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Adultery शर्मिली भाभी
#61
चोरी तो उसने की थी अपने ईमान की और ड़ाका ड़ाला था अपनी ही माँ समान सगी भाभी की जवानी
पर और खून किया था अपनी ही अन्तरात्मा का। लेकिन ये किसी को दिखाई नहीं दे रहा था। खुद तुषार को भी नहीं।

वैसे भी आज के जमानें में चोरी उसी को कहते हैं जो पकड़ी जाय। सो तुषार साहूकारों की तरह खड़ा हो गया। वो समझ चुका था कि बात कुछ और ही है और वो नाहक ही ड़र रहा था।

कुछ क्षण पहले फ़ांसी लगा कर मरने की बात सोचने वाला तुषार न केवल फ़िर से निर्लज्ज बन गया बल्कि पहले से ज्यादा बेखौफ़ भी । उसे पूरा यकीन हो गया कि ये गदराई हसीना कभी अपना मुंह नही खोलेगी। ऎसा विचार मन में आते ही उसने पूरे दो दिनों के बाद फ़िर से अपनी भाभी के गदाराए बदन को नीचे से उपर तक देखा और उसकी नज़र फ़िर से उसकी झिनी साड़ी के अंदर दिखने वाले उसके क्लिवेज पर पड़ने लगी। उसके लंड़ ने पेण्ट के अंदर से झटका मार रश्मी की रसीली जवानी को सलामी दे ड़ाली।

जिस तरह से दिया बुझने से पहले आखिरी बार जोर से जलता है उसी तरह तुषार की अन्तरात्मा भी उसे लगातार दो दिन तक अपराध बोध कराने के बाद आज सदा सदा के लिये चुप हो गई। तुषार काफ़ी आज़ाद मह्सूस कर रहा था।

पाप करने के लिये लोग नये नये बहाने बनाते हैं और उसे सही साबित करने के लिये अपने हिसाब से तर्क देते हैं। इंसान का मन एक वकील की तरह काम करता है। जिस तरह एक वकील अदालत में अपने तर्कों से अपने क्लाइंट के गलत काम को भी सही साबित कर देता है और उसे सजा से बचा लेता है। उसी प्रकार तुषार के अंदर बैठा उसका मन रुपी वकील भी उसे समझा रहा था कि उसने जो किया उसमें कुछ भी गलत नहीं है। आखिर रश्मी जवान है और पति उससे काफ़ी दूर है और अगले काफ़ी महिनों तक उसके यहां वापस आने की कोई गुंजाईश भी नही है, ऎसे में अपनी शरीर की जरुरतों के आगे यदि वो झुक गई और किसी और से उसका रिश्ता बन गया तो?

जिस प्रकार इंदौर की एक जैन साध्वी इंदुप्रभा अपने शरीर के ताप को न सह पाई और अपने ही दूध वाले राधेश्याम गुर्जर के साथ भाग गई थी तो कैसे पूरे देश में जैन समाज की नाक कटी थी। कहीं रश्मी ने ऎसा कोई कदम उठाया तो पूरे समाज मे तुम्हारे परिवार की नाक ही ही कट जायगी ।

सो अपने मन के तर्कों को मानते हुए तुषार ने अपने परिवार की इज्जत बचाने के लिये अपनी सगी भाभी को चोदने का फ़ैसला किया था। उसके मन ने उसे ऎसा तर्क दिया था कि उसकी आत्मग्लानी अब गायब हो चुकी थी और रश्मी भाभी को चोदना अब उसे पाप नहीं बल्की अपना धर्म लग रहा था। उसे लगने लगा था कि परिवार की इज्जत बचाने के लिये उसे अपनी भाभी को चोदने का धर्म निभाना ही पड़ेगा।

