04-05-2021, 07:51 AM
“फुल बॉडी ऑइल-मसाज़? मतलब… सारे कपड़े उतार के?”“और नहीं तो क्या… कपड़े पहन कर?”“यार! तुम औरतें भी ना! अच्छा! एक बात बताओ… औरतें प्यूबिक हेयर भी वैक्स करवाती हैं?” (प्यूबिक हेयर मतलब- योनि के आस पास के बाल)“हाँ! बहुत करवाती हैं लेकिन मैं नहीं करवाती… पर प्रिया करवाती है.”
हुस्न की शमशीर को धार लग रही थी, कोई किस्मत वाला परम मोक्ष को प्राप्त होने वाला था. प्रिया के रेशम-रेशम जिस्म की कल्पना करते ही मेरे लिंग समेत मेरे जिस्म का रोयाँ-रोयाँ खड़ा हो गया और उस रात बिस्तर में मैंने सुधा की हड्डी पसली एक कर के रख दी.
ऐसे ही अक्टूबर का आखिरी हफ्ता आ पहुंचा. बच्चों को दशहरे की छुट्टियाँ थी. प्रिया का कंप्यूटर कोर्स भी अपने अंतिम चरण में था, पांच-छह दिन की और बात थी, 02 नवंबर को प्रिया ने घर लौट जाना था.प्रिया का मंगेतर 10 नवंबर को आने वाला था और शादी 19 नवंबर की फ़िक्स थी.
इधर प्रिया ने अभी तक मुझे अपने पुट्ठे पर हाथ तक नहीं धरने दिया था. मुझे अपने सपने का भविष्य बहुत अंधकारमय लग रहा था.
फिर अचानक एक चमत्कार हो गया. उसी शाम मेरी पत्नी सुधा के एक चाचा श्री हमारे घर पधारे. यह साहब एक बड़े ट्रांसपोर्टर है और इन की कोई 70-80 A.C टूरिस्ट बसें पूरे उत्तर भारत में चलती हैं, इन साहब ने अपनी कोई मनौती पूरी होने के उपलक्ष्य में अपने गोत्र की सारी लड़कियों समेत वैष्णो देवी दर्शन के लिए पूरी AC स्लीपर वाली वॉल्वो बस बुला रखी थी. यह साहब उस यात्रा के लिए हमें न्यौता देने आये थे. वीरवार रात को निकलना था, शुक्रवार सारा दिन चढ़ाई कर के दर्शन करने थे, शुक्रवार रात वहाँ से वापसी कर के शनिवार सवेरे वापिस घर पहुँच जाना था.
सुधा का बहुत मन था जाने का लेकिन मेरा जाना मुश्किल था क्यों कि सीज़न का समय था, मैं घर से सुबह का निकला रात 9-10 बजे घर आता था. चूंकि प्रिया का कंप्यूटर कोर्स आँखिरी चरण में था तो प्रिया भी सुबह की गयी शाम 5 के करीब घर वापिस आ पाती थी. तो प्रिया की मम्मी को साथ चलने के लिए फ़ोन लगाया गया और साली साहिबा भी फटाक से सुधा के साथ चलने को तैयार हो गयी.
फ़ाइनल प्रोग्राम यह बना कि प्रिया की माताश्री वीरवार शाम तक हमारे घर आ जाएंगी और सुधा और उन को मैं वीरवार शाम को चाचा जी के घर जा कर बस चढ़ा आऊंगा और शनिवार सुबह को चाचा जी के घर जा कर ले आऊंगा. दोनों बच्चे यहीं हमारे पास रहेंगें. एक ही दिन की तो बात थी.
वीरवार शाम 7 बजे के लगभग मैं घर आया तो देखा कि मेरे दोनों बच्चों ने रो रो कर आसमान सर पर उठा रखा था, दोनों अपनी मां और मौसी के साथ जाने की जिद कर रहे थे. बड़े धर्म-संकट की स्थिति थी. भगवान् जाने! बस में अब एक्सट्रा स्लीपर उपलब्ध था भी या नहीं!सुधा ने बहुत सकुचाते हुए चाचाजी को फ़ोन लगाया गया और मसला बयान किया. सुन कर चाचा जी फ़ोन पर ही रावण जैसी ऊँची हंसी हंसे और बोले- कोई बात ही नहीं… 5-7 जन और हों तो उन्हें भी ले आओ. बस एक नहीं, दो जा रहीं हैं. तुम लोग… बस! आ जाओ!
मामला हल हो गया था, आनन फ़ानन में बच्चों का भी बैग पैक किया गया. करीब 8 बजे मैं इन चारों को चाचा श्री के घर छोड़ने निकल पड़ा. प्रिया भी हमारे साथ ही थी. अचानक मुझे एक झटका सा लगा और महसूस हुआ कि आज की रात तो मुरादों वाली रात हो सकती है… आने वाले करीब 36 घंटे मेरी तमाम जिंदगी की हसरतों का हासिल हो सकते थे. ऐसा सोचते ही मैं तनाव में आ गया.
