03-04-2019, 09:15 AM
विनया के जीजू
जैसे मैंने घंटी बजाई, विनया ने दरवाजा खोला। शोला लग रही थी, शोला। वैसे ही पूरे शहर में आग लगाती रहती थी, लेकिन आज तो, एक स्टिंग टाइप चोली और सारोंग किसी तरह कूल्हे पे अटका। आज न उसने हड़काया न गालियां सुनाई, बस सीधे खींच के अंदर कमरे में ले गई।
मेरी भी ऊपर की सांस ऊपर, नीचे की नीचे, सो स्ट्रांग, सो हैंडसम, सो मैस्क्युलिन, बिचारी विनया क्या, कोई भी लड़की खुद अपनी पैंटी सरकाने को तैयार हो जाती।
जीजू वास्तव में, विनया के जीजू मेरे जीजू।
टी-शर्ट और शार्ट में, खूब गोरे, लम्बे, रसीले और एक-एक मसल्स उनकी खुली बांहों की छलक रही थी।
टेबल पर व्हिस्की की खुली बोतल रखी थी, ग्लासेज
और दीवाल पर लगे 40” इंच के टीवी पर शायद कोई मस्त ब्लू-फिल्म चल रही थी,
जिसे पाज कर दिया गया था।
मेरी निगाहें जीजू पर चिपकी थीं और
उनकी निगाहें मेरे छोटे से टाइट टाप को फाड़ते मेरे नए-नए आये जुबना पे टिकी थीं।
और उनकी चोरी जब मुझसे नहीं छिपी तो उनकी खेली खायी, खास साली, विनया से कैसे छिपती।
मुझे धकेल कर उनके बगल में बिठाती दुष्ट बोली-
“अरे दूर से क्यों ललचा रहे हैं। पास से देख लीजिए, ठीक से नाप जोख कर लीजिए,
ये भी आपकी साली है, जो जो आप मेरे साथ कर सकते हैं इसके साथ भी कर सकते हैं…”
विनया की बात बीच में काटती, मैं खुद जीजू के पास चिपक के बैठ गई और अपना हाथ उनके कंधे पर रखकर ठसके से बोली-
“उससे से भी ज्यादा, कोई रोक टोक नहीं, तू हट न सुबह से जीजू से चिपकी बैठी है।
अब मेरा नंबर है…”
जीजू की तो चांदी हो गई। उन्होंने सामने पड़े ग्लास में थोड़ा सा ढाल कर, मेरी ओर बढ़ाया।
मेरी तो लग गई, विनया को भी मालूम था की मैंने ड्रिंक कभी नहीं किया। मैं बोली-
“जीजू प्लीज… नहीं, मैंने इसके पहले कभी नहीं लिया, मैं लेती नहीं, आज तक नहीं…”
बात विनया ने सम्हाली, हड़काती बोली-
“अरे मेरी नानी, आज होली है। जो चीज आज तक नहीं घोंटा वही तो घोंटने का दिन है। चल जीजू का परसाद समझकर ले ले, बस होंठ गीला कर ले…”
और आँख से इशारा भी किया-
“ले ले वर्ना कहीं जीजू बुरा मन गए तो सब किया धरा…”
जीजू- “हाँ प्लीज, अरे तेरे जीजू की पहली रिक्वेस्ट है मान जा…”
मुझसे वो बोले और अपनी साली से कहा- “विनया यार जरा पकौड़े तो ले आना…”
फिर उन्होंने मुझे कुछ अपनी ओर खींचा, और मैं कुछ, आधी से ज्यादा अब मैं जीजू को गोद में थी, लैपटाप। उनका एक हाथ कस के पेग मेरे होंठों से लगाए था और दूसरा हाथ अब हल्के-हल्के टाप के ऊपर से मेरे उभारों को सहला रहा था।
मैं- “चलिए जीजू, आप भी क्या याद करेंगे कैसी साली से पाला पड़ा है…”
और मैंने होंठ खोल दिया। बस ग्लास की व्हस्की मेरे होंठों से होते हुए सीधे पेट में, जाने कैसे-कैसे लग रहा था।
लेकिन आज मेरी हिम्मत बढ़ी हुई थी, मुश्कुरा के जीजू से मैं बोली-
“किस साल्ली की हिम्मत है जो मेरे इत्ते प्यारे हैंडसम जीजू को मना करे?”
