02-04-2019, 05:33 PM
(This post was last modified: 02-04-2021, 09:49 AM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
मैं जोर से चीखी-
“नहीं भौजी उधर नहीं…”
दर्द से कराहते मैं बोली।
![[Image: sixteen-assfingering1.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/sixteen-assfingering1.jpg)
बसंती ने दोनों अंगूठे से पिछवाड़े का छेद फैलाकर पूरी ताकत से मंझली उंगली ठेल दी थी। उसकी कलाई के पूरे जोर के बावजूद मुश्किल से पहला पोर घुस पाया था। बसंती बोली-
“बहुत कसी है अभी…”
और फिर उंगली निकाल के जब तक मैं सम्हलूं सीधे मेरे मुँह में, और कहा-
“चल तू मना कर रही थी तो उधर नहीं तो इधर, ज़रा कस-कसकर चूसो अबकी पूरी उंगली घुसाऊँगी…”
और मैं जोर-जोर से चूसने लगी। अभी कुछ देर पहले ही तो अजय का इत्ता मोटा लम्बा चूसा था, अचानक याद आया की ये उंगली कहाँ से निकली है अभी… लेकिन बंसती से पार पाना आसान है क्या”
मैं गों गों करती रही, लेकिन उसने जड़ तक उंगली ठूंस दी। और जब निकाली तो फिर जड़ तक सीधे गाण्ड में, और अबकी मैं और जोर से चीखी, लेकिन बंसती बोली-
“तेरी गाण्ड मारने वाले ने ठीक से नहीं मारी, रहम दिखा दी…”
और फिर दूसरी उंगली भी घुसाने की कोशिश करने लगी।
बसंती भौजी की कोशिश और नाकमयाब हो, ऐसा हो नहीं सकता। चाहे लाख चीख चिल्लाहट मचे, और कुछ ही देर में बसंती की एक नहीं दो उँगलियां मेरी कसी गाण्ड के अंदर, पूरी नहीं सिर्फ दो पोर। जितना सुनील के मोटा सुपाड़ा पेलने पे दर्द हुआ था उससे कम नहीं हुआ, और मैं चीखी भी उतनी ही।
![[Image: assfingering5.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/assfingering5.jpg)
लेकिन बसंती पे कुछ फरक न पड़ा, वो गरियाती रही, जिसने मेरी गाण्ड मारी उसको-
“अरे लागत है बहुत हल्के-हल्के गाण्ड मारी है उसने तेरी, हचक-हचक के जबतक लौड़ा गाण्ड में न ठेले…”
बात उसकी सही थी, शुरू में तो मेरे चीखने चिल्लाने से सुनील ने आधे लण्ड से ही,
वो तो साल्ली छिनार चन्दा, उसने गाली देकर, जोश दिला के सुनील का पूरा लण्ड पेलवाया।
“बिना बेरहमी और जबरदस्ती के कौनो क गाण्ड पहली बार नहीं मारी जा सकती। और तुम्हारी ऐसी मस्त गाण्ड बनी ही मारने के लिए है…”
बसंती गोल-गोल दोनों उंगलियां घुमा रही थी और बोले जा रही थी-
“अरे गाण्ड मरवावे का असल मजा तो तब है कि तू खुदै गाण्ड फैलाकर मोटे खूंटे पे बैठ जाओ।
![[Image: anal-sitting-G.gif]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/anal-sitting-G.gif)
लेकिन ई तब होई जब हचक-हचक के कौनो मर्दन से, तब असल में गाण्ड मरौवल का मजा आई। देखा चोदे और गाण्ड मारे में बहुत फरक है, चोदे के समय धक्के पे धक्का, जोर-जोर से तोहार जइसन कच्ची कली क चूत फटी। लेकिन गाण्ड मारे में एक बार डालकर पूरी ताकत से ठेलना पड़ता है। जब तक गाण्ड क छल्ला न पार हो जाय…”
बसंती की बात में दम था।
