02-04-2019, 10:53 PM
भाग १) आरंभ..
स्क्रीच्चचचssssss….की आवाज़ के साथ एक टैक्सी आ कर रुकी एक घर के सामने | दो मंजिले का घर.. कुछ और कमियों के कारण बंगला बनते बनते रह गया | आगे एक लॉन जिसके बीचों बीच एक पतली सी जगह है जो खूबसूरत मार्बल्स से पटी पड़ी है जिससे चल कर घर के मुख्य दरवाज़े तक पहुँचा जा सकता है | ‘जस्ट पड़ोसी’ की बात की जाए तो जवाब हाँ में भी हो सकता है और ना में भी .. क्योंकि आस पास के घर कम से १५ से २० कदमों की दूरी पर हैं... या शायद उससे थोड़ा ज़्यादा | यानि कि हर घर का शोर शराबा दूसरे (पड़ोस के) घर के लोगों को डिस्टर्ब नहीं कर सकता.. मतलब दूरी इतनी कि आवाज़ वहां तक पहुँचने से पहले ही हवा में घुल जाए | सिर्फ़ यही नहीं हर दो घरों के बीच २-३ पेड़ भी हैं जो कि हर एक घर को दूसरे से आंशिक रूप से छुपा कर खड़े थे |
घर बहुत दिनों से खाली पड़ा था | पांच दिन पहले बात हुआ और तीन दिन पहले ही घर फाइनली बुक हो गया | टैक्सी के पीछे सामानों से लदी दो गाड़ियाँ आ कर खड़ी हो गईं | टैक्सी का पिछला गेट खुला और उससे बाहर निकली नीली साड़ी और मैचिंग शार्ट स्लीव ब्लाउज में... ‘आशा’... ‘आशा मुखर्जी..’ | गोरा रंग, कमर तक लम्बे काले बाल, आँखों पर बड़े आकार के गोल फ्रेम वाला चश्मा (गोगल्स), नाक पर फूल की आकार की छोटी सी नोज़पिन, गले पर पतली सोने की चेन जिसका थोड़ा हिस्सा साड़ी के पल्ले के नीचे है, सिर के बीचों बीच बालों को करीने से सेट कर लगाया हुआ काला हेयरबैंड, कंधे पर एक बड़ा सा हैंडबैग, हाथों में चूड़ियाँ और सामान्य ऊँचाई की हील वाले सैंडेल्स | सब कुछ आपस में मिलकर उसे एक परफेक्ट औरत बना रहे थे |
टैक्सी से उतर कर बाहर से ही कुछ देर तक घर को देखती रही | फिर एक लम्बा साँस छोड़ते हुए हल्का सा मुस्काई | फिर अपने ** साल के बेटे को ले कर, गाड़ी वालों को गाड़ी से सामान उतारने को कह कर घर की ओर कदम बढ़ाई | साथ में उसे घर दिलाने वाला एजेंट भी था | एजेंट घर के एक एक खासियत के बारे में अनर्गल बोले जा रहा था | आशा उसके कुछ बातों पर ध्यान देती और कुछ पर नहीं | अपने बेटे नीरज, जिसे प्यार से नीर कह कर बुलाती थी, नया घर लेने पर उसकी ख़ुशी को देख कर वह भी ख़ुश हो रही थी |
एजेंट ने घर का ताला खोला | धूल वगैरह कुछ नहीं सब साफ़ सुथरा.. एजेंट ने बताया की सब कल ही साफ़ करवाया है | एक बार पूरा घर अच्छे से घूम घूम कर दिखा देने और बाकि के ज़रूरी कागज़ी कामों को पूरा करने के पश्चात् वह चला गया | जाने से पहले उसने मेड के बारे में भी बता दिया जो की एक घंटे बाद पहुँचने वाली थी | आशा ने ही एजेंट से एक मेड दिलाने के बारे में बात की थी .. चूँकि वह खुद एक प्राइवेट कॉलेज में टीचर है इसलिए उसे करीब आठ से नौ घंटे तक कॉलेज में रहना पड़ता था | हालाँकि नीर भी उसी कॉलेज में पढ़ता है जिसमें आशा पढ़ाती है फिर भी कभी कभी नीर जल्दी छुट्टी होने के बाद भी आशा के छुट्टी होने तक स्टाफ रूम में रह कर खेला करता है तो कभी जल्दी घर आ जाता है | उसके जल्दी घर आ जाने पर घर में उसका ध्यान रखने वाला कोई तो चाहिए .. इसलिए आशा ने एक मेड रखवाई.. नीर का ध्यान रखने के साथ साथ वह घर के कामों में भी हाथ बंटा दिया करेगी |
सभी सामान अन्दर सही जगह रखवाने में करीब पौने दो घंटे बीत गए | फ़िर सबका बिल चुका कर, सबको विदा कर, अच्छे से दरवाज़ा बंद कर के वह दूसरी मंजिल के एक बालकनी में जा कर खड़ी हो गई | उसे उस बालकनी से दूर दूर तक अच्छा नज़ारा देखने को मिल रहा था | पेड़, पौधे, उनके बीच मौजूद कुछेक घर और उन घरों के खिड़कियों और छतों पर रखे छोटे बड़े गमलों में लगे तरह तरह के नन्हें पौधे .... हर जगह हरियाली ही हरियाली.. | आशा को हमेशा से ऐसे वातावरण ने आकर्षित किया है | स्वच्छ हवा, आँखों को तृप्त करती हरियाली युक्त हरे भरे पेड़ पौधे, सुबह और शाम मन को छू लेने वाली मंद मंद चलने वाली हवा ... आह: आत्मा को तो जैसे शांति ही मिल जाती है | नज़ारा देखते सोचते आशा की आँख बंद हो गई.. वह वहीँ आँखें बंद किए खड़ी रही .... वह जैसे अपने सामने के सम्पूर्ण प्रकृति, हरियाली और ताज़ा कर देने वाली हवा का सुखद अनुभूति लेते हुए ये सबकुछ अपने अन्दर समा लेना चाहती थी | कुछ पलों तक वह चुपचाप , आँखें बंद किए बिल्कुल स्थिर खड़ी रही | फिर एकदम से आँख खुली उसकी.. ओह नीर को खाना देना है.. वह तुरंत मुड़ कर जाने को हुई की अचानक से ठहर जाना पड़ा उसे | पलट कर देखी, दूर बगान में एक लड़का जांघ तक का एक हाफ पैंट और सेंडो गंजी में खड़ा उसी की तरफ़ एकटक नज़र से देख रहा था | हाथों में उसके मिट्टी जैसा कुछ था ... और पैरों के नीचे आस पास दो चार पौधे रखे थे.. रोपने के लिए.. |
