02-04-2019, 05:25 PM
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बसंती संग मस्ती
![[Image: diya-4734389cde4fde2603a8a019ecf53cf0.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/diya-4734389cde4fde2603a8a019ecf53cf0.jpg)
अब तक
चन्दा मुझे चिढ़ाते हुए बोली- “क्यों कैसा लगा चूत रस?”
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मैं चुप रही।
पर चन्दा क्यों चुप रहती। वह बोली-
“अरे अभी तो सिर्फ चूत रस चाटा है अभी तो और बहुत से रस का स्वाद चखना है…”
जब सुनील ने उसे आँख तरेर कर मना किया तो वो बोली-
“अरे गाण्ड मरवाने का मजा ये लेंगी, तो चूम चाटकर साफ कौन करेगा?”
तभी सुनील ने मेरे चूतड़ों पर कस-कसकर कई दोहत्थड़ मारे, इत्ते जोर से की मेरे आँखों में आँसू आ गये। और उसने जोर से मेरी चोटी पकड़कर खींचा, और बोला-
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“सच-सच बोल… गाण्ड मराने में मज़ा आ रहा है की नहीं?”
“हाँ हाँ आ रहा है…” मुझे बोलना ही पड़ा।
“तो फिर बोलती क्यों नहीं?”
सच कहूं, मेरी समझ में नहीं आ रहा था। अब मुझे कभी-कभी दर्द में भी अजब मज़ा मिलता था, कल जब दिनेश ने चोदते समय कीचड़ में जमकर मेरी चूचियां रगड़ीं थीं और आज जब इसने मेरे चूतड़ो पर मारा- “हाँ हाँ मेरे जानम मार लो मेरी गाण्ड, बहुत मजा आ रहा है ओह्ह… हाँ हाँ… डाल ले… मारो मेरी गाण्ड… कसकर मारो पेल दो अपना पूरा लण्ड मेरी गाण्ड में…” और सच में मैं अब उसके हर धक्के का जवाब धक्के से दे रही थी। काफी देर चोदने के बाद अजय और सुनील साथ-साथ ही झड़े।
किसी तरह चन्दा का सहारा लेकर मैं घर लौटी।
![[Image: salwar-kameez-006b5dd87fb4ce533f1fc9134e61679a.md.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/salwar-kameez-006b5dd87fb4ce533f1fc9134e61679a.md.jpg)
एकदम चला नहीं जा रहा था , एक हाथ चंदा के कंधे पर रख कर , लेकिन तब भी जैसे एक कदम रखती , पिछवाड़े इतनी कस के टीस उठती ,
रोकते रोकते भी सिसकी निकल जाती , जोर जोर से पिछवाड़े परपरा रहा था , जब दोनों हिस्से आपस में रगड़ते , लगता था जैसे वहां आग लगी है ,
और उससे भी बढकर आगे भी एकदम लसलस , ये अजय भी न बड़की कटोरी भर के थक्केदार मलाई , और आज तो शलवार सरकायी के निहुरा के जो उसने लिया था , फिर मैंने भी शलवार सरका के पहन लिया , दोनों जाँघों के बीच अभी तक चपचप हो रहा था , फिर शलवार पर भी बड़ा धब्बा , खूब दूर से दिखाई देर रहा था ,
लेकिन पिछवाड़े तो जैसे अभी तक कोई मोटी लकड़ी घुसी हो , स्साला , उसकी बहन की बुर मारों , ये सुनील एक तो बांस ऐसा मोटा ऊपर से इतना रगड़ रगड़ के हचक हचक के , मैं चीख रही थी , रो रही थी , दुहाई दे रही थी पर वो स्साला एकदम चला नहीं जा रहा था ,
वो तो किसी तरह चंदा का सहारा, ... गाँव के सारे रास्ते गैल गुड्डी ने देख लिए थे , पर चंदा ने शार्ट कट के मारे मेंड़ मेंड़ हो कर,
दो ओर ऊँचे ऊँचे गन्ने के खेत थे जिसमे आदमी क्या हाथी छिप जाए , मेड़ बस जैसे खेतो के बीच होती है , सिर्फ एक चल पाए , वो भी एक पैर के पीछे पैर रखकर बड़ी मुश्किल से , और रात भर जो जम के पानी बरसा था तो मेड़ के दोनों ओर खेतों में कहीं टखने भर पानी तो कहीं कीचड़ ,
मेड़ से जरा भी पैर सरका तो अरररररर धम्म , फिसल के कीचड़ में
और वो मेरी सहेली से ज्यादा दुश्मन , चंदा पीछे से हँस हँस कर चिढ़ा रही थी ,
" अरे गोरी जरा सम्हल के चल ना, कहीं कीचड़ में गिर गयी तो सोलहवां सावन के साथ सोलवां फागुन भी हो जाएगा"
मैं उसको अच्छा सा जवाब देती की पिछवाड़े से जबरदस्त चिलख उठी, जान निकल गयी , रोकते रोकते भी चीख निकल गयी ,
