30-03-2019, 11:46 AM
by: सुकान्त शर्मा
मित्रो, मेरी पिछली हिन्दी सेक्स स्टोरी
अनोखी चूत चुदाई की वो रात
में मैंने अपनी बहूरानी के साथ हुई आकस्मिक चुदाई का विस्तृत वर्णन किया था कि कैसे मैं छत पर बनी एकांत कोठरी में नंगा होकर लेटा हुआ मुठ मार रहा था, तभी मेरी बहूरानी वहाँ आई और अंधेरे में उसने मुझे अपना पति समझ कर मुझसे चुदवाने को रति केलि करना शुरू कर दी।
मैंने बहुत प्रयास किया कि हम ससुर बहू के बीच यौन सम्बन्ध न बन पायें लेकिन मेरी बहूरानी अदिति की यौन चेष्टाओं से मेरे संस्कार पराजित हुए और मैंने उसे रिफ्लेक्स एक्शन वासना के वशीभूत हो कर अपनी बाहों में जकड़ लिया और हम ससुर बहू संभोगरत हो गए।
फिर आनन्ददायक सम्भोग के उपरान्त बहूरानी के सो जाने के बाद मैं चुपके से बाहर निकल कर नीचे कहीं सो गया।
पिछली कहानी मैंने इसी मुकाम पर ला कर जानबूझ कर अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज के पाठक पाठिकाओं के बुद्धि विवेक पर छोड़ दी थी कि वे जैसे चाहें इस सत्य कथा को लें क्योंकि इसके बाद जो कुछ घटित हुआ वो मेरे संस्कारों के सर्वथा विपरीत था और समझ भी आ गया था कि पर-स्त्री की चूत कितनी शक्तिमान होती है जिसने देवों को भी भ्रमित कर लुभाया है; अनेक ऋषियों ने अपनी जीवन भर की तपस्या को क्षण मात्र में इस चूत के लिए न्यौछावर कर दी, इसका कारण बनी मेनका, उर्वशी, रम्भा…
और हाँ, कई पाठकों ने अपनी पसन्द नापसन्द की प्रतिक्रियाएँ भी लिखीं. यह भी कमेन्ट आया कि अब इस कहानी के आगे कोई तर्कसंगत ‘प्लॉट’ बनाना संभव ही नहीं है।
इन सभी पाठकों के विचारों को मेरा नमन जिन्होंने मुझे इस कथा को आगे लिखने को प्रेरित किया।
अब आगे:
मैं चोरों की तरह दबे पांव नीचे उतरा और गद्दों के ढेर में से गद्दा तकिया निकाल मेहमानों के बीच बिछा कर लेट गया। मन में तरह तरह की आशंकाएँ और तनाव था। बहूरानी को चोदने के बाद मुझे कोई पछतावा तो नहीं था क्योंकि मैंने वैसा कभी नहीं चाहा था जो कुछ हुआ वो परिस्थितिवश ही हुआ था, हाँ मुझे अफ़सोस जरूर हो रहा था उस बात पर!
सोने के प्रयास में उनींदा सा जाग रहा था, कभी नींद का झोंका सा आता लेकिन नींद उड़ जाती।
रात की चुदाई ने मुझे भरपूर मज़ा दिया था, बहूरानी के जवान जिस्म का वो आलिंगन, उसके भरे भरे मुलायम से मम्मे और उसकी वो कचोरी सी फूली हुई नर्म गर्म टाइट चूत और उसका वो कमर उठा उठा के मेरा लंड लीलना सब कुछ मुझमें मादक उत्तेजना फिर से भरने लगा।
लेकिन मैंने उन विचारों से जैसे तैसे ध्यान हटाया और अपने बेटे अभिनव के बारे में सोचने लगा।
मेरा पुत्र अभिनव कहाँ था? बहूरानी के साथ चूत चुदाई का प्रोग्राम फिक्स करने के बाद वो क्यों नहीं गया ऊपर कोठरी में?
इतना मुझे विश्वास था कि अभिनव ऊपर कोठरी में नहीं गया था क्योंकि अंधेरी कोठरी में मैंने बिखरे सामन को खिसका के लेटने लायक जगह बनाई थी और वहाँ कोई ऐसा चिह्न नहीं था कि कोई वहाँ गया था!
