27-03-2019, 12:30 PM
दरवाज़ा बंद करते ही मुकेश ने पीली रोशनी वाला एक बल्ब जला दिया और खुद कोठरी से बाहर निकल गया।
मैंने कहा- ये कहां जा रहा है?
वो बोला- ये गाड़ी में बैठकर दारू पीएगा, और बाहर की रखवाली करेगा कि कोई अंदर न आए।
कहते ही देवेन्द्र ने मेरे कार्डिगन को उतरवा दिया और मुझे बाहों में लेकर फिर से मेरे होंठों को चूसने लगा। उसने मुझे पास की दीवार से सटा लिया और मेरे दोनों हाथों को मेरे सिर के ऊपर अपने हाथों में जकड़ते हुए दूसरे हाथ से मेरी चूत को पजामी के ऊपर से ही सहलाते हुए मुझे ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगा।
मैं गर्म होने लगी और देवेन्द्र ने मेरा कमीज निकलवाते हुए नीचे ज़मीन पर पड़ी पराली पर डाल दिया। मैं सफेद ब्रा में दीवार से सटी हुई खड़ी थी और देवेन्द्र ने अपने ट्रैक सूट को खोलकर नीचे फेंकते हुए नीचे पहनी शर्ट के बटन खोलना भी शुरू कर दिया।
पल भर में उसकी चौड़ी छाती नंगी थी और वो मुझ पर टूट पड़ा उसने मेरे स्तनों को ज़ोर-ज़ोर से दबाते हुए मेरी चूत के बीच में ज़ोर-ज़ोर से रगड़ते हुए मेरे होंठों को काटना शुरू कर दिया।
उसका लिंग उसकी लोअर में नुकीला होकर मेरी जांघों में छेद करने के लिए उतावला मालूम पड़ रहा था।
उसने अगले ही पल अपनी लोअर उतार दी और साथ में अंडरवियर भी। वो बिल्कुल नंगा हो गया और मेरी ब्रा को खोलने लगा। जब मेरी ब्रा का हुक नहीं खुल सका तो उसने उतावलेपन में उसे मेरे कंधों से नीचे सरकाते हुए खींचकर मेरे पेट पर लाकर छोड़ दिया और मेरे गोरे स्तन नंगे हो गए। उसने बिना देर किए उन पर अपने होंठ रख दिए और मैं सिहर गई।
पहली बार किसी मर्द के होंठों में जाकर मेरे स्तनों में दौड़ी सरसरी ने मेरे तन-बदन में आग लगा दी- आह्ह्ह्ह … देवेन्द्र …
देवेन्द्र उनको चूसने काटने में इतना मशगूल था कि वो कोठरी के दरवाज़े को अंदर से बंद करना भी भूल गया था।
जब मेरी नज़र दरवाज़े पर पड़ी तो मुकेश बाहर से हल्के से खुले दरवाज़े के बीच से हमारी रास-लीला देखता हुआ नज़र आ गया मुझे।
मैंने देवेन्द्र से कहा बस करो, कोई आ जाएगा। इससे आगे जाना ठीक नहीं है।
लेकिन वो कहां सुन रहा था मेरी।
उसने अपना हाथ मेरे नाड़े की तरफ बढ़ाया तो मैंने उसका हाथ पकड़ लिया।
मैंने कहा- नहीं देवेन्द्र, ये ठीक नहीं है।”
मुझे पता था कि मुकेश बाहर से सब देख रहा है। लेकिन देवेन्द्र ने मेरे हाथ हटाते हुए मेरा नाड़ा खोल दिया और मेरी पजामी को नीचे खींच लिया। मैं पैंटी में थी और मेरी ब्रा मेरे पेट पर लिपटी हुई थी।
अगले ही पल उसने मेरी पजामी को भी निकलवा दिया और साथ ही पैंटी को भी।
मेरी नई नवेली चूत देवेन्द्र के सामने बिल्कुल नंगी हो गई थी।
