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Adultery हसीन गुनाह
#3
प्रिया की योनि से बेशुमार काम-रस बह रहा था, उसकी पूरी पेंटी भीग चुकी थी। मैंने योनि की दरार पर उंगली फेरते फेरते अपनी बीच वाली उंगली से प्रिया की योनि के भगनासा को सहलाया, प्रिया ने जल्दी से अपनी दोनों जाँघें जोर से अंदर को भींच ली।मैंने वही उंगली प्रिया की योनि में जरा नीचे अंदर को दबाई तो प्रिया के मुंह से ‘उफ़्फ़’ निकल गया।

प्रिया शतप्रतिशत कंवारी थी, लगता था कि प्रिया ने कभी हस्तमैथुन भी नहीं किया था।
तभी मुझे अपनी बाईं ओर हल्की सी हलचल और कपड़ों की सरसराहट का अहसास हुआ, मैंने तत्काल अपना हाथ प्रिया की योनि पर से खींचा और प्रिया से जरा सा उरली तरफ सरक कर गहरी नींद में सोने के जैसी ऐक्टिंग करने लगा।
मिंची आँखों से देखा तो सुधा बाथरूम जाने के लिए उठ रही थी।
जैसे ही सुधा बाथरूम में घुसी मैंने फ़ौरन अपने कपड़े ठीक किये और फुसफुसाती आवाज़ में प्रिया को भी अपने कपड़े ठीक करने को कह दिया।सब कुछ ठीक ठाक करने के बाद हम दोनों ऐसे अलग अलग लेट गए जैसे गहरी नींद में हों।बाथरूम से बाहर आ कर सुधा ने AC का टेम्प्रेचर बढ़ाया और वापिस बिस्तर पर आकर मुझे पीछे से आलिंगन में ले लिया।बाल बाल बचे थे हम!मुझे बहुत देर बाद नींद आई।

अगले दिन शनिवार था और शनिवार के बाद इतवार की छुट्टी थी।शाम को लगभग 4 बज़े A.C वाले का फ़ोन आया कि A.C ठीक हो गया था और वो पूछ रहा था कि कब अपने आदमी मेरे घर भेजे ताकि A.C वापिस फ़िट किया जा सके।मैंने उसे इतवार शाम को आकर A.C फिट करने को बोला।
अब मेरे पास केवल एक ही रात थी जिसमें मैंने कुछ कर गुज़रना था और मैं रात को सबकुछ कर गुज़रने को दृढ़प्रतिज्ञ था। शाम को मैंने अपने परिचित कैमिस्ट से गहरी नींद आने की गोलियों की एक स्ट्रिप ली और आईसक्रीम की दूकान से एक ब्रिक बटरस्काच आईसक्रीम ले कर घर आया।सुधा को बटरस्काच आईसक्रीम बहुत पसंद थी।
चार गोलियां पीस कर में पुड़ी में अपने पास रख ली।
अगली रात डिनर के टाइम डिनर टेबल पर प्रिया डिनर सर्व कर रही थी, आमतौर पर सुधा डिनर सर्व करती थी लेकिन उस दिन प्रिया डिनर सर्व कर रही थी, आते-जाते बहाने बहाने से मुझे यहां वहां छू रही थी।

