27-03-2019, 07:15 PM
शाम होली की
बाहर होली का हंगामा मचा हुआ था। शाम की सूखी होली शुरू हो गई थी, अबीर और गुलाल की होली।
उड़त गुलाल लाल भए बादर,
जोगीड़ा, कबीर और वो
उड़त गुलाल लाल भए बादर,
शाम की होली, सूखी भले हो लेकिन किसी भी मामले में दिन की होली से कम रंगीन नहीं होती।
चारों ओर अबीर गुलाल उड़ रहा था।
लोग होली मिलने जा रहे थे, लड़के लड़कियां औरतें, और साथ में खुल के मस्ती भरे कमेंट्स, कही लड़की का भेस धरे लौंडा, जोगीड़ा में नाच रहे थे,
तो कहीं खुल लाउडस्पीकर पे कबीर-
जोगीरा सारा रहा रा हो जोगीरा,
एक से एक खुले भोजपुरी होली के गाने-
अरे तानी टोवे दा आपन जोबनवा हो, और
भौजी खोला न आपन चोलिया, देवर छोट बाटे तोहार पिचकारियां
और होली के फिल्मी गाने भी,
बालम पिचकारी तूने ऐसी मारी।
कोई अगर जान पहचान की लड़की नजर आ जाती तो फिर तो उसकी मुसीबत,
उसका नाम ले ले के,
पर लड़कियां बजाय बुरा मानने के और खुल के मजे ले रही थीं।
फाग का रसिया जगह-जगह,
आज बिरज में होरी रे रसिया, आज बिरज में होरी,
अपने-अपने घर से निकली कोई सांवर कोई गोरी रे
आज बिरज में होरी रे रसिया,
फाग मेरी आँखों और कानों से होता हुआ तन मन में उतर गया था।
थोड़ा और आगे बढ़ी तो ‘उसके’ दोस्त, लीडर था वो इन सबका।
सुबह मेरी गली में भी इन सबके साथ ही घुसा था।
लेकिन लड़के थे सब, मिश्राइन भौजी की बोलीं में बोलूं तो थे ‘जबरदंग’
और आज तो एकदम ही भांग के नशे में मस्त, गाते बजाते, अबीर गुलाल उड़ाते।
और कोई लड़की बचती नहीं थी उनके कमेंट्स से,
और सच बोलूं तो ऐसे ‘जबरदंग’ लड़कों से बचना भी कौन चाहेगी।
खूब तगड़े, जवान और मस्ती में चूर।
होली बचने का दिन थोड़े ही होता है, आज जीजू से होली खेलने के बाद मैं सीख गई थी।
पहले के दिन होते तो शायद मैं बचने की सोचती लेकिन आज… मेरा वाला ‘वो’ दिख तो नहीं रहा था था लेकिन शायद इनके बीच कहीं…
और जो मैं पास पहुंची तो सुनाई पड़ा, क्या मस्त गा रहे थे, झूम झूम के-
रंग बनारस के छोरा ने लगाय दिया रे
मोरे आगा से आगा सटाय दिया रे,
मोरे जुबना को दोनों दबाय दिया रे
रंग बनारस के छोरा ने लगाय दिया रे।
उह्ह ओह्ह, हाय दइया
रंग बनारस के छोरा ने लगाय दिया रे
पहिले साया सरकाया, हाथ भीतर घुसाया
मैं बहुत चिल्लाई, मोरा मुँह वो दबाया,
मोरी जांघन से जांघन सटाया दिया रे।
मोरे दोनों जुबना दिया दिया रे।
रंग बनारस के छोरा ने लगाय दिया रे।
मजा बहुते मोहे आया जब भीतर घुसाया
एक फिट की पिचकारी घुसाय दिया रे।
सटासट, फचाफच रंगवा चलाय दिया रे।
मोरो दोनों जुबना दबाय दिया रे।
रंग बनारस के छोरा ने लगाय दिया रे।
लेकिन तभी एक को मैं दिख गई, और फिर तो वो हंगामा हुआ, अबीर गुलाल उड़ा की सीधे आसमान तक