तुषार ने अपनी मां से कहा नहीं मां ऎसी कोई बात नही है दरासल मुझे बहुत भूख भी लगी और मैं बहुत थक भी गया हूं ,इसीलिये आपको ऎसा लगा। फ़िर उसने मां के हाथ पकड़ कर पूछा अब बता भी दो न मां । मां ने हंसते हुए रश्मी की तरफ़ देखा और पूछा क्यों बहू बता दूं इसे या नहीं? रश्मी ने जवाब में कुछ नहीं कहा केवल मुस्कुरा दिया। मां ने रश्मी की तरफ़ बनावटी गुस्से से देखते हुए कहा " अरि रहने दे, तू तो बोलने से रही, तेरा तो कोई खून भी कर दे तो भी तू उसे कुछ नहीं कहेगी बस खड़ी खड़ी देखती रहेगी"।

अब मां ने तुषार की तरफ़ देख कर कहा " सुन बेटा बड़ी अच्छी खबर है, तेरी सुधा के साथ बात पक्की हो गई है। और परसों राज भी आ रहा है अपने बास के साथ बस उसके दो दिन के बाद तेरी सुधा के साथ सगाई कर देंगे।"
तुषार : सगाई ! इतनी जल्दी, और फ़िर राज भैया तो सिर्फ़ एक दिन के लिये ही आ रहे हैं न?
उसके पापा ने बीच में टोकते हुए कहा " एक दिन के लिये नहीं बेटा पूरे चार दिनों के लिये आ रहे है वो दोनों।
तुषार (तनिक चौंकते हुए ) : दोनों! कौन दोनों पापा ?
पापा : अरे बेटा राज और उसका बास दोनों । वो मेंरा बहुत अच्छा दोस्त भी है और फ़िर वो मेरें बेटे का बास भी तो है। मुझे अपने बेटे की तरक्की भी तो करवानी है न। तुम सब ध्यान से सुन लो राज के बास की खातिरदारी में कोई कसर बाकी नहीं रहनी चाहिये समझे।
सब ने एक दूसरे की तरफ़ देखा और सहमती में अपना सर हिला दिया। तभी पापा खड़े हुए और कहने लगे चलो भई अब आज की सभा समाप्त करो मुझे तो बहुत नींद आ रही है, ऎसा कहते हुए वो अपने कमरे की तरफ़ चले गये। उनको जाते देख तुषार की मां भी उनके पिछे चली गई और "दिया" भी सबको गुड़ नाईट कहते हुए अपने कमरे में चली गई।

दो दिनों की लुका छिपी के बाद तुषार और रश्मी भी अब आज के महौल के बाद सामान्य हो चुके थे और दो दिनों के बाद दोनो ने एक दूसरे को देखा और मुस्कारा दिये।उसकी मुस्कुराहट में उसे सहमती और बेबसी दोनो नजर आ रही थी।

लेकिन शिकारी को उससे क्या ? वो तो अपने शिकार को बेबस देख कर और खुश होता है। तुषार का लण्ड़ फ़िर से खड़ा होने लगा था।

एक चतुर शेर जिस तरह से झुंड़ से अपने शिकार को पहले अलग करता है और फ़िर उसे थका कर उस पर झपट्टा मार कर उसका काम तमाम कर देता है उसी तरह तुषार ने रश्मी को अलग थलग तो कर दिया था और अब उस पर झपटने की तैयारी कर रहा था।

वो दोनों भी अब उपर अपने अपने कमरों की तरफ़ जाने लगे। रश्मी थोड़ा आगे थी और तुषार उसके पिछे। रश्मी जैसे ही सीढियों पर पांव रखती उसकी बड़ी बड़ी विशाल मांसल गांड़ बडे उत्तेजक तरिके से हिलता उसे देख कर उसके पिछे आ रहे तुषार बुरी तरह से उत्तेजित हो गया और उसका लंड़ पेंट फाड़ कर बाहर आने के लिये बेताब होने लगा।