डिनर हुआ, आईस क्रीम मैंने खुद सबको सर्व की। बच्चों की और सुधा वाली प्लेट में मैंने वो पीसी हुईं नींद की गोलियां मिला दी। सब ने आईसक्रीम खाई और करीब 9:30 बजे मैं एक दोहरी मनस्थिति में अपने बैडरूम में आ गया।नींद की गोलियों का असर सुधा पर एक से डेढ़ घंटे बाद होना था।ब्रश करने के बाद मैंने हस्तमैथुन किया और अपना अंडरवियर पहने बिना ही पजामा पहन लिया और एक नावेल लेकर वापिस अपने बिस्तर पर आ जमा। मैं अपने बिस्तर पर दो तकियों के साथ पीठ टिका कर, पेट तक चादर ले कर ओढ़ कर और घुटने मोड़ कर नॉवल पढ़ने लगा।
सब काम निपटा कर, करीब सवा दस बजे प्रिया और सुधा दोनों बैडरूम में आईं। तब तक बैडरूम में चलते A.C की बड़ी सुखद सी ठंडक फ़ैल चुकी थी।आते सुधा बोली- आज तो मैं बहुत थक सी गई हूँ, बहुत नींद आ रही है!‘मुझे भी!’ प्रिया ने भी हामी भरी।
‘तो सो जाओ, किसने रोका है।’ मैंने कहा।‘और आप?’ सुधा ने पूछा।‘मैं थोड़ा पढ़ कर सोऊंगा, मुझे अभी नींद नहीं आ रही है।’ मैंने कहा।‘ठीक है… पर आप ट्यूब लाइट बंद करके टेबललैम्प जला लें!’ सुधा ने मुझ से कहा।
मैंने सिरहाने फिक्स टेबल-लैम्प जला कर ट्यूब लाइट बंद कर दी।
अब स्थिति यूं थी कि मेरे सर के ऊपर थोड़ा बाएं तरफ टेबल-लैम्प जल रहा था और प्रिया मेरे दाईं तरफ क़दरतन अंधेरे में थी और मेरे दाईं ओर से, मतलब सुधा की ओर से प्रिया को साफ़ साफ़ देख पाना मुश्किल था क्योंकि बीच में मैं था और प्रिया मेरी परछाई में थी।बीस-पच्चीस मिनट बिना किसी हरकत के बीते। वैसे तो मेरी नज़र नॉवेल के पन्नों पर थी लेकिन दिमाग प्रिया की ओर था।कनखियों से प्रिया की ओर देखा तो पाया कि प्रिया बाईं करवट लेटी हुई मेरी ओर ही देख रही थी।
फिर प्रिया ने आँखों ही आँखों में मुझे लाइट बंद करने का इशारा किया लेकिन मैंने उसे अभी रुक जाने का इशारा किया। जबाब में प्रिया ने मुझे ठेंगा दिखा कर मुंह बिचकाया, ऊपर चादर ले कर उलटी तरफ करवट ली और मेरी तरफ पीठ कर के लेट गई।
मुझे हंसी आ गई और मैंने हाथ बढ़ा कर प्रिया का कंधा छूआ तो उसने मेरा हाथ झटक दिया। मैंने दोबारा वही हाथ उस की कमर पर रखा तो प्रिया ने दुबारा मेरा हाथ अपनी कमर से झटक दिया।लड़की सचमुच रूठ गई थी।
अब के मैंने अपना हाथ हौले से प्रिया के ऊपर वाले नितम्ब पर रख दिया, इस बार प्रिया ने मेरा हाथ नहीं झटका। मैं धीरे-धीरे कोमलता से प्रिया का पूरा नितम्ब सहलाने लगा।
अचानक मुझे महसूस हुआ कि आज प्रिया ने लोअर के नीचे पैंटी नहीं पहन रखी थी। वही हाथ प्रिया की पीठ पर फिराने से पता चला कि ब्रा भी नदारद थी। इन सब का सामूहिक मतलब तो ये था कि मेरी प्रेयसी अभिसार के लिए आज पूरी तरह से तैयार थी।ऐसा सोचते ही मेरा लिंग अपनी पूरी भयंकरता के साथ मेरे पजामे में फुंफ़कारने लगा।
अपना वही हाथ प्रिया के कंधे तक ला कर मैंने प्रिया का कंधा हलके से अपनी ओर खींचा तो प्रिया सीधी हो कर लेट गई और आँख के इशारे से मुझे टेबल-लैम्प बुझाने को कहा।
मैंने पहले सुधा की ओर घूम कर देखा, अपना चेहरा परली तरफ घुमा कर हल्क़े से कंबल में चित लेटी सुधा गहरी निद्रा में थी। मैंने हाथ बढ़ा कर टेबल लैम्प बंद किया और अंधेरा होते ही झुक कर प्रिया के होंठों पर होंठ रख दिए।प्रिया ने फ़ौरन अपनी बाजुएं मेरे गले में डाल दी और बड़ी शिद्दत से मेरे होंठ चूसने लगी।
थोड़ी देर बाद मैं सीधा हुआ और फ़ौरन दोबारा प्रिया की ओर झुक कर मैंने प्रिया के माथे पर, आँखों पर, गालों पर, नाक पर, गर्दन पर, गर्दन के नीचे, सैंकड़ों चुम्बन जड़ दिए।प्रिया के दाएं कान की लौ चुभलाते समय मैं प्रिया के मुंह से, आनंद के मारे निकलने वाली ‘सी…सी… सीई… सीई… सीई… ई…ई…ई’ की सिसकारियाँ साफ़ साफ़ सुन रहा था।