“अरे जोबन की रानी…”
ये टाइटिल जब मैं हाईकॉलेज में पहुंची तभी गली के लड़कों ने मुझे दे दी थी,
और अब तो सारे लड़के, और लड़के क्या मेरी सहेलियां भी, और मेरे उभार हैं भी ऐसे कातिल मार्का।
फिर गाने का लेवल भी तुरंत ऊपर हो गया और वो भी मेरा नाम ले ले के,
जो न भी जाने वो भी जान जाए, असली जोगीड़ा-
“दिन में निकले सूरज और रात में निकले चन्दा,
हो रात में निकले चन्दा, जोगीड़ा सरर सरर,
हो हमरे यार ने, अरे हमरे यार ने,
अरे किसकी देखो चूची पकड़ी, अरे किसकी देखो चूची पकड़ी
और किसको टांग उठाकर चोदा।
हो जोगीड़ा सरर सरर, जोगीड़ा सरर सरर
अरे संगीता की, हाँ संगीता की चूची पकड़ी,
और संगीता की, हाँ संगीता की टांग उठाकर चोदा,
हो जोगीड़ा सरर सरर, जोगीड़ा सरर सरर।
बजाय बुरा मानने के मैं मुश्कुरा रही थी और सीधे धंस गई और उसके खास चमचे से पूछा-
“हे तेरा यार है कहाँ आज दिख नहीं रहा?”
जवाब दूसरे ने दिया-
“अरे तुम जोबन की रानी हो तो हमारा यार भी लण्ड का राजा है। पूरे बालिश्त भर का है,
एक बार दे दोगी न तो खुद टांग उठाने आओगी…”
तब तक बगल से पड़ोस की एक भाभी गुजर रही थी, वो क्यों मौका छोड़तीं उन्होंने भी दहला लगाया-
“अरे दे दो न जोबन का दान, होली में नए उम्र की लड़कों को जोबन दान देने से बहुत पुन्न मिलता है…”
लेकिन मेरे सवाल का जवाब उसके चमचे ने दिया-
“बिचारा कब से इन्तजार कर रहा है अपनी जोबन की रानी का, अगले मोड़ पे…”
उड़त गुलाल लाल भए बादर,
जोगीड़ा, कबीर और वो
उड़त गुलाल लाल भए बादर,
शाम की होली, सूखी भले हो लेकिन किसी भी मामले में दिन की होली से कम रंगीन नहीं होती।
चारों ओर अबीर गुलाल उड़ रहा था।
लोग होली मिलने जा रहे थे, लड़के लड़कियां औरतें, और साथ में खुल के मस्ती भरे कमेंट्स, कही लड़की का भेस धरे लौंडा, जोगीड़ा में नाच रहे थे,
तो कहीं खुल लाउडस्पीकर पे कबीर-
जोगीरा सारा रहा रा हो जोगीरा,
एक से एक खुले भोजपुरी होली के गाने-
अरे तानी टोवे दा आपन जोबनवा हो, और
भौजी खोला न आपन चोलिया, देवर छोट बाटे तोहार पिचकारियां
और होली के फिल्मी गाने भी,
बालम पिचकारी तूने ऐसी मारी।
कोई अगर जान पहचान की लड़की नजर आ जाती तो फिर तो उसकी मुसीबत,
उसका नाम ले ले के,
पर लड़कियां बजाय बुरा मानने के और खुल के मजे ले रही थीं।
फाग का रसिया जगह-जगह,
आज बिरज में होरी रे रसिया, आज बिरज में होरी,
अपने-अपने घर से निकली कोई सांवर कोई गोरी रे
आज बिरज में होरी रे रसिया,
फाग मेरी आँखों और कानों से होता हुआ तन मन में उतर गया था।
थोड़ा और आगे बढ़ी तो ‘उसके’ दोस्त, लीडर था वो इन सबका।
सुबह मेरी गली में भी इन सबके साथ ही घुसा था।
लेकिन लड़के थे सब, मिश्राइन भौजी की बोलीं में बोलूं तो थे ‘जबरदंग’