क्या कहूं उस साले सुनील को , ये भाभी के जितने भाई हैं न सब सालो का इतना मोटा, ... और पिछवाड़े जब चीरता फाड़ता घुसा , ... अंदर जगह छिल गया था , ... वो तो अजय ने मेरे गले तक अपना लंड पेल रखा था वरना चीख चीख कर, ... मेरी हालत खराब थी , एक कदम नहीं रख पा रही थी , और चंदा ने जान बूझ कर ये मेंड़ वाला रास्ता चुना , उस का सहारा ले कर चल रही थी तब भी लेकिन अब जब पहले एक पैर दूसरा ठीक उसी जगह पर , इत्ती कस के पिछवाड़े रगड़ घिस हो रही थी , जितना दर्द गांड मरवाने में हुआ उससे कम अभी नहीं हो रहा था ,
पतली सी मट्टी की मेंड़, दोनों ओर कीचड़ और गन्ने के ऊँचे ऊँचे खेत , मेंड़ पर चलती इठलाती मचलती दो किशोरियां ,
और अब गन्ने के खेत मेंड़ से एकदम सटे चिपके और उनकी पत्तियां मेरी देह को सहलाती रगड़ती,
आमसान में एक बार फिर बादल घिर आये थे , एक तो ऊँचे ऊँचे गन्ने के खेतों के बीच छन छन कर थोड़ी सी धूप आ रही थी और अब काले काले बादलों के चक्कर में करीब करीब अँधेरा ऊपर से पीछे से चंदा की बातें,
" हे गोरी ये हंस की चाल न चलो जल्दी जल्दी पैर बढ़ाओ, कहीं बारिश आ गयी तो , ... "
मैं सम्हल सम्हल चल कर रही थी शहर में कहाँ गन्ने के खेत और कहाँ मट्टी की मेंड़ ,
" हे अगर कहीं किसी मरद ने इसी गन्ने के खेत में खींच लिया न , तो दुबारा गाँड़ मार लेगा और अबकी तो मट्टी पर , ऐसी हचक के मारेगा , सब ठेले मट्टी हो जाएंगे। " चंदा ने छेड़ा
" तू मरवा न गाँड़ , मुझे नहीं मरवानी , स्साली जान निकली जा रही है तेरे चक्कर में ,... अब तो उस सुनील से मैं बोलूंगी भी नहीं ,... " दर्द से सिसकते मैं बोली
" स्साली , ज्यादा नखड़ा न कर , दर्द दर्द ,... अरे तुझसे कम उमर के लौंडे सब उसी गन्ने के खेत में , बस निहुरा के नेकर सरका के,... " चंदा ने चिढ़ाया
पर अब मुझे मौका मिल गया था जवाब देने का हँसते खिलखिलाते मैं चढ़ गयी उसके ऊपर ,
" अरे मेरी भैया की स्साली, सही कह रही है तू , मेरे भैया के सारे साले गांडू हैं , पैदायशी , खानदानी गांडू,... और उनकी बहना छिनार भाईचोद "
पर चंदा से जीतना मुश्किल था , ... पलट के बोली ,
" अगली बार आना न तो अपने उस कुंवारे भैया को ले आना , अपने यार को , बस अगल बगल निहुरा के जैसे अभी सुनील ने तेरी गाँड़ मारी थी न , उसी तरह हचक हचक के मारी जाएगी , तेरी भी तेरे भैया की भी इसी गन्ने के खेत में , देखूंगी कौन ज्यादा चिल्लाता है , तू या तेरा भाई ,.. अरे अभी सुनील ने शुरुआत की है , ऐसे मोटे मोटे चूतड़ मटका के चलती है , गाँड़ तो तेरी मारी ही जानी है ये तो मेले में ही तय हो गया था , कितने लौंडे , मरद तेरा पिछवाड़ा देखकर अपने लंड मसल रहे थे , सोच अगर दिनेश का एक फुटा घुसता तो , और लौंडे मरद सब मारेंगे मेरी सहेली की गाँड़ घबड़ा मत ,.... "
मेरा ध्यान उसकी बात सुनने में लगा था और
अररररररर , मैं फिसली ,
मुझे ध्यान ही नहीं रहा एक और गन्ने के खेत ख़तम हो गएँ और करीब घुटने भर पानी में औरते रोपनी कर रही हैं ,
मेरे टखने तक कीचड़ में धंस गए थे।
दूर दूर तक धानी चूनर की तरह पसरे खेत , रोपनी के धुनों की गूँज, ... और दर्जनों औरतें लड़कियां झुकी हुयी रोपनी करती, गाती
मेरे फिसलते ही सब एक साथ सुर में जैसे सुर मिला के खिलखिला के हंसने लगी,
बात यही थी की भाभी के गाँव में सब औरतें लड़कियां सब का रिश्ता मुझसे मज़ाक का छेड़खानी का था , और गाँव में तो एकदम खुल के असली वाला, जो भाभी की रिश्ते से बहन लगती थीं , उनकी तो मैं ननद लगती ही थी, भाभी की भाभियों की तो डबल ननद ( और इसमें कामवालियां भी शामिल थी बल्कि वो और कस के रगड़ाई करती थीं )
एक हंस के बोली , पाहुन सावन में बहुत मस्त माल भेजे हैं अपने सालों के लिए , दिन रात बारिश होगी।
तो दूसरी बोली तो का हम लोग छोड़ेंगे , साले के साथ सलहज और साली भी रस लूटेंगी,
