18-05-2021, 10:59 AM
सुबह उठा तो भाभी की चुम्मी के साथ. सुबह सुबह भाभी के दर्शन पाकर मैं बड़ा खुश हुआ. मैंने उनको चूम लिया तो भाभी बोली "राजू, पहले ब्रश तो कर ले.... मैं तब तक तेरा बिस्तर ठीक कर देती हूं"
मैं जल्दी से उठकर बाथरूम में गया और ब्रश करने लगा. भाभी तब तक मेरा कमरा ठीक कर रही थी. मैं ब्रश कर कर आया और भाभी को पीछे से पकड़ लिया और उनकी गर्दन को चूम लिया, और फिर साड़ी के अंदर हाथ ले जाकर उनके पेट पर रख दिए.
"भाभी, बड़ा मन हो रहा है. एक बार लेने दो ना."
"राजू आज से मेरी महावरी शुरू हो गई है, इसलिए मैं तेरे साथ सेक्स नहीं कर सकती. एक हफ्ता सब्र कर. सब्र का फल मीठा होता है."
मैंने भाभी की चूत पर साड़ी के ऊपर से ही हाथ रखा और बोला "हमम.... फल."
मैं और भाभी दोनों हंसने लगे और फिर भाभी ने मेरा लंड अपने हाथ में लिया और प्यार से हिलाने लगे.
"राजू, इसे एक हफ्ते तक मत हिलाना. अपने टट्टो में ढेर सारा माल इकट्ठा होने दे. अगले रविवार तेरे माल से नहाऊंगी."
फिर उन्होंने मेरे लंड को छोड़ दिया और कमरा ठीक करने लगी. मैं उनके आगे आकर उनका पल्लू हटाया और खूब देर उनके पेट से खेला और नाभि में जीभ डाल कर चाटा. फिर मैं नहा धोकर नाश्ता करके कॉलेज चला गया. अगले 5 दिन तक भाभी की महावरी चली और मैं लंड बिना हिलाए ही गुजारा करने लगा. मैं चुदाई के लिए उतावला हो रहा था और रविवार का इंतजार करने लगा. न हिलाने की वजह से मेरे टट्टे मुझे भारी महसूस होने लगे थे. मेरा लंड भाभी की चूत में जाने को आतुर था.
खैर रविवार का दिन आ ही गया. सुबह भैया चाची को लेकर चले गए. जाने से पहले उन्होंने मुझसे बोला "राजू घर का ध्यान रखना और भाभी का ख्याल रखना."
"आप घबराओ मत भैया. भाभी का मैं बहुत अच्छे से ख्याल रखूंगा."
भैया और चाची के चले जाने के बाद मैंने देखा कि भाभी किचन में खाना बना रही थी. मैंने भाभी को पीछे से जकड़ लिया. भाभी बोली "राजू नाश्ते में क्या खाएगा?"
"भाड़ में जाए नाश्ता, भाभी. पेट से ज्यादा मेरा लंड भूखा है. अभी सिर्फ चुदाई करनी है."
यह कह कर मैंने गैस बंद करी और भाभी को गोद में उठाकर सीढ़ियां चढ़कर उनके कमरे में ले आया.
"राजू, चुदाई तो हम नीचे नहीं कर सकते थे? मुझे मेरे कमरे में क्यों लाया है?"
"भाभी आप के साथ सेक्स करने में सबसे ज्यादा मजा आप ही के बिस्तर में आता है."
यह कह कर मैंने भाभी का पल्लू हटाया और फिर ब्लाउज भी उतार दिया. फिर उनका ब्रा उतार कर उनकी चुचियों से खेलने लगा. एक एक करके उनकी चूचूक बारी-बारी से चूसने लगा. भाभी "स्स्स्स्सस्स आह स्स्स्स्स आह"की आवाज निकाल कर अपनी चूचियां चुसवाने का मजा लेने लगी.
चूचियां चूसते हुए मैंने भाभी की चड्डी भी उतार दी. अब भाभी पूरी तरह से नंगी थी. मैं भी कपड़े उतारकर नंगा हो गया और उनके बदन को कस के जकड़ लिया और उन्हें प्यार से चूम लिया.
"राजू, महावरी के बाद बहुत प्यासी है मेरी चूत. इसको थोड़ा चाट ना. बहुत परेशान करती है यह मुझे."
मैं नीचे जमीन पर बैठ गया. अब भाभी की चूत मेरे मुंह के सामने थी. सबसे पहले मैंने भाभी की चूत को चूम लिया और खूब देर तक चूमता रहा. भाभी सिसकारियां ले रही थी, फिर बोली "राजू, इसे चूमना बंद कर और चाट इसे. अपनी जीभ निकालकर युद्ध कर इससे."
मैंने भाभी का कहा माना और जीभ निकालकर उनकी चूत पर धावा बोल दिया. अभी चूत के इर्द-गिर्द, कभी चूत को तो कभी चूत के अंदर अपनी जीभ से छेड़ता. भाभी की सिसकियां बढ़ने लगी. मैं चूत को पागलों की तरह चाटे जा रहा था. भाभी के मुंह से "आह आह"की आवाज आ रही थी. उनकी चूत ने भी अब जवाब देना शुरू कर दिया था. वह अपना रस छोड़ने लगी. भाभी का रस मुझे और चाटने पर प्रेरित कर रहा था. मैंने और तेजी से भाभी की चूत चटना शुरू कर दिया. भाभी तो मानो पागल ही हो गई थी. उन्होंने मेरा सर पकड़ लिया और कहा "हां राजू... हां वहीं पर... बस वहीं पर. मेरी चुदक्कड़ चूत को चाट. छोड़ना मत एसे. बहुत परेशान करती है यह तेरी भाभी को."
मैंने अपनी उंगली ली और उससे भाभी की भगनासा रगड़ने लगा. भाभी को और क्या चाहिए था. अचानक भाभी चीख उठी. "राजू.... मैं छूट रही हूं... मैं छूट रही हूं.... आहहहहहहह!"
भाभी खूब देर तक छुटी. बिस्तर पर लेट गई.
मैं भाभी के ऊपर चढ़ गया और उनको चूम लिया.
"भाभी, मैंने आप की चूत की भूख तो शांत कर दी पर मेरा लंड अभी भी भूखा है. अब चोदने दो ना भाभी."
भाभी ने मुझे अनुमति दे दी. मैंने अपना लंड लिया उनकी चूत में डाला. चूत इतनी गीली थी कि बिना किसी रूकावट के लंड पूरा ही एक बार में अंदर चला गया.
