12-04-2021, 10:32 AM
पूरी कार मे एक अजीब ही तरह की खामोशी फैली हुई थी. कार अपनी रफ़्तार से सड़क पर दौड़े जा रही थी और खामोशी वैसे ही बरकरार बनी हुई थी. मैं अमित से बात करना चाह रही थी कि जो कुछ भी संजय के घर पर हुआ. उसमे मेरी कोई भी ग़लती नही है. पर समझ नही आ रहा था कि बात कहाँ से शुरू करी जाए. क्यूकी अगर उसने मुझसे पूछा कि मैं संजय के घर पर क्यू गयी थी तो मुझे मुकेश वाला पूरा किस्सा बताना पड़ेगा जो मैं नही सुनाना चाहती थी. लेकिन उसकी आँखो मे अपने लिए गुस्सा मुझसे बर्दाश्त नही हो रहा था.
“अमित..!!” मैने बहुत झिझकते हुए लहजे मे कहा. उसने मेरी बात का जवाब देने की जगह पर मुझे और भी ज़्यादा गुस्से से मेरी तरफ देखा.
“देखो अमित मेरी कोई ग़लती नही” मैने गाड़ी चलाते हुए उसकी तरफ देखते हुए कहा. पर वो फिर भी खामोश रहा.
“मैं दिल से तुम्हारा थॅंक्स करना चाहती हू अगर आज तुम सही वक़्त पर नही आते तो मैं….” मैने अपनी बात अधूरी छोड़ कर उसकी तरफ अपनी भीग चुकी पलके ले कर देखते हुए कहा.
“थॅंक्स कहना चाहती हो या गाली देना चाहती हो ? मैने तुम्हारा खेल बीच मे ही आकर खराब कर दिया.” उसने अपनी जहर उगलती हुई आँखो से मेरी तरफ देखते हुए कहा.
“तुम समझ नही रहे हो अमित.. उन दोनो ने मुझे बहुत चालाकी से अपने जाल मे फँसा लिया था.” मैने उसे समझाते हुए कहा.
“उन कल के लौन्डो ने तुम्हे फँसा लिया और तुम फँस गयी. सीधे सीधे क्यू नही बोल रही हो कि तुम्हे उन दोनो से चुदवाना था” उसने मेरी तरफ गुस्से बोल कर अपना मुँह दूसरी तरफ फेर लिया.
“ऐसी कोई बात नही है अमित तुम मुझे ग़लत समझ रहे हो.”
“ग़लत नही बहुत अच्छी तरह से समझ गया हू मैं तुम्हे” उसने मेरी बात को बीच मे काट ते हुए कहा. उसकी आँखो मे अचानक अपने लिए इतनी नफ़रत देख कर मुझे बहुत गिल्टी फील हो रही थी.
कैसे समझाऊ इसे कि जो कुछ भी मेरे साथ हुआ वो सब कब हुआ कैसे हुआ क्यू हुआ मुझे खुद नही पता है. मैं अपनी सोच मे डूबी हुई कार चला ही रही थी कि अचानक से कार चलते चलते बंद हो गयी. एक तो मैं वैसे ही परेशान थी उस पर ये कार का इस तरह से बंद हो जाना. मैं बुरी तरह से घबरा गयी थी. एक तो मैं संजय के घर जाने के चक्कर मे पहले ही लेट हो गयी थी उस पर अब ये कार का यूँ अचानक खराब हो जाना. किसी ने सच ही कहा है जब इंसान का बुरा टाइम आता है तो वो चाहे जितना भी अच्छा करने की सोचे उसके साथ सब बुरा ही होता है.
मैने कार से उतर कर अमित की तरफ देखा उसकी आँखो मे मेरे लिए अब भी नफ़रत भरी हुई थी.
“अमित ये कार पता नही अचानक चलते चलते बंद हो गयी है. और मुझे तुरंत स्टेशन जाना है. यहाँ से स्टेशन तक जाने मे करीब 1 घंटा लग जाएगा. और शाम भी हो रही है.” मैने कार की तरफ देखा और फिर एक नज़र अमित की तरफ उसकी आँखो मे मेरे लिए वैसा ही गुस्सा अब भी बरकरार था. जैसे तैसे करके हम ने धक्का लग कर कार को रोड के एक साइड मे किया.