मैंने प्रिया के नाईट सूट के ऊपर के दो बटन खोल दिए और अपना हाथ अंदर सरकाया। रुई के समान नरम और कोमल दो गोलों ने जिन के सिरों पर अलग अलग दो निप्पलों के ताज़ सजे थे, मेरे हाथ की उँगलियों का खड़े होकर स्वागत किया।क्या भावनात्मक क्षण थे!मेरा दिल करे कि दोनों कबूतरों को अपने सीने से लगा कर चुम्बनों से भर दूं, निप्पलों को इतना चूसूं… इतना चूसूं कि प्रिया के मुंह से आहें निकल जाएँ।यूं तो प्रिया के मुंह से आहें तो मेरे उसके उरोजों को छूने से पहले ही निकलना शुरू हो गई थी।

उधर प्रिया का बायां हाथ मेरे पाजामे के ऊपर से ही मेरा लिंग ढूंढ रहा था। प्रिया ने मेरे पजामे का कपड़ा खींच कर मुझे मेरे लिंग को पजामे की कैद से छुड़ाने का इशारा किया, मैंने तत्क्षण अपना पजामा अपनी जाँघों तक नीचे खींच लिया।

प्रिया ने बेसब्री से मेरे तपते, कड़े-खड़े लिंग को अपने हाथ में लिया और उसके शिश्नमुण्ड पर अपनी उंगलियां फेरने लगी।मेरे लिंग से उत्तेजनावश बहुत प्री-कम निकल रहा था और उससे प्रिया का सारा हाथ सन गया।

अचानक प्रिया ने वही हाथ अपने मुंह की ओर किया और अपने हाथ की मेरे प्री-कम से सनी उंगलियां अपने मुंह में डाल कर चूसने लगी।

मैंने तभी प्रिया के नाईट सूट के बाकी बटन भी खोल दिए और उसकी इनर उठा कर दोनों उरोज़ नग्न कर के अपनी जीभ से यहां-वहां चाटने लगा।इससे प्रिया बिस्तर पर मछली की तरह तड़फने लगी, प्रिया जोर जोर से मेरा लिंग हिला दबा रही थी और मैं प्रिया के उरोजों का, निप्पलों का स्वाद चेक कर रहा था।

प्रिया पर झुके झुके मैंने अपना बायाँ हाथ प्रिया के पेट की ओर बढ़ाया, नाभि पर एक-आध मिनट हाथ की उंगलियां गोल गोल घुमाने के बाद अपना हाथ नीचे की ओर बढ़ा कर हौले से प्रिया के नाईट सूट का नाड़ा खोल दिया।सरप्राइज ! आज प्रिया ने मुझे ऐसा करने से नहीं रोका।

मैंने जैसे ही अपना हाथ और नीचे करके प्रिया की पेंटी विहीन योनि पर रखा, एक और आश्चर्य मेरा इंतज़ार कर रहा था, आज प्रिया की योनि एकदम साफ़-सुथरी और चिकनी थी, योनि पर बालों का दूर दूर तक कोई निशान नहीं था, लगता था कि प्रिया ने शाम को ही योनि के बाल साफ़ किये थे।छोटी सी योनि ज्यादा से ज्यादा साढ़े चार से पांच इन्च की जिस पर ढाई इंच से तीन इंच की दरार थी, दरार के ऊपर वाले सिरे पर छोटे मटर के साइज़ का भगनासा और प्रिया की योनि रस से इतनी सराबोर कि दरार में से रस बह-बह जांघों की अंदर वाली साइडों को भिगो रहा था।