मैंने धीरे धीरे अपना लंड आगे पीछे करना चालू किया. भाभी की चूत इतनी गीली थी की जरा देर में ही मेरा लंड उनकी चूत के पानी से सन गया. चूत से फचफचफचफच की आवाज आने लगी. मैंने भाभी की एक टांग उठाई और अपने कंधे पर रख दी. अब भाभी की चूत मेरे लिए पूरी तरह से खुली थी मैं भाभी के ऊपर आ गया और चुदाई और तेज कर दी. भाभी के मुंह से "आहहहहहहहह"की आवाज निकल रही थी. मेरे अंडे भाभी के पिछवाड़े पर तबला बजा रहे थे. मैंने भाभी को चूम लिया अपनी जीभ के मुंह में डाल दी. अब हमारी जीभ में घमासान युद्ध शुरू हो गया. मैंने अपने हाथों से भाभी की दोनों चूचियां पकड़ ली और कस कस के दबाने लगा. उस पल मैं और भाभी पूरी तरह से एक हो गए थे. भाभी ने भी मुझे अपने दोनों हाथों से कस के पकड़ा हुआ था.
"चोद मेरे राजा! और कस के चोद! पूरी ताकत से चोद! भोसड़ा बना मेरी चूत का! आहआहआहआहआह!"
तभी मैंने महसूस किया की भाभी की चूत मेरे लंड को कस के भीच रही है.
"आह! मैं छूट रही हूं राजू... मैं.... मैं... मैं छूट रही हूं!"
और भाभी छूट गई. मैंने अपना लंड जल्दी से भाभी की चूत से निकाला और उनके मुंह के पास लाकर पिचकारी मरने लगा. मेरे अंडों में जमा ढेर सारा माल मेरे लंड से निकल कर भाभी के मुंह पर गिरने लगा. मेरे माल की वर्षा से भाभी नहाने लगी.
भाभी को नहलाने के बाद मैं थक के चूर हो गया और उनके बदन पर ही गिर पड़ा. भाभी हल्के हल्के मुझे सहला रही थी.
"राजू, तूने तो अपनी भाभी को बहुत ही ज्यादा गंदा कर दिया है. अब उठ जा और मुझे नहाने दे."
मैं भाभी को गोद में उठाकर उनके बाथरूम में ले गया और शावर ऑन कर दिया. पानी की धार के नीचे खड़े होकर हम एक दूसरे से चिपक गए. भाभी को मैंने अपने माल से नहला कर बहुत गंदा कर दिया था. मैंने पानी से भाभी का चेहरा धोया और फिर साबुन लगाकर उसे साफ किया. फिर हम दोनों ने एक दूसरे के शरीर पर साबुन लगाया और एक दूसरे को नहलाया. नहाने के बाद भाभी बोली "राजू, मैं थक के चूर हो गई हूं. बहुत नींद आ रही है. चल थोड़ी देर सो जाते हैं.".
"हां भाभी, जरूर. आपके संग सोने के लिए ही तो मैं उतावला हूं."
भाभी मुस्कुराए और अपनी ब्रा और पेंटी पहनने लगी.
"यह क्या कर रही हो भाभी?"
"राजू मैं तो बस अपने कपड़े पहन रही थी."
"भाभी, एक वादा कीजिए. जब तक चाची वापस नहीं आ जाती, तब तक आप नंगी ही रहेंगे. एक भी कपड़ा नहीं पहनोगी."
"मगर राजू...."
"भाभी प्लीज, आपको मेरे लंड की कसम."
"चल राजू और भला मैं तेरे को कैसे मना कर सकती हूं."
मैं भाभी को उठाकर कमरे में ले आया और बिस्तर पर लेटा दिया. भाभी ने देखा कि मेरा लंड खड़ा हुआ है.
"राजू तेरा छोटा शेर तो अभी भी खड़ा हुआ है. भूखा है बेचारा".
"भूखा नहीं है भाभी. बस अब आप की गुफा के अंदर जाकर आराम करना चाहता है."
भाभी ने मुस्कुराकर अपनी टांगे खोल दी. मैंने अपना लंड उनकी चूत के अंदर सरका दिया. फिर मैं भाभी के ऊपर आकर लेट गया. हम दोनों ने एक दूसरे को जकड़ लिया और एक दूसरे के होठों को खूब देर चूमा. फिर मैं भाभी की चूची पर सर रखकर उनकी दिल की धड़कन सुनते हुए मीठी नींद सो गया.
कुछ घंटों बाद में उठा. मैंने देखा भाभी अभी भी सो रही थी. सोते हुए बहुत प्यारी लग रही थी. मैंने भाभी को चूम लिया और धीरे धीरे लंड आगे पीछे करके उनको चोदने लगा. भाभी नींद में ही ममममममम ममममममम की मीठी आवाज निकाल रही थी. भाभी के होठों को मैं चूमने लगा. उनकी चूचियां पकड़ के मसलने लगा. इस बीच भाभी उठ गई. अपने हाथों से उन्होंने मेरी पीठ को जकड़ लिया और अपने पैरों से मेरे पिछवाड़े को. अब उनके हाथ मेरी पीठ पर थे और उनके तलवे मेरे कूल्हे पर. "चोद मुझे राजू.... और कस कर चोद.... बना दे इसे भोसड़ा!"
"भाभी, बड़े दिनों का भूखा है मेरा लंड. ढेर सारी चुदाई करने के बाद ही शांत होगी इसकी भूख!"
"तो शांत कर इसकी भूख. चोद मुझे भड़वे. मेरी चूत का घमंड चूर चूर कर दे. इसे अपने लंड की दासी बना दे.... आह आह आह आह.... राजू, मैं छूट रही हूं... मैं छूट रही हूं!"
भाभी की चूत मेरे लंड को जकड़ लिया और भाभी ने मुझे. फिर वह छूटने लगी. मुझसे भी ज्यादा देर ना रहा गया और भाभी की चूत में ही मैं भी छूट गया.
अपना सारा माल भाभी के अंदर छोड़ने के बाद मैंने भाभी को चूम लिया. भाभी मुझे चूमने लगी. मेरा लंड छोटा होकर भाभी की चूत से बाहर निकल आया. भाभी की चूत से मेरे वीर्य की धार निकल कर बिस्तर पर इकट्ठा होने लगा. भाभी ने अपनी चूत में उंगली डालकर ज्यादा से ज्यादा माल निकालने की कोशिश की.
"हाय राम! राजू .... कितना माल बनाते हैं तेरे टट्टे? मेरी चूत में तो मानो बाढ़ ही आ गई हो.".