और आज तो एकदम ही भांग के नशे में मस्त, गाते बजाते, अबीर गुलाल उड़ाते।
और कोई लड़की बचती नहीं थी उनके कमेंट्स से,
और सच बोलूं तो ऐसे ‘जबरदंग’ लड़कों से बचना भी कौन चाहेगी।
खूब तगड़े, जवान और मस्ती में चूर।
होली बचने का दिन थोड़े ही होता है, आज जीजू से होली खेलने के बाद मैं सीख गई थी।
पहले के दिन होते तो शायद मैं बचने की सोचती लेकिन आज… मेरा वाला ‘वो’ दिख तो नहीं रहा था था लेकिन शायद इनके बीच कहीं…
और जो मैं पास पहुंची तो सुनाई पड़ा, क्या मस्त गा रहे थे, झूम झूम के-
रंग बनारस के छोरा ने लगाय दिया रे
मोरे आगा से आगा सटाय दिया रे,
मोरे जुबना को दोनों दबाय दिया रे
रंग बनारस के छोरा ने लगाय दिया रे।
उह्ह ओह्ह, हाय दइया
रंग बनारस के छोरा ने लगाय दिया रे
पहिले साया सरकाया, हाथ भीतर घुसाया
मैं बहुत चिल्लाई, मोरा मुँह वो दबाया,
मोरी जांघन से जांघन सटाया दिया रे।
मोरे दोनों जुबना दिया दिया रे।
रंग बनारस के छोरा ने लगाय दिया रे।
मजा बहुते मोहे आया जब भीतर घुसाया
एक फिट की पिचकारी घुसाय दिया रे।
सटासट, फचाफच रंगवा चलाय दिया रे।
मोरो दोनों जुबना दबाय दिया रे।
रंग बनारस के छोरा ने लगाय दिया रे।
लेकिन तभी एक को मैं दिख गई, और फिर तो वो हंगामा हुआ, अबीर गुलाल उड़ा की सीधे आसमान तक
“अरे जोबन की रानी…”
ये टाइटिल जब मैं हाईकॉलेज में पहुंची तभी गली के लड़कों ने मुझे दे दी थी,
और अब तो सारे लड़के, और लड़के क्या मेरी सहेलियां भी, और मेरे उभार हैं भी ऐसे कातिल मार्का।
फिर गाने का लेवल भी तुरंत ऊपर हो गया और वो भी मेरा नाम ले ले के,
जो न भी जाने वो भी जान जाए, असली जोगीड़ा-
“दिन में निकले सूरज और रात में निकले चन्दा,
हो रात में निकले चन्दा, जोगीड़ा सरर सरर,
हो हमरे यार ने, अरे हमरे यार ने,
अरे किसकी देखो चूची पकड़ी, अरे किसकी देखो चूची पकड़ी
और किसको टांग उठाकर चोदा।
हो जोगीड़ा सरर सरर, जोगीड़ा सरर सरर
अरे संगीता की, हाँ संगीता की चूची पकड़ी,
और संगीता की, हाँ संगीता की टांग उठाकर चोदा,
हो जोगीड़ा सरर सरर, जोगीड़ा सरर सरर।
बजाय बुरा मानने के मैं मुश्कुरा रही थी और सीधे धंस गई और उसके खास चमचे से पूछा-
“हे तेरा यार है कहाँ आज दिख नहीं रहा?”
जवाब दूसरे ने दिया-
“अरे तुम जोबन की रानी हो तो हमारा यार भी लण्ड का राजा है। पूरे बालिश्त भर का है,
एक बार दे दोगी न तो खुद टांग उठाने आओगी…”
तब तक बगल से पड़ोस की एक भाभी गुजर रही थी, वो क्यों मौका छोड़तीं उन्होंने भी दहला लगाया-
“अरे दे दो न जोबन का दान, होली में नए उम्र की लड़कों को जोबन दान देने से बहुत पुन्न मिलता है…”
लेकिन मेरे सवाल का जवाब उसके चमचे ने दिया-
“बिचारा कब से इन्तजार कर रहा है अपनी जोबन की रानी का, अगले मोड़ पे…”