02-05-2021, 08:19 PM
कम्मो
मैं सोच रही थी की नीचे पड़ोसन को जल्दी निपटा के ननदिया का रस लेने ऊपर आ जाउंगी , वो उठ के जा भी रही थीं की कम्मो ने उन्हें रोक लिया , किचेन से ही हाँक लगाई "
" अरे रुका चाय ला ला रही हूँ , तनी पापड़ भी छान दूँ ,... "
मेरी कुछ समझ में नहीं आया लेकिन चाय देते समय जब कम्मो ने घडी की ओर इशारा किया तो मैं समझी ,
गुड्डी रानी को जो भांग गुझिया ठंडाई में खिलाई पिलाई गयी थी , कम से कम २०- ३० मिनट तो लगता उसका असर चढ़ने में , इसलिए ,
फिर तो मैं भी , दो बार उन्होंने जाने को कहा लेकिन मैंने रोक दिया और पूरे ४० मिनट बाद ही उन्हें जाने दिया ,
जब मैं पहुंची तो गुड्डी की आँखों में गुलाबी डोरे थे ,
वो आई पैड पर मेरी उनकी ' लीला ' , में कैसे निहुर कर उसके भइया का लील रही थी ,
इसके पहले भी कई बार मैं उसे इनके मूसल की फोटो दिखा चुकी थी , एक बार तो पूरी सफ़ेद मलाई भी इनकी सीधे इनकी पिचकारी से मेरी ननदिया के मुंह में और उस छिनार ने गटक भी लिया था ,
वो खड़ी हो गयी , लेकिन मैं अपने हाथों में रंग छुपा के लायी थी , समझ दार तो वो थी ही , बस झट से उसने अपने गोरे गोरे गालों को छुपा लिया , लेकिन मैंने सिन्दूर की तरह रंग आराम से उसकी मांग मने भर दिया ,
" चल यार न तेरे भइया हैं न मेरे भइया तो दोनों की ओर से मैं कर देती हूँ सिन्दूर दान "
" एकदम और उसके बाद सुहाग रात ,... "
पीछे से कमरे में घुसती हुयी कम्मो बोली , उसके हाथ में रंगो से भरी गुलाल की प्लेट थी।
"पहले भौजी लोगन के साथ सुहागरात मना लो , फिर अपने भइया के साथ " मैंने उसे छेड़ा ,
" एकदम पहले अपने भइया के साथ फिर भौजी लोगन के भइया लोगन के साथ "
कम्मो क्यों मौका छोड़ती।
" अरे समझती क्या हो मेरी ननद को , अपने भइया का भी मन रखेगी , हम लोगन के भइया का भी , क्यों , अच्छा ये बता इत्ते चिक्कन चिक्कन गाल , आखिर कोई न कोई तो चूमेगा , रस लेगा, तो तेरे भइया क्यों नहीं ,... अच्छा ये बता तुझे अपने भैया अच्छे लगते हैं की नहीं। "
" एकदम बहुत अच्छे हैं , " तुनक के वो बोली , ... लेकिन उसी समय हलके से एक गाल चूम के मैंने चिढ़ाया ,
" तो फिर उनको दे दो न एक चुम्मी बेचारे बहुत तरसते हैं , इस गाल पर " और ये कहते हुए मैंने एक गाल चूम लिया।
और दूसरे गाल पर कम्मो ने अपनी मोहर लगा दी।
…."और ओकरे बाद यह मालपुवा का मजा हमर भैया लेंगे ". कम्मो ने बात आगे बढ़ाई।
"गालो के बाद तुम्हारे भैया इस रसीले होंठ पर नंबर लगायेंगे , " और अबकी मेरे होंठों ने उसके होंठों को दबोच लिया और साथ में मेरी जीभ उस कच्ची कली के होंठों के अंदर ,... "
और ऊपर से कम्मो और उसे उकसा रही थी , ... " अरे ननद रानी कउनो तो आखिर रस लेगा ही , तो आखिर हमरे देवर में कौन कमी है , उन्ही को दे दो न जोबन का दान , "
भांग का सुरूर उस टीनेजर पर चढ़ रहा था , और भांग में सबसे मजेदार बात ये होती थी की मस्ती चढ़ने के साथ साथ , मन जिधर मुड़ जाता है बस वही मन करने लगता है , मैं मान गयी कम्मो को ,
और अब नंबर था रंग गुलाल का , इस होली में सब की रगड़ाई हुयी थी सिवाय गुड्डी रानी के , मोहल्ले की ननदें , गुड्डी की सहेलिया, मेरे देवर कम्मो ने सबके कपडे उतारे थे तो अब ये क्यों बचती , ...
लेकिन जैसे मैं प्लेट में से गुलाल उठाने के लिए झुकी वो जोर से चीखी , ...