"भाभी, पिछले 1 हफ्ते से मैंने मुट्ठ भी नहीं मारा था.... इतने दिनों का माल मेरे अंडों में जमा था... आज आपकी चूत मिली है तो उसी का धन्यवाद कर रहा है मेरा लंड आपको इतना सारा माल छोड़ कर."
भाभी मुस्कुराई. हम फिर एक दूसरे को चूमने लगे. फिर मैंने धीरे से भाभी को बोला.
"भाभी मेरी एक दिली इच्छा है. प्लीज बुरा मत मानना."
"हां बोल राजू. मेरी कोई बात मुझे बुरी नहीं लगेगी."
"भाभी... मैं आपके संग एक बच्चा करना चाहता हूं. आप के अंदर अपना बीज बोना चाहता हूं. आपकी कोख हरी करना चाहता हूं. अपनी औलाद को आपके पेट में पलता देखना चाहता हूं."
"यह क्या कह रहा है राजू? तू मुझे मां बनाना चाहता है?"
"हां भाभी. बस एक ही बच्चा. आपके और मेरे प्यार की निशानी."
"देख राजू. हम खूब सेक्स करते हैं. तेरे लंड की तो मुझे लत लग चुकी है. मुझे अच्छा लगता है अपनी चूत में तेरा लंड लेकर तेरे से चुदना. पर इस दुनिया में बच्चा लाना बहुत ही बड़ी जिम्मेदारी होती है. तू तो बस मुझे चोद कर मेरे अंदर अपना बीज बोकर चला जाएगा. उस बेचारी नन्हीं सी जान को पालूंगी मैं और तेरे भैया. वह बेचारा यह भी नहीं जानेगा कि उसका असली बाप कौन है. इसलिए ऐसी नाजायज औलाद पैदा करना समझदारी का काम नहीं है."
"पर भाभी प्लीज...."
"अच्छा छोड़ इन बातों को राजू.... बड़ी भूख लगी है. किचन में जाकर खाना बनाने दे."
भाभी पहले बाथरूम गई और पानी से धो कर अपनी चूत साफ करने लगी. 15 मिनट के बाद वह बाहर आई.
"राजू, तूने तो ढेर सारा माल मेरे बहुत अंदर छोड़ा था. कभी भी मुझे इतनी देर नहीं लगी अपनी चूत साफ करने में". मैं मुस्कुरा कर अपने टट्टे हिला रहा था. तभी मैंने देखा भाभी अपनी ब्रा पहनने लग रही है. मैंने तुरंत उनकी ब्रा को पकड़ा और बोला "भाभी, अपना वादा मत भूलो". भाभी मुस्कुराई और ब्रा उतार कर फेंक दी और फिर नंगी ही किचन में जाकर खाना बनाने लगी. चलते समय उनके बलखाते चूतड़ और हिलती हुई कमर मेरा लंड फिर से जगने लगा. भाभी किचन में खाना बना रही थी और मैं उनके पीछे जाकर खड़ा हो गया. मैंने उनकी कमर पर अपने हाथ रखे और उनकी पीठ चूमने लगा.
"राजू, इतनी चुदाई के बाद भी तू थका नहीं?"
"भाभी, बस यूं समझ लीजिए कि आपके खूबसूरत बदन की लत लग चुकी है मुझे. इससे ज्यादा देर में दूर नहीं रह सकता."
भाभी मुस्कुराकर खाना बनाने लगी और मैं उनकी पीठ को चूमते उनके चूतड़ों की तरफ आ गया.
मैंने उनकी चूत को सूंघ कर चूत की महक अपने अंदर ली. बहुत ही मीठी खुशबू थी भाभी की चूत में. मैंने अपनी जीभ निकाली और उससे भाभी की चूत चाटने लगा.
"उफफ राजू.... लगता है तू आज मेरी चूत को फाड़कर ही रख देगा."
फिर भाभी ने अपनी चूत को अपने हाथों से ढक लिया.
"भाभी, आप की चूत ही मेरी देवी है.... मैं इसी की पूजा करूंगा. अभी मैं बस अपनी देवी को खुश करने की कोशिश कर रहा हूं". प्यार से भाभी का हाथ उनकी चूत से हटाया और मस्त होकर उनकी चूत चाटने लगा और अपनी देवी को खुश करने की कोशिश करने लगा. मैं प्यार से उनकी चूत चाटी जा रहा था और वह कसमसा रही थी. उनके मुंह से सिसकारी भी निकल रही थी. मेरे मन में थोड़ी शैतानी आई. मैंने जल्दी से शहद की शीशी उठाई और अपने हाथ में पलट दी. फिर अपने शहद से सने हाथों को भाभी की चूत पर मलने लगा. फिर उनकी शहद से सनी चूत को मैं चाटने लगा. शहद का स्वाद मुझे चाटने को और प्रेरित कर रहा था. इसी बीच भाभी छुटने लगी.
"राजू, और कितना चोदेगा आज तुम मुझे. मेरी चूत का तो लगभग भोसड़ा बनी चुका है."
"सुम्मी मेरी जान... आज मैं तुझे इतना चोदूंगा कि मेरा लंड भी तुझे अपनी चूत में ढीला लगेगा."
यह कहकर मैंने अपना लंड भाभी की चूत में फिर से डाल दिया लेकिन चुदाई शुरू नहीं की. भाभी इंतजार कर रही थी कि मैं कब अपना लंड आगे पीछे करना शुरू करूंगा. जब मैंने चुदाई शुरू नहीं की तो भाभी बोली "राजू, शुरू कर ना."
"भाभी आप खाना बनाओ. मैं प्यार से आपको चोदता रहूंगा".
भाभी खाना बनाने लगी. मैं धीरे धीरे अपना लंड आगे पीछे करके उन्हें चोदने लगा. मेरे हाथ भाभी के पेट पर थे. और मैं उनकी नाभि से खेल रहा था. मेरा लंड भाभी की चूत के पानी से सन चुका था.
अब तो मैं भाभी की परवाह किए बिना उनकी चूत चोदने लगा. मेरा लंड बहुत भूखा था. उनकी चूत इतनी गीली थी कि मेरी चुदाई से बुरी तरह से फचफचफचफच की आवाज आ रही थी. भाभी भी चीखने लगी "आआआआआ हां राजू वहीं पर... बस उधर ही.... चोद मुझे.... चोद मुझे.... जान निकाल दे मेरी चूत की.... दासी बना दे इसे अपने लंड की.... आहआहआहआहआह.... मैं.... मैं.... मैं छूट रही हूं.... मैं छूट रही हूं". फिर भाभी की चूत में मेरे लंड को कस के भीच लिया और भाभी छूटने लगी.
