मैंने छुड़ाना तो चाहा लेकिन उसकी पकड़ मजबूत थी और पहली बार उसके होंठों को चूसने में मुझे भी मज़ा सा आ रहा था। मैं उसकी जवानी के जोश की लहरों में धीरे-धीरे उसके साथ बहने लगी।
में अभी तक आपने पढ़ा कि कॉलेज की छुट्टियों के बाद जब पढ़ाई शुरू हुई तो एक दिन देवेन्द्र मुकेश के साथ ही उसकी गाड़ी में बैठा हुआ मिला। निशा के घर पर वो दोनों भाई बहन उतर गए और मुझे घर छोड़ने का काम मुकेश ने देवेन्द्र को सौंप दिया। जब हम शहर से बाहर निकल कर खेतों के एरिया में आ गए तो देवेन्द्र गाड़ी रोककर पीछे मेरे साथ आ बैठा और उसने अपने तने हुए लिंग पर मेरा हाथ रखवा दिया।
अगले ही पल उसने मेरे होंठों को चूसना शुरू कर दिया और साथ ही मेरे स्तनों को भी दबाने लगा।
मैं गर्म होकर उसकी जवानी के सागर में डूबने लगी और उसने मेरे शर्ट में नीचे से हाथ डालकर मेरी ब्रा में दबे मेरे स्तनों को दबाना शुरू कर दिया। अब मैं किसी तरह का विरोध नहीं कर रही थी और उसके होंठों को चूसे जा रही थी। उसने मेरा हाथ पकड़कर फिर से उसकी पैंट में तने लिंग पर रखवा दिया और अबकी बार मैंने उसके लिंग को अच्छी तरह सहलाना शुरू कर दिया।
वो मेरे होंठों को और ज़ोर से चूसने काटने लगा। हम दोनों की सांसों की गर्मी से गाड़ी का माहौल भी गर्म हो गया था। उसका लिंग झटके पर झटके दे रहा था। जिसे मैं अपने हाथ से सहलाती हुई पकड़ने की कोशिश कर रही थी। सख्त और मोटे लिंग की छुअन से मेरी टांगें अपने आप ही गाड़ी की सीट पर फैलने लगीं और देवेन्द्र ने मेरी सलवार के ऊपर से ही मेरी पैन्टी को टटोलकर मेरी चूत को सहलाना शुरू कर दिया।
हम भूल गए थे कि खेतों के बीच सड़क पर गाड़ी में बैठकर एक दूसरे को चूस रहे हैं। तभी गाड़ी के पास से एक तेज़ रफ्तार दूसरी कार गुज़री और मैं देवेन्द्र से अलग हो गई। मैंने होश संभाला। और उसे अपने से अलग कर दिया।
वो बोला- क्या हुआ जान?
मैंने कहा- बस और नहीं, अब मुझे घर जाना है।
वो बोला- क्यूं, क्या हो गया?
मैंने कहा- तुम मुझे घर छोड़कर आ रहे हो या मैं पैदल ही चली जाऊं?
वो बोला- ठीक है, गुस्सा क्यूं हो रही है?
उसने गाड़ी का दरवाज़ा खोला और बाहर निकलकर ड्राइविंग सीट पर बैठकर गाड़ी स्टार्ट की और सड़क पर दौड़ा दी।
5 मिनट में हम गांव के नजदीक पहुंच गए।
मैंने कहा- बस यहीं रोक दो, मैं यहां से पैदल चली जाऊंगी।
वो बोला- ठीक है, तेरी मर्ज़ी।
मैं गाड़ी से उतरी और मुंह पर दुपट्टा लपेटकर किताबों को सीने से चिपका कर सड़क के किनारे अपने गांव की तरफ बढ़ने लगी। मैंने पीछे मुड़कर भी नहीं देखा कि कहीं कोई ये न देख ले कि मैं किस लड़के की गाड़ी से उतरी हूं।
शाम को निशा का फोन आया- कल तू आ रही है ना मेरे घर?
मैंने पूछा- कल क्या है..
“भुलक्कड़ कल मेरा जन्मदिन है। भूल गई इतनी जल्दी?”
