10-03-2021, 11:58 AM
कुछ अपनी कुछ उनकी
आजकल रातें किसी और ' काम' में गुजरती थीं,
और हाँ वो उस ' काम ' वाले ' काम ' में कमी न उन्होंने न आने दी , न मैंने , बस फर्क ये पड़ा की शुरू के दिनों में रात होने का इंतजार उन्हें भी रहता था , और सच कहूं तो मुझे भी। लेकिन अब इतना इन्तजार न वो कर सकते थे न मैं ,
तो बस थोड़ी सी पेट पूजा कहीं भी कभी भी , शुरू के दोनों में ४-६ बार की जो आदत उन्होंने डाल दी थी , ३-४ बार रात में , ( गुड मॉर्निंग जोड़कर ) और एक दो बार दिन में कर्टसी मेरी जेठानी। वो कम नहीं हुयी थी , कभी कभी बढ़ भी जाती थी ,
बस फर्क दो थे , अब हम दोनों न दिन देखते थे रात और दूसरी बात , पहले हर बार वही पहल करते थे , अभी भी , लेकिन अब कभी कभी मैं भी , ...
हाँ तो बात मैं कह रही थी रात का रूटीन बदलने की, तो एक कारण और सबसे बड़ा कारण थीं , उनकी सालियाँ
और सलहजें , ...
ससुराल का लालच , उन दस दिनों तक वो डिजिटल डेजर्ट में रहने वाले थे, फोन , मेरी दोनों सौतने, लैपी और आई पैड , सब बंद।
तो टारगेट , काम सब कुछ अभी ख़तम करना था, ...
लेकिन और भी बातें थी , मेरा भी एक लालच था , स्विट्जरलैंड में दस दिन फिर थोड़ा यूरोप का चक्कर , वो भी सड़ी गर्मीं में ,... इन्हे जो काम कर रहे थे उसका एक पेपर जून में प्रजेंट करना था , लासेन स्विट्जरलैंड में
हनीमून तो हम लोग गए नहीं थे , पर जितने कपल्स हनीमून में इंज्वाय करते हैं उससे ज्यादा हमने घर में ही मजे लिए थे , हर रोज सुहागरात ,... पूरे हफ्ते भर का प्रोग्राम था स्विट्जरलैंड का , दो दिन की इनकी कांफ्रेंस थी , एक दो दिन और कुछ मीटिंग विटिंग , लेकिन तीन दिन सिर्फ एक काम , ... बस वही ,...सटासट सटासट ,...
और इन्विटेशन में मैं भी शामिल हो गयी थी। मैं हर 'काम ' वाले ' ' काम ' में इनका साथ देती थी तो ये क्यों छोड़ देती थी , चलिए बताती हूँ साफ़ साफ़ ,
मैंने इंटर का कोर्स ( इंटरकोर्स तो इन्ही के साथ किया सबसे पहले ) करने के साथ फ्रेंच लैंग्वेज का एक डिप्लोमा किया था और मेरी एक पक्की सहेली जर्मन सीखती तो तो थोड़ा बहुत उस साली की टांग खींचने के चक्कर में बहुत हलकी फुलकी ,... तो बस ये जो पेपर पढ़ते थे , नेट पे कुछ फ्रेंच में भी और तर्जुमा करने का काम मेरे जिम्मे , इनके साथ में कुछ एक्सेल भी सीख गयी थी , तो सही अर्थों में सह धर्मिणी हो गयी थी , हाँ मैं भी नहीं , बात कर रही थी रात की और बात फ्रेंच पर आ गयी ,
असल में जब यहाँ रात होती थी तो उन सब जगहों पर दिन , खासतौर पर अमेरिका में , तो इन लोगों की ग्रुप मीटिंग कांफ्रेंस लेट इवनिंग या रात में , कुल ४-५ लोगों का ग्रुप था जो उस टॉपिक पर काम कर रहे थे , हाँ कभी कभी रीत भी आ के जुड़ जाती थी , ...
अरे बताया था तो रीत के बारे में , बनारसी , लेकिन अब पक्की पंजाबन बन गयी थी , बनारस की थी तो इनकी साली अपने आप , और मुझसे बड़ी थी तो मैं कभी दी कहती , कभी वो डांटती , नाम लेने के लिए तो मैं नाम भी ले लेती , ये सब लोग मिल के उस टॉपिक पर , लेकिन में रोल इन्ही का था ,
और इस के चक्कर में बिना कुछ समझे मैं भी कन्वर्जेंस , ए आई , बिग डाटा , ब्लॉकचेन सब बोलने लगी थी। तो उस दिन कांफ्रेंस ख़तम होगयी थी , मैं व्हाटसएप पर झाड़ू लगाने में जुटी थी और ये कुछ पढ़ लिख रहे थे , उसी समय कुछ झुंझलाहट में मैं पूछ बैठी , असल में ये व्हाट्सएप ऐसी चीज, जिसके बिना भी रहना मुश्किल और जिसके साथ भी रहना मुश्किल, आखिर एक एक जोक कोई दो बार चार बार कितनी बार पढ़ेगा , फिर चलो डिलीट करो ,... और सबसे ज्यादा परेशानी ग्रुप में, न खोलो तो भी ये बात खुल जाती है ,... इसलिए मैं ज्यादा नहीं खाली ४०-४२ ग्रुप में हूँ , कितनों को तो मना कर दिया , अब आप पूछेंगे तो बाकियों में से भी ,... लेकिन कैसे ,...