मेरा लंड तो अभी छुटने का नाम भी नहीं लिया था. छुटने के कुछ मिनट बाद भाभी हांफते हुए बोली "राजू, 1 दिन में इतनी चुदाई तो मैंने कभी नहीं की... आज तो मेरी चूत भी मुझसे दया के मांग रही है और ना चुदने के लिए."
"भाभी आपको मेरा लंड पसंद है?"
"क्या बात कर रहा है, राजू. तेरे मोटे काले लंड के लिए ही तो मैं जीती हूं. मुझे से अपनी चूत में लेना और रंडी जैसे चुदना. अच्छा लगता है. तेरा लंड और मेरी चूत एक दूजे के लिए बने हैं. बहुत मजा दिया है तेरे इस लंड ने मुझे."
"तो यह लंड आपसे अपना हक मांगता है, भाभी."
"कौन सा हक, राजू?"
"आपके अंदर अपने बीज बोने का हक".
"राजू..."
"प्लीज भाभी.... सिर्फ एक बच्चा... मेरे लंड की खातिर."
भाभी ने मेरा लंड अपनी चूत से निकाला और पलट के मेरी तरफ देखा. उन्होंने प्यार से मुझे चूमा.
"राजू, मैं समझ सकती हूं तेरी मेरे अंदर अपना बीज बोने की चाहत. तू मेरे इस पेट को अपने बच्चे से फूलता हुआ देखना चाहता है और मेरा यकीन मान, तेरे बीज में इतनी ताकत है. पर राजू, तू अभी बहुत छोटा है. थोड़ा बड़ा हो जा, दुनिया देख ले, फिर बच्चे पैदा करने की सोचना, मेरी चूत तो तेरे लंड की दासी है ही."
भाभी ने फिर से मेरी बात को टाल दिया था. लेकिन मैंने भी अब उस बात को आगे नहीं बढ़ाया.
जब खाना बनकर तैयार हो गया तो भाभी मेरे पास खाना लेकर आई.
"यह ले राजू. खाना खा ले. तू भी बहुत भूखा होगा."
मैं कुर्सी पर बैठ गया पर मेरा लंड अभी भी खड़ा था. भाभी ने मुझे थाली पकड़ाई और खुद जमीन पर बैठकर मेरा लंड मुंह में लेकर चूसने लगी. मुझे खूब आनंद आ रहा था. भाभी कुशल पूर्वक मेरा लंड चूस रही थी. कभी चाटती तो कभी हल्के से काटती तो कभी मेरे लंड का छेद अपनी जीभ से छेड़ती. साथ ही साथ वह मेरे अंडे भी सहला रही थी. कुछ देर बाद मेरा लंड छुटने लगा और मैं भाभी के मुंह में ही छूट गया. भाभी भी मेरे पूरे माल को पी गई.
"स्वादिष्ट और मलाईदार है तेरा माल, राजू".
पर मेरा लंड अभी भी खड़ा हुआ था. मैंने भाभी को अपने लंड पर बिठाया. फिर हम एक दूसरे को खाना खिलाने लगे. मैं भाभी की चूचियां भी चूस रहा था. खाना खाने के बाद मैंने थाली एक तरफ रख दी और भाभी को अपनी गोद में उठाकर बिस्तर पर ले गया. हम फिर एक बार चुदाई करने लगे और इस बार मैंने अपना सारा माल भाभी की चूत में ही निकाला.
सोमवार सुबह कॉलेज जाने तक मैं और भाभी नंगी ही रहे और एक दूसरे को चोदते रहे. कॉलेज जाने से पहले मैंने भाभी को अपनी कसम दी मेरी गैर हाजिरी में वह नंगी ही रहेंगी और एक भी कपड़ा नहीं पहनेगी. भाभी ने मेरी कसम खाई. हमारी यही दिनचर्या रही. सुबह उठना, भाभी के साथ नहाना, भाभी का नंगा ही नाश्ता बनाना, भाभी के साथ नाश्ता खाना, फिर भाभी को चोदना, फिर कॉलेज चले जाना और वापस आकर खाना खा कर भाभी को चोद के सो जाना. एक शाम को जब मैं वापस आया तो भाभी नंगी ही कुर्सी पर बैठ कर किताब पढ़ रही थी. मुझे यह देख कर खुशी हुई की भाभी ने इतने दिनों तक कसम नहीं तोड़ी. मैं चुपचाप भाभी के पैरों के पास जाकर बैठ गया और धीरे से उनका पैर चूम लिया.
"राजू तू आ गया. चल तेरे लिए खाना बना देती हूं."
"भाभी रुको.... आप किताब पढ़ते रहो."
भाभी किताब पढ़ने लगी. मैंने भाभी के पैरों को खोला और उनकी चूत के पास जाकर गहरी सांस ली. बहुत ही मादक खुशबू थी. मैंने जीभ निकाली और भाभी की चूत पर धावा बोल दिया.
"आह राजू... कितना जालिम है रे तू... आते ही मेरी चूत पर धावा बोल दिया?"
मैं भाभी की चूत चाटते रहा और उनकी भगनासा रगड़ता रहा.
"हां राजू.... हां राजू... कमीनी का सारा घमंड चूर कर दे... दिन भर सताती है यह तेरी भाभी को.... आहआहआहआहआह"
और कुछ ही देर में भाभी झड़ गई. फिर भाभी जाकर खाना बनाने लगी. मैं कमरे में जाकर कपड़ा उतार के नंगा हो गया और नीचे आकर किचन में जाकर भाभी के पीछे खड़ा हो गया. अपना लंड लिया और भाभी की चूत में सरका दिया.
"क्या कर रहे हो देवर जी?"
"कुछ नहीं मेरी जान... अपनी तलवार को इसकी म्यान में रख रहा हूं."
मैंने अभी चुदाई शुरू नहीं की थी. मैं भाभी के पेट पर अपने हाथ मल रहा था और उनकी पीठ चूम रहा था. भाभी बार-बार मुझे चुदाई शुरू करने का सिग्नल दे रही थी. लेकिन मैंने उनकी एक न मानी. आखिर में तंग आकर उन्होंने मुझसे पूछा, "क्या हुआ राजू... चोद क्यों नहीं रहा आज तुम मुझे?"
"भाभी बस एक छोटी सी ख्वाहिश थी."
"बोल ना मेरे राजा."
"क्या आपके पास लहंगा चोली है?"
"क्या?"
"लहंगा और चोली, भाभी."
"हां है.... क्यों?"
"बस तो फिर खाना खा कर आज आप लहंगा चोली पहनकर ऊपर कमरे में आना... बिना ब्रा और पेंटी के."
