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Gay/Lesb - LGBT जनवरी का जाड़ा, यार ने खोल दिया नाड़ा// By: हिमांशु बजाज
#5
लेकिन चलती बात पर मैंने भी पूछ ही लिया- मगर भैया, आप उसको कैसे जानते हो?
मुकेश बोला- वो कॉलेज में मेरा क्लासमेट है, हम दोनों एक ही कॉलेज में पढ़ते हैं।

इससे पहले मैं कुछ और पूछती उसने कहा- वो आपसे बात करना चाहता है.
और उसने एक पर्ची पीछे मेरी तरफ बढ़ा दी।

मैंने पर्ची खोलकर देखा तो उस पर एक फोन नम्बर लिखा हुआ था।
मैं कहने ही वाली थी कि ये क्या है, इससे पहले वो बोल पड़ा- ये देवेन्द्र का नम्बर है, एक बार उससे बात कर लेना आप!

मैंने कोई जवाब नहीं दिया और तब तक घर आ गया।

मैं गाड़ी से उतरी, घर में घुसते ही सीधे अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर गिर गई।

मन में कौतूहल था और साथ ही डर भी। मैंने पर्ची को फिर से खोलकर देखा। मन किया कि फोन कर लूं लेकिन फिर रुक गई।

मैंने वो पर्ची वहीं किताब के कवर के नीचे रख दी और बाथरूम में फ्रेश होने चली गई।

पेशाब करने के बाद जब सलवार का नाड़ा बांधने लगी तो ध्यान चूत पर गया। मैंने उसको हल्के से छुआ। उसकी चिपकी हुई फांकों को धीरे से अलग करके देखा। अंदर से लाल थी। लेकिन उनको छेड़ते हुए अच्छा लग रहा था। मैंने हल्के से चूत को मसाज करना शुरू कर दिया। मेरी सलवार मेरे हाथ से छूटकर नीचे मेरे पैरों में सिमट कर फर्श पर इकट्ठा हो गई।

मैंने एक हाथ से चूत को मसाज देना जारी रखा और दूसरे हाथ से अपने चूचों को दबाने लगी। आज पहली बार मन कर रहा था कि किसी के मजबूत हाथों से चूचों को दबवाऊं और चूत को रगड़वाऊं।

तभी माँ ने आवाज़ लगा दी। मैं सम्भली और हाथ-मुंह धोकर बाथरूम से बाहर आ गई। मां ने कहा कि आकर चाय बना ले।

मैं दुपट्टा गले में डालकर कमरे से बाहर गई और किचन में जाकर चाय बनाने लगी। लेकिन चूत में कुछ गीलापन सा महसूस होने लगा। मैं चाय लेकर अपने कमरे में वापस आ गई। ध्यान को यहां-वहां बांटने की कोशिश की, कई बार उस किताब की तरफ नज़र गई जिसमें देवेन्द्र के फोन नम्बर की वो पर्ची रखी हुई थी।

कश्मकश में थी फोन करूं या नहीं।

और आखिरकार मैंने पर्ची निकालकर उस पर लिखे नम्बर को डायल कर ही दिया।

दूसरी तरफ डायलर रिंग जाने लगी। 3-4 रिंग के बाद फोन उठा और उधर से एक भारी सी आवाज़ आई- हैल्लो!

मैंने कहा- देवेन्द्र?


वो बोला- कौन सी बोलै है?

मैं रश्मि …” (बदला हुआ नाम)

ओहो सुणा दे माणस के हाल हैं तेरे …” उसने पूछा।

मैं ठीक हूं, तुम कैसे हो …”

बस जी आपका फोन आ गया तो हम भी ठीक हो गे …”

मुकेश ने तुमसे बात करने के लिए बोला था, कुछ काम था क्या मुझसे?”

ना काम के गोबर पथवाना है तेरे पै …? मन्नै तै बात करन खातर फोन नम्बर दिया था, उस दिन तू बोली भी कोनी जब मैं बाइक लेके आया था।

मुझे शरम आ रही थी यार, सोचा अब कॉलेज खत्म हुए इतने दिन हो गए हैं, क्या बात करूं और साथ में मुकेश भी था, वो क्या सोचता अगर मैं कुछ बोलती तो।

मुकेश की चिन्ता मत कर तू, अपना ही भाई है वो। मिल ले एक दिन …” उसने पूछा।

मैंने कहा- तुम रोज़ कॉलेज के बार खड़े हुए दिखते तो हो …”

वो बोला- मैं तो खड़ा देख लिया, पर तन्नै देख कै मेरा कुछ और भी खड़ा हो जाता है …”

ये सुनते ही मैंने फोन काट दिया। धक-धक होने लगी। मुझे पता था वो अपने लिंग की बात कर रहा है।

कुछ देर पहले खुद मेरी चूत ने मुझे किसी मर्द की छुअन के लिए तड़पा दिया था लेकिन जब देवेन्द्र ने अपने मुंह से ये बात बोली तो मेरी हालत खराब हो गई।

उसने दोबारा फोन किया, लेकिन मैंने पिक नहीं किया। 3-4 मिस्ड कॉल होने के बाद उसका फोन आना बंद हो गया। शाम हो गई तो मैं डिनर की तैयारी करने लगी।

8 बजे तक सबने खाना खा लिया और मैं मम्मी-पापा के साथ हॉल में बैठकर टीवी सीरियल देख रही थी। तभी मेरा फोन दोबारा बजने लगा, स्क्रीन पर देवेन्द्र के नम्बर से इनकमिंग दिखा रहा था। मैंने कमरे में जाकर रूम का दरवाज़ा बंद कर लिया और हलो किया।

वो बोला- क्या कर रही है?

बस खाना खाया है.

फेर मिल ले न एक दिन …?” उसने पूछा.

अभी बात नहीं कर सकती, बाद में फिर कभी बात करेंगे। कहकर मैंने फोन रख दिया।

उसकी कॉल फिर से आने लगी। मैं डर रही थी कि कहीं घर वालों को शक न हो जाए कि मैं किसी लड़के से बात कर रही हूं। इसलिए मैंने फोन को स्विच ऑफ कर के एक तरफ रख दिया।

हॉल में जाकर दोबारा टीवी देखने लगी। जब सबको नींद आने लगी तो टीवी बंद होने के बाद सोने की तैयारी होने लगी।

10 बजे जब सोने के लिए बिस्तर पर लेटी तो देवेन्द्र के बारे में सोचने लगी। मेरे तने हुए स्तन और चूत का गीलापन कह रहा था ऐसा नौजवान फिर नहीं मिलेगा। मगर मन कह रहा था कि शादी से पहले अगर कुछ गड़बड़ हो गई तो घर वालों की इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी। दोनों तरफ से सोचते-सोचते दिमाग खराब हो रहा था।

मैंने उसके ख़यालों के दलदल में फंसे मन को नैतिकता की रस्सी से खींच निकालने की बहुत कोशिश की लेकिन मैं उनमें और फंसती जा रही थी।

सोचते-सोचते दिमाग थक गया और सुबह के अलार्म के साथ ही नींद खुली।
// सुनील पंडित // yourock
मैं तो सिर्फ तेरी दिल की धड़कन महसूस करना चाहता था
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!
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RE: //जनवरी का जाड़ा, यार ने खोल दिया नाड़ा// By: हिमांशु बजाज - by suneeellpandit - 27-03-2019, 12:00 PM



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