मैंने अपने हाथ की बीच वाली उंगली दरार पर ऊपर से नीचे और फिर नीचे से ऊपर फेरनी शुरू की, प्रिया के शरीर में रह रह कर काम तरंगें उठ रही थी जो मैं स्पष्टत: महसूस कर रहा था।

इधर प्रिया मेरे लिंग का भुरता बनाने पर तुली हुई थी, जोर जोर से लिंग दबा रही थी, चुटकियां काट रही थी और लिंग के शिश्नमुण्ड को अपनी उँगलियों में दबा दबा कर रस निकालने की कोशिश कर रही थी और बदले में मैं प्रिया के दोनों उरोज़ चूम रहा था, यहाँ-वहाँ चाट रहा था, निप्पल्स चूस रहा था।

निःसंदेह, हम दोनों जन्नत में थे।

प्रिया की योनि पर अपनी उंगलियां चलाते-चलाते मैंने अपने हाथ की बीच वाली उ।गली दरार में घुसा दी और अंगूठे और पहली उ।बगली से प्रिय का भगनासा हल्का हल्का मींजने लगा।इस पर प्रिया ने उत्तेज़नावश अपनी दोनों टाँगें और चौड़ी कर दी ताकि मेरी बीच वाली उंगली थोड़ी और योनि में प्रवेश पा सके।

मुझे पता था कि प्रिया पूर्णतः कँवारी थी और मेरे पास ज्यादा टाइम नहीं था, बस इक वही रात थी और जिंदगी में दोबारा ऐसी रात आनी मुश्किल थी। मैंने प्रिया की योनि में धँसी अपनी उंगली को योनि के अंदर ही गोल गोल घुमाना शुरू कर दिया।

इस का नतीजा फ़ौरन सामने आया, प्रिया बार बार रिदम में अपने नितम्ब बिस्तर से ऐसे ऊपर उठाने लगी जैसे चाहती हो कि मेरी पूरी उंगली उसकी योनि के अंदर चली जाए।

प्रिया की योनि से बेशुमार रस बह रहा था। मेरे लिंग पर उस की पकड़ और मज़बूत हो गई थी। मैं अपनी उंगली को हर गोल घेरे के बाद थोड़ा और अंदर की ओर धँसा देता था।

धीरे धीरे गोल गोल घूमती मेरी करीब पूरी उंगली प्रिया की योनि में उतर गई।अब मैंने अपनी उंगली को बाहर निकाला और बीच वाली और तर्जनी उंगली को भी योनि में गोल गोल घुमाते घुमाते डालना शुरू कर दिया।

रस से सरोबार प्रिया की योनि में मेरी दोनों उंगलियां प्रविष्ट हो गई।अब ठीक था, अपनी प्रेयसी को प्रेम-जीवन के और इस सृष्टि के एक अनुपम और गृहतम रहस्य से परिचित करवाने कासमय आ गया था।

मैंने टाइम देखा, सवा बारह बज रहे थे, मतलब कि नींद की गोलियों का जादू पूरी तरह सुधा पर चल चुका था और अब मेरे लिए ‘वन्स इन आ लाइफ टाइम’ जैसा मौका था।मैं बिस्तर से उठ खड़ा हुआ और पहले अपना पजामा संभाला। परली तरफ जाकर, इससे पहले प्रिया कुछ समझ पाती, प्रिया को अपनी गोद में उठा कर और अपने से लिपटा कर बाहर ड्राइंग रूम में आ गया।
ड्राइंग रूम में सड़क से थोड़ी सी स्ट्रीट लाइट आ रही थी और वहाँ बैडरूम के जैसा घुप्प अन्धेरा नहीं था।नीम अँधेरे में प्रिया मेरी बाहों में छटपटा रही थी- मैं नहीं… मैं नहीं… मौसी उठ जायेगी… मैं बदनाम हो जाऊँगी, आप मुझे कहीं का नहीं छोड़ोगे!ऐसे ऊटपटाँग बोल रही थी।
बाहर आते ही मैंने अपने बैडरूम का दरवाज़ा और बच्चों के कमरे का दरवाज़ा बाहर से लॉक किया और प्रिया को बताया कि मौसी नहीं उठेंगी क्योंकि मौसी आज नींद में नहीं नशे में है।फिर मैंने उसको नींद की गोलियों वाली बात बताई तो प्रिया आश्वस्त हुई।