( मुझे चंपा भाभी की बात याद आयी , रोपनी वालियों के बारे में अड़ोस पड़ोस के गाँव से भी आती थीं हर साल , और रोपनी के साथ साथ गाँव के मरद भी अपना अपना बीज रोपने का , शायद ही कोई बचती हो जिसपे रोपनी में ६-७ मर्द न चढ़ते हों , और एकाध जबरदस्त जोबन रूप रंग वाली तो फिर तो , एक के बारे में बताया उन्होंने की वो खाली भाभी के ही खेत पर काम करती थी , और हर साल जबरदस्त मस्त चंपा भाभी के पति , खास तौर से दिन भले नागा हो जाए , हफ्ते में पांच छह बार , कंगना नाम था उसका , ... और शाम को वो आयी भी तो चम्पा भाभी ने इशारे से बता दिया यही है , उमरिया की बारी लेकिन जबरदस्त जोबन और मज़ाक में बंसती और गुलबिया के भी कान काटती थी ,... माँ की भी 'बहुत ख़ास',... मुझे देख के बोली , अरे सावन में तो अगवाड़े पिछवाड़े दोनों ओर से कीचड़ टपकना चाहिए , चला हमारे साथ , तोहरो रोपनी कराय देई )
और उसी की आवाज सुनाई पड़ी , जहाँ मेरा पैर धंसा था वहीँ बगल में रोपनी कर रही थी , चिढ़ाते बोली
" लगता है हचक के गाँड़ मारी गयी है ननद रानी की कउनो मोट खूंटा धंसा है गंडिया में बहुत दर्द हो रहा है का "
" अरे काहे चिढ़ा रही हो , अइसन मस्त गाँड़ है तो मारी ही जायेगी , इसके भइया भेजे ही इसी लिए हैं ,... लेकिन दुनो जून , दिन में रात में गाँड़ मरवाओ तो दर्द कम हो जाएगा , आज रात में फिर नंबर लगवा लेना " एक बड़ी उम्र वाली बोली।
" अरे यह गाँव में गाँड़ मारने वालों की कोई कमी नहीं है , हाँ कडुआ तेल लगा के निकला करो पिछवाड़े , वरना वो तो मौका पाते ही निहुरायँगे ठोंक देंगे लेकिन गाँड़ मरवाने में फायदा भी तो है , गाभिन होने का डर नहीं और पेट अलग साफ़,... "
कंगना फिर मुझे चिढ़ाने में जुट गयी थी ,
मेरी भी हंसी छूट गयी , कंगना ने मदद की मेरा पैर कीचड़ से निकलवाने में।
लेकिन कुछ देर चलने के बाद भाभी का घर दिखने लगा था , बस पास ही था।
चन्दा- “अब तो घर आ गया है तू निकल, मैं चलती हूँ…”
आगे
मुझे खेत के उस पार कोई लड़का सा दिखा
![[Image: SugarCaneFieldGA.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/SugarCaneFieldGA.jpg)
लेकिन अगले पल वो आँख से ओझल हो गया था, हाँ ये लग रहा था की ये पतला रास्ता खेत के उस पार की किसी बस्ती की ओर जा रहा था, जहां 8-10 कच्चे घर बने थे। मेरे कुछ जवाब देने के पहले ही चन्दा उस गन्ने के खेत में गायब थी। बस गन्नों के हल्के-हल्के हिलने से लग रहा था की वो उसी ओर जा रही थी, जिधर वो बस्ती थी।
देखते-देखते चन्दा भी उन बड़े गन्ने के खेतों में खो गई और मैं घर के रास्ते पे।
किसी तरह रुकते-रुकाते मैं घर के सामने पहुँच गई। दरवाजा बंद था। दो पल मैं सुस्ताई, गहरी सांस ली और दरवाजा खटखटाया, बस यह सोचते की भाभी लोग न हों। दरवाजा बंसती ने खोला।
मैंने कुछ घबड़ाते, सम्हलते, सिमटते, घर के अंदर देखा। अंदर का पक्का हिस्सा जिधर चम्पा भाभी, भाभी की माँ रहती थी, बंद था। मैंने कुछ राहत की सांस ली और बाकी राहत बसंती की बात से मिल गई की भाभी और उनकी माँ रवी के यहाँ गई हैं और चम्पा भाभी, कामिनी भाभी के साथ उनके घर। बसंती को बोला गया है की मुझे खाना खिला के, थोड़ी देर बाद शाम होते-होते आम के बाग़ में ले आये, वहीं जहाँ हम लोग पिछली बार झूला झूलने गए थे।
बंसती ने अंदर से दरवाजा बंद कर दिया था।
आसमान में सावन भादों के धूप छाँह की लुका छिपी चल रही थी। आँगन के पेड़ के ठीक ऊपर किसी कटी पतंग की तरह एक घने काले बादल का टुकड़ा अटक गया था, जिसकी परछाईं में आँगन में थोड़ा-थोड़ा अँधेरा छाया था। आँगन में एक चटाई जमीन पे बिछी थी और बगल में एक कटोरी में कड़वा तेल रखा था, लगता था बसंती तेल मालिश कर रही थी।
एक पल में मेरी आँखों ने आसमान में उड़ते बादलों की पांत से लेकर घर में पसरे सन्नाटे तक सब नाप लिया और ये भी अंदाज लगा लिया की घर में सिर्फ हम दोनों हैं और शाम तक कोई आने वाला भी नहीं है। तब तक बसंती ने जोर से मुझे अपनी बाँहों में भींच लिया।
उफ्फ… मैंने बसंती के बारे में पहले बताया था की नहीं, मेरा मतलब देह रूप के बारे में। चलिए अगर बताया होगा भी तो एक बार फिर से बता देती हूँ।