बस, अबकी जो जीजू ने पेग बनाया तो सीधे एक बार में ही, पूरा का पूरा।
बुरा सा मुँह बनाते मैं बोली-
“जीजू, मुझे यही बात नहीं अच्छी लगती, थोड़ा-थोड़ा कहते-कहते पूरा अंदर डाल देते हैं…”
जीजू- “अरे तुम साल्लियों को अच्छा भी तो यही लगता है। आधे तीहे में क्या मजा?”
जीजू ने ये कहते हुए अब खुल के मेरे उभार को कस के टाप के ऊपर से दबोच लिया और रगड़ते मसलते बोले।
मैं- “बात तो जीजू आपकी एकदम सही है…” खिलखिलाते मुश्कुराते मैं बोली।
शार्ट में जीजू का खूंटा पूरी तरह खड़ा हो चुका था और मैं अपने कोमल सेक्सी नितम्बों पर उसका दबाव खुल के महसूस कर रही थी। शरारत और मस्ती में क्या खाली जीजू का नाम लिखा था, हम सालियां कौन सी कम है।
एक बार कातिल अदा से मैंने जीजू को मुश्कुरा के देखा,
हल्के से अपने नितम्बों को उनके तने खूंटे पे रगड़ते हुए उन्हें इस बात का इशारा दे दिया की उनकी साली को भी मालूम हो गया है की शेर अब बेताब हो रहा है।
उसे बहुत देर तक पिजड़े में बंद नहीं रख सकते।
साथ ही मैंने खुद झुक के बोतल से व्हिस्की ग्लास में ढाल के बड़ा सा पेग बनाया, और अपने होंठों से बस जूठा करके जीजू के होंठों पे, (मैं सोच रही थी इसी बहाने शायद मैं पीने से बच जाऊँगी।)
जीजू ने पूरा का पूरा पेग गटक लिया। लेकिन जीजू भी कम चालाक नहीं थे। मेरे हाथ तो ग्लास में फंसे थे, बस उन्होंने मुझे पकड़कर अपनी ओर भींचा, चुम्मा लिया खूब जोर से, और फिर पूरा का पूरा बड़ा पेग सीधे उनके मुँह से मेरे मुँह में,
और जब तक सारा का सारा मेरे पेट में नहीं गया, उन्होंने मेरे मुँह छोड़ा।
मैं समझ गई बचने की कोई कोशिश करना बेकार है, तब तक विनया पकौड़े लेकर आ गई
जैसे मैंने घंटी बजाई, विनया ने दरवाजा खोला। शोला लग रही थी, शोला। वैसे ही पूरे शहर में आग लगाती रहती थी, लेकिन आज तो, एक स्टिंग टाइप चोली और सारोंग किसी तरह कूल्हे पे अटका। आज न उसने हड़काया न गालियां सुनाई, बस सीधे खींच के अंदर कमरे में ले गई।
मेरी भी ऊपर की सांस ऊपर, नीचे की नीचे, सो स्ट्रांग, सो हैंडसम, सो मैस्क्युलिन, बिचारी विनया क्या, कोई भी लड़की खुद अपनी पैंटी सरकाने को तैयार हो जाती।
जीजू वास्तव में, विनया के जीजू मेरे जीजू।
टी-शर्ट और शार्ट में, खूब गोरे, लम्बे, रसीले और एक-एक मसल्स उनकी खुली बांहों की छलक रही थी।
टेबल पर व्हिस्की की खुली बोतल रखी थी, ग्लासेज
और दीवाल पर लगे 40” इंच के टीवी पर शायद कोई मस्त ब्लू-फिल्म चल रही थी,
जिसे पाज कर दिया गया था।
मेरी निगाहें जीजू पर चिपकी थीं और
उनकी निगाहें मेरे छोटे से टाइट टाप को फाड़ते मेरे नए-नए आये जुबना पे टिकी थीं।
और उनकी चोरी जब मुझसे नहीं छिपी तो उनकी खेली खायी, खास साली, विनया से कैसे छिपती।
मुझे धकेल कर उनके बगल में बिठाती दुष्ट बोली-
“अरे दूर से क्यों ललचा रहे हैं। पास से देख लीजिए, ठीक से नाप जोख कर लीजिए,
ये भी आपकी साली है, जो जो आप मेरे साथ कर सकते हैं इसके साथ भी कर सकते हैं…”
विनया की बात बीच में काटती, मैं खुद जीजू के पास चिपक के बैठ गई और अपना हाथ उनके कंधे पर रखकर ठसके से बोली-