तभी सुधा ने पूछा- क्या बात है? आप अचानक चुप से क्यों हो गए?“ऐसे ही… तुम अपना और बच्चों का ख्याल रखना.”“अरे! एक दिन की तो बात है. आप फ़िक्र ना करें. बस आप कल शाम को टाइम से घर आ जाना, लेट मत होना. प्रिया घर में अकेली होगी.”“ठीक है.”
उन चारों को चाचा जी के घर छोड़ कर, जहाँ सब के लिए डिनर का प्रोग्राम भी था और साफ़ दिख रहा था कि बसें 11 बजे से पहले नहीं चलेंगी. खाना-वाना खा पी कर मुझे और प्रिया को वापिस घर पहुँचते पहुँचते 10:30 बज गए.घर पहुँचते ही प्रिया कार से उतर कर दौड़ कर अपने कमरे में जा घुसी और दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया.
मैंने गैरेज का शटर डाउन किया, मेन-गेट को अंदर से ताला लगाया और अंदर दाखिल हुआ, कपड़े बदले और किचन में जा कर कॉफ़ी बनायी.“प्रिया… कॉफी पियोगी?” मैंने आवाज लगाई.कोई जबाब नहीं मिला.दोबारा आवाज़ लगाई… फिर कोई जवाब नहीं!अजीब बर्ताब कर रही थी लड़की!ख़ैर! मैं अपना कॉफ़ी का मग उठा कर प्रिया के दरवाज़े के पास आया और पूछा- प्रिया! ठीक हो?“हूँ” की एक मध्यम सी आवाज़ सुनाई दी.
मैं दो पल वहीं खड़ा रहा और फिर कॉफ़ी सिप करता करता अपने बैडरूम में आ गया. मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था कि क्या हो गया था लड़की को?सिप-सिप कर के मैंने अपनी कॉफ़ी ख़त्म की और वाशरूम में जा कर पहले ‘अपना हाथ, जगन्नाथ’ किया, फिर ब्रश किया. अंडरवियर उतार कर लॉन्ड्री-बास्केट में डाला और बिना अंडरवियरके नाईट सूट पहन लिया.
अजीब बात थी… मैं और मेरी मुजस्सम मुमताज़ घर में अकेले थे लेकिन एक नहीं हो पा रहे थे.यही वो प्रिया थी जो सवा डेढ़ साल पहले सुधा की मौजूदगी में भी मुझ से प्यार करने में नहीं हिचकी थी और आज जब कि घर में किसी के होने का, किसी को पता चल जाने का, मुहब्बत का राज़ फाश हो जाने जैसा कोई खतरा नहीं था तो ‘वो’ अपनी मर्ज़ी से, अपने कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद कर के बैठी थी.
बेड पर अधलेटे से बैठे, ऐसा सोचते सोचते जाने कब मेरी आँख लग गयी. ट्यूब लाइट भी जलती रह गयी. बैडरूम का दरवाज़ा तो खुला था ही!
रात नींद में ही मैंने करवट ली तो किसी नर्म-गुदाज़ चीज़ से मेरा हाथ टकराया. यह एक जनाना कंधा सा था. मैंने झट्ट से आँखें खोली तो पाया कि बैडरूम का दरवाज़ा भी बंद था और बैडरूम की ट्यूब-लाइट तो बंद थी ही अपितु फुट-लाइट भी बंद थी. पूरे बैडरूम में घुप्प अँधेरा छाया हुआ था.
मैंने कपड़ों की हल्की सी सरसराहट और साँसों की मध्यम सी आवाज़ सुनी. मेरे ही बैड पर, मेरे दायीं ओर कोई था. एक पल को तो मेरे रौंगटे खड़े हो गए लेकिन जैसे ही मुझे प्रिया के वहाँ होने का ध्यान आया तो मेरे लिंग में भयंकर तनाव आ गया. मैंने अपना बायाँ हाथ आगे बढ़ाया तो प्रिया का मरमरी और नाज़ुक हाथ मेरे हाथ पर कस गया.
अँधेरे में साईड-वॉल पर रेडियम वाल-क्लॉक 1:10 का टाइम दिखा रही थी. दो चार पल मैं बिना कोई हरकत किये ऐसे ही करवट लिए पड़ा रहा. अचानक मैंने अपने सिरहाने लगी टेबल लैंप ऑन कर दिया.सचमुच यह प्रिया ही थी. प्रिया ने तत्काल मेरा हाथ छोड़ा और चादर अपने सर तक ओढ़ ली और अपना सर जोर जोर से दाएं-बाएं हिलाती हुयी घुटी सी आवाज़ में बोली- प्लीज़… नहीं! लाइट बंद कर दीजिये.“मगर क्यों?”“मुझे शर्म आती है.”“शर्म आती है… मगर किस से?”“मुझे नहीं पता… लेकिन आप लाइट बंद कर दीजिये.”“लेकिन यहाँ तो मैं और तुम ही हो और तीसरा तो कोई है ही नहीं.”“पता है… पर प्लीज़ लाइट बुझाइये.”“प्रिया! लाइट बंद कर दी तो वादा कैसे पूरा होगा? ”“मुझे नहीं पता… लेकिन आप लाइट बंद कीजिये.”