लेकिन तब तक उसकी दोनों उँगलियां मेरी गाण्ड के छल्ले को पार कर चुकी थीं और उसने कैंची की तरह उसे फैला दिया, तो गाण्ड का छल्ला उतना फैल गया जितना सुनील के मोटे लण्ड ने भी नहीं फैलाया था। और यही नहीं उन फैली खुली उँगलियों को वो धीरे-धीरे आगे पीछे कर रही थी।
और मैं जोर-जोर से चीख रही थी।
लेकिन बसंती सिर्फ दर्द देना नहीं जानती थी बल्की मजे देना भी, और मौके का फायदा उठाना भी। जब मैं दर्द से दुहरी हो रही थी, उसने मेरा कुर्ता कंधे तक उठा दिया और अब मेरे गोल-गोल गुदाज उभार भी खुले हुए थे।
![[Image: boobs-s-tumblr_nso25e9bpw1sajoh5o1_500.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/boobs-s-tumblr_nso25e9bpw1sajoh5o1_500.jpg)
एक हाथ उन खुले उभारों को कभी पकड़ता, कभी सहलाता, कभी दबाता। कभी निपल जोर से पकड़कर वो पुल कर देती।
और कब दर्द मजे में बदल गया मुझे पता ही नहीं चला। साथ में नीचे की मंजिल पे अब दुहरा हमला हो रहा था। एक हाथ की हथेली मेरी चूत पे रगड़-घिस्स कर रही थी और दूसरे हाथ का हमला मेरे पिछवाड़े बदस्तूर जारी था। गाण्ड में घुसी अंगुलिया गोल-गोल घूम रही थीं, खरोंच रही थीं और जब वो वहां से निकली तो सीधे नीचे वाले मुँह से ऊपर वाले मुँह में… और हलक तक।
बसंती से कौन जीत सका है आज तक। और बात बदलने में भी और केयर करने दोनों में बसंती नंबर एक। वो बोली-
“चलो अब थोड़ा मालिश कर दूँ, सारा दर्द एकदम गायब हो जाएगा। फिर खाना…”
बसंती दर्द देने में भी माहिर थी और दर्द दूर करने में, लेकिन मजा दोनों हालत में आता था। मेरी टाइट शलवार अब आलमोस्ट उतर चुकी थी और कुरता बस कंधों तक सिमटा पड़ा था। मैं पेट के बल लेटी थी, मेरे खुले गोरे गदराये उरोज चटाई पर दबे, और मस्त नितम्ब उभरे हुए। बसंती ने कहा-
“हे सर पे कड़ा-कड़ा लग रहा है, ये लगा लो…”
बसंती ने अपना ब्लाउज उतार के मेरे सर के नीचे रख दिया और तेल लगी उसकी उँगलियां मेरे कंधे दबाने लगी और थोड़ी ही देर में उन उँगलियों ने मेरी देह की सारी थकान, सब दर्द, जिस तरह सुनील और अजय ने मिलकर मुझे रगड़ा था, सब गायब। बस हल्की-हल्की नींद सी मेरी आँखों में छा रही थी।
लेकिन मुझे लग रहा था जल्द ही बसंती की उँगलियां फिर एक बार, वहीं पहुँच जाएंगी… और फिर मस्ती में मेरी देह… लेकिन बसंती तड़पाने और तरसाने में भी उतनी ही माहिर थी जितनी जवानी की आग लगाने में।
कन्धों के बाद उसके दोनों हाथ मेरी पीठ को मींजते-मींजते जब कूल्हों तक आये तो मुझे लगा की अब, अब… लेकिन बसंती तो बसंती, उसने दोनों कूल्हों को जोर-जोर से दबाया, मेरे नितम्बों का सारा दर्द निकाल दिया और यहाँ तक की जब उसने जोर से दोनों हाथों से दोनों नितम्बों को फैलाकर मेरे पिछवाड़े के छेद को पूरी ताकत से फैलाया, मुझे लगा अब फिर से…