मैंने प्रिया को बाहों में लेकर उसके तपते होठों पर होंठ रख दिए। अब प्रिया भी दुगने जोशो-खरोश से मेरा साथ देने लगी। मैं प्रिया का निचला होंठ चूस रहा था और प्रिया मेरा ऊपर वाला होंठ चूस रही थी।कभी मैं प्रिया की जुबान अपने मुंह में पा कर चूसता और कभी मेरी जीभ प्रिया के मुंह के अंदर प्रिय के दांत गिनती।

मेरे दोनों हाथ प्रिया के जिस्म की चोटियों और घाटियों का जायज़ा ले रहे थे, प्रिया का एक हाथ मेरे लिंग के साथ अठखेलियां कर रहा था और दूसरा हाथ मेरी गर्दन के साथ लिपटा था और प्रिया खुद मेरे साथ लिपटी हुई पूरी हवा में झूल रही थी।

ऐसे ही प्रिया को अपने साथ लिपटाये लिपटाये चलते हुये मैंने ड्राइंग रूम में बिछे दीवान के पास उस को खड़ा कर दिया और खुद प्रिया का नाईट सूट उतारने लगा।प्रिया ने रस्मी सा प्रतिरोध किया तो सही पर मैं माना ही नहीं… पलों में मैंने प्रिया के नाईट सूट के साथ साथ नीचे पहनी इनर भी उतार दी और अगले ही पल मैंने अपने कपड़ों को भी तिलांजलि दे दी और प्रिया की ओर मुड़ा।

वस्त्रविहीन खड़ी प्रिया कभी अपनी नग्नता छुपाने की, कभी दिखाने की कोशिश करती, कोई खजुराहो का दिलकश मुज्जस्मा लग रही थी। प्रिया के अनावृत दो उरोज़ और उन पर तन कर खड़े दो निप्पल जैसे पूरे संसार को चुनौती दे रहे थे कि ‘है कोई… जो हमें झुका सके?’



मेरा मन भावनाओं से भर आया, मैंने प्रिया को जोर से अपने आलिंगन में कस लिया और बदले में प्रिया ने दुगने जोर से मुझे अपने आलिंगन में कस लिया।प्रिया के दोनों उरोज़ मेरे सीने में धँसे हुए से थे। मैं प्रिया के दिल की धड़कनें साफ़ साफ़ अपने सीने में धड़कती महसूस कर रहा था। वक़्त का पहिया चलते-चलते अचानक थम सा गया था, उस वक़्त मैं… सिर्फ मैं था, ना कोई पति… ना पिता, सिर्फ मैं!

मेरी दोनों बाजुयें सख़्ती से प्रिया को लपेटे हुए प्रिया की पीठ पर जमी थीं। मैं अपना एक हाथ प्रिया की पीठ पर ऊपर नीचे फिरा रहा था कंधों से लेकर नितंबों के नीचे तक!कभी कभी मेरी उंगलियां नितंबों की दरार के साथ साथ नीचे… गहरे नीचे उतर जाती, बिल्कुल योनि-द्वार तक!

प्रिया की योनि से कामरस का अविरल प्रवाह जारी था जिससे मेरा हाथ सना जा रहा था लेकिन उस अलौकिक आनन्द को पाते रहने में मुझे प्रिया की योनि-द्वार तक अपने हाथों की गर्दिश कयामत के दिन तक मंज़ूर थी।

थोड़ी देर बाद मैंने बहुत प्यार से प्रिया को आलिंगन में लिए लिए, दीवान पर लेटा दिया और प्रिया के निप्पलों को अपने मुंह में लेकर कर खुद प्रिया के ऊपर झुक सा गया, उसके मुंह से सिसकारियां अपने चरम पर थी।

अचानक प्रिया ने अपना एक हाथ नीचे कर के मेरा लिंग अपने हाथ थाम लिया और जोर जोर से अपनी ओर खींचने लगी।