अगर मेरी प्रियतमा को ये सब छुप छुप कर करना पसंद था तो ठीक है… मैं जो उस को पसंद है वैसे ही करूंगा. मैंने हाथ बढ़ा कर टेबल लैम्प बंद कर के हल्की नीली लाइट वाली नाईट लैंप जला दी.प्रिया ने चादर से सर बाहर निकाला और नीली लाइट जलती देखकर मेरी ओर शिकायत भरी नज़रों से देखा लेकिन कहा कुछ नहीं. चलो! बात थोड़ा तो आगे बढ़ी. अब तक मैं पूर्ण तौर पर चैतन्य हो चुका था.
“सुनो!” अचानक प्रिया ने सरगोशी की.“सुनो!” की प्रिया की आवाज़ सुन कर मुझे हल्का सा झटका सा लगा. यह संबोधन मेरे लिए सिर्फ सुधा प्रयोग करती थी. मैंने तकिये पर से सर उठाया और प्रिया की ओर सवालिया नज़रों से देखा.“उठो तो… ज़रा!” प्रिया ने इल्तिज़ा सी की.” ठूँ…?? बोले तो…?”“अरे बाबा! उठ कर खड़े हो जरा…!”“बैड पर…?”“ज़मीन पर!!… बुद्धू राम!”
एक झटका और लगा. सिर्फ सुधा ही कभी-कभार एकांत में मुझे बुद्धूराम कहती थी. भगवान् जाने… क्या चल रहा था लड़की के दिमाग में? मैं आहिस्ता से उठा और बैड से नीचे उतर कर फर्श पर खड़ा हो गया.“ज़रा ट्यूब-लाइट जलाओ तो.”प्रिया के लफ़्ज़ों में एक अधिकारपूर्ण और सत्तात्मक गूँज सी थी. मैंने नाईट-लैंप ऑफ़ कर के ट्यूब-लाइट ऑन कर दी. तभी प्रिया बैड के परली तरफ से नीचे उतर आयी और आ कर ठीक मेरे सामने खड़ी हो गयी. अजीब हालत थी मेरी… बिना अंडरवियर के मेरा लिंग पजामे को तम्बू बनाये हुये था.“अब आगे क्या?” मैंने मज़ाकिया लहज़े में पूछा.
अचानक ही प्रिया ने झुक कर अपने दोनों हाथों से मेरे पैर छू कर अपना दायाँ हाथ अपनी मांग में ऐसे फेरा जैसे सिन्दूर लगाते हैं.पल-भर के लिए मैं स्तब्ध रह गया- यह… यह क्या कर रही हो… प्रिया?कहते हुए मैंने प्रिया को दोनों कांधों से पकड़ कर उठाया.देखा तो काली कजरारी आँखों में आंसू बस गिरने की कगार तक भरे थे.
“मेरा ईश्वर गवाह है कि आप मेरे जीवन में आये प्रथम पुरुष हैं और उस रात के बाद से मैंने हमेशा आप को अपने पति के रूप में ही देखा और चाहा है. आज के बाद हम दोनों की जिंदगी में क्या क्या मोड़ आएं… मैं नहीं जानती लेकिन जो अभिसार अभी आप के और मेरे बीच में होने वाला है, मैं चाहती हूँ कि उसका स्वरूप एक पति-पत्नी के अभिसार का हो… ना कि प्रेमी-प्रेमिका के अभिसार का. आने वाले चंद घंटे मैं पूर्ण तौर पर आप की अर्धांगिनी की तरह गुज़ारना चाहती हूँ. इन चंद घंटों की मीठी याद के सहारे मैं जिंदगी की मुश्किल से मुश्किल दुश्वारी हसीं-ख़ुशी सह लूंगी. क्या आप आज मुझे यह अधिकार देंगें?”
बाप रे! … तो ये सब चल रहा था प्रिया के दिमाग में! अब मैं समझा सारी बात. मेरे गले लग कर बेवज़ह रोना, अधिकारपूर्ण मुझे पुकारना, मेरे पांव छूना और फिर मेरे पांव की वही धूल अपनी मांग में लगाना… प्रिया खुद को सुधा के स्थान पर रख कर मुझे अपना पति कह रही थी.“प्रिया! आने वाले चंद घंटे तो क्या तू हमेशा मेरे दिल में मेरी अपनी बन कर रहेगी. हो सकता है कि हम बरसों ना मिले लेकिन याद रखना कि मुझ पर तेरा इख़्तियार और अधिकार सुधा से कम नहीं.” कहते हुए मैंने भी कुछ भावुक हो गया और प्रिया को अपने अंक में समेट कर उस के माथे पर प्यार की मोहर लगा दी
ज़वाब में प्रिया ने मुझे जोर से अपने आलिंगन में ले लिया. आलिंगन में बंधे-बंधे दोनों बैड पर आजू-बाजू (मैं दायीं तरफ, प्रिया बायीं तरफ) लेट गए. अब की बार प्रिया ने मुझे ट्यूब-लाइट बंद करने को नहीं कहा.“अच्छा प्रिया! दो-एक बातें तो बता?”प्रिया की भवें प्रश्नात्मक तौर पर मेरी ओर उठी.
