27-03-2019, 12:49 PM
मैं मुह लटका कर अपने रूम में चला गया। मैं उदास हो गया था और ये भी जनता था की शर्मा अंकल की बात पापा नहीं टालने वाले ......
मेने कंप्यूटर पर गेम खेलने का सोचा पर दिमाग अभी भी मथुरा के हसीन सपनो में उलझा था .... मेने सोचा था उधर इतनी भीड़ होगी किसी भी विदेशी महिला के साथ होली खेलने शुरू कर दुगा उसके बाद पहले तो उसके चहरे पर फिर गर्दन पर और फिर उसके बूब्स पर हाथ फेर लेता पर ये सब अब सपना ही रहने वाला था
मेने कंप्यूटर बंद किया और खिड़की पर जा कर बैठ गया। मेरे कमरे की लाइट बंद थी मैं खिड़की से आसमान में देख रहा था। थोड़ी देर बाद मुझे बगल वाली छत पर से कुछ खुसफुसाहट सुनाई दी मेने जब ध्यान दिया तो समझ आया की वो दिव्या है। पहले तो मेने ध्यान नहीं दिया पर जब मेने घडी देखी तो 11 बज रहे थे मुझे पता ही नहीं चला था की मैं 2 घंटे से ऐसे ही गम मना रहा हूँ
फिर मेने सोचा ये दिव्या इतनी रात में किस्से बात कर रही है नीचे से कुछ सुनाई नहीं दे रहा था इसलिए मैं छत पर चला गया। मैं चुपचाप गेट खोल कर बिना लाइट जलाये छत पर गया और खड़ा होने की जगह नीचे बैठ कर दीवार तक गया अब मेरे और दिव्या में बस दो कदम की दूरी थी। मैं उसकी बाते सुनने लगा वो अपने बॉयफ्रेंड से बात कर रही थी। मैं लड़के का नाम तो नहीं जान पाया क्युकी वो उसे जानू बुला रही थी। (आगे की बाते दिव्या की जुबानी)
दिव्या - जानू तुम होली पर नहीं आ सकते तुमको बताया ना दीदी और जीजाजी लोग आ रहे है। अगर वो नहीं आते तो कुछ होता पर अब कोई चांस नहीं है ............................... चलो होली के लिए तो तुम्हे मेने नाराज कर दिया पर अभी तो तुम्हे खुश कर सकती हु ना चलो अभी तुम्हारा फेवरेट काम करते है फ़ोन सेक्स ........ मैं अपना मोबाइल हैंड्स फ्री मोड में कर देती हु फिर तुमको फुल मजे देती हु। यह कह कर उसने फ़ोन का लाउड स्पीकर चालू कर दिया -
जानू - तुमने क्या पहना है
दिव्या - टी शर्ट और पजामा
जानू - और अन्दर
दिव्या - ब्रा और पेंटी
जानू - कौनसे
दिव्या - लाल नेट वाली ब्रा और सफ़ेद पेंटी जिस पर फूल बने हुए है
जानू- लाल ब्रा क्यों पहना
दिव्या - आज लाल सूट पहना था ना इसलिए
जानू- अच्छा अब अपना पजामा और टी शर्ट उतारो
दिव्या - मैं छत पर हु तुम पागल तो नहीं हो
जानू- रात को कौन देखने वाला है तुम्हे और घर वाले सो गए होगे प्लीज
दिव्या - ठीक है रुको मुझे चेक करने दो ( यह कह कर दिव्या निचे चली गयी )
मेने झट से मोबाइल निकला उसका कैमरा ओन किया और उसे ऐसे रख दिया की ज्यादा से ज्यादा शर्मा अंकल की छत दिखे
मैं अभी फिर से झुक ही था की दिव्या आ गयी और छत का गेट बंद कर दिया
दिव्या- हाँ जान मैं आ गई
जानू- कपडे उतारो
दिव्या - तुम नहीं मानोगे
जानू- तुमको बोला था की कमरे से ही बात कर लों
दिव्या - नहीं मम्मी पापा को शक हो जायेगा की रोज रात को किस्से बात करती हु
जानू- कपडे उतारो ना देखो मैं तो पूरा नंगा हो गया हु
दिव्या- ठीक है बाबा ( और उसने अपने कपडे उतार दिए )
मैं जो अभी तक छुपा हुआ था अब मुझसे रहा नहीं गया मेने देखने की कोशिश करी पर कुछ नजर नहीं आया मैं वापिस छुप गया
जानू- उतार दिये
दिव्या- हाँ अब सिर्फ ब्रा पेंटी में हु
जानू- अब ब्रा के ऊपर से ही राईट बूब को दबाओ
दिव्या- सीईइ जानू मुझे कुछ हो रहा है
जानू- बहनचोद अभी हाथ लगते ही कुछ हो गया और सुबह जब मेने चूसा था तब भी तुझे दुनिया का ख्याल था
दिव्या- जान तुम पागल हो पार्किंग में कोई आ जाता तो
जानू- क्या होता तेरे मस्त बूब देख कर पागल हो जाता और क्या
दिव्या- तुम मेरी तरफ से अपना लंड पकड़ो और उसे धीरे धीरे सहलाओ
जानू- तेरी यही अदा तो जानलेवा है
दिव्या - और तुम ...