आज़माइश की घड़ी पास आती जा रही थी, बतौर प्रेमी, मेरे कौशल का इम्तिहान बहुत सख़्त था, मुझे ना सिर्फ बिना कोई हल्ला किये एक सफल अभिसार करना था, बल्कि अपनी कँवारी प्रेमिका को बिना कोई ठेस लगाए अपने प्यार का एहसास भी करवाना था।बगल वाले कमरे में मेरी पत्नी सो रही थी और किसी किस्म का हल्ला-गुल्ला उसकी नींद उचाट कर सकता था।

काम मुश्किल था… पर मुझे करना ही था… हर हाल में करना था और अभी करना था।

मैंने प्रिया को जरा सा सीधा किया और घुटनों के बल बैठ कर प्रिया की दोनों टांगों के बीच में आ गया, अपना लिंग मैंने अपने दाएं हाथ में लेकर प्रिया की योनि की दरार पर रख कर थोड़ा अंदर की ओर दबाते हुए ऊपर नीचे फिराना शुरू कर दिया। प्रिया के मुंह से आहें, कराहें क्रमशः तेज़ और ऊँची होती जा रही थी और उसके शरीर में रह रह कर उत्तेजना की लहरें उठ रही थी।

जैसे ही मेरे लिंग का शिश्नमुंड प्रिया की योनि की दरार के ऊपर भगनासा को दबाता, प्रिया के शरीर में मदन-तरंग उठती जिसका कम्पन मैं स्पष्टत: महसूस कर रहा था।प्रिया की योनि से कामरस अविरल बह रहा था, प्रिया रह-रह कर मुझे अपने ऊपर खींच रही थी जिससे यह बात साफ़ थी कि गर्म लोहे पर चोट करने का वक़्त आ गया था पर मैं कोई रिस्क नहीं ले सकता था।



अचानक मेरे लिंग का शिश्नमुंड प्रिया की योनि के मध्य भाग से जरा सा नीचे जैसे किसी नीची सी जगह में अटक गया और तभी प्रिया के शरीर में भी जोर से इक झुरझुरी सी उठी, जन्नत का मेहमान जन्नत की दहलीज़ पर ख़डा था, मैंने अपना लिंग प्रिया की योनि में वहीं टिका छोड़ दिया और ख़ुद प्रिया के ऊपर सीधा लेट गया।
मैंने प्रिया का निचला होंठ अपने होंठों में लिया और हौले हौले उस को चुभलाने लगा। प्रिया ने प्रतिक्रिया स्वरूप अपनी दोनों टांगें हवा में उठाईं और मेरी क़मर पर कैंची सी मार कर अपने पैरों से मेरी क़मर नीचे की ओर दबाने लगी।अभी मेरा शिश्नमुंड भी पूरा प्रिया की योनि के अंदर नहीं गया था और लड़की मेरे लिंग को और अपनी योनि के अंदर लेने को उतावली हो रही थी।
मैंने अपने लिंग पर हल्का सा दबाव बढ़ाया, अब मेरे लिंग का शिश्नमुंड पूरा प्रिया की योनि के अंदर था.

‘आ… ई…ई…ई… ई…ई…ईईईई!!!’ प्रिया के मुंह से आनन्द स्वरूप निकल रही सीत्कारों में पीड़ा का जरा सा समावेश हो गया. मुझे इस का पहले से ही अंदाज़ा था, मैंने फ़ौरन अपने लिंग पर दबाब डालना बंद कर दिया और यहीं से शिश्नमुंड वापिस खींच कर हौले से प्रिया की योनि में वापिस यही तक दोबारा ले जा कर फिर वापिस खींच लिया.

ऐसा मैंने तीन चार बार किया, प्रिया पर इसकी तत्काल प्रतिक्रिया हुई, पांचवी बार जैसे ही मैंने अपना लिंग प्रिया की योनि से बाहर निकाला, प्रिया ने मेरी पीठ पर अपनी टांगों की कैंची तत्काल पूरी ताक़त से अपनी ओर खींची, परिणाम स्वरूप मैं भी प्रिया की ओर जोर से खिंचा और मेरा लिंग भी प्रिया की योनि में ढाई से तीन इंच और गहरा चला गया.

‘सी…ई…ई…ई… आह…!’ प्रिया के मुख से आनन्द और पीड़ा भरी मिली-जुली सिस्कारी निकल गई..

