18-05-2021, 10:56 AM
अगले दिन सुबह उठा तो आठ बज रहे थे. मैने देखा कि मैं नंगा ही सो गया था और वो भी दरवाज़ा खुला छोड़ के. मुझे डर लगा की कहीं किसी ने मुझे नंगा तो नही देख लिया. तभी अचानक मेरा ध्यान, कल रात की घटनाओं पर पडा. कैसे मैने भैया-भाभी की चुदाई देखी और कैसे अपना माल फर्श पर गिरा दिया था. भाभी का गोरा सुडौल शरीर याद करके मेरा आठ इंच आठ इंच का लंड पूरा तन कर खड़ा हो गया.
मैने झट से दरवाज़ा बंद किया और भाभी के बारे में सोच कर अपना लंड हिलाने लगा. मैने आँखें बंद की और भाभी का नंगा बदन मेरे सामने आया. नंगी चूचियाँ और उनपर चॉक्लेट जैसे भूरे निप्पल जिनको भाभी अपने एक हाथ से मसल रही थी. और उनका खूबसूरत पेट और उसपर उनकी प्यारी सी नाभि. भाभी अपनी कमर एक नौटंकी में नाचने वाली रंडी के जैसे मटका रही थी और मुझसे खुद को चोदने का आग्रेह कर रही थी.
इतने में मुझसे रहा नही गया और मैं छूट गया. ढेर सारा माल मेरे लंड से छूट कर नीचे चादर पर गिरकर इकट्ठा होने लगा. मैने नंगे ही लेटकर कुछ देर आराम किया और फिर मेरी आँख लग गयी.
कुछ देर बाद दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ ने मुझे जगाया. "क्यूँ देवर जी, रात को क्या घोड़े बेचे थे जो इतना देर तक सो रहे हो. जल्दी उठो, आज आपका कॉलेज का पहला दिन है. चलो उठो."
"हन भाभी, बस २ मिनिट" मैं भूल ही गया था की आज मुझे कॉलेज जाना है." मैं अपने कपड़े ढूँढने लगा. लेकिन मुझे मेरी चड्डी नही मिली, तो मैं बिना चड्डी के सिर्फ़ पायजामे में दरवाज़ा खोला. पायजामे में मेरे वीर्य ने एक गीला धब्बा बना दिया था और साथ ही चड्डी न होने की वजह से मेरा लंड पायजामे में झूल रहा था. मैने दरवाज़ा खोला तो भाभी बोली "सासू माँ उपर नही चढ़ पाती तो उन्होने मुझे भेजा है. चलो नहा धो के नीचे आ जाओ. नाश्ता कर लो"
भाभी कमरे में आ गयी. उन्होने साड़ी पहनी हुई थी और हर बार की तरह क़यामत ढहा रही थी. और हर बार की तरह मेरी नज़र उनके गोरे मुलायम और खूबसूरत पेट पर पड़ी. मन तो था कि अभी बिस्तर पर पटक के पेट चूम लू और नंगी करके चोद दूं. मैं यही ख़याल में था जब भाभी बोली
"तुम्हारा कमरा साफ कर देती हूँ, देवर जी. जाओ तब तक नहा लो."
भाभी की नज़र चादर पर मेरे वीर्य से बने गीले धब्बे पर पड़ी. "यह क्या है देवर जी"
भाभी ने हँसकर बोला "कहीं रात को बिस्तर गीला तो नहीं..... हाय राम राजेश, वो क्या है?"
"क्या भाभी?"
मैने भाभी की नज़र देखी और सर झुका कर देखा तो देखा की मेरा 8 इंच का लंड पजामे के मूतने वाले छेद से बाहर निकल कर भाभी को सलामी दे रहा था. मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गयी. मैं लंड को पाजामे के अंदर करते हुए बाथरूम की तरफ भागा. बाथरूम का दरवाज़ा बंद करते समय मैं देखा भाभी के चेहरे अचंभे के भाव थे. मैं बातरूम के अंदर काफ़ी देर तक बंद रहा. सोचा कि भाभी ने सबको जाकर बता दिया होगा. बाहर निकला तो देखा कि भाभी मेरा पूरा कमरा ठीक करके गयी हैं. मैं नहा-धो के नीचे नाश्ते के लिए आया. वहाँ भैया और चाची नाश्ता कर रहे थे.
मैं चुपचाप आकर बैठ गया.
तभी भाभी मेरा नाश्ता लेकर आई और खुद भी बैठकर नाश्ता करने लगी. मेरी हालत खराब थी कि कहीं मेरी हरकत के बारे में बता ना दिया हो. भाभी ने कुछ देर बाद बोला, "सासू माँ, मैं सोच रही थी अपना राजू कितना सयाना हो गया है. हमारी शादी के वक़्त तो बस बच्चा ही था." ऐसा कहते हुए भाभी ने मेरे गाल खीचे. मुझे महसूस हो गया की भाभी कुछ देर पहली हुई घटना के बारे में किसी को नही बताया.
"हाँ बहू, बड़ा हो गया राजू." चाची बोली.
