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Adultery हसीन गुनाह
#6
मैं एकदम से हड़बड़ा गया और बैडरूम प्रिया की खनकदार हंसीं से गूँज उठा. प्रिया ने मेरे निचले होंठ पर काट लिया था. स्पष्ट था कि आज मेरा सामना छुई मुई प्रियतमा से नहीं बल्कि किसी जंगली बिल्ली से होने वाला था. मुझे सतर्क रहने की जरूरत थी लेकिन एक चीज़ मेरे हक़ में थी और वो थी मेरा बिस्तर में लम्बा अनुभव.प्रिया जिन शारीरिक अहसासों से अभी नयी नयी दो चार हो रही थी, वो सब मेरे बरसों के जाने पहचाने थे. मैंने प्रिया के होंठों पर फिर से अपने होंठ फिराने शुरू कर दिए. बीच बीच में प्रिया अपनी जीभ बाहर निकाल कर मेरे होंठों की गति अवरुद्ध करने की कोशिश कर रही थी लेकिन मैं उस की जीभ को ही चाटना चूसना शुरू कर देता था जिस से प्रिया के जिस्म में बेचैनी और ज्यादा बढ़ती जा रही थी.
मेरे दोनों हाथ प्रिया की पीठ पर सख़्ती से क्रॉस हो रहे थे. जैसे ही मेरा कोई हाथ उसकी पीठ सहलाते सहलाते उसकी दायीं या बायीं बगल की ओर बढ़ता तो प्रिया उत्तेजनावश मुझे अपने आलिंगन में और जोर से कस कर मेरे मुंह पर यहाँ-वहाँ चुम्बनों की बारिश कर देती.
इधर मेरा दायाँ हाथ प्रिया की पीठ पर पहुँच कर कपड़ों के ऊपर से ही ब्रा का हुक टटोल रहा था. जैसे ही मेरी उंगलियाँ ब्रा के हुक पर ठहरती तत्काल प्रिया का बायाँ हाथ मेरे दाएं हाथ को इधर उधर झटक देता.
लड़की अभी और खेलने के मूड में थी…ठीक है! मुझे भी कोई जल्दी नहीं थी, सारी रात अपनी थी.
अब हालत यह थी कि हम दोनों के बीच में से हवा भी नहीं गुज़र सकती थी. उत्तेज़ना के मारे हम दोनों के दिल धक धक कर रहे थे. तत्काल मेरा दायाँ हाथ प्रिया के बाएं कंधे पर से गर्दिश करते-करते नीचे की ओर अग्रसर हुआ, कोहनी और कलाई से होते हुये अंदर पेट की ओर मुड़ गया. नर्म गुदाज़ पेट और मेरे हाथ के बीच में सिर्फ एक टीशर्ट का पतला सा आवरण था.मैं अपनी हथेली पर प्रिया के जवान और मदमस्त जिस्म की झुलसा देने वाली गर्मी साफ़ महसूस कर रहा था. मैंने अपना हाथ ज़रा सा नीचे किया तो टीशर्ट का निचला सिरा मेरी उँगलियों के नीचे आ गया.
मैंने फ़ौरन टीशर्ट का सिरा उठा कर अपना हाथ अंदर सरका दिया और इसके साथ ही प्रिया की टीशर्ट थोड़ी और ऊपर को ख़िसक गयी; तत्काल प्रिया के सारे शरीर में एक कंपकंपी सी हुई और प्रिया ने अपना दायाँ हाथ उठा कर मेरी गर्दन के नीचे से निकाल कर मुझे खींच कर अपने साथ लगा लिया.
अब मेरे दायें हाथ की उंगलियाँ प्रिया के सपाट पेट पर ब्रा की निचली सीमा से ले कर कैपरी के ऊपरी इलास्टिक की सीमा तक ऊपर-नीचे, दाएं बाएं हरकत करने लगी. मैं जानबूझ कर ना तो प्रिया के वक्ष को अभी सीधे हाथ लगा रहा था और ना ही उसकी योनि को!पेट पर ऊपर की ओर गर्दिश करती मेरी उंगलियाँ ब्रा की निचली पट्टी को छूते ही और ऊपर को जाने की जगह दायें बायें बग़ल की ओर मुड़ जाती थी, ऐसा ही नीचे की ओर उँगलियों की गर्दिश करते वक़्त प्रिया की कैपरी के ऊपरी इलास्टिक को छूते ही और नीचे जाने की बजाए पेट पर ही इधर उधर हो जाती थी.
अचानक मैंने गौर किया कि प्रिया की काँखें एकदम रोमविहीन हैं, वहाँ एक भी बाल नहीं था और बग़लों के नीचे की त्वचा एकदम नरम और मुलायम थी.“ऐसी ही बालों से रहित, रोमविहीन प्रिया की मनमोहक और कोमल योनि भी होगी…” ऐसा सोचते ही मुझ में तीव्र उत्तेज़ना की लहर उठी.

