28-04-2021, 08:59 PM
“याद रखना ये होली…”
अचानक उसने पीठ के पीछे से अपने हाथ निकाले और मेरे चेहरे पे गाढ़ा लाल पीला रंग… और पास में रखे लोटे में भरा गाढ़ा गुलाबी रंग… मेरी सफेद शर्ट पे और बोली-
“याद रखना ये होली…”
मैं बोला- “एकदम…”
तब तक किसी की आवाज आयी- “हे लाला जल्दी करो बस निकल जायेगी…”
रास्ते भर कच्ची पक्की झूमती गेंहूँ की बालियों, पीली-पीली सरसों के बीच उसकी मुश्कान।
घर पहुंच के होली की तैयारियां… भाभी की ससुराल में पहली होली… ढेर सारी चीजें बनी। दसों चक्कर बाजार के मैंने लगाये… कभी खोया कम तो कभी मैदा। घर में हमी दो तो थे, भैया अपने काम में मशगूल।
वो गोझिया बेलतीं तो मैं काटता, मैं भरता तो वो गोंठती। साथ में कभी वो मैदा ही मुझे लगा के होली की शुरुआत कर देती तो मैं भी क्यों छोड़ता?
कभी उनका आंचल जाने अनजाने ढलक जाता तो मैं जानबूझ के वहां घूरता… तो वो बोलती- “लगता है तेरे लिये परमानेंट इंतजाम करना पड़ेगा…”
“एकदम भाभी… बड़ी परेशानी होती है… लेकिन तब तक…”
मैं उनकी ओर उम्मीद लगा के देखता।
तो वो भी उसी अंदाज में बोलतीं-
“सोचती हूँ… ये मेरी ननद कैसी रहेगी… उसका भी काम चल जायेगा और तुम्हारा भी घर का माल घर के काम में भी आ जायेगा…”
मैं उन्हें मेडिकल कालेज में सीखे खुले गाने बिना सेंसर के सुनाता और वो भी एक से एक गालियां… शाम को मैंने पूछा की भाभी रंग कितना लाऊँ?
तो वो बोली- “एक पाव तो तेरे पिछवाड़े में समा जायेगा, और उतना ही तेरी छिनाल बहन के अगवाड़े…”
जब मैं रंग लेकर आया तो बड़े द्विअथी अंदाज में बोला- “क्यों भाभी डालूं?”
वो पूड़ी बेल रही थीं। बेलन के हैंडल को सहलाते हुए बोलीं- “देख रहे हो कितना लंबा और मोटा है” एक बार में अंदर कर दूंगी अगर होली के पहले तंग किया तो…”
मैं किचेन में बैठा था की वो हाथ धोने के लिये बाहर गई और लौट के पीछे से मेरा ही रंग मेरे चेहरे पे… बोलीं-
“जरा टेस्ट कर रही थी की कैसा चढ़ता है?”
फिर मैं क्यों छोड़ता। होली के पहले ही हम लोगों की जम के होली हो गई। खाना खाने के बाद मैं हाथ धो रहा था की वो पीछे से आयीं और सीधे पीछे से पजामे के अंदर मेरे नितंबों पे… और बोलीं- “गाल पे तो तुम्हारे टेस्ट कर लिया था जरा देखूं यहां रंग कैसे चढ़ता है?”
भैया पहले सोने चले गये थे। भाभी किचेन में काम खतम कर रही थीं हम दोनों का प्लान ये था की सब कुछ आज ही बन जाय जिससे अगले दिन सिर्फ होली ही हो एकदम सुबह से।
काम खतम करके वो कड़ाही और सारे बरतनों की कालिख समेटने लगीं।
मैंने पूछा-
“भाभी ये क्या सुबह आयेगी तो बरतन वाली…”
वो हँसकर बोली- “लाला अभी सब ट्रिक मैंने थोड़े ही सिखाई है। बस देखते जाओ इनका क्या इश्तेमाल होता है…”
सोने के जाने के पहले वो रोज मुझे दूध दे के जाती थीं। वो आज आयीं तो मैंने चिढ़ाया-
“अरे भाभी जल्दी जाइये शेर इंतजार कर रहा होगा…”
उन्होंने एक मुट्ठी भर गुलाल सीधे मेरे थोड़े-थोड़े तने टेंटपोल पे डाल के बोला-
“अरे उस शेर को तो रोज देखती हूँ अब जरा इस शेर को भी देख लूंगी कि सिर्फ चिघ्घाड़ता ही है या कुछ शिकार विकार भी करना आता है…” तकिये के पास एक वैसलीन की शीशी रख के बोलीं-
“जरा ठीक से लगा वगा लेना कल डलवाने में आसानी होगी…”
अगले दिन सुबह मैं उठा तो शीशे में देख के चिल्ला पड़ा। सारी की सारी कालिख मेरे चेहरे पे… माथे पे बिंदी और मांग में खूब चौड़ा सिंदूर…
जितना साफ करने की कोशिश करता उतनी ही कालिख और फैलती। तब तक पीछे से खिलखिलाने की आवाज आयी। भाभी थीं- “क्यों लाला कल रात किसके साथ मुँह काला किया… जरूर वो मेरी छिनाल ननद रही होगी…”
अचानक उसने पीठ के पीछे से अपने हाथ निकाले और मेरे चेहरे पे गाढ़ा लाल पीला रंग… और पास में रखे लोटे में भरा गाढ़ा गुलाबी रंग… मेरी सफेद शर्ट पे और बोली-
“याद रखना ये होली…”
मैं बोला- “एकदम…”
तब तक किसी की आवाज आयी- “हे लाला जल्दी करो बस निकल जायेगी…”
रास्ते भर कच्ची पक्की झूमती गेंहूँ की बालियों, पीली-पीली सरसों के बीच उसकी मुश्कान।
घर पहुंच के होली की तैयारियां… भाभी की ससुराल में पहली होली… ढेर सारी चीजें बनी। दसों चक्कर बाजार के मैंने लगाये… कभी खोया कम तो कभी मैदा। घर में हमी दो तो थे, भैया अपने काम में मशगूल।
वो गोझिया बेलतीं तो मैं काटता, मैं भरता तो वो गोंठती। साथ में कभी वो मैदा ही मुझे लगा के होली की शुरुआत कर देती तो मैं भी क्यों छोड़ता?
