30-03-2019, 11:49 AM
टाइम ग्यारह से ज्यादा हो गया, मैं ऊपर वाली कोठरी में जाकर लेट गया।
‘अदिति आएगी?’ यह प्रश्न मन में उठा, साथ में मैंने अपनी चड्डी में हाथ घुसा कर लंड को सहलाया।
‘जरूर आयेगी… जब उसे कल की चुदाई बार बार याद आयेगी और उसकी चूत में सुरसुरी उठेगी तो आना ही पड़ेगा!’ मेरे मन ने जैसे मुझे जवाब दिया।
‘वो घर की बहू है, उसे भी तो तमाम जिम्मेवारियाँ निभानी हैं, उसके मायके से भी कितनी लेडीज आई हुईं हैं, सबको एंटरटेन करना पड़ रहा होगा।’ यही सब सोचते सोचते मैं सोने की कोशिश करने लगा।
पर नींद कहाँ, आ भी कैसे सकती थी!
यूं ही ऊंघते ऊँघते पता नहीं कितनी देर बीत गई, फिर किसी की धीमी पदचाप सुनाई दी, दरवाजा धीरे से खुला कोई भीतर घुसा और दरवाजा बंद कर दिया।
उस नीम अँधेरे में मैंने अदिति को उसके जिस्म से उठती परफ्यूम की सुगंध से पहचाना! हाँ वही थी!
वो चुपके से आकर मेरे बगल में लेट गई।
‘पापा जी. सो गये क्या?’ वो धीमे से फुसफुसाई।
‘नहीं, बेटा. तुम्हारा ही इंतज़ार था!’ मैंने उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे अपने से सटा लिया।
‘मेरा इंतज़ार क्यूँ? मैंने यहाँ आने को थोड़े ही बोला था।’ बहू रानी मेरे बालों में उँगलियों से कंघी करती हुई बोली।
‘फिर भी मुझे पता था कि तुम आओगी, आईं या नहीं?’ कहते हुए मैंने उसके दोनों गाल बारी बारी से चूम लिए।
‘पापाजी, वो तो नीचे सोने की जगह ही कहीं नहीं मिली तो आ गई!’ वो बोली और मेरी बांह में चिकोटी काटी।
बदले में मैंने उसके दोनों मम्मे दबोच लिए और उसके होंठों का रस पीने लगा, वो भी मेरा साथ देने लगी और चुम्बनों का दौर चल पड़ा।
कभी मेरी जीभ उसके मुंह में कभी उसकी मेरे मुंह में… कितना सरस… कितना मीठा मुंह था बहूरानी का! बताना मुश्किल है।
‘अदिति बेटा!’
‘हाँ पापा जी!’
‘आज मैं तुझे जी भर के प्यार करना चाहता हूँ।’
‘तो कर लीजिये न अपनी मनमानी, मैं रोकूंगी थोड़े ही!’
‘मैं लाइट जलाता हूँ, पहले तो तेरा हुस्न जी भर के देखूंगा!’
‘नहीं पापा जी, लाइट नहीं. कल की तरह अँधेरे में ही करो।’
‘मान जा न… मैं तुझे जी भर के देखना चाहता हूँ आज!’