उस लड़के को अपने तरफ़ उस निगाह से देखते हुए देख कर आशा थोड़ा सकपका गई | स्त्री सुलभ प्रवृत्ति के कारण जल्दी से उसने अपने शरीर पर एक हलकी नज़र दौड़ाई .. और ऐसा करते ही वह भौंचक्क सी रह गई | दरअसल हुआ यह कि जब वह आँखें बंद कर हवा का आनंद ले रही थी तब हवा के ही झोंकों से उसके साड़ी का एक पल्ला पूरी तरह एक ओर को हट गया था .. और इससे उसका ब्लाउज में कैद दाँया वक्ष सामने दृश्यमान हो गया था | ब्लाउज थोड़ा तंग होने के वजह से दोनों वक्षों के बीच बन रही घाटी ५ इंच सामने थी और स्तन का आकार भी उस ब्लाउज में खुद को संभाल पाने में खुद को पूरी तरह से अक्षम पा रहा था और इस कारण ऐसी स्थिति में उसके वक्ष किसी को भी दूर से अनावृत (नंगा) सा लग सकते हैं | गले में पड़ी सोने की चेन का अगला काफ़ी हिस्सा उस ५ इंच घाटी में समाया हुआ था जोकि आशा की सेक्सीनेस को कई गुना अधिक बढ़ा दे रहा था | बड़ी शर्म सी आई आशा को | खुद को जल्दी से ठीक की ... साड़ी के पल्ले को यथास्थान अच्छे से रख कर वो एक बार फ़िर सामने की ओर देखी ... लड़का अब भी उसी की तरफ़ देख रहा था | उम्र कुछ ख़ास नहीं होगी उस लड़के की | शायद दसवीं में पढ़ने वाला होगा | या शायद उससे थोड़ा कम. सिर पर गमछा सा एक कपड़ा बंधा था | चेहरे पर भोलापन .. पर जैसे वो देख रहा था; आशा को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा |
अंततः वह पलटी और अन्दर चली गई |
नीर को नाश्ता लगा कर आशा बेडरूम में आ कर निढाल सी बिस्तर पर पीठ के बल लेट गई ..| बहुत थक गई थी वह | लेटे लेटे ही पास रखे अपने हैंडबैग से एक छोटा सा एन्वेलोप निकाली और उसमें से एक फ़ोटो निकाल कर देखने लगी | फ़ोटो में वह थी, नीर था .... और था ‘अभय’... नीर के पापा.. उसके पति.. | कुछ देर तक एकटक देखती ही रही उस फ़ोटो को.. और न जाने ऐसा क्या हुआ जो उसके आँखों के किनारों में आँसू आ गए | पर आंसूओं को अधिक देर तक टिकने नहीं दी .. तुरंत ही पल्लू के आखिरी हिस्से से पोंछ ली | दरअसल बात क्या थी यह कोई नहीं जानता था | आशा के पति का आख़िर हुआ क्या था ? जीवित था या वे दोनों अलग हो गए थे.. या फिर तलाक़..? आशा ने कभी इस बारे में किसी से कोई बात नहीं की | कोई कितना भी पूछ ले, वह हमेशा बात को टाल जाती | कुछ समय तक तो माता पिता के साथ ही रही पर जब आस पड़ोस में तरह तरह की बातें होने लगीं और बेवजह कुछ बातें बनने भी लगीं, तब आशा ने शहर से दूर एक जगह पर इस घर को खरीद ली | पैसों की कमी न उसे थी और न उसके मा बाप को .. इसलिए घर लेने में किसी तरह की कोई समस्या नहीं हुई | दोनों घरों की बीच की दूरी कम से कम ५-६ घंटे की थी | आशा ने अच्छे से जानबूझ कर ही इतनी दूरी का चयन की थी ताकि जल्दी आना जाना न रहे | इससे वह वहां (माता पिता के घर के) के पड़ोसियों से भी दूर रहेगी, फालतू के बात बनाने वाले और ऐसे लोगों के समुदाय से भी दूर रहेगी |
बहुत शांति है यहाँ | शहर से इतनी दूर, न ध्वनि प्रदूषण , न वायु प्रदूषण | ऊपर से चारों तरफ़ हरियाली ही हरियाली |
ये सब सोचते सोचते आशा की आँखें बोझिल होने लगी | थकान से बदन भी टूट रहा था | उठ बैठी.. सोची, पहले नहा ले फ़िर कुछ खा लेने के बाद ही अच्छे से आराम करेगी | बिस्तर से उठ, कुछ कदम चलकर बगल में मौजूद ड्रेसिंग टेबल के आदमकद अंडाकार दर्पण के सामने जाकर खड़ी हो गई और अपने अप्रतिम सौन्दर्य को निहारने लगी | शादी और बच्चे होने के बाद भी इतने सालों में कुछ बदलाव आने के बावजूद उसका सौन्दर्य जैसे और भी निखर गया हो | जिस्म का हर उतार चढ़ाव और हरेक कटाव उसके जिस्मानी खूबसूरती में जैसे चार चाँद लगाते हैं | ऊपर से गदराई मांसल बदन.. उफ्फ्फ़.. कभी कभी तो उसे खुद से ही प्यार और ख़ुद से ही रश्क होने लगता है |
खुद को मंत्रमुग्ध सी देखती हुई उसने कंधे पर से साड़ी को ब्लाउज से पिन अप किए पिन को आहिस्ते से निकाला और पिन को एक ओर रखते हुए पल्लू को गिरा दिया | और पल्लू के गिरते ही सामने दृश्यमान हुआ उसकी भरी छाती से भरा ब्लाउज ... ५ इंच लम्बे क्लीवेज के साथ चूचियों के ऊपरी गोलाईयों को सख्ती से लिए उसके डीप कट ब्लाउज ने बखूबी उन्हें ऊपर उठा रखा था | ब्लाउज भी तंग और छोटी थी |
आशा अपने गोल, बड़े बड़े उभारों को देख, मंत्रमुग्ध सी होकर अपने दोनों हाथों से ब्लाउज के ऊपर से ही उभारों को दोनों साइड से हलके से बीच की ओर ठेलने लगी और उसके ऐसा करते ही सीने की ऊपरी हिस्से पर चूचियों की गोलाईयाँ और भी अधिक उभर आई और साथ ही एक लम्बी और गहरी घाटी बन आई दोनों चूचियों के मध्य |
