23-04-2021, 04:36 PM
‘राजे…तूने बहुत मज़ा दिया…तू बहुत बढ़िया चोदू है… जल्दी खलास भी नहीं होता… तेरे वीर्य का स्वाद कितना अच्छा है… आज तो राजे तूने मुझे खुश कर दिया… कब से प्यासी मरी जा रही थी… अब मैं तुझे अपना स्वर्णरसपान कराऊँगी जिससे तू मुझे सदा प्यार करेगा !’ चंदा रानी ने कहा।
‘स्वर्णरसपान क्या होता है?’ मैंने उसे चूमते हुए पूछा।
‘तुझे नहीं पता? तेरी पत्नी ने कभी नहीं पिलाया तुझे अपना स्वर्णामृत?…शायद उसे मालूम नहीं होगा…बहुत कम लड़कियाँ जानती हैं इसके बारे में… यह वो रस है जिसे पीकर मर्द उस लड़की का गुलाम बन जाता है… तू बनेगा ना मेरा गुलाम राजे?’
‘हाँ हाँ मैं तो हमेशा तेरा गुलाम रहूँगा। अब जल्दी से स्वर्णरस पिला… मेरा दिल रुक नहीं पा रहा स्वर्णारस चखने को !’
चंदा रानी बिस्तर पर टांगें चौड़ा के बैठ गई। उसने अपनी पैर नीचे फर्श पर रख दिये और बोली- चल राजे… अब तू ज़मीन पर बैठ जा और अपना मुंह मेरी फ़ुद्दी से सटा ले !’
मैंने वैसा ही किया।
चूत से मुंह लगाते ही मेरा नथुने उसकी बुर की खास गंध से भर गये। खुशबू पहचानते ही लंड हुमक के अकड़ गया और तुनक तुनक के अपनी प्यारी चूत को सलामी देने लगा।
चंदा रानी ने मेरा सिर पकड़कर मेरा मुंह बुर के होंठों से सटा दिया और कहा कि मैं मुंह पूरा खोल के रखूँ।
मैंने उसके हुक्म के मुताबिक मुँह खोल दिया।
कुछ ही क्षणों के बाद दो तीन बूंदें मेरे मुंह में टपकीं।
यह गरम गरम, नमकीन, खट्टा सा पानी था जो मुझे बेहद स्वादिष्ट लगा।
जैसे ही मैं उसको निगला, उसी पानी की एक धारा मेरे मुंह में गिरनी शुरू हो गई।
तो यह था स्वर्णरस !
तुरंत ही मैं समझ गया कि यह उसका मूत्र है, तभी उसे स्वर्णारस कह रही थी, क्योंकि मूत्र स्वर्ण जैसे रंग का होता है ना।
मुझे इतना मज़ा आ रहा था कि जिसका कोई हिसाब नहीं।
मैं खुद अचंभे में था कि मूत्र पी कर इतना आनन्द आ सकता है।
क्या गज़ब का स्वाद था, मैं तो सारा जीवन चंदा रानी का गुलाम बनने को उत्सुक था।
चंदा रानी ने अब तेज़ धार निकाली जिसे मैं खुशी खुशी पीता चला गया, एक बूंद भी मैंने नीचे नहीं गिरने दी।
जब सारा का सारा स्वर्णामृत व़ह निकाल चुकी तो उसने मुझे उठ कर अपने से सट कर बैठने को कहा।
मैं तो उसके स्वर्णामृत के नशे में चूर था, मज़े से भरा हुआ मैं तो पूरा मस्त था, मैंने यह स्वर्णामृत अभी तक अपनी पत्नी का क्यों नहीं चखा?
मुझे तो पता ही नहीं था इतनी उत्तम चीज़ का।
मस्ती के खुमार में मैं उठा और चन्दारानी के बगल में जा बैठा।
उसने मुझसे लिपट लिपट कर बार बार चूमा, बोली- राजे… तू अब मेरा गुलाम बन गया… तुझे पता है लड़कियाँ उसी मर्द को पूरा मज़ा देती हैं जो इश्क़ लड़ने में उनका गुलाम बनकर रहता है… तुझे मैंने पूरा मज़ा दिया या नहीं?… लड़कियाँ अपना कचूमर भी उसी मर्द से निकलवाती हैं जो जब वो कहें तभी उनको वहशियों की भांति नोच खसोट के चोद दें, अपनी मर्ज़ी से नहीं !
मैं तो चंदा रानी के स्वर्णामृत का पान करके धन्य हो चुका था, मैं बिल्कुल उसका जीवन भर गुलाम बन जाने को तत्पर था।
वह कहे तो कुएं में कूद जाऊँ !