"ठीक है."
हमें एक साथ खाना खाया और फिर मैं भाभी के कमरे में आ गया और बिस्तर पर बैठ गया.
मैं जल्दी से उठकर बाथरूम में गया और ब्रश करने लगा. भाभी तब तक मेरा कमरा ठीक कर रही थी. मैं ब्रश कर कर आया और भाभी को पीछे से पकड़ लिया और उनकी गर्दन को चूम लिया, और फिर साड़ी के अंदर हाथ ले जाकर उनके पेट पर रख दिए.
"भाभी, बड़ा मन हो रहा है. एक बार लेने दो ना."
"राजू आज से मेरी महावरी शुरू हो गई है, इसलिए मैं तेरे साथ सेक्स नहीं कर सकती. एक हफ्ता सब्र कर. सब्र का फल मीठा होता है."
मैंने भाभी की चूत पर साड़ी के ऊपर से ही हाथ रखा और बोला "हमम.... फल."
मैं और भाभी दोनों हंसने लगे और फिर भाभी ने मेरा लंड अपने हाथ में लिया और प्यार से हिलाने लगे.
"राजू, इसे एक हफ्ते तक मत हिलाना. अपने टट्टो में ढेर सारा माल इकट्ठा होने दे. अगले रविवार तेरे माल से नहाऊंगी."
फिर उन्होंने मेरे लंड को छोड़ दिया और कमरा ठीक करने लगी. मैं उनके आगे आकर उनका पल्लू हटाया और खूब देर उनके पेट से खेला और नाभि में जीभ डाल कर चाटा. फिर मैं नहा धोकर नाश्ता करके कॉलेज चला गया. अगले 5 दिन तक भाभी की महावरी चली और मैं लंड बिना हिलाए ही गुजारा करने लगा. मैं चुदाई के लिए उतावला हो रहा था और रविवार का इंतजार करने लगा. न हिलाने की वजह से मेरे टट्टे मुझे भारी महसूस होने लगे थे. मेरा लंड भाभी की चूत में जाने को आतुर था.
खैर रविवार का दिन आ ही गया. सुबह भैया चाची को लेकर चले गए. जाने से पहले उन्होंने मुझसे बोला "राजू घर का ध्यान रखना और भाभी का ख्याल रखना."
"आप घबराओ मत भैया. भाभी का मैं बहुत अच्छे से ख्याल रखूंगा."
भैया और चाची के चले जाने के बाद मैंने देखा कि भाभी किचन में खाना बना रही थी. मैंने भाभी को पीछे से जकड़ लिया. भाभी बोली "राजू नाश्ते में क्या खाएगा?"
"भाड़ में जाए नाश्ता, भाभी. पेट से ज्यादा मेरा लंड भूखा है. अभी सिर्फ चुदाई करनी है."
यह कह कर मैंने गैस बंद करी और भाभी को गोद में उठाकर सीढ़ियां चढ़कर उनके कमरे में ले आया.
"राजू, चुदाई तो हम नीचे नहीं कर सकते थे? मुझे मेरे कमरे में क्यों लाया है?"
"भाभी आप के साथ सेक्स करने में सबसे ज्यादा मजा आप ही के बिस्तर में आता है."
यह कह कर मैंने भाभी का पल्लू हटाया और फिर ब्लाउज भी उतार दिया. फिर उनका ब्रा उतार कर उनकी चुचियों से खेलने लगा. एक एक करके उनकी चूचूक बारी-बारी से चूसने लगा. भाभी "स्स्स्स्सस्स आह स्स्स्स्स आह"की आवाज निकाल कर अपनी चूचियां चुसवाने का मजा लेने लगी.
चूचियां चूसते हुए मैंने भाभी की चड्डी भी उतार दी. अब भाभी पूरी तरह से नंगी थी. मैं भी कपड़े उतारकर नंगा हो गया और उनके बदन को कस के जकड़ लिया और उन्हें प्यार से चूम लिया.
"राजू, महावरी के बाद बहुत प्यासी है मेरी चूत. इसको थोड़ा चाट ना. बहुत परेशान करती है यह मुझे."
मैं नीचे जमीन पर बैठ गया. अब भाभी की चूत मेरे मुंह के सामने थी. सबसे पहले मैंने भाभी की चूत को चूम लिया और खूब देर तक चूमता रहा. भाभी सिसकारियां ले रही थी, फिर बोली "राजू, इसे चूमना बंद कर और चाट इसे. अपनी जीभ निकालकर युद्ध कर इससे."
मैंने भाभी का कहा माना और जीभ निकालकर उनकी चूत पर धावा बोल दिया. अभी चूत के इर्द-गिर्द, कभी चूत को तो कभी चूत के अंदर अपनी जीभ से छेड़ता. भाभी की सिसकियां बढ़ने लगी. मैं चूत को पागलों की तरह चाटे जा रहा था. भाभी के मुंह से "आह आह"की आवाज आ रही थी. उनकी चूत ने भी अब जवाब देना शुरू कर दिया था. वह अपना रस छोड़ने लगी. भाभी का रस मुझे और चाटने पर प्रेरित कर रहा था. मैंने और तेजी से भाभी की चूत चटना शुरू कर दिया. भाभी तो मानो पागल ही हो गई थी. उन्होंने मेरा सर पकड़ लिया और कहा "हां राजू... हां वहीं पर... बस वहीं पर. मेरी चुदक्कड़ चूत को चाट. छोड़ना मत एसे. बहुत परेशान करती है यह तेरी भाभी को."
मैंने अपनी उंगली ली और उससे भाभी की भगनासा रगड़ने लगा. भाभी को और क्या चाहिए था. अचानक भाभी चीख उठी. "राजू.... मैं छूट रही हूं... मैं छूट रही हूं.... आहहहहहहह!"
भाभी खूब देर तक छुटी. बिस्तर पर लेट गई.
मैं भाभी के ऊपर चढ़ गया और उनको चूम लिया.
"भाभी, मैंने आप की चूत की भूख तो शांत कर दी पर मेरा लंड अभी भी भूखा है. अब चोदने दो ना भाभी."
भाभी ने मुझे अनुमति दे दी. मैंने अपना लंड लिया उनकी चूत में डाला. चूत इतनी गीली थी कि बिना किसी रूकावट के लंड पूरा ही एक बार में अंदर चला गया.
