27-03-2019, 12:06 PM
मैंने क्रीम रंग का कढ़ाई वाला सूट जिसके नीचे केसरिया रंग की चूड़ीदार पजामी पहन रखी थी और गले में आर्टीफिशल जूलरी डाल ली थी। सूट के ऊपर नीले रंग का कार्डिगन जो सर्दी से बचने के लिए डाल लिया था। बालों को शैम्पू करके सुखा कर खुला छोड़ दिया था और केसरिया रंग का जालीदार दुपट्टा सिर पर ढककर मैं गिफ्ट हाथ में लिए हुए जल्दी से गाड़ी के अंदर आकर बैठ गई।
लेकिन गाड़ी में बैठने के बाद देखा तो अंदर मुकेश बैठा हुआ था।
मैंने पूछा- भैया आप?
वो बोला- क्यूं … मेरी गाड़ी में कोई और होना चाहिए था क्या?
मैंने कहा- नहीं वो बात नहीं, मगर निशा तो कह रही थी कि आप घर पर नहीं हो और आपका कोई दोस्त मुझे घर से लेकर जाएगा।
मुकेश ने कहा- मैं बस कुछ देर पहले ही घर पहुंचा था, नहीं तो तुम्हें ले जाने के लिए मैंने देवेन्द्र को फोन कर दिया था। मगर मैं टाइम से पहुंच गया तो मैं ही आ गया।
कहकर उसने गाड़ी स्टार्ट की और हम निशा के घर की तरफ चल पड़े।
घर पहुंचकर निशा के जन्मदिन पर कॉलेज की बाकी सहेलियाँ भी इकट्ठा हो रखी थीं। सबने खूब मस्ती मज़ाक किया और केक काटने का समय हो गया।
केक कटने के बाद सबने निशा को बर्थडे विश करते हुए गिफ्ट दिए और लड़कियाँ अपने घर जानें लगीं। मैंने निशा से कहा कि मुकेश भैया को बोल दे कि मुझे घर तक छोड़कर आ जाएँ।
वो अंदर अपने कमरे में गई और कुछ देर में वापस आकर बोली- मैंने भैया को बोल दिया है, तब तक तुम खाना खा लो।
निशा ने मेरे लिए खाना लगवा दिया।
मैं खाना खाकर मुकेश का इंतज़ार करने लगी। कुछ देर बाद वो बाहर आया और मुझसे चलने के लिए कहा। मैंने निशा को बाय बोलकर उसको फिर से बर्थडे विश किया और मेन गेट से बाहर निकलने लगी. मेरे साथ-साथ वो भी मुझे बाहर तक छोड़ने आ गई।
शाम के 7 बज चुके थे और जाड़े की ठंडी अंधेरी रात घिर आई थी। मैंने निशा को गाड़ी में बैठते हुए टाटा कहा और मुकेश ने गाड़ी स्टार्ट की और हम घर के लिए निकल पड़े।
कुछ ही दूर चले थे कि मुकेश ने गाड़ी धीमी कर ली। रात के अंधेरे में सड़क के किनारे कोई खड़ा होकर हाथ से गाड़ी को अपनी तरफ आने का इशारा कर रहा था। मुकेश ने गाड़ी उस शख्स के पास ले जाकर रोक दी। उसने गाड़ी का दरवाज़ा खोला और सीधा पीछे वाली सीट पर आकर बैठ गया।
वो देवेन्द्र था। मैं चौंक गई। अब ये क्या नई चाल है इन दोनों की।
मैं चुपचाप बैठी रही और मुकेश ने गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी। जब गाड़ी शहर से बाहर निकल गई तो देवेन्द्र ने मेरा हाथ पकड़कर अपनी तरफ खींचा और सीधा मेरे होंठों को चूसने लगा। मैं समझ गई कि दोनों ने पहले से प्लानिंग कर रखी थी कि मुकेश गाड़ी में जब मुझे घर छोड़ने जाए तो रास्ते में देवेन्द्र को लेता चले।
अब विरोध करने का तो फायदा था ही नहीं क्योंकि मैं उन दोनों के भरोसे ही थी। मैं देवेन्द्र को अलग करते चुपके से कान में फुसफुसायी- मुकेश के सामने ये सब क्या कर रहे हो?