लेकिन नहीं, उसके हाथ अब सीधे सरक के मेरी जाँघों और टखनों तक पहुँच गए थे। मेरे पैरों का सारा दर्द उसकी उँगलियों ने जैसे चूस लिया था। और ‘वो वाली’ फीलिंग मुझे उसकी उँगलियों ने नहीं, बल्की उसके गदराये भरे-भरे ठोस उरोजों ने दी जब हल्के से उसने, अपने उभारों को मेरी पान ऐसी चिकनी पीठ पे हल्के से सहलाया और, धीरे-धीरे नीचे की ओर।
एक बार फिर उसकी उँगलिया मेरे भरे-भरे चूतड़ों पे थीं। और अबकी वो जोर-जोर से उसे दबा रही थी, मसल रही थी, कोई मर्द क्या मसलेगा ऐसे, और साथ में उसके जोबन मेरी पीठ पे।
एक बार उसने फिर गाण्ड के छेद को, और अबकी पहले से भी जोर से…
![[Image: asshole-12921396.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/asshole-12921396.jpg)
जब अच्छी तरह छेद खुल गया तो सीधे कटोरी से, टप-टप-टप, कड़वे तेल की बूँदें, एक के बाद एक। एक चौथाई कटोरी तो मेरी गाण्ड में उसने डाल दिया होगा।
कड़वे तेल का असर होना तुरंत शुरू हो गया, छरछराना लेकिन मुझे मालूम था मुझे क्या करना है और मैंने जोर से गाण्ड भींच ली।
लेकिन असली असर था, बंसती की उँगलियों का। जैसे ही मैंने गाण्ड का छेद भींचा, बसंती की तेल से सनी गदोरी सीधे मेरी चुनमुनिया पर, जिसके अंदर अभी भी अजय की गाढ़ी-गाढ़ी रसीली मलाई बची थी। और हल्के से सहलाने के साथ बसंती की अनुभवी हथेली ने मेरी चिकनी चमेली को धीमे-धीमे भींचना शुरू कर दिया।
मस्ती से मेरी आँखें भिंच गयीं, कड़वे तेल का छरछराना परपराना सब मैं भूल गई। और जैसे चूत की रगड़ाई काफी नहीं थी, बसंती के दूसरे हाथ ने हल्के से मेरी चूची को पकड़ा और दबाना, रगड़ना, मसलना सब कुछ चालू हो गया।
असर ये हुआ की गाण्ड के अंदर का छरछराना परपराना मैं सब भूल गई। पांच दस मिनट में ही मस्ती में चूर।
लेकिन कड़वा तेल अंदर अपना काम कर रहा था, खास तौर से गाण्ड के छल्ले पर, जहाँ सुनील के मोटे लण्ड ने उसे फैलाकर, जब वह रगड़ते दरेरते घुसता था, लगता था अंदर कहीं-कहीं छिल भी गया था। और जब मुझे लगा कि मैं एक बार फिर झड़ने के कगार पे हूँ, चूत की पुत्तियां अपने आप जोर-जोर से भिंच रही थीं, लग रहा था अब कि तब।
तब तक बसंती ने अपने दोनों हाथ हटा लिए और मेरी पतली कमर पकड़कर मुझे फिर डागी पोज में कर दिया। घुटने दोनों मुड़े हुए और चटाई पर, चूतड़ हवा में, और कहा-
![[Image: ass-hole-G-tumblr_mvvncshjmr1skt25fo2_400.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/ass-hole-G-tumblr_mvvncshjmr1skt25fo2_400.jpg)
“हाँ बस ऐसे ही, जइसन गाण्ड मरवावे बदे गंड़िया उठाये रहलूं न, बस एकदम वैसे…” और वो गायब।
और लौटी तो उसके हाथ में एक शीशी थी, और उसमें कुछ सफेद मलाई जैसा।
बिना कुछ कहे पिछवाड़े का छेद उसने फैलाया और सीधे वो शीशी से मेरी गाण्ड में, और कहा-
“अरे ई कामिनी भाभी क स्पेशल क्रीम है, खास गाण्ड फड़वाने के बाद के लिए बस एका घोंट लो, और दस मिनट अइसे गाण्ड उठाय के रहो, कुल दर्द गायब। और तब तक हम खाना ले आते हैं…”