फिर कहाँ था अभिनव?
दूसरा टेंशन मेरे दिमाग में यह था कि बहूरानी को क्या सचमुच पता नहीं चल पाया था कि वो किस से चुद गई थी?
और अगर अदिति ने अभिनव से रात की चुदाई के आनन्द के बारे में बात छेड़ी तो भेद खुल ही गया होगा!
अगर अभिनव ही पहले अदिति को यह बता दे कि वो किसी कारणवश नहीं मिल पाया था तो अदिति भी कुछ नहीं बताने वाली अभिनव को!
लेकिन फिर अदिति के मन में यह चिंता सताएगी कि उसके पति ने नहीं तो फिर उसे अंधेरे में किसने चोद डाला? और उससे ज्यादा चिन्ता उसे इस बात की हो जायेगी कि चोदने वाला तो उसे पहचानता है कि वो किसे चोद रहा है लेकिन वह चोदने वाले को नहीं पहचान सकी!
अब मेहमानों से भरे घर में कई सारे आदमी हैं कौन होगा वो… और अब वो उसे दिन में देख के कैसे मन ही मन खुश हो रहा होगा… वो कैसे सबके सामने आंख उठा कर चल पाएगी??
इत्यादि इत्यादि…
इन्ही चिंताओं के कारण सो जाना संभव ही नहीं हो पाया, मैं सुबह जल्दी ही पांच बजे उठ गया और नित्य की तरह फ्रेश होकर मोर्निंग
वाक को निकल गया।
लौटकर रोज की तरह स्नान ध्यान करते करते सात बज गये, फिर मैंने अभिनव की तलाश करने का निश्चय किया कि वो कहाँ था।
तभी मुझे रानी आती दिखाई दी, उसे देखते ही मेरे मन में किसी चोर के जैसा डर लगा, आखिर मुझे ज़िन्दगी में पहली बार अपनी बीवी से बेवफाई करनी पड़ी थी।
‘अरे बेगम साहिबा, कुछ चाय वाय पिलवा दे यार, कब से इंतजार में बैठा हूँ।’ प्रत्यक्षतः मैंने मुस्कुराते हुए रानी से चाय की फरमाइश की।
‘चाय अदिति बना रही है, अभी लाती ही होगी।’ रानी बोली।
‘अच्छा, और अपने साहबजादे कहाँ हैं? सोकर उठा या नहीं वो?’ मैंने अभिनव के बारे में पूछा।
‘अभी नहीं उठा, रात को देर तक सबका पीना पिलाना होता रहा, फिर सब लोग खाना खा के मिश्रा जी के यहाँ सोने चले गये थे, वहीं सो रहा होगा अभी!’ रानी बोली।
‘हम्म्म्म…’ तो ये बात थी। शादी में अभिनव की उमर के कई रिश्तेदार भी आये थे और ये सब ड्रिंक बियर वगैरह का शौक तो शादी ब्याह में चलता ही रहता है और जिन मिश्रा जी का जिक्र यहाँ हुआ वो मेरे पड़ोसी हैं, उनके यहाँ के दो कमरे हमने खाली करवा लिए थे मेहमानों के लिए!