मैंने धीरे धीरे अपना लंड आगे पीछे करना चालू किया. भाभी की चूत इतनी गीली थी की जरा देर में ही मेरा लंड उनकी चूत के पानी से सन गया. चूत से फचफचफचफच की आवाज आने लगी. मैंने भाभी की एक टांग उठाई और अपने कंधे पर रख दी. अब भाभी की चूत मेरे लिए पूरी तरह से खुली थी मैं भाभी के ऊपर आ गया और चुदाई और तेज कर दी. भाभी के मुंह से "आहहहहहहहह"की आवाज निकल रही थी. मेरे अंडे भाभी के पिछवाड़े पर तबला बजा रहे थे. मैंने भाभी को चूम लिया अपनी जीभ के मुंह में डाल दी. अब हमारी जीभ में घमासान युद्ध शुरू हो गया. मैंने अपने हाथों से भाभी की दोनों चूचियां पकड़ ली और कस कस के दबाने लगा. उस पल मैं और भाभी पूरी तरह से एक हो गए थे. भाभी ने भी मुझे अपने दोनों हाथों से कस के पकड़ा हुआ था.
"चोद मेरे राजा! और कस के चोद! पूरी ताकत से चोद! भोसड़ा बना मेरी चूत का! आहआहआहआहआह!"
तभी मैंने महसूस किया की भाभी की चूत मेरे लंड को कस के भीच रही है.
"आह! मैं छूट रही हूं राजू... मैं.... मैं... मैं छूट रही हूं!"
और भाभी छूट गई. मैंने अपना लंड जल्दी से भाभी की चूत से निकाला और उनके मुंह के पास लाकर पिचकारी मरने लगा. मेरे अंडों में जमा ढेर सारा माल मेरे लंड से निकल कर भाभी के मुंह पर गिरने लगा. मेरे माल की वर्षा से भाभी नहाने लगी.
भाभी को नहलाने के बाद मैं थक के चूर हो गया और उनके बदन पर ही गिर पड़ा. भाभी हल्के हल्के मुझे सहला रही थी.
"राजू, तूने तो अपनी भाभी को बहुत ही ज्यादा गंदा कर दिया है. अब उठ जा और मुझे नहाने दे."
मैं भाभी को गोद में उठाकर उनके बाथरूम में ले गया और शावर ऑन कर दिया. पानी की धार के नीचे खड़े होकर हम एक दूसरे से चिपक गए. भाभी को मैंने अपने माल से नहला कर बहुत गंदा कर दिया था. मैंने पानी से भाभी का चेहरा धोया और फिर साबुन लगाकर उसे साफ किया. फिर हम दोनों ने एक दूसरे के शरीर पर साबुन लगाया और एक दूसरे को नहलाया. नहाने के बाद भाभी बोली "राजू, मैं थक के चूर हो गई हूं. बहुत नींद आ रही है. चल थोड़ी देर सो जाते हैं.".
"हां भाभी, जरूर. आपके संग सोने के लिए ही तो मैं उतावला हूं."
भाभी मुस्कुराए और अपनी ब्रा और पेंटी पहनने लगी.
"यह क्या कर रही हो भाभी?"
"राजू मैं तो बस अपने कपड़े पहन रही थी."
"भाभी, एक वादा कीजिए. जब तक चाची वापस नहीं आ जाती, तब तक आप नंगी ही रहेंगे. एक भी कपड़ा नहीं पहनोगी."
"मगर राजू...."
"भाभी प्लीज, आपको मेरे लंड की कसम."
"चल राजू और भला मैं तेरे को कैसे मना कर सकती हूं."
मैं भाभी को उठाकर कमरे में ले आया और बिस्तर पर लेटा दिया. भाभी ने देखा कि मेरा लंड खड़ा हुआ है.
"राजू तेरा छोटा शेर तो अभी भी खड़ा हुआ है. भूखा है बेचारा".
"भूखा नहीं है भाभी. बस अब आप की गुफा के अंदर जाकर आराम करना चाहता है."
भाभी ने मुस्कुराकर अपनी टांगे खोल दी. मैंने अपना लंड उनकी चूत के अंदर सरका दिया. फिर मैं भाभी के ऊपर आकर लेट गया. हम दोनों ने एक दूसरे को जकड़ लिया और एक दूसरे के होठों को खूब देर चूमा. फिर मैं भाभी की चूची पर सर रखकर उनकी दिल की धड़कन सुनते हुए मीठी नींद सो गया.
कुछ घंटों बाद में उठा. मैंने देखा भाभी अभी भी सो रही थी. सोते हुए बहुत प्यारी लग रही थी. मैंने भाभी को चूम लिया और धीरे धीरे लंड आगे पीछे करके उनको चोदने लगा. भाभी नींद में ही ममममममम ममममममम की मीठी आवाज निकाल रही थी. भाभी के होठों को मैं चूमने लगा. उनकी चूचियां पकड़ के मसलने लगा. इस बीच भाभी उठ गई. अपने हाथों से उन्होंने मेरी पीठ को जकड़ लिया और अपने पैरों से मेरे पिछवाड़े को. अब उनके हाथ मेरी पीठ पर थे और उनके तलवे मेरे कूल्हे पर. "चोद मुझे राजू.... और कस कर चोद.... बना दे इसे भोसड़ा!"
"भाभी, बड़े दिनों का भूखा है मेरा लंड. ढेर सारी चुदाई करने के बाद ही शांत होगी इसकी भूख!"
"तो शांत कर इसकी भूख. चोद मुझे भड़वे. मेरी चूत का घमंड चूर चूर कर दे. इसे अपने लंड की दासी बना दे.... आह आह आह आह.... राजू, मैं छूट रही हूं... मैं छूट रही हूं!"
भाभी की चूत मेरे लंड को जकड़ लिया और भाभी ने मुझे. फिर वह छूटने लगी. मुझसे भी ज्यादा देर ना रहा गया और भाभी की चूत में ही मैं भी छूट गया.
अपना सारा माल भाभी के अंदर छोड़ने के बाद मैंने भाभी को चूम लिया. भाभी मुझे चूमने लगी. मेरा लंड छोटा होकर भाभी की चूत से बाहर निकल आया. भाभी की चूत से मेरे वीर्य की धार निकल कर बिस्तर पर इकट्ठा होने लगा. भाभी ने अपनी चूत में उंगली डालकर ज्यादा से ज्यादा माल निकालने की कोशिश की.
"हाय राम! राजू .... कितना माल बनाते हैं तेरे टट्टे? मेरी चूत में तो मानो बाढ़ ही आ गई हो.".
"भाभी, पिछले 1 हफ्ते से मैंने मुट्ठ भी नहीं मारा था.... इतने दिनों का माल मेरे अंडों में जमा था... आज आपकी चूत मिली है तो उसी का धन्यवाद कर रहा है मेरा लंड आपको इतना सारा माल छोड़ कर."