![[Image: Geeta-Sana-Khan-Spicy-in-Half-Saree.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/Geeta-Sana-Khan-Spicy-in-Half-Saree.jpg)
बसंती उम्र में मेरी भाभी की समौरिया रही होगी या शायद एकाध साल बड़ी, 25-26 साल की और चम्पा भाभी से एकाध साल छोटी। लेकिन मजाक करने में दोनों का नंबर काटती थी। लम्बाई मेरे बराबर ही रही होगी, 5’5” या 5’6”, बहुत गोरी तो नहीं, लेकिन सांवली भी नहीं, जो गेंहुआ कहते हैं न बस वैसा। लेकिन देह थी उसकी खूब भरी पूरी लेकिन एक छटांक भी मांस फालतू नहीं, सब एकदम सही जगह पे।
दीर्घ नितम्बा और कसी-कसी चोली से छलकते गदराये जोबन, पतली कमर और एकदम गठी-गठी देह, जैसे काम करने वालियों की होती है, भरी भरी पिंडलियां।
![[Image: boobs-jethani-20479696_335948380192950_1...7264_n.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/boobs-jethani-20479696_335948380192950_1047069464606437264_n.jpg)
किसी तरह अपने दर्द को मैंने रोक रखा था। लेकिन जैसे ही बसंती ने अंकवार में पकड़कर दबाया, एक बार फिर से पिछवाड़े जोर से चिलख उठी, और बसंती समझ गई, बोली-
“क्यों बिन्नो, लगता है पिछवाड़े जम के कुदाल चली है…”
और जोर से उसके हाथ ने मेरे चूतड़ को दबोच लिया, एक उंगली सीधे कसी शलवार के बीच पिछवाड़े की दरार में घुस गई।
और अबकी चिलख जो उठी तो मैं चीख नहीं दबा पायी।
“अरे थोड़ी देर लेट जाओ, कुछ देर में दर्द कम हो जाएगा। पहली बार मरवाने में होता है…”
खिलखिलाते हुए बसंती बोली।
![[Image: Geeta-tumblr_p5ucnbnNRk1wcmpmwo2_1280.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/Geeta-tumblr_p5ucnbnNRk1wcmpmwo2_1280.jpg)
मैं जैसे ही चटाई पर बैठी, एक बार फिर जैसे ही मेरे नितम्ब फर्श पे लगे, जोर से फिर दर्द की लहर उठी।
“अरे तुम तो एकदमै नौसिखिया हो, पेट के बल लेटो, तनी एहपर कुछ देर तक कौनो जोर मत पड़े दो, आराम मिल जाएगा…”
और मैं चट्ट से पट हो गई। सच में दुखते पिछवाड़े को आराम मिल गया। बसंती ने एक हाथ मेरे पेट के नीचे रखा और जब तक मैं समझूँ-समझूँ, मेरी शलवार का नाड़ा खुल चुका था और दोनों हाथों से उसने शलवार सरका के घुटने तक।
मैंने कुछ ना-नुकुर किया, लेकिन हम दोनों जानते थे उसमें कोई दम नहीं थी। और कोई पहली बार तो मेरे कपड़े बसंती ने उठाये नहीं, सुबह-सुबह मेहंदी लगाते हुए कुर्ता उठाकर मेरे जोबन पे, चम्पा भाभी के सामने और उसके पहले जब वो मुझे उठाने गई थी, सीधे मेरी स्कर्ट के अंदर हाथ डालकर अच्छी तरह मेरी चुनमुनिया को रगड़ा मसला था।
![[Image: ass-hole-tumblr_p80hdwyrOX1wg25deo1_500.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/ass-hole-tumblr_p80hdwyrOX1wg25deo1_500.jpg)
कुछ देर में कुरता भी काफी ऊपर सरक चुका था लेकिन एक बात बसंती की सही थी, जब ठंडी हवा मेरे खुले चूतड़ों पे पड़ी तो धीरे-धीरे दर्द उड़ने लगा। बसंती की हथेली मेरे भरे-भरे गोरे गुदाज चूतड़ों को सहला रही थी दबोच रही थी।
और मुझे न जाने कैसा-कैसा लग रहा था। बस मस्ती से आँखें मुंदी जा रही थी, लग रहा था मैं बिना पंखो के बादलों के बीच उड़ रही हूँ। दर्द कहीं कपूर की तरह उड़ गया था। बसंती की उँगलियां बस… उईईईईईई, मैं जोर से चीखी-
“नहीं भौजी उधर नहीं…”
![[Image: ass-fingering-10761840.gif]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/ass-fingering-10761840.gif)
दर्द से कराहते मैं बोली।
बसंती ने दोनों अंगूठे से पिछवाड़े का छेद फैलाकर पूरी ताकत से मंझली उंगली ठेल दी थी।
![[Image: diya-4734389cde4fde2603a8a019ecf53cf0.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/diya-4734389cde4fde2603a8a019ecf53cf0.jpg)
अब तक
चन्दा मुझे चिढ़ाते हुए बोली- “क्यों कैसा लगा चूत रस?”