‘नहीं, पापा जी, मैं अपना बदन कैसे दिखाऊं आपको? बहुत शर्म आ रही है।’
वो मना करती रही लेकिन मैं नहीं माना और उठ कर बत्ती जला दी, तेज रोशनी कोठरी में फैल गई और बहूरानी अपने घुटने मोड़ के सर झुका के लाज की गठरी बन गई।
मैं उसके बगल में लेट गया और उसे अपनी ओर खींच लिया वो लुढ़क कर मेरे सीने से आ लगी।
बहूरानी ने कपड़े बदल लिए थे और अब वो सलवार कुर्ता पहने हुए थी और मम्मों पर दुपट्टा पड़ा हुआ था।
सबसे पहले मैंने उसका दुपट्टा उससे अलग किया, उसकी गहरी क्लीवेज यानि वक्ष रेखा नुमायां हो गई। गोरे गोरे गदराये उरोजों का मिलन स्थल कैसी रमणीक घाटी के जैसा नजारा पेश करता है।
मैंने बरबस ही अपना मुंह वहाँ छिपा लिया और दोनों कपोतों को चूमने लगा, उन्हें धीरे धीरे दबाने मसलने लगा, भीतर हाथ घुसा कर स्तनों की घुण्डी चुटकी में मसलने लगा।
ऐसे करते ही बहूरानी की साँसें भारी हो गईं।
फिर उसके बदन को बाहों में भर कर मैं उस पर चढ़ गया उसके चेहरे पर चुम्बनों की बरसात कर दी। उसने आंखें खोल कर एक बार मेरी तरफ देखा फिर लाज से उसका मुख लाल पड़ गया। गले को चूमते ही उसने अपनी बाहें मेरे गले में पिरो दीं और होंठ से होंठ मिला दिए।
बहूरानी का नंगा जिस्म
फिर मैं बहूरानी को कुर्ता उतारने को मनाने लगा, बड़ी मुश्किल से उसने मुझे कुर्ता उतारने दिया।
कुर्ता के उतरते ही मैंने उसकी सलवार का नाड़ा एक झटके में खोल दिया और उसे भी खींच के एक तरफ फेंक दिया। ऐसा करते ही बहू रानी ने अपना मुंह हथेलियों से छिपा लिया लेकिन मैंने दोनों कलाइयाँ पकड़ कर अलग कर दीं और उसका जिस्म निहारने लगा.
बहूरानी अब सिर्फ ब्रेजरी और पैंटी में मेरे सामने लेटी थी। ऐसा क़यामत ढाने वाला हुस्न तो मैंने सिर्फ फिल्मों में ही देखा था, साक्षात रति देवी की प्रतिमूर्ति थी वो तो!
मेरे यूँ देखने से अदिति ने अपनी आँखें मूंद लीं और उसका चेहरा आरक्त हो गया।
उसके काले काले घने बालों के चोटी भी मैंने खोल दी और उसके बालों को यूं ही छितरा दिया, घने बादलों के बीच गुलाबी चाँद सा खिल उठा उसका चेहरा!
हल्के गुलाबी रंग की डिजाइनर ब्रा पैंटी में बहूरानी का हुस्न बेमिसाल लग रहा था। ब्रा में छिपे बड़े बड़े बूब्स उसकी साँसों के उतार चढ़ाव के साथ उठ बैठ रहे थे और पैंटी के ऊपर से दिख रहा उसकी चूत का उभरा हुआ त्रिभुज जिसके मध्य में त्रिभुज को विभाजित करती उसकी चूत की दरार की लाइन का मामूली सा अहसास हो रहा था।
साढ़े पांच फुट का कद, सुतवां बदन, न पतला न मोटा, जहाँ जितनी मोटाई गहराई अपेक्षित होती है बिल्कुल वैसा ही सांचे में ढला बदन, चिकनी मांसल जांघें और उनके बीच बसी वो सुख की खान!
जैसे कई दिनों का भूखा खाने पर टूट पड़ता है, वैसे ही मेरी हालत हो रही थी कि जल्दी से बहूरानी की चड्डी भी उतार फेंकू और उसकी टाँगें अपने कंधों पे रख के अपने मूसल जैसे लंड को एक ही झटके में उसकी चूत में पेल दूं!
लेकिन नहीं, अगर कोई पैसे से खरीदी गई रंडी वेश्या रही होती तो जरूर मैं उसे वैसी ही बेदर्दी से चोदता लेकिन अपनी बहूरानी की तो बड़े प्यार और एहतियात से लेने का मन था मेरा!
फिर मैंने अपने कपड़े भी उतार फेंके और पूरा नंगा हो गया, मेरा लंड तो पहले ही बहूरानी की छिपी चूत देखकर फनफना उठा था। मैं नंगा ही बहूरानी के ऊपर चढ़ गया और उसे चूमने काटने लगा।
बहूरानी का बदन भी अब गवाही दे रहा था कि वो मस्ता गई है लेकिन लाज की मारी अभी भी आँखें मूंदें पड़ी थी। मैंने उसकी पीठ के नीचे हाथ ले जा कर ब्रेजरी का हुक खोल दिया और उसके कन्धों के ऊपर से स्ट्रेप्स पकड़ कर ब्रा का खींच लिए!