जानू- अच्छा अब अपनी ब्रा खोल दो और अपने निप्पल के चारो और उंगली फिराओ
दिव्या- जान मैं पागल हो रही हु
जानू- फिर अपनी पेंटी खोलों
दिव्या- वो तो मेने पहले ही खोल दी
जानू- जान अपने दुसरे हाथ से चूत में उंगली करो ना
दिव्या- आह्ह्ह मैं पागल हो रही हु
जानू- मैं आने वाला हु
दिव्या- आह्ह सीईईईईईइ आआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्क
जानू- मैं तो हो गया
दिव्या- मैं भी होने वाली हु आअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह सीईईईईईईइ ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह आआआह्ह्ह्ह्ह्ह और दिव्या भी झड गई
दिव्या- ये हलकी हलकी हवा तो मुझे हॉर्नी बना रही है अगली बार हम भी खुले में ही करेगे
जानू- क्या करेगे
दिव्या- चुदाई, मुझे खुली हवा मैं इतना मजा आ रहा है की अभी तुम होते तो मैं तुम्हारा लंड खा जाती ... तभी नीचे से कुछ आवाज आई।
मेने कंप्यूटर पर गेम खेलने का सोचा पर दिमाग अभी भी मथुरा के हसीन सपनो में उलझा था .... मेने सोचा था उधर इतनी भीड़ होगी किसी भी विदेशी महिला के साथ होली खेलने शुरू कर दुगा उसके बाद पहले तो उसके चहरे पर फिर गर्दन पर और फिर उसके बूब्स पर हाथ फेर लेता पर ये सब अब सपना ही रहने वाला था
मेने कंप्यूटर बंद किया और खिड़की पर जा कर बैठ गया। मेरे कमरे की लाइट बंद थी मैं खिड़की से आसमान में देख रहा था। थोड़ी देर बाद मुझे बगल वाली छत पर से कुछ खुसफुसाहट सुनाई दी मेने जब ध्यान दिया तो समझ आया की वो दिव्या है। पहले तो मेने ध्यान नहीं दिया पर जब मेने घडी देखी तो 11 बज रहे थे मुझे पता ही नहीं चला था की मैं 2 घंटे से ऐसे ही गम मना रहा हूँ
फिर मेने सोचा ये दिव्या इतनी रात में किस्से बात कर रही है नीचे से कुछ सुनाई नहीं दे रहा था इसलिए मैं छत पर चला गया। मैं चुपचाप गेट खोल कर बिना लाइट जलाये छत पर गया और खड़ा होने की जगह नीचे बैठ कर दीवार तक गया अब मेरे और दिव्या में बस दो कदम की दूरी थी। मैं उसकी बाते सुनने लगा वो अपने बॉयफ्रेंड से बात कर रही थी। मैं लड़के का नाम तो नहीं जान पाया क्युकी वो उसे जानू बुला रही थी। (आगे की बाते दिव्या की जुबानी)
दिव्या - जानू तुम होली पर नहीं आ सकते तुमको बताया ना दीदी और जीजाजी लोग आ रहे है। अगर वो नहीं आते तो कुछ होता पर अब कोई चांस नहीं है ............................... चलो होली के लिए तो तुम्हे मेने नाराज कर दिया पर अभी तो तुम्हे खुश कर सकती हु ना चलो अभी तुम्हारा फेवरेट काम करते है फ़ोन सेक्स ........ मैं अपना मोबाइल हैंड्स फ्री मोड में कर देती हु फिर तुमको फुल मजे देती हु। यह कह कर उसने फ़ोन का लाउड स्पीकर चालू कर दिया -
जानू - तुमने क्या पहना है
दिव्या - टी शर्ट और पजामा
जानू - और अन्दर
