01-04-2021, 05:39 PM
कम्मो भौजी -
पहली होली देवर नन्दोई संग
" इतने जोर से नन्दोई के धक्के लग रहे थे , मैं समझ गयी नन्दोई जी को बुर चोदने से ज्यादा गाँड़ मारने में मजा मिलता है , और मारते भी खूब मजे से हैं रस ले ले कर , ...
और वैसे भी मैं अपनी ननद से , सास से दोनों से उनके बारे में सुन चुकी थी, पिछवाड़े के कितने बड़े रसिया हैं , दोनों ने , नन्दोई और नन्दोई के दोस्त ने जोबन भी एक एक बाँट लिया था , लेकिन साथ साथ जो मेरी ननदें चिढ़ा रही थीं छेड़ रही थीं , और जरा भी धक्के धीमे हुए ,
एक पल के लिए भी नन्दोई रुके तो मेरी और उनकी सास थीं न ललकारने के लिए , ... "
कम्मो भौजी एक मिनट के लिए चुप हो गयीं , लेकिन फिर बिना कुछ बोले मुस्कराने लगी ,...
मुझसे नहीं रहा गया , मैंने पूछ लिया ,... क्यों कोई ख़ास बात ,...
वो बोली नहीं, बस यादों में खोयी मुस्कराती रही,
मैंने फिर टोहका लगाया तो हँसते हुए बोली , ये बात मैंने किसी को आज तक नहीं बताई थी , लेकिन
मैंने बुरा सा मुंह बनाया ,... तो क्या मैं ' किसी को ' हूँ ,...
" तभी तो बता रही हूँ ,... " और कम्मो भौजी चालू हो गयीं।
मेरे दो राउंड के बाद , घंटो गाँव की नन्दोई की साली सलहज , मेरी ननदें , दोनों नन्दोई लोगों के साथ ,...
हाँ सफ़ेद रंग वाली होली सिर्फ मेरे साथ हुयी थी लेकिन उसके अलावा सब कुछ हुआ , कपडे फाड़ना , दबाना , मसलना , ऊँगली करना , मुठियाना ,...
उसके बाद दोनों ननदें सास , गाँव की औरतों के साथ और घरों में होली खेलने चली गयीं , नन्दोई के दोस्त भी अपने गाँव , पास ही ससुराल थी ननद की ,...
हाँ मैं और देवर वहीँ आँगन में।
नन्दोई थक गए थे तो अपने कमरे में ,
" तो "
मैंने बात आगे बढ़ाने के लिए हुंकारी भरी ,
और भौजी ने आगे बढ़ाई बात ,
" देवर का मुंह लटका हुआ था , मैं समझ गयी। नन्दोई दोनों ने दो दो बार वहीँ आंगन में , ... गाँव की भौजाइयों का भी पूरा जोर नन्दोईयों पर और ननदों का अपने जीजा और मेरे ऊपर , ... मैंने जाके पहले दरवाजा उसे दिखाते हुए बंद किया और उसके बगल में बैठ गयी ,
और चिढ़ाते हुए बोली
" अरे अब सब लोग चले गए हैं न अब होगी असली वाली देवर भाभी वाली होली , खाली हम तुम हैं डाल दो जहाँ डालना हो , जैसे डालना हो , जितना डालना हो "
" नहीं नहीं भौजी , हमको नहीं खेलनी " उसका मुंह जोर से लटका था।
" मत खेलो , लेकिन मुझे खेलनी है , और तुमसे नहीं अपने छोटे देवर से , .. "
और जबतक वो सम्हले , उसकी नेकर खींचकर , आँगन में गिरे रंग उठाकर , सीधे खूंटे पर , ...
मैं सिर्फ साडी पहने थी , पहने क्या बस लपेटे ,
बस एक झटका और मेरे दोनों जोबन रंग से लिपटे , खुल गए ,... और मैंने खुद उसका हाथ खिंच कर अपने उभारों पर ,.. बस थोड़ी देर पर मुस्कान आ गयी ,
हम दोनों की होली चालू हो गयी थी , खूंटा भी खड़ा हो गया था , उसे छेड़ते हुए मैंने बोला ,
मैंने उसे ललकारा भी चिढ़ाया भी, स्साले तेरी माँ बहन दोनों चोद दूंगी इसी आँगन में और तेरे सामने अगर नहीं चोदा तो ,
मैं उसको हलके हलके मुठिया रही थी , कभी कभी मुंह में लेकर भी ,
लेकिन स्साला एकदम कोरा था अपनी छोटी बहन की तरह ये मुझे अंदाज लग गया था।
" हे इतना मस्त खड़ा किये हो अभी तो तोहार छोटकी बहिनिया भी गाँव में पता नहीं केकरे साथ , तो इसका कुछ इस्तेमाल होगा की नहीं ,...अरे लाला चल आज मेरे साथ कर ले और आज इम्तहान में पास हो गया न तो कल अपनी छोटी ननद की भी दिलवा दूंगी, इसी आंगन में पक्का। अपने सामने। "
पहली होली देवर नन्दोई संग
" इतने जोर से नन्दोई के धक्के लग रहे थे , मैं समझ गयी नन्दोई जी को बुर चोदने से ज्यादा गाँड़ मारने में मजा मिलता है , और मारते भी खूब मजे से हैं रस ले ले कर , ...
