24-03-2021, 09:29 AM
सट गया , धंस गया , अंड़स गया
आज बंटू का इरादा भी पूरा था और प्लानिंग भी ,
बोरोलीन की ट्यूब , उसी की नोजल , और दबा के पूरी की पूरी ट्यूब की क्रीम भौजी की गाँड़ में , जो बचा खुचा था उसके मोटे सुपाड़े में
उसने जोर से नीचे दबे बंटू को आँख मारी , बस
इसके पहले भी वो दोनों कितनी बार जुगल बंदी कर चुके थे , बंटू ने जोर से मंटू को आँख मारी , बस मंटू ने धक्के की रफ़्तार नीचे से बढ़ाई , हर दूसरा धक्का , कम्मो भौजी के बच्चेदानी से टक्कर खा रहा था ,
ऊपर से अब पिछवाड़े का मोह छोड़ कर , एक हाथ से कस के बंटू भौजी के जोबन मीस रहा था और दूसरा जांघ के बीचों बीच उस जादू के बटन , भौजी की क्लिट पर , कभी सहलाता कभी दबाता , कभी क्लिट कस कस के रगड़ देता ,
बस दो चार मिनट में असर आ गया , कम्मो जोर जोर से झड़ने लगी , उसकी देह ढीली हो गयी , आँखे बंद हो रही थी ,
बस इसी का इंतज़ार तो कर रहे थे दोनों , नीचे से मंटू ने कस के अपनी दोनों टांगों से भौजी की कमर को बाँध लिया और दोनों हाथ भौजी की पीठ पर , उसका मोटा लम्बा लंड अभी भी भौजी की बूर में एकदम जड़ तक घुसा धंसा ,
बंटू ने पूरी ताकत से भौजी को जकड लिया था वो जरा भी नहीं हिल सकती थीं और अभी जिस तरह से तूफ़ान में पत्ता कांपता है , उस तरह से हिलते हुए वोतरह काँप रही थी ,
अब आराम से बंटू ने भौजी के दोनों बड़े बड़े चूतड़ों को अपने दोनों हाथों से पूरी ताकत से फैलाया , दो आधे कटे तरबूज की तरह बड़े , मस्त
जैसे दो पहाड़ियों के बीच कोई दर्रा छिपा हो , उसी तरह , एक खूब छोटा सा भूरा छेद ,
दोनों अंगूठों को लगाकर बंटू ने उस छेद को जोर लगा के ,... और जो पूरी की पूरी बोरोलीन की ट्यूब उसने खाली की थी भौजी की गाँड़ में , क्रीम अभी बजबजा रही थी , बस जरा सा अंगूठा अंदर घुसा और फिर जैसे वो दो हिस्से में ,
वो कसा चिपका छेद देखकर ही देवर का लंड बौरा रहा था , बस सुपाड़ा गाँड़ के दुबदबाते छेद से सट गया , एक हाथ से पकड़ कर बंटू ने जोर से ठेला , मुश्किल से खुले छेद में आधा बस जाकर सुपाड़ा अंड़स गया , अब उसका घुसना मुश्किल लग रहा था , एक तो भौजी की गांड का छेद इतना संकरा , दूसरे बंटू का सुपाड़ा भी फूल कर खूब मोटा हो गया था , पहाड़ी आलू ऐसा ,
अब बंटू ने पूरी ताकत से दोनों चूतड़ों को पकड़ा को पकड़ा और एक करारा धक्का मारा ,
उईईई उईईईईई , नीचे से कम्मो चीखी , जैसे पानी से बाहर निकल कर मछली तड़पती है एकदम उसी तरह वो तड़फड़ा रही थी , छूटने की कोशिश कर रही थी
पर नीचे से मंटू ने कस के अपने हाथों और पैरों से पूरी ताकत से कम्मो को भींच रखा था ,
एक धक्का और ,
दूसरा ,
तीसरा
और गप्पांक