इसी तरह अपनी भाभी की हिलती गांड़ को देखते हुए वो उपर तक पहुंच गया। जैसे ही रश्मी उसके दरवाजे के सामने से गुजरी उसने पिछे से अवाज लगाई, भाभी।

रश्मी रुक गई उसने पिछे मुड़ कर तुषार की तरफ़ देखा। तब तक वो रश्मी के पास पहुंच गया।
रश्मी के पास पहुंच कर उसने उससे बोला मैं आपको थैंक्स कहना तो भूल ही गया था। वो मुस्काराई लेकिन प्रत्यक्षत: बोली किस बात का थैंक्स?
तुषार : जी वो सगाई की बात पक्की कराने के लिये।
रश्मी: अच्छा! लेकिन इसमें थैक्स जैसी क्या बात है जब उमर होती है तो शादी तो करनी ही पड़ती है न, वरना बच्चे बिगड़ जाते हैं। ऎसा बोल कर वो नजर निची कर व्यंग से मुस्कुराने लगी।
तुषार : हां ठीक कहा आपने सब काम ठीक समय पर होना चाहिये वरना कुछ लोग बिगड़ जाते है और कुछ कुंठित हो जाते है। अब हंसने की बारी तुषार की थी। उसने रश्मी का हाथ पकड़ा और कहा आओ न भाभी अंदर बैठ कर कुछ बाते करते हैं।
रश्मी : अभी ! अरे नहीं कल बात करेंगे मुझे नींद आ रही है।
लेकिन उसकी बात को अन्सुना करते हुए उसे लगभग खिंचते हुए अपने कमरे में ले आया और बोला मुझे सुधा के बारे में बताओ।
रश्मी : क्या बताऊं मै उसके बारे में ? वो तो एक सीधी सादी घरेलु लड़्की है और क्या ?
तुषार : वो तो होगी ही आखिर आपकी बहन जो है। लेकिन मुझे और बताईये उसके बारे में जैसे उसकी पसंद नापसंद उसके शौक बगैरह । इस बात करते हुए तुषार ने रश्मी को अपने पलंग पर बैठा दिया और खुद उससे लग्भग सट कर बैठ गया। इस दौरान उसने रश्मी का हाथ थामे रखा और सदा की भांती रश्मी लाचार की तरह बैठी रही उसमें अपना छुड़ाने का साहस नहीं था।

वो उसे सुधा के बारे में बताने लगी। लेकिन तुषार का ध्यान उसकी बातों में नहीं बल्की उसके जिस्म पर था। वो तो किसी तरह रश्मी को अपने पास बैठाये रखना चाहता था। इसी तरह बाते करते हुए लग्भग २०-२५ मीनट हो गये तो अचानक वो झटके से खड़ी हो गई और उसने कहा अब चलना चाहिये काफ़ी देर हो गई है सुबह जल्दी उठना है। तुषार भी खड़ा हो गया और बोला ठीक है भाभी लेकिन एक बात मैं बार बार आपसे कहना चाहता हूं ।
रश्मी : वो क्या?
तुषार : यही की आप बहुत अच्छी हो और ऎसा कहते हुए उसने रश्मी के गाल पर एक हल्का सा चुंबन लगा दिया।
इस अप्रत्याशित बात से रश्मी थोड़ी हड़बड़ा जाती है और केवल इतना ही कह पाती है " अरे" , और फ़िर वो अपने रुम की तरफ़ तेज कदमों से चलते हुए जाने लगती है। तुषार मुस्कुरा देता है और हौले से कहता है गुड़ नाईट भाभी।
वो भी प्रत्युत्तर में गुड़ नाईट कहती है और अपने रुम में चली जाती है।

तुषार उसको अपने रुम के अंदर तक जाते देखता है । दरसल वो उसकी गांड़ो को घूर रहा था। रश्मी की गांड़ तुषार की सबसे बड़ी कमजोरी थी।