जवाब में उसने भी फुसफुसा दिया- मैंने मुकेश को पहले से बता रखा था कि तेरे-मेरे बीच में क्या चल रहा है!
कहकर उसने मेरा हाथ अपनी लोअर में तने लिंग पर रखवाते हुए फिर से मेरे होंठों को चूसना शुरू कर दिया। मेरे खुले कार्डिगन के अंदर हाथ डालकर उसने मेरे स्तनों को दबाना भी शुरू कर दिया।
2-3 मिनट बाद गाड़ी की स्पीड धीमी होने लगी और वो मेन रोड़ से उतरकर कच्ची सड़क पर जाने लगी।
मैंने चुपके से फिर कहा- कहां ले जा रहे हो मुझे?
देवेन्द्र बोला- मुकेश के खेत पर!
इतने में ही गाड़ी खेतों के बीच में बनी कोठरी के पास जा रूकी।
मुकेश ने गाड़ी की सारी लाइट्स पहले से ही बंद कर रखी थीं।
उसने खिड़की खोलते हुए देवेन्द्र से कहा- आजा रै … सारा काम तैयार है.
देवेन्द्र ने मुझे नीचे उतरने के लिए कहा।
मरती मैं क्या न करती … चुपचाप नीचे उतर गई।
बाहर कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। गाड़ी में तो ठंड का अहसास भी नहीं हो रहा था लेकिन बाहर निकलते ही मेरी कुल्फी बनने लगी।
बाहर चारों तरफ सुनसान खेतों में रात का ठंडा घनघोर अंधेरा था और कोहरे में 10 फीट दूर देखना भी मुश्किल था।
इतने में मुकेश ने कोठरी का ताला खोल दिया और देवेन्द्र मेरा हाथ पकड़ कर मुझे मुकेश के पीछे-पीछे कोठरी के अंदर ले गया।
दरवाज़ा बंद करते ही मुकेश ने पीली रोशनी वाला एक बल्ब जला दिया और खुद कोठरी से बाहर निकल गया।
लेकिन गाड़ी में बैठने के बाद देखा तो अंदर मुकेश बैठा हुआ था।
मैंने पूछा- भैया आप?
वो बोला- क्यूं … मेरी गाड़ी में कोई और होना चाहिए था क्या?
मैंने कहा- नहीं वो बात नहीं, मगर निशा तो कह रही थी कि आप घर पर नहीं हो और आपका कोई दोस्त मुझे घर से लेकर जाएगा।
मुकेश ने कहा- मैं बस कुछ देर पहले ही घर पहुंचा था, नहीं तो तुम्हें ले जाने के लिए मैंने देवेन्द्र को फोन कर दिया था। मगर मैं टाइम से पहुंच गया तो मैं ही आ गया।
कहकर उसने गाड़ी स्टार्ट की और हम निशा के घर की तरफ चल पड़े।
घर पहुंचकर निशा के जन्मदिन पर कॉलेज की बाकी सहेलियाँ भी इकट्ठा हो रखी थीं। सबने खूब मस्ती मज़ाक किया और केक काटने का समय हो गया।
केक कटने के बाद सबने निशा को बर्थडे विश करते हुए गिफ्ट दिए और लड़कियाँ अपने घर जानें लगीं। मैंने निशा से कहा कि मुकेश भैया को बोल दे कि मुझे घर तक छोड़कर आ जाएँ।
वो अंदर अपने कमरे में गई और कुछ देर में वापस आकर बोली- मैंने भैया को बोल दिया है, तब तक तुम खाना खा लो।
निशा ने मेरे लिए खाना लगवा दिया।
मैं खाना खाकर मुकेश का इंतज़ार करने लगी। कुछ देर बाद वो बाहर आया और मुझसे चलने के लिए कहा। मैंने निशा को बाय बोलकर उसको फिर से बर्थडे विश किया और मेन गेट से बाहर निकलने लगी. मेरे साथ-साथ वो भी मुझे बाहर तक छोड़ने आ गई।