बंसती की बात एकदम सही थी, एकदम ठंडा, पूरा अंदर तक। और कुछ ही देर में सारी चिलख, दर्द, परपराना सब गायब। मैं पिछवाड़े का छेद भींचे, एकदम चुपचाप वैसे ही पेट के बल लेटी रही।
ये तो मुझे बहुत बाद में पता चला की कामिनी भाभी की वो क्रीम, दर्द तो एकदम गायब कर देती थी, अंदर कुछ चोट खरोंच हो तो उसके लिए भी एंटी-सेप्टिक का काम करती थी, लेकिन साथ में दो काम और करती थी। एक तो वो गाण्ड को फिर से पहले जैसा ही टाइट कर देती थी, जैसे उसके अंदर कुछ गया ही न हो… एकदम कसी कच्ची कली की तरह। लेकिन दूसरी चीज और खतरनाक थी, उसमें कुछ ऐसा पड़ा था की कुछ देर बाद ही गाण्ड में बड़े-बड़े चींटे काटने लगते थे, और बस मन करता था कि कोई हचक के मोटा, लम्बा पूरा अंदर तक पेल दे।
और जब बसंती दस की जगह पंद्रह मिनट में लौटी, हाथ में थाली लिए तो, बिना ब्लाउज के भी साड़ी को उसने अपने उभारों पे ऐसे लपेट के रखा था…
![[Image: Boobs-jethani-Champa-...18010724_2338528...4516_n.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/Boobs-jethani-Champa-...18010724_233852817092538_633259225389824516_n.jpg)
बस थोड़ा-थोड़ा दिखता लेकिन हाँ कटाव उभार सब महसूस होता था। और मेरे बगल में बैठ गयीं, धम्म से।
शरारत में मैं कौन बसंती भौजी से कम थी। उसके दोनों गरमागरम जलेबी की तरह रसभरे उभार, साड़ी से झलक रहे थे, और मैंने एक झटके में उसकी साड़ी खींच दी, और कहा-
“काहे भौजी, का छिपायी हो, उहौ आपन ननदी से…”
और दोनों उभार छलक कर बाहर, जितने बड़े-बड़े उतने ही कड़े-कड़े और ऊपर से दोनों घुन्डियां, एकदम खड़ी।
“नहीं भौजी उधर नहीं…”
दर्द से कराहते मैं बोली।
![[Image: sixteen-assfingering1.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/sixteen-assfingering1.jpg)
बसंती ने दोनों अंगूठे से पिछवाड़े का छेद फैलाकर पूरी ताकत से मंझली उंगली ठेल दी थी। उसकी कलाई के पूरे जोर के बावजूद मुश्किल से पहला पोर घुस पाया था। बसंती बोली-
“बहुत कसी है अभी…”
और फिर उंगली निकाल के जब तक मैं सम्हलूं सीधे मेरे मुँह में, और कहा-
“चल तू मना कर रही थी तो उधर नहीं तो इधर, ज़रा कस-कसकर चूसो अबकी पूरी उंगली घुसाऊँगी…”
और मैं जोर-जोर से चूसने लगी। अभी कुछ देर पहले ही तो अजय का इत्ता मोटा लम्बा चूसा था, अचानक याद आया की ये उंगली कहाँ से निकली है अभी… लेकिन बंसती से पार पाना आसान है क्या”
मैं गों गों करती रही, लेकिन उसने जड़ तक उंगली ठूंस दी। और जब निकाली तो फिर जड़ तक सीधे गाण्ड में, और अबकी मैं और जोर से चीखी, लेकिन बंसती बोली-
“तेरी गाण्ड मारने वाले ने ठीक से नहीं मारी, रहम दिखा दी…”
और फिर दूसरी उंगली भी घुसाने की कोशिश करने लगी।
बसंती भौजी की कोशिश और नाकमयाब हो, ऐसा हो नहीं सकता। चाहे लाख चीख चिल्लाहट मचे, और कुछ ही देर में बसंती की एक नहीं दो उँगलियां मेरी कसी गाण्ड के अंदर, पूरी नहीं सिर्फ दो पोर। जितना सुनील के मोटा सुपाड़ा पेलने पे दर्द हुआ था उससे कम नहीं हुआ, और मैं चीखी भी उतनी ही।