जैसे ही वो अपन्रे रुम में चली जाती है, वो तुरंत तेजी से चलते हुए छ्त पर चला जाता है और फ़िर कूलर के छेद से अंदर देखने लगता हैं। अंदर रश्मी हमेशा की तरह नंगी हो कर अपने कपड़े बदलती है जिसे देख तुषार बदहवास हो जाता है। रश्मी के कपड़े बदलने के बाद छत पर बैठने का कोई मतलब नही था सो तुषार अपने कमरे में जाता है और अपनी भाभी के नंगे जिस्म को याद करते हुए मुठ्ठ मार कर सो जाता है।

रात को सोने में देर हो जाने के कारण रश्मी सुबह जल्दी नहीं उठ पाती , जब सो कर उठने पर उसकी नजर घड़ी पर पड़्ती है तो वो हड़्बड़ा जाती है। सुबह के आठ बज चुके थे । वो एक झटके में पलंग से नीचे कूदती है जल्दी से अपना मुंह धोती है कपड़े बदल कर और थोड़ा बाल बना कर तुरंत नीचे की तरफ़ भागती है।

नीचे का नजारा उसकी आशा के अनुरुप ही था। मां रसोई में बड़्बडाते हुए काम कर रही थी और उसके ससुर और ननद नाश्ते के लिये हलाकान हो रहे थे। दरसल रश्मी की सास की काम करने की आदत छूट चुकी थी किचन में वो यदा कदा ही आती थी,और आती भी तो केवल रश्मी को ये बताने के लिये कि उसे आज क्या पकाना है। सो उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि कौन सा सामान कहां रखा हुआ है और यही वजह थी को रश्मी पर झुंझला रही थी।

रश्मी को देखते ही वो फ़ट पड़ी और तनिक तेज आवाज में बोली : आ गई इतनी जल्दी अरी थोड़ा और सो लेती अभी बखत ही कितना हुआ है? सीधा खा पी कर उतरती । रश्मी जानती थी मां के गुस्से की वजह दरअसल उसे किचन में सामान नहीं मिलने क्कि वजह से वो झुंझला रही थी और बाहर उसके ससुर जी उनका मजाक उड़ा रहे थे।

रश्मी ने किचन में जाते ही मोर्चा संभाल लिया । उसने मां से कहा दर असल कल रात को बातें करते हुए काफ़ी देर हो गई थी इसी वजह से आज उठनें में काफ़ी देर हो गई मम्मीजी । मैं तो सीधे नीचे ही आ गई पहले आप लोगों को नाश्ता वगैरे बना कर दे दूं फ़िर जा कर नहा लूंगी। उसकी बात सुन मम्मी चीखते हुए कहती है क्या कहा तुमने तुम बाद में नहा कर आओगी यानी तुम अभी बिना नहाये नीचे आ गई हो? और वो भी किचन में !

उसने रश्मी को डांटते हुए कहा : चल निकल यहां से , निकल किचन के बाहर और जा कर नहा कर आ, तुझे पता है न तेरे पापा को यदि पता चल जायेगा तो वो आसमान सर पर उठा लेंगे। उन्होंने जानबूझ कर ये बातें जोर से कही ताकी उसके ससुर भी ये बातें सुन ले। ताकी थोडी डांट उनसे भी रश्मी को पड़ जाय लेकिन उसका दांव उल्टा पड़ गया, उन्होंने वहीं से बैठे हुए कहा : वाह देखो बेचारी रश्मी को उसे हमारी कितनी चिंता है बिना नहाये ही ही आ गई। तुम रहने दो बेटा रश्मी तुम आराम से जा कर नहाकर नीचे उतरो कोई जल्दी नहीं है। आज तो तुम्हारी मम्मी के हाथ का नाश्ता ही करेंगे।