सुपाड़ा पूरा अंदर , और भौजी की गांड ने कस के सुपाड़े को भींच लिया था जैसे कस के किसी बिछड़े पुराने दोस्त को भींच ले , .... और अब बंटू और मंटू दोनों ने समझ लिया था , भौजी लाख गाँड़ पटकें , गाँड़ से लंड अब बिना अच्छी तरह हचक के गाँड़ मारे निकलने वाला नहीं था ,
और ये बात दोनों के बीच फंसी कम्मो भी अच्छी तरह समझ रही थी , ये बात कम्मो भी अच्छी तरह समझ रही थी , ये बात नहीं की उसकी गाँड़ मारी नहीं गयी थी या गाँड़ मरवाने में उसे मजा नहीं आता था , खूब आता था। उसके आगे पीछे वाले दोनों छेद , चढ़ती जवानी में ही , मायके में ही खुल गए थे , एक बार अमराई में रात को एक लौंडे ने , और एक दो बार गाँव के एक ठाकुर ने ,
लेकिन शादी के पहले बस चार पांच बार , और पांच छह साल से शादी के बाद से एक बार भी नहीं , उसके मर्द को पिछवाड़े का शौक एकदम नहीं था , और अब तो साल में दस ग्यारह माह पंजाब रहता था , और आता तो थका मांदा , हफ्ते में दो तीन बार
आगे वाला
और कम्मो ने जो अपने देवरों नन्दोईयों को यार पाल रखा था न उन्हें ज्यादा शौक था पिछवाड़े का न मारने का सलीका ,
और अब देवर ने चूतड़ छोड़ कर दोनों बड़ी बड़ी चूँचियों को पकड़ लिया ,
चूँची पकड़ कर निचोड़ते हुए कस के गाँड़ मारने का मज़ा ही कुछ और है ,
पूरी ताकत से बंटू ने ढकेलना शुरू किया , लेकिन एक दो इंच , ढाई इंच और फिर लंड रुक गया ,
कम्मो भी समझ रही थी और बंटू भी असली इम्तहान तो अब है ,
गाँड़ का छल्ला ,
आज बंटू का इरादा भी पूरा था और प्लानिंग भी ,
बोरोलीन की ट्यूब , उसी की नोजल , और दबा के पूरी की पूरी ट्यूब की क्रीम भौजी की गाँड़ में , जो बचा खुचा था उसके मोटे सुपाड़े में
उसने जोर से नीचे दबे बंटू को आँख मारी , बस
इसके पहले भी वो दोनों कितनी बार जुगल बंदी कर चुके थे , बंटू ने जोर से मंटू को आँख मारी , बस मंटू ने धक्के की रफ़्तार नीचे से बढ़ाई , हर दूसरा धक्का , कम्मो भौजी के बच्चेदानी से टक्कर खा रहा था ,
ऊपर से अब पिछवाड़े का मोह छोड़ कर , एक हाथ से कस के बंटू भौजी के जोबन मीस रहा था और दूसरा जांघ के बीचों बीच उस जादू के बटन , भौजी की क्लिट पर , कभी सहलाता कभी दबाता , कभी क्लिट कस कस के रगड़ देता ,
बस दो चार मिनट में असर आ गया , कम्मो जोर जोर से झड़ने लगी , उसकी देह ढीली हो गयी , आँखे बंद हो रही थी ,
बस इसी का इंतज़ार तो कर रहे थे दोनों , नीचे से मंटू ने कस के अपनी दोनों टांगों से भौजी की कमर को बाँध लिया और दोनों हाथ भौजी की पीठ पर , उसका मोटा लम्बा लंड अभी भी भौजी की बूर में एकदम जड़ तक घुसा धंसा ,
बंटू ने पूरी ताकत से भौजी को जकड लिया था वो जरा भी नहीं हिल सकती थीं और अभी जिस तरह से तूफ़ान में पत्ता कांपता है , उस तरह से हिलते हुए वोतरह काँप रही थी ,
