03-05-2021, 01:28 PM
आ गया आने वाला
तभी उनकी दरवाजा खटखटाने की आवाज हुयी ,
कम्मो ने ही दरवाजा खोला।
और उन के घुसते ही कम्मो ने उन्हें दबोच लिया , साथ में गालियों की बौछार ,
" स्साले भोंसड़ी वाले , बनारस अपनी बहिनिया क सौदा करने गए थे , दालमंडी ( बनारस की रेड लाइट एरिया ) में कोठे पे बैठाओगे ,... अरे पहले उसकी नथ उसकी खुद उतार दो , फिर बैठाओ ,.... की भौजी से डर के भाग गए थे , आज घर में भौजी महतारी नहीं है तो कम्मो भौजी आज बिना गाँड़ मारे छोड़ेंगी नहीं , स्साले , बहनचोद , गाँड़ तो चिकने तेरी मारी ही जायेगी , ससुराल में सलहज तो मारेंगे ही , लौण्डेबाज भी बहुत होंगे वहां। "
गालियों के साथ साथ जिस तरह से पीछे से उनकी पीठ पर वो चोली फाडू अपने बड़े बड़े जोबन अपने देवर की पीठ पर रगड़ रही थीं , किसी की भी हालत खराब हो जाती , ये बेचारे तो ,...
पर बच के निकलना कोई इनसे सीखे ,
कम्मो की ऊँगली पर चिकना चमकता रस उन्हें दिखा और उन्होंने बात बदलने की कोशिश की ,
" काहो भौजी , देवर से छुपा छुपा के कौन मिठाई खा रही थी , बहुत जबरदस्त रस लगा है। "
" अरे ख़ास रसगुल्ला हो , ला तुंहु चाटा "
कम्मो ने बोला
और ऊँगली सीधे उनके मुंह में ,
मुश्किल से मैं हंसी दबा पा रही थी , उनकी ममेरी बहन की चूत की चासनी उनके मुंह में , और वो मजे से चाट रहे थे ,
और कम्मो उनकी भौजाई चटवा रही थी , ननद की बुर की चासनी उसके भइया से चटवाये , इससे ज्यादा मजे की बात भाभी के लिए क्या हो सकती थी ,
पर कम्मो इतने पर रुकने वाली नहीं थी ,
" हे तुमहू क्या याद करोगे आज इस रसगुल्ले का पूरा स्वाद चखा दूंगी , ... "और फर्श पर पड़ी गुड्डी की चड्ढी उठा के बोली ,
" चला तब तक रसगुल्ला के डब्बे से चलाय ला , ... " और उनकी ममेरी बहन की चड्ढी सीधे उनके मुंह पे।
मान गयी मैं कम्मो को , उसने बोला था की मैं उसके ऊपर छोड़ दूँ , और सच वो भी न बस पन्दरह बीस मिनट में
कुछ तो उसकी बातें और उस भी बढ़कर उसकी ऊँगली और बड़े बड़े गदराये कड़े कड़े जोबन का जादू ,
अपनी उँगलियों से उसने इनकी शर्ट के बटन खोल कर शर्ट उसी फर्श पर जहाँ उनकी बहन की ब्रा छितरी पड़ी थी , कम्मो की बदमाश उँगलियाँ अब उनके निप्स कभी सहलातीं , कभी नोच लेतीं , एक हाथ पैंट के अंदर घुसा पिछवाड़े को सहलाती , दरार में ऊँगली से रगड़ती ,
बात उसने ये बनायी की उसकी एक बाजी लगी है , एक स्साली से , ( आखिर गुड्डी पर हमारे भाई चढ़ते तो स्साली ही तो होगी वो ) और कम्मो ने जो रूप बताया , किसी ने गुड्डी को एक बार भी देखा होता तो समझ जाता की उसी की बात हो रही है , खूब गोरी , छोटे छोटे लेकिन खूब कड़े कड़े जोबन , एकदम कसी कच्ची कली , अभी तक किसी ने छुआ भी नहीं ,
कम्मो ने तरह तरह की कसमें दिलवाई , उनसे दुहरावायी ,...