ऊपर मैंने प्रिया के दायें कान की लौ होंठों से चुमकारना शुरू किया और मैं बीच बीच में प्रिया के कान में रह रह कर अपनी जीभ भी फिरा रहा था.“सी… ई… ई… ई… ई..ई..ई!!! आ… ई… ई..ई..ई!!! उफ़… फ़..फ़!!! आह… ह..ह..ह!! हा… ह..ह..ह!!!”
इस दोहरे काम-आक्रमण को झेलना प्रिया के लिए हर्गिज़ आसान न था; प्रिया के जिस्म में रह रह कर काम-तरंगें उठ रही थी और प्रिया के मुंह से आनन्ददायक सिसकारियों की आवाज़ ऊँची… और ऊँची होती जा रही थी और प्रिया की बेचैनी पल प्रतिपल उसके क़ाबू से बाहर होती जा रही थी.
अचानक प्रिया ने मुझे अपने से थोड़ा परे किया और अपने बाएं हाथ से मेरे नाईट-सूट के बटन खोलने की कोशिश करने लगी लेकिन एक हाथ से बटन खोलना और वो भी बाएं हाथ से… थोड़ी टेढ़ी खीर थी.बहुत कोशिश के बाद एक ही बटन खुल पाया. प्रिया ने शिकायत भरी नज़रों से मुझे देखा. मैंने तत्काल इशारा समझा और फ़ौरन अपने हाथों को फ़ारिग कर के चंद ही पलों में अपने नाईट-सूट के अप्पर के सारे बटन खोल दिए और उसे उतार कर परे फ़ेंक दिया.
अब मैं सिर्फ बनियान और पज़ामे में था और प्रिया के तन पर अभी भी टी-शर्ट और कैपरी थे.
मैंने प्रिया को कमर में हाथ डाल कर थोड़ा ऊपर उठाया और प्रिया के हाथ ऊपर कर के आराम से उस की टी-शर्ट निकाल दी. सफ़ेद कसी हुई ब्रा में प्रिया का कुंदन सा सुडौल शरीर मेरे सामने दमक रहा था. प्रिया ने हया-वश अपने वक्ष के आगे अपनी बाहों का क्रॉस बना कर सर झुका लिया. मैंने प्रिया का चेहरा उस की ठोढ़ी के नीचे उंगली लगा कर उठाया तो प्रिया ने शर्म के मारे आँखें बंद कर ली.
“आँखें खोलो प्रिया!”“उंहूं…! मुझे शर्म आती है.”“अरे खोलो तो… यहाँ कौन है तेरे मेरे सिवा?” मैंने दोनों हाथों से प्रिया के दोनों कंधे थाम लिए.
प्रिया ने हौले-हौले अपनी आँखें खोली तो मुझे सीधे अपनी काली कज़रारी आँखों में झांकते पाया.झट से प्रिया ने मेरी ही आँखों पर अपना हाथ रख दिया- आप मुझे ऐसे ना देखो प्लीज़… मैं तो शर्म से ही पिघल जाऊँगी.
मैंने बहुत नरमी से अपने एक हाथ से अपनी आँखों पर रखे प्रिया के हाथ को हटाया और उसी हाथ की हथेली का इक चुम्बन लेकर उसी हाथ की लम्बी पतली, नाज़ुक तर्जनी ऊँगली अपने मुंह में डाल ली और उसे चूसने लगा.

तत्काल प्रिया बेचैन हो उठी और अपनी उंगली मेरे मुंह में इधर उधर मोड़ने-तोड़ने लगी. तब तक मैं करीब क़रीब आधा प्रिया के ऊपर झुका हुआ था.अचानक ही प्रिया ने अपनी उंगली मेरे मुंह से निकाल ली और उसी हाथ का अंगूठा मेरे होंठों पर दाएं से बाएं, बाएं से दाएं फिराने लगी. बीच बीच में मैं मुंह से प्रिया का अंगूठा पकड़ने की कोशिश भी करता, लेकिन प्रिया अंगूठा किसी तरह छुड़ा लेती.

थोड़ी देर बाद ही मैंने प्रिया के दोनों हाथों की उंगलियाँ अपने दोनों हाथों की उँगलियों में लॉक कर के (अपना दायाँ हाथ प्रिया के बाएं हाथ में और अपना बायाँ हाथ प्रिया के दाएं हाथ में) सिरहाने के आजू बाजू रख दिए और सीधे प्रिया के ऊपर आ कर प्रिया की आँखों में झांका.प्रिया के होंठों पर वही मोनालिसा मुस्कान आयी और प्रिया ने अपनी उंगलियाँ मेरी उँगलियों में ज़ोर से कस दी.

