20-04-2021, 11:42 AM
सरदरजी ने भी अपने पत्ते उठा लिए और उन्हे देखकर बड़े ही जोश के साथ 1 के बदले 2 हज़ार की चाल चल दी..
अब आलम ये था की टेबल पर 5 लोग थे और सभी की चाल आ चुकी थी...ऐसा शायद पहली बार हो रहा था...
इसी बीच दूसरे टेबल पर सुमन ने सभी का ध्यान बाँट रखा था...उसने सभी के सामने वोड्का के बड़े-2 ग्लास फिर से भरकर रखवा दिए थे...और साथ ही तंबोला की गेम को भी काफ़ी रोचक मुकाम तक पहुँचा दिया था... इसलिए किसी को भी दूसरे टेबल पर देखने की जरुरत ही महसूस नही हो रही थी.. और ना ही डिंपल सरदारनी और राहुल की अनुपस्थिति का एहसास हो रहा था..जो इस वक़्त अंदर जबरदस्त चुदाई में व्यस्त थे..
सबा ने देखा की सभी की चाल आ चुकी है और वो सोच रही थी की ये अभी ही होना था...काश राहुल वहां होता...लेकिन अब उसे राहुल से ज़्यादा गेम की चिंता थी...
सबने सरदारजी के बाद, उनकी देखा देखी 2-2 हज़ार की चाल चल दी...सबा ने भी सोचा की अब इस गेम में पैर फँसा ही दिया है तो देखी जाएगी...क्योंकि कल के जीते हुए पैसो के बाद कुछ रिस्क तो लिया ही जा सकता था...उसने भी 2 हज़ार की चाल चल दी..
वो जानती थी की जीतना तो किसी एक को ही है...और वो अगर कॉन्फिडेंस से खेलती रही तो शायद वो भी जीत सकती है...
उसने जब 2 हज़ार फेंके तो कपूर साहब बोल पड़े : "आज तो सबा भाभी बड़े तैश मैं है...ये सबको झाड़ कर मानेगी...''
उसने जब 'झाड़ कर' बोला तो सबा की आँखे गोल होती चली गयी...झाड़ने का मतलब तो सेक्स में होता है...लेकिन जिस तरीके से उन्होने वो शब्द बोला था, ऐसा लग रहा था की वो नॉर्मल सी बात है...वो बोलकर हँसे भी नही...इन्फेक्ट कोई भी नही हंसा...इसलिए सबा ने भी कोई रिएक्शन नही दिया...वो समझ गयी की इस शब्द का मतलब ''पैसे झाड़ना'' है...वो सेक्स वाला झाड़ना नही...अपनी गंदी सोच पर वो खुद ही मुस्कुरा दी.
उसकी इस मुस्कुराहट को हर ठरकी तिरछी नज़रों से देख रहा था...उन सभी के बीच ,आँखो-2 में ही, बिना बोले ही, इस बात पर सहमति हो चुकी थी की इस गेम में वो सबा से हर तरह का मज़ा लेंगे...चाहे उसे बुरा ही लगे जाए...क्योंकि आज जैसा मौका वो हाथ से नही जाने देना चाहते थे.
कपूर साहब ने पैसे फेंककर गेम को आगे बढ़ाया ..
गुप्ता जी ने भी 2 हज़ार निकाले और नीचे फेंकते हुए बोले : "लो जी....मेरे कड़क खंबे जैसे कड़क नोट मेरी तरफ से...''
अब आलम ये था की टेबल पर 5 लोग थे और सभी की चाल आ चुकी थी...ऐसा शायद पहली बार हो रहा था...
इसी बीच दूसरे टेबल पर सुमन ने सभी का ध्यान बाँट रखा था...उसने सभी के सामने वोड्का के बड़े-2 ग्लास फिर से भरकर रखवा दिए थे...और साथ ही तंबोला की गेम को भी काफ़ी रोचक मुकाम तक पहुँचा दिया था... इसलिए किसी को भी दूसरे टेबल पर देखने की जरुरत ही महसूस नही हो रही थी.. और ना ही डिंपल सरदारनी और राहुल की अनुपस्थिति का एहसास हो रहा था..जो इस वक़्त अंदर जबरदस्त चुदाई में व्यस्त थे..
सबा ने देखा की सभी की चाल आ चुकी है और वो सोच रही थी की ये अभी ही होना था...काश राहुल वहां होता...लेकिन अब उसे राहुल से ज़्यादा गेम की चिंता थी...
सबने सरदारजी के बाद, उनकी देखा देखी 2-2 हज़ार की चाल चल दी...सबा ने भी सोचा की अब इस गेम में पैर फँसा ही दिया है तो देखी जाएगी...क्योंकि कल के जीते हुए पैसो के बाद कुछ रिस्क तो लिया ही जा सकता था...उसने भी 2 हज़ार की चाल चल दी..
वो जानती थी की जीतना तो किसी एक को ही है...और वो अगर कॉन्फिडेंस से खेलती रही तो शायद वो भी जीत सकती है...
उसने जब 2 हज़ार फेंके तो कपूर साहब बोल पड़े : "आज तो सबा भाभी बड़े तैश मैं है...ये सबको झाड़ कर मानेगी...''
उसने जब 'झाड़ कर' बोला तो सबा की आँखे गोल होती चली गयी...झाड़ने का मतलब तो सेक्स में होता है...लेकिन जिस तरीके से उन्होने वो शब्द बोला था, ऐसा लग रहा था की वो नॉर्मल सी बात है...वो बोलकर हँसे भी नही...इन्फेक्ट कोई भी नही हंसा...इसलिए सबा ने भी कोई रिएक्शन नही दिया...वो समझ गयी की इस शब्द का मतलब ''पैसे झाड़ना'' है...वो सेक्स वाला झाड़ना नही...अपनी गंदी सोच पर वो खुद ही मुस्कुरा दी.
उसकी इस मुस्कुराहट को हर ठरकी तिरछी नज़रों से देख रहा था...उन सभी के बीच ,आँखो-2 में ही, बिना बोले ही, इस बात पर सहमति हो चुकी थी की इस गेम में वो सबा से हर तरह का मज़ा लेंगे...चाहे उसे बुरा ही लगे जाए...क्योंकि आज जैसा मौका वो हाथ से नही जाने देना चाहते थे.
कपूर साहब ने पैसे फेंककर गेम को आगे बढ़ाया ..
गुप्ता जी ने भी 2 हज़ार निकाले और नीचे फेंकते हुए बोले : "लो जी....मेरे कड़क खंबे जैसे कड़क नोट मेरी तरफ से...''