उसके बाद मैं कॉलेज चला गया. मेरा यही रवैया हो गया था. सुबह कॉलेज जाना. शाम को कॉलेज से आकर खाना खाना और रोज़ रात को भैया-भाभी की चुदाई देखना
कुछ दिन बाद शनिवार का दिन था. भैया काम से बाहर गये थे. कॉलेज भी बंद था. मैं घर के बाघीचे में पौधो को पानी दे रहा था. तभी चाची बोली-"बेटा राजेश, ज़रा उपर जाकर सुमन को बुला दे"
मैं उपर की ओर बढ़ा और भाभी के कमरे तक पहुँचा. मैने दरवाज़ा खटखटने की सोची लेकिन कुत्ते की पूंछ कभी सीधी हुई है? मैं हर बार की तरह चाभी वाले छेद से अंदर झाँकने के लिए झुका. नज़ारा देख कर मेरी आँखें फटी रह गयी और मेरा लंड फनफना कर खड़ा हो गया. सामने भाभी केवल गुलाबी रंग की ब्रा और चड्डी में खड़ी खुद को शीशे में निहार रही थी.
मैं अपना लंड निकल कर धीरे-धीरे हिलने लगा. भाभी के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान थी. वो अपने बदन को घूम-घूम कर आईने में देख रही थी. फिर वो अपने बदन के अंगों को हाथों से सहलाने लगी. गर्दन और चूचियों को सहलाते हुए वो अपने खूबसूरत पेट और नाभि पर हाथ फेरते हुए बोली "बहुत जल्द..."
उसके बाद भाभी ने अपनी ब्रा और चड्डी उतार दी और चूतड़ मटकाते हुए बाथरूम में नहाने चली गयी. मैं अपना लंड हिला रहा था. तभी मैने देखा की भाभी कमरा अंदर से बंद करना भूल गयी थी. मैं चुपचाप, बिना आवाज़ किए उनके कमरे में घुस गया. भाभी की ब्रा और चड्डी अभी भी ज़मीन पर पड़ी थी. मैने उनकी चड्डी ज़मीन से उठाई और उसे सूंघने लगा.
क्या मादक खुश्बू आ रही थी उनकी चड्डी से. ऐसी खुश्बू सिर्फ़ एक चुदासी औरत की चूत से ही आ सकती थी. मैं चड्डी सूंघते हुए अपना लंड बुरी तरह से हिला रहा था.
फिर मैंने उनकी चड्डी को अपने लंड पर लगाकर आँखें बंद कर ली. भाभी की चड्डी गीली थी. मैने अपना लंड चड्डी के उसी जगह पर लगाया था जहाँ भाभी की चूत थी. मेरा लंड का टोपा गीला हो चुका था. उस गीलेपन ने भाभी की चड्डी भी गीली कर दी. कुछ देर और हिलने के बाद मैं छूटने वाला था. मैने भाभी की चड्डी को एक बार अपने लंड से रगड़कर अलग किया और छूटने को तय्यार था.
मैने अपनी आँखें खोली तो देखा भाभी बाथरूम के दरवाज़े पर खड़ी थी. उन्होने सिर्फ़ एक पीली तौलिया पहनी थी. वो मेरी तरफ देख रही थी और उनका मूह हैरानी से खुला था. मेरा हाथ अपने लंड से छूट गया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. मेरा मुठ मेरे लंड से बाहर निकल कर फर्श पर गिर रहा था.
भाभी की नज़र मेरे मुठ गिरते लंड पर पड़ी. जब मेरा लंड शांत हुआ, मैने अपना पजामा उठाया और वहाँ से निकालने की सोची.
"रुक!" भाभी की गरजती हुई आवाज़ ने मुझे रोका.
"बेशरम!... तू यह सब सोचता है अपनी भाभी के बारे में...."
भाभी मेरे पास आई और फर्श पर से अपनी गीली चड्डी उठाई. उन्होने उसे सूँघा और फिर मेरे गाल पर ज़ोर का थप्पड़ मारा.
"बदतमीज़... बहुत ठरक चढ़ही है ना तुझे... बता कब से चल रहा है ये सब.... बता वरना सासू माँ को सब बोलती हूँ"
"नही नही भाभी... प्लीज़.... किसी को मत बोलना... मैं बताता हूँ."
मैने भाभी को सब बताया. सब सुनने के बाद भाभी गुस्से में थी.
"तू रुक.... आज शाम को तेरे भैया को सब बताऊंगी... की उनका चचेरा भाई उनकी बीवी के बारे में कितने गंदे ख़याल रखता है."
"नही भाभी... प्लीज़.. भैया मुझे जान से मार डालेंगे."
"बिल्कुल... तेरे जैसे बेशार्मों की यही सज़ा होनी चाहिए"
"नही भाभी प्लीज़... आप जो कहोगी मैं वो करूँगा.... आप जो सज़ा देना चाहो दे दो"
"अच्छा... अभी सासू माँ खाना बनाने के लिए बुला रही हैं... खाना खाने के बाद इसी कमरे में आ... तेरी सज़ा तभी मिलेगी तुझे."
भाभी नीचे खाना बनाने चली गयी. उन्होने काली साड़ी पहन रखी थी. भाभी मेरे लिए खाना लेकर आई. हम तीनो खाना खा रहे थे. सबसे पहले चाची ने खाना ख़त्म किया और वो उठकर अपनी थाली रखने चली गयीं. टेबल पर सिर्फ़ मैं और भाभी थे. भाभी बोली- "खाना ख़ाके चुपचाप मेरे कमरे में चले जाना". मैं जवाब देने में असमर्थ था. मैने सिर्फ़ हाँ में सिर हिलाया.
फिर चाची की आवाज़ आई "सुमन, बेटा मैं सोने जा रही हूँ. तू भी टेबल सेमेटकर आराम कर ले. राजेश तुझे तो पढ़ाई करनी होगी." और फिर चाची कमरे में जाकर सो गयी. मैने खाना ख़त्म किया और भाभी के आदेशानुसार उनके कमरे में जाकर इंतज़ार करने लगा. कुछ देर बाद भाभी आई.