![[Image: assfingering5.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/assfingering5.jpg)
लेकिन बसंती पे कुछ फरक न पड़ा, वो गरियाती रही, जिसने मेरी गाण्ड मारी उसको-
“अरे लागत है बहुत हल्के-हल्के गाण्ड मारी है उसने तेरी, हचक-हचक के जबतक लौड़ा गाण्ड में न ठेले…”
बात उसकी सही थी, शुरू में तो मेरे चीखने चिल्लाने से सुनील ने आधे लण्ड से ही,
वो तो साल्ली छिनार चन्दा, उसने गाली देकर, जोश दिला के सुनील का पूरा लण्ड पेलवाया।
“बिना बेरहमी और जबरदस्ती के कौनो क गाण्ड पहली बार नहीं मारी जा सकती। और तुम्हारी ऐसी मस्त गाण्ड बनी ही मारने के लिए है…”
बसंती गोल-गोल दोनों उंगलियां घुमा रही थी और बोले जा रही थी-
“अरे गाण्ड मरवावे का असल मजा तो तब है कि तू खुदै गाण्ड फैलाकर मोटे खूंटे पे बैठ जाओ।
![[Image: anal-sitting-G.gif]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/anal-sitting-G.gif)
लेकिन ई तब होई जब हचक-हचक के कौनो मर्दन से, तब असल में गाण्ड मरौवल का मजा आई। देखा चोदे और गाण्ड मारे में बहुत फरक है, चोदे के समय धक्के पे धक्का, जोर-जोर से तोहार जइसन कच्ची कली क चूत फटी। लेकिन गाण्ड मारे में एक बार डालकर पूरी ताकत से ठेलना पड़ता है। जब तक गाण्ड क छल्ला न पार हो जाय…”
बसंती की बात में दम था।
लेकिन तब तक उसकी दोनों उँगलियां मेरी गाण्ड के छल्ले को पार कर चुकी थीं और उसने कैंची की तरह उसे फैला दिया, तो गाण्ड का छल्ला उतना फैल गया जितना सुनील के मोटे लण्ड ने भी नहीं फैलाया था। और यही नहीं उन फैली खुली उँगलियों को वो धीरे-धीरे आगे पीछे कर रही थी।
और मैं जोर-जोर से चीख रही थी।
लेकिन बसंती सिर्फ दर्द देना नहीं जानती थी बल्की मजे देना भी, और मौके का फायदा उठाना भी। जब मैं दर्द से दुहरी हो रही थी, उसने मेरा कुर्ता कंधे तक उठा दिया और अब मेरे गोल-गोल गुदाज उभार भी खुले हुए थे।
![[Image: boobs-s-tumblr_nso25e9bpw1sajoh5o1_500.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/boobs-s-tumblr_nso25e9bpw1sajoh5o1_500.jpg)
एक हाथ उन खुले उभारों को कभी पकड़ता, कभी सहलाता, कभी दबाता। कभी निपल जोर से पकड़कर वो पुल कर देती।
और कब दर्द मजे में बदल गया मुझे पता ही नहीं चला। साथ में नीचे की मंजिल पे अब दुहरा हमला हो रहा था। एक हाथ की हथेली मेरी चूत पे रगड़-घिस्स कर रही थी और दूसरे हाथ का हमला मेरे पिछवाड़े बदस्तूर जारी था। गाण्ड में घुसी अंगुलिया गोल-गोल घूम रही थीं, खरोंच रही थीं और जब वो वहां से निकली तो सीधे नीचे वाले मुँह से ऊपर वाले मुँह में… और हलक तक।
बसंती से कौन जीत सका है आज तक। और बात बदलने में भी और केयर करने दोनों में बसंती नंबर एक। वो बोली-
“चलो अब थोड़ा मालिश कर दूँ, सारा दर्द एकदम गायब हो जाएगा। फिर खाना…”