मैंने कहा- हां देखती हूं।
वो बोली- देखना-वेखना कुछ नहीं है, तेरे आने के बाद ही केक काटूंगी मैं।
मैंने कहा- ठीक है।
मैंने रात का खाना बनाने के बाद आज टीवी भी नहीं देखा और चुपचाप अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर लेट गई।
लेटते ही देवेन्द्र के साथ हुई दिन वाली कामुक घटना ने मेरे दिमाग पर कब्ज़ा कर लिया। मैंने अपनी नाइट वाली पजामी निकालकर सीधे चूत को सहलाना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में मैं गर्म हो गई और मैंने पैंटी भी निकाल दी। मैंने तेज़ी से अपनी चूत को अपनी उंगलियों से मसलना शुरू कर दिया और एक हाथ को टॉप के अंदर डालकर अपने स्तनों को दबाने लगी।
मेरी हालत खराब हो रही थी। काश देवेन्द्र अभी पास में होता तो मेरी प्यास बुझाने के लिए मुझ पर टूट पड़ता। मैं तड़पने लगी।
तभी लाइट चली गई और कमरे में अंधेरा हो गया। पूरे घर में सन्नाटा पसर गया और साथ ही मच्छर भी भिनभिनाने लगे।
ध्यान भटका तो सोचा, ये मैं किस रास्ते पर जा रही हूं।
मैंने वापस से पजामी पहन ली और कम्बल ओढ़कर सो गई।
अगले दिन निशा के लिए गिफ्ट लेने जाना था। मैं नहा-धोकर माँ के साथ बाज़ार चली गई। मैंने निशा के लिए गणेश जी की मूर्ति गिफ्ट के रूप में पैक करवा ली।
दिन के 3 बजे उसका फोन आया- रश्मी, मुकेश घर पर नहीं है तो उसका दोस्त भाई की गाड़ी लेकर तुम्हें लेने आएगा।
मैंने कहा- मगर …
वो बोली- क्या हुआ … कुछ प्रॉब्लम है?
मैंने दो पल सोचा और कह दिया- नहीं, मैं पहुंच जाऊंगी।
शाम के 5 बजे घर के बाहर गाड़ी का हॉर्न बजा तो मैंने जल्दी से माँ को आवाज़ लगाते हुए कहा- माँ, मैं मुकेश के साथ निशा के घर जा रही हूं।
माँ बोली- ठीक है, लेकिन टाइम से आ जाना।
मैंने पल की भी देर किए बिना गेट तुरंत बंद कर दिया। मैं नहीं चाहती थी कि घर वालों को पता चले कि मुकेश की गाड़ी में देवेन्द्र मुझे लेने आया है।
मैंने क्रीम रंग का कढ़ाई वाला सूट जिसके नीचे केसरिया रंग की चूड़ीदार पजामी पहन रखी थी और गले में आर्टीफिशल जूलरी डाल ली थी। सूट के ऊपर नीले रंग का कार्डिगन जो सर्दी से बचने के लिए डाल लिया था। बालों को शैम्पू करके सुखा कर खुला छोड़ दिया था और केसरिया रंग का जालीदार दुपट्टा सिर पर ढककर मैं गिफ्ट हाथ में लिए हुए जल्दी से गाड़ी के अंदर आकर बैठ गई।
में अभी तक आपने पढ़ा कि कॉलेज की छुट्टियों के बाद जब पढ़ाई शुरू हुई तो एक दिन देवेन्द्र मुकेश के साथ ही उसकी गाड़ी में बैठा हुआ मिला। निशा के घर पर वो दोनों भाई बहन उतर गए और मुझे घर छोड़ने का काम मुकेश ने देवेन्द्र को सौंप दिया। जब हम शहर से बाहर निकल कर खेतों के एरिया में आ गए तो देवेन्द्र गाड़ी रोककर पीछे मेरे साथ आ बैठा और उसने अपने तने हुए लिंग पर मेरा हाथ रखवा दिया।
अगले ही पल उसने मेरे होंठों को चूसना शुरू कर दिया और साथ ही मेरे स्तनों को भी दबाने लगा।
मैं गर्म होकर उसकी जवानी के सागर में डूबने लगी और उसने मेरे शर्ट में नीचे से हाथ डालकर मेरी ब्रा में दबे मेरे स्तनों को दबाना शुरू कर दिया। अब मैं किसी तरह का विरोध नहीं कर रही थी और उसके होंठों को चूसे जा रही थी। उसने मेरा हाथ पकड़कर फिर से उसकी पैंट में तने लिंग पर रखवा दिया और अबकी बार मैंने उसके लिंग को अच्छी तरह सहलाना शुरू कर दिया।
वो मेरे होंठों को और ज़ोर से चूसने काटने लगा। हम दोनों की सांसों की गर्मी से गाड़ी का माहौल भी गर्म हो गया था। उसका लिंग झटके पर झटके दे रहा था। जिसे मैं अपने हाथ से सहलाती हुई पकड़ने की कोशिश कर रही थी। सख्त और मोटे लिंग की छुअन से मेरी टांगें अपने आप ही गाड़ी की सीट पर फैलने लगीं और देवेन्द्र ने मेरी सलवार के ऊपर से ही मेरी पैन्टी को टटोलकर मेरी चूत को सहलाना शुरू कर दिया।
हम भूल गए थे कि खेतों के बीच सड़क पर गाड़ी में बैठकर एक दूसरे को चूस रहे हैं। तभी गाड़ी के पास से एक तेज़ रफ्तार दूसरी कार गुज़री और मैं देवेन्द्र से अलग हो गई। मैंने होश संभाला। और उसे अपने से अलग कर दिया।
वो बोला- क्या हुआ जान?