"हाँ... तो देवर जी... बताइए आपकी क्या सज़ा होनी चाहिए?"
"कुछ भी भाभी... बस प्लीज़ भैया को मत बताना."
"ठीक है... तो.." भाभी मेरे पास आई और मेरे पैजमे का नाड़ा खोल दिया.
"उतरो इसे और अपना लंड खड़ा करो मेरे सामने.... बहुत मज़ा आता है तुझे दूसरों को नंगा देखने में.... अब बता कैसा लग रहा है तुझे?"
साड़ी में से उनका नंगा पेट और प्यारी सी नाभि देखकर तो मेरा लंड तो पहले ही खड़ा था. मैं बस हिलाकर उसे तोड़ा आराम दे रहा था.
"रुक... हिलाना बंद कर.... अब खड़े लंड के साथ सॉरी बोलते हुए कान पकड़कर ३० बार उटठक- बैठक कर"
मेरा लंड भाभी के सामने तनकर खड़ा था. और मैने अपना लंड छोड़कर कान पकड़कर उटठक-बैठक करनी शुरू कर दी. मेरी नज़र भाभी पर ही थी. लेकिन भाभी सिर्फ़ मेरे झूलते हुए खड़े लंड को ही देख रही थी.
भाभी ने मेरे लंड को देखते हुए अपनी जीभ बाहर निकली और उससे अपने होठों को चाटा. मैने उटठक-बैठक ख़त्म की तो मेरा लंड बहुत दर्द कर रहा था. मैने उसे हिलाने के लिए भाभी से अनुमति माँगी. भाभी ने अपनी आँखें झपकाकर हाँ का इशारा किया.
मैं तुरंत अपना लंड धीरे-धीरे हिलाकर उसे आराम देने लगा. कुछ देर बाद भाभी बोली "रुक...!"
मुझे लगा की फिर से सज़ा मिलेगी. लेकिन भाभी मेरे पास आई और मेरे लंड पर अपना थूक थूका और बोली "ले, इसे अपने पूरे लंड पर मल और फिर हिला"
मैने वैसा ही किया और मुझे और आनंद मिला. मैं आँखें बंद करके अपना लंड हिलाए जा रहा था. तभी मुझे अपने लंड पर कुछ गीला गरम-सा महसूस हुआ. मैने नीचे सिर झुकाया तो पाया की भाभी मेरा लंड अपने मुँह में लेकर चूस रही थी. मैने अपना हाथ लंड से हटाया और भाभी ने मेरे लंड के पूरे आठ इंच अपना मुँह में ले लिए. भाभी अपनी जीभ से मेरा पूरा लंड चाट रही थी. उनकी आँखें बंद थी और चाटते हुए उन्होने मेरा लंड अपने मुँह से निकाला और मेरे लंड के मूतने वाले छेद को जीभ से चाटने लगी.
मैं भाभी के बालों को सहलाते हुए बोल पड़ा "सुम्मी... चूसो इसे... चूस एक ढाई रुपये वाली रंडी के जैसे... मुझे मालूम है की तू कैसी लालची निगाहों से इसे देखती है.... चूस इसे... और प्यास बुझाले अपनी..."
भाभी ये सुनके मेरा लंड ज़ोर से चूसने लगी और हल्के-हल्के मेरे टट्टो को सहलाने लगी. मुझसे रहा नही गया. मैने भाभी का चेहरा दोनो हाथों से पकड़ा और कसके अपना लंड उनके मुँह से अंदर-बाहर करने लगा. कुछ ही देर में भाभी मेरी गांड पर चपत लगाने लगी और चिकोटी काटने लगी. मुझे दर्द हुआ तो मैने उन्हे छोड़ दिया.
भाभी कुछ देर खाँसी और फिर बोली "तू और तेरा भाई... दोनो एक नंबर के भड़वे.... साले मेरे से अपना लंड मज़े से चुस्वाएँगे... लेकिन दोनो में से कोई भी मेरी बुर नही चाटेगा.... चल इधर आ... और चाट इसे"
भाभी बिस्तर पर बैठ गयी. मैं ज़मीन पर अपने घुटनों पर बैठ गया. मैने उनकी साड़ी का पल्लू हटाया और उनका खूबसूरत पेट और नाभि नज़र आई. मुझसे रहा नही गया मैने उनकी नाभि चूम ली और पेट को अपने चेहरे से लगा लिया. भाभी ने मेरे बाल खीचें और बोली "साले... चूत चाटने को बोला था... मेरा पेट क्यों चूम रहा है?"
"भाभी, प्लीज़... आप नही जानती हो की आपके पेट और नाभि का मैं कितना दीवाना हूँ... दुनिया की सबसे खूबसूरत चीज़ है ये... आपका गुलाम बनके रहूँगा हमेशा, बस मुझसे इसे प्यार करने दो"
भाभी ने मुझे अपने पेट और नाभि को खूब प्यार करने दिया.
"चल... अब देर मत कर... मेरी चूत बहुत प्यासी है"
मैने भाभी की साड़ी उठाई और उनकी खूबसूरत जांघें चूम ली. जांघें चूमते हुए मैने उनकी चड्डी उतार दी. फिर उनकी चूत के पास जाकर एक गहरी साँस अंदर ली. वो भाभी के बदन की असली खुश्बू थी. वो खुश्बू से मैं पागल हो गया और भाभी की चूत को मैने चूम लिया.