दिव्या - ब्रा और पेंटी
जानू - कौनसे
दिव्या - लाल नेट वाली ब्रा और सफ़ेद पेंटी जिस पर फूल बने हुए है
जानू- लाल ब्रा क्यों पहना
दिव्या - आज लाल सूट पहना था ना इसलिए
जानू- अच्छा अब अपना पजामा और टी शर्ट उतारो
दिव्या - मैं छत पर हु तुम पागल तो नहीं हो
जानू- रात को कौन देखने वाला है तुम्हे और घर वाले सो गए होगे प्लीज
दिव्या - ठीक है रुको मुझे चेक करने दो ( यह कह कर दिव्या निचे चली गयी )
मेने झट से मोबाइल निकला उसका कैमरा ओन किया और उसे ऐसे रख दिया की ज्यादा से ज्यादा शर्मा अंकल की छत दिखे
मैं अभी फिर से झुक ही था की दिव्या आ गयी और छत का गेट बंद कर दिया
दिव्या- हाँ जान मैं आ गई
जानू- कपडे उतारो
दिव्या - तुम नहीं मानोगे
जानू- तुमको बोला था की कमरे से ही बात कर लों
दिव्या - नहीं मम्मी पापा को शक हो जायेगा की रोज रात को किस्से बात करती हु
जानू- कपडे उतारो ना देखो मैं तो पूरा नंगा हो गया हु
दिव्या- ठीक है बाबा ( और उसने अपने कपडे उतार दिए )
मैं जो अभी तक छुपा हुआ था अब मुझसे रहा नहीं गया मेने देखने की कोशिश करी पर कुछ नजर नहीं आया मैं वापिस छुप गया
जानू- उतार दिये
दिव्या- हाँ अब सिर्फ ब्रा पेंटी में हु
जानू- अब ब्रा के ऊपर से ही राईट बूब को दबाओ
दिव्या- सीईइ जानू मुझे कुछ हो रहा है
जानू- बहनचोद अभी हाथ लगते ही कुछ हो गया और सुबह जब मेने चूसा था तब भी तुझे दुनिया का ख्याल था
दिव्या- जान तुम पागल हो पार्किंग में कोई आ जाता तो
जानू- क्या होता तेरे मस्त बूब देख कर पागल हो जाता और क्या
दिव्या- तुम मेरी तरफ से अपना लंड पकड़ो और उसे धीरे धीरे सहलाओ
जानू- तेरी यही अदा तो जानलेवा है
दिव्या - और तुम ...
जानू- अच्छा अब अपनी ब्रा खोल दो और अपने निप्पल के चारो और उंगली फिराओ
दिव्या- जान मैं पागल हो रही हु
जानू- फिर अपनी पेंटी खोलों
दिव्या- वो तो मेने पहले ही खोल दी
जानू- जान अपने दुसरे हाथ से चूत में उंगली करो ना
दिव्या- आह्ह्ह मैं पागल हो रही हु
जानू- मैं आने वाला हु
दिव्या- आह्ह सीईईईईईइ आआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्क
जानू- मैं तो हो गया
दिव्या- मैं भी होने वाली हु आअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह सीईईईईईईइ ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह आआआह्ह्ह्ह्ह्ह और दिव्या भी झड गई
दिव्या- ये हलकी हलकी हवा तो मुझे हॉर्नी बना रही है अगली बार हम भी खुले में ही करेगे
जानू- क्या करेगे
दिव्या- चुदाई, मुझे खुली हवा मैं इतना मजा आ रहा है की अभी तुम होते तो मैं तुम्हारा लंड खा जाती ... तभी नीचे से कुछ आवाज आई।
// सुनील पंडित //
मैं तो सिर्फ तेरी दिल की धड़कन महसूस करना चाहता था
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!