उनकी ये बातें सुन कर पहले से जली भुनी बैठी उसकी मां और चिढ़ गई और जोर जोर से चिल्लाने लगी , और चढाओ सर पे सबको यदि मैंने किया होता तो चिल्ला चिल्ला कर सर पर आसमान उठा लिया होता और धर्म के ठेकेदार बन कर दुनिया भर ताने मार दिये होते और इसे कहते हो कोई बात नहीं। उसके पापाजी ये बातें सुन कर जोर जोर से हंसने लगे हॊ हॊ हो

और कहने लगे अरे क्या हो गया एक दिन यदि तुम बना कर खिला दोगी तो? यदि नहीं बनाना तो साफ़ साफ़ बोल दो हम बाहर जा कर कुछ खा लेंगे छोटि सी बात का बतंगड मत बनाओ।

अपने पति के तेवर देख कर वो तुरंत चुप हो जाती है और नाश्ता बनाने में लग जाती है और धीरे से रश्मी से कहती है अब जा न यहां से और जल्दी से तैयार हो कर आ, क्या दोपहर का खाना भी बनवायेगी क्या? रश्मी ने मुस्कुराते हुए अपनी सास को जल्दी जल्दी सब सामान कहां पडे़ है बताया और किचन से बाहर निकल गई।

वो तेजी से अपने रुम की तरफ़ जा रही थी और नाश्ते की टेबल पर बैठा तुषार उसकी बड़ी बड़ी गांड़ को हुलते देख कर आंहे भर रहा था।

अभी रश्मी को उपर गये मुश्किल से पांच मिनट ही हुए थे कि उसकी मां फ़िर बड़्बड़ाने लगी और बाहर आ कर चिल्लाकर पूछने लगी कि बेसन का डब्बा कहां रखा है रश्मी? लेकिन वो शायद अपने कमरे में जा चुकी थी इसलिये शायद वो सुन नहीं पाई

सो उसकी मां को कई जवाब नही मिला। उसने दो तीन बाहर जोर से चिल्लाया लेकिन कोई जवाब नहीं मिला तो उसने झुंझलाते हुए तुषार को कहा जा तो बेटा उपर जा कर तेरी भाभी से पूछ कर बता बेसन का डिब्बा कहां रखा है उसने ? "दिया" तो थी एक नंबर की आलसी सीढी चढना तो जैसे उसके लिये सजा से कम नहीं था सो ये काम तो तुषार को ही करना था।

अब तुषार उपर जाता है और भाभी के कमरे बाहर से उन्हें पुकारता है, भाभी। लेकिन कोई जवाब नहीं मिलता वो फ़िर उसी तरह फ़िर से दो तीन बार चिल्लाता है लेकिन कोई जवाब नहीं मिलता तो उसे काफ़ी आश्चर्य होता है और वो दरवाजे को धक्का दे कर अंदर जाता है।

लेकिन वहां रश्मी तो थी ही नहीं वो फ़िर कहता है ,भाभी ! लेकिन वो वहां होती तो जवाब देती न। अब वो भाभी के कमरे के पिछले दरवाजे के परदे को हटा कर बाल्कनी में जाता है लेकिन भाभी वहां भी नहीं थी। वो सोच ही रहा था कि आखिर ये गई कहां?

तभी रश्मी कमरे में आती है और जल्दी से कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर देती है। वो बाहर निकलना चाहता ही था कि उसे रश्मी की चूड़ीयों की आवाज सुनाई देने लगती है खन खन खन खन , अनुभवी तुषार तुरंत समझ जाता है कि उसकी भाभी अब अपने कपड़े उतार रही है और अब बाथरुम में जा कर नहायेगी। छत में कूलर के छेद से वो कई बार अपनी भाभी को कपड़े बदलते हुए देख चुका था और इस दौरान होने वाली उसकी चूड़ियों की अवाज को अच्छी तरह से पहचानता था। तुषार के रोम रोम में रश्मी समा चुकी थी।