अब आराम से बंटू ने भौजी के दोनों बड़े बड़े चूतड़ों को अपने दोनों हाथों से पूरी ताकत से फैलाया , दो आधे कटे तरबूज की तरह बड़े , मस्त
जैसे दो पहाड़ियों के बीच कोई दर्रा छिपा हो , उसी तरह , एक खूब छोटा सा भूरा छेद ,
दोनों अंगूठों को लगाकर बंटू ने उस छेद को जोर लगा के ,... और जो पूरी की पूरी बोरोलीन की ट्यूब उसने खाली की थी भौजी की गाँड़ में , क्रीम अभी बजबजा रही थी , बस जरा सा अंगूठा अंदर घुसा और फिर जैसे वो दो हिस्से में ,
वो कसा चिपका छेद देखकर ही देवर का लंड बौरा रहा था , बस सुपाड़ा गाँड़ के दुबदबाते छेद से सट गया , एक हाथ से पकड़ कर बंटू ने जोर से ठेला , मुश्किल से खुले छेद में आधा बस जाकर सुपाड़ा अंड़स गया , अब उसका घुसना मुश्किल लग रहा था , एक तो भौजी की गांड का छेद इतना संकरा , दूसरे बंटू का सुपाड़ा भी फूल कर खूब मोटा हो गया था , पहाड़ी आलू ऐसा ,
अब बंटू ने पूरी ताकत से दोनों चूतड़ों को पकड़ा को पकड़ा और एक करारा धक्का मारा ,
उईईई उईईईईई , नीचे से कम्मो चीखी , जैसे पानी से बाहर निकल कर मछली तड़पती है एकदम उसी तरह वो तड़फड़ा रही थी , छूटने की कोशिश कर रही थी
पर नीचे से मंटू ने कस के अपने हाथों और पैरों से पूरी ताकत से कम्मो को भींच रखा था ,
एक धक्का और ,
दूसरा ,
तीसरा
और गप्पांक
सुपाड़ा पूरा अंदर , और भौजी की गांड ने कस के सुपाड़े को भींच लिया था जैसे कस के किसी बिछड़े पुराने दोस्त को भींच ले , .... और अब बंटू और मंटू दोनों ने समझ लिया था , भौजी लाख गाँड़ पटकें , गाँड़ से लंड अब बिना अच्छी तरह हचक के गाँड़ मारे निकलने वाला नहीं था ,
और ये बात दोनों के बीच फंसी कम्मो भी अच्छी तरह समझ रही थी , ये बात कम्मो भी अच्छी तरह समझ रही थी , ये बात नहीं की उसकी गाँड़ मारी नहीं गयी थी या गाँड़ मरवाने में उसे मजा नहीं आता था , खूब आता था। उसके आगे पीछे वाले दोनों छेद , चढ़ती जवानी में ही , मायके में ही खुल गए थे , एक बार अमराई में रात को एक लौंडे ने , और एक दो बार गाँव के एक ठाकुर ने ,
लेकिन शादी के पहले बस चार पांच बार , और पांच छह साल से शादी के बाद से एक बार भी नहीं , उसके मर्द को पिछवाड़े का शौक एकदम नहीं था , और अब तो साल में दस ग्यारह माह पंजाब रहता था , और आता तो थका मांदा , हफ्ते में दो तीन बार
आगे वाला
और कम्मो ने जो अपने देवरों नन्दोईयों को यार पाल रखा था न उन्हें ज्यादा शौक था पिछवाड़े का न मारने का सलीका ,
और अब देवर ने चूतड़ छोड़ कर दोनों बड़ी बड़ी चूँचियों को पकड़ लिया ,
चूँची पकड़ कर निचोड़ते हुए कस के गाँड़ मारने का मज़ा ही कुछ और है ,
पूरी ताकत से बंटू ने ढकेलना शुरू किया , लेकिन एक दो इंच , ढाई इंच और फिर लंड रुक गया ,
कम्मो भी समझ रही थी और बंटू भी असली इम्तहान तो अब है ,
गाँड़ का छल्ला ,