अपने स्तनों की पुष्टता और क्लीवेज की लंबाई और गहराई को देख कर आशा के पूरे जिस्म में कामोत्त्जेना वाली एक गुदगुदी सी दौड़ गई और अपने शरीर के ऊपरी हिस्से के अप्रतिम सौन्दर्य को देख कर वह बुरी तरह शर्म से लाल होते हुए एक ‘आह’ भर उठी |
वह मुग्ध सी मादक यौवन से भरे अपने स्तनयुगल को किनारों से और ब्लाउज के ऊपर से सामने दिख रहे उनकी गोलाईयों को यूँ ही हौले से दबाने लगी | अपने ही नर्म, गदराए स्तनों का स्पर्श उसे एक अद्भुत रोमांच से भर दे रहा था | वह उस आदमकद अंडाकार दर्पण के सामने खड़ी रहते हुए अपने ही हाथों का कोमल स्पर्श अपने गोल, सुडौल, पुष्टता से परिपूर्ण नर्म, गदराए चूचियों पर लेते हुए आँखें बंद कर ली और इस छुअन का सुखद अनुभव करने लगी | ऐसा करते हुए उसके मन में यह विचार आने लगे कि, ‘ईश्वर ने ऐसी गौरवमयी अमूल्य संपत्ति उसके अतिरिक्त शायद किसी और को नहीं दी है |’
आँखें बंद किए आत्ममुग्धता में खोई आशा अपने उरोजों को दबाते सहलाते धीरे धीरे नीचे की ओर बढ़ी और अपनी मखमली सी नर्म पेट पर उसके हाथ ठहर गए | इतनी नर्म चिकनी पेट पर उसे खुद विश्वास नहीं हो रहा था | शादी के कुछ सालों बाद, बच्चा होने के बाद और एक कामकाजी महिला होने के बाद भी उसके जिस्म का रोम रोम अब भी चिकनाहट से भरा हुआ और एक परफेक्ट फ़िगर लिए है | मखमल पेट पर हाथ फेरते फेरते वह एक ऊँगली नाभि में ले गई.. गहरी गोल नाभि में ऊँगली का ऊपरी कुछ हिस्सा घुसा और फिर वैसे रखे ही गोल गोल घूमाने लगी ऊँगली को |
अभी वह अपनी नाभि की सुन्दर गोलाई और गहराई में डूबने ही वाली थी कि तभी खुली खिड़की से कमरे में हवा का झोंका थोड़ा तेज़ आया और इससे खिड़की पर ही पर्दों से लगा झालरनुमा पतले चेन से लगे धातु के छोटे छोटे परिंदे आपस में टकरा कर एक तेज़ पर मीठी ‘छन्नन्न’ से आवाज़ कर उठे और इससे आशा की यौन तन्द्रा भंग हुई | होश में लौटी हो जैसे मानो | अपनी स्थिति को देखकर बौखलाई भी और शरमाई भी | गाल सुर्ख लाल हो उठे शर्म से | जल्दी घूमी और पलंग पर रखे बैग से कपड़े और तौलिया वगैरह निकालने लगी | पल्लू अभी भी फ़र्श पर पड़ी है ... पर आशा के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं | कभी कभी बिना पल्लू के रहना उसे अच्छा लगता है | इससे वह खुद को बहुत उम्दा किस्म की फ़ील करती है | जैसे की, अभी बैग से कपड़े निकालते समय बिना पल्लू के तंग ब्लाउज में कैद उसकी बड़ी बड़ी चूचियाँ; गहरी क्लीवेज के साथ दाएँ बाएँ ऊपर नीचे हो कर नाच रहे हैं ... रह रह कर आशा की नज़रें अपनी नाचती अर्धनग्न चूचियों और डीप क्लीवेज पे जाती... जहां उसकी सोने की चेन क्लीवेज में कहीं खो कर रास्ता ढूँढ रही है .. और ये सब देखकर उसे खुद के एक जबरदस्त मादक, कमसीन, सेक्सी औरत होने का अहसास कराती |
खैर, कपड़े लेकर जल्दी से बाथरूम की ओर रवाना हुई और उससे पहले करीब ५ सेकंड के लिए रुक कर बाहर की ओर उभरे अपने पिछवाड़े और कमर पे थोड़ी चर्बी के कारण हो रहे एक कटावदार फोल्ड को हसरत भरी निगाहों से अच्छे से देखी | फ़िर झट से बाथरूम में घुस गई |
करीब २०-२५ मिनट बाद बाथरूम से निकली | भीगे बाल, भीगा बदन, बदन पर सिर्फ़ एक टॉवल लिपटा.. जो उसके ऊपरी सीने से शुरू हो कर नीचे जाँघों के मध्य भाग तक पहुँच रही थी | गोरी, गदराई गुदाज़ भीगे बदन पर वो नीली धारियों वाला सफ़ेद टॉवल बहुत फ़ब रहा था |
बाथरूम से निकल कर आईने के सामने फ़िर खड़ी हो गई | नहाने के बाद एक अलग ही ताज़गी फ़ील कर रही थी वह अब | दर्पण में चेहरा अब और भी खिला खिला सा लग रहा है | तीन-चार भीगे लट उसके चेहरे के किनारों पर बिख़र आए हैं; एकबार फ़िर उसे अपने आप पर बहुत प्यार आ गया | ख़ुद को किशोरावस्था को जस्ट पार करने वाली नवयौवना सी समझने लगी वह | और ऐसा ख्याल मन में आते ही एक हया की मुस्कान छा गई होंठों के दोनों किनारों पर ... और ऐसा होते ही मानो चार चाँद लग गए गोल गोरे मुखरे पर | और अधिक खिल सी गई ...
अभी अपनी ख़ूबसूरती में और भी डूबे रहने की तमन्ना थी उसे .. पर तभी एक ‘बीप’ की आवाज़ के साथ उसका फ़ोन घर्रा उठा.. हमेशा अपने फ़ोन को साउंड के साथ वाईब्रेट मोड पर रखती है आशा .. कारण शायद उसे भी नहीं पता | कोई मैसेज आया था शायद.. मैसेज आते ही उसका फ़ोन का लाइट जल उठता है | और अभी अभी ऐसा ही हुआ .. एक ही आवाज़ के साथ लाइट जल उठा | और इसलिए ऐसा होते ही आशा की नज़र फ़ोन पर पड़ी | चेहरे और बाँहों में लोशन लगाने के बाद इत्मीनान से ड्रेसिंग टेबल के पास से उठी और बिस्तर पर पड़े फ़ोन को उठा कर मैसेज चेक की |
मैसेज चेक करते ही उसका चेहरा छोटा हो गया... दिल बैठ सा गया.. | भूल कर भी भूल से जिसके बारे में नहीं सोचना चाहती थी उसी का मैसेज आया था |
--- ‘हाई स्वीटी, कैसी हो?’
