30-03-2019, 11:48 AM
‘देखो, घबराओ मत, तुम्हारी चिन्ता का कारण मुझे पता है, तुम किसी भी बात की चिन्ता फिकर मत करो।’
‘कौन सी चिन्ता पापा? मुझे कोई टेंशन नहीं है!’
‘देखो अदिति बेटा, मुझे सब पता है कि तुझे किस बात का टेंशन है, अब मैं इस बात को कैसे कहूँ… देखो, ध्यान से सुनना बेटा! गलती न तुम्हारी थी न मेरी… वो सब आकस्मिक ही हुआ, कल रात मैंने अपना बिस्तर ऊपर सामान वाली कोठरी में लगा लिया था और मैं
जैसे रोज सोता हूँ वैसे ही निर्वस्त्र सो रहा था। अब मुझे क्या पता था कि कोई आधी रात के बाद वहाँ आ जाएगा।’
मेरी बात सुनते ही अदिति ने सर झुका लिया।
‘और फिर मैंने कितना प्रयास किया था उन सब बातों से बचने का… लेकिन तू तो पूरी निर्वस्त्र होकर मुझसे लिपटी जा रही थी और तो और मेरा लिंग भी तूने अपने मुंह में भर के चूसा और न जाने क्या क्या…’ मैंने जानबूझ कर अपनी बात अधूरी छोड़ दी।
‘पापा जी, सारी की सारी गलती मेरी ही थी, मेरा ही दिमाग ख़राब हो गया था, अभिनव ने ही मुझे वहाँ ऊपर वाले कमरे में बुलाया था लेकिन वो खुद यहाँ सबके साथ पार्टी करता रहा ऊपर गया ही नहीं! मैं उससे मिलने को बहुत उतावली और बेचैन थी इसलिए अभिनव के धोखे में आपसे लिपट गई और तरह तरह से रिझाने मनाने लगी, मैं समझी थी कि मेरे इंतज़ार में अभिनव लेटा है, मुझे माफ़ कर दीजिये!’
‘लेकिन अदिति बेटा, कम से कम तुम्हें अपने पति और दूसरे आदमी में फर्क तो पहचानना चाहिए था?’
‘पापाजी, शुरू शुरू में तो मुझे आपमें और अभिनव में मुझे कोई फर्क नहीं लगा, पर जब मैंने आपका वो अंग पकड़ा तो मुझे लगा कि यह तो अभिनव के अंग से बहुत मोटा और लम्बा है लेकिन मैंने अपनी उत्तेजना में इसे भी अपना वहम समझा और फिर जब आप मुझमें समा गये थे तब भी मुझे लगा कि यह कोई और आदमी है। फिर उस स्टेज पर मैं क्या कर सकती थी तो जो हो रहा था वो होने दिया।’
‘फिर जब सुबह मैं सोकर उठी तो अकेली थी, अगर रात अभिनव मेरे साथ होता तो वो तब तक सो रहा होता क्योंकि वो काफी देर तक सोता है। मैं समझ गई थी कि मैं छली जा चुकी हूँ और तभी से चिन्ता में थी पता नहीं वो कौन था जिसे अनजाने में ही मैंने अपना तन सौंप दिया था। आपने अच्छा किया जो मुझे हकीकत बता दी, नहीं तो मैं पता नहीं क्या करती!’
