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Romance लला… फिर खेलन आइयो होरी
#22
होली

[Image: Holi-In-wet-Dress-7.jpg]


मैंने उन्हें पकड़ने की कोशिश की लेकिन वो ये जा वो जा।

जबरदस्त होली हुई उस दिन।

जितना मैंने सोचा था उससे कहीं ज्यादा… पहले तो भाभी ने मुझे दो-दो भांग वाली गुझिया खिला के टुन्न कर दिया तो मैं क्यों छोड़ता… मैंने उन्हें डबल डोज वाली ठंडाइ अपनी कसम दिला के पिला दी। जो झिझक भांग से नहीं गई वो भाभी की हरकतों से… अगर मेरा हाथ कहीं ठिठकता भी तो भाभी का हाथ… फिर तो एकदम खुल के और फिर भैया अपने दोस्तों के साथ बाहर चले गये तो फिर तो और…



शुरू में मेरा पलड़ा भारी रहा लेकिन कुछ देर में मोहल्ले की औरतें आ गई, वो भाभी के साथ खेलने के लिये। मैं कमरे में घुस गया।



5-6 औरतें और दो तीन लड़कियां, सबकी नेता थीं दूबे भाभी, स्थूल थोड़ी, खूब गोरी, दीर्घ नितंबा। भाभी भी कम तगड़ी नहीं थी लेकिन एक साथ दो मोहल्ले की भाभियों ने एक हाथ पकड़ा और दो ने दूसरा। शर्मा भाभी जो दूबे भाभी की तरह मुँहफट थी कस के कमर पकड़ ली, और बोलीं- “अरे ज्यादा छटको नहीं देवर जी से तो रोज दिन रात डलवाती हो आज हमसे भी डलवा लो खुल के…”


[Image: Holi-4-52ak-F.jpg]


बेचारी भाभी, अब वो अच्छी तरह पकड़ी गई थीं। दूबे भाभी ने पहले तो गाल लाल किये फिर अपने हाथ में बैंगनी रंग लगा के, गाल से हाथ सरक के सीधे ब्लाउज के भीतर जाने की कोशिश करने लगा। भाभी बहुत छ्टपटायीं लेकिन सारी औरतों ने मिल के उन्हें कस के पकड़ रखा था। आंचल छलक चुका था और झपटा-झपटी में उनके दो हुक भी टूट गये। गोरे उरोजों के ऊपर का हिस्सा अब साफ-साफ दिख रहा था।



भाभी छुड़ाने की कोशिश करतें बोलीं- “अरे नहीं बैगनी रंग नहीं ये बड़ा पक्का…”



उनकी बात काट के दूबे भाभी बोलीं- “अरे मोटे बैंगन घोंटने में कोई सरम नहीं है और… पक्का रंग तो इसीलिये लगा रही हूँ कि रात भर जब मरद कस-कस के रगड़े तेरी ये मस्त…” उनकी आगे की बात औरतों के ठहाके में गूंज गई।



अब उनका एक हाथ पूरा अच्छी तरह घुस गया था। नीचे से शर्मा भाभी ने भी पेट से हाथ सरका के सीधे ऊपर ब्लाउज के अंदर… दूबे भाभी बोलीं- “अरे जरा देखूं तो क्या रखा है इस चोली के अंदर जो सारे मुहल्ले के मर्दों की निगाहें यहीं चिपकी रहती हैं…”


[Image: holi23.jpg]


खूब देर तक वो… तब तक बाकी औरतें जो हाथ पकड़े थीं बोली- “अरे दूबे भाभी, जरा हम लोगों को भी तो की अकेले…”



दूबे भाभी ने हाथ निकाल के बैगनी रंग फिर से लगाते हुए कहा- “हाँ हाँ लो… और जरा मैं नीचे के खजाने का भी तो हाल चाल लूं। वो पहले पेट पे फिर…”



तब तक दो औरतों ने जिन्होंने हाथ थाम रखा था भाभी के ब्लाउज में…



[Image: holi-pakway-blogspot-com18.jpg]