मैंने कहा- बस और नहीं, अब मुझे घर जाना है।
वो बोला- क्यूं, क्या हो गया?
मैंने कहा- तुम मुझे घर छोड़कर आ रहे हो या मैं पैदल ही चली जाऊं?
वो बोला- ठीक है, गुस्सा क्यूं हो रही है?
उसने गाड़ी का दरवाज़ा खोला और बाहर निकलकर ड्राइविंग सीट पर बैठकर गाड़ी स्टार्ट की और सड़क पर दौड़ा दी।
5 मिनट में हम गांव के नजदीक पहुंच गए।
मैंने कहा- बस यहीं रोक दो, मैं यहां से पैदल चली जाऊंगी।
वो बोला- ठीक है, तेरी मर्ज़ी।
मैं गाड़ी से उतरी और मुंह पर दुपट्टा लपेटकर किताबों को सीने से चिपका कर सड़क के किनारे अपने गांव की तरफ बढ़ने लगी। मैंने पीछे मुड़कर भी नहीं देखा कि कहीं कोई ये न देख ले कि मैं किस लड़के की गाड़ी से उतरी हूं।
शाम को निशा का फोन आया- कल तू आ रही है ना मेरे घर?
मैंने पूछा- कल क्या है..
“भुलक्कड़ कल मेरा जन्मदिन है। भूल गई इतनी जल्दी?”
मैंने कहा- हां देखती हूं।
वो बोली- देखना-वेखना कुछ नहीं है, तेरे आने के बाद ही केक काटूंगी मैं।
मैंने कहा- ठीक है।
मैंने रात का खाना बनाने के बाद आज टीवी भी नहीं देखा और चुपचाप अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर लेट गई।
लेटते ही देवेन्द्र के साथ हुई दिन वाली कामुक घटना ने मेरे दिमाग पर कब्ज़ा कर लिया। मैंने अपनी नाइट वाली पजामी निकालकर सीधे चूत को सहलाना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में मैं गर्म हो गई और मैंने पैंटी भी निकाल दी। मैंने तेज़ी से अपनी चूत को अपनी उंगलियों से मसलना शुरू कर दिया और एक हाथ को टॉप के अंदर डालकर अपने स्तनों को दबाने लगी।
मेरी हालत खराब हो रही थी। काश देवेन्द्र अभी पास में होता तो मेरी प्यास बुझाने के लिए मुझ पर टूट पड़ता। मैं तड़पने लगी।
तभी लाइट चली गई और कमरे में अंधेरा हो गया। पूरे घर में सन्नाटा पसर गया और साथ ही मच्छर भी भिनभिनाने लगे।
ध्यान भटका तो सोचा, ये मैं किस रास्ते पर जा रही हूं।
मैंने वापस से पजामी पहन ली और कम्बल ओढ़कर सो गई।
अगले दिन निशा के लिए गिफ्ट लेने जाना था। मैं नहा-धोकर माँ के साथ बाज़ार चली गई। मैंने निशा के लिए गणेश जी की मूर्ति गिफ्ट के रूप में पैक करवा ली।
दिन के 3 बजे उसका फोन आया- रश्मी, मुकेश घर पर नहीं है तो उसका दोस्त भाई की गाड़ी लेकर तुम्हें लेने आएगा।
मैंने कहा- मगर …
वो बोली- क्या हुआ … कुछ प्रॉब्लम है?
मैंने दो पल सोचा और कह दिया- नहीं, मैं पहुंच जाऊंगी।
शाम के 5 बजे घर के बाहर गाड़ी का हॉर्न बजा तो मैंने जल्दी से माँ को आवाज़ लगाते हुए कहा- माँ, मैं मुकेश के साथ निशा के घर जा रही हूं।
माँ बोली- ठीक है, लेकिन टाइम से आ जाना।
मैंने पल की भी देर किए बिना गेट तुरंत बंद कर दिया। मैं नहीं चाहती थी कि घर वालों को पता चले कि मुकेश की गाड़ी में देवेन्द्र मुझे लेने आया है।
मैंने क्रीम रंग का कढ़ाई वाला सूट जिसके नीचे केसरिया रंग की चूड़ीदार पजामी पहन रखी थी और गले में आर्टीफिशल जूलरी डाल ली थी। सूट के ऊपर नीले रंग का कार्डिगन जो सर्दी से बचने के लिए डाल लिया था। बालों को शैम्पू करके सुखा कर खुला छोड़ दिया था और केसरिया रंग का जालीदार दुपट्टा सिर पर ढककर मैं गिफ्ट हाथ में लिए हुए जल्दी से गाड़ी के अंदर आकर बैठ गई।
// सुनील पंडित // 

मैं तो सिर्फ तेरी दिल की धड़कन महसूस करना चाहता था
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!