रश्मी का नंगा बदन उसकी आंखों के आगे घूमने लगा और नंगी रश्मी की कल्पना कर के ही उसका लंड़ बुरी तरह से खड़ा हो गया। वो चाहता तो तुरंत बाहर कर भाभी को रोक सकता था और कमरे से बाहर जा सकता था लेकिन एक ही कमरें दोनों के होने और उसके सामने ही रश्मी के कपड़े बदले जाने से तुषार की अपनी भाभी के रसीले बदन को चोदने की तमन्ना के कारण वो ऐसा नहीं कर सका ।

और आज तो हद ही हो गई देवर,भाभी दोनों एक ही कमरे में और भाभी एक्दम नंगी । तुषार के लिये तो जैसे तमाम परिस्थिति उसके हाथ में थी जिस मौके को बनाने के लिये वो योजना बना रहा था वो तो उसे इतनी जल्दी मिल गया इसकी तो उसने कल्पना भी नहीं की थी। इसीलिये उसने रुम में पड़े रहने में ही अपना फ़ायदा नजर आया।

तुषार भूल गया कि वो उपर क्यों आया था अब वो भाभी के पूरी तरह से नंगी हो कर बाथरुम में जाने का इंतजार करने लगा। दर असल रश्मी उपर आ कर सीधे छत में चली जाती है कपड़े उठाने के लिये कल की व्यस्तता की वजह से वो कपड़े उटाना भूल गई थी वो जल्दी से कपड़े उठाकर अपने कमरे में आती है और उसके कपड़े उठाने के दौरान ही तुषार उसे पूछने के लिये उसके कमरे में आता है और उसे नहीं पा कर वो उसे देखने बाल्कनी में चला जाता है।

ये सब इतनी तेजी से हुआ कि न तो रश्मी को तुषार के आने का पता चला और न ही तुषार को रश्मी के रुम से बाहर निकलने का मौका मिला।

तभी तुषार को बाथरुम के नल के चालू होने की आवाज आई वो समझ गया कि मेंरी गुलबदन रश्मी बाथरुम में चली गई है। उसने हौले से परदा हटाया और वो रुम में आ गया । अंदर दृष्य तुषार को काफ़ी उत्तेजित करने वाला था ।

कमरे में एक तरफ़ रश्मी की उतारी हुई साडी बिखरी पडी थी तो दूसरे टेबल पर रश्मी की अंड़रवियर , ब्रा , लहंगा और साड़ी पड़े थे। इसका मतलब साफ़ था कि रश्मी नहाने के बाद कपड़े बाथरुम में पहनने के बदले अपने कमरे में ही पहनती थी , याने के बाद वो नंगी ही कमरे में आती थी।

उसे किसी बात का ड़र भी नही था क्यों कि उसका अपना कमरा था और किसी के भी वहां आने का कोई खतरा नहीं था।

तुषार समझ गया कि रश्मी नहाने के बाद नंगी बाहर आयेगी, और उसने सोच लिया कि उसे अब क्या करना है?

रश्मी के स्वभाव और अब तक उसने जो कुछ किया था उसके साथ उस आचरण को देखते वो ज्यादा भयभीत नहीं था लेकिन फ़िर भी दिल में एक धुक्धुकी मची हुई थी जो कि स्वाभाविक था। लेकिन उसने सोच लिया था कि यदि इसे चोदना है तो कभी न कभी तो इसके सामने खुलना ही पड़ेगा और हिम्मत तो झुटाने ही पड़ेगी ही तो आज ही क्यों नहीं? इससे अच्छा मौका कहां मिलेगा? वो चाहता तो भी ऎसा मौका नहीं बना सकता था।

अब तुषार को फ़िर से बाथरुम के अंदर चूड़ियों की अवाज सुनाई देने लगी वो समझ गया कि रश्मी अब पूरी तरह से नंगी हो रही है। थोड़ी ही देर मे उसे पानी के खड़्खड़ाने की अवाज आने लगी याने उसने नहाना चालू कर दिया था। तभी रश्मी ने अंदर शावर चालू कर दिया और फ़ौवारे का मजा लेने लगी ।