भाभी के मुँह से "आह!" निकल पड़ी. मैने सिर उठाकर उपर देखा तो भाभी के आँखें बंद थी और चहेरे पर कामुकता के खूबसूरत भाव थे.
भाभी बोली, "राजू, फिर से कर... बहुत तड़पाती है ये कमीनी". मैंने भाभी को थोड़ा परेशान करने की सोची. मैने चूत के पास अपना मुँह लगाया और दोनो जांघों को पास लाकर अपने गालों से चिपका लिया. फिर चूत के इर्द-गिर्द ही अपनी जीभ से भाभी की चूत छेड़नी शुरू की. मैने ठान ली की जबतक भाभी खुद तड़प कर मुझसे चूत चाटने को ना बोले, मैं उनकी चूत नही चाटूंगा. और मैने वैसा ही किया.
चूत के इर्द-गिर्द ही जीभ घुमा रहा था और इसके साथ ही मेरी खुरदरी दाढ़ी भाभी की जांघों को सता रही थी. भाभी बार बार सोच रही थी की मैं चूत अब चाटूँगा लेकिन मैं ऐसा नही कर रहा था. तंग आकर भाभी ने अपना हाथ मेरे सिर पर लगाकर मुझसे अपनी चूत चटवाने की कोशिश की लेकिन मैने फिर भी उनकी चूत नही चाटी. आख़िर में भाभी के सब्र का बाँध टूट गया और वो बोली "भड़वे साले... चाट ले ना अब मेरी चूत को"
और फिर मैने भाभी की चूत पर अपनी जीभ चलानी शुरू कर दी. मैं एक हाथ से उनके पेट को हल्के हल्के दबा रहा था और साथ ही चूत चाटे जा रहा था. भाभी के मुँह से कामुक आवाज़ें आने लगी.
"हाँ राजू, चाट ले इसे... शांत कर दे साली को... बहुत तंग करती है ये तेरी भाभी को... बदला ले अपनी भाभी का इससे"
और मैं और तेज़ी से भाभी की चूत चाटने लगा. भाभी ने आगे से अपनी उंगली लाकर अपनी चूत का दाना रगड़ने लगी. वो ज़ोर से हाँफ रही थी. मैं भाभी के दाने से उनकी उंगली हटाई और अपनी उंगली से उनका दाना रगड़ने लगा.
"हाँ... हाँ... बस राजू वहीं पे... हाँ वही पे... बहुत मज़ा आ रहा है राजू... तू.. तू पागल कर देगा मुझे... हाँ राजू.. बस चाट मुझे" और फिर मैने भाभी को पूरी ताक़त से चाटना शुरू कर दिया. मुझे लगा की जैसे मेरी ज़िंदगी का मक़सद ही सुमन भाभी को कामुक सुख देना हो.
"रा... रा.. राजू.... मैं... मैं छूट रही हूँ.... मैं छूट रही हूँ.... आआआहह!"
भाभी ने अपनी जांघों से मेरा सिर पकड़ कर छूटने लगी. उनकी चूत से गाढ़े पानी की धार छूट कर सीधा मेरे मुँह पर गिरने लगी. मुझे लगा की वो मूत रही हैं लेकिन वो मूत नही रही थी. वो उनकी चूत का पानी था. भाभी ने सारा पानी मेरे मुँह पर छोड़ा और फिर शांत हो गयी.
मैने उनका पानी चखा. नमकीन लेकिन स्वादिष्ट था. मैंने सिर उठा के देखा तो पाया भाभी गहरी साँसें ले रही थी और चेहरे पर एक तृप्त औरत की हल्की सी मुस्कान थी. मैं भाभी के उपर आ गया और ब्लाउस फड़कर उनकी चूचियाँ आज़ाद कर दी और निपल चूसने लगा. फिर भाभी का चेहरा प्यार से पकड़कर उनको चूमने लगा. भाभी भी मेरे चुम्मो का जवाब देने लगी. हम दोनो कई मिनिट तक एक दूसरे को चूमते रहे. मैने उनकी आँखें भी चूमी.
मेरा लंड और भाभी की चूत भी एक दूसरे को चूम रहे थे. मैं भाभी के कान में बोला "भाभी.... क्या मैं...?"
भाभी ने मुझे गले से लगाया और बोली "हाँ राजू.... डाल दे"
मैने झट से अपना लंड भाभी की चूत में डाला. छूट इतनी गीली थी की फ़ौरन मेरा लंड जड़ तक भाभी की चूत में घुस गया. मैने भाभी की चूत में अपने लंड ले खुदाई करने लगा. भाभी की चूत मेरे लंड को लील रही थी. मैं अपने लंड की मालिश भाभी की चूत से कर रहा था और भाभी के नर्म रसीले होंठ चूम रहा था.
जल्द ही मैं भी छूटने वाला था. भाभी मुझसे प्यार से चुदवा रही थी. उनके दोनो हाथ मेरे चूतड़ पर थे. मैं सोच रहा था की अपना माल कहाँ निकालू. अचानक मुझे याद आया की उस रात भैया भाभी को बच्चा देने वाले थे. ये ख़याल आते ही मुझसे रहा नही गया और मैं भाभी की चूत के अंदर ही छूट गया. छूटते समय मैने भाभी को फिर चूम लिया.