प्रिया की योनि एकदम कसी हुई और अंदर से जैसे धधक रही थी, मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरा लिंग जैसे किसी नर्म गर्म संडासी में फंसा हुआ हो. ऐसा लगता था कि योनि की उष्मा शनैः शनैः मेरे लिंग को पिंघला कर ही मानेगी तो विरोध स्वरूप मेरा लिंग भी बृहत्तर से बृहत्तर आकार लेने लगा.

योनि और लिंग के स्राव मिल कर खूब चिकनाहट पैदा कर रहे थे और योनि में लिंग का आवागमन थोड़ा सा सुगम होता जा रहा था लेकिन अभी मैं अपने लिंग को प्रिया की योनि के और ज्यादा अंदर प्रवेश करवाने से परहेज़ कर रहा था, आराम-आराम से अपने लिंग को प्रिया की योनि से बाहर खींच कर, फिर जहां था वहीं तक दोबारा ठेल रहा था.

अब प्रिया भी इस रिदम का लुत्फ़ अपने नितम्ब उठा-उठा कर ले रही थी, ऐसे करते करते दस मिनट हो चुके थे और प्रिया आँखें बंद कर के अभिसार का सम्पूर्ण आनन्द ले रही थी, लेकिन अभी कहानी आधी ही हुई थी, समय आ गया था कि इस अभिसार को सम्पूर्णता की ओर अग्रसर किया जाए.

प्रेमपूर्वक किये जा रहे अभिसार का सबसे मुश्किल क्षण आने को था, यह वो क्षण होता है जब एक पुरुष, पूर्ण-पुरुष की उपाधि पाता है और एक स्त्री, सुहागिन की पदवी पाती है. इसी क्षण से आगे चल कर स्त्री, एक जननी बनती है, एक माँ बनती है और एक नई सृष्टि रचती है.

इस पल में पुरुष अपनी प्रेयसी के साथ प्यार के साथ साथ थोड़ी सी क्रूरता से पेश आता है, वही क्रूरता दिखाने का पल आ पहुंचा था. मैंने प्रिया के बाएं उरोज़ के निप्पल को मुंह में लिया और उसे चुभलाने लगा, प्रिया के गर्म शरीर का उत्ताप फिर से बढ़ने लगा और उन्माद में प्रिया बिस्तर पर जल बिन मछली की तरह तड़पने लगी.

मैंने प्रिया का सर अपने दोनों हाथों से दाएं-बाएं से दबा कर, प्रिया के उरोज़ के निप्पल से मुंह उठाया और प्रिया के दोनों होठों को अपने होठों में दबा लिया और लगा चूसने!

अगले ही पल मैंने अपना लिंग प्रिया की योनि से बाहर निकाल कर पूरी शक्ति से वापिस प्रिया की योनि में उतार दिया. अगर मैंने प्रिया के दोनों होंठ अपने होंठों से बंद नहीं कर दिए होते तो यकीनन प्रिया की चीख सड़क के परले सिरे तक सुनाई दी होती.

तत्काल प्रिया के दोनों हाथों ने दीवान की चादर पकड़ कर गुच्छा-मुच्छा कर डाली और अपने पैरों से मुझे पर धकेलने की असफल कोशिश करने लगी. प्रिया की आँखों से आंसुओं की धारें फ़ूट पड़ी पर अब तो जो होना था सो हो चुका था.अब प्रिया कुंवारी नहीं रही थी.

मैं प्रिया के ऊपर औंधा पड़ा धीरे धीरे प्रिया के सर को सहला रहा था, उसके आंसू अपने होंठों से बीन रहा था.धीरे-धीरे प्रिया का रोना कम होता गया और मैंने हौले हौले अपनी क़मर को हरकत देना प्रारंभ किया, चार-छह धक्कों के बाद, अचानक प्रिया के शरीर में वही जानी पहचानी कम्पन की लहर उठी.

दो पल बाद ही प्रिया का शरीर इस रिदम का जवाब देने लगा. लिंग को प्रिया की योनि से बाहर खींचने की क्रिया के साथ साथ ही प्रिया अपने नितम्ब नीचे को खींच लेती और जैसे ही लिंग योनि में दोबारा प्रवेश पाने को होता तो प्रिया शक्ति के साथ अपने नितंब ऊपर को करती, परिणाम स्वरूप एक ठप्प की आवाज के साथ मेरा लिंग प्रिया की योनि के अंतिम छोर तक जाता.