![[Image: shalwar-shriya_actress-salwar-kameez.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/shalwar-shriya_actress-salwar-kameez.jpg)
मैं चुप रही।
पर चन्दा क्यों चुप रहती। वह बोली-
“अरे अभी तो सिर्फ चूत रस चाटा है अभी तो और बहुत से रस का स्वाद चखना है…”
जब सुनील ने उसे आँख तरेर कर मना किया तो वो बोली-
“अरे गाण्ड मरवाने का मजा ये लेंगी, तो चूम चाटकर साफ कौन करेगा?”
तभी सुनील ने मेरे चूतड़ों पर कस-कसकर कई दोहत्थड़ मारे, इत्ते जोर से की मेरे आँखों में आँसू आ गये। और उसने जोर से मेरी चोटी पकड़कर खींचा, और बोला-
![[Image: spanking-J-tumblr_mzk0rqbSCY1ryino5o3_500.gif]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/spanking-J-tumblr_mzk0rqbSCY1ryino5o3_500.gif)
“सच-सच बोल… गाण्ड मराने में मज़ा आ रहा है की नहीं?”
“हाँ हाँ आ रहा है…” मुझे बोलना ही पड़ा।
“तो फिर बोलती क्यों नहीं?”
सच कहूं, मेरी समझ में नहीं आ रहा था। अब मुझे कभी-कभी दर्द में भी अजब मज़ा मिलता था, कल जब दिनेश ने चोदते समय कीचड़ में जमकर मेरी चूचियां रगड़ीं थीं और आज जब इसने मेरे चूतड़ो पर मारा- “हाँ हाँ मेरे जानम मार लो मेरी गाण्ड, बहुत मजा आ रहा है ओह्ह… हाँ हाँ… डाल ले… मारो मेरी गाण्ड… कसकर मारो पेल दो अपना पूरा लण्ड मेरी गाण्ड में…” और सच में मैं अब उसके हर धक्के का जवाब धक्के से दे रही थी। काफी देर चोदने के बाद अजय और सुनील साथ-साथ ही झड़े।
किसी तरह चन्दा का सहारा लेकर मैं घर लौटी।
![[Image: salwar-kameez-006b5dd87fb4ce533f1fc9134e61679a.md.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/salwar-kameez-006b5dd87fb4ce533f1fc9134e61679a.md.jpg)
एकदम चला नहीं जा रहा था , एक हाथ चंदा के कंधे पर रख कर , लेकिन तब भी जैसे एक कदम रखती , पिछवाड़े इतनी कस के टीस उठती ,
रोकते रोकते भी सिसकी निकल जाती , जोर जोर से पिछवाड़े परपरा रहा था , जब दोनों हिस्से आपस में रगड़ते , लगता था जैसे वहां आग लगी है ,
और उससे भी बढकर आगे भी एकदम लसलस , ये अजय भी न बड़की कटोरी भर के थक्केदार मलाई , और आज तो शलवार सरकायी के निहुरा के जो उसने लिया था , फिर मैंने भी शलवार सरका के पहन लिया , दोनों जाँघों के बीच अभी तक चपचप हो रहा था , फिर शलवार पर भी बड़ा धब्बा , खूब दूर से दिखाई देर रहा था ,
लेकिन पिछवाड़े तो जैसे अभी तक कोई मोटी लकड़ी घुसी हो , स्साला , उसकी बहन की बुर मारों , ये सुनील एक तो बांस ऐसा मोटा ऊपर से इतना रगड़ रगड़ के हचक हचक के , मैं चीख रही थी , रो रही थी , दुहाई दे रही थी पर वो स्साला एकदम चला नहीं जा रहा था ,
वो तो किसी तरह चंदा का सहारा, ... गाँव के सारे रास्ते गैल गुड्डी ने देख लिए थे , पर चंदा ने शार्ट कट के मारे मेंड़ मेंड़ हो कर,
दो ओर ऊँचे ऊँचे गन्ने के खेत थे जिसमे आदमी क्या हाथी छिप जाए , मेड़ बस जैसे खेतो के बीच होती है , सिर्फ एक चल पाए , वो भी एक पैर के पीछे पैर रखकर बड़ी मुश्किल से , और रात भर जो जम के पानी बरसा था तो मेड़ के दोनों ओर खेतों में कहीं टखने भर पानी तो कहीं कीचड़ ,
मेड़ से जरा भी पैर सरका तो अरररररर धम्म , फिसल के कीचड़ में
और वो मेरी सहेली से ज्यादा दुश्मन , चंदा पीछे से हँस हँस कर चिढ़ा रही थी ,
" अरे गोरी जरा सम्हल के चल ना, कहीं कीचड़ में गिर गयी तो सोलहवां सावन के साथ सोलवां फागुन भी हो जाएगा"
मैं उसको अच्छा सा जवाब देती की पिछवाड़े से जबरदस्त चिलख उठी, जान निकल गयी , रोकते रोकते भी चीख निकल गयी ,