उसने मेरी एक टांग को अपने हाथ से हल्का सा ऊपर उठाया और खुद घुटनों के बल नीचे बैठकर मेरी चूत पर अपने होंठ रख दिए।
मैं तड़प उठी- ओह्ह्ह … यार …
उसने जब जीभ अंदर डाली तो मैं पागल होने लगी। वो अपनी गर्म जीभ को मेरी चूत में अंदर बाहर करने लगा।
अब मुझसे भी बर्दाश्त नहीं हुआ और मैंने उसे उठाते हुए उसको फिर से खड़ा कर लिया और उसके होंठों को चूसने लगी।
उसने मेरी टांगों को उठाए हुए ही अपने लिंग को मेरी चूत पर लगाकर अपना सारा भार दीवार की तरफ लगा दिया और उसका लिंग मेरी चूत में प्रवेश करने लगा। मैं उससे लिपट गई और उसकी छाती में मुंह छिपाते हुए दर्द को बर्दाश्त करने की कोशिश करने लगी। मेरे स्तन उसकी नंगी छाती से सटे हुए थे और वो मेरी गर्दन पर किस करते हुए मुझे प्यार कर रहा था।
धीरे-धीरे उसका लिंग मेरी चूत में उतर गया और उसने मुझे गोदी में उठाते हुए नीचे पराली पर लेटा दिया।
मेरे होंठों को चूसते हुए उसने हौले-हौले अपना लिंग मेरी चूत से पूरा बाहर निकाले बिना फिर से हल्के हल्के दबाव बनाया और मुझ पर लेट गया। मैंने उसको बांहों में भर लिया।
अब उसने लिंग को धीरे-धीरे मेरी चूत में अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया।
मुझे दर्द तो बहुत हो रहा था लेकिन मेरे गर्म जिस्म से सटा देवेन्द्र का नंगा बदन और मेरे गले में उतर रहा उसके होंठों का रस दर्द पर मरहम का काम कर रहे थे। मैं उसकी कामक्रीड़ा में डूबने लगी। पहली बार मेरी चूत किसी मर्द के लिंग के घर्षण का मज़ा लेने में मशगूल हो गई थी।
देवेन्द्र की स्पीड बढ़ने लगी और साथ ही उसका जोश मेरी चूत का दर्द भी बढ़ाने लगा था। उसका लिंग काफी मोटा था। मैं उसकी कमर को सहलाते हुए अपने दर्द को कम करने की पूरी कोशिश कर रही थी।
लेकिन जैसे-जैसे उसकी स्पीड बढ़ती गई उसका लिंग मेरी चूत को फाड़ने लगा। अब तो वो जैसे पागल सा हो गया था। उसे मेरे दर्द से कुछ लेना-देना नहीं रह गया था। बस अपने लिंग को चूत में पेलते हुए मेरे स्तनों को चुटकी से काटते हुए मुझे चोदे जा रहा था।
5 मिनट तक उसने इसी स्पीड से मुझे चोदा और एकाएक उसका शरीर अकड़ने लगा। और स्पीड कम होते-होते वो शांत होकर मेरे ऊपर गिर गया।
कुछ पल हम ऐसे ही पड़े रहे।
मैंने कहा- उठो, मुझे ठंड लग रही है।
वो उठा तो मैंने देखा कि मुकेश अभी भी दरवाज़े से झांक रहा था लेकिन अब दरवाज़ा थोड़ा ज्यादा खुल गया था और मुकेश के लिंग से निकले वीर्य ने दरवाज़े को बीच में से गीला कर दिया था।
देवेन्द्र उठकर अपने कपड़े पहनने लगा और मुझे भी उठने के लिए कहा।
उस रात देवेन्द्र ने मेरी कुंवारी चूत को चोदकर मुझे दर्द और मज़ा दोनों ही खूब दिए।
लेकिन बात यहां पर खत्म होने वाली नहीं थी।
अभी के लिए इतना ही, बाकी की कहानी फिर कभी ///
मैंने कहा- ये कहां जा रहा है?