कभी उनका आंचल जाने अनजाने ढलक जाता तो मैं जानबूझ के वहां घूरता… तो वो बोलती- “लगता है तेरे लिये परमानेंट इंतजाम करना पड़ेगा…”
“एकदम भाभी… बड़ी परेशानी होती है… लेकिन तब तक…”
मैं उनकी ओर उम्मीद लगा के देखता।
तो वो भी उसी अंदाज में बोलतीं-
“सोचती हूँ… ये मेरी ननद कैसी रहेगी… उसका भी काम चल जायेगा और तुम्हारा भी घर का माल घर के काम में भी आ जायेगा…”
मैं उन्हें मेडिकल कालेज में सीखे खुले गाने बिना सेंसर के सुनाता और वो भी एक से एक गालियां… शाम को मैंने पूछा की भाभी रंग कितना लाऊँ?
तो वो बोली- “एक पाव तो तेरे पिछवाड़े में समा जायेगा, और उतना ही तेरी छिनाल बहन के अगवाड़े…”
जब मैं रंग लेकर आया तो बड़े द्विअथी अंदाज में बोला- “क्यों भाभी डालूं?”
वो पूड़ी बेल रही थीं। बेलन के हैंडल को सहलाते हुए बोलीं- “देख रहे हो कितना लंबा और मोटा है” एक बार में अंदर कर दूंगी अगर होली के पहले तंग किया तो…”
मैं किचेन में बैठा था की वो हाथ धोने के लिये बाहर गई और लौट के पीछे से मेरा ही रंग मेरे चेहरे पे… बोलीं-
“जरा टेस्ट कर रही थी की कैसा चढ़ता है?”
फिर मैं क्यों छोड़ता। होली के पहले ही हम लोगों की जम के होली हो गई। खाना खाने के बाद मैं हाथ धो रहा था की वो पीछे से आयीं और सीधे पीछे से पजामे के अंदर मेरे नितंबों पे… और बोलीं- “गाल पे तो तुम्हारे टेस्ट कर लिया था जरा देखूं यहां रंग कैसे चढ़ता है?”
भैया पहले सोने चले गये थे। भाभी किचेन में काम खतम कर रही थीं हम दोनों का प्लान ये था की सब कुछ आज ही बन जाय जिससे अगले दिन सिर्फ होली ही हो एकदम सुबह से।
काम खतम करके वो कड़ाही और सारे बरतनों की कालिख समेटने लगीं।
मैंने पूछा-
“भाभी ये क्या सुबह आयेगी तो बरतन वाली…”
वो हँसकर बोली- “लाला अभी सब ट्रिक मैंने थोड़े ही सिखाई है। बस देखते जाओ इनका क्या इश्तेमाल होता है…”
सोने के जाने के पहले वो रोज मुझे दूध दे के जाती थीं। वो आज आयीं तो मैंने चिढ़ाया-
“अरे भाभी जल्दी जाइये शेर इंतजार कर रहा होगा…”
उन्होंने एक मुट्ठी भर गुलाल सीधे मेरे थोड़े-थोड़े तने टेंटपोल पे डाल के बोला-
“अरे उस शेर को तो रोज देखती हूँ अब जरा इस शेर को भी देख लूंगी कि सिर्फ चिघ्घाड़ता ही है या कुछ शिकार विकार भी करना आता है…” तकिये के पास एक वैसलीन की शीशी रख के बोलीं-
“जरा ठीक से लगा वगा लेना कल डलवाने में आसानी होगी…”
अगले दिन सुबह मैं उठा तो शीशे में देख के चिल्ला पड़ा। सारी की सारी कालिख मेरे चेहरे पे… माथे पे बिंदी और मांग में खूब चौड़ा सिंदूर…
जितना साफ करने की कोशिश करता उतनी ही कालिख और फैलती। तब तक पीछे से खिलखिलाने की आवाज आयी। भाभी थीं- “क्यों लाला कल रात किसके साथ मुँह काला किया… जरूर वो मेरी छिनाल ननद रही होगी…”