जब मैं पूरी तरह से छूट गया तो भाभी के उपर से उतरकर उनके बगल में लेट गया और प्यार से उनका पेट सहलाने लगा, ये सोचकर की शायद मेरा बच्चा अब इस पेट में पल रहा है. मैने भाभी को लेट-लेट अपनी बाहों में लिया. उन्होने भी मुझे अपनी बाहों में लिया. हम दोनों ने एक दूसरे को चूमा और चिपक कर सो गये.
मैने झट से दरवाज़ा बंद किया और भाभी के बारे में सोच कर अपना लंड हिलाने लगा. मैने आँखें बंद की और भाभी का नंगा बदन मेरे सामने आया. नंगी चूचियाँ और उनपर चॉक्लेट जैसे भूरे निप्पल जिनको भाभी अपने एक हाथ से मसल रही थी. और उनका खूबसूरत पेट और उसपर उनकी प्यारी सी नाभि. भाभी अपनी कमर एक नौटंकी में नाचने वाली रंडी के जैसे मटका रही थी और मुझसे खुद को चोदने का आग्रेह कर रही थी.
इतने में मुझसे रहा नही गया और मैं छूट गया. ढेर सारा माल मेरे लंड से छूट कर नीचे चादर पर गिरकर इकट्ठा होने लगा. मैने नंगे ही लेटकर कुछ देर आराम किया और फिर मेरी आँख लग गयी.
कुछ देर बाद दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ ने मुझे जगाया. "क्यूँ देवर जी, रात को क्या घोड़े बेचे थे जो इतना देर तक सो रहे हो. जल्दी उठो, आज आपका कॉलेज का पहला दिन है. चलो उठो."
"हन भाभी, बस २ मिनिट" मैं भूल ही गया था की आज मुझे कॉलेज जाना है." मैं अपने कपड़े ढूँढने लगा. लेकिन मुझे मेरी चड्डी नही मिली, तो मैं बिना चड्डी के सिर्फ़ पायजामे में दरवाज़ा खोला. पायजामे में मेरे वीर्य ने एक गीला धब्बा बना दिया था और साथ ही चड्डी न होने की वजह से मेरा लंड पायजामे में झूल रहा था. मैने दरवाज़ा खोला तो भाभी बोली "सासू माँ उपर नही चढ़ पाती तो उन्होने मुझे भेजा है. चलो नहा धो के नीचे आ जाओ. नाश्ता कर लो"
भाभी कमरे में आ गयी. उन्होने साड़ी पहनी हुई थी और हर बार की तरह क़यामत ढहा रही थी. और हर बार की तरह मेरी नज़र उनके गोरे मुलायम और खूबसूरत पेट पर पड़ी. मन तो था कि अभी बिस्तर पर पटक के पेट चूम लू और नंगी करके चोद दूं. मैं यही ख़याल में था जब भाभी बोली
"तुम्हारा कमरा साफ कर देती हूँ, देवर जी. जाओ तब तक नहा लो."
भाभी की नज़र चादर पर मेरे वीर्य से बने गीले धब्बे पर पड़ी. "यह क्या है देवर जी"
भाभी ने हँसकर बोला "कहीं रात को बिस्तर गीला तो नहीं..... हाय राम राजेश, वो क्या है?"
"क्या भाभी?"
मैने भाभी की नज़र देखी और सर झुका कर देखा तो देखा की मेरा 8 इंच का लंड पजामे के मूतने वाले छेद से बाहर निकल कर भाभी को सलामी दे रहा था. मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गयी. मैं लंड को पाजामे के अंदर करते हुए बाथरूम की तरफ भागा. बाथरूम का दरवाज़ा बंद करते समय मैं देखा भाभी के चेहरे अचंभे के भाव थे. मैं बातरूम के अंदर काफ़ी देर तक बंद रहा. सोचा कि भाभी ने सबको जाकर बता दिया होगा. बाहर निकला तो देखा कि भाभी मेरा पूरा कमरा ठीक करके गयी हैं. मैं नहा-धो के नीचे नाश्ते के लिए आया. वहाँ भैया और चाची नाश्ता कर रहे थे.
मैं चुपचाप आकर बैठ गया.
तभी भाभी मेरा नाश्ता लेकर आई और खुद भी बैठकर नाश्ता करने लगी. मेरी हालत खराब थी कि कहीं मेरी हरकत के बारे में बता ना दिया हो. भाभी ने कुछ देर बाद बोला, "सासू माँ, मैं सोच रही थी अपना राजू कितना सयाना हो गया है. हमारी शादी के वक़्त तो बस बच्चा ही था." ऐसा कहते हुए भाभी ने मेरे गाल खीचे. मुझे महसूस हो गया की भाभी कुछ देर पहली हुई घटना के बारे में किसी को नही बताया.
"हाँ बहू, बड़ा हो गया राजू." चाची बोली.
उसके बाद मैं कॉलेज चला गया. मेरा यही रवैया हो गया था. सुबह कॉलेज जाना. शाम को कॉलेज से आकर खाना खाना और रोज़ रात को भैया-भाभी की चुदाई देखना
कुछ दिन बाद शनिवार का दिन था. भैया काम से बाहर गये थे. कॉलेज भी बंद था. मैं घर के बाघीचे में पौधो को पानी दे रहा था. तभी चाची बोली-"बेटा राजेश, ज़रा उपर जाकर सुमन को बुला दे"
मैं उपर की ओर बढ़ा और भाभी के कमरे तक पहुँचा. मैने दरवाज़ा खटखटने की सोची लेकिन कुत्ते की पूंछ कभी सीधी हुई है? मैं हर बार की तरह चाभी वाले छेद से अंदर झाँकने के लिए झुका. नज़ारा देख कर मेरी आँखें फटी रह गयी और मेरा लंड फनफना कर खड़ा हो गया. सामने भाभी केवल गुलाबी रंग की ब्रा और चड्डी में खड़ी खुद को शीशे में निहार रही थी.