--- ‘क्या कर रही हो.. आई होप मैंने तुम्हें डिस्टर्ब नहीं किया | क्या करूँ, दिल को तुम्हें याद करने से रोक तो नहीं सकता न!!’
--- ‘अच्छा, सुनो ना.. मैं क्या कह रहा था... आज तो तुम कॉलेज आओगी नहीं... इसलिए तुम्हारा दीदार भी होगा नहीं .. एक काम करो, अपना एक अच्छा सा फ़ोटो भेजो ना...’
--- ‘हैल्लो.. आर यू देयर? यू गेटिंग माय मैसेजेज़ ?’
--- ‘प्लीज़ डोंट बी रुड.. सेंड अ पिक.. ऍम वेटिंग..|’
कुल पाँच मैसेज थे .. और ये मैसेजेज़ भेजने वाला था ‘मि० रणधीर सिन्हा’ | आशा के कॉलेज का फाउंडर कम चेयरमैन | फ़िलहाल प्रिंसिपल की सीट के लिए उपयुक्त कैंडीडेट नहीं मिलने के कारण रणधीर ने ख़ुद ही काम चलाऊ टाइप प्रिंसिपल की जिम्मेदारियों को सम्भाल रखा था |
रणधीर कैसा पिक माँग रहा था यह अच्छे से समझ रही थी आशा | रणधीर या उसके जैसा इंसान आशा को बिल्कुल भी पसंद नहीं | यहाँ तक कि उसका नाम भी सुनना आशा को पसंद नहीं .. पर.. पर..
खैर,
एक छोटा टॉवल सिर पर बालों को समेट कर बाँधी.. ड्रेसिंग टेबल के दर्पण के सामने तिरछा खड़ी हुई .. कैमरा ऑन की.. २-३ पिक खींची और भेज दी |
अगले पाँच मिनट तक कोई मैसेज नहीं आया..
ये पिक्स रणधीर के लिए काफ़ी हैं सोच कर मोबाइल रख कर ड्रेस चेंज करने ही जा रही थी कि एक ‘बीप’ की आवाज़ फ़िर हुई.. आशा कोसते हुए फ़ोन उठाई..
---‘हाई.. पिक्स मिला तुम्हारा.. अभी अभी नहाई हो?? वाओ... सो सुपर्ब स्वीटी.. बट इट्स नॉट इनफ़ यू नो.. आई मेंट सेंड मी समथिंग हॉट.. | यू नो न; व्हाट आई मीन..??’
लंबी साँस छोड़ते हुए एक ठंडी आह भरी आशा ने | जिस बात का अंदाजा था बिल्कुल वही हुआ ... रणधीर ऐसे में ही ख़ुश होने वालों में नहीं था | उसे आशा के ‘न्यूड्स’ चाहिए !! .. आशा को पहले ही अंदाज़ा हो गया था कि रणधीर कैसी पिक्स भेजने की बात कर रहा है .. वह तो बस एक असफ़ल प्रयास कर रही थी बात को टालने के लिए | पर ये ‘भवितव्य:’ था... होना ही था ...
थोड़ा रुक कर वह फ़िर ड्रेसिंग टेबल के सामने गई.. सिर पर टॉवल को रहने दी.. बदन पर लिपटे टॉवल को धीरे से अलग किया ख़ुद से... ख़ुद तिरछी खड़ी हुई दर्पण के सामने | अपने पिछवाड़े को थोड़ा और बाहर निकाली, स्तनों का ज़रा सा अपने एक हाथ से ढकी और होंठों को इस तरह गोल की कि जैसे वह किस कर रही हो..
फ़िर दूसरा पिक वो ज़रा सामने से ली... सीधा हो कर ... अपनी हथेली और कलाई को सामने से अपने दोनों चूची पर ऐसे रखी जिससे की चूचियाँ, निप्पल सहित हल्का सा ढके पर आधे से ज़्यादा उभर कर ऊपर उठ जाए और एक लम्बा गहरा क्लीवेज सामने बन जाए.. |
फ़िर तीसरा पिक ली.. ये वाला लगभग दूसरे वाले पिक जैसा ही था पर इसमें वह थोड़ा पीछे हो कर मोबाइल को थोड़ा झुका कर ली.. इससे इस पिक में उसका पेट, गोल गहरी नाभि और कमर पर ठीकठाक परिमाण में जमी चर्बी भी नज़र आ गई |
तीनों ही पिक बड़े ज़बरदस्त सेक्सी और हॉट लग रहे थे.. एक बार को तो आशा भी गर्व से फूली ना समाई और होंठों के किनारों पर एक गर्वीली मुस्कान बिखर जाने से रोक भी न पाई | आशा गौर से थोड़ी देर अपनी पिक्स को देखती और इतराती रही .. फ़िर बड़े मन मसोस कर रणधीर को सेंड कर दी.. | पिक मिलने के मुश्किल से दो से तीन सेकंड हुए होंगे की रणधीर का मैसेज आ गया.. एक के बाद एक ... कुल तीन मैसेजेज़ ..
पहला दो मैसेज तो स्माइलीज़ और दिल से भरे थे .. तीसरा मैसेज यूँ था..