तो अब तस्वीर कुछ साफ़ हो गई थी कि अभिनव ने बहू अदिति से चुदाई का प्रोग्राम तो बनाया लेकिन वो रिश्तेदारों के साथ ड्रिंक पार्टी करने लगा और फिर बगल के मकान में जाकर सो गया।
अब ऐसे में उसका अदिति से मिलने जाने का सवाल ही नहीं उठता।
तो क्या अदिति को भी पता चल चुका होगा अब तक कि उसका पति अभी तक मिश्रा जी के यहाँ सो रहा है? यह स्वाभाविक सा प्रश्न मेरे भीतर से उठा।
लेकिन मैं निश्चिन्त नहीं हो पाया… पर मन कुछ हल्का हो गया था और स्वस्थ तरीके से सोचने लगा था।
तभी मन में विचार कौंधा कि अगर अदिति को यह बात पता लग चुकी है कि अभिनव रात में कहीं और सोया था तो उसके चेहरे पर भय और घबराहट झलकनी चाहिए क्योंकि वो अभी अपने चोदने वाले से अनजान है।
यह गुणा भाग दिमाग में आते ही मेरा मन हल्का हो गया; तभी अदिति चाय लाती हुई दिखी।
नहाई धोई बहूरानी बहुत उजली उजली सी, खिली खिली सी लग रही थी, ज़िन्दगी में पहली बार मैंने उसकी रूपराशि को, उसके मदमस्त यौवन को, उसके उत्तेजक कामुक सौन्दर्य को नज़र भर कर निहारा।
साढ़े पांच फुट की ऊँचाई लिए तना हुआ गोरा गुलाबी जिस्म, गोल मासूम सा मनमोहक चेहरा, भरा भरा निचला होंठ जिससे शहद जैसा रस टपकने को ही था; यही होंठ तो कल मेरे लंड को प्यार से चूम रहे थे, चूस रहे थे।
चटख हरे रंग की साड़ी और मैचिंग ब्लाउज में उसका गोरा गुलाबी तन अलग ही छटा बिखेर रहा था, तिस पर उसके हाथों में रची सुर्ख लाल मेहंदी, कलाई गले कानों में झिलमिलाते सोने के गहनें; उसके ब्लाउज पर उभरे हुए उसके स्तनों के मदमस्त उभार, गले में पड़ा मंगलसूत्र गले के नीचे बनी स्तनों की घाटी में जा छुपा था।
हाथों में चाय की ट्रे थामे वो गजगामिनी अपने कजरारे नयन झुकाये धीरे धीरे मेरी ओर चली आ रही थी, मेरी नज़र रह रह कर उसके वक्ष के उभार निहारती और फिर उसकी जांघों के मध्य जा कर ठहर जाती; वहीं तो उसकी वो टाइट कसी हुई चूत छिपी थी जहाँ अब से कोई पांच छः घंटे पहले मेरा लंड अन्दर बाहर हो रहा था और वो उछल उछल कर उसे फाड़ डालने की जिद कर रही थी।
मित्रो, मेरी पिछली हिन्दी सेक्स स्टोरी
अनोखी चूत चुदाई की वो रात
में मैंने अपनी बहूरानी के साथ हुई आकस्मिक चुदाई का विस्तृत वर्णन किया था कि कैसे मैं छत पर बनी एकांत कोठरी में नंगा होकर लेटा हुआ मुठ मार रहा था, तभी मेरी बहूरानी वहाँ आई और अंधेरे में उसने मुझे अपना पति समझ कर मुझसे चुदवाने को रति केलि करना शुरू कर दी।
मैंने बहुत प्रयास किया कि हम ससुर बहू के बीच यौन सम्बन्ध न बन पायें लेकिन मेरी बहूरानी अदिति की यौन चेष्टाओं से मेरे संस्कार पराजित हुए और मैंने उसे रिफ्लेक्स एक्शन वासना के वशीभूत हो कर अपनी बाहों में जकड़ लिया और हम ससुर बहू संभोगरत हो गए।
फिर आनन्ददायक सम्भोग के उपरान्त बहूरानी के सो जाने के बाद मैं चुपके से बाहर निकल कर नीचे कहीं सो गया।
पिछली कहानी मैंने इसी मुकाम पर ला कर जानबूझ कर अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज के पाठक पाठिकाओं के बुद्धि विवेक पर छोड़ दी थी कि वे जैसे चाहें इस सत्य कथा को लें क्योंकि इसके बाद जो कुछ घटित हुआ वो मेरे संस्कारों के सर्वथा विपरीत था और समझ भी आ गया था कि पर-स्त्री की चूत कितनी शक्तिमान होती है जिसने देवों को भी भ्रमित कर लुभाया है; अनेक ऋषियों ने अपनी जीवन भर की तपस्या को क्षण मात्र में इस चूत के लिए न्यौछावर कर दी, इसका कारण बनी मेनका, उर्वशी, रम्भा…
और हाँ, कई पाठकों ने अपनी पसन्द नापसन्द की प्रतिक्रियाएँ भी लिखीं. यह भी कमेन्ट आया कि अब इस कहानी के आगे कोई तर्कसंगत ‘प्लॉट’ बनाना संभव ही नहीं है।
इन सभी पाठकों के विचारों को मेरा नमन जिन्होंने मुझे इस कथा को आगे लिखने को प्रेरित किया।
अब आगे:
मैं चोरों की तरह दबे पांव नीचे उतरा और गद्दों के ढेर में से गद्दा तकिया निकाल मेहमानों के बीच बिछा कर लेट गया। मन में तरह तरह की आशंकाएँ और तनाव था। बहूरानी को चोदने के बाद मुझे कोई पछतावा तो नहीं था क्योंकि मैंने वैसा कभी नहीं चाहा था जो कुछ हुआ वो परिस्थितिवश ही हुआ था, हाँ मुझे अफ़सोस जरूर हो रहा था उस बात पर!