प्रिया के मुख से ‘आह…आई… ओह… मर गई… हा… उफ़… उम्म्ह… अहह… हय… याह… हाय… सी… ई…ई’ की आधी-अधूरी सी मज़े वाली सिसकारियां अविरल निकल रही थी और मैं बेसाख्ता प्रिया को यहाँ-वहाँ चूम रहा था, चाट रहा था माथे पर, आँखों पर, गालों पर, नाक पर, गर्दन पर, गर्दन के नीचे, कंधो पर, उरोजों पर, निप्पलों पर, उरोजों के बीच की जगह पर!

हमारा अभिसार अपनी अधिकतम गति पर था, अचानक प्रिया का शरीर अकड़ने लगा, प्रिया ने अपने दांत मेरे बाएं कंधे पर गड़ा दिए, मेरी पीठ पर प्रिया के तीखे नाख़ून पच्चीकारी करने की कोशिश करने लगे.

ये लक्षण मेरे जाने पहचाने थे, मैं तत्काल अपनी कोहनियों के बल 

हुआ और प्रिया के दोनों हाथ अपने हाथों में जकड़ कर बिस्तर पर लगा दिए और अपनी कमर तीव्रतम गति से चलाने लगा, साथ साथ मैं कभी प्रिया के होठों पर चुम्बन जड़ रहा था, कभी उसके निप्पलों पर, कभी उसकी आँखों पर!

अचानक प्रिया का सारा शरीर कांपने लगा और प्रिया की योनि में जैसे विस्फोट हुआ और प्रिया की योनि से जैसे स्राव का झरना फूट पड़ा. प्रिया जिंदगी में पहली बार सम्भोगरत हो कर स्खलित हो रही थी और प्रिया की योनि की मांसपेशियों ने संकुचित होकर मेरे लिंग को जैसे निचोड़ना शुरू कर दिया.

प्रतिक्रिया स्वरूप मेरा लिंग और ज्यादा फूलना शुरू हो गया, इसका नतीजा यह निकला कि मेरे लिंग के लिए संकरी योनि में रास्ता और भी ज्यादा संकरा हो गया और मेरे लिंग पर प्रिया की योनि की अंदरूनी दीवारों की रगड़ पहले से भी ज्यादा लगने लगी.

करीब एक मिनिट बाद ही जैसे ही मैंने पूरी शक्ति से अपना लिंग प्रिया की योनि में अंदर तक डाला मेरे अंडकोषों में एक जबरदस्त तनाव पैदा हुआ और मेरे लिंग ने पूरी ताक़त से वीर्य की पिचकारी प्रिया की योनि के आखिरी सिरे पर मारी फिर एक और.. एक और… एक और… एक और… मेरे गर्म वीर्य की बौछार!अपनी योनि में महसूस कर के अब तक निढाल और करीब-करीब बेहोश पड़ी प्रिया जैसे चौंक कर उठी और उसने मुझसे अपने हाथ छुड़ा कर जोर से मुझे आलिंगन में ले लिया और मुझे यहाँ-वहाँ चूमने लगी.

एक भँवरे ने एक कली को फूल बना दिया था, एक लड़की, एक औरत बन चुकी थी, 




एक सफल अभिसार का समापन हो चुका था.
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हसीन गुनाह - by Gpoint - 04-05-2021, 07:29 AM
RE: हसीन गुनाह - by Gpoint - 04-05-2021, 07:33 AM
RE: हसीन गुनाह - by Gpoint - 04-05-2021, 07:38 AM
RE: हसीन गुनाह - by Gpoint - 04-05-2021, 07:45 AM
RE: हसीन गुनाह - by Gpoint - 04-05-2021, 07:51 AM
RE: हसीन गुनाह - by Gpoint - 04-05-2021, 08:03 AM
RE: हसीन गुनाह - by Rahulk11 - 25-06-2021, 12:53 AM
RE: हसीन गुनाह - by raj500265 - 03-07-2022, 04:35 PM



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