बसंती दर्द देने में भी माहिर थी और दर्द दूर करने में, लेकिन मजा दोनों हालत में आता था। मेरी टाइट शलवार अब आलमोस्ट उतर चुकी थी और कुरता बस कंधों तक सिमटा पड़ा था। मैं पेट के बल लेटी थी, मेरे खुले गोरे गदराये उरोज चटाई पर दबे, और मस्त नितम्ब उभरे हुए। बसंती ने कहा-
“हे सर पे कड़ा-कड़ा लग रहा है, ये लगा लो…”
बसंती ने अपना ब्लाउज उतार के मेरे सर के नीचे रख दिया और तेल लगी उसकी उँगलियां मेरे कंधे दबाने लगी और थोड़ी ही देर में उन उँगलियों ने मेरी देह की सारी थकान, सब दर्द, जिस तरह सुनील और अजय ने मिलकर मुझे रगड़ा था, सब गायब। बस हल्की-हल्की नींद सी मेरी आँखों में छा रही थी।
लेकिन मुझे लग रहा था जल्द ही बसंती की उँगलियां फिर एक बार, वहीं पहुँच जाएंगी… और फिर मस्ती में मेरी देह… लेकिन बसंती तड़पाने और तरसाने में भी उतनी ही माहिर थी जितनी जवानी की आग लगाने में।
कन्धों के बाद उसके दोनों हाथ मेरी पीठ को मींजते-मींजते जब कूल्हों तक आये तो मुझे लगा की अब, अब… लेकिन बसंती तो बसंती, उसने दोनों कूल्हों को जोर-जोर से दबाया, मेरे नितम्बों का सारा दर्द निकाल दिया और यहाँ तक की जब उसने जोर से दोनों हाथों से दोनों नितम्बों को फैलाकर मेरे पिछवाड़े के छेद को पूरी ताकत से फैलाया, मुझे लगा अब फिर से…
लेकिन नहीं, उसके हाथ अब सीधे सरक के मेरी जाँघों और टखनों तक पहुँच गए थे। मेरे पैरों का सारा दर्द उसकी उँगलियों ने जैसे चूस लिया था। और ‘वो वाली’ फीलिंग मुझे उसकी उँगलियों ने नहीं, बल्की उसके गदराये भरे-भरे ठोस उरोजों ने दी जब हल्के से उसने, अपने उभारों को मेरी पान ऐसी चिकनी पीठ पे हल्के से सहलाया और, धीरे-धीरे नीचे की ओर।
एक बार फिर उसकी उँगलिया मेरे भरे-भरे चूतड़ों पे थीं। और अबकी वो जोर-जोर से उसे दबा रही थी, मसल रही थी, कोई मर्द क्या मसलेगा ऐसे, और साथ में उसके जोबन मेरी पीठ पे।
एक बार उसने फिर गाण्ड के छेद को, और अबकी पहले से भी जोर से…
![[Image: asshole-12921396.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/asshole-12921396.jpg)
जब अच्छी तरह छेद खुल गया तो सीधे कटोरी से, टप-टप-टप, कड़वे तेल की बूँदें, एक के बाद एक। एक चौथाई कटोरी तो मेरी गाण्ड में उसने डाल दिया होगा।
कड़वे तेल का असर होना तुरंत शुरू हो गया, छरछराना लेकिन मुझे मालूम था मुझे क्या करना है और मैंने जोर से गाण्ड भींच ली।
लेकिन असली असर था, बंसती की उँगलियों का। जैसे ही मैंने गाण्ड का छेद भींचा, बसंती की तेल से सनी गदोरी सीधे मेरी चुनमुनिया पर, जिसके अंदर अभी भी अजय की गाढ़ी-गाढ़ी रसीली मलाई बची थी। और हल्के से सहलाने के साथ बसंती की अनुभवी हथेली ने मेरी चिकनी चमेली को धीमे-धीमे भींचना शुरू कर दिया।
मस्ती से मेरी आँखें भिंच गयीं, कड़वे तेल का छरछराना परपराना सब मैं भूल गई। और जैसे चूत की रगड़ाई काफी नहीं थी, बसंती के दूसरे हाथ ने हल्के से मेरी चूची को पकड़ा और दबाना, रगड़ना, मसलना सब कुछ चालू हो गया।