सोने के प्रयास में उनींदा सा जाग रहा था, कभी नींद का झोंका सा आता लेकिन नींद उड़ जाती।
रात की चुदाई ने मुझे भरपूर मज़ा दिया था, बहूरानी के जवान जिस्म का वो आलिंगन, उसके भरे भरे मुलायम से मम्मे और उसकी वो कचोरी सी फूली हुई नर्म गर्म टाइट चूत और उसका वो कमर उठा उठा के मेरा लंड लीलना सब कुछ मुझमें मादक उत्तेजना फिर से भरने लगा।
लेकिन मैंने उन विचारों से जैसे तैसे ध्यान हटाया और अपने बेटे अभिनव के बारे में सोचने लगा।
मेरा पुत्र अभिनव कहाँ था? बहूरानी के साथ चूत चुदाई का प्रोग्राम फिक्स करने के बाद वो क्यों नहीं गया ऊपर कोठरी में?
इतना मुझे विश्वास था कि अभिनव ऊपर कोठरी में नहीं गया था क्योंकि अंधेरी कोठरी में मैंने बिखरे सामन को खिसका के लेटने लायक जगह बनाई थी और वहाँ कोई ऐसा चिह्न नहीं था कि कोई वहाँ गया था!
फिर कहाँ था अभिनव?
दूसरा टेंशन मेरे दिमाग में यह था कि बहूरानी को क्या सचमुच पता नहीं चल पाया था कि वो किस से चुद गई थी?
और अगर अदिति ने अभिनव से रात की चुदाई के आनन्द के बारे में बात छेड़ी तो भेद खुल ही गया होगा!
अगर अभिनव ही पहले अदिति को यह बता दे कि वो किसी कारणवश नहीं मिल पाया था तो अदिति भी कुछ नहीं बताने वाली अभिनव को!
लेकिन फिर अदिति के मन में यह चिंता सताएगी कि उसके पति ने नहीं तो फिर उसे अंधेरे में किसने चोद डाला? और उससे ज्यादा चिन्ता उसे इस बात की हो जायेगी कि चोदने वाला तो उसे पहचानता है कि वो किसे चोद रहा है लेकिन वह चोदने वाले को नहीं पहचान सकी!
अब मेहमानों से भरे घर में कई सारे आदमी हैं कौन होगा वो… और अब वो उसे दिन में देख के कैसे मन ही मन खुश हो रहा होगा… वो कैसे सबके सामने आंख उठा कर चल पाएगी??