“आम तौर पर तू मुझे “मौसा जी नमस्ते” कह कर ही टाल देती रही है लेकिन उस दिन जब मैं और सुधा तेरे घर गए थे तो क्या हुआ था तुझे?”“उस दिन? उस दिन आप के आने से ज़रा पहले मेरी अपने पापा से जोरदार बहस हुई थी और उस टाइम मैं दिल से आप को याद कर रही थी.”“और वो मेरा लिंग दबाना, सहलाना और पीठ पर चिकोटी काटना?”” दबाने का तो ऐसा है कि वो या तो सिर्फ आप को पता या मुझे और यही बात पीठ पर चिकोटी काटने पर लागू होती है लेकिन सहलाने वाली बात का तो मैं कहूँगी कि वो सिर्फ एक एक्सीडेंट था.”” और आज जब हम वापिस आये थे तो क्या हुआ था तुझे? तू क्यों अपने कमरे में बंद हो गयी थी और कहने पर भी दरवाज़ा क्यों नहीं खोला तुम ने?”“आप समझे नहीं? पिछले तीन महीने से आप का इम्तिहान चल रहा था. इन तीन महीनों में आप ने मुझ से कभी कोई छिछोरी हरक़त नहीं की और आज शाम को आप का आखिरी इम्तिहान था. अगर आप ने मेरे कमरे का मुझ से दरवाज़ा खुलवाने की मनोमुनौवल की होती या जबरदस्ती दरवाज़ा खोलने की कोई जुगत की होती तो मुझे समझ आ जाना था कि आप सिर्फ एक जनाना जिस्म के पीछे पड़े हैं और प्रिया से आप को कोई लेना-देना नहीं और बीते समय में आप का मेरे साथ कोई ग़ैर-इखलाकी हरकत ना करने का कारण सिर्फ मौका नहीं मिलना ही था. अगर ऐसा होता तो मैंने आप को खुद को कभी भी छूने नहीं देना था और तमाम उम्र आप के साथ कोई वास्ता भी नहीं रखना था.”
तौबा तौबा! क्या खुराफाती सोच थी… लड़की की!“अच्छा! अब बता… मैं पास हुआ या फेल?”“आप को क्या लगता है?”“तू बता?”“मुझे ख़ुशी है कि जिसे मैंने देवता माना, वो सच में एक देवता ही है.”
भावावेश में मैंने प्रिया के चेहरे पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी. हम दोनों के साँसों की गति निरंतर बढ़ती जा रही थी लेकिन इस से आगे ना वो बढ़ रही थी न मैं…लेकिन मैं पुरुष था… पहल तो मुझे ही करनी थी!आखिरकार आहिस्ता से मैंने अपना दायाँ हाथ ऊपर उठा कर प्रिया के बायें गाल पर रख दिया. प्रिया का दिल तेज़ी से धड़क रहा था, उसकी जलती गर्म सांसें मेरी कलाई झुलसाये जा रही थी. मैंने अपना हाथ आगे बढ़ाया तो मेरी तर्जनी और मध्यमा उंगली के बीच में प्रिया के बाएं कान की लौ आ गयी जिसे मैंने हल्के से मसल दिया.“सी… ई… ई… ई… ई… ई…!!!” शाश्वत आनन्द की पहली आनन्दमयी सिसकारी प्रिया के होंठों से फूट पड़ी. हम दोनों के बीच में कोई डेढ़-एक फुट का फ़ासला था. मैं थोड़ा सा प्रिया की तरफ़ सरका. अब मेरा दायाँ हाथ प्रिया की पीठ पर धीरे धीरे दायें-बायें, ऊपर-नीचे फिर रहा था. कपड़ों के ऊपर से प्रिया की कसी हुयी ब्रा की आउटलाइन स्पष्ट महसूस हो रही थी.
जैसे ही मैंने प्रिया का बायाँ हाथ उठा कर अपने ऊपर रखा तो प्रिया ने मुझे अपने साथ कस कर भींच लिया. दोनों के बीच का रहा सहा फासला भी ख़त्म हो गया. प्रिया के उरोज़ मेरी छाती में धँसे हुये थे और उस का बायाँ हाथ मेरी पीठ को कस कर जकड़े हुए था.कयामत तो तब बरपा हुई जब प्रिया ने अपनी बायीं टांग उठा कर मेरे ऊपर रख दी. कपड़ों के ऊपर से ही प्रिया की उतप्त योनि का ताप मेरे कठोर लिंग को जैसे जलाने पर आमादा था. मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई जलती हुयी अंगीठी मेरे लिंग के पास पड़ी हो.
मेरा दायाँ हाथ प्रिया की पीठ पर ऊपर-नीचे गर्दिश करता करता अब नितम्बों पर से होता हुआ, पैंटी-लाइन नापता-नापता योनि-द्वार तक जा रहा था. प्रिया की आँखें समर्पण के आनन्द के अतिरेक से बंद थी और प्रिया का पूरा जिस्म रह रह कर हल्के-हल्के झटके खा रहा था.
मैंने अपना बायाँ हाथ प्रिया की गर्दन के नीचे से ले जा कर प्रिया को अपनी ओर खींचा तो प्रिया के रस भरे होंठ मेरे प्यासे होंठों से आ मिले. तत्काल मैंने प्रिया के होठों का अमृतपान करना शुरू कर दिया.प्रिया भी आज बहुत गर्मजोशी से मेरा साथ दे रही थी.