भाभी को थोड़ा मौका मिल गया, वे मुड़ीं तो अब मैं जो सामने का सीन देख रहा था वो बंद हो गया। लेकिन जिस तरह से उनकी सिसकी निकली ये साफ था की दूबे भाभी का हाथ अंदर धंस गया था। पीछे से भी दो औरतों ने अंदर हाथ डाल रखा था। गाल पे लड़कियां कस-कस के रगड़ रही थी। खूब देर तक जम के भाभी की रगड़ाई हुई। और क्या खुल के हरकतें, बातें… देख के मेरा तंबू पाजामे में तन गया।



लेकिन भाभी ने भी छोड़ा नहीं किसी को।


एक-एक को पकड़ के… फिर उन्होंने सबको भांग वाली गुझिया भी खिला दी थी। (दूबे और शर्मा भाभी तो पहले से ही भांग खायी लग रही थीं)। यहां तक की सलिला को भी जो शायद नवें या दसवें में पढ़ रही थी। एक हाथ से उन्होंने पीछे से जाके उसके दोनों हाथों को पकड़ा, वो बेचारी छटपटाती रही लेकिन फिर उन्होंने धीरे-धीरे आराम से उसकी फ्राक के सारे बटन खोले। और पीछे से फ्राक के ऊपर से ही ब्रा के स्ट्रैप पकड़ के खींचा और हल्के से हुक खोल दिया।



वो बेचारी बोली की- “भाभी अभी तो मैं छोटी हूँ…”



तो वो हँसकर बोलीं- “अरे यही तो देखना है मुझे…” और आगे से फ्राक के अंदर हाथ डाल के कस-कस के रगड़ना मसलना।



सारी औरतें हँस-हँसकर मजे ले रही थीं।



भाभी ने दबोच के पूछा- “क्यों दबवाना शुरू कर दिया है क्या? बड़े तो हो रहे हैं…”


[Image: Holi5046a9357a8ab3e8ea216fe0894c3e0f.jpg]


एक ने कहा- “अरे फ्राक के नीचे… जरा…”



तो दूसरी बोली- “और क्या? अरे ननद लगती है तो फिर होली के दिन…”



भाभी ने सलिला के हाथ छोड़ दिये और जब तक वो कुछ समझे उनका दूसरा हाथ फ्राक के अंदर दोनों जांघों के… लेकिन सबसे ज्यादा दुर्गति हुई दूबे भाभी की।

सब औरतों ने मिल के उन्हें आंगन में पटक दिया और गिरे हुए रंगों में खूब घसीटा। शर्मा भाभी ने तो एकदम… उनका साया साड़ी सब उठा दिया और फिर भाभी ने पूरी एक बाल्टी भर के गाढ़ा रंग झपाक से… सीधे वहीं और बोलीं- “क्यों ठंडक मिली?”



[Image: Holi-b48b7141d1992d945f4ea33b628c7df5.jpg]


मैं छुप के सब देख रहा था की…



लेकिन भाभी ने उन्हें चुपके से इशारा कर दिया और फिर तो… सब मिल के।



दूबे भाभी ने अपना ट्रेड मार्क बैगनी रंग मेरे गाल पे लगाते बोला- “बड़ा चिकना मस्त है तेरा देवर…”



तो शर्मा भाभी ने जबर्दस्त कालिख सा पेंट लगाते छेड़ा- “अरे ये तो बड़ा नमकीन लौंडा है…”


[Image: holi-d3bdbba9d87597ab62e30f03dfa496c3.jpg]


पहले तो मेरी रंगाई हुई फिर कपड़े फटे… भाभी के गांव की होली की याद आ गई। बल्की ये सब उनसे भी दो हाथ आगे थीं। थोड़ी देर तो मैं लगवाता रहा लेकिन भाभी ने मुझे ललकारा की-

“हे देवरजी… मेरा नाम मत डुबाओ…”

फिर मैं क्यों छोड़ता उन सबको… थोड़ी देर खेल के हम रुक जाते कुछ खाते पीते और फिर रंग पेंट वार्निश… और कोई अंग नहीं छोड़ा हम दोनों ने।


रंग छुड़ाने का भी जिम्मा भाभी का था, उन्होंने बेसन तेल सब ला के रखा। पहले आंगन में बैठ के हम दोनों रंग छुड़ा रहे थे। मैंने चिढ़ाते हुए छेड़ा-

“क्यों दूबे भाभी ने कहां-कहां रंग लगाया भाभी?”