और वैसे भी मैं अपनी ननद से , सास से दोनों से उनके बारे में सुन चुकी थी, पिछवाड़े के कितने बड़े रसिया हैं , दोनों ने , नन्दोई और नन्दोई के दोस्त ने जोबन भी एक एक बाँट लिया था , लेकिन साथ साथ जो मेरी ननदें चिढ़ा रही थीं छेड़ रही थीं , और जरा भी धक्के धीमे हुए ,
एक पल के लिए भी नन्दोई रुके तो मेरी और उनकी सास थीं न ललकारने के लिए , ... "
कम्मो भौजी एक मिनट के लिए चुप हो गयीं , लेकिन फिर बिना कुछ बोले मुस्कराने लगी ,...
मुझसे नहीं रहा गया , मैंने पूछ लिया ,... क्यों कोई ख़ास बात ,...
वो बोली नहीं, बस यादों में खोयी मुस्कराती रही,
मैंने फिर टोहका लगाया तो हँसते हुए बोली , ये बात मैंने किसी को आज तक नहीं बताई थी , लेकिन
मैंने बुरा सा मुंह बनाया ,... तो क्या मैं ' किसी को ' हूँ ,...
" तभी तो बता रही हूँ ,... " और कम्मो भौजी चालू हो गयीं।
मेरे दो राउंड के बाद , घंटो गाँव की नन्दोई की साली सलहज , मेरी ननदें , दोनों नन्दोई लोगों के साथ ,...
हाँ सफ़ेद रंग वाली होली सिर्फ मेरे साथ हुयी थी लेकिन उसके अलावा सब कुछ हुआ , कपडे फाड़ना , दबाना , मसलना , ऊँगली करना , मुठियाना ,...
उसके बाद दोनों ननदें सास , गाँव की औरतों के साथ और घरों में होली खेलने चली गयीं , नन्दोई के दोस्त भी अपने गाँव , पास ही ससुराल थी ननद की ,...
हाँ मैं और देवर वहीँ आँगन में।
नन्दोई थक गए थे तो अपने कमरे में ,
" तो "
मैंने बात आगे बढ़ाने के लिए हुंकारी भरी ,
और भौजी ने आगे बढ़ाई बात ,
" देवर का मुंह लटका हुआ था , मैं समझ गयी। नन्दोई दोनों ने दो दो बार वहीँ आंगन में , ... गाँव की भौजाइयों का भी पूरा जोर नन्दोईयों पर और ननदों का अपने जीजा और मेरे ऊपर , ... मैंने जाके पहले दरवाजा उसे दिखाते हुए बंद किया और उसके बगल में बैठ गयी ,
और चिढ़ाते हुए बोली
" अरे अब सब लोग चले गए हैं न अब होगी असली वाली देवर भाभी वाली होली , खाली हम तुम हैं डाल दो जहाँ डालना हो , जैसे डालना हो , जितना डालना हो "
" नहीं नहीं भौजी , हमको नहीं खेलनी " उसका मुंह जोर से लटका था।
" मत खेलो , लेकिन मुझे खेलनी है , और तुमसे नहीं अपने छोटे देवर से , .. "
और जबतक वो सम्हले , उसकी नेकर खींचकर , आँगन में गिरे रंग उठाकर , सीधे खूंटे पर , ...
मैं सिर्फ साडी पहने थी , पहने क्या बस लपेटे ,
बस एक झटका और मेरे दोनों जोबन रंग से लिपटे , खुल गए ,... और मैंने खुद उसका हाथ खिंच कर अपने उभारों पर ,.. बस थोड़ी देर पर मुस्कान आ गयी ,
हम दोनों की होली चालू हो गयी थी , खूंटा भी खड़ा हो गया था , उसे छेड़ते हुए मैंने बोला ,
मैंने उसे ललकारा भी चिढ़ाया भी, स्साले तेरी माँ बहन दोनों चोद दूंगी इसी आँगन में और तेरे सामने अगर नहीं चोदा तो ,
मैं उसको हलके हलके मुठिया रही थी , कभी कभी मुंह में लेकर भी ,
लेकिन स्साला एकदम कोरा था अपनी छोटी बहन की तरह ये मुझे अंदाज लग गया था।
" हे इतना मस्त खड़ा किये हो अभी तो तोहार छोटकी बहिनिया भी गाँव में पता नहीं केकरे साथ , तो इसका कुछ इस्तेमाल होगा की नहीं ,...अरे लाला चल आज मेरे साथ कर ले और आज इम्तहान में पास हो गया न तो कल अपनी छोटी ननद की भी दिलवा दूंगी, इसी आंगन में पक्का। अपने सामने। "