अचानक मेरे निचले होंठ पर किसी मधुमक्खी ने डंक मारा हो जैसे…
हुस्न की शमशीर को धार लग रही थी, कोई किस्मत वाला परम मोक्ष को प्राप्त होने वाला था. प्रिया के रेशम-रेशम जिस्म की कल्पना करते ही मेरे लिंग समेत मेरे जिस्म का रोयाँ-रोयाँ खड़ा हो गया और उस रात बिस्तर में मैंने सुधा की हड्डी पसली एक कर के रख दी.
ऐसे ही अक्टूबर का आखिरी हफ्ता आ पहुंचा. बच्चों को दशहरे की छुट्टियाँ थी. प्रिया का कंप्यूटर कोर्स भी अपने अंतिम चरण में था, पांच-छह दिन की और बात थी, 02 नवंबर को प्रिया ने घर लौट जाना था.प्रिया का मंगेतर 10 नवंबर को आने वाला था और शादी 19 नवंबर की फ़िक्स थी.
इधर प्रिया ने अभी तक मुझे अपने पुट्ठे पर हाथ तक नहीं धरने दिया था. मुझे अपने सपने का भविष्य बहुत अंधकारमय लग रहा था.
फिर अचानक एक चमत्कार हो गया. उसी शाम मेरी पत्नी सुधा के एक चाचा श्री हमारे घर पधारे. यह साहब एक बड़े ट्रांसपोर्टर है और इन की कोई 70-80 A.C टूरिस्ट बसें पूरे उत्तर भारत में चलती हैं, इन साहब ने अपनी कोई मनौती पूरी होने के उपलक्ष्य में अपने गोत्र की सारी लड़कियों समेत वैष्णो देवी दर्शन के लिए पूरी AC स्लीपर वाली वॉल्वो बस बुला रखी थी. यह साहब उस यात्रा के लिए हमें न्यौता देने आये थे. वीरवार रात को निकलना था, शुक्रवार सारा दिन चढ़ाई कर के दर्शन करने थे, शुक्रवार रात वहाँ से वापसी कर के शनिवार सवेरे वापिस घर पहुँच जाना था.
सुधा का बहुत मन था जाने का लेकिन मेरा जाना मुश्किल था क्यों कि सीज़न का समय था, मैं घर से सुबह का निकला रात 9-10 बजे घर आता था. चूंकि प्रिया का कंप्यूटर कोर्स आँखिरी चरण में था तो प्रिया भी सुबह की गयी शाम 5 के करीब घर वापिस आ पाती थी. तो प्रिया की मम्मी को साथ चलने के लिए फ़ोन लगाया गया और साली साहिबा भी फटाक से सुधा के साथ चलने को तैयार हो गयी.
फ़ाइनल प्रोग्राम यह बना कि प्रिया की माताश्री वीरवार शाम तक हमारे घर आ जाएंगी और सुधा और उन को मैं वीरवार शाम को चाचा जी के घर जा कर बस चढ़ा आऊंगा और शनिवार सुबह को चाचा जी के घर जा कर ले आऊंगा. दोनों बच्चे यहीं हमारे पास रहेंगें. एक ही दिन की तो बात थी.
वीरवार शाम 7 बजे के लगभग मैं घर आया तो देखा कि मेरे दोनों बच्चों ने रो रो कर आसमान सर पर उठा रखा था, दोनों अपनी मां और मौसी के साथ जाने की जिद कर रहे थे. बड़े धर्म-संकट की स्थिति थी. भगवान् जाने! बस में अब एक्सट्रा स्लीपर उपलब्ध था भी या नहीं!सुधा ने बहुत सकुचाते हुए चाचाजी को फ़ोन लगाया गया और मसला बयान किया. सुन कर चाचा जी फ़ोन पर ही रावण जैसी ऊँची हंसी हंसे और बोले- कोई बात ही नहीं… 5-7 जन और हों तो उन्हें भी ले आओ. बस एक नहीं, दो जा रहीं हैं. तुम लोग… बस! आ जाओ!
मामला हल हो गया था, आनन फ़ानन में बच्चों का भी बैग पैक किया गया. करीब 8 बजे मैं इन चारों को चाचा श्री के घर छोड़ने निकल पड़ा. प्रिया भी हमारे साथ ही थी. अचानक मुझे एक झटका सा लगा और महसूस हुआ कि आज की रात तो मुरादों वाली रात हो सकती है… आने वाले करीब 36 घंटे मेरी तमाम जिंदगी की हसरतों का हासिल हो सकते थे. ऐसा सोचते ही मैं तनाव में आ गया.
तभी सुधा ने पूछा- क्या बात है? आप अचानक चुप से क्यों हो गए?“ऐसे ही… तुम अपना और बच्चों का ख्याल रखना.”“अरे! एक दिन की तो बात है. आप फ़िक्र ना करें. बस आप कल शाम को टाइम से घर आ जाना, लेट मत होना. प्रिया घर में अकेली होगी.”“ठीक है.”