शाम पूरी तरह से फैल चुकी थी और रोड पर हल्का हल्का अंधेरा छाने लग गया था. कुछ समझ मे नही आ रहा था कि क्या किया जाए. मैं अभी सोच ही रही थी कि क्या करूँ क्या ना करूँ. मेरे पर्स मे रखा फ़ोन बजने लग गया. मैने फ़ोन निकाल कर नंबर देखा तो मनीष का कॉल था. मैने तुरंत कॉल रिसिव किया.
“हेलो क्या हुआ ? मिश्रा जी को रिसिव कर लिया ?” मनीष ने दूसरी तरफ से फ़ोन पर पूछा.
“जी वो… कार बीच रास्ते मे ही खराब हो गयी है. कुछ समझ मे नही आ रहा है कि क्या दिक्कत है.” मैने अपनी परेशानी फ़ोन पर मनीष को बताते हुए कहा.
“क्या यार तुम से पहले ही कहा था कि निकल जाओ…. तुम पता नही किस दिमाग़ मे रहती हो. अब एक काम करो कहाँ पर हो तुम ?” मनीष ने फ़ोन पर गुस्सा करते हुए कहा. मनीष जब से गाँव मे आए थे उनके बिहेवियर मे चेंज आ गया था वो अक्सर ही मुझ पर गुस्सा कर लग गये थे.
“जी पता नही” मेरी समझ मे नही आ रहा था कि मैं इस समय कहाँ पर हू पर इतना पता था कि यहाँ से करीब 1 घंटे का रास्ता है स्टेशन के लिए. मैने उन्हे पूरी बात बताने ही वाली की थी कि उन्होने बीच मे ही फ़ोन पर मेरी बात को काटते हुए कहा कि
“पीनू तुम्हारे साथ ही है उसको फ़ोन दो.” मैने मनीष की बात सुन कर तुरंत फ़ोन अमित की तरफ बढ़ा दिया. उन दोनो मे थोड़ी देर बात चीत हुई. फिर अमित ने फ़ोन मेरी तरफ कर दिया.
“देखो पीनू कार को किसी ना किसी तरह से सही करवा कर ले आएगा तुम उसे कार की चाबी दे कर वहाँ से पीनू के साथ थोड़ी ही दूर से बस जाती है. तुम किसी भी बस मे बैठ कर स्टेशन के लिए निकल जाओ.” मनीष ने कहा तो मैने हाँ मे उनकी बात का जवाब दिया. कार को लॉक करके मैने अमित की तरफ चाबी को बढ़ा दिया. उसने चाभी ले तो ली पर उसकी आँखो मे मेरे लिए अब भी वैसा ही गुस्सा बरकरार था.
“अमित..!!” मैने बहुत झिझकते हुए लहजे मे कहा. उसने मेरी बात का जवाब देने की जगह पर मुझे और भी ज़्यादा गुस्से से मेरी तरफ देखा.
“देखो अमित मेरी कोई ग़लती नही” मैने गाड़ी चलाते हुए उसकी तरफ देखते हुए कहा. पर वो फिर भी खामोश रहा.
“मैं दिल से तुम्हारा थॅंक्स करना चाहती हू अगर आज तुम सही वक़्त पर नही आते तो मैं….” मैने अपनी बात अधूरी छोड़ कर उसकी तरफ अपनी भीग चुकी पलके ले कर देखते हुए कहा.
“थॅंक्स कहना चाहती हो या गाली देना चाहती हो ? मैने तुम्हारा खेल बीच मे ही आकर खराब कर दिया.” उसने अपनी जहर उगलती हुई आँखो से मेरी तरफ देखते हुए कहा.
“तुम समझ नही रहे हो अमित.. उन दोनो ने मुझे बहुत चालाकी से अपने जाल मे फँसा लिया था.” मैने उसे समझाते हुए कहा.
“उन कल के लौन्डो ने तुम्हे फँसा लिया और तुम फँस गयी. सीधे सीधे क्यू नही बोल रही हो कि तुम्हे उन दोनो से चुदवाना था” उसने मेरी तरफ गुस्से बोल कर अपना मुँह दूसरी तरफ फेर लिया.
“ऐसी कोई बात नही है अमित तुम मुझे ग़लत समझ रहे हो.”
“ग़लत नही बहुत अच्छी तरह से समझ गया हू मैं तुम्हे” उसने मेरी बात को बीच मे काट ते हुए कहा. उसकी आँखो मे अचानक अपने लिए इतनी नफ़रत देख कर मुझे बहुत गिल्टी फील हो रही थी.
