं आया की कैसे उसके मुंह से वह शब्द निकल गए और कैसे उसने तरुण को वचन दे दिया की बाद में वह जो तरुण चाहेगा वो करेगी? ऐसा करने से तो वह तरुण के चालाकी से बुनी हुई जाल में फँस गयी। अब वह क्या करे? दीपा परेशानी भरी नज़रों से तरुण को बिना कुछ बोले देखती ही रही। उसकी आँखों में एक असहायता का भाव था।
तरुण ने फिर एक और चाल चली और दीपा को रिलैक्स करने के लिए कहा, "अरे मेरी भोली भाभी! आप चिता मत करिये। अभी तो मैं आपसे सिर्फ दिल्लगी कर रहा था। मुझे अभी कुछ नहीं चाहिए। आप जब मेरे पास होती है ना, तो पता नहीं मुझे क्या हो जाता है। मेरा आपको दुःख पहुंचाने का कोई इरादा नहीं है। आप हाथ मत जोड़िये। चाहो मुझे एक थप्पड़ मार लो पर रोओ मत। आप चाहो तो अभी जा सकती हो। मैं आपको और परेशान नहीं करूंगा। पर भाभी, जब कभी मौक़ा मिला और मैंने आपसे माँगा तो फिर आप अपने वचन से मुकर तो नहीं जाओगे ना?"
दीपा ने जब तरुण से यह सूना की तरुण अब दीपा को परेशान नहीं करेगा, तो दीपा की जान में जान आयी। दीपा ने अपना सर उठा कर कहा, "मैं कभी अपने वचन से मुकरती नहीं हूँ।"
तरुण ने कहा, "तो बस भाभी, आप जा सकती हो। मैं आपको और परेशान नहीं करूंगा। पर जाते जाते बस मेरी इस वक्त एक छोटी सी रिक्वेस्ट है।"
मेरी बीबी का दिमाग फिर घूमने लगा। दीपा ने पूछा, "तुम्हें वचन तो दे दिया अब और क्या रिक्वेस्ट है भाई?"
तरुण ने कहा, "भाभी मेरी एक छोटी सी इच्छा है। ऐसी कोई बड़ी या घबराने वाली बात नहीं है, बस एक छोटी सी इच्छा है। क्या आप पूरी करोगी?"
दीपा अकुलाते हुए सावधानी से बोली, "क्या बात है? और क्या चाहिए तुम्हें?"
तरुण ने कहा, "भाभी जी, गभराइये मत। मुझे और कुछ ज्यादा नहीं चाहिए। पर जब भी मैं आपके रसीले होँठ देखता हूँ तो पता नहीं मुझे क्या हो जाता है? मैंने कई बार आपके सर को और आपके गालों को चूमा है। पर कभी आपके रसीले होंठो को नहीं चूमा। क्या मैं एक सेकंड के लिए ही बस एक ही बार आपके होँठों को चुम सकता हूँ? बस एक सेकंड के लिए ही? प्लीज? मैं फिर कभी दुबारा आपसे ऐसी मांग नहीं करूंगा। आई प्रॉमिस।" यह कह कर तरुण अपने दोनों कान अपने दोनों हाथों की उँगलियों से पकड़ कर बड़ी ही भोली सूरत बना कर खड़ा हो गया।
तरुण का ड्रामा देख कर दीपा बरबस ही हँस पड़ी। कहते हैं ना की हँसी तो फँसी। दीपा ने एक गहरी राहत भरी साँस ली। क्यूंकि दीपा ने तरुण को प्रॉमिस किया था की वह जो तरुण चाहेगा वह करेगी तो मेरी प्यारी दीपा को डर था की कहीं तरुण उसे यह ना कह दे की वह दीपा को चोदना चाहता है। तो चलो एक चुम्मा ही तो देना है, और वह भी कुछ सेकंड के लिए।
तरुण की बात सुनकर दीपा ने कहा, "तरुण बहुत हो गया। मुझे डर है की कहीं दीपक आ गये और हमें देख लिया तो तुम्हें तो कुछ नहीं कहेंगे, पर मेरी फजीहत हो जायेगी। अच्छा, ठीक है। सिर्फ एक सेकंड के लिए ही। ओ के? कोई जबरदस्ती नहीं। चलो जो करना है जल्दी करो और मेरा पीछा छोडो प्लीज!"
तरुण मुस्कराया। मैं वहा खड़ा सब सुन रहा था। बात सुनकर मेरा लण्ड पूर्व रस से रिसने लगा। मैं समझ गया की अगर उसने दीपा को होँठों पर चुम लिया तो समझो उसने बाजी मार ली। दीपा होँठों पर क़िस की मास्टर थी। किस मात्र से वह एकदम उत्तेजित हो जाती थी।