उन चारों को चाचा जी के घर छोड़ कर, जहाँ सब के लिए डिनर का प्रोग्राम भी था और साफ़ दिख रहा था कि बसें 11 बजे से पहले नहीं चलेंगी. खाना-वाना खा पी कर मुझे और प्रिया को वापिस घर पहुँचते पहुँचते 10:30 बज गए.घर पहुँचते ही प्रिया कार से उतर कर दौड़ कर अपने कमरे में जा घुसी और दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया.
मैंने गैरेज का शटर डाउन किया, मेन-गेट को अंदर से ताला लगाया और अंदर दाखिल हुआ, कपड़े बदले और किचन में जा कर कॉफ़ी बनायी.“प्रिया… कॉफी पियोगी?” मैंने आवाज लगाई.कोई जबाब नहीं मिला.दोबारा आवाज़ लगाई… फिर कोई जवाब नहीं!अजीब बर्ताब कर रही थी लड़की!ख़ैर! मैं अपना कॉफ़ी का मग उठा कर प्रिया के दरवाज़े के पास आया और पूछा- प्रिया! ठीक हो?“हूँ” की एक मध्यम सी आवाज़ सुनाई दी.
मैं दो पल वहीं खड़ा रहा और फिर कॉफ़ी सिप करता करता अपने बैडरूम में आ गया. मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था कि क्या हो गया था लड़की को?सिप-सिप कर के मैंने अपनी कॉफ़ी ख़त्म की और वाशरूम में जा कर पहले ‘अपना हाथ, जगन्नाथ’ किया, फिर ब्रश किया. अंडरवियर उतार कर लॉन्ड्री-बास्केट में डाला और बिना अंडरवियरके नाईट सूट पहन लिया.
अजीब बात थी… मैं और मेरी मुजस्सम मुमताज़ घर में अकेले थे लेकिन एक नहीं हो पा रहे थे.यही वो प्रिया थी जो सवा डेढ़ साल पहले सुधा की मौजूदगी में भी मुझ से प्यार करने में नहीं हिचकी थी और आज जब कि घर में किसी के होने का, किसी को पता चल जाने का, मुहब्बत का राज़ फाश हो जाने जैसा कोई खतरा नहीं था तो ‘वो’ अपनी मर्ज़ी से, अपने कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद कर के बैठी थी.
बेड पर अधलेटे से बैठे, ऐसा सोचते सोचते जाने कब मेरी आँख लग गयी. ट्यूब लाइट भी जलती रह गयी. बैडरूम का दरवाज़ा तो खुला था ही!
रात नींद में ही मैंने करवट ली तो किसी नर्म-गुदाज़ चीज़ से मेरा हाथ टकराया. यह एक जनाना कंधा सा था. मैंने झट्ट से आँखें खोली तो पाया कि बैडरूम का दरवाज़ा भी बंद था और बैडरूम की ट्यूब-लाइट तो बंद थी ही अपितु फुट-लाइट भी बंद थी. पूरे बैडरूम में घुप्प अँधेरा छाया हुआ था.
मैंने कपड़ों की हल्की सी सरसराहट और साँसों की मध्यम सी आवाज़ सुनी. मेरे ही बैड पर, मेरे दायीं ओर कोई था. एक पल को तो मेरे रौंगटे खड़े हो गए लेकिन जैसे ही मुझे प्रिया के वहाँ होने का ध्यान आया तो मेरे लिंग में भयंकर तनाव आ गया. मैंने अपना बायाँ हाथ आगे बढ़ाया तो प्रिया का मरमरी और नाज़ुक हाथ मेरे हाथ पर कस गया.
अँधेरे में साईड-वॉल पर रेडियम वाल-क्लॉक 1:10 का टाइम दिखा रही थी. दो चार पल मैं बिना कोई हरकत किये ऐसे ही करवट लिए पड़ा रहा. अचानक मैंने अपने सिरहाने लगी टेबल लैंप ऑन कर दिया.सचमुच यह प्रिया ही थी. प्रिया ने तत्काल मेरा हाथ छोड़ा और चादर अपने सर तक ओढ़ ली और अपना सर जोर जोर से दाएं-बाएं हिलाती हुयी घुटी सी आवाज़ में बोली- प्लीज़… नहीं! लाइट बंद कर दीजिये.“मगर क्यों?”“मुझे शर्म आती है.”“शर्म आती है… मगर किस से?”“मुझे नहीं पता… लेकिन आप लाइट बंद कर दीजिये.”“लेकिन यहाँ तो मैं और तुम ही हो और तीसरा तो कोई है ही नहीं.”“पता है… पर प्लीज़ लाइट बुझाइये.”“प्रिया! लाइट बंद कर दी तो वादा कैसे पूरा होगा? ”“मुझे नहीं पता… लेकिन आप लाइट बंद कीजिये.”
अगर मेरी प्रियतमा को ये सब छुप छुप कर करना पसंद था तो ठीक है… मैं जो उस को पसंद है वैसे ही करूंगा. मैंने हाथ बढ़ा कर टेबल लैम्प बंद कर के हल्की नीली लाइट वाली नाईट लैंप जला दी.प्रिया ने चादर से सर बाहर निकाला और नीली लाइट जलती देखकर मेरी ओर शिकायत भरी नज़रों से देखा लेकिन कहा कुछ नहीं. चलो! बात थोड़ा तो आगे बढ़ी. अब तक मैं पूर्ण तौर पर चैतन्य हो चुका था.