‘पापा जी, भगवान् जी गवाह हैं कि इसके पहले अभिनव के सिवा किसी और ने मुझे गलत नीयत से छुआ भी नहीं था। मैंने अपना कौमार्य भी सुहागरात को अभिनव को ही समर्पित किया था। पापा जी, मैं यकीन करो, मैं ऐसी वैसी बिल्कुल नहीं हूँ, आपने तो बहुत कोशिश की थी कि गलत काम न करो मेरे साथ लेकिन मेरी ही मति मारी गई थी; मैं आपको तरह तरह से उत्तेजित कर रही थी फिर आप भी कहाँ तक खुद पर काबू रख सकते थे।’
अदिति रुआंसी होकर बोली और मेरे कदमों में सर झुका कर रोने लगी।
और जल्दी ही उसका रोना थोड़ा तेज हो गया।
रोने की आवाज सुन के कोई भी आ सकता था, ‘अदिति बेटा, कोई बात नहीं, चल भूल जा उस बात को!’ मैंने उसे सांत्वना दी लेकिन उसकी रुलाई रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी।
फिर मैंने अदिति को पकड़ के उठाया और अपने से लगा कर उसकी पीठ सहलाते हुए उसे सांत्वना देने लगा। मेरे आत्मीय आलिंगन की अनुभूति कर अदिति का रोना और तेज हो गया जैसे कि बच्चों में होता ही है।
‘अब जल्दी से चुप हो जा, देख मेहमानों से भरा घर है, कोई भी तेरे रोने की आवाज सुन के कभी भी यहाँ आ सकता है।’ मैंने उसके बालों में हाथ फेरते हुए उसे सांत्वना दी।
मेरी बात सुन के अदिति ने खुद पर कंट्रोल किया और उसका सुबकना कम हो गया लेकिन वो मेरे आलिंगन में बंधी रही।
मैंने प्यार से उसके आंसू अपने रुमाल से पौंछ दिए और उसे फिर से कलेजे से लगा लिया और उसकी पीठ और सर पर आहिस्ता आहिस्ता दुलारते हुए उसे शान्त करने लगा, वो भी मेरी छाती में सिर छुपाये चुप बंधी रही मुझसे!
समय जैसे थम सा गया और दो जिस्म जैसे आपस में बातें करने लगे।
सांसारिक रिश्तों के बंधनों से अलग स्त्री-पुरुष, नर-मादा जिस्मों का मिलन अपनी ही रागिनी छेड़ देता है, प्रकृति के अपने स्वतंत्र नियम हैं, युवा भाई बहन, पिता पुत्री इत्यादि को इसीलिए एकान्त में एक साथ रहने, सोने को मना किया गया है। उत्तरी दक्षिणी ध्रुवों में परस्पर खिंचाव होता ही एक दूजे में समा जाने के लिए…
हमारे बीच भी वही हुआ, मेरे स्नेह प्यार का बंधन, आलिंगन बहुत जल्दी काम-पाश में बदलने लगा और अब मेरे बाहुपाश में जकड़ी हुई एक भरपूर जवान नारी देह थी जिसे मैंने कल रात पूर्ण नग्न रूप में भोगा था।
‘कौन सी चिन्ता पापा? मुझे कोई टेंशन नहीं है!’
‘देखो अदिति बेटा, मुझे सब पता है कि तुझे किस बात का टेंशन है, अब मैं इस बात को कैसे कहूँ… देखो, ध्यान से सुनना बेटा! गलती न तुम्हारी थी न मेरी… वो सब आकस्मिक ही हुआ, कल रात मैंने अपना बिस्तर ऊपर सामान वाली कोठरी में लगा लिया था और मैं
जैसे रोज सोता हूँ वैसे ही निर्वस्त्र सो रहा था। अब मुझे क्या पता था कि कोई आधी रात के बाद वहाँ आ जाएगा।’
मेरी बात सुनते ही अदिति ने सर झुका लिया।
‘और फिर मैंने कितना प्रयास किया था उन सब बातों से बचने का… लेकिन तू तो पूरी निर्वस्त्र होकर मुझसे लिपटी जा रही थी और तो और मेरा लिंग भी तूने अपने मुंह में भर के चूसा और न जाने क्या क्या…’ मैंने जानबूझ कर अपनी बात अधूरी छोड़ दी।
‘पापा जी, सारी की सारी गलती मेरी ही थी, मेरा ही दिमाग ख़राब हो गया था, अभिनव ने ही मुझे वहाँ ऊपर वाले कमरे में बुलाया था लेकिन वो खुद यहाँ सबके साथ पार्टी करता रहा ऊपर गया ही नहीं! मैं उससे मिलने को बहुत उतावली और बेचैन थी इसलिए अभिनव के धोखे में आपसे लिपट गई और तरह तरह से रिझाने मनाने लगी, मैं समझी थी कि मेरे इंतज़ार में अभिनव लेटा है, मुझे माफ़ कर दीजिये!’
‘लेकिन अदिति बेटा, कम से कम तुम्हें अपने पति और दूसरे आदमी में फर्क तो पहचानना चाहिए था?’