मैं अपना लंड निकल कर धीरे-धीरे हिलने लगा. भाभी के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान थी. वो अपने बदन को घूम-घूम कर आईने में देख रही थी. फिर वो अपने बदन के अंगों को हाथों से सहलाने लगी. गर्दन और चूचियों को सहलाते हुए वो अपने खूबसूरत पेट और नाभि पर हाथ फेरते हुए बोली "बहुत जल्द..."
उसके बाद भाभी ने अपनी ब्रा और चड्डी उतार दी और चूतड़ मटकाते हुए बाथरूम में नहाने चली गयी. मैं अपना लंड हिला रहा था. तभी मैने देखा की भाभी कमरा अंदर से बंद करना भूल गयी थी. मैं चुपचाप, बिना आवाज़ किए उनके कमरे में घुस गया. भाभी की ब्रा और चड्डी अभी भी ज़मीन पर पड़ी थी. मैने उनकी चड्डी ज़मीन से उठाई और उसे सूंघने लगा.
क्या मादक खुश्बू आ रही थी उनकी चड्डी से. ऐसी खुश्बू सिर्फ़ एक चुदासी औरत की चूत से ही आ सकती थी. मैं चड्डी सूंघते हुए अपना लंड बुरी तरह से हिला रहा था.
फिर मैंने उनकी चड्डी को अपने लंड पर लगाकर आँखें बंद कर ली. भाभी की चड्डी गीली थी. मैने अपना लंड चड्डी के उसी जगह पर लगाया था जहाँ भाभी की चूत थी. मेरा लंड का टोपा गीला हो चुका था. उस गीलेपन ने भाभी की चड्डी भी गीली कर दी. कुछ देर और हिलने के बाद मैं छूटने वाला था. मैने भाभी की चड्डी को एक बार अपने लंड से रगड़कर अलग किया और छूटने को तय्यार था.
मैने अपनी आँखें खोली तो देखा भाभी बाथरूम के दरवाज़े पर खड़ी थी. उन्होने सिर्फ़ एक पीली तौलिया पहनी थी. वो मेरी तरफ देख रही थी और उनका मूह हैरानी से खुला था. मेरा हाथ अपने लंड से छूट गया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. मेरा मुठ मेरे लंड से बाहर निकल कर फर्श पर गिर रहा था.
भाभी की नज़र मेरे मुठ गिरते लंड पर पड़ी. जब मेरा लंड शांत हुआ, मैने अपना पजामा उठाया और वहाँ से निकालने की सोची.
"रुक!" भाभी की गरजती हुई आवाज़ ने मुझे रोका.
"बेशरम!... तू यह सब सोचता है अपनी भाभी के बारे में...."
भाभी मेरे पास आई और फर्श पर से अपनी गीली चड्डी उठाई. उन्होने उसे सूँघा और फिर मेरे गाल पर ज़ोर का थप्पड़ मारा.
"बदतमीज़... बहुत ठरक चढ़ही है ना तुझे... बता कब से चल रहा है ये सब.... बता वरना सासू माँ को सब बोलती हूँ"
"नही नही भाभी... प्लीज़.... किसी को मत बोलना... मैं बताता हूँ."
मैने भाभी को सब बताया. सब सुनने के बाद भाभी गुस्से में थी.
"तू रुक.... आज शाम को तेरे भैया को सब बताऊंगी... की उनका चचेरा भाई उनकी बीवी के बारे में कितने गंदे ख़याल रखता है."
"नही भाभी... प्लीज़.. भैया मुझे जान से मार डालेंगे."
"बिल्कुल... तेरे जैसे बेशार्मों की यही सज़ा होनी चाहिए"
"नही भाभी प्लीज़... आप जो कहोगी मैं वो करूँगा.... आप जो सज़ा देना चाहो दे दो"
"अच्छा... अभी सासू माँ खाना बनाने के लिए बुला रही हैं... खाना खाने के बाद इसी कमरे में आ... तेरी सज़ा तभी मिलेगी तुझे."
भाभी नीचे खाना बनाने चली गयी. उन्होने काली साड़ी पहन रखी थी. भाभी मेरे लिए खाना लेकर आई. हम तीनो खाना खा रहे थे. सबसे पहले चाची ने खाना ख़त्म किया और वो उठकर अपनी थाली रखने चली गयीं. टेबल पर सिर्फ़ मैं और भाभी थे. भाभी बोली- "खाना ख़ाके चुपचाप मेरे कमरे में चले जाना". मैं जवाब देने में असमर्थ था. मैने सिर्फ़ हाँ में सिर हिलाया.
फिर चाची की आवाज़ आई "सुमन, बेटा मैं सोने जा रही हूँ. तू भी टेबल सेमेटकर आराम कर ले. राजेश तुझे तो पढ़ाई करनी होगी." और फिर चाची कमरे में जाकर सो गयी. मैने खाना ख़त्म किया और भाभी के आदेशानुसार उनके कमरे में जाकर इंतज़ार करने लगा. कुछ देर बाद भाभी आई.
"हाँ... तो देवर जी... बताइए आपकी क्या सज़ा होनी चाहिए?"