---‘ऊम्माह्ह्ह... वाओ... डार्लिंग आशा... यू आर जीनियस ... सो सो सो सो ब्यूटीफुल... अमेजिंग बॉडी यू हैव गोट.. आई लव यू... ऊम्माह्ह्ह्ह.... टेक केयर आशा बेबी.. सी यू टुमॉरो.. |’
मैसेज पढ़ कर भावहीन बुत सा खड़ी रही आशा.. मैसेज पढ़ कर रणधीर, उसका चेहरा, उसकी उम्र, नाम सब उसके आँखों के आगे जैसे तैरने से लगे.. मन घृणा से भर गया आशा का.. सिर को झटकते हुए मोबाइल को बिस्तर पर पटकी और चली गई चेंज करने.......|
क्रमशः
*****
स्क्रीच्चचचssssss….की आवाज़ के साथ एक टैक्सी आ कर रुकी एक घर के सामने | दो मंजिले का घर.. कुछ और कमियों के कारण बंगला बनते बनते रह गया | आगे एक लॉन जिसके बीचों बीच एक पतली सी जगह है जो खूबसूरत मार्बल्स से पटी पड़ी है जिससे चल कर घर के मुख्य दरवाज़े तक पहुँचा जा सकता है | ‘जस्ट पड़ोसी’ की बात की जाए तो जवाब हाँ में भी हो सकता है और ना में भी .. क्योंकि आस पास के घर कम से १५ से २० कदमों की दूरी पर हैं... या शायद उससे थोड़ा ज़्यादा | यानि कि हर घर का शोर शराबा दूसरे (पड़ोस के) घर के लोगों को डिस्टर्ब नहीं कर सकता.. मतलब दूरी इतनी कि आवाज़ वहां तक पहुँचने से पहले ही हवा में घुल जाए | सिर्फ़ यही नहीं हर दो घरों के बीच २-३ पेड़ भी हैं जो कि हर एक घर को दूसरे से आंशिक रूप से छुपा कर खड़े थे |
घर बहुत दिनों से खाली पड़ा था | पांच दिन पहले बात हुआ और तीन दिन पहले ही घर फाइनली बुक हो गया | टैक्सी के पीछे सामानों से लदी दो गाड़ियाँ आ कर खड़ी हो गईं | टैक्सी का पिछला गेट खुला और उससे बाहर निकली नीली साड़ी और मैचिंग शार्ट स्लीव ब्लाउज में... ‘आशा’... ‘आशा मुखर्जी..’ | गोरा रंग, कमर तक लम्बे काले बाल, आँखों पर बड़े आकार के गोल फ्रेम वाला चश्मा (गोगल्स), नाक पर फूल की आकार की छोटी सी नोज़पिन, गले पर पतली सोने की चेन जिसका थोड़ा हिस्सा साड़ी के पल्ले के नीचे है, सिर के बीचों बीच बालों को करीने से सेट कर लगाया हुआ काला हेयरबैंड, कंधे पर एक बड़ा सा हैंडबैग, हाथों में चूड़ियाँ और सामान्य ऊँचाई की हील वाले सैंडेल्स | सब कुछ आपस में मिलकर उसे एक परफेक्ट औरत बना रहे थे |
टैक्सी से उतर कर बाहर से ही कुछ देर तक घर को देखती रही | फिर एक लम्बा साँस छोड़ते हुए हल्का सा मुस्काई | फिर अपने ** साल के बेटे को ले कर, गाड़ी वालों को गाड़ी से सामान उतारने को कह कर घर की ओर कदम बढ़ाई | साथ में उसे घर दिलाने वाला एजेंट भी था | एजेंट घर के एक एक खासियत के बारे में अनर्गल बोले जा रहा था | आशा उसके कुछ बातों पर ध्यान देती और कुछ पर नहीं | अपने बेटे नीरज, जिसे प्यार से नीर कह कर बुलाती थी, नया घर लेने पर उसकी ख़ुशी को देख कर वह भी ख़ुश हो रही थी |
एजेंट ने घर का ताला खोला | धूल वगैरह कुछ नहीं सब साफ़ सुथरा.. एजेंट ने बताया की सब कल ही साफ़ करवाया है | एक बार पूरा घर अच्छे से घूम घूम कर दिखा देने और बाकि के ज़रूरी कागज़ी कामों को पूरा करने के पश्चात् वह चला गया | जाने से पहले उसने मेड के बारे में भी बता दिया जो की एक घंटे बाद पहुँचने वाली थी | आशा ने ही एजेंट से एक मेड दिलाने के बारे में बात की थी .. चूँकि वह खुद एक प्राइवेट कॉलेज में टीचर है इसलिए उसे करीब आठ से नौ घंटे तक कॉलेज में रहना पड़ता था | हालाँकि नीर भी उसी कॉलेज में पढ़ता है जिसमें आशा पढ़ाती है फिर भी कभी कभी नीर जल्दी छुट्टी होने के बाद भी आशा के छुट्टी होने तक स्टाफ रूम में रह कर खेला करता है तो कभी जल्दी घर आ जाता है | उसके जल्दी घर आ जाने पर घर में उसका ध्यान रखने वाला कोई तो चाहिए .. इसलिए आशा ने एक मेड रखवाई.. नीर का ध्यान रखने के साथ साथ वह घर के कामों में भी हाथ बंटा दिया करेगी |
सभी सामान अन्दर सही जगह रखवाने में करीब पौने दो घंटे बीत गए | फ़िर सबका बिल चुका कर, सबको विदा कर, अच्छे से दरवाज़ा बंद कर के वह दूसरी मंजिल के एक बालकनी में जा कर खड़ी हो गई | उसे उस बालकनी से दूर दूर तक अच्छा नज़ारा देखने को मिल रहा था | पेड़, पौधे, उनके बीच मौजूद कुछेक घर और उन घरों के खिड़कियों और छतों पर रखे छोटे बड़े गमलों में लगे तरह तरह के नन्हें पौधे .... हर जगह हरियाली ही हरियाली.. | आशा को हमेशा से ऐसे वातावरण ने आकर्षित किया है | स्वच्छ हवा, आँखों को तृप्त करती हरियाली युक्त हरे भरे पेड़ पौधे, सुबह और शाम मन को छू लेने वाली मंद मंद चलने वाली हवा ... आह: आत्मा को तो जैसे शांति ही मिल जाती है | नज़ारा देखते सोचते आशा की आँख बंद हो गई.. वह वहीँ आँखें बंद किए खड़ी रही .... वह जैसे अपने सामने के सम्पूर्ण प्रकृति, हरियाली और ताज़ा कर देने वाली हवा का सुखद अनुभूति लेते हुए ये सबकुछ अपने अन्दर समा लेना चाहती थी | कुछ पलों तक वह चुपचाप , आँखें बंद किए बिल्कुल स्थिर खड़ी रही | फिर एकदम से आँख खुली उसकी.. ओह नीर को खाना देना है.. वह तुरंत मुड़ कर जाने को हुई की अचानक से ठहर जाना पड़ा उसे | पलट कर देखी, दूर बगान में एक लड़का जांघ तक का एक हाफ पैंट और सेंडो गंजी में खड़ा उसी की तरफ़ एकटक नज़र से देख रहा था | हाथों में उसके मिट्टी जैसा कुछ था ... और पैरों के नीचे आस पास दो चार पौधे रखे थे.. रोपने के लिए.. |