कैसे समझाऊ इसे कि जो कुछ भी मेरे साथ हुआ वो सब कब हुआ कैसे हुआ क्यू हुआ मुझे खुद नही पता है. मैं अपनी सोच मे डूबी हुई कार चला ही रही थी कि अचानक से कार चलते चलते बंद हो गयी. एक तो मैं वैसे ही परेशान थी उस पर ये कार का इस तरह से बंद हो जाना. मैं बुरी तरह से घबरा गयी थी. एक तो मैं संजय के घर जाने के चक्कर मे पहले ही लेट हो गयी थी उस पर अब ये कार का यूँ अचानक खराब हो जाना. किसी ने सच ही कहा है जब इंसान का बुरा टाइम आता है तो वो चाहे जितना भी अच्छा करने की सोचे उसके साथ सब बुरा ही होता है.
मैने कार से उतर कर अमित की तरफ देखा उसकी आँखो मे मेरे लिए अब भी नफ़रत भरी हुई थी.
“अमित ये कार पता नही अचानक चलते चलते बंद हो गयी है. और मुझे तुरंत स्टेशन जाना है. यहाँ से स्टेशन तक जाने मे करीब 1 घंटा लग जाएगा. और शाम भी हो रही है.” मैने कार की तरफ देखा और फिर एक नज़र अमित की तरफ उसकी आँखो मे मेरे लिए वैसा ही गुस्सा अब भी बरकरार था. जैसे तैसे करके हम ने धक्का लग कर कार को रोड के एक साइड मे किया.
शाम पूरी तरह से फैल चुकी थी और रोड पर हल्का हल्का अंधेरा छाने लग गया था. कुछ समझ मे नही आ रहा था कि क्या किया जाए. मैं अभी सोच ही रही थी कि क्या करूँ क्या ना करूँ. मेरे पर्स मे रखा फ़ोन बजने लग गया. मैने फ़ोन निकाल कर नंबर देखा तो मनीष का कॉल था. मैने तुरंत कॉल रिसिव किया.
“हेलो क्या हुआ ? मिश्रा जी को रिसिव कर लिया ?” मनीष ने दूसरी तरफ से फ़ोन पर पूछा.
“जी वो… कार बीच रास्ते मे ही खराब हो गयी है. कुछ समझ मे नही आ रहा है कि क्या दिक्कत है.” मैने अपनी परेशानी फ़ोन पर मनीष को बताते हुए कहा.
“क्या यार तुम से पहले ही कहा था कि निकल जाओ…. तुम पता नही किस दिमाग़ मे रहती हो. अब एक काम करो कहाँ पर हो तुम ?” मनीष ने फ़ोन पर गुस्सा करते हुए कहा. मनीष जब से गाँव मे आए थे उनके बिहेवियर मे चेंज आ गया था वो अक्सर ही मुझ पर गुस्सा कर लग गये थे.
“जी पता नही” मेरी समझ मे नही आ रहा था कि मैं इस समय कहाँ पर हू पर इतना पता था कि यहाँ से करीब 1 घंटे का रास्ता है स्टेशन के लिए. मैने उन्हे पूरी बात बताने ही वाली की थी कि उन्होने बीच मे ही फ़ोन पर मेरी बात को काटते हुए कहा कि
“पीनू तुम्हारे साथ ही है उसको फ़ोन दो.” मैने मनीष की बात सुन कर तुरंत फ़ोन अमित की तरफ बढ़ा दिया. उन दोनो मे थोड़ी देर बात चीत हुई. फिर अमित ने फ़ोन मेरी तरफ कर दिया.
“देखो पीनू कार को किसी ना किसी तरह से सही करवा कर ले आएगा तुम उसे कार की चाबी दे कर वहाँ से पीनू के साथ थोड़ी ही दूर से बस जाती है. तुम किसी भी बस मे बैठ कर स्टेशन के लिए निकल जाओ.” मनीष ने कहा तो मैने हाँ मे उनकी बात का जवाब दिया. कार को लॉक करके मैने अमित की तरफ चाबी को बढ़ा दिया. उसने चाभी ले तो ली पर उसकी आँखो मे मेरे लिए अब भी वैसा ही गुस्सा बरकरार था.