03-04-2021, 09:54 AM
सुशील ओफ़िस के लिये रवाना हो गया और मैंने तुरन्त अपनी कार निकाली/ धड़कते दिल से पार्लर पहुंच गई/ सामने ब्यूटी पार्लर था, मेरा दिल धड़कने लगा था/ अन्दर कदम रखते ही मुझे रवि मिल गया/ मैंने उसे मसाज रूम में आने को कह दिया/ और सीधे केबिन में चली आई/ ब्रा और पेण्टी में मसाज रूम में आ गई/ मेरा दिल अब वासना की उत्तेजना के मारे धड़कने लगा था/
मेरी सांसे भी अनियंत्रित हो चली थी/ वहाँ पर रवि आ चुका था/ मैं चुपचाप आ कर लेट गई और उल्टी लेट गई/ पहले तो वो मुझे घूरता रहा फिर मेरे जिस्म को देख कर वो बहकने लगा/ मैं अपनी चुदाई का इन्तज़ार करने लगी/ उसके हाथ मेरे शरीर पर फ़िसलने लगे/ पर उसने आज कोई मुझे उत्तेजित करने वाली हरकत नहीं की/ मुझे स्वयं ही बेचेनी होने लगी/ पर मैं तो स्वमेव ही उत्तेजित होने लगी थी/ जैसे ही वो मेरे चेहरे की ओर आया मैंने ही पहल कर दी… उसके लण्ड को अपनी एक अंगुली से दबा दिया/
उसने कोई आपत्ति नहीं की/ मैंने दुबारा उसके लण्ड को फिर से हाथ से दबाया/ उसका लण्ड कड़ा होने लगा, और उभार स्पष्ट नजर आने लगा/ वो भी शायद यही चाहता था/ अतः वह उसी स्थान पर खड़ा रहा/
“रवि , मजा नहीं आ रहा है… क्या नाराज है ?” मेरी बेचैनी उभर कर सामने आने लगी/
“क्या कह रही है सीमा जी… आप कहे तो एक बार… क्या करना है ?” उसे डर भी लग रहा था/
“कुछ करो ना…” मेरी इस विनती पर वो मुस्करा उठा, और उसने मेरे चूतड़ों को अपने हाथ से सहला दिया/ मेरे सारे शरीर में कंपकंपी सी छूट गई/ जैसे मेरी मन चाहत पूरी होने वाली थी/ उसने मेरी पेण्टी थोड़ी सी नीचे सरका दी थी और चूतड़ो की दरार और दोनों चूतड़ों के पार्टीशन रवि को नजर आने आने लगे थे/
मुझे भी थोड़ी सी हवा की ठण्डक चूतड़ों पर लगी/ मेरे मन में खलबली मचने लगी/ लगने लगा कि बस अब चुदाई ज्यादा दूर नहीं है/ उसका कड़क लण्ड और भी कठोर हो चुका था/ उसका लण्ड मेरे चेहरे के बिलकुल समीप था… चाहती तो थोड़ा सा आगे बढ़ कर लण्ड को मुख में भर सकती थी…/
“रवि … बहुत कड़क हो रहा है… अपने मुन्ना को बाहर निकाल लो कर दर्शन करा दो…” मैं पूरी तरह से बहक चुकी थी/
“जी… क्या कह रही है आप… आप ही निकाल लो…” उसने कुछ शरमाते हुये कहा/
मेरी सांसे भी अनियंत्रित हो चली थी/ वहाँ पर रवि आ चुका था/ मैं चुपचाप आ कर लेट गई और उल्टी लेट गई/ पहले तो वो मुझे घूरता रहा फिर मेरे जिस्म को देख कर वो बहकने लगा/ मैं अपनी चुदाई का इन्तज़ार करने लगी/ उसके हाथ मेरे शरीर पर फ़िसलने लगे/ पर उसने आज कोई मुझे उत्तेजित करने वाली हरकत नहीं की/ मुझे स्वयं ही बेचेनी होने लगी/ पर मैं तो स्वमेव ही उत्तेजित होने लगी थी/ जैसे ही वो मेरे चेहरे की ओर आया मैंने ही पहल कर दी… उसके लण्ड को अपनी एक अंगुली से दबा दिया/
उसने कोई आपत्ति नहीं की/ मैंने दुबारा उसके लण्ड को फिर से हाथ से दबाया/ उसका लण्ड कड़ा होने लगा, और उभार स्पष्ट नजर आने लगा/ वो भी शायद यही चाहता था/ अतः वह उसी स्थान पर खड़ा रहा/
“रवि , मजा नहीं आ रहा है… क्या नाराज है ?” मेरी बेचैनी उभर कर सामने आने लगी/
“क्या कह रही है सीमा जी… आप कहे तो एक बार… क्या करना है ?” उसे डर भी लग रहा था/
“कुछ करो ना…” मेरी इस विनती पर वो मुस्करा उठा, और उसने मेरे चूतड़ों को अपने हाथ से सहला दिया/ मेरे सारे शरीर में कंपकंपी सी छूट गई/ जैसे मेरी मन चाहत पूरी होने वाली थी/ उसने मेरी पेण्टी थोड़ी सी नीचे सरका दी थी और चूतड़ो की दरार और दोनों चूतड़ों के पार्टीशन रवि को नजर आने आने लगे थे/
मुझे भी थोड़ी सी हवा की ठण्डक चूतड़ों पर लगी/ मेरे मन में खलबली मचने लगी/ लगने लगा कि बस अब चुदाई ज्यादा दूर नहीं है/ उसका कड़क लण्ड और भी कठोर हो चुका था/ उसका लण्ड मेरे चेहरे के बिलकुल समीप था… चाहती तो थोड़ा सा आगे बढ़ कर लण्ड को मुख में भर सकती थी…/
“रवि … बहुत कड़क हो रहा है… अपने मुन्ना को बाहर निकाल लो कर दर्शन करा दो…” मैं पूरी तरह से बहक चुकी थी/
“जी… क्या कह रही है आप… आप ही निकाल लो…” उसने कुछ शरमाते हुये कहा/
// सुनील पंडित //
मैं तो सिर्फ तेरी दिल की धड़कन महसूस करना चाहता था
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!