क्या कहूं उस साले सुनील को , ये भाभी के जितने भाई हैं न सब सालो का इतना मोटा, ... और पिछवाड़े जब चीरता फाड़ता घुसा , ... अंदर जगह छिल गया था , ... वो तो अजय ने मेरे गले तक अपना लंड पेल रखा था वरना चीख चीख कर, ... मेरी हालत खराब थी , एक कदम नहीं रख पा रही थी , और चंदा ने जान बूझ कर ये मेंड़ वाला रास्ता चुना , उस का सहारा ले कर चल रही थी तब भी लेकिन अब जब पहले एक पैर दूसरा ठीक उसी जगह पर , इत्ती कस के पिछवाड़े रगड़ घिस हो रही थी , जितना दर्द गांड मरवाने में हुआ उससे कम अभी नहीं हो रहा था ,
पतली सी मट्टी की मेंड़, दोनों ओर कीचड़ और गन्ने के ऊँचे ऊँचे खेत , मेंड़ पर चलती इठलाती मचलती दो किशोरियां ,
और अब गन्ने के खेत मेंड़ से एकदम सटे चिपके और उनकी पत्तियां मेरी देह को सहलाती रगड़ती,
आमसान में एक बार फिर बादल घिर आये थे , एक तो ऊँचे ऊँचे गन्ने के खेतों के बीच छन छन कर थोड़ी सी धूप आ रही थी और अब काले काले बादलों के चक्कर में करीब करीब अँधेरा ऊपर से पीछे से चंदा की बातें,
" हे गोरी ये हंस की चाल न चलो जल्दी जल्दी पैर बढ़ाओ, कहीं बारिश आ गयी तो , ... "
मैं सम्हल सम्हल चल कर रही थी शहर में कहाँ गन्ने के खेत और कहाँ मट्टी की मेंड़ ,
" हे अगर कहीं किसी मरद ने इसी गन्ने के खेत में खींच लिया न , तो दुबारा गाँड़ मार लेगा और अबकी तो मट्टी पर , ऐसी हचक के मारेगा , सब ठेले मट्टी हो जाएंगे। " चंदा ने छेड़ा
" तू मरवा न गाँड़ , मुझे नहीं मरवानी , स्साली जान निकली जा रही है तेरे चक्कर में ,... अब तो उस सुनील से मैं बोलूंगी भी नहीं ,... " दर्द से सिसकते मैं बोली
" स्साली , ज्यादा नखड़ा न कर , दर्द दर्द ,... अरे तुझसे कम उमर के लौंडे सब उसी गन्ने के खेत में , बस निहुरा के नेकर सरका के,... " चंदा ने चिढ़ाया
पर अब मुझे मौका मिल गया था जवाब देने का हँसते खिलखिलाते मैं चढ़ गयी उसके ऊपर ,
" अरे मेरी भैया की स्साली, सही कह रही है तू , मेरे भैया के सारे साले गांडू हैं , पैदायशी , खानदानी गांडू,... और उनकी बहना छिनार भाईचोद "
पर चंदा से जीतना मुश्किल था , ... पलट के बोली ,
" अगली बार आना न तो अपने उस कुंवारे भैया को ले आना , अपने यार को , बस अगल बगल निहुरा के जैसे अभी सुनील ने तेरी गाँड़ मारी थी न , उसी तरह हचक हचक के मारी जाएगी , तेरी भी तेरे भैया की भी इसी गन्ने के खेत में , देखूंगी कौन ज्यादा चिल्लाता है , तू या तेरा भाई ,.. अरे अभी सुनील ने शुरुआत की है , ऐसे मोटे मोटे चूतड़ मटका के चलती है , गाँड़ तो तेरी मारी ही जानी है ये तो मेले में ही तय हो गया था , कितने लौंडे , मरद तेरा पिछवाड़ा देखकर अपने लंड मसल रहे थे , सोच अगर दिनेश का एक फुटा घुसता तो , और लौंडे मरद सब मारेंगे मेरी सहेली की गाँड़ घबड़ा मत ,.... "
मेरा ध्यान उसकी बात सुनने में लगा था और
अररररररर , मैं फिसली ,
मुझे ध्यान ही नहीं रहा एक और गन्ने के खेत ख़तम हो गएँ और करीब घुटने भर पानी में औरते रोपनी कर रही हैं ,
मेरे टखने तक कीचड़ में धंस गए थे।
दूर दूर तक धानी चूनर की तरह पसरे खेत , रोपनी के धुनों की गूँज, ... और दर्जनों औरतें लड़कियां झुकी हुयी रोपनी करती, गाती
मेरे फिसलते ही सब एक साथ सुर में जैसे सुर मिला के खिलखिला के हंसने लगी,
बात यही थी की भाभी के गाँव में सब औरतें लड़कियां सब का रिश्ता मुझसे मज़ाक का छेड़खानी का था , और गाँव में तो एकदम खुल के असली वाला, जो भाभी की रिश्ते से बहन लगती थीं , उनकी तो मैं ननद लगती ही थी, भाभी की भाभियों की तो डबल ननद ( और इसमें कामवालियां भी शामिल थी बल्कि वो और कस के रगड़ाई करती थीं )
एक हंस के बोली , पाहुन सावन में बहुत मस्त माल भेजे हैं अपने सालों के लिए , दिन रात बारिश होगी।
तो दूसरी बोली तो का हम लोग छोड़ेंगे , साले के साथ सलहज और साली भी रस लूटेंगी,