इत्यादि इत्यादि…
इन्ही चिंताओं के कारण सो जाना संभव ही नहीं हो पाया, मैं सुबह जल्दी ही पांच बजे उठ गया और नित्य की तरह फ्रेश होकर मोर्निंग
वाक को निकल गया।
लौटकर रोज की तरह स्नान ध्यान करते करते सात बज गये, फिर मैंने अभिनव की तलाश करने का निश्चय किया कि वो कहाँ था।
तभी मुझे रानी आती दिखाई दी, उसे देखते ही मेरे मन में किसी चोर के जैसा डर लगा, आखिर मुझे ज़िन्दगी में पहली बार अपनी बीवी से बेवफाई करनी पड़ी थी।
‘अरे बेगम साहिबा, कुछ चाय वाय पिलवा दे यार, कब से इंतजार में बैठा हूँ।’ प्रत्यक्षतः मैंने मुस्कुराते हुए रानी से चाय की फरमाइश की।
‘चाय अदिति बना रही है, अभी लाती ही होगी।’ रानी बोली।
‘अच्छा, और अपने साहबजादे कहाँ हैं? सोकर उठा या नहीं वो?’ मैंने अभिनव के बारे में पूछा।
‘अभी नहीं उठा, रात को देर तक सबका पीना पिलाना होता रहा, फिर सब लोग खाना खा के मिश्रा जी के यहाँ सोने चले गये थे, वहीं सो रहा होगा अभी!’ रानी बोली।
‘हम्म्म्म…’ तो ये बात थी। शादी में अभिनव की उमर के कई रिश्तेदार भी आये थे और ये सब ड्रिंक बियर वगैरह का शौक तो शादी ब्याह में चलता ही रहता है और जिन मिश्रा जी का जिक्र यहाँ हुआ वो मेरे पड़ोसी हैं, उनके यहाँ के दो कमरे हमने खाली करवा लिए थे मेहमानों के लिए!
तो अब तस्वीर कुछ साफ़ हो गई थी कि अभिनव ने बहू अदिति से चुदाई का प्रोग्राम तो बनाया लेकिन वो रिश्तेदारों के साथ ड्रिंक पार्टी करने लगा और फिर बगल के मकान में जाकर सो गया।
अब ऐसे में उसका अदिति से मिलने जाने का सवाल ही नहीं उठता।
तो क्या अदिति को भी पता चल चुका होगा अब तक कि उसका पति अभी तक मिश्रा जी के यहाँ सो रहा है? यह स्वाभाविक सा प्रश्न मेरे भीतर से उठा।
लेकिन मैं निश्चिन्त नहीं हो पाया… पर मन कुछ हल्का हो गया था और स्वस्थ तरीके से सोचने लगा था।
तभी मन में विचार कौंधा कि अगर अदिति को यह बात पता लग चुकी है कि अभिनव रात में कहीं और सोया था तो उसके चेहरे पर भय और घबराहट झलकनी चाहिए क्योंकि वो अभी अपने चोदने वाले से अनजान है।
यह गुणा भाग दिमाग में आते ही मेरा मन हल्का हो गया; तभी अदिति चाय लाती हुई दिखी।
नहाई धोई बहूरानी बहुत उजली उजली सी, खिली खिली सी लग रही थी, ज़िन्दगी में पहली बार मैंने उसकी रूपराशि को, उसके मदमस्त यौवन को, उसके उत्तेजक कामुक सौन्दर्य को नज़र भर कर निहारा।
साढ़े पांच फुट की ऊँचाई लिए तना हुआ गोरा गुलाबी जिस्म, गोल मासूम सा मनमोहक चेहरा, भरा भरा निचला होंठ जिससे शहद जैसा रस टपकने को ही था; यही होंठ तो कल मेरे लंड को प्यार से चूम रहे थे, चूस रहे थे।
चटख हरे रंग की साड़ी और मैचिंग ब्लाउज में उसका गोरा गुलाबी तन अलग ही छटा बिखेर रहा था, तिस पर उसके हाथों में रची सुर्ख लाल मेहंदी, कलाई गले कानों में झिलमिलाते सोने के गहनें; उसके ब्लाउज पर उभरे हुए उसके स्तनों के मदमस्त उभार, गले में पड़ा मंगलसूत्र गले के नीचे बनी स्तनों की घाटी में जा छुपा था।
हाथों में चाय की ट्रे थामे वो गजगामिनी अपने कजरारे नयन झुकाये धीरे धीरे मेरी ओर चली आ रही थी, मेरी नज़र रह रह कर उसके वक्ष के उभार निहारती और फिर उसकी जांघों के मध्य जा कर ठहर जाती; वहीं तो उसकी वो टाइट कसी हुई चूत छिपी थी जहाँ अब से कोई पांच छः घंटे पहले मेरा लंड अन्दर बाहर हो रहा था और वो उछल उछल कर उसे फाड़ डालने की जिद कर रही थी।
// सुनील पंडित //
मैं तो सिर्फ तेरी दिल की धड़कन महसूस करना चाहता था
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!