क्या नज़ारा था…!!! साक्षात् रति भी इतनी सुन्दर ना होगी जितनी उस वक़्त प्रिया लग रही थी. मैंने झुक कर प्रिया के होंठों पर एक चुम्बन लिया, फिर धीरे से एक एक चुम्बन दोनों कपोलों पर लिया… एक ठोड़ी पर, एक गर्दन के बीच में ज़रा बायीं और दूसरा ज़रा दायीं ओर…प्रिया की गहरी साँसों में अब आनन्दमयी सीत्कारें निकलने लगी थी.

मैंने एक और चुम्बन ब्रा में कसे हुये दोनों उरोजों के मध्य में लिया और दोनों उरोजों में बनी दरार में अपनी जीभ घुसा दी.बस जी! कहर ही बरपा हो गया जैसे… प्रिया ने जोर से सीत्कार करते हुए ने जबरन अपने दोनों हाथ मेरे हाथों से छुड़ाए और दीवानावार मुझे यहाँ-वहाँ चूमने लगी; मेरे माथे पर… मेरे कंधे पर, मेरी गर्दन पर, मेरे सर पर.

प्रिया का बायाँ हाथ मेरी पीठ पर कस गया और दायाँ हाथ मेरे सर के पृष्टभाग पर जमा कर प्रिया मुझे ऐसे अपनी ओर दबाने लगी जैसे चाहती हो कि मैं उस के उरोजों में ही समा जाऊं. मैं प्रिया के उरोज़ों के बीच की दरार की लम्बाई अपनी जीभ से नापने में मशग़ूल था.“हा… हाँ, यहीं यहीं… और करो… यस! जोर से करो… यहीं हाँ यहीं… ओ गॉड!… आह हाय सी… ई..ई..ई!!! ” प्रिया आनन्द के सागर में अनवरत गोते लगा रही थी.

अचानक मैंने अपना सर जरा सा उठाया तो प्रिया की रोमविहीन आवरणहीन कोमल बायीं काँख पर मेरी नज़र पड़ी. मैंने अपनी जीभ को वक्षों की घाटी से निकला और प्रिया के बाएं वक्ष की ऊपरी सतह की कोमल और नाज़ुक त्वचा को चाटते-चूमते प्रिया की रोमविहीन बायीं बगल की ओर बढ़ा. प्रिया की बेफिक्र ऊंची-ऊंची आनन्दमयी सिसकारियाँ पूरे बैडरूम में गूँज रही थी.

जैसे ही मेरे होंठों ने प्रिया की बगल की नरम-नाज़ुक त्वचा को छुआ, तत्काल प्रिया के मुंह से लम्बी सी सिसकारी निकल गयी और प्रिया का दायाँ हाथ बनियान के अंदर से मेरी पीठ पर जोर जोर से ऊपर-नीचे फिरने लगा.

मैंने प्रिया की बगल में मुंह दे कर एक जोर से सांस ली; एक नशीली सी सुगंध मुझे बेसुध करने लगी; इस सुगंध में प्रिया के जिस्म की ख़ुश्बू, प्रिया के डिओ की ख़ुश्बू, काम-तरंग में डूबे नारी-शरीर में उठती वो अलग एक ख़ास मादक सी खुशबू… सब मिली-जुली थीं.मैंने प्रिया की कांख को चूमा… तत्काल प्रिया के मुंह से एक आनन्दमयी और लम्बी सीत्कार निकल गयी और मैंने प्रिया की बगल की अंदर वाली रेशम रेशम त्वचा को अपनी जीभ से चाटा. प्रिया के पसीने की खुशबू के साथ साथ प्रिया के पसीने का का हल्का सा नमकीन स्वाद साथ में शायद डियो का कसैला सा स्वाद था.
यही सब मैंने प्रिया की दायीं कांख पर दोहराया. कसम से! मजा आ गया. इधर प्रिया मारे उत्तेजना के बिस्तर पर जल बिन मछली की तरह तड़फ रही थी. बिस्तर की चादर पर मुट्ठियाँ कस रही थी, रह रह कर बिस्तर पर पाँव पटक रही थी, ऊँची ऊँची सिसकारियाँ ले रही थी, लम्बी लम्बी सीत्कारें भर रही थी.
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Messages In This Thread
हसीन गुनाह - by Gpoint - 04-05-2021, 07:29 AM
RE: हसीन गुनाह - by Gpoint - 04-05-2021, 07:33 AM
RE: हसीन गुनाह - by Gpoint - 04-05-2021, 07:38 AM
RE: हसीन गुनाह - by Gpoint - 04-05-2021, 07:45 AM
RE: हसीन गुनाह - by Gpoint - 04-05-2021, 07:51 AM
RE: हसीन गुनाह - by Gpoint - 04-05-2021, 08:03 AM
RE: हसीन गुनाह - by Rahulk11 - 25-06-2021, 12:53 AM
RE: हसीन गुनाह - by raj500265 - 03-07-2022, 04:35 PM



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