( मुझे चंपा भाभी की बात याद आयी , रोपनी वालियों के बारे में अड़ोस पड़ोस के गाँव से भी आती थीं हर साल , और रोपनी के साथ साथ गाँव के मरद भी अपना अपना बीज रोपने का , शायद ही कोई बचती हो जिसपे रोपनी में ६-७ मर्द न चढ़ते हों , और एकाध जबरदस्त जोबन रूप रंग वाली तो फिर तो , एक के बारे में बताया उन्होंने की वो खाली भाभी के ही खेत पर काम करती थी , और हर साल जबरदस्त मस्त चंपा भाभी के पति , खास तौर से दिन भले नागा हो जाए , हफ्ते में पांच छह बार , कंगना नाम था उसका , ... और शाम को वो आयी भी तो चम्पा भाभी ने इशारे से बता दिया यही है , उमरिया की बारी लेकिन जबरदस्त जोबन और मज़ाक में बंसती और गुलबिया के भी कान काटती थी ,... माँ की भी 'बहुत ख़ास',... मुझे देख के बोली , अरे सावन में तो अगवाड़े पिछवाड़े दोनों ओर से कीचड़ टपकना चाहिए , चला हमारे साथ , तोहरो रोपनी कराय देई )
और उसी की आवाज सुनाई पड़ी , जहाँ मेरा पैर धंसा था वहीँ बगल में रोपनी कर रही थी , चिढ़ाते बोली
" लगता है हचक के गाँड़ मारी गयी है ननद रानी की कउनो मोट खूंटा धंसा है गंडिया में बहुत दर्द हो रहा है का "
" अरे काहे चिढ़ा रही हो , अइसन मस्त गाँड़ है तो मारी ही जायेगी , इसके भइया भेजे ही इसी लिए हैं ,... लेकिन दुनो जून , दिन में रात में गाँड़ मरवाओ तो दर्द कम हो जाएगा , आज रात में फिर नंबर लगवा लेना " एक बड़ी उम्र वाली बोली।
" अरे यह गाँव में गाँड़ मारने वालों की कोई कमी नहीं है , हाँ कडुआ तेल लगा के निकला करो पिछवाड़े , वरना वो तो मौका पाते ही निहुरायँगे ठोंक देंगे लेकिन गाँड़ मरवाने में फायदा भी तो है , गाभिन होने का डर नहीं और पेट अलग साफ़,... "
कंगना फिर मुझे चिढ़ाने में जुट गयी थी ,
मेरी भी हंसी छूट गयी , कंगना ने मदद की मेरा पैर कीचड़ से निकलवाने में।
लेकिन कुछ देर चलने के बाद भाभी का घर दिखने लगा था , बस पास ही था।
चन्दा- “अब तो घर आ गया है तू निकल, मैं चलती हूँ…”
आगे
मुझे खेत के उस पार कोई लड़का सा दिखा
![[Image: SugarCaneFieldGA.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/SugarCaneFieldGA.jpg)
लेकिन अगले पल वो आँख से ओझल हो गया था, हाँ ये लग रहा था की ये पतला रास्ता खेत के उस पार की किसी बस्ती की ओर जा रहा था, जहां 8-10 कच्चे घर बने थे। मेरे कुछ जवाब देने के पहले ही चन्दा उस गन्ने के खेत में गायब थी। बस गन्नों के हल्के-हल्के हिलने से लग रहा था की वो उसी ओर जा रही थी, जिधर वो बस्ती थी।
देखते-देखते चन्दा भी उन बड़े गन्ने के खेतों में खो गई और मैं घर के रास्ते पे।
किसी तरह रुकते-रुकाते मैं घर के सामने पहुँच गई। दरवाजा बंद था। दो पल मैं सुस्ताई, गहरी सांस ली और दरवाजा खटखटाया, बस यह सोचते की भाभी लोग न हों। दरवाजा बंसती ने खोला।
मैंने कुछ घबड़ाते, सम्हलते, सिमटते, घर के अंदर देखा। अंदर का पक्का हिस्सा जिधर चम्पा भाभी, भाभी की माँ रहती थी, बंद था। मैंने कुछ राहत की सांस ली और बाकी राहत बसंती की बात से मिल गई की भाभी और उनकी माँ रवी के यहाँ गई हैं और चम्पा भाभी, कामिनी भाभी के साथ उनके घर। बसंती को बोला गया है की मुझे खाना खिला के, थोड़ी देर बाद शाम होते-होते आम के बाग़ में ले आये, वहीं जहाँ हम लोग पिछली बार झूला झूलने गए थे।
बंसती ने अंदर से दरवाजा बंद कर दिया था।
आसमान में सावन भादों के धूप छाँह की लुका छिपी चल रही थी। आँगन के पेड़ के ठीक ऊपर किसी कटी पतंग की तरह एक घने काले बादल का टुकड़ा अटक गया था, जिसकी परछाईं में आँगन में थोड़ा-थोड़ा अँधेरा छाया था। आँगन में एक चटाई जमीन पे बिछी थी और बगल में एक कटोरी में कड़वा तेल रखा था, लगता था बसंती तेल मालिश कर रही थी।
एक पल में मेरी आँखों ने आसमान में उड़ते बादलों की पांत से लेकर घर में पसरे सन्नाटे तक सब नाप लिया और ये भी अंदाज लगा लिया की घर में सिर्फ हम दोनों हैं और शाम तक कोई आने वाला भी नहीं है। तब तक बसंती ने जोर से मुझे अपनी बाँहों में भींच लिया।