तो वो हँसकर बात बदल के बोलीं- “जहां-जहां उन्होंने लगाया था वहां-वहां मैंने भी उन्हें लगा दिया…”



बाथरूम एक ही था, पहले भाभी नहाने गई और उनके निकलने के बाद मैं। कपड़े उतारने के बाद मैंने देखा की टब में भाभी की रंग से भीगी साड़ी रखी है। मैंने उसे उठाया तो उसके नीचे उनका पेटीकोट और ब्लाउज दोनों ही लाल पीले नीले रंगों में सराबोर और सबसे नीचे उनकी ब्रा और पैंटी।



ब्रा उठा के मैंने देखा तो ऊपर तो रंग लगा ही था अंदर भी… ढेर सारा नीचे की ओर तक बैंगनी रंग और काही दूबे और शर्मा भाभी जो रंग लगा रही… और पैंटी की तो हालत तो और खराब, रोज तो भाभी लेसी या सिलिकोन पैंटी (लाने वाला तो मैं ही था) लेकीन आज उन्होंने मोटी काटन की… लेकिन उससे भी कोई बचत नहीं थी। अंदर की ओर खूब सारा रंग बैगनी, काही और पीछे की ओर भी कालिख सी पैंटी के नीचे भी ढेर सारा सूखा रंग। ये सोच-सोच के की भाभी लोगों ने कैसी होली खेली, मेरी हालत खराब हो रही थी।



तब तक वो बोलीं की-

“लाला कहीं मेरी ननद की याद में बाथरूम में ही तो पिचकारी नहीं चला रहे हो? अरे शाम को चले जाना उसके यहां, अपना सफेद रंग बचा के रखो उसके लिये… मैं खाना लगा रही हूँ…”


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भाभी मेरे लिये सिल्क के डिजाइनर कुर्ते पाजामे लाई थीं वो मैंने शाम को पहना। शाम को तो सूखी होली थी। मैंने पहले भाभी को थोड़ा सा गुलाल लगाया तो वो बोलीं-

“देवर इतना थोड़ा सा डालोगे तो क्या मजा आयेगा…”

और फिर पूरी की पूरी गुलाल की प्लेट मेरे ऊपर उलट दी।



वो थोड़ा सा गाढ़ा गुलाल लायी थीं, उसे मेरे गाल पे कस के रगड़ते बोलीं- “ये मेरे देवर के गालों के लिये स्पेशल गुलाल है…”


[Image: Hori-Holi-2014-Date.jpg]


मैं बोला- “भाभी आपने लगाया है तो छुड़ाइये भी आप…”



वो हँसकर बोलीं- “एकदम…” और गीले रुमाल से छुड़ाने लगीं। वो रंग फैल के और पक्का हो गया। उन्होंने गुलाल में सूखा पक्का रंग मिला रखा था। लड़कों की तो ऐसी की तैसी वो कर ही रहीं थी, लड़कियों को भी… चाहे जिस उमर की हो। माथे पे अबीर का टिका लगाते-लगाते मांग भर देतीं और गाल पे लगातेलगाते उनका हाथ सरक के… सीधे टाप के अंदर और फिर जम के रगड़ मसल के ही छोड़ती।



एक जरा ज्यादा नखड़े दिखा रही तो उसके सफेद टाप के अंदर पूरा प्लेट भरकर वो ‘स्पेशल’ वाला गुलाल… और जब वो चलने लगी तो एक ग्लास पानी सीधा अंदर… पूरा लाल लाल। उसकी चूचियों को कस के पिंच करके बोलीं- “बिन्नो अब जरा बाहर जाके अपने भाइयों को झलक दिखाना…”



अगले दिन भी जो भी मिलने आता, गुलाल लगाने के साथ होली शुरू हो जाती लेकिन अंत में वो मेरे साथ होली में बदल जाती। पूरा दिन मस्ती में बीता। दूसरे दिन मेरी छुट्टीयां खतम हो गई थीं, मुझे मेडिकल कालेज वापस जाना था। मैं भाभी के पास पहुंचा तो वो थोड़ी उदास बैठीं थी।



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RE: लला… फिर खेलन आइयो होरी - by komaalrani - 28-04-2021, 09:01 PM



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