अब तुषार हौले से अपने सर कॊ थोड़ा सा तिरछा करते हुए अंदर झांकने की कोशीश की ।

बाथरुम में पानी भरने के कारण उसके टाईल्स एक प्रकार से मिरर का काम कर रहे थे और रश्मी की नंगी छाया उसमें साफ़ दिखाई दे रही थी। अब तक तुषार काफ़ी सहज हो चुका था और उसका सारा भय समाप्त हो चुका था और वो पूरी तरह से वासना की गिरफ़्त में आ चुका था। उसने देखा रश्मी अपने शरीर पर साबुन लगा चुकी है उसका पूरा शरीर उअके झाग से भरा हुआ है, अब वो अपने चेहरे साबुन लगा रही थी और उसकी आंखे बंद थी और वो इस पूरी तरह से बेखबर थी कि तुषार उसे घूर रहा है वो शायद इस बात कि कल्पना ही नहीं कर सकती थी कि कभी ऎसा भी हो सकता है।

जैसे ही तुषार ने देखा कि वो अपने चेहरे में साबुन लगा रही है और उसकी आंखें बंद है वो तुरंत बाथरुम के दरवाजे के सामने आ गया और अपने सामने ही भाभी के नंगे बदन को घूरने लगा। पूरी तरह से साबुन लगा चुकने के बाद वो अब अपनी पीठ और कुल्हों पर साबुन लगाने लगी। तुषार का कलेजा बाहर आने लगा उसे खुद पर नियंत्रण करना संभव नहीं लग रहा था

लेकिन उसने थोड़ा और इंतजार करना ठीक समझा। अब उसने अपने पूरे शरीर पर हाथ घुमाया और हाथों को साबुन वाला कर के उसे अपनी चूत में लगा दिया और अपनी चूत में साबुन लगाने लगी।

वो धीरे धीरे अपनी चूत को सहला रही थी और अंदर तक साबुन लगा कर उसे साफ़ कर रही थी। अब तक उसकी आंखें बंद ही थी क्योंकि साबुन उसके चेहरे पर लगा हुआ था और तुषार उसी तरह बेखौफ़ रश्मी के नंगे बदन को घुरते रहा । उसने देखा अब रश्मी कुछ ज्यादा ही जोर से अपनी चूत को मसल रही थी शायद उसे ऐसा करने में मजा आ रहा था।

अब उसने अपनी उंगली को हल्का सा साबुन वाला कर के उसे अपनी चूत के अंदर डाल दिया और उसे अंदर तक साफ़ करने लगी और धीरे धीरे उसे अंदर बाहर करने लगी।

स्त्री की योनी की बनावट ही ऎसी होती है कि उसे अपनी योनी की सफ़ाई पर खास ध्यान देना होता है अन्यथा उसके संक्रमित होने का खतरा बना रहता है और उसे यूरिन इन्फ़ेक्शन का खतरा हो सकता है।लेकिन तुषार को ऐसा लगा कि रश्मी चूत की सफ़ाई के अलावा भी कुछ और कर रही है। बेचारी बिना पति के आखिर करे भी क्या? लेकिन उसका नितांत गोपनीय रहस्य भी अब तुषार के सामने उजागर हो गया।

अंदर तक उंगली ड़ालने के कारण कई बार उसके मुंह से एक हल्की सी आह निकल जाती जिसे उसके एक्दम सामने खड़े तुषार को साफ़ सुनाई दे रही थी। कभी कभी उसके मुंह से सी सी की अवाज भी निकल जाती थी। तुषार इन बातों क मतलब अच्छी तरह्से समझता था। कुछ देर तक इसी तरह से अपनी चूत की सफ़ाई करने के बाद अब वो शावर चालू करने के लिये उसकी चकरी ढूंढने लगती है । आंखे बंद किये हुए वो दिवाल के पास हाथ को इधर उधर धूमाने लगती है और कुछ ही क्षणों में वो शावर की चकरी को पकड़ कर उसे घुमाने लगती है और शावर चालू हो जाता है और उसका पानी उसके चेहरे में पड़्ने लगता है और वो अपना मुंह से साबुन साफ़ कर लेती है।