शाम के 7 बज चुके थे और जाड़े की ठंडी अंधेरी रात घिर आई थी। मैंने निशा को गाड़ी में बैठते हुए टाटा कहा और मुकेश ने गाड़ी स्टार्ट की और हम घर के लिए निकल पड़े।
कुछ ही दूर चले थे कि मुकेश ने गाड़ी धीमी कर ली। रात के अंधेरे में सड़क के किनारे कोई खड़ा होकर हाथ से गाड़ी को अपनी तरफ आने का इशारा कर रहा था। मुकेश ने गाड़ी उस शख्स के पास ले जाकर रोक दी। उसने गाड़ी का दरवाज़ा खोला और सीधा पीछे वाली सीट पर आकर बैठ गया।
वो देवेन्द्र था। मैं चौंक गई। अब ये क्या नई चाल है इन दोनों की।
मैं चुपचाप बैठी रही और मुकेश ने गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी। जब गाड़ी शहर से बाहर निकल गई तो देवेन्द्र ने मेरा हाथ पकड़कर अपनी तरफ खींचा और सीधा मेरे होंठों को चूसने लगा। मैं समझ गई कि दोनों ने पहले से प्लानिंग कर रखी थी कि मुकेश गाड़ी में जब मुझे घर छोड़ने जाए तो रास्ते में देवेन्द्र को लेता चले।
अब विरोध करने का तो फायदा था ही नहीं क्योंकि मैं उन दोनों के भरोसे ही थी। मैं देवेन्द्र को अलग करते चुपके से कान में फुसफुसायी- मुकेश के सामने ये सब क्या कर रहे हो?
जवाब में उसने भी फुसफुसा दिया- मैंने मुकेश को पहले से बता रखा था कि तेरे-मेरे बीच में क्या चल रहा है!
कहकर उसने मेरा हाथ अपनी लोअर में तने लिंग पर रखवाते हुए फिर से मेरे होंठों को चूसना शुरू कर दिया। मेरे खुले कार्डिगन के अंदर हाथ डालकर उसने मेरे स्तनों को दबाना भी शुरू कर दिया।
2-3 मिनट बाद गाड़ी की स्पीड धीमी होने लगी और वो मेन रोड़ से उतरकर कच्ची सड़क पर जाने लगी।
मैंने चुपके से फिर कहा- कहां ले जा रहे हो मुझे?
देवेन्द्र बोला- मुकेश के खेत पर!
इतने में ही गाड़ी खेतों के बीच में बनी कोठरी के पास जा रूकी।
मुकेश ने गाड़ी की सारी लाइट्स पहले से ही बंद कर रखी थीं।
उसने खिड़की खोलते हुए देवेन्द्र से कहा- आजा रै … सारा काम तैयार है.
देवेन्द्र ने मुझे नीचे उतरने के लिए कहा।
मरती मैं क्या न करती … चुपचाप नीचे उतर गई।
बाहर कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। गाड़ी में तो ठंड का अहसास भी नहीं हो रहा था लेकिन बाहर निकलते ही मेरी कुल्फी बनने लगी।
बाहर चारों तरफ सुनसान खेतों में रात का ठंडा घनघोर अंधेरा था और कोहरे में 10 फीट दूर देखना भी मुश्किल था।
इतने में मुकेश ने कोठरी का ताला खोल दिया और देवेन्द्र मेरा हाथ पकड़ कर मुझे मुकेश के पीछे-पीछे कोठरी के अंदर ले गया।
दरवाज़ा बंद करते ही मुकेश ने पीली रोशनी वाला एक बल्ब जला दिया और खुद कोठरी से बाहर निकल गया।
// सुनील पंडित //
मैं तो सिर्फ तेरी दिल की धड़कन महसूस करना चाहता था
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!