वो बोला- ये गाड़ी में बैठकर दारू पीएगा, और बाहर की रखवाली करेगा कि कोई अंदर न आए।
कहते ही देवेन्द्र ने मेरे कार्डिगन को उतरवा दिया और मुझे बाहों में लेकर फिर से मेरे होंठों को चूसने लगा। उसने मुझे पास की दीवार से सटा लिया और मेरे दोनों हाथों को मेरे सिर के ऊपर अपने हाथों में जकड़ते हुए दूसरे हाथ से मेरी चूत को पजामी के ऊपर से ही सहलाते हुए मुझे ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगा।
मैं गर्म होने लगी और देवेन्द्र ने मेरा कमीज निकलवाते हुए नीचे ज़मीन पर पड़ी पराली पर डाल दिया। मैं सफेद ब्रा में दीवार से सटी हुई खड़ी थी और देवेन्द्र ने अपने ट्रैक सूट को खोलकर नीचे फेंकते हुए नीचे पहनी शर्ट के बटन खोलना भी शुरू कर दिया।
पल भर में उसकी चौड़ी छाती नंगी थी और वो मुझ पर टूट पड़ा उसने मेरे स्तनों को ज़ोर-ज़ोर से दबाते हुए मेरी चूत के बीच में ज़ोर-ज़ोर से रगड़ते हुए मेरे होंठों को काटना शुरू कर दिया।
उसका लिंग उसकी लोअर में नुकीला होकर मेरी जांघों में छेद करने के लिए उतावला मालूम पड़ रहा था।
उसने अगले ही पल अपनी लोअर उतार दी और साथ में अंडरवियर भी। वो बिल्कुल नंगा हो गया और मेरी ब्रा को खोलने लगा। जब मेरी ब्रा का हुक नहीं खुल सका तो उसने उतावलेपन में उसे मेरे कंधों से नीचे सरकाते हुए खींचकर मेरे पेट पर लाकर छोड़ दिया और मेरे गोरे स्तन नंगे हो गए। उसने बिना देर किए उन पर अपने होंठ रख दिए और मैं सिहर गई।
पहली बार किसी मर्द के होंठों में जाकर मेरे स्तनों में दौड़ी सरसरी ने मेरे तन-बदन में आग लगा दी- आह्ह्ह्ह … देवेन्द्र …
देवेन्द्र उनको चूसने काटने में इतना मशगूल था कि वो कोठरी के दरवाज़े को अंदर से बंद करना भी भूल गया था।
जब मेरी नज़र दरवाज़े पर पड़ी तो मुकेश बाहर से हल्के से खुले दरवाज़े के बीच से हमारी रास-लीला देखता हुआ नज़र आ गया मुझे।
मैंने देवेन्द्र से कहा बस करो, कोई आ जाएगा। इससे आगे जाना ठीक नहीं है।
लेकिन वो कहां सुन रहा था मेरी।
उसने अपना हाथ मेरे नाड़े की तरफ बढ़ाया तो मैंने उसका हाथ पकड़ लिया।
मैंने कहा- नहीं देवेन्द्र, ये ठीक नहीं है।”
मुझे पता था कि मुकेश बाहर से सब देख रहा है। लेकिन देवेन्द्र ने मेरे हाथ हटाते हुए मेरा नाड़ा खोल दिया और मेरी पजामी को नीचे खींच लिया। मैं पैंटी में थी और मेरी ब्रा मेरे पेट पर लिपटी हुई थी।
अगले ही पल उसने मेरी पजामी को भी निकलवा दिया और साथ ही पैंटी को भी।
मेरी नई नवेली चूत देवेन्द्र के सामने बिल्कुल नंगी हो गई थी।
उसने मेरी एक टांग को अपने हाथ से हल्का सा ऊपर उठाया और खुद घुटनों के बल नीचे बैठकर मेरी चूत पर अपने होंठ रख दिए।
मैं तड़प उठी- ओह्ह्ह … यार …