भाभी मुस्कुराई. हम फिर एक दूसरे को चूमने लगे. फिर मैंने धीरे से भाभी को बोला.
"भाभी मेरी एक दिली इच्छा है. प्लीज बुरा मत मानना."
"हां बोल राजू. मेरी कोई बात मुझे बुरी नहीं लगेगी."
"भाभी... मैं आपके संग एक बच्चा करना चाहता हूं. आप के अंदर अपना बीज बोना चाहता हूं. आपकी कोख हरी करना चाहता हूं. अपनी औलाद को आपके पेट में पलता देखना चाहता हूं."
"यह क्या कह रहा है राजू? तू मुझे मां बनाना चाहता है?"
"हां भाभी. बस एक ही बच्चा. आपके और मेरे प्यार की निशानी."
"देख राजू. हम खूब सेक्स करते हैं. तेरे लंड की तो मुझे लत लग चुकी है. मुझे अच्छा लगता है अपनी चूत में तेरा लंड लेकर तेरे से चुदना. पर इस दुनिया में बच्चा लाना बहुत ही बड़ी जिम्मेदारी होती है. तू तो बस मुझे चोद कर मेरे अंदर अपना बीज बोकर चला जाएगा. उस बेचारी नन्हीं सी जान को पालूंगी मैं और तेरे भैया. वह बेचारा यह भी नहीं जानेगा कि उसका असली बाप कौन है. इसलिए ऐसी नाजायज औलाद पैदा करना समझदारी का काम नहीं है."
"पर भाभी प्लीज...."
"अच्छा छोड़ इन बातों को राजू.... बड़ी भूख लगी है. किचन में जाकर खाना बनाने दे."
भाभी पहले बाथरूम गई और पानी से धो कर अपनी चूत साफ करने लगी. 15 मिनट के बाद वह बाहर आई.
"राजू, तूने तो ढेर सारा माल मेरे बहुत अंदर छोड़ा था. कभी भी मुझे इतनी देर नहीं लगी अपनी चूत साफ करने में". मैं मुस्कुरा कर अपने टट्टे हिला रहा था. तभी मैंने देखा भाभी अपनी ब्रा पहनने लग रही है. मैंने तुरंत उनकी ब्रा को पकड़ा और बोला "भाभी, अपना वादा मत भूलो". भाभी मुस्कुराई और ब्रा उतार कर फेंक दी और फिर नंगी ही किचन में जाकर खाना बनाने लगी. चलते समय उनके बलखाते चूतड़ और हिलती हुई कमर मेरा लंड फिर से जगने लगा. भाभी किचन में खाना बना रही थी और मैं उनके पीछे जाकर खड़ा हो गया. मैंने उनकी कमर पर अपने हाथ रखे और उनकी पीठ चूमने लगा.
"राजू, इतनी चुदाई के बाद भी तू थका नहीं?"
"भाभी, बस यूं समझ लीजिए कि आपके खूबसूरत बदन की लत लग चुकी है मुझे. इससे ज्यादा देर में दूर नहीं रह सकता."
भाभी मुस्कुराकर खाना बनाने लगी और मैं उनकी पीठ को चूमते उनके चूतड़ों की तरफ आ गया.
मैंने उनकी चूत को सूंघ कर चूत की महक अपने अंदर ली. बहुत ही मीठी खुशबू थी भाभी की चूत में. मैंने अपनी जीभ निकाली और उससे भाभी की चूत चाटने लगा.
"उफफ राजू.... लगता है तू आज मेरी चूत को फाड़कर ही रख देगा."
फिर भाभी ने अपनी चूत को अपने हाथों से ढक लिया.
"भाभी, आप की चूत ही मेरी देवी है.... मैं इसी की पूजा करूंगा. अभी मैं बस अपनी देवी को खुश करने की कोशिश कर रहा हूं". प्यार से भाभी का हाथ उनकी चूत से हटाया और मस्त होकर उनकी चूत चाटने लगा और अपनी देवी को खुश करने की कोशिश करने लगा. मैं प्यार से उनकी चूत चाटी जा रहा था और वह कसमसा रही थी. उनके मुंह से सिसकारी भी निकल रही थी. मेरे मन में थोड़ी शैतानी आई. मैंने जल्दी से शहद की शीशी उठाई और अपने हाथ में पलट दी. फिर अपने शहद से सने हाथों को भाभी की चूत पर मलने लगा. फिर उनकी शहद से सनी चूत को मैं चाटने लगा. शहद का स्वाद मुझे चाटने को और प्रेरित कर रहा था. इसी बीच भाभी छुटने लगी.
"राजू, और कितना चोदेगा आज तुम मुझे. मेरी चूत का तो लगभग भोसड़ा बनी चुका है."
"सुम्मी मेरी जान... आज मैं तुझे इतना चोदूंगा कि मेरा लंड भी तुझे अपनी चूत में ढीला लगेगा."
यह कहकर मैंने अपना लंड भाभी की चूत में फिर से डाल दिया लेकिन चुदाई शुरू नहीं की. भाभी इंतजार कर रही थी कि मैं कब अपना लंड आगे पीछे करना शुरू करूंगा. जब मैंने चुदाई शुरू नहीं की तो भाभी बोली "राजू, शुरू कर ना."
"भाभी आप खाना बनाओ. मैं प्यार से आपको चोदता रहूंगा".
भाभी खाना बनाने लगी. मैं धीरे धीरे अपना लंड आगे पीछे करके उन्हें चोदने लगा. मेरे हाथ भाभी के पेट पर थे. और मैं उनकी नाभि से खेल रहा था. मेरा लंड भाभी की चूत के पानी से सन चुका था.
अब तो मैं भाभी की परवाह किए बिना उनकी चूत चोदने लगा. मेरा लंड बहुत भूखा था. उनकी चूत इतनी गीली थी कि मेरी चुदाई से बुरी तरह से फचफचफचफच की आवाज आ रही थी. भाभी भी चीखने लगी "आआआआआ हां राजू वहीं पर... बस उधर ही.... चोद मुझे.... चोद मुझे.... जान निकाल दे मेरी चूत की.... दासी बना दे इसे अपने लंड की.... आहआहआहआहआह.... मैं.... मैं.... मैं छूट रही हूं.... मैं छूट रही हूं". फिर भाभी की चूत में मेरे लंड को कस के भीच लिया और भाभी छूटने लगी.
मेरा लंड तो अभी छुटने का नाम भी नहीं लिया था. छुटने के कुछ मिनट बाद भाभी हांफते हुए बोली "राजू, 1 दिन में इतनी चुदाई तो मैंने कभी नहीं की... आज तो मेरी चूत भी मुझसे दया के मांग रही है और ना चुदने के लिए."