असर ये हुआ की गाण्ड के अंदर का छरछराना परपराना मैं सब भूल गई। पांच दस मिनट में ही मस्ती में चूर।
लेकिन कड़वा तेल अंदर अपना काम कर रहा था, खास तौर से गाण्ड के छल्ले पर, जहाँ सुनील के मोटे लण्ड ने उसे फैलाकर, जब वह रगड़ते दरेरते घुसता था, लगता था अंदर कहीं-कहीं छिल भी गया था। और जब मुझे लगा कि मैं एक बार फिर झड़ने के कगार पे हूँ, चूत की पुत्तियां अपने आप जोर-जोर से भिंच रही थीं, लग रहा था अब कि तब।
तब तक बसंती ने अपने दोनों हाथ हटा लिए और मेरी पतली कमर पकड़कर मुझे फिर डागी पोज में कर दिया। घुटने दोनों मुड़े हुए और चटाई पर, चूतड़ हवा में, और कहा-
![[Image: ass-hole-G-tumblr_mvvncshjmr1skt25fo2_400.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/ass-hole-G-tumblr_mvvncshjmr1skt25fo2_400.jpg)
“हाँ बस ऐसे ही, जइसन गाण्ड मरवावे बदे गंड़िया उठाये रहलूं न, बस एकदम वैसे…” और वो गायब।
और लौटी तो उसके हाथ में एक शीशी थी, और उसमें कुछ सफेद मलाई जैसा।
बिना कुछ कहे पिछवाड़े का छेद उसने फैलाया और सीधे वो शीशी से मेरी गाण्ड में, और कहा-
“अरे ई कामिनी भाभी क स्पेशल क्रीम है, खास गाण्ड फड़वाने के बाद के लिए बस एका घोंट लो, और दस मिनट अइसे गाण्ड उठाय के रहो, कुल दर्द गायब। और तब तक हम खाना ले आते हैं…”
बंसती की बात एकदम सही थी, एकदम ठंडा, पूरा अंदर तक। और कुछ ही देर में सारी चिलख, दर्द, परपराना सब गायब। मैं पिछवाड़े का छेद भींचे, एकदम चुपचाप वैसे ही पेट के बल लेटी रही।
ये तो मुझे बहुत बाद में पता चला की कामिनी भाभी की वो क्रीम, दर्द तो एकदम गायब कर देती थी, अंदर कुछ चोट खरोंच हो तो उसके लिए भी एंटी-सेप्टिक का काम करती थी, लेकिन साथ में दो काम और करती थी। एक तो वो गाण्ड को फिर से पहले जैसा ही टाइट कर देती थी, जैसे उसके अंदर कुछ गया ही न हो… एकदम कसी कच्ची कली की तरह। लेकिन दूसरी चीज और खतरनाक थी, उसमें कुछ ऐसा पड़ा था की कुछ देर बाद ही गाण्ड में बड़े-बड़े चींटे काटने लगते थे, और बस मन करता था कि कोई हचक के मोटा, लम्बा पूरा अंदर तक पेल दे।
और जब बसंती दस की जगह पंद्रह मिनट में लौटी, हाथ में थाली लिए तो, बिना ब्लाउज के भी साड़ी को उसने अपने उभारों पे ऐसे लपेट के रखा था…
![[Image: Boobs-jethani-Champa-...18010724_2338528...4516_n.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/Boobs-jethani-Champa-...18010724_233852817092538_633259225389824516_n.jpg)
बस थोड़ा-थोड़ा दिखता लेकिन हाँ कटाव उभार सब महसूस होता था। और मेरे बगल में बैठ गयीं, धम्म से।
शरारत में मैं कौन बसंती भौजी से कम थी। उसके दोनों गरमागरम जलेबी की तरह रसभरे उभार, साड़ी से झलक रहे थे, और मैंने एक झटके में उसकी साड़ी खींच दी, और कहा-
“काहे भौजी, का छिपायी हो, उहौ आपन ननदी से…”
और दोनों उभार छलक कर बाहर, जितने बड़े-बड़े उतने ही कड़े-कड़े और ऊपर से दोनों घुन्डियां, एकदम खड़ी।