उस लड़के को अपने तरफ़ उस निगाह से देखते हुए देख कर आशा थोड़ा सकपका गई | स्त्री सुलभ प्रवृत्ति के कारण जल्दी से उसने अपने शरीर पर एक हलकी नज़र दौड़ाई .. और ऐसा करते ही वह भौंचक्क सी रह गई | दरअसल हुआ यह कि जब वह आँखें बंद कर हवा का आनंद ले रही थी तब हवा के ही झोंकों से उसके साड़ी का एक पल्ला पूरी तरह एक ओर को हट गया था .. और इससे उसका ब्लाउज में कैद दाँया वक्ष सामने दृश्यमान हो गया था | ब्लाउज थोड़ा तंग होने के वजह से दोनों वक्षों के बीच बन रही घाटी ५ इंच सामने थी और स्तन का आकार भी उस ब्लाउज में खुद को संभाल पाने में खुद को पूरी तरह से अक्षम पा रहा था और इस कारण ऐसी स्थिति में उसके वक्ष किसी को भी दूर से अनावृत (नंगा) सा लग सकते हैं | गले में पड़ी सोने की चेन का अगला काफ़ी हिस्सा उस ५ इंच घाटी में समाया हुआ था जोकि आशा की सेक्सीनेस को कई गुना अधिक बढ़ा दे रहा था | बड़ी शर्म सी आई आशा को | खुद को जल्दी से ठीक की ... साड़ी के पल्ले को यथास्थान अच्छे से रख कर वो एक बार फ़िर सामने की ओर देखी ... लड़का अब भी उसी की तरफ़ देख रहा था | उम्र कुछ ख़ास नहीं होगी उस लड़के की | शायद दसवीं में पढ़ने वाला होगा | या शायद उससे थोड़ा कम. सिर पर गमछा सा एक कपड़ा बंधा था | चेहरे पर भोलापन .. पर जैसे वो देख रहा था; आशा को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा |
अंततः वह पलटी और अन्दर चली गई |
नीर को नाश्ता लगा कर आशा बेडरूम में आ कर निढाल सी बिस्तर पर पीठ के बल लेट गई ..| बहुत थक गई थी वह | लेटे लेटे ही पास रखे अपने हैंडबैग से एक छोटा सा एन्वेलोप निकाली और उसमें से एक फ़ोटो निकाल कर देखने लगी | फ़ोटो में वह थी, नीर था .... और था ‘अभय’... नीर के पापा.. उसके पति.. | कुछ देर तक एकटक देखती ही रही उस फ़ोटो को.. और न जाने ऐसा क्या हुआ जो उसके आँखों के किनारों में आँसू आ गए | पर आंसूओं को अधिक देर तक टिकने नहीं दी .. तुरंत ही पल्लू के आखिरी हिस्से से पोंछ ली | दरअसल बात क्या थी यह कोई नहीं जानता था | आशा के पति का आख़िर हुआ क्या था ? जीवित था या वे दोनों अलग हो गए थे.. या फिर तलाक़..? आशा ने कभी इस बारे में किसी से कोई बात नहीं की | कोई कितना भी पूछ ले, वह हमेशा बात को टाल जाती | कुछ समय तक तो माता पिता के साथ ही रही पर जब आस पड़ोस में तरह तरह की बातें होने लगीं और बेवजह कुछ बातें बनने भी लगीं, तब आशा ने शहर से दूर एक जगह पर इस घर को खरीद ली | पैसों की कमी न उसे थी और न उसके मा बाप को .. इसलिए घर लेने में किसी तरह की कोई समस्या नहीं हुई | दोनों घरों की बीच की दूरी कम से कम ५-६ घंटे की थी | आशा ने अच्छे से जानबूझ कर ही इतनी दूरी का चयन की थी ताकि जल्दी आना जाना न रहे | इससे वह वहां (माता पिता के घर के) के पड़ोसियों से भी दूर रहेगी, फालतू के बात बनाने वाले और ऐसे लोगों के समुदाय से भी दूर रहेगी |
बहुत शांति है यहाँ | शहर से इतनी दूर, न ध्वनि प्रदूषण , न वायु प्रदूषण | ऊपर से चारों तरफ़ हरियाली ही हरियाली |
ये सब सोचते सोचते आशा की आँखें बोझिल होने लगी | थकान से बदन भी टूट रहा था | उठ बैठी.. सोची, पहले नहा ले फ़िर कुछ खा लेने के बाद ही अच्छे से आराम करेगी | बिस्तर से उठ, कुछ कदम चलकर बगल में मौजूद ड्रेसिंग टेबल के आदमकद अंडाकार दर्पण के सामने जाकर खड़ी हो गई और अपने अप्रतिम सौन्दर्य को निहारने लगी | शादी और बच्चे होने के बाद भी इतने सालों में कुछ बदलाव आने के बावजूद उसका सौन्दर्य जैसे और भी निखर गया हो | जिस्म का हर उतार चढ़ाव और हरेक कटाव उसके जिस्मानी खूबसूरती में जैसे चार चाँद लगाते हैं | ऊपर से गदराई मांसल बदन.. उफ्फ्फ़.. कभी कभी तो उसे खुद से ही प्यार और ख़ुद से ही रश्क होने लगता है |
खुद को मंत्रमुग्ध सी देखती हुई उसने कंधे पर से साड़ी को ब्लाउज से पिन अप किए पिन को आहिस्ते से निकाला और पिन को एक ओर रखते हुए पल्लू को गिरा दिया | और पल्लू के गिरते ही सामने दृश्यमान हुआ उसकी भरी छाती से भरा ब्लाउज ... ५ इंच लम्बे क्लीवेज के साथ चूचियों के ऊपरी गोलाईयों को सख्ती से लिए उसके डीप कट ब्लाउज ने बखूबी उन्हें ऊपर उठा रखा था | ब्लाउज भी तंग और छोटी थी |
आशा अपने गोल, बड़े बड़े उभारों को देख, मंत्रमुग्ध सी होकर अपने दोनों हाथों से ब्लाउज के ऊपर से ही उभारों को दोनों साइड से हलके से बीच की ओर ठेलने लगी और उसके ऐसा करते ही सीने की ऊपरी हिस्से पर चूचियों की गोलाईयाँ और भी अधिक उभर आई और साथ ही एक लम्बी और गहरी घाटी बन आई दोनों चूचियों के मध्य |