उसने जब जीभ अंदर डाली तो मैं पागल होने लगी। वो अपनी गर्म जीभ को मेरी चूत में अंदर बाहर करने लगा।
अब मुझसे भी बर्दाश्त नहीं हुआ और मैंने उसे उठाते हुए उसको फिर से खड़ा कर लिया और उसके होंठों को चूसने लगी।
उसने मेरी टांगों को उठाए हुए ही अपने लिंग को मेरी चूत पर लगाकर अपना सारा भार दीवार की तरफ लगा दिया और उसका लिंग मेरी चूत में प्रवेश करने लगा। मैं उससे लिपट गई और उसकी छाती में मुंह छिपाते हुए दर्द को बर्दाश्त करने की कोशिश करने लगी। मेरे स्तन उसकी नंगी छाती से सटे हुए थे और वो मेरी गर्दन पर किस करते हुए मुझे प्यार कर रहा था।
धीरे-धीरे उसका लिंग मेरी चूत में उतर गया और उसने मुझे गोदी में उठाते हुए नीचे पराली पर लेटा दिया।
मेरे होंठों को चूसते हुए उसने हौले-हौले अपना लिंग मेरी चूत से पूरा बाहर निकाले बिना फिर से हल्के हल्के दबाव बनाया और मुझ पर लेट गया। मैंने उसको बांहों में भर लिया।
अब उसने लिंग को धीरे-धीरे मेरी चूत में अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया।
मुझे दर्द तो बहुत हो रहा था लेकिन मेरे गर्म जिस्म से सटा देवेन्द्र का नंगा बदन और मेरे गले में उतर रहा उसके होंठों का रस दर्द पर मरहम का काम कर रहे थे। मैं उसकी कामक्रीड़ा में डूबने लगी। पहली बार मेरी चूत किसी मर्द के लिंग के घर्षण का मज़ा लेने में मशगूल हो गई थी।
देवेन्द्र की स्पीड बढ़ने लगी और साथ ही उसका जोश मेरी चूत का दर्द भी बढ़ाने लगा था। उसका लिंग काफी मोटा था। मैं उसकी कमर को सहलाते हुए अपने दर्द को कम करने की पूरी कोशिश कर रही थी।
लेकिन जैसे-जैसे उसकी स्पीड बढ़ती गई उसका लिंग मेरी चूत को फाड़ने लगा। अब तो वो जैसे पागल सा हो गया था। उसे मेरे दर्द से कुछ लेना-देना नहीं रह गया था। बस अपने लिंग को चूत में पेलते हुए मेरे स्तनों को चुटकी से काटते हुए मुझे चोदे जा रहा था।
5 मिनट तक उसने इसी स्पीड से मुझे चोदा और एकाएक उसका शरीर अकड़ने लगा। और स्पीड कम होते-होते वो शांत होकर मेरे ऊपर गिर गया।
कुछ पल हम ऐसे ही पड़े रहे।
मैंने कहा- उठो, मुझे ठंड लग रही है।
वो उठा तो मैंने देखा कि मुकेश अभी भी दरवाज़े से झांक रहा था लेकिन अब दरवाज़ा थोड़ा ज्यादा खुल गया था और मुकेश के लिंग से निकले वीर्य ने दरवाज़े को बीच में से गीला कर दिया था।
देवेन्द्र उठकर अपने कपड़े पहनने लगा और मुझे भी उठने के लिए कहा।
उस रात देवेन्द्र ने मेरी कुंवारी चूत को चोदकर मुझे दर्द और मज़ा दोनों ही खूब दिए।
लेकिन बात यहां पर खत्म होने वाली नहीं थी।
अभी के लिए इतना ही, बाकी की कहानी फिर कभी ///
// सुनील पंडित //
मैं तो सिर्फ तेरी दिल की धड़कन महसूस करना चाहता था
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!