"कुछ भी भाभी... बस प्लीज़ भैया को मत बताना."
"ठीक है... तो.." भाभी मेरे पास आई और मेरे पैजमे का नाड़ा खोल दिया.
"उतरो इसे और अपना लंड खड़ा करो मेरे सामने.... बहुत मज़ा आता है तुझे दूसरों को नंगा देखने में.... अब बता कैसा लग रहा है तुझे?"
साड़ी में से उनका नंगा पेट और प्यारी सी नाभि देखकर तो मेरा लंड तो पहले ही खड़ा था. मैं बस हिलाकर उसे तोड़ा आराम दे रहा था.
"रुक... हिलाना बंद कर.... अब खड़े लंड के साथ सॉरी बोलते हुए कान पकड़कर ३० बार उटठक- बैठक कर"
मेरा लंड भाभी के सामने तनकर खड़ा था. और मैने अपना लंड छोड़कर कान पकड़कर उटठक-बैठक करनी शुरू कर दी. मेरी नज़र भाभी पर ही थी. लेकिन भाभी सिर्फ़ मेरे झूलते हुए खड़े लंड को ही देख रही थी.
भाभी ने मेरे लंड को देखते हुए अपनी जीभ बाहर निकली और उससे अपने होठों को चाटा. मैने उटठक-बैठक ख़त्म की तो मेरा लंड बहुत दर्द कर रहा था. मैने उसे हिलाने के लिए भाभी से अनुमति माँगी. भाभी ने अपनी आँखें झपकाकर हाँ का इशारा किया.
मैं तुरंत अपना लंड धीरे-धीरे हिलाकर उसे आराम देने लगा. कुछ देर बाद भाभी बोली "रुक...!"
मुझे लगा की फिर से सज़ा मिलेगी. लेकिन भाभी मेरे पास आई और मेरे लंड पर अपना थूक थूका और बोली "ले, इसे अपने पूरे लंड पर मल और फिर हिला"
मैने वैसा ही किया और मुझे और आनंद मिला. मैं आँखें बंद करके अपना लंड हिलाए जा रहा था. तभी मुझे अपने लंड पर कुछ गीला गरम-सा महसूस हुआ. मैने नीचे सिर झुकाया तो पाया की भाभी मेरा लंड अपने मुँह में लेकर चूस रही थी. मैने अपना हाथ लंड से हटाया और भाभी ने मेरे लंड के पूरे आठ इंच अपना मुँह में ले लिए. भाभी अपनी जीभ से मेरा पूरा लंड चाट रही थी. उनकी आँखें बंद थी और चाटते हुए उन्होने मेरा लंड अपने मुँह से निकाला और मेरे लंड के मूतने वाले छेद को जीभ से चाटने लगी.
मैं भाभी के बालों को सहलाते हुए बोल पड़ा "सुम्मी... चूसो इसे... चूस एक ढाई रुपये वाली रंडी के जैसे... मुझे मालूम है की तू कैसी लालची निगाहों से इसे देखती है.... चूस इसे... और प्यास बुझाले अपनी..."
भाभी ये सुनके मेरा लंड ज़ोर से चूसने लगी और हल्के-हल्के मेरे टट्टो को सहलाने लगी. मुझसे रहा नही गया. मैने भाभी का चेहरा दोनो हाथों से पकड़ा और कसके अपना लंड उनके मुँह से अंदर-बाहर करने लगा. कुछ ही देर में भाभी मेरी गांड पर चपत लगाने लगी और चिकोटी काटने लगी. मुझे दर्द हुआ तो मैने उन्हे छोड़ दिया.
भाभी कुछ देर खाँसी और फिर बोली "तू और तेरा भाई... दोनो एक नंबर के भड़वे.... साले मेरे से अपना लंड मज़े से चुस्वाएँगे... लेकिन दोनो में से कोई भी मेरी बुर नही चाटेगा.... चल इधर आ... और चाट इसे"
भाभी बिस्तर पर बैठ गयी. मैं ज़मीन पर अपने घुटनों पर बैठ गया. मैने उनकी साड़ी का पल्लू हटाया और उनका खूबसूरत पेट और नाभि नज़र आई. मुझसे रहा नही गया मैने उनकी नाभि चूम ली और पेट को अपने चेहरे से लगा लिया. भाभी ने मेरे बाल खीचें और बोली "साले... चूत चाटने को बोला था... मेरा पेट क्यों चूम रहा है?"
"भाभी, प्लीज़... आप नही जानती हो की आपके पेट और नाभि का मैं कितना दीवाना हूँ... दुनिया की सबसे खूबसूरत चीज़ है ये... आपका गुलाम बनके रहूँगा हमेशा, बस मुझसे इसे प्यार करने दो"
भाभी ने मुझे अपने पेट और नाभि को खूब प्यार करने दिया.
"चल... अब देर मत कर... मेरी चूत बहुत प्यासी है"
मैने भाभी की साड़ी उठाई और उनकी खूबसूरत जांघें चूम ली. जांघें चूमते हुए मैने उनकी चड्डी उतार दी. फिर उनकी चूत के पास जाकर एक गहरी साँस अंदर ली. वो भाभी के बदन की असली खुश्बू थी. वो खुश्बू से मैं पागल हो गया और भाभी की चूत को मैने चूम लिया.
भाभी के मुँह से "आह!" निकल पड़ी. मैने सिर उठाकर उपर देखा तो भाभी के आँखें बंद थी और चहेरे पर कामुकता के खूबसूरत भाव थे.