नहीं भाभी कपड़ा खराब हो जाएगा नयी ड्रेस है एक,दम
" तो कपड़ा उतार दो न , सही तो है "
कम्मो को तो और मौका मिल गया चिढ़ाने का , गुड्डी मुझे रोक रही थी , पर कम्मो ने एक झटके में उसके दुप्पट्टे की तरह स्टोल को खींच लिया ,
और जब तक वो समझे , उसके दोनों हाथ कम्मो के हाथ में , पीठ के पीछे और कम्मो ने जबरदस्त गाँठ बाँध दी थी , किसी हालत में छुड़ाने से छूटती नहीं।गुड्डी के जोबन , जबरदस्त , टॉप फाड़ते ,... अब मैं समझी बेचारी ने स्टोल दुपट्टे की तरह क्यों ओढ़ रखा था , होने भंवरों से नए आते उरोजों को छुपाने के लिए ,
मैं सोच रही थी की नीचे पड़ोसन को जल्दी निपटा के ननदिया का रस लेने ऊपर आ जाउंगी , वो उठ के जा भी रही थीं की कम्मो ने उन्हें रोक लिया , किचेन से ही हाँक लगाई "
" अरे रुका चाय ला ला रही हूँ , तनी पापड़ भी छान दूँ ,... "
मेरी कुछ समझ में नहीं आया लेकिन चाय देते समय जब कम्मो ने घडी की ओर इशारा किया तो मैं समझी ,
गुड्डी रानी को जो भांग गुझिया ठंडाई में खिलाई पिलाई गयी थी , कम से कम २०- ३० मिनट तो लगता उसका असर चढ़ने में , इसलिए ,
फिर तो मैं भी , दो बार उन्होंने जाने को कहा लेकिन मैंने रोक दिया और पूरे ४० मिनट बाद ही उन्हें जाने दिया ,
जब मैं पहुंची तो गुड्डी की आँखों में गुलाबी डोरे थे ,
वो आई पैड पर मेरी उनकी ' लीला ' , में कैसे निहुर कर उसके भइया का लील रही थी ,
इसके पहले भी कई बार मैं उसे इनके मूसल की फोटो दिखा चुकी थी , एक बार तो पूरी सफ़ेद मलाई भी इनकी सीधे इनकी पिचकारी से मेरी ननदिया के मुंह में और उस छिनार ने गटक भी लिया था ,
वो खड़ी हो गयी , लेकिन मैं अपने हाथों में रंग छुपा के लायी थी , समझ दार तो वो थी ही , बस झट से उसने अपने गोरे गोरे गालों को छुपा लिया , लेकिन मैंने सिन्दूर की तरह रंग आराम से उसकी मांग मने भर दिया ,
" चल यार न तेरे भइया हैं न मेरे भइया तो दोनों की ओर से मैं कर देती हूँ सिन्दूर दान "
" एकदम और उसके बाद सुहाग रात ,... "
पीछे से कमरे में घुसती हुयी कम्मो बोली , उसके हाथ में रंगो से भरी गुलाल की प्लेट थी।
"पहले भौजी लोगन के साथ सुहागरात मना लो , फिर अपने भइया के साथ " मैंने उसे छेड़ा ,
" एकदम पहले अपने भइया के साथ फिर भौजी लोगन के भइया लोगन के साथ "
कम्मो क्यों मौका छोड़ती।
" अरे समझती क्या हो मेरी ननद को , अपने भइया का भी मन रखेगी , हम लोगन के भइया का भी , क्यों , अच्छा ये बता इत्ते चिक्कन चिक्कन गाल , आखिर कोई न कोई तो चूमेगा , रस लेगा, तो तेरे भइया क्यों नहीं ,... अच्छा ये बता तुझे अपने भैया अच्छे लगते हैं की नहीं। "
" एकदम बहुत अच्छे हैं , " तुनक के वो बोली , ... लेकिन उसी समय हलके से एक गाल चूम के मैंने चिढ़ाया ,
" तो फिर उनको दे दो न एक चुम्मी बेचारे बहुत तरसते हैं , इस गाल पर " और ये कहते हुए मैंने एक गाल चूम लिया।
और दूसरे गाल पर कम्मो ने अपनी मोहर लगा दी।
…."और ओकरे बाद यह मालपुवा का मजा हमर भैया लेंगे ". कम्मो ने बात आगे बढ़ाई।
"गालो के बाद तुम्हारे भैया इस रसीले होंठ पर नंबर लगायेंगे , " और अबकी मेरे होंठों ने उसके होंठों को दबोच लिया और साथ में मेरी जीभ उस कच्ची कली के होंठों के अंदर ,... "
और ऊपर से कम्मो और उसे उकसा रही थी , ... " अरे ननद रानी कउनो तो आखिर रस लेगा ही , तो आखिर हमरे देवर में कौन कमी है , उन्ही को दे दो न जोबन का दान , "
भांग का सुरूर उस टीनेजर पर चढ़ रहा था , और भांग में सबसे मजेदार बात ये होती थी की मस्ती चढ़ने के साथ साथ , मन जिधर मुड़ जाता है बस वही मन करने लगता है , मैं मान गयी कम्मो को ,
और अब नंबर था रंग गुलाल का , इस होली में सब की रगड़ाई हुयी थी सिवाय गुड्डी रानी के , मोहल्ले की ननदें , गुड्डी की सहेलिया, मेरे देवर कम्मो ने सबके कपडे उतारे थे तो अब ये क्यों बचती , ...
लेकिन जैसे मैं प्लेट में से गुलाल उठाने के लिए झुकी वो जोर से चीखी , ...
नहीं भाभी कपड़ा खराब हो जाएगा नयी ड्रेस है एक,दम
" तो कपड़ा उतार दो न , सही तो है "
कम्मो को तो और मौका मिल गया चिढ़ाने का , गुड्डी मुझे रोक रही थी , पर कम्मो ने एक झटके में उसके दुप्पट्टे की तरह स्टोल को खींच लिया ,
और जब तक वो समझे , उसके दोनों हाथ कम्मो के हाथ में , पीठ के पीछे और कम्मो ने जबरदस्त गाँठ बाँध दी थी , किसी हालत में छुड़ाने से छूटती नहीं।गुड्डी के जोबन , जबरदस्त , टॉप फाड़ते ,... अब मैं समझी बेचारी ने स्टोल दुपट्टे की तरह क्यों ओढ़ रखा था , होने भंवरों से नए आते उरोजों को छुपाने के लिए ,