“सुनो!” अचानक प्रिया ने सरगोशी की.“सुनो!” की प्रिया की आवाज़ सुन कर मुझे हल्का सा झटका सा लगा. यह संबोधन मेरे लिए सिर्फ सुधा प्रयोग करती थी. मैंने तकिये पर से सर उठाया और प्रिया की ओर सवालिया नज़रों से देखा.“उठो तो… ज़रा!” प्रिया ने इल्तिज़ा सी की.” ठूँ…?? बोले तो…?”“अरे बाबा! उठ कर खड़े हो जरा…!”“बैड पर…?”“ज़मीन पर!!… बुद्धू राम!”
एक झटका और लगा. सिर्फ सुधा ही कभी-कभार एकांत में मुझे बुद्धूराम कहती थी. भगवान् जाने… क्या चल रहा था लड़की के दिमाग में? मैं आहिस्ता से उठा और बैड से नीचे उतर कर फर्श पर खड़ा हो गया.“ज़रा ट्यूब-लाइट जलाओ तो.”प्रिया के लफ़्ज़ों में एक अधिकारपूर्ण और सत्तात्मक गूँज सी थी. मैंने नाईट-लैंप ऑफ़ कर के ट्यूब-लाइट ऑन कर दी. तभी प्रिया बैड के परली तरफ से नीचे उतर आयी और आ कर ठीक मेरे सामने खड़ी हो गयी. अजीब हालत थी मेरी… बिना अंडरवियर के मेरा लिंग पजामे को तम्बू बनाये हुये था.“अब आगे क्या?” मैंने मज़ाकिया लहज़े में पूछा.
अचानक ही प्रिया ने झुक कर अपने दोनों हाथों से मेरे पैर छू कर अपना दायाँ हाथ अपनी मांग में ऐसे फेरा जैसे सिन्दूर लगाते हैं.पल-भर के लिए मैं स्तब्ध रह गया- यह… यह क्या कर रही हो… प्रिया?कहते हुए मैंने प्रिया को दोनों कांधों से पकड़ कर उठाया.देखा तो काली कजरारी आँखों में आंसू बस गिरने की कगार तक भरे थे.
“मेरा ईश्वर गवाह है कि आप मेरे जीवन में आये प्रथम पुरुष हैं और उस रात के बाद से मैंने हमेशा आप को अपने पति के रूप में ही देखा और चाहा है. आज के बाद हम दोनों की जिंदगी में क्या क्या मोड़ आएं… मैं नहीं जानती लेकिन जो अभिसार अभी आप के और मेरे बीच में होने वाला है, मैं चाहती हूँ कि उसका स्वरूप एक पति-पत्नी के अभिसार का हो… ना कि प्रेमी-प्रेमिका के अभिसार का. आने वाले चंद घंटे मैं पूर्ण तौर पर आप की अर्धांगिनी की तरह गुज़ारना चाहती हूँ. इन चंद घंटों की मीठी याद के सहारे मैं जिंदगी की मुश्किल से मुश्किल दुश्वारी हसीं-ख़ुशी सह लूंगी. क्या आप आज मुझे यह अधिकार देंगें?”
बाप रे! … तो ये सब चल रहा था प्रिया के दिमाग में! अब मैं समझा सारी बात. मेरे गले लग कर बेवज़ह रोना, अधिकारपूर्ण मुझे पुकारना, मेरे पांव छूना और फिर मेरे पांव की वही धूल अपनी मांग में लगाना… प्रिया खुद को सुधा के स्थान पर रख कर मुझे अपना पति कह रही थी.“प्रिया! आने वाले चंद घंटे तो क्या तू हमेशा मेरे दिल में मेरी अपनी बन कर रहेगी. हो सकता है कि हम बरसों ना मिले लेकिन याद रखना कि मुझ पर तेरा इख़्तियार और अधिकार सुधा से कम नहीं.” कहते हुए मैंने भी कुछ भावुक हो गया और प्रिया को अपने अंक में समेट कर उस के माथे पर प्यार की मोहर लगा दी
ज़वाब में प्रिया ने मुझे जोर से अपने आलिंगन में ले लिया. आलिंगन में बंधे-बंधे दोनों बैड पर आजू-बाजू (मैं दायीं तरफ, प्रिया बायीं तरफ) लेट गए. अब की बार प्रिया ने मुझे ट्यूब-लाइट बंद करने को नहीं कहा.“अच्छा प्रिया! दो-एक बातें तो बता?”प्रिया की भवें प्रश्नात्मक तौर पर मेरी ओर उठी.