उफ्फ… मैंने बसंती के बारे में पहले बताया था की नहीं, मेरा मतलब देह रूप के बारे में। चलिए अगर बताया होगा भी तो एक बार फिर से बता देती हूँ।
![[Image: Geeta-Sana-Khan-Spicy-in-Half-Saree.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/Geeta-Sana-Khan-Spicy-in-Half-Saree.jpg)
बसंती उम्र में मेरी भाभी की समौरिया रही होगी या शायद एकाध साल बड़ी, 25-26 साल की और चम्पा भाभी से एकाध साल छोटी। लेकिन मजाक करने में दोनों का नंबर काटती थी। लम्बाई मेरे बराबर ही रही होगी, 5’5” या 5’6”, बहुत गोरी तो नहीं, लेकिन सांवली भी नहीं, जो गेंहुआ कहते हैं न बस वैसा। लेकिन देह थी उसकी खूब भरी पूरी लेकिन एक छटांक भी मांस फालतू नहीं, सब एकदम सही जगह पे।
दीर्घ नितम्बा और कसी-कसी चोली से छलकते गदराये जोबन, पतली कमर और एकदम गठी-गठी देह, जैसे काम करने वालियों की होती है, भरी भरी पिंडलियां।
![[Image: boobs-jethani-20479696_335948380192950_1...7264_n.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/boobs-jethani-20479696_335948380192950_1047069464606437264_n.jpg)
किसी तरह अपने दर्द को मैंने रोक रखा था। लेकिन जैसे ही बसंती ने अंकवार में पकड़कर दबाया, एक बार फिर से पिछवाड़े जोर से चिलख उठी, और बसंती समझ गई, बोली-
“क्यों बिन्नो, लगता है पिछवाड़े जम के कुदाल चली है…”
और जोर से उसके हाथ ने मेरे चूतड़ को दबोच लिया, एक उंगली सीधे कसी शलवार के बीच पिछवाड़े की दरार में घुस गई।
और अबकी चिलख जो उठी तो मैं चीख नहीं दबा पायी।
“अरे थोड़ी देर लेट जाओ, कुछ देर में दर्द कम हो जाएगा। पहली बार मरवाने में होता है…”
खिलखिलाते हुए बसंती बोली।
![[Image: Geeta-tumblr_p5ucnbnNRk1wcmpmwo2_1280.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/Geeta-tumblr_p5ucnbnNRk1wcmpmwo2_1280.jpg)
मैं जैसे ही चटाई पर बैठी, एक बार फिर जैसे ही मेरे नितम्ब फर्श पे लगे, जोर से फिर दर्द की लहर उठी।
“अरे तुम तो एकदमै नौसिखिया हो, पेट के बल लेटो, तनी एहपर कुछ देर तक कौनो जोर मत पड़े दो, आराम मिल जाएगा…”
और मैं चट्ट से पट हो गई। सच में दुखते पिछवाड़े को आराम मिल गया। बसंती ने एक हाथ मेरे पेट के नीचे रखा और जब तक मैं समझूँ-समझूँ, मेरी शलवार का नाड़ा खुल चुका था और दोनों हाथों से उसने शलवार सरका के घुटने तक।
मैंने कुछ ना-नुकुर किया, लेकिन हम दोनों जानते थे उसमें कोई दम नहीं थी। और कोई पहली बार तो मेरे कपड़े बसंती ने उठाये नहीं, सुबह-सुबह मेहंदी लगाते हुए कुर्ता उठाकर मेरे जोबन पे, चम्पा भाभी के सामने और उसके पहले जब वो मुझे उठाने गई थी, सीधे मेरी स्कर्ट के अंदर हाथ डालकर अच्छी तरह मेरी चुनमुनिया को रगड़ा मसला था।
![[Image: ass-hole-tumblr_p80hdwyrOX1wg25deo1_500.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/ass-hole-tumblr_p80hdwyrOX1wg25deo1_500.jpg)
कुछ देर में कुरता भी काफी ऊपर सरक चुका था लेकिन एक बात बसंती की सही थी, जब ठंडी हवा मेरे खुले चूतड़ों पे पड़ी तो धीरे-धीरे दर्द उड़ने लगा। बसंती की हथेली मेरे भरे-भरे गोरे गुदाज चूतड़ों को सहला रही थी दबोच रही थी।
और मुझे न जाने कैसा-कैसा लग रहा था। बस मस्ती से आँखें मुंदी जा रही थी, लग रहा था मैं बिना पंखो के बादलों के बीच उड़ रही हूँ। दर्द कहीं कपूर की तरह उड़ गया था। बसंती की उँगलियां बस… उईईईईईई, मैं जोर से चीखी-
“नहीं भौजी उधर नहीं…”
![[Image: ass-fingering-10761840.gif]](https://picsbees.com/images/2018/11/21/ass-fingering-10761840.gif)
दर्द से कराहते मैं बोली।
बसंती ने दोनों अंगूठे से पिछवाड़े का छेद फैलाकर पूरी ताकत से मंझली उंगली ठेल दी थी।