‘पापाजी, शुरू शुरू में तो मुझे आपमें और अभिनव में मुझे कोई फर्क नहीं लगा, पर जब मैंने आपका वो अंग पकड़ा तो मुझे लगा कि यह तो अभिनव के अंग से बहुत मोटा और लम्बा है लेकिन मैंने अपनी उत्तेजना में इसे भी अपना वहम समझा और फिर जब आप मुझमें समा गये थे तब भी मुझे लगा कि यह कोई और आदमी है। फिर उस स्टेज पर मैं क्या कर सकती थी तो जो हो रहा था वो होने दिया।’
‘फिर जब सुबह मैं सोकर उठी तो अकेली थी, अगर रात अभिनव मेरे साथ होता तो वो तब तक सो रहा होता क्योंकि वो काफी देर तक सोता है। मैं समझ गई थी कि मैं छली जा चुकी हूँ और तभी से चिन्ता में थी पता नहीं वो कौन था जिसे अनजाने में ही मैंने अपना तन सौंप दिया था। आपने अच्छा किया जो मुझे हकीकत बता दी, नहीं तो मैं पता नहीं क्या करती!’
‘पापा जी, भगवान् जी गवाह हैं कि इसके पहले अभिनव के सिवा किसी और ने मुझे गलत नीयत से छुआ भी नहीं था। मैंने अपना कौमार्य भी सुहागरात को अभिनव को ही समर्पित किया था। पापा जी, मैं यकीन करो, मैं ऐसी वैसी बिल्कुल नहीं हूँ, आपने तो बहुत कोशिश की थी कि गलत काम न करो मेरे साथ लेकिन मेरी ही मति मारी गई थी; मैं आपको तरह तरह से उत्तेजित कर रही थी फिर आप भी कहाँ तक खुद पर काबू रख सकते थे।’
अदिति रुआंसी होकर बोली और मेरे कदमों में सर झुका कर रोने लगी।
और जल्दी ही उसका रोना थोड़ा तेज हो गया।
रोने की आवाज सुन के कोई भी आ सकता था, ‘अदिति बेटा, कोई बात नहीं, चल भूल जा उस बात को!’ मैंने उसे सांत्वना दी लेकिन उसकी रुलाई रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी।
फिर मैंने अदिति को पकड़ के उठाया और अपने से लगा कर उसकी पीठ सहलाते हुए उसे सांत्वना देने लगा। मेरे आत्मीय आलिंगन की अनुभूति कर अदिति का रोना और तेज हो गया जैसे कि बच्चों में होता ही है।
‘अब जल्दी से चुप हो जा, देख मेहमानों से भरा घर है, कोई भी तेरे रोने की आवाज सुन के कभी भी यहाँ आ सकता है।’ मैंने उसके बालों में हाथ फेरते हुए उसे सांत्वना दी।
मेरी बात सुन के अदिति ने खुद पर कंट्रोल किया और उसका सुबकना कम हो गया लेकिन वो मेरे आलिंगन में बंधी रही।
मैंने प्यार से उसके आंसू अपने रुमाल से पौंछ दिए और उसे फिर से कलेजे से लगा लिया और उसकी पीठ और सर पर आहिस्ता आहिस्ता दुलारते हुए उसे शान्त करने लगा, वो भी मेरी छाती में सिर छुपाये चुप बंधी रही मुझसे!
समय जैसे थम सा गया और दो जिस्म जैसे आपस में बातें करने लगे।
सांसारिक रिश्तों के बंधनों से अलग स्त्री-पुरुष, नर-मादा जिस्मों का मिलन अपनी ही रागिनी छेड़ देता है, प्रकृति के अपने स्वतंत्र नियम हैं, युवा भाई बहन, पिता पुत्री इत्यादि को इसीलिए एकान्त में एक साथ रहने, सोने को मना किया गया है। उत्तरी दक्षिणी ध्रुवों में परस्पर खिंचाव होता ही एक दूजे में समा जाने के लिए…
हमारे बीच भी वही हुआ, मेरे स्नेह प्यार का बंधन, आलिंगन बहुत जल्दी काम-पाश में बदलने लगा और अब मेरे बाहुपाश में जकड़ी हुई एक भरपूर जवान नारी देह थी जिसे मैंने कल रात पूर्ण नग्न रूप में भोगा था।
// सुनील पंडित //
मैं तो सिर्फ तेरी दिल की धड़कन महसूस करना चाहता था
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!