"भाभी आपको मेरा लंड पसंद है?"
"क्या बात कर रहा है, राजू. तेरे मोटे काले लंड के लिए ही तो मैं जीती हूं. मुझे से अपनी चूत में लेना और रंडी जैसे चुदना. अच्छा लगता है. तेरा लंड और मेरी चूत एक दूजे के लिए बने हैं. बहुत मजा दिया है तेरे इस लंड ने मुझे."
"तो यह लंड आपसे अपना हक मांगता है, भाभी."
"कौन सा हक, राजू?"
"आपके अंदर अपने बीज बोने का हक".
"राजू..."
"प्लीज भाभी.... सिर्फ एक बच्चा... मेरे लंड की खातिर."
भाभी ने मेरा लंड अपनी चूत से निकाला और पलट के मेरी तरफ देखा. उन्होंने प्यार से मुझे चूमा.
"राजू, मैं समझ सकती हूं तेरी मेरे अंदर अपना बीज बोने की चाहत. तू मेरे इस पेट को अपने बच्चे से फूलता हुआ देखना चाहता है और मेरा यकीन मान, तेरे बीज में इतनी ताकत है. पर राजू, तू अभी बहुत छोटा है. थोड़ा बड़ा हो जा, दुनिया देख ले, फिर बच्चे पैदा करने की सोचना, मेरी चूत तो तेरे लंड की दासी है ही."
भाभी ने फिर से मेरी बात को टाल दिया था. लेकिन मैंने भी अब उस बात को आगे नहीं बढ़ाया.
जब खाना बनकर तैयार हो गया तो भाभी मेरे पास खाना लेकर आई.
"यह ले राजू. खाना खा ले. तू भी बहुत भूखा होगा."
मैं कुर्सी पर बैठ गया पर मेरा लंड अभी भी खड़ा था. भाभी ने मुझे थाली पकड़ाई और खुद जमीन पर बैठकर मेरा लंड मुंह में लेकर चूसने लगी. मुझे खूब आनंद आ रहा था. भाभी कुशल पूर्वक मेरा लंड चूस रही थी. कभी चाटती तो कभी हल्के से काटती तो कभी मेरे लंड का छेद अपनी जीभ से छेड़ती. साथ ही साथ वह मेरे अंडे भी सहला रही थी. कुछ देर बाद मेरा लंड छुटने लगा और मैं भाभी के मुंह में ही छूट गया. भाभी भी मेरे पूरे माल को पी गई.
"स्वादिष्ट और मलाईदार है तेरा माल, राजू".
पर मेरा लंड अभी भी खड़ा हुआ था. मैंने भाभी को अपने लंड पर बिठाया. फिर हम एक दूसरे को खाना खिलाने लगे. मैं भाभी की चूचियां भी चूस रहा था. खाना खाने के बाद मैंने थाली एक तरफ रख दी और भाभी को अपनी गोद में उठाकर बिस्तर पर ले गया. हम फिर एक बार चुदाई करने लगे और इस बार मैंने अपना सारा माल भाभी की चूत में ही निकाला.
सोमवार सुबह कॉलेज जाने तक मैं और भाभी नंगी ही रहे और एक दूसरे को चोदते रहे. कॉलेज जाने से पहले मैंने भाभी को अपनी कसम दी मेरी गैर हाजिरी में वह नंगी ही रहेंगी और एक भी कपड़ा नहीं पहनेगी. भाभी ने मेरी कसम खाई. हमारी यही दिनचर्या रही. सुबह उठना, भाभी के साथ नहाना, भाभी का नंगा ही नाश्ता बनाना, भाभी के साथ नाश्ता खाना, फिर भाभी को चोदना, फिर कॉलेज चले जाना और वापस आकर खाना खा कर भाभी को चोद के सो जाना. एक शाम को जब मैं वापस आया तो भाभी नंगी ही कुर्सी पर बैठ कर किताब पढ़ रही थी. मुझे यह देख कर खुशी हुई की भाभी ने इतने दिनों तक कसम नहीं तोड़ी. मैं चुपचाप भाभी के पैरों के पास जाकर बैठ गया और धीरे से उनका पैर चूम लिया.
"राजू तू आ गया. चल तेरे लिए खाना बना देती हूं."
"भाभी रुको.... आप किताब पढ़ते रहो."
भाभी किताब पढ़ने लगी. मैंने भाभी के पैरों को खोला और उनकी चूत के पास जाकर गहरी सांस ली. बहुत ही मादक खुशबू थी. मैंने जीभ निकाली और भाभी की चूत पर धावा बोल दिया.
"आह राजू... कितना जालिम है रे तू... आते ही मेरी चूत पर धावा बोल दिया?"
मैं भाभी की चूत चाटते रहा और उनकी भगनासा रगड़ता रहा.
"हां राजू.... हां राजू... कमीनी का सारा घमंड चूर कर दे... दिन भर सताती है यह तेरी भाभी को.... आहआहआहआहआह"
और कुछ ही देर में भाभी झड़ गई. फिर भाभी जाकर खाना बनाने लगी. मैं कमरे में जाकर कपड़ा उतार के नंगा हो गया और नीचे आकर किचन में जाकर भाभी के पीछे खड़ा हो गया. अपना लंड लिया और भाभी की चूत में सरका दिया.
"क्या कर रहे हो देवर जी?"
"कुछ नहीं मेरी जान... अपनी तलवार को इसकी म्यान में रख रहा हूं."
मैंने अभी चुदाई शुरू नहीं की थी. मैं भाभी के पेट पर अपने हाथ मल रहा था और उनकी पीठ चूम रहा था. भाभी बार-बार मुझे चुदाई शुरू करने का सिग्नल दे रही थी. लेकिन मैंने उनकी एक न मानी. आखिर में तंग आकर उन्होंने मुझसे पूछा, "क्या हुआ राजू... चोद क्यों नहीं रहा आज तुम मुझे?"
"भाभी बस एक छोटी सी ख्वाहिश थी."
"बोल ना मेरे राजा."
"क्या आपके पास लहंगा चोली है?"
"क्या?"
"लहंगा और चोली, भाभी."
"हां है.... क्यों?"
"बस तो फिर खाना खा कर आज आप लहंगा चोली पहनकर ऊपर कमरे में आना... बिना ब्रा और पेंटी के."
"ठीक है."
हमें एक साथ खाना खाया और फिर मैं भाभी के कमरे में आ गया और बिस्तर पर बैठ गया.