आजकल रातें किसी और ' काम' में गुजरती थीं,
और हाँ वो उस ' काम ' वाले ' काम ' में कमी न उन्होंने न आने दी , न मैंने , बस फर्क ये पड़ा की शुरू के दिनों में रात होने का इंतजार उन्हें भी रहता था , और सच कहूं तो मुझे भी। लेकिन अब इतना इन्तजार न वो कर सकते थे न मैं ,
तो बस थोड़ी सी पेट पूजा कहीं भी कभी भी , शुरू के दोनों में ४-६ बार की जो आदत उन्होंने डाल दी थी , ३-४ बार रात में , ( गुड मॉर्निंग जोड़कर ) और एक दो बार दिन में कर्टसी मेरी जेठानी। वो कम नहीं हुयी थी , कभी कभी बढ़ भी जाती थी ,
बस फर्क दो थे , अब हम दोनों न दिन देखते थे रात और दूसरी बात , पहले हर बार वही पहल करते थे , अभी भी , लेकिन अब कभी कभी मैं भी , ...
हाँ तो बात मैं कह रही थी रात का रूटीन बदलने की, तो एक कारण और सबसे बड़ा कारण थीं , उनकी सालियाँ
और सलहजें , ...
ससुराल का लालच , उन दस दिनों तक वो डिजिटल डेजर्ट में रहने वाले थे, फोन , मेरी दोनों सौतने, लैपी और आई पैड , सब बंद।
तो टारगेट , काम सब कुछ अभी ख़तम करना था, ...
लेकिन और भी बातें थी , मेरा भी एक लालच था , स्विट्जरलैंड में दस दिन फिर थोड़ा यूरोप का चक्कर , वो भी सड़ी गर्मीं में ,... इन्हे जो काम कर रहे थे उसका एक पेपर जून में प्रजेंट करना था , लासेन स्विट्जरलैंड में
हनीमून तो हम लोग गए नहीं थे , पर जितने कपल्स हनीमून में इंज्वाय करते हैं उससे ज्यादा हमने घर में ही मजे लिए थे , हर रोज सुहागरात ,... पूरे हफ्ते भर का प्रोग्राम था स्विट्जरलैंड का , दो दिन की इनकी कांफ्रेंस थी , एक दो दिन और कुछ मीटिंग विटिंग , लेकिन तीन दिन सिर्फ एक काम , ... बस वही ,...सटासट सटासट ,...
और इन्विटेशन में मैं भी शामिल हो गयी थी। मैं हर 'काम ' वाले ' ' काम ' में इनका साथ देती थी तो ये क्यों छोड़ देती थी , चलिए बताती हूँ साफ़ साफ़ ,
मैंने इंटर का कोर्स ( इंटरकोर्स तो इन्ही के साथ किया सबसे पहले ) करने के साथ फ्रेंच लैंग्वेज का एक डिप्लोमा किया था और मेरी एक पक्की सहेली जर्मन सीखती तो तो थोड़ा बहुत उस साली की टांग खींचने के चक्कर में बहुत हलकी फुलकी ,... तो बस ये जो पेपर पढ़ते थे , नेट पे कुछ फ्रेंच में भी और तर्जुमा करने का काम मेरे जिम्मे , इनके साथ में कुछ एक्सेल भी सीख गयी थी , तो सही अर्थों में सह धर्मिणी हो गयी थी , हाँ मैं भी नहीं , बात कर रही थी रात की और बात फ्रेंच पर आ गयी ,
असल में जब यहाँ रात होती थी तो उन सब जगहों पर दिन , खासतौर पर अमेरिका में , तो इन लोगों की ग्रुप मीटिंग कांफ्रेंस लेट इवनिंग या रात में , कुल ४-५ लोगों का ग्रुप था जो उस टॉपिक पर काम कर रहे थे , हाँ कभी कभी रीत भी आ के जुड़ जाती थी , ...
अरे बताया था तो रीत के बारे में , बनारसी , लेकिन अब पक्की पंजाबन बन गयी थी , बनारस की थी तो इनकी साली अपने आप , और मुझसे बड़ी थी तो मैं कभी दी कहती , कभी वो डांटती , नाम लेने के लिए तो मैं नाम भी ले लेती , ये सब लोग मिल के उस टॉपिक पर , लेकिन में रोल इन्ही का था ,
और इस के चक्कर में बिना कुछ समझे मैं भी कन्वर्जेंस , ए आई , बिग डाटा , ब्लॉकचेन सब बोलने लगी थी। तो उस दिन कांफ्रेंस ख़तम होगयी थी , मैं व्हाटसएप पर झाड़ू लगाने में जुटी थी और ये कुछ पढ़ लिख रहे थे , उसी समय कुछ झुंझलाहट में मैं पूछ बैठी , असल में ये व्हाट्सएप ऐसी चीज, जिसके बिना भी रहना मुश्किल और जिसके साथ भी रहना मुश्किल, आखिर एक एक जोक कोई दो बार चार बार कितनी बार पढ़ेगा , फिर चलो डिलीट करो ,... और सबसे ज्यादा परेशानी ग्रुप में, न खोलो तो भी ये बात खुल जाती है ,... इसलिए मैं ज्यादा नहीं खाली ४०-४२ ग्रुप में हूँ , कितनों को तो मना कर दिया , अब आप पूछेंगे तो बाकियों में से भी ,... लेकिन कैसे ,...