‘अदिति आएगी?’ यह प्रश्न मन में उठा, साथ में मैंने अपनी चड्डी में हाथ घुसा कर लंड को सहलाया।
‘जरूर आयेगी… जब उसे कल की चुदाई बार बार याद आयेगी और उसकी चूत में सुरसुरी उठेगी तो आना ही पड़ेगा!’ मेरे मन ने जैसे मुझे जवाब दिया।
‘वो घर की बहू है, उसे भी तो तमाम जिम्मेवारियाँ निभानी हैं, उसके मायके से भी कितनी लेडीज आई हुईं हैं, सबको एंटरटेन करना पड़ रहा होगा।’ यही सब सोचते सोचते मैं सोने की कोशिश करने लगा।
पर नींद कहाँ, आ भी कैसे सकती थी!
यूं ही ऊंघते ऊँघते पता नहीं कितनी देर बीत गई, फिर किसी की धीमी पदचाप सुनाई दी, दरवाजा धीरे से खुला कोई भीतर घुसा और दरवाजा बंद कर दिया।
उस नीम अँधेरे में मैंने अदिति को उसके जिस्म से उठती परफ्यूम की सुगंध से पहचाना! हाँ वही थी!
वो चुपके से आकर मेरे बगल में लेट गई।
‘पापा जी. सो गये क्या?’ वो धीमे से फुसफुसाई।
‘नहीं, बेटा. तुम्हारा ही इंतज़ार था!’ मैंने उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे अपने से सटा लिया।
‘मेरा इंतज़ार क्यूँ? मैंने यहाँ आने को थोड़े ही बोला था।’ बहू रानी मेरे बालों में उँगलियों से कंघी करती हुई बोली।
‘फिर भी मुझे पता था कि तुम आओगी, आईं या नहीं?’ कहते हुए मैंने उसके दोनों गाल बारी बारी से चूम लिए।
‘पापाजी, वो तो नीचे सोने की जगह ही कहीं नहीं मिली तो आ गई!’ वो बोली और मेरी बांह में चिकोटी काटी।
बदले में मैंने उसके दोनों मम्मे दबोच लिए और उसके होंठों का रस पीने लगा, वो भी मेरा साथ देने लगी और चुम्बनों का दौर चल पड़ा।
कभी मेरी जीभ उसके मुंह में कभी उसकी मेरे मुंह में… कितना सरस… कितना मीठा मुंह था बहूरानी का! बताना मुश्किल है।
‘अदिति बेटा!’
‘हाँ पापा जी!’
‘आज मैं तुझे जी भर के प्यार करना चाहता हूँ।’
‘तो कर लीजिये न अपनी मनमानी, मैं रोकूंगी थोड़े ही!’
‘मैं लाइट जलाता हूँ, पहले तो तेरा हुस्न जी भर के देखूंगा!’
‘नहीं पापा जी, लाइट नहीं. कल की तरह अँधेरे में ही करो।’
‘मान जा न… मैं तुझे जी भर के देखना चाहता हूँ आज!’