मैंने भी कम्मो की बात में हाँ में हाँ मिलाई , सच में एकदम कमसिन , मेरी सहेली ( गुड्डी मेरी सहेली भी तो थी , लेकिन मेरी सहेली के होने के नाते उनकी साली का भी रिश्ता बन गया )
तबतक उनकी पैंट भी उतर गयी , कम्मो ने मुझे इशारा किया और एक ग्लास डबल भांग वाली ठंडाई जो उनकी बहन को पिलाई गयी थी मैंने उन्हें भी ,
और तबतक कम्मो ने उनका तनता मूसल सम्हाल लिया , होली में तो कितनी बार कम्मो भौजी ने अपने देवर के मूसल को खोल के रंग रगड़ा था , सुपाड़ा सहलाया था ,
और कम्मो की उंगलिया , कम्मो की बातें , कच्ची उम्र वाली साली की बात ,
एक झटके में कम्मो ने सुपाड़ा खोल दिया।
अब वो पूरे एक बित्ते का अपने असली रूप में ,
तभी उनकी दरवाजा खटखटाने की आवाज हुयी ,
कम्मो ने ही दरवाजा खोला।
और उन के घुसते ही कम्मो ने उन्हें दबोच लिया , साथ में गालियों की बौछार ,
" स्साले भोंसड़ी वाले , बनारस अपनी बहिनिया क सौदा करने गए थे , दालमंडी ( बनारस की रेड लाइट एरिया ) में कोठे पे बैठाओगे ,... अरे पहले उसकी नथ उसकी खुद उतार दो , फिर बैठाओ ,.... की भौजी से डर के भाग गए थे , आज घर में भौजी महतारी नहीं है तो कम्मो भौजी आज बिना गाँड़ मारे छोड़ेंगी नहीं , स्साले , बहनचोद , गाँड़ तो चिकने तेरी मारी ही जायेगी , ससुराल में सलहज तो मारेंगे ही , लौण्डेबाज भी बहुत होंगे वहां। "
गालियों के साथ साथ जिस तरह से पीछे से उनकी पीठ पर वो चोली फाडू अपने बड़े बड़े जोबन अपने देवर की पीठ पर रगड़ रही थीं , किसी की भी हालत खराब हो जाती , ये बेचारे तो ,...
पर बच के निकलना कोई इनसे सीखे ,
कम्मो की ऊँगली पर चिकना चमकता रस उन्हें दिखा और उन्होंने बात बदलने की कोशिश की ,
" काहो भौजी , देवर से छुपा छुपा के कौन मिठाई खा रही थी , बहुत जबरदस्त रस लगा है। "
" अरे ख़ास रसगुल्ला हो , ला तुंहु चाटा "
कम्मो ने बोला
और ऊँगली सीधे उनके मुंह में ,
मुश्किल से मैं हंसी दबा पा रही थी , उनकी ममेरी बहन की चूत की चासनी उनके मुंह में , और वो मजे से चाट रहे थे ,
और कम्मो उनकी भौजाई चटवा रही थी , ननद की बुर की चासनी उसके भइया से चटवाये , इससे ज्यादा मजे की बात भाभी के लिए क्या हो सकती थी ,
पर कम्मो इतने पर रुकने वाली नहीं थी ,
" हे तुमहू क्या याद करोगे आज इस रसगुल्ले का पूरा स्वाद चखा दूंगी , ... "और फर्श पर पड़ी गुड्डी की चड्ढी उठा के बोली ,
" चला तब तक रसगुल्ला के डब्बे से चलाय ला , ... " और उनकी ममेरी बहन की चड्ढी सीधे उनके मुंह पे।
मान गयी मैं कम्मो को , उसने बोला था की मैं उसके ऊपर छोड़ दूँ , और सच वो भी न बस पन्दरह बीस मिनट में
कुछ तो उसकी बातें और उस भी बढ़कर उसकी ऊँगली और बड़े बड़े गदराये कड़े कड़े जोबन का जादू ,
अपनी उँगलियों से उसने इनकी शर्ट के बटन खोल कर शर्ट उसी फर्श पर जहाँ उनकी बहन की ब्रा छितरी पड़ी थी , कम्मो की बदमाश उँगलियाँ अब उनके निप्स कभी सहलातीं , कभी नोच लेतीं , एक हाथ पैंट के अंदर घुसा पिछवाड़े को सहलाती , दरार में ऊँगली से रगड़ती ,
बात उसने ये बनायी की उसकी एक बाजी लगी है , एक स्साली से , ( आखिर गुड्डी पर हमारे भाई चढ़ते तो स्साली ही तो होगी वो ) और कम्मो ने जो रूप बताया , किसी ने गुड्डी को एक बार भी देखा होता तो समझ जाता की उसी की बात हो रही है , खूब गोरी , छोटे छोटे लेकिन खूब कड़े कड़े जोबन , एकदम कसी कच्ची कली , अभी तक किसी ने छुआ भी नहीं ,
कम्मो ने तरह तरह की कसमें दिलवाई , उनसे दुहरावायी ,...
मैंने भी कम्मो की बात में हाँ में हाँ मिलाई , सच में एकदम कमसिन , मेरी सहेली ( गुड्डी मेरी सहेली भी तो थी , लेकिन मेरी सहेली के होने के नाते उनकी साली का भी रिश्ता बन गया )
तबतक उनकी पैंट भी उतर गयी , कम्मो ने मुझे इशारा किया और एक ग्लास डबल भांग वाली ठंडाई जो उनकी बहन को पिलाई गयी थी मैंने उन्हें भी ,
और तबतक कम्मो ने उनका तनता मूसल सम्हाल लिया , होली में तो कितनी बार कम्मो भौजी ने अपने देवर के मूसल को खोल के रंग रगड़ा था , सुपाड़ा सहलाया था ,
और कम्मो की उंगलिया , कम्मो की बातें , कच्ची उम्र वाली साली की बात ,
एक झटके में कम्मो ने सुपाड़ा खोल दिया।
अब वो पूरे एक बित्ते का अपने असली रूप में ,