अपने स्तनों की पुष्टता और क्लीवेज की लंबाई और गहराई को देख कर आशा के पूरे जिस्म में कामोत्त्जेना वाली एक गुदगुदी सी दौड़ गई और अपने शरीर के ऊपरी हिस्से के अप्रतिम सौन्दर्य को देख कर वह बुरी तरह शर्म से लाल होते हुए एक ‘आह’ भर उठी |
वह मुग्ध सी मादक यौवन से भरे अपने स्तनयुगल को किनारों से और ब्लाउज के ऊपर से सामने दिख रहे उनकी गोलाईयों को यूँ ही हौले से दबाने लगी | अपने ही नर्म, गदराए स्तनों का स्पर्श उसे एक अद्भुत रोमांच से भर दे रहा था | वह उस आदमकद अंडाकार दर्पण के सामने खड़ी रहते हुए अपने ही हाथों का कोमल स्पर्श अपने गोल, सुडौल, पुष्टता से परिपूर्ण नर्म, गदराए चूचियों पर लेते हुए आँखें बंद कर ली और इस छुअन का सुखद अनुभव करने लगी | ऐसा करते हुए उसके मन में यह विचार आने लगे कि, ‘ईश्वर ने ऐसी गौरवमयी अमूल्य संपत्ति उसके अतिरिक्त शायद किसी और को नहीं दी है |’
आँखें बंद किए आत्ममुग्धता में खोई आशा अपने उरोजों को दबाते सहलाते धीरे धीरे नीचे की ओर बढ़ी और अपनी मखमली सी नर्म पेट पर उसके हाथ ठहर गए | इतनी नर्म चिकनी पेट पर उसे खुद विश्वास नहीं हो रहा था | शादी के कुछ सालों बाद, बच्चा होने के बाद और एक कामकाजी महिला होने के बाद भी उसके जिस्म का रोम रोम अब भी चिकनाहट से भरा हुआ और एक परफेक्ट फ़िगर लिए है | मखमल पेट पर हाथ फेरते फेरते वह एक ऊँगली नाभि में ले गई.. गहरी गोल नाभि में ऊँगली का ऊपरी कुछ हिस्सा घुसा और फिर वैसे रखे ही गोल गोल घूमाने लगी ऊँगली को |
अभी वह अपनी नाभि की सुन्दर गोलाई और गहराई में डूबने ही वाली थी कि तभी खुली खिड़की से कमरे में हवा का झोंका थोड़ा तेज़ आया और इससे खिड़की पर ही पर्दों से लगा झालरनुमा पतले चेन से लगे धातु के छोटे छोटे परिंदे आपस में टकरा कर एक तेज़ पर मीठी ‘छन्नन्न’ से आवाज़ कर उठे और इससे आशा की यौन तन्द्रा भंग हुई | होश में लौटी हो जैसे मानो | अपनी स्थिति को देखकर बौखलाई भी और शरमाई भी | गाल सुर्ख लाल हो उठे शर्म से | जल्दी घूमी और पलंग पर रखे बैग से कपड़े और तौलिया वगैरह निकालने लगी | पल्लू अभी भी फ़र्श पर पड़ी है ... पर आशा के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं | कभी कभी बिना पल्लू के रहना उसे अच्छा लगता है | इससे वह खुद को बहुत उम्दा किस्म की फ़ील करती है | जैसे की, अभी बैग से कपड़े निकालते समय बिना पल्लू के तंग ब्लाउज में कैद उसकी बड़ी बड़ी चूचियाँ; गहरी क्लीवेज के साथ दाएँ बाएँ ऊपर नीचे हो कर नाच रहे हैं ... रह रह कर आशा की नज़रें अपनी नाचती अर्धनग्न चूचियों और डीप क्लीवेज पे जाती... जहां उसकी सोने की चेन क्लीवेज में कहीं खो कर रास्ता ढूँढ रही है .. और ये सब देखकर उसे खुद के एक जबरदस्त मादक, कमसीन, सेक्सी औरत होने का अहसास कराती |
खैर, कपड़े लेकर जल्दी से बाथरूम की ओर रवाना हुई और उससे पहले करीब ५ सेकंड के लिए रुक कर बाहर की ओर उभरे अपने पिछवाड़े और कमर पे थोड़ी चर्बी के कारण हो रहे एक कटावदार फोल्ड को हसरत भरी निगाहों से अच्छे से देखी | फ़िर झट से बाथरूम में घुस गई |
करीब २०-२५ मिनट बाद बाथरूम से निकली | भीगे बाल, भीगा बदन, बदन पर सिर्फ़ एक टॉवल लिपटा.. जो उसके ऊपरी सीने से शुरू हो कर नीचे जाँघों के मध्य भाग तक पहुँच रही थी | गोरी, गदराई गुदाज़ भीगे बदन पर वो नीली धारियों वाला सफ़ेद टॉवल बहुत फ़ब रहा था |
बाथरूम से निकल कर आईने के सामने फ़िर खड़ी हो गई | नहाने के बाद एक अलग ही ताज़गी फ़ील कर रही थी वह अब | दर्पण में चेहरा अब और भी खिला खिला सा लग रहा है | तीन-चार भीगे लट उसके चेहरे के किनारों पर बिख़र आए हैं; एकबार फ़िर उसे अपने आप पर बहुत प्यार आ गया | ख़ुद को किशोरावस्था को जस्ट पार करने वाली नवयौवना सी समझने लगी वह | और ऐसा ख्याल मन में आते ही एक हया की मुस्कान छा गई होंठों के दोनों किनारों पर ... और ऐसा होते ही मानो चार चाँद लग गए गोल गोरे मुखरे पर | और अधिक खिल सी गई ...
अभी अपनी ख़ूबसूरती में और भी डूबे रहने की तमन्ना थी उसे .. पर तभी एक ‘बीप’ की आवाज़ के साथ उसका फ़ोन घर्रा उठा.. हमेशा अपने फ़ोन को साउंड के साथ वाईब्रेट मोड पर रखती है आशा .. कारण शायद उसे भी नहीं पता | कोई मैसेज आया था शायद.. मैसेज आते ही उसका फ़ोन का लाइट जल उठता है | और अभी अभी ऐसा ही हुआ .. एक ही आवाज़ के साथ लाइट जल उठा | और इसलिए ऐसा होते ही आशा की नज़र फ़ोन पर पड़ी | चेहरे और बाँहों में लोशन लगाने के बाद इत्मीनान से ड्रेसिंग टेबल के पास से उठी और बिस्तर पर पड़े फ़ोन को उठा कर मैसेज चेक की |
मैसेज चेक करते ही उसका चेहरा छोटा हो गया... दिल बैठ सा गया.. | भूल कर भी भूल से जिसके बारे में नहीं सोचना चाहती थी उसी का मैसेज आया था |
--- ‘हाई स्वीटी, कैसी हो?’