मुंह से साबुन निकलते ही रश्मी फ़िर से अपनी आंख खोल देती है और जैसे वो अपनी आंख खोलती है तुषार तत्काल वहां से हट कर थोड़ा आगे चला जाता है और बाथरुम की दिवार से सट कर बांए तरफ़ चिपक कर खड़ा हो जाता है। अब यदी रश्मी बाहर आती तो उसे तुरंत तुषार दिखाई नही देता लेकिन कपड़े के पास आते ही उनका सामना होना तय था। अब तुषार उसके बाहर आने का इंतजार करने लगा।

लग्भग दो तीन मीनट के इंतजार के बाद बाथरुम के अंदर सारी अवाजें बंद हो गई और बाल्टियों और मग्गे को किनारे रखने की अवाज आई। अब तुषार एकदम सतर्क हो गया क्योंकि उसके जीवन का वो स्वर्णिम क्षण आने वाला था जिसके उसे काफ़ी लंबे समय से इंतजार था और अगले कुछ पलों के बाद होने वाली घटनाएं उन दोनों के जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन लाने वाली थी।

तुषार को पता था कि या तो वो वो सब कुछ हासिल कर लेगा जो वो पाना चाहता है या फ़िर हमेशा के लज्जित या तिरकृत जीवन जीने के लिये मजबूर हो सकता था। लेकिन तुषार ने तय कर लिया था कि वो खतरा मोल लेगा चाहे नतीजा कुछ भी हो।

औरते आम तौर पर रोज सर नहीं धोती केवल हफ़्ते में एकध बार ही धोती हैं क्योंकि बाल लंबे होने के कारण उन्हें बनाने में उन्हें काफ़ी वक्त लगता है, सो जब वे अपना सर नहीं धोती तो नहाते समय अक्सर अपने सर टावेल से बांध लेती हैं ताकि बाल गीले न हो और उन्हें बनाने में उनका वक्त जाया न हो।

रश्मी के सर पर टावेल बंधा हुआ था और बाकी तमाम बदन नंगा था। वो बेखौफ़ थी क्योंकि किसी के कमरे में होने का उसे अनुमान ही नही था। और हो भी क्यों?

नग्न रश्मी बाथरुम से बाहर निकलती है और सीधे अपने कपड़ों के पास जा कर खड़ी हो जाती है।
जैसे ही वो अपने कपड़ों के पास पहुंचती है उसे अपनी आंख की कोर से बाथरुम की दिवार के पास किसी के खड़े होने का अहसास होता है। वो तुरंत उधर देखती है।[Image: betcee-may-12.jpg]

बहां नजर पड़्ते ही उसकी आंखे फ़ट जाती है और वो फ़टी फ़टी निगाहों से टक्टकी लगाकर तुषार की तरफ़ देखने लगती है। उसके पूरे बदन में एक ठंड़ी सी सिहरन पैदा होती है। और उसके पांव थरथराने लगते है। उसका चेहरा भय से पीला पड़ जाता है और मुंह खुला का खुला रह जाता है। उसे अपनी आंखों के सामने अंधकार दिखाई देने लगता है, और उसे ऐसा लगता है कि वो अभी गश खा कर गिर जायेगी। जो कुछ वो अपने सामने देख रही थी उस पर उसे सहज विश्वास नहीं हो रहा था। ठंड़े पानी से नहा कर निकलने के बावजूद उसे पसीना आने लगता है और उसे ऐसा लगता है कि उसके दिल की धडकन अचानक बढ़ गई है ।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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RE: शर्मिली भाभी - by neerathemall - 24-02-2021, 05:02 PM



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