“उससे से भी ज्यादा, कोई रोक टोक नहीं, तू हट न सुबह से जीजू से चिपकी बैठी है।
अब मेरा नंबर है…”
जीजू की तो चांदी हो गई। उन्होंने सामने पड़े ग्लास में थोड़ा सा ढाल कर, मेरी ओर बढ़ाया।
मेरी तो लग गई, विनया को भी मालूम था की मैंने ड्रिंक कभी नहीं किया। मैं बोली-
“जीजू प्लीज… नहीं, मैंने इसके पहले कभी नहीं लिया, मैं लेती नहीं, आज तक नहीं…”
बात विनया ने सम्हाली, हड़काती बोली-
“अरे मेरी नानी, आज होली है। जो चीज आज तक नहीं घोंटा वही तो घोंटने का दिन है। चल जीजू का परसाद समझकर ले ले, बस होंठ गीला कर ले…”
और आँख से इशारा भी किया-
“ले ले वर्ना कहीं जीजू बुरा मन गए तो सब किया धरा…”
जीजू- “हाँ प्लीज, अरे तेरे जीजू की पहली रिक्वेस्ट है मान जा…”
मुझसे वो बोले और अपनी साली से कहा- “विनया यार जरा पकौड़े तो ले आना…”
फिर उन्होंने मुझे कुछ अपनी ओर खींचा, और मैं कुछ, आधी से ज्यादा अब मैं जीजू को गोद में थी, लैपटाप। उनका एक हाथ कस के पेग मेरे होंठों से लगाए था और दूसरा हाथ अब हल्के-हल्के टाप के ऊपर से मेरे उभारों को सहला रहा था।
मैं- “चलिए जीजू, आप भी क्या याद करेंगे कैसी साली से पाला पड़ा है…”
और मैंने होंठ खोल दिया। बस ग्लास की व्हस्की मेरे होंठों से होते हुए सीधे पेट में, जाने कैसे-कैसे लग रहा था।
लेकिन आज मेरी हिम्मत बढ़ी हुई थी, मुश्कुरा के जीजू से मैं बोली-
“किस साल्ली की हिम्मत है जो मेरे इत्ते प्यारे हैंडसम जीजू को मना करे?”
बस, अबकी जो जीजू ने पेग बनाया तो सीधे एक बार में ही, पूरा का पूरा।
बुरा सा मुँह बनाते मैं बोली-
“जीजू, मुझे यही बात नहीं अच्छी लगती, थोड़ा-थोड़ा कहते-कहते पूरा अंदर डाल देते हैं…”
जीजू- “अरे तुम साल्लियों को अच्छा भी तो यही लगता है। आधे तीहे में क्या मजा?”
जीजू ने ये कहते हुए अब खुल के मेरे उभार को कस के टाप के ऊपर से दबोच लिया और रगड़ते मसलते बोले।
मैं- “बात तो जीजू आपकी एकदम सही है…” खिलखिलाते मुश्कुराते मैं बोली।
शार्ट में जीजू का खूंटा पूरी तरह खड़ा हो चुका था और मैं अपने कोमल सेक्सी नितम्बों पर उसका दबाव खुल के महसूस कर रही थी। शरारत और मस्ती में क्या खाली जीजू का नाम लिखा था, हम सालियां कौन सी कम है।
एक बार कातिल अदा से मैंने जीजू को मुश्कुरा के देखा,
हल्के से अपने नितम्बों को उनके तने खूंटे पे रगड़ते हुए उन्हें इस बात का इशारा दे दिया की उनकी साली को भी मालूम हो गया है की शेर अब बेताब हो रहा है।
उसे बहुत देर तक पिजड़े में बंद नहीं रख सकते।
साथ ही मैंने खुद झुक के बोतल से व्हिस्की ग्लास में ढाल के बड़ा सा पेग बनाया, और अपने होंठों से बस जूठा करके जीजू के होंठों पे, (मैं सोच रही थी इसी बहाने शायद मैं पीने से बच जाऊँगी।)
जीजू ने पूरा का पूरा पेग गटक लिया। लेकिन जीजू भी कम चालाक नहीं थे। मेरे हाथ तो ग्लास में फंसे थे, बस उन्होंने मुझे पकड़कर अपनी ओर भींचा, चुम्मा लिया खूब जोर से, और फिर पूरा का पूरा बड़ा पेग सीधे उनके मुँह से मेरे मुँह में,
और जब तक सारा का सारा मेरे पेट में नहीं गया, उन्होंने मेरे मुँह छोड़ा।
मैं समझ गई बचने की कोई कोशिश करना बेकार है, तब तक विनया पकौड़े लेकर आ गई