“आम तौर पर तू मुझे “मौसा जी नमस्ते” कह कर ही टाल देती रही है लेकिन उस दिन जब मैं और सुधा तेरे घर गए थे तो क्या हुआ था तुझे?”“उस दिन? उस दिन आप के आने से ज़रा पहले मेरी अपने पापा से जोरदार बहस हुई थी और उस टाइम मैं दिल से आप को याद कर रही थी.”“और वो मेरा लिंग दबाना, सहलाना और पीठ पर चिकोटी काटना?”” दबाने का तो ऐसा है कि वो या तो सिर्फ आप को पता या मुझे और यही बात पीठ पर चिकोटी काटने पर लागू होती है लेकिन सहलाने वाली बात का तो मैं कहूँगी कि वो सिर्फ एक एक्सीडेंट था.”” और आज जब हम वापिस आये थे तो क्या हुआ था तुझे? तू क्यों अपने कमरे में बंद हो गयी थी और कहने पर भी दरवाज़ा क्यों नहीं खोला तुम ने?”“आप समझे नहीं? पिछले तीन महीने से आप का इम्तिहान चल रहा था. इन तीन महीनों में आप ने मुझ से कभी कोई छिछोरी हरक़त नहीं की और आज शाम को आप का आखिरी इम्तिहान था. अगर आप ने मेरे कमरे का मुझ से दरवाज़ा खुलवाने की मनोमुनौवल की होती या जबरदस्ती दरवाज़ा खोलने की कोई जुगत की होती तो मुझे समझ आ जाना था कि आप सिर्फ एक जनाना जिस्म के पीछे पड़े हैं और प्रिया से आप को कोई लेना-देना नहीं और बीते समय में आप का मेरे साथ कोई ग़ैर-इखलाकी हरकत ना करने का कारण सिर्फ मौका नहीं मिलना ही था. अगर ऐसा होता तो मैंने आप को खुद को कभी भी छूने नहीं देना था और तमाम उम्र आप के साथ कोई वास्ता भी नहीं रखना था.”
तौबा तौबा! क्या खुराफाती सोच थी… लड़की की!“अच्छा! अब बता… मैं पास हुआ या फेल?”“आप को क्या लगता है?”“तू बता?”“मुझे ख़ुशी है कि जिसे मैंने देवता माना, वो सच में एक देवता ही है.”
भावावेश में मैंने प्रिया के चेहरे पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी. हम दोनों के साँसों की गति निरंतर बढ़ती जा रही थी लेकिन इस से आगे ना वो बढ़ रही थी न मैं…लेकिन मैं पुरुष था… पहल तो मुझे ही करनी थी!आखिरकार आहिस्ता से मैंने अपना दायाँ हाथ ऊपर उठा कर प्रिया के बायें गाल पर रख दिया. प्रिया का दिल तेज़ी से धड़क रहा था, उसकी जलती गर्म सांसें मेरी कलाई झुलसाये जा रही थी. मैंने अपना हाथ आगे बढ़ाया तो मेरी तर्जनी और मध्यमा उंगली के बीच में प्रिया के बाएं कान की लौ आ गयी जिसे मैंने हल्के से मसल दिया.“सी… ई… ई… ई… ई… ई…!!!” शाश्वत आनन्द की पहली आनन्दमयी सिसकारी प्रिया के होंठों से फूट पड़ी. हम दोनों के बीच में कोई डेढ़-एक फुट का फ़ासला था. मैं थोड़ा सा प्रिया की तरफ़ सरका. अब मेरा दायाँ हाथ प्रिया की पीठ पर धीरे धीरे दायें-बायें, ऊपर-नीचे फिर रहा था. कपड़ों के ऊपर से प्रिया की कसी हुयी ब्रा की आउटलाइन स्पष्ट महसूस हो रही थी.
जैसे ही मैंने प्रिया का बायाँ हाथ उठा कर अपने ऊपर रखा तो प्रिया ने मुझे अपने साथ कस कर भींच लिया. दोनों के बीच का रहा सहा फासला भी ख़त्म हो गया. प्रिया के उरोज़ मेरी छाती में धँसे हुये थे और उस का बायाँ हाथ मेरी पीठ को कस कर जकड़े हुए था.कयामत तो तब बरपा हुई जब प्रिया ने अपनी बायीं टांग उठा कर मेरे ऊपर रख दी. कपड़ों के ऊपर से ही प्रिया की उतप्त योनि का ताप मेरे कठोर लिंग को जैसे जलाने पर आमादा था. मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई जलती हुयी अंगीठी मेरे लिंग के पास पड़ी हो.
मेरा दायाँ हाथ प्रिया की पीठ पर ऊपर-नीचे गर्दिश करता करता अब नितम्बों पर से होता हुआ, पैंटी-लाइन नापता-नापता योनि-द्वार तक जा रहा था. प्रिया की आँखें समर्पण के आनन्द के अतिरेक से बंद थी और प्रिया का पूरा जिस्म रह रह कर हल्के-हल्के झटके खा रहा था.
मैंने अपना बायाँ हाथ प्रिया की गर्दन के नीचे से ले जा कर प्रिया को अपनी ओर खींचा तो प्रिया के रस भरे होंठ मेरे प्यासे होंठों से आ मिले. तत्काल मैंने प्रिया के होठों का अमृतपान करना शुरू कर दिया.प्रिया भी आज बहुत गर्मजोशी से मेरा साथ दे रही थी.
अचानक मेरे निचले होंठ पर किसी मधुमक्खी ने डंक मारा हो जैसे…