‘नहीं, पापा जी, मैं अपना बदन कैसे दिखाऊं आपको? बहुत शर्म आ रही है।’
वो मना करती रही लेकिन मैं नहीं माना और उठ कर बत्ती जला दी, तेज रोशनी कोठरी में फैल गई और बहूरानी अपने घुटने मोड़ के सर झुका के लाज की गठरी बन गई।
मैं उसके बगल में लेट गया और उसे अपनी ओर खींच लिया वो लुढ़क कर मेरे सीने से आ लगी।
बहूरानी ने कपड़े बदल लिए थे और अब वो सलवार कुर्ता पहने हुए थी और मम्मों पर दुपट्टा पड़ा हुआ था।
सबसे पहले मैंने उसका दुपट्टा उससे अलग किया, उसकी गहरी क्लीवेज यानि वक्ष रेखा नुमायां हो गई। गोरे गोरे गदराये उरोजों का मिलन स्थल कैसी रमणीक घाटी के जैसा नजारा पेश करता है।
मैंने बरबस ही अपना मुंह वहाँ छिपा लिया और दोनों कपोतों को चूमने लगा, उन्हें धीरे धीरे दबाने मसलने लगा, भीतर हाथ घुसा कर स्तनों की घुण्डी चुटकी में मसलने लगा।
ऐसे करते ही बहूरानी की साँसें भारी हो गईं।
फिर उसके बदन को बाहों में भर कर मैं उस पर चढ़ गया उसके चेहरे पर चुम्बनों की बरसात कर दी। उसने आंखें खोल कर एक बार मेरी तरफ देखा फिर लाज से उसका मुख लाल पड़ गया। गले को चूमते ही उसने अपनी बाहें मेरे गले में पिरो दीं और होंठ से होंठ मिला दिए।
बहूरानी का नंगा जिस्म
फिर मैं बहूरानी को कुर्ता उतारने को मनाने लगा, बड़ी मुश्किल से उसने मुझे कुर्ता उतारने दिया।
कुर्ता के उतरते ही मैंने उसकी सलवार का नाड़ा एक झटके में खोल दिया और उसे भी खींच के एक तरफ फेंक दिया। ऐसा करते ही बहू रानी ने अपना मुंह हथेलियों से छिपा लिया लेकिन मैंने दोनों कलाइयाँ पकड़ कर अलग कर दीं और उसका जिस्म निहारने लगा.
बहूरानी अब सिर्फ ब्रेजरी और पैंटी में मेरे सामने लेटी थी। ऐसा क़यामत ढाने वाला हुस्न तो मैंने सिर्फ फिल्मों में ही देखा था, साक्षात रति देवी की प्रतिमूर्ति थी वो तो!
मेरे यूँ देखने से अदिति ने अपनी आँखें मूंद लीं और उसका चेहरा आरक्त हो गया।
उसके काले काले घने बालों के चोटी भी मैंने खोल दी और उसके बालों को यूं ही छितरा दिया, घने बादलों के बीच गुलाबी चाँद सा खिल उठा उसका चेहरा!
हल्के गुलाबी रंग की डिजाइनर ब्रा पैंटी में बहूरानी का हुस्न बेमिसाल लग रहा था। ब्रा में छिपे बड़े बड़े बूब्स उसकी साँसों के उतार चढ़ाव के साथ उठ बैठ रहे थे और पैंटी के ऊपर से दिख रहा उसकी चूत का उभरा हुआ त्रिभुज जिसके मध्य में त्रिभुज को विभाजित करती उसकी चूत की दरार की लाइन का मामूली सा अहसास हो रहा था।
साढ़े पांच फुट का कद, सुतवां बदन, न पतला न मोटा, जहाँ जितनी मोटाई गहराई अपेक्षित होती है बिल्कुल वैसा ही सांचे में ढला बदन, चिकनी मांसल जांघें और उनके बीच बसी वो सुख की खान!
जैसे कई दिनों का भूखा खाने पर टूट पड़ता है, वैसे ही मेरी हालत हो रही थी कि जल्दी से बहूरानी की चड्डी भी उतार फेंकू और उसकी टाँगें अपने कंधों पे रख के अपने मूसल जैसे लंड को एक ही झटके में उसकी चूत में पेल दूं!
लेकिन नहीं, अगर कोई पैसे से खरीदी गई रंडी वेश्या रही होती तो जरूर मैं उसे वैसी ही बेदर्दी से चोदता लेकिन अपनी बहूरानी की तो बड़े प्यार और एहतियात से लेने का मन था मेरा!
फिर मैंने अपने कपड़े भी उतार फेंके और पूरा नंगा हो गया, मेरा लंड तो पहले ही बहूरानी की छिपी चूत देखकर फनफना उठा था। मैं नंगा ही बहूरानी के ऊपर चढ़ गया और उसे चूमने काटने लगा।
बहूरानी का बदन भी अब गवाही दे रहा था कि वो मस्ता गई है लेकिन लाज की मारी अभी भी आँखें मूंदें पड़ी थी। मैंने उसकी पीठ के नीचे हाथ ले जा कर ब्रेजरी का हुक खोल दिया और उसके कन्धों के ऊपर से स्ट्रेप्स पकड़ कर ब्रा का खींच लिए!
// सुनील पंडित //
मैं तो सिर्फ तेरी दिल की धड़कन महसूस करना चाहता था
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!