--- ‘क्या कर रही हो.. आई होप मैंने तुम्हें डिस्टर्ब नहीं किया | क्या करूँ, दिल को तुम्हें याद करने से रोक तो नहीं सकता न!!’
--- ‘अच्छा, सुनो ना.. मैं क्या कह रहा था... आज तो तुम कॉलेज आओगी नहीं... इसलिए तुम्हारा दीदार भी होगा नहीं .. एक काम करो, अपना एक अच्छा सा फ़ोटो भेजो ना...’
--- ‘हैल्लो.. आर यू देयर? यू गेटिंग माय मैसेजेज़ ?’
--- ‘प्लीज़ डोंट बी रुड.. सेंड अ पिक.. ऍम वेटिंग..|’
कुल पाँच मैसेज थे .. और ये मैसेजेज़ भेजने वाला था ‘मि० रणधीर सिन्हा’ | आशा के कॉलेज का फाउंडर कम चेयरमैन | फ़िलहाल प्रिंसिपल की सीट के लिए उपयुक्त कैंडीडेट नहीं मिलने के कारण रणधीर ने ख़ुद ही काम चलाऊ टाइप प्रिंसिपल की जिम्मेदारियों को सम्भाल रखा था |
रणधीर कैसा पिक माँग रहा था यह अच्छे से समझ रही थी आशा | रणधीर या उसके जैसा इंसान आशा को बिल्कुल भी पसंद नहीं | यहाँ तक कि उसका नाम भी सुनना आशा को पसंद नहीं .. पर.. पर..
खैर,
एक छोटा टॉवल सिर पर बालों को समेट कर बाँधी.. ड्रेसिंग टेबल के दर्पण के सामने तिरछा खड़ी हुई .. कैमरा ऑन की.. २-३ पिक खींची और भेज दी |
अगले पाँच मिनट तक कोई मैसेज नहीं आया..
ये पिक्स रणधीर के लिए काफ़ी हैं सोच कर मोबाइल रख कर ड्रेस चेंज करने ही जा रही थी कि एक ‘बीप’ की आवाज़ फ़िर हुई.. आशा कोसते हुए फ़ोन उठाई..
---‘हाई.. पिक्स मिला तुम्हारा.. अभी अभी नहाई हो?? वाओ... सो सुपर्ब स्वीटी.. बट इट्स नॉट इनफ़ यू नो.. आई मेंट सेंड मी समथिंग हॉट.. | यू नो न; व्हाट आई मीन..??’
लंबी साँस छोड़ते हुए एक ठंडी आह भरी आशा ने | जिस बात का अंदाजा था बिल्कुल वही हुआ ... रणधीर ऐसे में ही ख़ुश होने वालों में नहीं था | उसे आशा के ‘न्यूड्स’ चाहिए !! .. आशा को पहले ही अंदाज़ा हो गया था कि रणधीर कैसी पिक्स भेजने की बात कर रहा है .. वह तो बस एक असफ़ल प्रयास कर रही थी बात को टालने के लिए | पर ये ‘भवितव्य:’ था... होना ही था ...
थोड़ा रुक कर वह फ़िर ड्रेसिंग टेबल के सामने गई.. सिर पर टॉवल को रहने दी.. बदन पर लिपटे टॉवल को धीरे से अलग किया ख़ुद से... ख़ुद तिरछी खड़ी हुई दर्पण के सामने | अपने पिछवाड़े को थोड़ा और बाहर निकाली, स्तनों का ज़रा सा अपने एक हाथ से ढकी और होंठों को इस तरह गोल की कि जैसे वह किस कर रही हो..
फ़िर दूसरा पिक वो ज़रा सामने से ली... सीधा हो कर ... अपनी हथेली और कलाई को सामने से अपने दोनों चूची पर ऐसे रखी जिससे की चूचियाँ, निप्पल सहित हल्का सा ढके पर आधे से ज़्यादा उभर कर ऊपर उठ जाए और एक लम्बा गहरा क्लीवेज सामने बन जाए.. |
फ़िर तीसरा पिक ली.. ये वाला लगभग दूसरे वाले पिक जैसा ही था पर इसमें वह थोड़ा पीछे हो कर मोबाइल को थोड़ा झुका कर ली.. इससे इस पिक में उसका पेट, गोल गहरी नाभि और कमर पर ठीकठाक परिमाण में जमी चर्बी भी नज़र आ गई |
तीनों ही पिक बड़े ज़बरदस्त सेक्सी और हॉट लग रहे थे.. एक बार को तो आशा भी गर्व से फूली ना समाई और होंठों के किनारों पर एक गर्वीली मुस्कान बिखर जाने से रोक भी न पाई | आशा गौर से थोड़ी देर अपनी पिक्स को देखती और इतराती रही .. फ़िर बड़े मन मसोस कर रणधीर को सेंड कर दी.. | पिक मिलने के मुश्किल से दो से तीन सेकंड हुए होंगे की रणधीर का मैसेज आ गया.. एक के बाद एक ... कुल तीन मैसेजेज़ ..
पहला दो मैसेज तो स्माइलीज़ और दिल से भरे थे .. तीसरा मैसेज यूँ था..
---‘ऊम्माह्ह्ह... वाओ... डार्लिंग आशा... यू आर जीनियस ... सो सो सो सो ब्यूटीफुल... अमेजिंग बॉडी यू हैव गोट.. आई लव यू... ऊम्माह्ह्ह्ह.... टेक केयर आशा बेबी.. सी यू टुमॉरो.. |’
मैसेज पढ़ कर भावहीन बुत सा खड़ी रही आशा.. मैसेज पढ़ कर रणधीर, उसका चेहरा, उसकी उम्र, नाम सब उसके आँखों के आगे जैसे तैरने से लगे.. मन घृणा से भर गया आशा का.. सिर को झटकते हुए मोबाइल को बिस्तर पर पटकी और चली गई चेंज करने.......|
क्रमशः
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