भाभी बोली, "राजू, फिर से कर... बहुत तड़पाती है ये कमीनी". मैंने भाभी को थोड़ा परेशान करने की सोची. मैने चूत के पास अपना मुँह लगाया और दोनो जांघों को पास लाकर अपने गालों से चिपका लिया. फिर चूत के इर्द-गिर्द ही अपनी जीभ से भाभी की चूत छेड़नी शुरू की. मैने ठान ली की जबतक भाभी खुद तड़प कर मुझसे चूत चाटने को ना बोले, मैं उनकी चूत नही चाटूंगा. और मैने वैसा ही किया.
चूत के इर्द-गिर्द ही जीभ घुमा रहा था और इसके साथ ही मेरी खुरदरी दाढ़ी भाभी की जांघों को सता रही थी. भाभी बार बार सोच रही थी की मैं चूत अब चाटूँगा लेकिन मैं ऐसा नही कर रहा था. तंग आकर भाभी ने अपना हाथ मेरे सिर पर लगाकर मुझसे अपनी चूत चटवाने की कोशिश की लेकिन मैने फिर भी उनकी चूत नही चाटी. आख़िर में भाभी के सब्र का बाँध टूट गया और वो बोली "भड़वे साले... चाट ले ना अब मेरी चूत को"
और फिर मैने भाभी की चूत पर अपनी जीभ चलानी शुरू कर दी. मैं एक हाथ से उनके पेट को हल्के हल्के दबा रहा था और साथ ही चूत चाटे जा रहा था. भाभी के मुँह से कामुक आवाज़ें आने लगी.
"हाँ राजू, चाट ले इसे... शांत कर दे साली को... बहुत तंग करती है ये तेरी भाभी को... बदला ले अपनी भाभी का इससे"
और मैं और तेज़ी से भाभी की चूत चाटने लगा. भाभी ने आगे से अपनी उंगली लाकर अपनी चूत का दाना रगड़ने लगी. वो ज़ोर से हाँफ रही थी. मैं भाभी के दाने से उनकी उंगली हटाई और अपनी उंगली से उनका दाना रगड़ने लगा.
"हाँ... हाँ... बस राजू वहीं पे... हाँ वही पे... बहुत मज़ा आ रहा है राजू... तू.. तू पागल कर देगा मुझे... हाँ राजू.. बस चाट मुझे" और फिर मैने भाभी को पूरी ताक़त से चाटना शुरू कर दिया. मुझे लगा की जैसे मेरी ज़िंदगी का मक़सद ही सुमन भाभी को कामुक सुख देना हो.
"रा... रा.. राजू.... मैं... मैं छूट रही हूँ.... मैं छूट रही हूँ.... आआआहह!"
भाभी ने अपनी जांघों से मेरा सिर पकड़ कर छूटने लगी. उनकी चूत से गाढ़े पानी की धार छूट कर सीधा मेरे मुँह पर गिरने लगी. मुझे लगा की वो मूत रही हैं लेकिन वो मूत नही रही थी. वो उनकी चूत का पानी था. भाभी ने सारा पानी मेरे मुँह पर छोड़ा और फिर शांत हो गयी.
मैने उनका पानी चखा. नमकीन लेकिन स्वादिष्ट था. मैंने सिर उठा के देखा तो पाया भाभी गहरी साँसें ले रही थी और चेहरे पर एक तृप्त औरत की हल्की सी मुस्कान थी. मैं भाभी के उपर आ गया और ब्लाउस फड़कर उनकी चूचियाँ आज़ाद कर दी और निपल चूसने लगा. फिर भाभी का चेहरा प्यार से पकड़कर उनको चूमने लगा. भाभी भी मेरे चुम्मो का जवाब देने लगी. हम दोनो कई मिनिट तक एक दूसरे को चूमते रहे. मैने उनकी आँखें भी चूमी.
मेरा लंड और भाभी की चूत भी एक दूसरे को चूम रहे थे. मैं भाभी के कान में बोला "भाभी.... क्या मैं...?"
भाभी ने मुझे गले से लगाया और बोली "हाँ राजू.... डाल दे"
मैने झट से अपना लंड भाभी की चूत में डाला. छूट इतनी गीली थी की फ़ौरन मेरा लंड जड़ तक भाभी की चूत में घुस गया. मैने भाभी की चूत में अपने लंड ले खुदाई करने लगा. भाभी की चूत मेरे लंड को लील रही थी. मैं अपने लंड की मालिश भाभी की चूत से कर रहा था और भाभी के नर्म रसीले होंठ चूम रहा था.
जल्द ही मैं भी छूटने वाला था. भाभी मुझसे प्यार से चुदवा रही थी. उनके दोनो हाथ मेरे चूतड़ पर थे. मैं सोच रहा था की अपना माल कहाँ निकालू. अचानक मुझे याद आया की उस रात भैया भाभी को बच्चा देने वाले थे. ये ख़याल आते ही मुझसे रहा नही गया और मैं भाभी की चूत के अंदर ही छूट गया. छूटते समय मैने भाभी को फिर चूम लिया.
जब मैं पूरी तरह से छूट गया तो भाभी के उपर से उतरकर उनके बगल में लेट गया और प्यार से उनका पेट सहलाने लगा, ये सोचकर की शायद मेरा बच्चा अब इस पेट में पल रहा है. मैने भाभी को लेट-लेट अपनी बाहों में लिया. उन्होने भी मुझे अपनी बाहों में लिया. हम दोनों ने एक दूसरे को चूमा और चिपक कर सो गये.